Showing posts with label रामदेव. Show all posts
Showing posts with label रामदेव. Show all posts

Friday, 21 September 2012

आवश्यकता है एक " पोस्टर ब्वाय " की !


 देश के हालात और देश में चलने वाली हर गतिविधियों पर मैने हमेशा ही अपनी बेबाक राय रखी है। कभी इस बात की चिंता नहीं की कि कोई मुझे क्या बता रहा है। हालांकि मैं देख रहा हूं कि लोग मुझे जाने बगैर ही मेरी तस्वीर बनाने लगे। इसमें किसी ने मुझे दिग्गी के खानदान का बताया,   किसी ने संघी कहा, तो कुछ ने वामपंथी का ठप्पा लगा दिया। हां बिल्कुल ठीक समझ रहे हैं आप ! कुछ ने पागल तक करार दे दिया। खैर मेरे बारे में कौन क्या राय रखता है, मेरे लिए ये कभी महत्वपूर्ण नहीं रहा। मेरे लिए महत्वपूर्ण ये है कि मैं जो देख रहा हूं, या मेरी जो समझ है, उसे ईमानदारी के साथ आपके सामने रख रहा हूं या नहीं। यही वजह है कि अगर आप  इस आंदोलन के बारे में  मेरे ब्लाग पर लिखे लेख को पढ़ें तो आप खुद मानने को मजबूर हो जाएंगे कि जो बातें मैने कहीं है, वही आगे चल कर वो सच साबित हुई है। अब आप इसे सही समझें या गलत,या फिर मुझे पागल बताते रहें। वैसे भी  मेरा मानना रहा है कि

इन्हीं बिगड़े दिमागों में घनी खुशियों के लच्छे  हैं,
हमें पागल ही रहने दो कि हम पागल ही अच्छे हैं।

अच्छा इसके पहले की मैं बात-बात में एक जरूरी बात बताना भूल जाऊं, पहले आप सबको एक महत्वपूर्ण विज्ञापन के बारे में बता दूं। वैसे तो ये विज्ञापन मुझे ब्लाग पर प्रकाशित करने के लिए भेजा गया है, पर जिन लोगों ने भेजा है वो  बेचारे नई-नई पार्टी बनाने की कवायद कर रहे हैं। इसलिए सोचा कि विज्ञापन के बजाए इसे खबर बनाकर ही छाप देता हूं, क्यों इनसे पैसे लिए जाएं। दरअसल अन्ना के अचानक साथ छोड़ देने से बाकी टीम को एक चेहरे की जरूरत है,  इस टीम के शुभचिंतक भी बताते हैं कि यहां दिमाग तो बहुत लोगों के पास है, पर चेहरा बिकाऊ नहीं है। इसलिए थोड़ा बिकाऊ चेहरा चाहिए, जिसे देखकर देश की जनता को लुभाया जा सके।

आवश्यकता है "पोस्टर ब्वाय" की

उम्र 75 के पार होनी चाहिए। शिक्षा प्राइमरी से ज्यादा नहीं। अंग्रेजी का ज्ञान शून्य होना चाहिए, हिन्दी पढ़ना नहीं बस समझना जरूरी  है। विशेष योग्यता कम से कम 15 से 20 दिन भूखे रहने की आदत होनी चाहिए। दूसरों के काम का श्रेय लेने की क्षमता होनी चाहिए। पूर्व सैनिक को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर बाकी मानक पर उम्मीदवार खरा उतरा तो उसे उम्र में पांच साल की छूट यानि 80 साल का भी हो तो चलेगा। वेतन उसकी आवश्यकतानुसार, चयन हो जाने पर इलाज मुफ्त सुविधा। हां जब तक वो "पोस्टर ब्वाय" रहेगा उसे अकेले कहीं जाने आने की छूट नहीं होगी। मंदिर ( तथाकथित) में रहना होगा, लेकिन वहां मूर्ति किसकी रखी जाएगी, ये अधिकार प्रबंधन का होगा। शर्तें. चयन हो जाने के बाद घर के किसी सदस्य और मित्र से संपर्क नहीं रख सकेगें। उसका असली नाम जो भी हो, उससे कोई  मतलब नहीं रहेगा। प्रबंधन जो नाम तय करेगा, पोस्टर ब्वाय उसी  नाम से जाना जाएगा। किसी भी शर्त को तोड़ने पर उसे देह त्याग करना होगा।

ये विज्ञापन मेरी आंखो के सामने आया तो सच बताऊं मैं भी हैरान रह गया। मैने जानने की कोशिश की आखिर एक " पोस्टर ब्वाय "  के लिए इतनी शर्तों की क्या जरूरत है ? ऐसा भी नहीं कि उसे बहुत ज्यादा वेतन भत्ता दे रहे हों कि इतनी सावधानी बरतने की जरूरत है। बहरहाल जो बातें  पता चलीं वो तो हैरान करने वाली थीं। पता चला कि इसके पहले जिसे पोस्टर ब्वाय की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था, उसके कम पढ़े लिखे होने के ये सब फायदा उठा रहे थे। मसलन जब इनकी  मीटिंग होती थी और लोगों को लगता था कि इस बात की जानकारी अन्ना को नही होनी चाहिए , तो ये अंग्रेजी में बातें करने लगते थे। जब तक ये अंग्रेजी में बातें करते थे, बेचारे अन्ना इधर उधर सबके मुंह ताकते रहते थे। फिर जो फाइलें तैयार होती वो अंग्रेजी में या फिर हिंदी में। बेचारे अन्ना को दोनों भाषा पढ़ने में दिक्कत होती थी। बहरहाल अन्ना की ये दिक्कत बाकी लोगों को ये शूट करती थी। लेकिन अन्ना भी दुनिया देख चुके हैं,  वो अपनी तीसरी आंख से बहुत कुछ देख सुन लेते थे। इसलिए अब नए पोस्टर ब्वाय के एजूकेशन में कटौती की गई है। क्योंकि अन्ना के सातवीं क्लास तक पढ़ाई की जानकारी लोगों को है, उसके बाद की नहीं। इसीलिए नए पोस्टर ब्वाय को सिर्फ पांचवीं तक पढ़ाई की छूट होगी।

मैं देख रहा हूं कि विज्ञापन में हर बात पर बारीकी से ध्यान दिया गया है। उनकी सबसे बड़ी ताकत यही थी ना कि बेचारे 15 से 20 दिन तक बिना खाए रह जाते हैं। बताइये 80 साल का बूढा बिना खाए मंच पर लेटा रहता था, और उसके मंच के सामने भीड़ लगातार बनी रहे,  इसके लिए लंगर चलता था। यहां देशी घी की पूड़ी सब्जी और हलुवा लगातार बनाए जा रहे थे। मैं  देखता था कि सुबह  नाश्ते  और शाम को स्नैक्स के दौरान यहां भीड़ बेकाबू  हो जाया करती थी। लेकिन बेचारे अन्ना इतने लोगों को सामने खाता पीता देखने के बाद भी कभी ये नहीं कहा कि अब उनसे भूखा नहीं रहा जा रहा है। फौजी रहे हैं ना तो उनकी भूख तो तिरंगे को ही देखकर खत्म हो जाया करती थी। बहरहाल अब राजनीतिज्ञों की बात छोड़ दीजिए, क्योंकि लालू यादव सरीखे नेता ने तो उनके अनशन की ईमानदारी पर ही उंगली उठा दी थी। अब दूध से जला छांछ भी फूंक फूंक पर पीता  है। इसलिए कुछ और सावधानी बरती जा रही है। मसलन अन्ना जब दिल्ली में रहते थे तो दिल्ली की भाषा बोलते थे, यहां से बाहर जाते ही वो दिल की भाषा बोलने लगते। ये बात भी लोगों को बिल्कुल हजम नहीं हो रही थी।  लिहाजा नए पोस्टर ब्वाय को अनुबंध तक यहीं के मंदिर में रहना होगा,  यहां वो आराधना किसकी करेगा, ये भी टीम बताएगी। खास बात ये कि उसका असली नाम सबको नहीं पता होना चाहिए। देखा था ना, पहली पर कांग्रेस प्रवक्ता ने नाम क्या लिया, बवाल खड़ा हो गया। खैर देखिए भाई अगर ऐसा कोई आदमी आपकी  नजर में हो तो प्लीज मदद कर दीजिए दिल्ली की।

देश में कई बार सोशल साइट्स के दुरुपयोग की बात उठती है, या फिर इस पर अंकुश लगाने  की बात होती है तो ऐसी कोशिशों का विरोध करने में मैं भी आपके साथ मजबूती से खड़ा रहने वालों में हूं, कभी इसकी स्वायत्तता का विरोधी नहीं रहा।  पर आज जब कुछ पढ़े लिखे लोगों को देखा कि वो एक साजिश के तहत अन्ना के खिलाफ माहौल बना रहे हैं, तो मन दुखी हुआ। फिर ना जाने क्यों लगने लगा कि अभी हम उस काबिल नहीं हुए हैं कि हमें आजाद छोड़ दिया जाए, एक लक्ष्मण रेखा जरूरी  है। अब देखिए अन्ना विरोधी वाल पर लंपू चंपू टाइप के लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं। अच्छा आलोचना हो तो कोई खास बात नहीं, आलोचना होनी चाहिए, लेकिन यहां उन्हें अपमानित किया जा रहा है। जो लोग कल तक उनके नाम की टोपी अपने सिर पर रख कर गर्व कर रहे थे, आज उसी टोपी को पैरों तले रौंद रहे हैं। खैर ये सब किसके इशारे पर और किसके लिए किया जा रहा है, ये बातें किसी से छिपी नहीं है। टीम में  दूसरी तरफ  जो लोग हैं वो तकनीक फ्रैंडली हैं। तभी तो उन्होंने सप्ताह भर में  ही देश की नब्ज टटोल ली कि उन्हें राजनीतिक  दल बनाने का देश की जनता आदेश सुना रही है। देश की चुनाव प्रक्रिया को ये गलत बताते हैं और अपने सर्वे जिसकी कोई विश्वसनीयत नहीं है, उसे देश का फरमान कहते हैं। एक कड़ी बात कह दूं, जितनी फर्जी ये सिविल सोसायटी थी, उससे ज्यादा फर्जी इनका सर्वे है।

चलते चलते आखिरी बात और। मीडिया में एक बात बहुत तेजी से  चलाई  जा रही है। अन्ना और रामदेव गुपचुप मिले। मेरा सवाल है ? क्या अन्ना  और रामदेव पहली बार मिले हैं। क्या कभी  अन्ना ने या रामदेव ने इस बात से इनकार किया था कि उन  दोनों में आपस में रिश्ते  नहीं है। आपको याद दिला दूं दोनों ने एक साझा प्रेस कान्फ्रेंस में ये बात कहा था कि दोनों  एक दूसरे के आंदोलन में मदद करेंगे। हां बीच के कुछ लोग जरूर ये कोशिश करते रहे कि  इन्हें  अलग अलग ही रहने दिया जाए। अगर ये दोनों एक हो गए तो बाकी  लोगों की कोई पूछ नहीं रह जाएगी। अच्छा फिर इस मुलाकात की जिस तरह से हवा बनाई गई जैसे अन्ना  बाबा रामदेव  ने बल्कि किसी आतंकवादी से मिल  रहे हैं और मिलाने वाला कोई बड़े गिरोह का सरगना है। खैर ये अध्याय बंद हो गया है। हमें  भी  इस बात का दुख है कि एक महत्वपूर्ण आंदोलन कुछ लोगों  की अतिमहत्वाकांक्षा के आगे दम तोड़ दिया। लिखना बहुत कुछ चाहता हूं, पर अब स्वास्थ इजाजत नहीं दे रहा है। सुबह कहीं पढ़ रहा था कि ईश्वर या तो स्वास्थ दे या फिर शरण दे।  आगे फिर...

