आज बिना किसी भूमिका के कुछ सीधी सपाट बातें करना चाहता हूं। पहले मैं आपको बता दूं कि मैं भी चाहता हूं कि संसद में साफ सुथरी छवि के लोग आएं। मैं भी चाहता हूं कि देश से भ्रष्टाचार खत्म हो, मैं भी चाहता हूं कि भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए एक सख्त कानून संसद में पास हो, लेकिन इसके लिए कुछ लोग जो सड़कों पर शोर मचा रहे हैं, इनके पीछे बहुत खतरनाक खेल खेला जा रहा है। ये चेहरे तो सिर्फ मुखौटा हैं। सच कहूं तो ये आंदोलन जनलोकपाल के लिए बिल्कुल नहीं है। ये आंदोलन नेताओं के खिलाफ है, संसद के खिलाफ है यानि पूरा आंदोलन देश के लोकतंत्र के खिलाफ है। वजह ये कि इन्हें लोकतंत्र में आस्था ही नहीं है।
चलिए पहले उस बात की चर्चा जिसे लेकर टीम अन्ना बहुत ज्यादा शोर मचाती फिर रही है। ये कहते हैं संसद में अपराधी हैं,जिनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमें दर्ज हैं। अब टीम अन्ना से कोई पूछे कि इस बात की जानकारी आपको मिली कहां से। एक ही जवाब है, इन सांसदों ने चुनाव लड़ने के लिए दाखिल नामांकन पत्र में अपने सभी मुकदमों का जिक्र किया है। यानि देश के मतदाताओं ने इन मुकदमों के बारे में जानते हुए भी उन्हें चुना है। अब बताएं एक ओर आप जनता को मालिक बताते हैं, फिर मालिक के फैसले पर ऊंगली क्यों उठाते हैं ? जब लोग इनसे कहते हैं कि भाई अच्छे आदमी और नेता का ठेका तो इस समय आपका है, क्योंकि जो अन्ना के साथ वो ईमानदार बाकी सब चोर..। तो फिर आप ही विकल्प दें और चुनाव लड़कर संसद में आएं। लोकतंत्र के मुहाने पर खड़े होकर भीतर बैठे लोगों को गाली देने का क्या मतलब है। तो सुनिये इनका कुतर्क..। ये कहते हैं कि “ये तो वही बात हुई कि मैं अपनी मां को लेकर सरकारी अस्पताल जाऊं और डाक्टर ना मिले, मैं शिकायत करुं तो कहा जाए कि आप खुद डाक्टर बनकर क्यों नहीं आते ? “
हाहाहहाहाह… बताइये, देश में गंभीर चर्चा चल रही है, और ये लोग टीवी चैनलों पर बैठ कर कुछ भी बकते रहते हैं। मुझे तो लगता है कि अपने आपराधिक मामलों को सार्वजानिक करने के बाद भी अगर सांसद चुने जाते हैं तो ये तो उनके लिए सम्मान की बात है, क्योंकि इसके बाद भी चुने जाने का मतलब है कि जनता उन्हें चाहती है, और जनता चूंकि मालिक है तो फिर अन्ना और उनकी टीम के पेट में दर्द क्यों है ? दरअसल केंद्र की कमजोर कांग्रेस सरकार और उससे भी कमजोर प्रधानमंत्री के चक्कर में इन्हें कुछ ज्यादा ही लोगों नें मुंह लगा लिया। ये इस लायक नहीं थे कि इन्हें बराबर की कुर्सी पर बैठाकर बात की जाए। अगर आपको याद हो तो अनशन के दौरान इनकी एक मीटिंग वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ हुई थी। प्रणव दा ने इन्हें इनकी असलियत और अहमियत के साथ औकात भी बताई कि आप हो क्या। फिर बेचारे प्रणव दा के कमरे से बाहर निकल कर मीडिया के सामने फिर गिड़गड़ा रहे थे कि आज तो हमसे ठीक से बात ही नहीं कर रहे थे प्रणव दा, बात क्या वो तो डांट रहे थे। दरअसल ये इसी के काबिल हैं।
इन्हे मान सम्मान और बेईज्जत का अंतर नहीं मालूम है। इसी संसद में प्रधानमंत्री ने अन्ना को सैल्यूट किया और पूरे सदन की ओर से प्रस्ताव पास कर कहा गया कि आपका आंदोलन सही है, संसद भी चिंतित है और भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाया जाएगा। लेकिन इनकी लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं और मूल्यों में भरोसा ही नहीं है, ये अड़े रहे अपनी बात पर। आपको पता है गठबंधन सरकारों की बहुत मजबूरी होती है, सरकार चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर सकती। सरकार तो महिला आरक्षण बिल भी पास कराना चाहती है, पर आज तक नहीं करा पाई। इन्होंने देखा कि कानून बनने में अड़चने हैं तो संसद और सांसदों को गाली देने लगे। लिहाजा संसद के अंदर इनकी निंदा की गई। लेकिन इन पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि अगर आप स्वाभिमानी आदमी को गाली देगें तो उसे तकलीफ होगी, इन पर तो कोई असर ही नहीं। ये तो मानने को भी तैयार नहीं कि हां कुछ गल्तियां हुई हैं, सार्वजानिक मंच से असभ्य भाषा नहीं बोलनी चाहिए थी।
