गतांक से आगे..
जब से यमलोक से लौटा हूं, लोगों ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। सुबह से शाम तक फोन की घंटी बजती रहती है। सबके एक ही सवाल होते हैं कि अरे ऊपर हमारे पिता जी का क्या हाल है ? दादा जी जब गए थे उन्हें उठने बैठने में काफी तकलीफ थी, अब वो कैसे हैं ? मां तो मुझसे हमेशा नाराज ही रहती थी, अब वहां उसे हमारी याद आती है या अभी भी गुस्से में है ? हमारे पड़ोसी मौर्या जी ने तो हम सब का जीना मुश्किल कर रखा था, वो तो जरूर नर्क में ही होंगे ? जीएम साहब ने मुझे बिना गल्ती के बर्खास्त किया था, मैने उन्हें सच बताया भी लेकिन वो नहीं माने, अब तो वो जरूर ऊपर भुगत रहे होंगे ? बताइये श्रीवास्तव जी मेरी बेटी को तो उसके ससुराल वालों ने दहेज के लिए मार डाला था, बेटी ने यहां बहुत तकलीफ सही, वहां तो राजकुमारी की तरह है ना ? अब ऐसे-ऐसे सवाल किए जा रहे हैं कि मैं बहुत दुविधा में पड़ गया हूं, मैं जानता हूं कि अगर मैने इन सबको सच-सच बताया तो इन्हें भरोसा तो होगा नहीं, उल्टे हमसे बेवजह मुंह फुला लेंगे। लिहाजा मेरा एक ही जवाब होता है सारी, मैं तो वहां इतना बिजी था कि दूसरी चीजों को देखने का मौका ही नहीं मिला। इसलिए मेरी किसी से मुलाकात ही नहीं हो पाई। सबको यही जवाब देकर किसी तरह पीछा छुड़ा लेता हूं।
सच सुनना चाहते हैं आप, बताऊं आपको ? मुझे काफी देर तक यमराज स्वर्ग में घुमाते रहे, वो यहां की एक एक सुविधाओं के बारे में मुझे बता रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान तो यहां जो लोग थे उन पर लगा हुआ था। पूरे स्वर्ग में एक भी जाना पहचाना चेहरा नहीं मिला। घर परिवार तो छोड़िए नातेदार, रिश्तेदार, पास पड़ोस, दोस्त कोई भी तो नहीं था स्वर्ग में। मुझे लगा कि चलिए हमारे लोग स्वर्ग के मापदंड को पूरा नहीं करते होंगे, लेकिन हमारे तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यानि आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को तो यहां होना ही चाहिए। पर कोई भी नहीं था यहां। मुझे सच में हैरानी हो रही थी कि धरतीलोक पर क्या वाकई कोई ऐसा नहीं है, जिसे स्वर्ग में जगह मिल सके। वैसे तो मैं बहुत सारे लोगों को जानता हूं जो निहायत ईमानदार रहे है, खुद के प्रति, परिवार के प्रति, समाज और देश के प्रति भी, लेकिन वो भी स्वर्ग मे नहीं थे।
मुझे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर हुई कि धरतीलोक में बड़े बड़े साधु, संत, महात्मा हैं, जो लोगों को स्वर्ग का रास्ता बताते हैं। वो बताते हैं कि ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। कौन कौन सी कथा सुननी चाहिए, कितनी तीर्थ यात्राएं की जानी चाहिए, क्या क्या व्रत, त्यौहार किए जाएं ये सब बताते हैं। धरतीलोक पर करोडों लोग इन संत महात्माओं के बताए रास्ते को अपनाते भी हैं। लेकिन मुझे जब स्वर्ग में संत महात्मा भी नहीं दिखाई दिए तब मुझे लगा कि शायद मैं स्वर्ग में नहीं हूं, वरना ये कैसे हो सकता है कि जो लोग दूसरों को स्वर्ग का रास्ता बताते रहे हैं, उनके लिए भी स्वर्ग में स्थान नहीं है। मुझसे रहा नहीं गया और मैने यमराज से पूछा कि ये कैसा स्वर्ग है, यहां तो मुझे धरतीलोक के वो चेहरे भी दिखाई नहीं दे रहे हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि उन्होंने जीवन में कभी कुछ गलत नहीं किया है। यमराज मुस्कुरा कर रह गए, मुझे लगा कि वो हमारे नेताओं, साधु संतों के बारे में कुछ कहना चाहते हैं, पर ना जाने क्या सोच कर खामोश रह गए। लेकिन मेरे आग्रह पर उन्होंने दो एक बातें जरूर बताईं।