Sunday, 15 July 2012

बाबा रे बाबा - रामदेव का रामराज



बाबा  रामदेव योग गुरु के रुप में देश दुनिया में जाने जाते हैं, पर इन दिनों वो योग को छोड़ कई दूसरे मामलों में अपनी टांग फंसा चुके हैं। इसलिए वह आए दिन किसी न किसी विवाद में उलझे ही रहते हैं। वो कालेधन का विरोध करते और स्वदेशी की बात भर करते तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन स्वदेशी की आड़ में वो अपने खुद के उत्पादों की मार्केटिंग कर रहे हैं। अच्छा रामदेव नियम कायदे से इन कंपनियों का संचालन करते तो  शायद इतना ज्यादा विरोध नहीं होता, लेकिन वो भी बाजार की उसी गोरखधंधे का हिस्सा है जो दूसरे लोग कर रहे हैं। यानि अधिक धन की लालसा में टैक्स की चोरी समेत तमाम गैरकानूनी हथकंडे अपनाने के आरोप उनकी कंपनियों पर लगते  रहे हैं।  बाबा दूसरी कंपनियों के उत्पादों को घटिया और अपने उत्पादों को शुद्ध बताने के साथ सस्ता भी कहते हैं, पर इसमें उतनी सच्चाई बिल्कुल नहीं, जितना दावा  किया जा रहा है।

कुछ समय पहले मेरे एक लेख पर बाबा के कुछ समर्थकों ने यहां अभद्र टिप्पणी से वातावरण को दूषित किया। लेकिन मेरा मानना है कि सच को दबाने का ये तरीका सही नहीं है। इसलिए मैने कोशिश की है कुछ और प्रमाणिक तथ्यों के साथ आप सबके पास आऊं। 11 हजार करोड़ से अधिक कारोबारी साम्राज्य के ‘मालिक’ रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव आज विवादों में हैं। केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उनकी संस्थाओं द्वारा विदेशी लेन-देन की जांच कर रही है, तो उत्तराखंड का बिक्रीकर विभाग उनके विभिन्न ट्रस्टों के खिलाफ टैक्स चोरी की तहकीकात कर रहा है। अब आए दिन दवाओं से लदे उनके ट्रक पकड़े जा रहे हैं। जब इसकी जांच  की जाती है तो, भारी टैक्स चोरी का पता चलता है। सबको  पता है कि उनका महर्षि पतंजलि आश्रम भी कई तरह के विवादों में घिरा रहा है। बाबा की व्यावसायिकता से परेशान हो उनके तमाम पुराने सहयोगियों ने यहां से किनारा कर लिया है।

हंसी आती है, जब हम बाबा की पुरानी बातों को सुनते हैं। वो कैंसर व एड्स जैसी जानलेवा बीमारियों को जड़ी-बूटियों से ठीक कर दिए जाने के ‘उल्टे-सीधे’ दावे किया करते थे। इसके खिलाफ मेडिकल काउंसिल भी बाबा रामदेव को कठघरे में खड़ा करने के लिए एकजुट होने लगा था। इसके संभावित खतरे को बाबा भी भांप गए। इसलिए अपने बचाव में उन्होंने हाथ-पांव मारना शुरू कर दिया है। वे कभी अखिलेश यादव-मुलायम सिंह यादव के दरबार में मत्था टेक रहे हैं। यदि वे अखिलेश सरकार के साथ ही उत्तराखंड सरकार का भी गुणगान करते नजर आएं, तो हैरानी की बात नहीं होगी। सवाल भी तो हजारों करोड़ के साम्राज्य को बचाने का है। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं  कि योग को व्यावहारिक बनाने और जन-जन तक पहुंचाने में रामदेव का परिश्रम बेजोड़ है। लेकिन काले धन के सवाल पर केंद्र सरकार को मुश्किल में डालने वाला योग गुरु बाबा रामदेव खुद भी बड़ी मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। उनके खिलाफ जांच कर रही केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी गोपनीय रिपोर्ट में रामदेव की ट्रस्ट की ओर से संचालित कंपनियों के विदेशी लेन देन में गड़बड़झाले की बू सूंघ ली है।

सूत्रों के मुताबिक ईडी ने कुछ ऐसे लेन देन पकड़े हैं, जिनमें उसे घपले-घोटाले का अंदेशा है। रिपोर्ट में ये भी बताया जा रहा है कि बाबा की कई सस्थाएं कालेधन के खेल में शामिल हो सकती हैं। इतना ही नहीं, उत्तराखंड के बिक्री कर विभाग ने भी बाबा की कंपनियों के खिलाफ कई मामले दर्ज किए हैं। बाबा की कहानी शुरू करने से पहले यहां यह बताना जरूरी है कि कुल 34 कंपनियों के किसी भी निदेशक मंडल में बाबा रामदेव नहीं हैं। इसी तकनीकी पहलू का लाभ उठाते हुए वे छाती ठोक कर कहते हैं कि उनके पास ब्लैकमनी का एक भी पैसा नहीं है। जो  भी जांच चल रही है, उसे बाबा और उनके समर्थक राजनीति से प्रेरित बताते हैं। पिछले दिनों कुछ ब्लाग को पढने के दौरान मेरी नजर पड़ी "हमवतन" पर। यहां मुझे इसी विषय पर कई तथ्यपरक जानकारी मिली। लीजिए आप भी देखिए।

ईडी का कसता शिकंजा

प्रवर्तन निदेशालय की एक ताजा गोपनीय रिपोर्ट में रामदेव के विदेशों में किए गए करोड़ों रुपये के संदिग्ध लेन-देन का खुलासा किया गया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक जांच के दायरे में 64.49 करोड़ की राशि है। बाबा के लगभग 11,000 करोड़ रुपये के साम्राज्य में पांच ट्रस्ट हैं। इनमें तीन ट्रस्ट भारत में हैं, जबकि एक-एक अमेरिका व ब्रिटेन में हैं। कंपनियों की जांच के दौरान ईडी को इतने सारे संदिग्ध लेन-देन की जानकारी मिली है कि जांच एजेंसी को अपनी जांच का दायरा बढ़ाना पड़ा है। जांच के दायरे में रामदेव के पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की अनेक सहायक कंपनियों के जरिए किए गए निर्यात शामिल हैं।  सूत्रों ने बताया कि सहायक कंपनियों का इस्तेमाल भी शक के दायरे में है। इन सहायक कंपनियों में दिव्य फार्मेसी, दिव्य योग साधना और दिव्य प्रकाशन शामिल हैं। ये सभी दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के तहत काम करती हैं। आरंभिक जांच में यह भी पता चला है कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने 2009 से 2011 के बीच 20 करोड़ का सामान आयात किया था। जांच के दायरे में दो और लेन-देन हैं। इनमें ओवरसीज डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के रूप में एक लाख 50,000 अमेरिकी डॉलर (74.98 लाख रु .) और 2 लाख 42,000 ब्रिटिश पाउंड (1.9 करोड़ रु .) रेमिटेंस शामिल है। निदेशालय के नोट में पांच ऐसे संदिग्ध लेन-देन का खुलासा हुआ है। सभी में फेमा के उल्लंघन की जांच की जा रही है।

जांच में यह भी पता चला है कि पतंजलि आयुर्वेद ने भारतीय निवेश परामर्श और पंजीयन शुल्क नाम से अमेरिका में 6 लाख 10,000 डॉलर (3.04 करोड़ रुपये) भेजे थे। यही नहीं, ‘आस्था’ नाम के चैनल का संचालन करने वाली कंपनी वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड ने भी करीब 2 लाख 75000 पाउंड (2.15 करोड़) और 3 लाख 79000 डॉलर (1.89 करोड़ रुपये) विदेश भेजे थे। यह सारी राशि पेशेवर तकनीकी शुल्क के नाम से भेजी गई थी। वैदिक ब्रॉडकास्टिंग उन 34 कंपनियों में शामिल है, जिनका संचालन रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण करते हैं।

पिछले साल अप्रैल माह में रामदेव ने घोषणा की थी कि पतंजलि एक अमेरिकी फर्म को खरीदने वाली है। इसके बाद रांची के निकट बनने जा रहे झारखंड मेगा फूड पार्क की 107 करोड़ रुपये की लागत   वाली एक परियोजना में पतंजलि ने 25 फीसदी निवेश किया है। बालकृष्ण और बाबा के एक अन्य सहयोगी स्वामी मुक्तानंद को इस पार्क का निदेशक बनाया गया है। प्रवर्तन निदेशालय के नोट में इस बात का भी जिक्र  है कि कंपनी को इक्विटी के रूप में दुबई से भी भारी भरकम निवेश हासिल हुआ था।

ट्रस्ट द्वारा संचालित 34 कंपनियों में से रामदेव खुद किसी भी कंपनी के बोर्ड में शामिल नहीं हैं। वे सीधे तौर पर लाभान्वितों में भी नहीं हैं। सभी कंपनियों में बालकृष्ण का दखल है। वे या तो उनमें प्रबंध निदेशक हैं या फिर निदेशक की हैसियत से हैं, जबकि मुक्तानंद 11 फर्मों में निदेशक हैं। सूत्र बताते हैं कि योग गुरु  का सारा कारोबार उनके सहयोगी चला रहे हैं, इसलिए निदेशालय ने अब तक एक बार भी रामदेव को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया है।

करोड़ों की सेल्स टैक्स चोरी

ताजा मामला गत 27 मार्च का है। राज्य बिक्री कर विभाग ने बाबा रामदेव की लक्जर स्थित पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से दवाओं से भरे ट्रक पकड़े जिन पर तेरह लाख रुपये मूल्य की दवाएं लदी थीं। बगैर टैक्स चुकाए ये दवाएं ले जाई जा रही थीं। पकड़े जाने पर कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि दवाएं गरीबों में बांटने के लिए ले जाई जा रही थीं। इससे पहले भी बाबा रामदेव के कई ट्रस्टों पर सेल्स टैक्स चोरी के आरोप लग चुके हैं। सूत्रों ने बताया कि दिव्य फार्मेसी पर पांच करोड़ रुपये के टैक्स चोरी का आरोप है। जांच के दौरान उत्तराखंड के बिक्री कर विभाग ने बाबा के दिव्य फार्मेसी पर छापा भी मारा था। छापामार टीम का नेतृत्व विभाग के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने किया था। सूत्र बताते हैं कि छापे के बाद सरकार में हड़कंप मच गया था। उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बेहद खफा हो गए थे। उन्होंने इस संबंध में सरकार से पूरी रिपोर्ट तलब की थी। अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंदु कुमार पांडे ने छापे की कार्रवाई को सही व निष्पक्ष करार दिया था। गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि छापा मारने वाले डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा पर दबाव इस कदर पड़ा कि उन्हें चार साल पहले ही रिटायरमेंट लेना पड़ा था।

बाबा स्वदेशी, मदद विदेशी

रामदेव ने अपनी छवि मल्टीनेशनल कंपनियों के विरोधी, स्वदेशी अभियान के कट्टर समर्थक और विकास के देशी रोडमैप तैयार करने वाले के रूप में बनाई है। वे कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए मैं स्वदेशीकरण का हिमायती हूं।  शायद यह काफी कम लोग जानते होंगे कि स्वदेशीकरण के हिमायती बाबा रामदेव ने अपने रेडी-टू-ड्रिंक सॉफ्ट ड्रिंक्स बेचने के लिए अमेरिकी मल्टीनेशनल पैकेजिंग कंपनी टेट्रा से हाथ मिलाया है। आने वाले समय में पतंजलि फलों के करीब 30 नए पेय पदार्थ ऐसी ही पैकिंग में पेश करने की योजना बना रहा है। पहले जूस पूरी तरह कांच व प्लास्टिक की बोतलों में बेचा जाता था। धीरे-धीरे इसकी जगह टेट्रा पैक ले रहा है। इतना ही नहीं बाबा के ट्रस्ट ने अमेरिका में   आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनी हर्बों बेद का अधिग्रहण कर लिया है। कितने में, यह एक रहस्य है। कुछ साल पहले दिव्य फार्मेसी के 113 मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी के लिए आंदोलन छेड़ने पर हमेशा के लिए नौकरी से निकाल दिया गया था। रामदेव के कारोबारी कदम बहुराष्टÑीय कंपनियों के विरोध में उनके बयानों का समर्थन करते प्रतीत नहीं होते हैं।

