Monday 26 March 2012

शर्म : गांधी के मंच से गाली ...


टीम अन्ना की बौखलाहट अब उनके चेहरे और जुबान पर दिखाई देने लगी है। अशिष्ट व्यवहार और अभद्र भाषा आम बात हो गई है। गांधी के मंच से गाली दी जा रही है, हाथ में तिरंगा लेकर जानवरों जैसा आचरण किया जा रहा है। मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है। अन्ना कहते हैं कि अपमान सहने की क्षमता होनी चाहिए, जिसमें अपमान सहने की क्षमता नहीं है, वो जीवन में कभी कामयाब  नहीं हो सकता। उनका कहना है कि फलदार पेड़ पर ही लोग पत्थर मारते हैं, जिसमें फल नहीं, उस पर भला कौन पत्थर मारेगा। वो ये भी कहते हैं कि जिंदा लोग ही झुकना जानते हैं, जो अकड़ा रहता है वो मुर्दा है।  अन्ना की ये सीधी साधी बातें उनके लोगों की समझ में क्यों नहीं आती हैं ?

जब अन्ना की मौजूदगी में मंच से गाली की भाषा इस्तेमाल होती है, ऊंची ऊंची छोड़ने वाले बेचारे अन्ना की आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि वो सब सुनकर भी खामोश रहते हैं और अपनी टीम को रोकते नहीं है, तब मेरे मन में एक सवाल पैदा होता है क्या अन्ना के भी खाने और दिखाने के दांत अलग अलग हैं। अगर ऐसा है तो क्या इस मंच पर गांधी की तस्वीर होनी चाहिए। हाथ में तिरंगा लेकर अभद्र भाषा के इस्तेमाल की छूट टीम अन्ना को दी जानी चाहिए। मेरा जवाब तो यही होगा कि बिल्कुल नहीं।

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि टीम अन्ना अब बौखलाहट में है। टीम के सदस्य किसके लिए कब क्या कह देगें कोई भरोसा नहीं। अब देखिए ना दिल्ली में आज जंतर मंतर पर ये कह कर भीड़ जुटाई गई कि ईमानदारी की लड़ाई लड़ते हुए जो अफसर और कर्मचारी शहीद हो गए, उनकी बात की जाएगी। पर ये तैयारी से यहां आए थे राजनीति करने के लिेए। क्योंकि शहीदों से ज्यादा राजनीतिक बातें हुईं।  ये सोचते हैं कि इशारों इशारों में कही गई बातों को आम आदमी समझता नहीं है। भाई सब जानते हैं कि इस आंदोलन के पीछे  टीम अन्ना का एक छिपा हुआ खतरनाक एजेंडा है। एक शेर याद आ रहा है..

अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।

अब इन्हें कौन समझाए कि जब आप ईमानदारी की बात करतें हैं तो लोगो को उम्मीद रहती है कि आप भी ईमानदार होंगे। ईमानदारी का मतलब सिर्फ  ये नहीं है कि आप चोरी नहीं करते। ईमानदारी का मतलब ये भी है कि जो काम आप कर रहे हैं, उसके प्रति सच मे ईमानदार हैं या नहीं। क्योंकि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की लड़ाई लड़ी गई तो उसमें कभी कामयाबी नहीं मिल सकती। सच तो ये है कि जिस तरह टीम अन्ना व्यवहार कर रही है, उससे बिल्कुल साफ हो गया है कि अब ये लड़ाई सियासी हो गई है। हां यहां एक बात का जिक्र और करना जरूरी है, अखबारों और टीवी रिपोर्ट के हवाले से कई मंत्रियों को टीम अन्ना ने कटघरे में खड़ा किया, बार बार सफाई देते रहे कि ये बात मैं नहीं कह रहा हूं। खुद उस रिपोर्ट से कन्नी काटते रहे, फिर कह रहे हैं कि अगर अगस्त तक सभी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई तो जेल भर देंगे। अरे दोस्त पहले इतना नैतिक साहस दिखाओ कि सार्वजनिक मंच से जो बात कह रहे हो, उसे ये बताओ कि हां मैं कह रहा हूं।