यमराज ने कहा कि यहां से जो भी व्यक्ति धरतीलोक पर जाता है, उसका सबकुछ यहां पहले ही तय कर दिया जाता है, मसलन ये कि वो धरतीलोक में क्या काम करेगा, उसका परिवार और समाज के प्रति कैसी जवाबदेही होगी। लेकिन देखा जा रहा है कि जिसका जो काम है, वो ना करके दूसरे के काम में दखल देता है। उन्होंने गांधी परिवार का उदाहरण देते हुए कहा कि देखिए इंदिरा जी के दो बेटे थे, राजीव और संजय। राजीव को पायलट की जिम्मेदारी निभानी थी और संजय को राजनीति में योगदान देना था। दोनों अपना काम करने भी लगे थे। लेकिन बाद में संजय अपना काम छोड़ पायलट बनने गए तो वहां हेलीकाप्टर दुर्घटना में उनकी असमय में मौत हो गई। पायलट राजीव को ना जाने क्या सूझा वो राजनीति में आ गए और वो यहां मारे गए। यमराज ने कहा कि अब उम्र पूरी किए बगैर यहां आएं हैं तो उन्हें भी टेंट में अपनी बारी का इंतजार करना ही होगा। बताया गया कि ऐसे एक दो नहीं लाखों उदाहरण हैं। इससे यमलोक में व्यवस्था बनाए रखने में काफी दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि इसमें आप हमारी मदद कीजिए, लोगों में इस बात की चेतना जागृत करें कि जिनका जो काम है, वही करें, दूसरे के काम में अतिक्रमण करने से व्यवस्था बिगड़ती है।
अच्छा यमराज तो फिर यमराज ही है। उन्हें हर आदमी के बारे में बहुत कुछ जानकारी होती है। बात-बात में उन्होंने कहाकि आपसे भी मुझे शिकायत है, मैं घबरा गया। पूछा अब भला मैने ऐसा क्या कर दिया। कहने लगे आप तो जर्नलिस्ट हैं और खासतौर पर रेल महकमा आप ही देखते रहे हैं। मैने कहां ये बात तो सही है। कहने लगे कि आप बताइये कि ट्रेन में शराब पीकर सफर करना ज्यादा खतरनाक है या फिर शराब पीकर ट्रेन चलाना खतरनाक है। मैने कहा ट्रेन चलाना ही ज्यादा खतरनाक है। वो बोले तो फिर आप कुछ करते क्यों नहीं ? यात्री बोगी में तो जगह जगह लिखा रहता है कि शराब पीना मना है, लेकिन इंजन में क्यों नहीं लिखा जाता कि शराब पीकर ट्रेन ना चलाएं, जबकि कई बार शराब पीकर ट्रेन चलाते हुए ड्राईवर पकड़े भी जा चुके हैं। मुझे भी लगा कि यमराज की बातों में तो दम है। मैने कहा चलिए ये ठीक है ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन इस बात पर आप इतना जोर आप क्यों दे रहे हैं ? कहने लगे यमलोक में सबसे अधिक उन्हीं लोगों की संख्या है जो ट्रेन दुर्घटना में मारे गए हैं, एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां आ जाते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल होता है।