रहस्यमय है पतंजलि योगपीठ

पतंजलि योगपीठ शुरू से ही संदेह व सवालों के घेरे में रही है। खोजबीन बताती है कि वर्ष 2006 में इस योगपीठ की स्थापना रामदेव, शंकरदेव, कमला साध्वी, स्वामी कर्मवीर, भूपेंद्र सिंह ठक्कर, जीव राज पटेल और बालकृष्ण ने मिलकर की थी। सपना था पतंजलि को जन-जन तक पहुंचाना और लक्ष्य था, योग को घर-घर तक पहुंचाना। हरिद्वार के आश्रम की पूरी संपत्ति आचार्य शंकरदेव की थी। वर्षों से यह  आश्रम गरीब-बेसहारा लोगों का सहारा था। रामदेव ने येन-केन-प्रकारेण यह जगह खाली करवाई थी। मामला कोर्ट तक गया था। लेकिन गरीबों की किसी ने नहीं सुनी। पतंजलि ने और भी बहुत सी जमीनें हासिल कीं और साम्राज्य फैल गया। इन्हीं दिनों रामदेव के भाई रामभरत व बहनोई यशदेव शास्त्री जो शंकरदेव के चेले थे, ने भी पतंजलि में घुसपैठ कर ली थी। इस तरह योगपीठ परिवारवाद से अछूता नहीं रह सका। रामदेव इसके मुखिया बन बैठे।

बाबा के कई साथी लापता

मुखिया बनने व नाम फैलने के साथ ही रामदेव बाबा के व्यवहार में भी बदलाव आया। उनके इस बदलते आचरण से ट्रस्ट के सदस्यों में गुटबाजी शुरू हो गई थी और वे अलग-अलग खेमों में बंट गए। रामदेव की कथित दादागीरी से क्षुब्ध होकर उनके परम मित्र पीठ के उपाध्यक्ष आचार्य कर्मवीर ने त्यागपत्र दे दिया था। ट्रस्ट के सबसे पुराने सदस्यों में से एक साध्वी कमला, जिन्हें आश्रम वाले माता कहकर बुलाते थे, को जबरन आश्रम से निकाल दिया गया था। रहस्यमय तरीके से गायब हुए बाबा रामदेव के गुरु शंकरदेव का आज तक पता नहीं चला है। इसी तरह कई पुराने लोगों ने भी बाबा रामदेव व बालकृष्ण जैसे उनके सहयोगियों के व्यवहार से खफा हो आश्रम से अपना नाता तोड़ लिया। भ्रष्टाचार के कई आरोपों से घिरे आजादी बचाओ आंदोलन के पूर्व संचालक राजीव राधेश्याम दीक्षित पर भी बाबा रामदेव की मेहरबानी हुई थी। काफी कम समय में बाबा ने दीक्षित को भारत स्वाभिमान का राष्टÑीय सचिव व ट्रस्टी बना दिया था, जबकि राजीव दीक्षित को कार्यकर्ताओं के विरोधस्वरूप आजादी बचाओ आंदोलन नामक संस्था छोड़नी पड़ी थी। 30 नवंबर 2010 को रहस्यमय परिस्थितियों में भिलाई में राजीव दीक्षित की मौत हो गई थी। उनकी मौत आज भी एक रहस्य है।  क्या देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले बाबा रामदेव स्वयं भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? क्या योग गुरु की तस्वीर कॉरपोरेट बाबा के रूप में तब्दील नहीं हो गई है? यहां सवाल खड़ा होता है कि क्या बाबा रामदेव की मुहिम के बाद स्विस बैंकों में जमा काला धन स्वदेश लौट आया? क्या मल्टीनेशनल कंपनियों पर किसी तरह की कोई लगाम लगाई जा सकी? देश विदेश में लगातार महंगी संपत्तियों की खरीद फरोख्त, आश्रम के पुराने व अनुभवी लोगों के साथ दुर्व्यवहार, बालकृष्ण जैसे विवादास्पद व्यक्ति को अपनी छत्रछाया में पालना, योग शिविरों के महंगे पैकेज, परिजनों को लाभान्वित कर व्यावसायिक साम्राज्य का विस्तार जैसी घटनाएं साफ संकेत कर रही हैं कि बाबा रामदेव भी पूंजीवाद व बाजारवाद की गिरफ्त में आ गए हैं।

कौन हैं बाबा रामदेव ?

बाबा रामदेव का जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव नारनौल में हुआ था। बचपन में उनका नाम रामकिशन यादव था। उन्होंने केवल 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की और बाद में घर से भाग गए थे। घर से भागने से लेकर ‘बाबा रामदेव’ बनने तक के उनके सफर के बारे में सिवाय उनके और कोई भी यकीन से कुछ नहीं कह सकता। बताया जाता है कि घर से भागने के बाद वे काफी दिनों तक हरिद्वार के आसपास साइकिल में पंक्चर लगाया करते थे। कोेई कहता है कि 1990 के दशक में वे साइकिल पर आंवला, अदरख आदि बेचा करते थे। उसी दौरान उनकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से हुई, जो उन्हें गुरुकुल में ले गया। वहीं उन्होंने योग आदि की शिक्षा ली और एक दिन दुनिया के सामने ‘बाबा रामदेव’ बन कर अवतरित हुए।

जांच के दायरे में संदिग्ध लेन-देन

झारखंड मेगा फूड पार्क में निवेश 26.75 करोड़

विदेशों में प्रत्यक्ष निवेश 2.64 करोड़

2009-11 के बीच सामानों का आयात 20.00 करोड़

अमेरिका की एक कंपनी में निवेश 8.04 करोड़

विदेश से प्राप्त धन 7.06 करोड़

कुल 64.49 करोड़

बाबा पर आरोप

कथित टैक्स चोरी में बाबा रामदेव के कई ट्रस्ट लिप्त।

कई प्रतिबंधित जड़ी-बूटियों का प्रयोग दवा बनाने में।

डोनेशन के तौर पर कालाधन लेना।

सहयोगी बालकृष्ण का पासपोर्ट फर्जी।

बालकृष्ण है नेपाली भगोड़ा।

बालकृष्ण ने किया है अस्त्र-शस्त्र नियमों का उल्लंघन।

फैक्ट्रियों में लेबर लॉ का उल्लंघन।

एड्स व कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को ठीक करने का झूठा दावा।

कारोबारी साम्राज्य

सालाना अनुमानित टर्नओवर 1,100 करोड़

योग कैंप से सालाना 50 करोड़ से अधिक की आमदनी

दवा बिक्री से सालाना 50 करोड़   की आमदनी

पुस्तक व सीडी बिक्री से 2.3 करोड़ सालाना आय

निवेश व अचल संपत्ति

17 करोड़  : विदेश में आइलैंड की कीमत (गिफ्टेड)

1,115 करोड़  :  हरिद्वार में एक हजार एकड़ जमीन की कीमत

500 करोड़  : फूड पार्क, हरिद्वार में निवेश

44 करोड़  : झारखंड के फूड पार्क में 40 प्रतिशत स्टेक

100 करोड़  : पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार

90 करोड़  :  सोलन, हिमाचल प्रदेश में 38 एकड़ जमीन

(कीमत अनुमानित है,  हमवतन से साभार)



Saturday, 30 June 2012

बाबा का योग ना बाबा ना ....


अब मुझे तो नहीं पता  कि ये कौन सा आसन है ?
देश में योग की बहुत चर्चा हो रही है, पर सच मे योग है क्या ? इसे लेकर लोगों में कई तरह के भ्रम हैं। लिहाजा मैं कोशिश करुंगा कि आप को योग के बारे में आसान शब्दों में जानकारी दूं, वैसे मैं जानता हूं कि कुछ लोग मेरे इस लेख को ये कह कर खारिज कर देगें कि कांग्रेसी मानसिकता से लिखा गया लेख है। तीन दिन से देख रहा हूं कि गिने चुने लोग सत्य का गला घोटने के लिए मेरे पिछले लेख पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सच बात की जा रही है तो उसे वो तर्कों के आधार पर नहीं अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं। जो जितना पढा़ लिखा है वो उतना ही स्तर गिरा कर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। हो सकता है कि बाबा प्रेम में आपको मेरी बात बुरी लगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो है, वो आपको जानना ही चाहिए। मसलन योग आखिर है क्या ? आज देश में एक बड़ा वर्ग इसे सिर्फ शारीरिक क्रियाओं से जोड़ कर देखता है। उसे लगता है कि योग से सांस की  बीमारी ठीक होती है, उससे घुटनों के जोड़ ठीक रहते हैं। बाबा रामदेव ने योग को बीमारी की दवा बना कर रख दिया है। आज आप किसी से पूछो योग क्या है, वो अपने पेट अंदर बाहर करने लगता है। उसका  मतलब योग के मायने सिर्फ आसन और प्राणायाम हैं।

हालाकि महर्षि पंतजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने योगसूत्र में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाले साधक को ही सच्चा योगी बताया है। आप भी जान लीजिए ये क्या है। ये योग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में ये सभी चीजें आती हैं। अब मैं एक एक कर आपको ये बताने की कोशिश करुंगा कि इनके मायने क्या हैं। महर्षि के योग को जानने के बाद आप  खुद तय करें  कि  बाबा जो योग टीवी पर करते दिखाई देते हैं, वो कितना सही है। ऐसा नहीं है कि योग  के जो नियम मैं बता रहा हूं, वो कुछ अलग दुनिया की बात है। बल्कि इसके अनुयायी बाबा रामदेव भी हैं, इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम महर्षि पतंजलि रखा है। महर्षि के नाम से कारखाने का नाम तो रख दिया, पर उस पर अमल कितना करते हैं। ये आप  योग के नियम को पढकर खुद तय  करें।

1.यम--.इसके तहत पांच सामाजिक नैतिकताएं आती हैं---
(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना
( बताइये रामदेव ऐसा करते हैं ? )

(ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना
( सच्चाई से तो दूर  दूर तक का वास्ता नहीं है)

(ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना
( इतना बड़ा कारोबार, टैक्स चोरी सब तो सामने आ चुका है)

(घ) ब्रह्मचर्य - इसके दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना, सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।
( बाबा ब्रह्मचर्य का कितना पालन करते हैं, ये विवादित विषय है, इसलिए ये बाबा  ही जानें वैसे इस मामले में कुछ अलग तरह की चर्चा हैं बाबा और  बालकृष्ण दोनों )

(च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।
( अपरिग्रह को आपको ठीक से समझना होगा, क्योंकि बाबा इसका पालन तो बिल्कुल नहीं करते। मतलब अगर आपको दो रोटी की भूख है, तो तीसरी रोटी के बारे में विचार भी मन मस्तिष्क में नहीं आना चाहिए। आवश्यकता से ज्यादा किसी चीज का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए। अब बाबा रामदेव तो इस  पर बिल्कुल खरे नहीं उतरते। बिना संग्रह के  वो  इतना बड़ा अंपायर कैसे खड़ा कर सकते  थे। संग्रह के बिना तो बाबा एक पल  भी नहीं रह सकते। दिल्ली में अनशन के दौरान खुलेआम लोगों से चंदा वसूल किया जा रहा था)

२. नियम: पाच व्यक्तिगत नैतिकताएं

(क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि
( मन में जब फिजूल की बातें भरीं हों, किसे कैसे ठिकाने लगाना है, आंखो में शैतानी दिखाई देती हो, तो भला मन को कैसे शुद्ध कर सकते हैं।)

(ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना
( अपनी ताकत का विस्तार करने, देश दुनिया में संपत्ति बनाने, किसानों  की जमीन कब्जाने में लगा आदमी कैसे संतुष्ट हो सकता है। जब वो संतुष्ट नहीं हो सकता तो प्रसन्न रहने का सवाल ही नहीं उठता।)

(ग) तप - स्वयं से अनुशासित रहना
( बाबा और अनुशासन दोनों एक नदी के दो किनारे हैं, जो कभी मिल ही नहीं सकते।)

(घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना
(मेरा  मानना है कि बाबा आत्मचिंतन तो करते होगे, पर वो उस पर अमल नहीं करते)

(च) ईश्वर-प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
(आर्यसमाज में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार ही नहीं किया गया है)

३. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण

४. प्राणायाम: सांस लेने संबंधी खास तकनीक द्वारा प्राण पर नियंत्रण

५. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना

६. धारणा: एकाग्रचित्त होना

७. ध्यान: निरंतर ध्यान

८. समाधि: आत्मा से जुड़ना। शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था में समाधि का अनुभव।

हाहाहहा, सब कुछ इसी पेट के खातिर 

मुझे लगता है कि महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग को आप सब काफी हद तक समझ गए होंगे। ऐसे में अब मैं अपने ब्लागर्स साथियों पर सब कुछ छोड़ देता हूं, वो अष्टांग योग को जानने के बाद बाबा को कहां रखते हैं, उनकी इच्छा। वैसे मैं आपको बताऊं मेरी एक जाने माने योग गुरु से बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सब कुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। अब देखिए मंच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, स्वदेसी के नाम पर अपने उत्पाद योग शिविर के दौरान बेचना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के समय नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए।
योगीराज महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग निर्विविद है, अभी तक किसी ने भी उनके अष्टांग योग पर सवाल नहीं खड़े किए हैं। खुद बाबा रामदेव भी इस योग के समर्थक हैं,पर अष्टांग योग मे शामिल मंत्रों का आधा भी अगर सार्वजनिक जीवन मे इस्तेमाल करते तो वो योग की असली सेवा कर रहे होते। आज उनकी नजर में योग महज बीमारी का इलाज भर है। लोग भी इतना ही जानते हैं। जबकि अष्टांग योग का  अगर सही मायने मे पालन किया जाए तो कोई भी आदमी हमेशा सदाचारी रहेगा और सदाचारी रहेगा तो प्रसन्नता उसके  चेहरे पर दूर से ही दिखाई देगी।

पर बाबा रामदेव को तो योग के बहाने लोगों  को जमा करके कई तरह  के काम करने होते हैं। पहले तो स्वदेसी के नाम पर अपने चूरन चटनी आचार मुरब्बे बेचने होते हैं। वो बताते हैं कि उनके उत्पाद क्यों खाने चाहिए। आंवला नगरी प्रतापगढ़ का आंवला उतना गुणकारी नहीं है, जितना बाबा रामदेव का आंवला। उत्पादों को बेचने के बाद कुछ  नेताओं को गाली गलौच करना होता है। फिर अपना एजेंडा बताते है कि काला धन आ जाए तो हर आदमी के हाथ में अगले दिन एक एक करोड़ रुपये से ज्यादा हो जाएगा। फिर ताली बजवाने के लिए वो अपने पेट में तरह तरह की हलचल करते हैं। पूरी सीडी लेकर बैठें तो देखता हूं कि दो घंटे से ज्यादा के कार्यक्रम के दौरान योग पर दो मिनट भी समय नहीं देते। अब लोगों को योग के बारे में बताएंगे तो जनता पूछेगी नहीं, कि फिर आप योग क्यों नहीं कराते  आप  ये सब  क्या बेच बाच रहे है।

चलते चलते

वैसे मैं ईश्वरवादी हूं। मुझे ईश्वर में पूरा भरोसा है। मैं मानता हूं कि भगवान ने मेरी जितनी सांसे तय कर दी हैं, उतनी सांसे लेनी ही हैं, ना कम ना ज्यादा। फिर मुझे लगता है कि अगर मैने योग किया तो जल्दी जल्दी सांस लूंगा तो जाहिर है जल्दी जल्दी छोड़ूंगा। इससे मेरी सांसों का स्टाक जल्दी खत्म हो जाएगा। बस इसीलिेए मै सोच रहा हूं आराम आराम से सांस लूं और आराम आराम से छोड़ूं, तो ज्यादा दिन तक सांसे चलेंगी।

( मित्रों अगर आप लेख से सहमत नहीं  हैं, इसकी आलोचना करें, कोई दिक्कत  नहीं है, पर भाषा  की मर्यादा का ध्यान रखें, क्योंकि ये  ब्लाग हमारे आपके परिवार  में पढ़े जाते हैं।  अशिष्ट भाषा होने पर मुझे मजबूरी में उसे यहां पब्लिश होने  से रोकना  पड़ेगा। )


Tuesday, 19 June 2012

योग भूल गए बाबा रामदेव !


 पहले तो आज का सबसे बड़ा सवाल ये कि रामदेव हैं क्या ? सन्यासी हैं, योगगुरु हैं, आयुर्वेदाचार्य हैं, व्यापारी हैं, उद्यमी हैं आखिर क्या हैं रामदेव ? वैसे आमतौर पर लोग इस सवाल का एक ही जवाब देंगे कि वो योगगुरु हैं। पर आजकल रामदेव का काम और उनका आचरण देख कर कहीं से नहीं लगता है कि वो योग गुर हैं या कभी योगगुरु रहे होंगे। उनकी बातचीत और हरकतों से तो यही लगता है कि वो योग की एबीसी भी शायद नहीं जानते। साध्वी चिदर्पिता की मानें तो योग का अर्थ होता है जोड़ना। जब योग को आध्यात्मिक घटना के तौर पर देखा जाता है तो योग का अर्थ है आत्मा का परमात्मा से मिलन। सरल शब्दों में कहा जाये तो, मनुष्य का ईश्वर से मेल। मानव मन को ईश्वर से जुडने के लिए मानसिक, आत्मिक और शारीरिक रूप से निरोगी होना जरूरी है। विकार युक्त मन से यह संभावना खत्म हो जाएगी। ध्यान से पहले के सभी आसन और प्राणायाम आदि उसी विकार मुक्त मन को पाने की कोशिश भर होते हैं। ये सही है कि रामदेव ने योग का बहुत प्रसार किया। इसे मुनियों की कुटी से निकाल कर घर-घर पहुंचा दिया। परंतु रामदेव का योग पेट कम करने, वज़न कम करने, जोड़ो के दर्द से छुटकारा पाने का व्यायाम बनकर ही रह गया। अब या तो रामदेव योग को इतना ही जानते हैं या फिर वो लोगों की रुचि और सुविधा के अनुसार इसे सीमित कर रहे हैं। योग के मामले में महर्षि पतंजलि के जो मूलमंत्र हैं, रामदेव का उससे भी कोई लेना देना नहीं है।
 अब फैसला आप ही करें कि रामदेव योग की कितनी सेवा कर रहे हैं। हां वो आयुर्वेद में भी हाथ आजमा रहे हैं। आपको पता होगा कि आयुर्वेद भारत की सनातन चिकित्सा पद्धति है, जो कि पूरी तरह वैज्ञानिक है। ऋषि-मुनि वन में जीवन बिताते हुए जड़ी-बूटियों, वनस्पतियों के लाभ और उपयोगों की खोज किया करते थे। यह अनुसंधान से कहीं ज्यादा तपस्या और समर्पण पर निर्भर था। वैसे आज के समय में  उसकी जगह बीएएमएस डाक्टर ने ले ली है। सही मायने में इस डिग्री को हासिल करने के बाद ही कोई आयुर्वेदिक चिकित्सक के तौर पर प्रैक्टिस कर सकता है। अब रामदेव तो योगगुरु है, फिर उनके उत्पाद रामदेव के ही नाम पर बेचे जा रहे हैं। रामदेव की इस ईमानदारी का फैसला मैं आप पर छोड़ देता हूं। हालाकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को मैं जानता हूं,वो कुछ भी अनाप शनाप बोलते रहते हैं। लेकिन जब रामदेव को वो ठग बताते हैं, तो मुझे लगता है कि उनकी बात में कुछ तो दम है। बालकृष्ण रामदेव के दोस्त हैं, शिष्य हैं, सहयोगी हैं या बिजिनेस पार्टनर ये तो वही बता सकते हैं। लेकिन सीबीआई को अभी तक वो आयुर्वेद की कोई मान्य डिग्री नहीं दिखा पाए हैं। उन्होंने अपनी शिक्षा की जो कुछ डिग्री पेश की है, जांच पड़ताल में वो फर्जी पाई गई हैं। वैसे डिग्री या उनके अन्य कागजात सही हैं या गलत इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन वारंट जारी होने पर उनके भाग जाने से साफ है कि दाल में कुछ काला जरूर है।
 आइये एक नजर डालते हैं कि रामदेव बनाते क्या क्या हैं। साध्वी चिदर्पिता ने इस पर काफी अध्ययन किया है। उनका मानना है कि रामदेव फार्मेसी के नाम पर हर वह उत्पाद बना रहे हैं जो बाज़ार में पहले से मौजूद है। ऐसे में सवाल ये है कि रामदेव किस सामाजिक उद्देश्य से मोइश्चराइज़र, फेस क्रीम, साबुन और एंटि रिंकल क्रीम बना रहे हैं? यदि उन्हें योग पर भरोसा है तो मुंह पर तरह-तरह की क्रीमें क्यों मलवाते हैं ? आयुर्वेद के नाम पर बने ये कास्मेटिक उत्पाद बिना लाइसेन्स के हैं जो गैरकानूनी है। आपने वीको टर्मरिक का विज्ञापन देखा है? विज्ञापन में विको टर्मरिक, नहीं कोस्मेटिक ऐसा क्यों कहते हैं, कभी सोचा? उसी लाइसेन्स की बाध्यता के कारण जिसके बिना रामदेव करोड़ों का कारोबार धड़ल्ले से चला रहे हैं। पतंजलि उत्पादों पर एमआरपी के जरिए भी चोरी की जा रही है। भारत के टैक्स के नियम साफ कहते हैं कि एमआरपी का मायने ऐसा मूल्य है जिसमें सभी तरह के टैक्स का भुगतान किया जा चुका हैं। अब रामदेव धड़ल्ले से अपने उत्पादों पर एमआरपी लिख रहे हैं और कोई टैक्स नहीं भर रहे। देश में घूम घूम कर ईमानदारी पर लंबी चौड़ी बातें भी कर रहे हैं।  
आइये रामदेव को भी जानने की कोशिश कर ली जाए। हिन्दू धर्म में संत की पहचान उसके संप्रदाय से होती है। यह व्यवस्था कुछ वैसी ही है जैसे समाज में जातियाँ। यहां बहुमान्य संप्रदाय सरस्वती संप्रदाय है जो आदि गुरु शंकरचार्य से प्रारम्भ है। यहां दीक्षित संत सन्यासी कहलाते हैं। यह संप्रदाय सनातन हिन्दू धर्म को मानने वाला है। जानकारी के अभाव में अधिकांश भगवाधारियों को समाज में सन्यासी ही मान लिया जाता है। अब रामदेव की बात की जाए तो ये आर्यसमाजी हैं। यह सनातन धर्म से बिल्कुल अलग धारा है। आर्यसमाज वेद को अपना आधार मानता है और सनातनी पद्धति का विरोध करता है। आर्य समाज की मान्यताओं के अनुसार फलित ज्योतिष, जादू-टोना, जन्मपत्री, श्राद्ध, तर्पण, व्रत, भूत-प्रेत, देवी जागरण, मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्रा मनगढ़ंत हैं, वेद विरुद्ध हैं। आर्यसमाज को समझने के बाद मैं जानना चाहता हूं कि रामदेव ने आर्यसमाज के लिए क्या कार्य किया? वैसे तो पूरे पतंजलि योगपीठ में एक भी मूर्ति नहीं है, फिर भी अधिकांश लोग उन्हें सनातनी ही मानते हैं। किसी सन्यासी को आर्यसमाजी समझा जाए तो वह इसका मुखर होकर विरोध करता है, पर आर्यसमाजी संत रामदेव को लोग सनातनी संत मान रहे हैं और वे खामोश हैं।
इसी से जुड़ा एक सवाल करते हैं रामदेव से। आर्यसमाज तीर्थ यात्रा का विरोध करता है। रामदेव को बताना चाहिए कि हरिद्वार का उनके लिए क्या महत्व है? हरिद्वार, गंगा के कारण विश्व भर में हिन्दू तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। पतंजलि योगपीठ को हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल पर बनाना इसके महत्व को भुनाना ही था। जब आपके पंथ में तीर्थ का कोई महत्व ही नहीं है तो उसके नाम को भुनाना कैसी ईमानदारी है?