हां टीम अन्ना के सदस्यों में आपस में एक प्रतियोगिता शुरू हो गई है, टीवी पर ज्यादा से ज्यादा समय तक छाए रहने की। आपको पता होगा कि टीवी में पाजिटिव बातों के लिए समय ज्यादा नहीं है, अगर आपको यहां जगह बनानी है तो निगेटिव बातें यानि छिछोरी हरकतें करनी होगीं। अब निगेटिव बातें तो टीम अन्ना के सभी सदस्य करते हैं, उसमें अपना स्तर गिराना होता है, और बंदा बाजी मार ले जाता है तो सबसे नीचे गिरता है। अब देखिए ना पहले एक महिला ने डुपट्टे से घूंघट ओढ़ कर फूहड़ नाटक कर सांसदों की मिमिकरी की। ये पूरे दिन क्या कई दिन तक टीवी पर छाई रही। दूसरे साथी ने देखा कि ये महिला तो टीवी पर छाई हुई है, उसने संसद की ही ऐसी तैसी कर दी, कहा यहां तो गुंडे बदमाश और बलात्कारी बैठे हैं। जाहिर है बवाल होना था, हुआ भी। संसद से विशेषाधिकार हनन का नोटिस मिला। ये साबित करना चाहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूं तो नेता उनके पीछे पड़ गए हैं। इन्हें नोटिस मिलने पर शर्म नहीं आ रही है, इससे वाहवाही बता रहे हैं।

जब टीम अन्ना के सदस्य देख रहे हैं कि उन्हें टीवी पर जगह पाजीटिव बातें करने से नहीं मिल रही हैं तो एक के बाद एक सभी ने छिछोरी हरकतें चालू कर दीं। इसी क्रम में आज एक नेता सदस्य ने एक वरिष्ठ सांसद जिनके ऊपर किसी तरह की बेईमानी के चार्ज नहीं है, वो जेपी आंदोलन में लंबे समय तक जेल में भी रहे। उन्हें इनडायरेक्ट रूप से चोर कहा। वैसे सच ये है कि ऐसे लोगों की चर्चा कर इन्हें बेवजह भाव देने की जरूरत नहीं है। मैं पहले भी कहता रहा हूं कि बेईमानी के पैसे से ईमानदारी की बात करना बेशर्मी से ज्यादा कुछ नहीं है।
हा एक हास्यास्पद बात और है टीम अन्ना का एक आदमी उसे हिसाब किताब  रखने का बहुत शौक है, आए दिन राजनीतिक दलों से हिसाब मांगता रहता है। चलो एक बात मैं भी कह दूं। भाई मुझे बताओ ये फोर्ड फाऊंडेशन क्या है। इसमें किसके चाचा बैठे हैं जो इस आंदोलन में फंडिग कर रहे हैं। इस आंदोलन को चलाने में फोर्ड फाउंडेशन का आखिर क्या इंट्रेस्ट है। इन सवालों का जवाब भी आना चाहिए। अन्ना गारंटी ले सकते हैं कि उनके आंदोलन में सब नंबर एक का पैसा लग रहा है, किसी गलत आदमी का चंदा उनके पास नहीं है।
चोर चोर मौसेरे भाई ...
ये तस्वीर हमें तो हैरान करती है। दोनों गले भले मिल  रहे  हों, पर दिल नहीं मिलता। साथ में बैठकर तस्वीर खिंचवा ली, ये इनकी मजबूरी है। दरअसल रामलीला मैदान में पिटाई के बाद बाबा रामदेव काफी समय तक सदमें में रहे। अपना हिसाब किताब दुरुस्त करते रहे। अब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार भी आ गई है, तो वैसे ही बाबा  की मुश्किल बढ़ गई है। अभी तक तो वहां बीजेपी की सरकार थी, जो उन्हें संरक्षण देती रही। रामदेव भी बीजेपी की सेवा करते रहे। कहा तो यहां तक जाता है कि वो पार्टी को चंदा भी देते रहे हैं। भला एक बाबा किसी राजनीतिक दल को चंदा क्यों देगा,  लेकिन रामदेव देते रहे हैं।