जो चल रहा है, उसे देखकर तो यही लगता है कि अन्ना गांधी की समाधि राजघाट पर जाने का ड्रामा भर करते हैं। गांधी जी तो बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो को मानने वाले थे। अन्ना और अन्ना के चेले बुरा बोलते हैं, बुरा सुनते भी हैं और बुरा देखते भी हैं। गांधी कहते थे कोई आपके एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल सामने कर दो, ये एक गाल पर चांटा मारने वाले के दोनों को गाल पर चांटा ही नहीं मारते, उसे पूरी तरह ठिकाने लगाने की कोशिश करते हैं। दरअसल यहां सब ड्रामा करते हैं। मंच पर गांधी का चित्र लगाकर अन्ना खुद को गांधीवादी कहते हैं। सच तो ये है कि अन्ना में राष्ट्रपिता के पांच फीसदी भी गुण नहीं है। अन्ना टीम अन्ना को आगे क्यों रखे हुए हैं, जबकि अन्ना की कोई बात मायने नहीं रखती। सिर्फ इसलिए 74 साल के बूढे अन्ना को आगे रखते हैं कि इससे टीम की फेस सेविंग रहेगी, दरअसल सच तो ये है कि अन्ना इस टीम के लिए सिर्फ मुखौटा हैं। इसी तरह अन्ना गांधी की तस्वीर लगाकर खुद को बड़ा साबित करने की कोशिश भर करते हैं। बेहतर होता कि गांधी जैसा कठोर जीवन जीने की आदत डालते।
अगर आप ध्यान से देखें तो आजकल टीम अन्ना की बाडी लंग्वेज अजीब सी दिखाई देती है। उन्हें देखने से लगता है कि इनका कोई गड़ा हुआ खजाना लूट ले गया है। दरअसल इन्हें लग रहा था कि इस आंदोलन के जरिए वो रातो रात अमेरिका के राष्ट्रपित से भी ज्यादा ताकतवर हो जाएंगे। लेकिन देश का लोकतंत्र अभी कमजोर नहीं हुआ है, आज भी देश अपने संविधान के मुताबिक चल रहा है, अभी गुंडाराज नहीं है कि कुछ आदमी सड़क पर जमा हों और संसद को बंधक बनाकर अपने हिसाब से कानून बनवा लें। और हां रही बात कानून की तो देश में किस अपराध के लिए आज कानून नहीं है और कानून होते हुए भी कौन सा अपराध नहीं हो रहा है। मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि 121 करोड़ की आबादी को हम किसी भी कानून में नहीं बांध सकते। मैं अपने चैनल IBN7 के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष की इस बात से सहमत हूं कि बेईमानी हमारी रगो में इस कदर फैली हुई है कि हम बेटी की शादी में ईमानदार नहीं बेईमान दूल्हा तलाशते हैं यानि जिसकी ऊपर की कमाई वेतन से ज्यादा हो। भाई जब हमारा नैतिक पतन इस कदर हो चुका है कि हम बेटी के लिए ईमानदार दूल्हा नहीं तलाशते तो देश के लिए ईमानदार नेता भला क्या तलाशेगें।
अच्छा हास्यास्पत बात देखिए टीम अन्ना ईमानदारी की बात करती है। लेकिन अपना चरित्र कोई नहीं देख रहा। कोई कोशिश कर रहा था कि गाजियाबाद के क्षेत्र में नगर निगम टैक्स वसूली की जिम्मेदारी उनकी सस्था “कारवां “ को दे दे। अरे भाई टैक्स वसूली ही क्यों, नाले की सफाई का काम क्यों नहीं लेने को दबाव बनाया। सबसे ज्यादा तो लोग गंदगी से परेशान हैं। छानबीन हुई तो एक सदस्य ने आलीशान मकान खरीदा तो स्टांप शुल्क कम लगा दिया। बाद मे लाखों रुपये का भुगतान करना पडा। एक ने हवाई जहाज के किराए में हेरा फेरी की। कहने का मतलब ये कि जिसे जहां मौका मिला वो वहां खुराफात करने के चूका नहीं, लेकिन अन्ना के पीछे खड़े है तो भला ये बेईमान कैसे हो सकते हैं। बेईमान तो देश के नेता, अफसर और कर्मचारी हैं।
मैं एक दोहराना चाहता हूं कि बेईमानी की बुनियाद ईमानदारी की लड़ाई कभी मजबूती से नहीं लड़ी जा सकती। ईमानदारी की जो लोग बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं ये चेहरे दागदार हैं। आज तक नहीं बताया गया कि विदेशी संस्था फोर्ड फाउंडेशन इस आंदोलन के लिए क्यों मदद कर रही है। बहरहाल अब जिस तरह से गाली गलौच पर उतरी है टीम अन्ना, वो दिन दूर नही कि लोग खुद ही इनसे दूरी बना लें।
चलते चलते
किसी शायर बहुत पहले एक शेर पढ़ा, शायद उन्हें पहले ही उम्मीद थी कि आने वाले समय में कुछ ऐसे लोग समाज में बड़ी बड़ी बातें करतें फिरेंगे,लेकिन उनका खुद का दिल बहुत छोटा कहिए या फिर गंदा कह लीजिए।
छोटी छोटी बातें कह कर, बड़े कहां हो जाओगे,
पतली गलियों से निकलो, फिर खुली सड़क पर आओगे।