Friday, 4 May 2012

लोकतंत्र के गुनाहगार बाबा रामदेव ...


माफ कीजिएगा मैने बाबा रामदेव लिख दिया, चलिए सुधार लेता हूं यानि लोकतंत्र के गुनाहगार रामदेव। मेरे साथ ही आज देश में करोडों लोग ऐसे हैं जिन्हें रामदेव के आगे बाबा लिखने पर आपत्ति है। मुझे तो उनके भगवा वस्त्र पहनने पर भी कड़ी आपत्ति है, लेकिन मैं अपने विचार किसी पर भला कैसे थोप सकता हूं। दरअसल एक समय था जब लोग भगवावस्त्र का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन अब तो ये वस्त्र सुविधा का वस्त्र बनकर रह गया है, संकट आए तो ये वस्त्र त्याग कर महिला का सलवार शूट पहना जा सकता है। वैसे ये सब बातें सबको पता है, इस पर बेवजह समय खराब करना ठीक नहीं।

मुद्दे पर आता हूं। रामदेव ने एक सार्वजनिक सभा में कहा कि देश को 543 रोगी चला रहे हैं। ये हैवान हैं, शैतान हैं, व्यभिचारी हैं, भ्रष्टाचारी हैं। रामदेव से पूछा गया कि आखिर इतनी बड़ी बात आप किस आधार पर कह रहे हैं, तो उनका जवाब है कि सांसदों ने चुनाव लड़ने के दौरान अपने ऊपर लगे आरोपों का खुद ही जिक्र किया है। अब रामदेव को कौन समझाए कि जब चुनाव लड़ने के दौरान ही उम्मीदवारों ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खुलासा कर दिया, फिर भी वो चुनाव जीत गए, इसका मतलब जनता उन्हें ठीक मानती है। अगर जनता ने उन्हें ठीक का प्रमाण पत्र दे दिया तो रामदेव को परेशानी क्यों है ? अच्छा अभी फैसला नहीं हुआ है, सिर्फ आरोपों के आधार पर सांसदों को बेईमान कैसे कहा जा सकता है।

फिर भी चलिए मैं रामदेव की बात मानता हूं। आरोपों के आधार में मैं भी इन सांसदों को गुनाहगार एक शर्त पर कहने को तैयार हूं जब रामदेव खुद को भी भ्रष्ट, निकम्मा, धोखेबाज मान लें। क्योंकि बाबा पर आरोप है कि उन्होंने टैक्स की चोरी की है, सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है, वो भी पांच रुपये का चूरन 50 रुपये में बेचकर जनता को धोखा दे रहे हैं, जनता को योग के नाम पर दिल्ली बुलाते हैं और यहां अनशन करते हैं और बेचारी जनता पर लाठी बरसती है तो लड़कियों के कपड़े पहन कर खिसक लेते हैं। भाई ऐसा रामदेव तो निकम्मा ही कहा जाएगा। वैसे मैं बेवजह यहां किसी महिला के नाम का जिक्र नहीं करना चाहता, क्योंकि अब वो पतंजलि से अलग होकर गंगा किनारे तप कर रही हैं, वरना रामदेव पर आरोप तो वो भी है, जो कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी पर है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि देश में सभी को अधिकार है कि वो अपने ऊपर लगे आरोपों को कानूनी प्रक्रिया के तहत निस्तारित होने दे। हम सब कानून को मानने वाले हैं, अगर कोर्ट ने कहा कि हम गुनाहगार है तो हमारी कुर्सी खुद ही चली जाएगी। आप सब को पता है कि संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप कुछ सांसदों पर लगा तो महज 13 दिन में उन सांसदों को घर का रास्ता दिखा दिया गया। बीजेपी के मुख्यमंत्री येदुरप्पा को कुर्सी छोड़नी पड़ी। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ए राजा जेल में है ना। तो सबको अपना काम करने दीजिए। रही बात कालेधन की ये तो वापस आना ही चाहिए। रामदेव की मांग से मैं या देश  का कोई भी व्यक्ति असहमत नहीं हो सकता, लेकिन उनका तरीका ना सिर्फ गलत बल्कि शर्मनाक भी है। एक भगवाधारी से ऐसी बातों की उम्मीद नहीं की जा सकती।

अच्छा सार्वजनिक मंच से जब रामदेव ने कहा कि मैं जान दे दूंगा, पर अपनी बात वापस नहीं लूंगा और ना ही आंदोलन खत्म करुंगा। इस बात पर तो ताली बजनी चाहिए थी, लेकिन वहां लोगों ने ताली के साथ बहुत तेज का ठहाका लगाया। किसी ने कहा कि अरे भाई इसमें ठहाका लगाने की क्या बात है। तो ठहाका लगाने वालों ने कहा कि जान देने की बात करते हैं रामदेव और जब अवसर आता है तो महिलाओं के कपड़े में खिसक लेते हैं। बेचारी एक महिला को बेवजह अपनी जान गंवानी पड़ी।

दरअसल बुराई की आधा जड तो इलैक्ट्रानिक मीडिया भी है। कई बार होता है कि गुस्से में किसी भी आदमी के मुंह से कुछ भी निकल जाता है। अब ये बातें पूरा देश सुन लेता है। बाद में जिस किसी ने भी गलत शब्द इस्तेमाल किया है, वो संयम में आता है तो महसूस करता है कि ऐसा नहीं कहना चाहिए था। लेकिन अगर वो अपने शब्द वापस लेता है तो इलेक्ट्रानिक मीडिया शोर मचाता है कि रामदेव अपनी बात से पलटे। इससे और किरकिरी होती है, लिहाजा एक बार जो बात मुंह से निकल गई उस पर कायम रहना मजबूरी होती है।

वैसे सबको पता है कि रामदेव कई लड़ाई एक साथ लड़ रहे हैं, एक सरकार के खिलाफ उनकी जंग छिड़ी हुई है, दूसरे टीम अन्ना उनका बाजा बजाती रहती है, फिर खुद की विश्वसनीयत का संकट भी है। ऐसे में कोई भी आदमी आपा खो सकता है। मुझे बार बार लगता है कि रामदेव और टीम अन्ना देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर रहे हैं। अब मुद्दा तो सुन सुन कर जनता बोर हो गई है। लिहाजा अब ये अभद्र भाषा पर उतर आए हैं। जो हालात है मुझे लगता है कि टीम अन्ना अब जल्दी ही अपने नेता यानि अन्ना को ही बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर रही है। अब टीम के सदस्य अन्ना की एक बात नहीं मानते। अन्ना का कम पढा लिखा होना भी उनके रास्ते का रोड़ा है। यही वजह है कि टीम अपने नेता पर भारी पड़ती है। कहा जाता है कि जब मीटिंग में कोई बात अन्ना से छिपानी होती है तो उनके सदस्य अंग्रेजी में बात करने लगते हैं। सच ये है कि रामदेव और अन्ना दोनों का ही कम पढ़े लिखे होने से कुछ लोग पर्दे के पीछे से इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मामले में अब जनता को  ही जागरूक होना पड़ेगा।



Monday, 23 April 2012

ये बात जरा अंदर की है ...


ये कैसी टीम है भाई जो अपने कप्तान की ही ऐसी तैसी करती रहती है। अन्ना ने तो खुद बीते शुक्रवार यानि दो दिन पहले बाबा रामदेव से गुड़गांव में मुलाकात की और मुलाकात के बाद बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस में ऐलान किया कि लोकपाल और कालेधन के मसले पर हम दोनों में कोई मतभेद नहीं है। दोनों लडाई साथ लड़ी जाएगी और हम दोनों कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन को आगे बढाएंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 1 मई से आंदोलन चलाने की भी घोषणा की गई। अब 48 घंटे नहीं बीते और टीम अन्ना ने बैठक कर साफ कर दिया कि बाबा रामदेव के साथ साझा आंदोलन नहीं चलाया जा सकता। हां जब रामदेव को हमारी जरूरत होगी तो हम उनका साथ देंगे, वैसे ही जब हमें उनकी जरूरत होगी तो हम उनकी मदद लेंगे।

अब मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि जब अन्ना की राय कोई मायने ही नहीं रखती तो ये टीम अन्ना कैसे है ? इस टीम का नाम तो वो होना चाहिए जिसकी राय को लोग आदेश मानते हों। या फिर ये मान लिया जाए कि अन्ना इस टीम के सिर्फ मुखौटा भर हैं, चूंकि अन्ना का चेहरा बिकता है, इसलिए टीम के बाकी सदस्य मजबूरी में उनकी अगुवाई को स्वीकार कर रहे हैं। वैसे आपको याद दिलाऊं, जब अन्ना और रामदेव शुक्रवार को मीडिया के सामने आए तो टीम अऩ्ना का कोई सदस्य वहां नहीं था। उसी समय मीडिया को लग गया था कि अन्ना यहां जो कुछ भी कह लें, ये बात मानी नहीं जाएगी। इसीलिए एक पत्रकार साथी ने सवाल भी दागा कि यहां टीम अन्ना का कोई सदस्य क्यों नहीं मौजूद है ? जवाब अन्ना के बजाए बाबा रामदेव ने दिया, बोले अरविंद केजरीवाल को यहां होना चाहिए था, पर वो मंत्रियों का काला चिट्ठा तैयार कर रहे हैं, इसलिए यहां नहीं आए। जबकि सच ये था कि रामदेव के साथ टीम अन्ना कोई संपर्क रखना ही नहीं चाहती। अब इस बात का खुलासा भी हो गया।

अब बडा सवाल ये है कि आखिर टीम अन्ना को बाबा रामदेव से परहेज क्यों है? क्या बाबा रामदेव कुछ ऐसा वैसा कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है? क्या बाबा रामदेव की मांग जायज नहीं है? क्या बाबा रामदेव निष्पक्ष नहीं है? क्या बाबा रामदेव दागी हैं? क्या बाबा रामदेव का मुद्दा राष्ट्रविरोधी है ? मैं व्यक्तिगत रूप से बाबा रामदेव  को कभी भी राष्ट्रविरोधी नहीं कह सकता, लेकिन उनकी ईमानदारी पर मुझे हमेशा से शक रहा है और आज भी है। बाबा रामदेव अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर गरीबों और मजलूमों का शोषण करते हैं। बेचारे गरीब किसानों की जमीन को कब्जा लेते हैं। ऐसी तमाम शिकायतें उत्तराखंड सरकार के अफसरों से की गई हैं, पर वहां बीजेपी सरकार रहने की वजह से मामले की सही तरह ना जांच हुई और ना ही किसानों को न्याय मिला। बाबा रामदेव का बीजेपी से गहरा संबंध है, ये बात किसी से छिपी नहीं है, क्योंकि बाबा रामदेव बीजेपी को चंदे के रूप में मोटी रकम देते रहे हैं। मुझे लगता है कि अब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है और जल्दी ही बाबा का असली चेहरा सामने आ जाएगा, क्योंकि अब कम से कम उनके खिलाफ मिली शिकायतों की जांच तो निष्पक्ष तरीके से हो सकेगी। मुझे लगता है कि टीम अन्ना नहीं चाहती कि बाबा रामदेव के व्यक्तिगत मामलों में वो उनके साथ खड़ी हो। वैसे सबसे बड़ा डर टीम अन्ना को ये भी है कि कहीं बाबा रामदेव उनके आंदोलन को हाईजैक ना कर लें, क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि ना सिर्फ देश में बल्कि दुनिया भर मे बाबा रामदेव के समर्थक हैं। रामदेव के मुकाबले अन्ना का समर्थन बहुत कम है।