बाबा रामदेव स्वदेशी के नाम जिस तरह से साबुन तेल बेच रहे हैं, उसे कितना भी साफ सुथरा करने की कोशिश करें नहीं कर सकते। कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जिसमें बाबा रामदेव ने टैक्स की चोरी की है। तमाम चीजों को छिपाया है। अब बाबा जब अपने धंधे को सौ फीसदी प्रमाणिक बताते हैं तो हंसी आती है। दुनिया में कोई ऐसा धंधा नहीं है, जहां गोरखधंधा ना हो। बस यहां तभी आदमी चोर कहा जाता है जब वो पकड़ा जाता है। बाबा कई बार पकड़े जा चुके हैं, अब बाबा को प्रमाणिकता की बात नहीं करनी चाहिए, हंसी आती है, और याद आते हैं पुलिस के थाने जहां घाघ टाइप के चोर पिटते रहते हैं, पर सच कबूलते नहीं,क्योंकि इनकी क्षमता बहुत होती है।

अन्ना मंदिर में रहते हैं, मित्रों मेरी गुजारिश है कि अन्ना का मंदिर आप भी देख आओ। पांच सितारा सुविधाओं वाला ये मंदिर है। खैर छोड़िये इन बातों को। मैं जानना चाहता हूं कि आखिर अन्ना को रामदेव की जरूरत क्यों पड़ी ? तो सुन लीजिए अब दिल्ली में जब से अप्पूघर हटा है, यहां लोगों के लिए मनोरंजन का कोई साधन नहीं रहा, जहां लोग जाकर चाय पकोड़े कर सकें। ऐसे में अन्ना का अनशन होता है तो लोग चाय पकोड़े के लिए निकल पड़ते हैं। एक दिन का अनशन था, इसलिए यहां अन्ना ने खाने पीने का इंतजाम नहीं किया था, इसलिए और दिनों की अपेक्षा भीड़ कम थी।    रामलीला मैदान में देशी घी में हलुवा पूड़ी थी, लोगो बड़ी संख्या में जुटते थे, और ये घर पहुंच कर आंदोलन की कम हलुवा पूडी की चर्चा ज्यादा करते थे।

एक अनशन करने टीम अन्ना मुंबई पहुंच गई। उन्हें लगा कि नए साल का मौका है, दिल्ली में ठंड बहुत है, मुंबई का मौसम भी मस्त है, नए साल को इन्ज्वाय करने देश भर से लोग मुंबई जुटेंगे। दिल्ली की ठंड में जान देने से क्या फायदा, मुंबई चला जाए। बस यही चूक हो गई और टीम अन्ना की पोल खुल गई। तीन दिन का अनशन एक दिन में समेट दिया। यहां लोग आए ही नहीं। अरे भाई मुंबई में घूमने की तमाम जगह है, छुट्टी  में लोग कोंकड़ रेलवे का सफर करना बेहतर समझते हैं, वहां दिल्ली की तरह लोग खाली नहीं है।
तब टीम अन्ना को लगा कि अगर इस आंदोलन को जिंदा रखना है और फोर्ड फाउंडेशन समेत देश भर से चंदा लेकर मलाई काटना है तो भीड़ का पुख्ता इंतजाम करना ही होगा। बस फिर क्या था, दिल ना मिलते हुए भी बाबा रामदेव की शरण में जा गिरे। इन्हें पता है कि देश भर में हारी बीमारी है और बाबा इसमें लोकप्रिय हैं। ऐसे में और कुछ हो ना हो, दस पांच हजार लोग तो जुट ही जाएंगे। इसी भीड़ को अपने पास बनाए रखने के लिए ये दोनों चेहरे साथ हैं। चलो भाई देश में तमाम लोगों की दुकानदारी चल रही है, इनकी भी चले, क्या करना है।
  

23 comments:

  1. जिस प्रकार बीते साल अन्ना ने रामदेव से फ़ायदा उठाया था, अब लग रहा है कि रामदेव इस अन्ना को सिर्फ़ आश्वासन ही देगा, साथ नहीं देगा। बाकि भविष्य में जाने क्या क्या छुपा है?