मैने देखा यमराज ठीक ठाक मूड में है, लिहाजा कुछ सवाल जो मेरे मन में थे मैने पूछ लिया। मैने कहाकि हमारे देश के तमाम जाने माने नेता कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुझे लगता है कि नीचे जाते ही मुझसे सबसे पहला सवाल इन नेताओं के बारे में ही होगा, सभी जानना चाहेंगे कि पूरे जीवन धरतीलोक पर मौज करने वाले नेता ऊपर कैसे रहते हैं। अगर मैं नहीं बता पाऊंगा तो लोगों को भरोसा ही नहीं होगा कि मैं वाकई ऊपर होकर आया हूं। यमराज ने मुझे बहुत दूर बने एक बड़े से हाल को दिखाया, पहले यहां यमराज की सवारी ( भैंसा ) रहता था, पर उनका भैंसा इतनी दूर जंगल में रखे जाने से नाराज था, लिहाजा उसके लिए अब स्वर्ग के पास ही इंतजाम कर दिया गया है और उसके पुराने आवास में राजनेताओं को रखा गया है, चाहे वो किसी पार्टी के भी हों, सब एक साथ रहते हैं, वहीं आपस में लड़ते झगड़ते हैं। दूर इसलिए रखा गया है कि उनकी बुरी आदतों से यमलोक का आम जनजीवन प्रभावित ना हो।
मैने कहा कि राजनेताओं का ये हाल है तो आतंकवादियों को आप कहां रखते हैं। यमराज ने कहा कि देखिए यहां कोई मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग या फिर बाल आयोग जैसी कोई चीज नहीं है। इससे हमे काम करने में आसानी रहती है। धरतीलोक पर तो ना जाने कितने आयोग हैं, किसी के खिलाफ कार्रवाई करने पर तरह तरह के जवाब देने पड़ते हैं अफसरों को। हमने आतंकवादियों को धरतीलोक और यमलोक के बीच में लटका रखा है, ऐसे लोगों के लिए ना नीचे जगह है और ना ही ऊपर। मैने कहाकि धरतीलोक पर तमाम आतंकवादी जेलों में हैं और उनकी सुरक्षा बहुत कड़ी रहती है। लज़ीज भोजन करते हैं, यमराज बोले, ऐसा नहीं है। मैने ही उन्हें वहां छोड़ रखा है, जिससे उनके साथियों तक पहुंचा जा सके। हां मै देखता हूं कि कई राजनेता और अफसर इनकी चाटुकारिता करते रहते हैं। वो अज्ञानी हैं, इन्हें नहीं पता उनकी रिपोर्ट यहां तैयार हो रही है। ये भी उन्हीं आतंकियों के साथ बीच में लटके रहेंगे, इन्हें ना ही नीचे जगह मिलेगी और ना ही हमारे यहां ऊपर कोई जगह इनके लिए है। ऐसे लोगों की लगातार यहां समीक्षा चल रही है। अब मैं ये बात यहां के हुक्मरानों को बताऊं तो वो इसे मानेंगे नहीं, लेकिन जो कुछ मैं देख रहा हूं इससे तो यही कह सकता हूं कि इन्हें वाकई सुधर जाने की जरूरत है।
यमराज से जब मेरी ये बातें हो रही थीं तो हम दोनों स्वर्ग में थे। तीन चार घंटे से ज्यादा समय हम यहां बिता चुके थे, मुझे बहुत अजीब लग रहा था। यहां का जीवन स्तर भले ही फाइव स्टार जैसा हो, पर बहुत ज्यादा अनुशासन की वजह से माहौल उबाऊ लग रहा था। पूरे स्वर्ग में ऐसा सन्नाटा की हम जैसे लोग तो घबरा ही जाएं। कोई किसी से बात नहीं करता है, सब अपने से ही मतलब रखते हैं। ना किसी से हैलो ना हाय , इन लोगों में कुछ काम्पलेक्स भी दिखाई दे रहा था, जैसे कि वो किसी से भला क्यों बात करें, वो स्वर्ग लोक में जो हैं। इन्हें लगता है कि जिसे बात करनी हो, वो खुद उनसे बात करेगा। इसी काम्पलेक्स की वजह से स्वर्गवासी वहां भी अलग थलग से हैं। चलते- चलते मैने यमराज से कहा कि क्या मैं 10 मिनट के लिए नरक में जा सकता हूं। यमराज ने कहा कि मुझे पता था कि आप जैसे लोग नरक देखे बिना कैसे जा सकते हैं। चूंकि प्रोटोकाल ऐसा है कि यमराज नरक में नहीं जा सकते, लिहाजा उन्होंने वहां के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाया और उससे बड़ा गंदा सा मुंह बनाकर कहा कि ये पत्रकार हैं इन्हें जरा नरक दिखा लाओ।