एक सवाल और हम सबके दिमाग में उठता रहता है। ये कि आखिर अन्ना रामदेव को साथ क्यों रखना चाहते हैं। दरअसल सच्चाई ये है अन्ना की कोई बात मानीं नहीं जाती। अन्ना इन बिगडैलों से कब का अलग हो चुके होते। क्योंकि टीम अन्ना के सभी अग्रिम पंक्ति के नेताओं का चेहरा दागदार है, ये बात अन्ना भी अच्छी तरह से जानते हैं। पर अन्ना इस समय उत्साह से भरे हुए हैं, उन्हें लगता है कि भूखे रहकर वो देश में दूसरे गांधी का दर्जा हासिल कर लेगें। इसके लिए जरूरी है कि इस टीम को साथ रखा जाए। क्योंकि किसी भी आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संसाधनों यानी पैसे की जरूरत होगी। अन्ना फक्कड़ हैं, पर इस टीम ने उन्हें आगे रखकर देश विदेश से खूब चंदा जमा कर लिया है। सही बात तो ये है कि टीम में मतभेद का एक बड़ा कारण चंदे की ये रकम भी है। हम सब देख रहे हैं कि  आजकल टीम के सदस्यों का पैर जमीन पर है ही नहीं। हर रोज हवाई यात्राएं हो रही हैं। अरे भाई जनता ने आप पर बहुत भरोसा कर आपको चंदा दिया है, कम से कम जरूरी होने पर ही हवाई यात्रा करें। देश भर में ट्रेन की अच्छी सुविधा है, कभी कभी ट्रेन का सफर भी कर लीजिए। लेकिन नहीं, दिखाने को कुछ सदस्य महीनों एक ही पैंट शर्ट और हवाई चप्पल पहने दिखाई देंगे, पर इनका असली चेहरा बहुत ही बदबूदार है।
सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि अन्ना अपनी टीम से उकता गए हैं। इसीलिए कई बार वो टीम का विस्तार करने की बात करते है। फिर ऐसी कौन सी वजह है कि आज तक टीम का विस्तार नहीं किया जा सका। दरअसल जो चार पांच लोग अग्रिम पंक्ति में शामिल हैं, वो अपना वर्चस्व कम नहीं होने देना चाहते। फिर आंदोलन के नाम पर जमा हो रहे करोडों की रकम पर अपना ही अधिकार बनाए रखना चाहते हैं। टीम में नए सदस्यों को शामिल करने में इन्हें ऐतराज नहीं है, पर वो उन्हें दूरदराज के इलाकों में जनजागरण करने से ज्यादा कोई जिम्मेदारी नहीं देना चाहते। जबकि खुद अन्ना चाहते हैं कि इस आंदोलन में सेना के रिटायर अफसरों और देश के ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल कर उन्हें टीम अन्ना में समान दर्जा और अधिकार दिया जाना चाहिए। यही सब कुछ ऐसी वजहें हैं, जिससे अन्ना कई बार परेशान रहते हैं। जानकारों का कहना है कि अन्ना इसीलिए बाबा रामदेव को साथ रखना चाहते हैं कि अगर उनकी टीम ने अपने में सुधार नहीं किया तो वो यहां से पूरी तरह अलग होकर बाबा रामदेव के साथ जनलोकपाल बिल और कालेधन के आंदोलन की अगुवाई करेंगे। 

एक महत्वपूर्ण करेक्टर है सुरेश पढारे। अगर मैं ये कहूं कि सुरेश सबसे ज्यादा ताकतवर है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पहले आप जान लें कि ये सुरेश है कौन? दरअसल सुरेश कहने को तो अन्ना का पीए है। वैसे पहले ये अन्ना के गांव रालेगनसिद्धी में ही ठेकेदारी करता था। बेईमानी के आरोप में गांव पंचायत की खुली बैठक जिसमें खुद अन्ना मौजूद थे। कहा गया है कि ये ईमानदार नहीं है। गंभीर आरोपों के चलते इसका ठेका रद्द कर दिया गया और तय हुआ कि ये अब कोई काम नहीं करेगा। इससे गांव का काम तो छीन लिया गया, लेकिन अगले ही दिन अन्ना इसकी गाड़ी पर सवार होकर जहां कहीं भी आना जाना हो सफर करने लगे। गांव के कुछ वरिष्ठ लोगों ने इस पर ऐतराज भी किया, पर अन्ना ने इसका साथ नहीं छोड़ा। बताया जाता है कि टीम अन्ना को पता है कि सुरेश पढारे की बात अन्ना नहीं टालते हैं, लिहाजा वो भी सुरेश को हर तरीके से खुश रखने की कोशिश करते रहते हैं। कई बार जब अन्ना नाराज होते हैं कि तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी सुरेश को ही सौंपी जाती है और पढारे अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाते हैं। अगर मैं ये कहूं कि अन्ना के इस टीम के साथ अभी तक बने रहने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सुरेश की है, तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।

वैसे सच तो ये है कि टीम अन्ना ने जिस तरह से अन्ना हजारे का अपमान किया है, इसे लेकर वो बेहद तकलीफ में हैं। अन्ना को लगने लगा है कि टीम में उनकी कोई अहमियत नहीं रह गई है. बल्कि टीम महज उनके नाम का इस्तेमाल भर कर रही है। बताते हैं कि मुंबई में अन्ना का जो आंदोलन फ्लाप हुआ, टीम इसके लिए अन्ना को जिम्मेदार मानती है। बात खुलकर कहने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, पर कहा जा रहा है कि टीम को लगता था कि अन्ना महाराष्ट्र के रहने वाले हैं और यहां उनके नाम पर लाखों लोग जमा होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ और अनशन को बीच में ही खत्म करना पड़ गया। दिल्ली में ज्यादा भीड़ होती है तो अन्ना को समझाया जाता है कि ये भीड़ हम दिल्ली वालों की वजहसे होती है। अब इन्हें कौन समझाए कि दिल्ली की भीड़ बंदर का नाच देखने जमा होती है। यहां फ्री का भोजन और ठेले के चाट, आइसक्रीम खाने के लिए होती है। हां हजार पांच सौ पूर्णकालिक कार्यकर्ता है, वो जरूर अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने और टीम की नजर में अव्वल आने के लिए जरूर चिंघाडे मारते दिखाई देते हैं। बहरहाल अन्ना और रामदेव का मसला आसानी से शांत होने वाला नहीं है। टीम के बीच में अन्ना भले खामोश रह गए हों,लेकिन उन्हें ये पता ही है कि टीम समय समय पर उनके कम पढ़े लिखे होने की वजह से अपमानित करती है। अन्ना को लगता है कि अगर वो कोई बात सार्वजनिक मंच से कहते हैं तो उसे तुरंत नहीं बदला जाना चाहिए, क्योंकि इससे जनता में खराब संदेश जाता है। मगर टीम को लगता है कि अगर तुरंत उनकी बात का खंडन ना किया जाता तो उन्हें नुकसान होता।

आप पूछ सकते हैं कि अगर ये आंदोलन एक साथ किया जाएगा तो नुकसान क्या होगा। मैं बताता हूं सबसे बडा नुकसान पैसे का होगा। क्योंकि दुनिया को लगने लगेगा कि अब ये आंदोलन एक ही है और सभी लोग एक ही जगह चंदा देंगे। जाहिर है बाबा रामदेव के ट्रस्ट का नाम दुनिया में जाना पहचाना है, तो उनके खाते में ज्यादा रकम आएगी और टीम अन्ना के खाते में पैसा की कमी हो सकती है। और जब पूरा मसला पैसे का हो तो भला कौन अपने पैरो पर कुल्हाणी मारने को तैयार होगा। लिहाजा टीम को लगा कि ये बात पहले ही साफ कर दी जानी चाहिए कि हमारा आंदोलन और खाता अलग अलग है।

ये खाने के और ये हैं दिखाने के दांत
टीम अन्ना ने अपने एक संस्थापक सदस्य मुफ्ती शमीम काजमी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। आरोप लगाया गया है कि मुफ्ती साहब मीटिंग की बातों को मोबाइल पर रिकार्ड करते थे और फिर उसे लीक करते थे। मेरा टीम अन्ना से सवाल है कि जब आपकी बात केंद्र सरकार से चल रही थी, वहां आपकी मुख्य मांगो में ये भी शामिल था की सरकार के साथ होने वाली मीटिंग की वीडियोग्राफी कराई जाए और ऐसा इंतजाम हो कि देश की जनता उसे देख सके। टीम अन्ना अगर इस सरकार के साथ होने वाली बैठकों की रिकार्डिंग की मांग कर सकती है तो उनकी अपनी मीटिंग में ऐसा कौन सा राज है जो वो जनता के सामने आने नहीं देना चाहते। यहां बात तो जनलोकपाल बिल के लिए आंदोलन कैसे चलाया जाए, इसी पर होती है ना। इसमे छिपाने जैसी क्या बात है ?  






Sunday, 8 April 2012

जी हां ! आज है मेरा जन्मदिन ...


जी हां ! आज मेरा जन्मदिन है। सोचा तो था कि धूमधाम से जन्मदिन मनाऊंगा, खूब हंगामा बरपाऊंगा, कोशिश करुंगा कि पूरा परिवार मेरी इस खुशी में शिरकत करे, क्योंकि ये जन्मदिन कुछ खास है। लगता है कि आप सब घबरा गए कि एक और खर्च बढ गया, गिफ्ट लेने जाएं। फिर कोरियर करें, इतनी जहमत मत उठाइये । चलिए मैं पहले ही आपको बता दूं कि जन्मदिन मेरा नहीं, बल्कि मेरे ब्लाग " आधा सच " का है। ठीक साल भर पहले आज के ही दिन आठ अप्रैल को मैने अपना पहला लेख लिखा, जिसमें मैने अन्ना को जनता की असल दिक्कत बताने की कोशिश की। यानि देश की जनता के असल मुद्दे हैं क्या ? सच बताऊं देश की जनता भ्रष्टाचार से बिल्कुल नाराज नहीं है। उसकी  तो मांग भी अन्ना से बिल्कुल अलग है, जनता चाहती है कि देश में भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू किया जाए। इससे कम से कम काम हो जाने की तो गारंटी रहेगी।

देश में लोगों ने कभी भ्रष्टाचार का विरोध किया ही नहीं, ना आज करना चाहते है। उनकी मुश्किल ये है कि भ्रष्टाचार में ईमानदारी नहीं रह गई है। नेताऔ इसर अफसर पैसे ले लेते हैं और काम भी नहीं करते हैं। अन्ना के सामने जितनी भीड़ खड़ी होकर बोलती है कि मैं भी अन्ना तू भी अन्ना, इसमें 99 फीसदी वही लोग हैं जो चाहते हैं कि नेता और अफसर पैसे लें और काम तुरंत काम कर दें, बेवजह की किच किच ना करें। बहरहाल ब्लाग में मेरी शुरुआत इसी दर्शन के साथ हुई थी। मेरा भी मानना है कि देश भ्रष्टाचार कभी खत्म नहीं हो सकता। हमें आंदोलन का रुख इस ओर मोडना चाहिए कि भ्रष्टाचार में ईमानदारी हो।