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  2. SAB KUCHH AAPNE SAF SAF BATA DIYA HAI PAR YE ANNA KA MANDIR KASI SUVIDHAVON SE YUKT HAI IS PAR ALAG SE POST DALEN ...AAKHIR HAM BHI JANNA CHAHTE HAIN . sadarमिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड

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    1. बिल्कुल, मैं खासतौर पर आम आदमी बनकर वहां यही देखने गया था कि जो बातें की जा रही हैं, उसमें कितनी सच्चाई है, सच बताऊं आधी भी सच नहीं है।

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  3. यही धूर्तता खा गई, अनशन जनित प्रभाव ।
    चोर चोर के संग में, चले पुराने दांव ।

    चले पुराने दांव, आस-विश्वास मिटा है ।
    कौवे करते काँव, आदमी आम पिटा है ।

    बेचो गाँधी नाम, खरीदो बढ़िया भाषण ।
    खर्चो जैसा दाम, मिले वैसा सिंहासन ।।

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  4. anna ka aandolan theek usi tarah hai jaise ganga gomukh se se nikli to saaf suthri thi raste me gande naalo ne usko bhi ganda kar diya.

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  5. ANNA EK UMMEED DIKH RAHE THE, LEKIN AB TO MAN HI NAHIN KAR RAHA KI ANNA KI TEAM SE JUDI KOI KHABAR BHI DEKHEIN ....KAHIN AISA TO NAHIN KI "KAJAL KI KOTHARI ME" ANNA JI BINA SAMJHE BOJHE ..TAAV ME AA KAR CHALE AAYE ...!!! YA KUCHH LOGON NE UNKA MURKH BANAYA HAI. UNKI CHHAVI, DESH-NISHTHA KA FAYDA UTHANE KI KOSHISH KI HAI ...!!!HAAN YE BAAT JARUR CHAUNKATI HAI KI UNKA MANDIR (NIWAS STHAN ) PAANCH SITARA KI SUVIDHA WALA HAI? PAHLE AISA HI THA KYA?YA UNKE SAMARTHAKON NE UPLABDH KARAYI HAI? IS PAR JAANKARI DIJIYEGA .

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  6. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।... और भाई पर उपदेश तो हमेशा से कुशल रहा है

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  7. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।

    सटीक अभिव्यक्ति...

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  8. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।....वाह: क्या बात कही..बहुत खूब..

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  9. चलिये इस बार आपने और आपके टिप्पणीकारों ने भी सच मान ही लिया । मै तो अपने ब्लाग और दूसरों के यहाँ टिप्पणी मे लगातार लिख रहा हूँ कि,अन्ना/रामदेव,आर एस एस,कांग्रेस का मनमोहन गुट ,देशी -विदेशी घराने ,IAS अफसरों की पत्नियों के NGOs जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ कर हमारे संसदीय लोकतन्त्र को नष्ट करने का उपक्रम कर रहे हैं।

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  10. bahut khub aur khari-khari abhivyakti

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  11. आपके विचार और लेख तारीफ के काबिल है.... लेख का नाम आधा सच नही ... कड़वा सच होना चाहीए

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  12. बेहद सार्थक लेख लिखा है आपने..सच में अगर सिविल सोसाइटी ही नाकामयाब तो जनता और सरकार के बीच की दूरी और बढ़ जाती है..

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  13. सौ फीसदी प्रमाणिक विश्लेषण.

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  14. सार्थक आलेख मगर यहाँ मे राजेश कुमारी जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ। आपको भी कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  15. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।

    -एकदम सटीक इस्तेमाल इस शेर का यहाँ...उत्तम विश्लेषण!!

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  16. बढ़िया है....
    एक दम सटीक,कड़क लेखन .....

    रूखे लेख में एक अदद शेर रंग भर गया :-)

    सादर.
    अनु

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  17. राजनीति ...निकल कर अब साधु और अन्ना के खेमे में आ चुकी हैं ...सब कुछ बंटा और बिका हुआ हैं

    आप ..इस ब्लॉग का नाम पूरा सच रख लो ...

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  18. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।
    बहुत ही दमदार एवं उम्‍दा प्रस्‍तुति ...आभार ।

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  19. अंदाज अपना आइने में देखते हैं वो,
    और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो।

    उम्‍दा अभिव्यक्ति..

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  20. जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  21. जब हम स्‍वयं को सही कहने के लिए सारे जगत को ही झूठा साबित करना प्रारम्‍भ कर देते हैं तब आप चाहे कितना भी नेक विचार लेकर क्‍यों ना चले, असफल हो ही जाते हैं।

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।