यमराज का ये व्यवहार मुझे कत्तई अच्छा नहीं लगा, लेकिन जब हमें कहीं न्यूज या ब्रेकिंग खबर मिलने की उम्मीद होती है, फिर हम गधे को भी बाप कहने को तैयार हो जाते हैं, ये तो फिर भी यमराज थे। मुझे लेकर वो नरक की ओर चल पड़ा। वो आगे आगे और मैं उसके पीछे, लगभग पांच किलोमीटर चलने के बाद अब मैं नरक के मेन गेट पर था। यहां गेट पर मौजूद लोगों ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। यहां हर आदमी आजाद दिखाई दे रहा था, जिसे जो बेड एलाट थी, जरूरी नहीं कि वो 24 घंटा वहीं बना रहे। यहां हर आदमी को कहीं भी जाने की छूट थी। लोग यहां एक दूसरे से खूब घुल मिलकर रहते थे, बातचीत में बनावटी पन भी नहीं था, जब मन हो सो जाएं, जब तक जी करें सोते रहें। यहां किसी को कोई टोकने वाला नहीं था। सच कहूं तो मुझे स्वर्ग से काफी बेहतर माहौल नरक का लगा। मैने देखा कि एक अंकल सूट बूट पहने किनारे बैठ कर खूब मजे ले रहे हैं। उनके हाव भाव से ऐसा नहीं लग रहा था कि उन्होंने कुछ ऐसा वैसा काम किया होगा जिससे उन्हें नरक भोगना पडे। मै उनके पास पहुंचा, नमस्कार के बाद कहा कि आप धरतीलोक पर कहां रहते थे। वो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए कहने लगे कि मैं तो धरतीलोक से यहां स्वर्ग मे आया था, लेकिन वहां मेरा मन नहीं लगा, लिहाजा मै तो जानबूझ कर नरक में ट्रांसफर लिया हूं।
उनकी इस बात से मुझे लगा कि अब यहां कुछ खबर मिल सकती है। लिहाजा मैने उनसे थोड़ी देर और बात की तो हैरान करने वाली जानकारी मिली। कहने लगे कि यमलोक में लोग नरक मे आने के लिए उतावले रहते हैं। यहां स्वर्ग तो आसानी से मिल जाता है, लेकिन नरक में आने के लिए काफी सिफारिश करनी पड़ती है। यहां बताया गया कि स्वर्ग से हो रहे पलायन से यमराज भी काफी परेशान हैं। क्योंकि नरक में सब बिंदास तरीके से रहते हैं, यहां किसी तरह की पाबंदी नहीं है। स्वर्ग में अक्सर धमकी दी जाती है कि ठीक से नहीं रहोगे तो नर्क भेज दिए जाओगे। लेकिन नरक में यमराज भी चुप हो जाते हैं, क्योंकि वो हमें नरक से कहां भेज देंगे। ये नरक ऐसा है कि थोड़े दिन तो जरूर तकलीफ होती है, बाद में लोग खुद को अर्जेस्ट कर लेते हैं, फिर तो मौज ही मौज है। अभी ये बात कर ही रहा था कि मुझे यहां हजारों परिचित दिखाई देने लगे। घर परिवार के लोग तो यहां थे ही, पास- पडोस और यार दोस्त भी दिखाई दिए। सच बताऊं तो थोड़ी ही देर में मैं सबसे इतना घुल मिल गया कि मेरा यहां से आने का मन ही नहीं हो रहा था। बहरहाल कुछ देर बाद यमराज का संदेश मिला कि आपका समय खत्म हो गया है अब आप धरतीलोक पर चले जाएं। वापसी के दौरान वो एक गिफ्ट हैंपर जैसा कुछ मुझे दे रहे थे, मैने उनसे कहा कि अगर देना ही है तो एक वादा कीजिए। यमराज बोले हां बताइये आपको क्या चाहिए, मैने कहा जब भी मैं यहां आऊं, मुझे नरक में एक बैड बिना इंतजार कराए दे दीजिएगा। यमराज मुस्कुराए और कहा डन। आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा। मैं तो बहुत खुश हूं, अब आप सोच लीजिए, कहां रहना है, स्वर्ग में या फिर मेरे साथ नरक में। ( समाप्त )