मुझे भी जाने क्या हो गया है, जन्मदिन पर भी ऐसी वैसी बातें याद आ रही हैं। लेकिन करें क्या गंदा है, पर धंधा है ना। छोड़िए दूसरी बातें, आइये मुद्दे की बात करें। वैसे आपने ये नहीं  पूछा कि जब जन्मदिन पर  हमने धमाल मचाने का मन बना लिया था, फिर क्या हुआ कि पूरे दिन खामोश रहे और रात में लोगों को बता रहे हैं कि आज मेरा जन्मदिन है। सच बताऊं ब्लाग परिवार से मन बहुत खट्टा है। तकलीफ ये है कि जिन लोगों का काम ब्लाग परिवार के नाम पर धब्बा जैसा है, वो सभी परिवार के बहुत सीनियर हैं। मैं उनके बारे में कुछ कह नहीं सकता। हम लोग जब बहुत गुस्से में होते हैं तो कहते हैं ना कि आप लक्ष्मण रेखा पार मत कीजिए। मतलब ये कि जब धैर्य जवाब दे जाए तो भी हम दूसरों को लक्ष्मण रेखा की याद दिलाते हैं। पर सच कहूं आज कुछ लोगों ने ना सिर्फ लक्ष्मण रेखा पार कर चुके हैं, बल्कि वो इससे इतनी दूर आ चुके हैं कि चाहें तो चेहरे पर लगे दाग मिटा नहीं सकते।

हां आज कल परिवार में लोग जिस तरह से एक दूसरे से बातें कर रहे हैं, वो देखकर हैरानी होती है। पता नहीं आप सब को इसका आभास है या नहीं लेकिन सच तो यही है कि हिंदी ब्लागर्स को आज भी लोग डाउन मार्केट टाइप समझते हैं। अब लगता है कि अगर लोग हमें अच्छी निगाह से नहीं देखते तो इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। पिछले दिनों एक रचना ब्लाग पर आई, लोग आज तक नहीं समझ पाए कि आखिर ये रचना क्यों लिखी गई और इसके जरिए ब्लागर्स को क्या संदेश देने की कोशिश की गई है। अच्छा उस रचना पर कमेंट रचना के गुण दोष के आधार पर नहीं दिए गए, बल्कि जिसने लिखा है, उनके मित्र उस रचना के साथ खड़े हो गए, जो  उन्हें नहीं पसंद करते हैं, वो रचना के खिलाफ हो गए। हम जैसे लोग की भूमिका शून्य हो गई, क्योंकि हम रचना के साथ तो बिल्कुल नहीं खड़े थे, लेकिन रचनाकारा का मैं सम्मान करता हूं। लिहाजा मेरे लिए मुश्किल था कुछ भी कहना। मै मानता हूं कि मुझे अपनी राय सबके साथ शामिल करनी चाहिए थी,  पर मैं इतना ईमानदार नहीं हूं।

अच्छा इस रचना ने एक नया मोड़ तब ले लिया जब रचना के एक प्रबल विरोधी के खिलाफ कुछ खास लोगों ने मोर्चा खोल दिया। एक साझा ब्लाग का जिक्र मैं नहीं करना चाहता, पर इस ब्लाग का चरित्र आज तक मेरी समझ में नहीं आया। ब्लाग का इस्तेमाल अपनी थोथी राय सबको मानने के लिए मजबूर करने जैसे लगती है। हद तो तब हो गई, जब एक लेख और उसमें प्रकाशित चित्र से नाराज होने पर मां बहन की गाली पर उतर आए। दस दिन से जो कुछ देख रहा हूं, सच कहूं तो मन इतना दुखी है कि लोगों को ये बताना भी अच्छा नहीं लग रहा कि आज मेरे ब्लाग को पूरे साल भर हो गए। वैसे सच तो यही है कि हिंदी ब्लागिंग में जो कुछ चल रहा है, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर हम सब गर्व कर सकें।

वैसे हां अगर मैं व्यक्तिगत रूप से अपने साल भर के इस सफर का मूल्यांकन करता हूं तो खुद को लकी मानता हूं। खासतौर पर कुछ ऐसे लोग यहां पर मेरे दोस्त के रुप में रहे जो किसी ना किसी खास विचारधारा से जुड़े हुए थे। ऐसे लोगों से आपकी जितनी जल्दी दूरी हो जाए वो ठीक है, क्योंकि ऐसे लोग ब्लागिंग नहीं करते, बल्कि स्वदेशी के नाम पर यहां तेल साबुन बेचने वालों की तरफदारी करते हैं।

मित्रों मेरा मानना है कि ब्लाग पर गृहणियों का एक बड़ा तपका सक्रिय है। ये या तो अपनी कविताओं की जरिए अपनी सोच दुनिया के सामने रखती हैं या फिर टीवी और न्यूज चैनल के जरिए मिलने वाली खबरों से देश की राजनीतिक हालातों के बारे में अपनी राय बनाती हैं। पुरुष तपका खुद को इतना विद्वान समझता है कि उसे किसी पर यकीन नहीं है। वो अपनी जानकारी को अंतिम समझता है, उसका मानना है कि जो उसकी जानकारी है, उसके बाद दुनिया का अंत हो जाता है, वही अंतिम सत्य है। खैर ऐसे लोगो का कोई इलाजा नहीं है और इलाज करने की कोशिश भी  बेकार है। ऐसे लोग धक्के खाने के बाद ही सभलते हैं। हां अक्सर बहुत सारे मित्र मुझसे जानना चाहते हैं कि आप आखिर हैं किसके साथ। मेरा सीधा सा जवाब है कि मैं अपने मन के साथ हूं, जो मुझे सही लगता है, उसे सही मानता हूं, जो मुझे ठीक नहीं लगता, उसे गलत ठहराने से पीछे नहीं हटता। यही वजह है कि मेरे ब्लाग पर आपको अन्ना, रामदेव, राहुल गांधी, सुषमा स्वराज, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव,  मायावती यहां तक की कोई भी गलत काम करता है तो वो मेरे निशाने पर होता है।

अच्छा जब ब्लाग  परिवार में इतने मतभेद हों तो आप ही बताइये क्या अच्छा लगेगा कि मैं अपने ब्लाग का जन्मदिन मनाऊं। बिल्कुल नहीं, यही वजह है कि आज पूरे दिन मैं खामोश रहा, घर की और ब्लाग की बत्ती बंद किए अंधेरे में सोचता रहा कि आखिर सुबह कब होगी ? वैसे मेरा मन कहता है कि ब्लाग परिवार की सुबह तो होगी, पर कब ये मैं नहीं कह सकता। इस परिवार में सबसे बड़ी खामी यही है कि अगर कोई गल्ती करता है तो वो मानने को तैयार नहीं है कि उससे गल्ती हो गई। आइंदा ध्यान रखेगा, वो उस गलती को सही साबित करने के लिए इतना नीचे गिर जाता है, जहां से वो  दोबारा उठने की कोशिश भी करे तो लोग उसे उठने नहीं देंगे।

बहरहाल मैं जानता हूं कि साल भर के ब्लागर्स की यहां कोई हैसियत नहीं है। फिर भी अच्छा बुरा तो वो समझता ही है ना। प्लीज रचना ऐसी ब्लाग पर होनी चाहिए कि हर आदमी को सुकून दे। ओह ! कितनी बातें करूं, हम तो भाषा की मर्यादा भी भूल गए हैं। हम सबसे घटिया भाषा के बारे में कहते हैं कि गंवारो की भाषा यानि गांव का सबसे घटिया आदमी, उसकी भाषा। लेकिन आज ब्लाग पर जो भाषा दिखाई दे रही है, वो गवारों से भी सौ गुनी घटिया है। हम जानवरों से बदतर होते जा रहे हैं। भला बताइये इस माहौल मे क्या जन्मदिन की पार्टी की जा सकती है। बिल्कुल नहीं। मैं तो पार्टी नहीं कर सकता। अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगले साल देखूंगा। बहरहाल कुछ अपने ही लोगों ने मेरे जन्मदिन की पहली ही सालगिरह की बाट लगा दी।

इनसे भी मिल लीजिए... 


इनका नाम है ममता गुप्ता। फेसबुक पर हैं, पर मेरे फ्रैंडलिस्ट में नहीं है। इनके परिचय में लिखा है कि ये लखनऊ विश्व विद्यालय में हैं। वहां की कर्मचारी हैं या छात्रा कहना मुश्किल है। वैसे पहनावे से तो लगता है कि पढती होंगी। लेकिन इससे आप सबको सावधान रहना चाहिए। मुझे तो पता भी  नहीं चलता अगर मेरे किसी अभिन्न मित्र में ने मुझे बताया ना होता। ये लोगों के ब्लाग से लेख चुराती है और अपने वाल पर डाल देती है। जिस किसी के ब्लाग से लेती है, उसका जिक्र तक नहीं करती। मुझे जब बताया गया कि इसने ब्लाग से लेख की चोरी की है तो मैने इन्हें एक मैसेज भेजा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन इस पर कोई असर नहीं हुआ। बाद में पता चला कि ये इसकी फितरत है।
चूंकि मैं लखनऊ से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूं और ये उसी शहर से हैं। मैने सोचा कि पता करुं इसके बारे में। इसके वाल पर ही कई दोस्तों को मैने मैसेज भेजा कि आपकी सहेली दूसरों के लेख चुराकर अपने वाल पर डालती है, फिर इसके दोस्तों का जवाब आया, सर, हम सब जानते हैं इसे, हम लोग तो बस फ्रैंडलिस्ट में है, इसके रिक्वेस्ट पर कमेंट करते रहते हैं। हम सबको पता है कि लिखना पढना तो इसके बस की बात ही नहीं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं इसकी तस्वीर के साथ इसके लिए ऐसा क्यों लिख रहा हूं, तो आप इस लिंक पर जाएं जहां इसने मेरे लेख को अपने नाम पर छाप रखा है। मेरा लेख.. http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/04/blog-post.html#comment-form  आप इस ब्लाग पर देख सकते हैं। जिसे मैने दो अप्रैल को पोस्ट किया है। इसने इसे ही अपने फेसबुक पर डाल दिया है। इस लिंक पर..
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=113132385485306&set=at.106173829514495.7964.100003656353018.100002843162047.100003602945962&type=1&ref=nf हां चोरी भी करती है और मानती भी नहीं कि इससे कोई गल्ती हुई है। चूंकि मेरे ब्लाग का सालगिरह है इसलिए मैं अपनी ओर से इसे यहीं क्षमा कर देता हूं।

बाबा रामदेव ना बाबा ना ना....

ये तस्वीर बाबा रामदेव की है या नहीं, मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकता। फेसबुक से मैने ये तस्वीर ली है। यहां तमाम लोग कुछ तिकडम के जरिए तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करते हैं। अगर इसमें छेड़छाड़ की गई है तब तो मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन तस्वीर सही है तो ये बाबा का असली रूप देखकर मैं क्या दुनिया हैरान हो जाएगी।
इस चित्र को देखने से साफ है कि बाबा अपने किसी मित्र के साथ चार्टड प्लेन में हैं। बाबा के हाथ में एक गिलास है, जिसमें देखने से तो लग रहा है कि ये व्हिस्की है, वैसे तो आजकल कई तरह के जूस भी मार्केट में है। इसलिए मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि बाबा के हाथ में क्या है। लेकिन ये तस्वीर जिसने भी फेसबुक डाली है, उसका मकसद तो यही साबित करने का है कि हम बाबा को जो समझते हैं, वो हमारी भूल है। दरअसल बाबा ऐसे हैं नहीं। सच क्या है, क्या बाबा ड्रिंक्स करते हैं या इस तस्वीर की हकीकत क्या है, ये सब हम बाबा पर ही छोड़ देते हैं।


Monday, 26 March 2012

शर्म : गांधी के मंच से गाली ...


टीम अन्ना की बौखलाहट अब उनके चेहरे और जुबान पर दिखाई देने लगी है। अशिष्ट व्यवहार और अभद्र भाषा आम बात हो गई है। गांधी के मंच से गाली दी जा रही है, हाथ में तिरंगा लेकर जानवरों जैसा आचरण किया जा रहा है। मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है। अन्ना कहते हैं कि अपमान सहने की क्षमता होनी चाहिए, जिसमें अपमान सहने की क्षमता नहीं है, वो जीवन में कभी कामयाब  नहीं हो सकता। उनका कहना है कि फलदार पेड़ पर ही लोग पत्थर मारते हैं, जिसमें फल नहीं, उस पर भला कौन पत्थर मारेगा। वो ये भी कहते हैं कि जिंदा लोग ही झुकना जानते हैं, जो अकड़ा रहता है वो मुर्दा है।  अन्ना की ये सीधी साधी बातें उनके लोगों की समझ में क्यों नहीं आती हैं ?

जब अन्ना की मौजूदगी में मंच से गाली की भाषा इस्तेमाल होती है, ऊंची ऊंची छोड़ने वाले बेचारे अन्ना की आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि वो सब सुनकर भी खामोश रहते हैं और अपनी टीम को रोकते नहीं है, तब मेरे मन में एक सवाल पैदा होता है क्या अन्ना के भी खाने और दिखाने के दांत अलग अलग हैं। अगर ऐसा है तो क्या इस मंच पर गांधी की तस्वीर होनी चाहिए। हाथ में तिरंगा लेकर अभद्र भाषा के इस्तेमाल की छूट टीम अन्ना को दी जानी चाहिए। मेरा जवाब तो यही होगा कि बिल्कुल नहीं।

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि टीम अन्ना अब बौखलाहट में है। टीम के सदस्य किसके लिए कब क्या कह देगें कोई भरोसा नहीं। अब देखिए ना दिल्ली में आज जंतर मंतर पर ये कह कर भीड़ जुटाई गई कि ईमानदारी की लड़ाई लड़ते हुए जो अफसर और कर्मचारी शहीद हो गए, उनकी बात की जाएगी। पर ये तैयारी से यहां आए थे राजनीति करने के लिेए। क्योंकि शहीदों से ज्यादा राजनीतिक बातें हुईं।  ये सोचते हैं कि इशारों इशारों में कही गई बातों को आम आदमी समझता नहीं है। भाई सब जानते हैं कि इस आंदोलन के पीछे  टीम अन्ना का एक छिपा हुआ खतरनाक एजेंडा है। एक शेर याद आ रहा है..

अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।

अब इन्हें कौन समझाए कि जब आप ईमानदारी की बात करतें हैं तो लोगो को उम्मीद रहती है कि आप भी ईमानदार होंगे। ईमानदारी का मतलब सिर्फ  ये नहीं है कि आप चोरी नहीं करते। ईमानदारी का मतलब ये भी है कि जो काम आप कर रहे हैं, उसके प्रति सच मे ईमानदार हैं या नहीं। क्योंकि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की लड़ाई लड़ी गई तो उसमें कभी कामयाबी नहीं मिल सकती। सच तो ये है कि जिस तरह टीम अन्ना व्यवहार कर रही है, उससे बिल्कुल साफ हो गया है कि अब ये लड़ाई सियासी हो गई है। हां यहां एक बात का जिक्र और करना जरूरी है, अखबारों और टीवी रिपोर्ट के हवाले से कई मंत्रियों को टीम अन्ना ने कटघरे में खड़ा किया, बार बार सफाई देते रहे कि ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। खुद उस रिपोर्ट से कन्नी काटते रहे, फिर कह रहे हैं कि अगर अगस्त तक सभी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई तो जेल भर देंगे। अरे दोस्त पहले इतना नैतिक साहस दिखाओ कि सार्वजनिक मंच से जो बात कह रहे हो, उसे ये बताओ कि हां मैं कह रहा हूं।

हां टीम अन्ना के सदस्यों में आपस में एक प्रतियोगिता शुरू हो गई है, टीवी पर ज्यादा से ज्यादा समय तक छाए रहने की। आपको पता होगा कि टीवी में पाजिटिव बातों के लिए समय ज्यादा नहीं है, अगर आपको यहां जगह बनानी है तो निगेटिव बातें यानि छिछोरी हरकतें करनी होगीं। अब निगेटिव बातें तो टीम अन्ना के सभी सदस्य करते हैं, उसमें अपना स्तर गिराना होता है, और बंदा बाजी मार ले जाता है तो सबसे नीचे गिरता है। अब देखिए ना पहले एक महिला ने डुपट्टे से घूंघट ओढ़ कर फूहड़ नाटक कर सांसदों की मिमिकरी की। ये पूरे दिन क्या कई दिन तक टीवी पर छाई रही। दूसरे साथी ने देखा कि ये महिला तो टीवी पर छाई हुई है, उसने संसद की ही ऐसी तैसी कर दी, कहा यहां तो गुंडे बदमाश और बलात्कारी बैठे हैं। जाहिर है बवाल होना था, हुआ भी। संसद से विशेषाधिकार हनन का नोटिस मिला। ये साबित करना चाहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूं तो नेता उनके पीछे पड़ गए हैं। इन्हें नोटिस मिलने पर शर्म नहीं आ रही है, इससे वाहवाही बता रहे हैं।

जब टीम अन्ना के सदस्य देख रहे हैं कि उन्हें टीवी पर जगह पाजीटिव बातें करने से नहीं मिल रही हैं तो एक के बाद एक सभी ने छिछोरी हरकतें चालू कर दीं। इसी क्रम में आज एक नेता सदस्य ने एक वरिष्ठ सांसद जिनके ऊपर किसी तरह की बेईमानी के चार्ज नहीं है, वो जेपी आंदोलन में लंबे समय तक जेल में भी रहे। उन्हें इनडायरेक्ट रूप से चोर कहा। वैसे सच ये है कि ऐसे लोगों की चर्चा कर इन्हें बेवजह भाव देने की जरूरत नहीं है। मैं पहले भी कहता रहा हूं कि बेईमानी के पैसे से ईमानदारी की बात करना बेशर्मी से ज्यादा कुछ नहीं है।
हा एक हास्यास्पद बात और है टीम अन्ना का एक आदमी उसे हिसाब किताब  रखने का बहुत शौक है, आए दिन राजनीतिक दलों से हिसाब मांगता रहता है। चलो एक बात मैं भी कह दूं। भाई मुझे बताओ ये फोर्ड फाऊंडेशन क्या है। इसमें किसके चाचा बैठे हैं जो इस आंदोलन में फंडिग कर रहे हैं। इस आंदोलन को चलाने में फोर्ड फाउंडेशन का आखिर क्या इंट्रेस्ट है। इन सवालों का जवाब भी आना चाहिए। अन्ना गारंटी ले सकते हैं कि उनके आंदोलन में सब नंबर एक का पैसा लग रहा है, किसी गलत आदमी का चंदा उनके पास नहीं है।
चोर चोर मौसेरे भाई ...
ये तस्वीर हमें तो हैरान करती है। दोनों गले भले मिल  रहे  हों, पर दिल नहीं मिलता। साथ में बैठकर तस्वीर खिंचवा ली, ये इनकी मजबूरी है। दरअसल रामलीला मैदान में पिटाई के बाद बाबा रामदेव काफी समय तक सदमें में रहे। अपना हिसाब किताब दुरुस्त करते रहे। अब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार भी आ गई है, तो वैसे ही बाबा  की मुश्किल बढ़ गई है। अभी तक तो वहां बीजेपी की सरकार थी, जो उन्हें संरक्षण देती रही। रामदेव भी बीजेपी की सेवा करते रहे। कहा तो यहां तक जाता है कि वो पार्टी को चंदा भी देते रहे हैं। भला एक बाबा किसी राजनीतिक दल को चंदा क्यों देगा,  लेकिन रामदेव देते रहे हैं।

बाबा रामदेव स्वदेशी के नाम जिस तरह से साबुन तेल बेच रहे हैं, उसे कितना भी साफ सुथरा करने की कोशिश करें नहीं कर सकते। कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जिसमें बाबा रामदेव ने टैक्स की चोरी की है। तमाम चीजों को छिपाया है। अब बाबा जब अपने धंधे को सौ फीसदी प्रमाणिक बताते हैं तो हंसी आती है। दुनिया में कोई ऐसा धंधा नहीं है, जहां गोरखधंधा ना हो। बस यहां तभी आदमी चोर कहा जाता है जब वो पकड़ा जाता है। बाबा कई बार पकड़े जा चुके हैं, अब बाबा को प्रमाणिकता की बात नहीं करनी चाहिए, हंसी आती है, और याद आते हैं पुलिस के थाने जहां घाघ टाइप के चोर पिटते रहते हैं, पर सच कबूलते नहीं,क्योंकि इनकी क्षमता बहुत होती है।

अन्ना मंदिर में रहते हैं, मित्रों मेरी गुजारिश है कि अन्ना का मंदिर आप भी देख आओ। पांच सितारा सुविधाओं वाला ये मंदिर है। खैर छोड़िये इन बातों को। मैं जानना चाहता हूं कि आखिर अन्ना को रामदेव की जरूरत क्यों पड़ी ? तो सुन लीजिए अब दिल्ली में जब से अप्पूघर हटा है, यहां लोगों के लिए मनोरंजन का कोई साधन नहीं रहा, जहां लोग जाकर चाय पकोड़े कर सकें। ऐसे में अन्ना का अनशन होता है तो लोग चाय पकोड़े के लिए निकल पड़ते हैं। एक दिन का अनशन था, इसलिए यहां अन्ना ने खाने पीने का इंतजाम नहीं किया था, इसलिए और दिनों की अपेक्षा भीड़ कम थी।    रामलीला मैदान में देशी घी में हलुवा पूड़ी थी, लोगो बड़ी संख्या में जुटते थे, और ये घर पहुंच कर आंदोलन की कम हलुवा पूडी की चर्चा ज्यादा करते थे।

एक अनशन करने टीम अन्ना मुंबई पहुंच गई। उन्हें लगा कि नए साल का मौका है, दिल्ली में ठंड बहुत है, मुंबई का मौसम भी मस्त है, नए साल को इन्ज्वाय करने देश भर से लोग मुंबई जुटेंगे। दिल्ली की ठंड में जान देने से क्या फायदा, मुंबई चला जाए। बस यही चूक हो गई और टीम अन्ना की पोल खुल गई। तीन दिन का अनशन एक दिन में समेट दिया। यहां लोग आए ही नहीं। अरे भाई मुंबई में घूमने की तमाम जगह है, छुट्टी  में लोग कोंकड़ रेलवे का सफर करना बेहतर समझते हैं, वहां दिल्ली की तरह लोग खाली नहीं है।
तब टीम अन्ना को लगा कि अगर इस आंदोलन को जिंदा रखना है और फोर्ड फाउंडेशन समेत देश भर से चंदा लेकर मलाई काटना है तो भीड़ का पुख्ता इंतजाम करना ही होगा। बस फिर क्या था, दिल ना मिलते हुए भी बाबा रामदेव की शरण में जा गिरे। इन्हें पता है कि देश भर में हारी बीमारी है और बाबा इसमें लोकप्रिय हैं। ऐसे में और कुछ हो ना हो, दस पांच हजार लोग तो जुट ही जाएंगे। इसी भीड़ को अपने पास बनाए रखने के लिए ये दोनों चेहरे साथ हैं। चलो भाई देश में तमाम लोगों की दुकानदारी चल रही है, इनकी भी चले, क्या करना है।