Monday 27 August 2012

बहुत परेशान हैं बेचारे यमराज ...


गतांक से आगे..

जब से यमलोक से लौटा हूं, लोगों ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। सुबह से शाम तक फोन की घंटी बजती रहती है। सबके एक ही सवाल होते हैं कि अरे ऊपर हमारे पिता जी का क्या हाल है ? दादा जी जब गए थे उन्हें उठने बैठने में काफी तकलीफ थी, अब वो कैसे हैं ? मां तो मुझसे हमेशा नाराज ही रहती थी, अब वहां उसे हमारी याद आती है या अभी भी गुस्से में है ? हमारे पड़ोसी मौर्या जी ने तो हम सब का जीना मुश्किल कर रखा था, वो तो जरूर नर्क में ही होंगे ? जीएम साहब ने मुझे बिना गल्ती के बर्खास्त किया था, मैने उन्हें सच बताया भी लेकिन वो नहीं माने, अब तो वो जरूर ऊपर भुगत रहे होंगे ? बताइये श्रीवास्तव जी मेरी बेटी को तो उसके ससुराल वालों ने दहेज के लिए मार डाला था, बेटी ने यहां बहुत तकलीफ सही, वहां तो राजकुमारी की तरह है ना ? अब ऐसे-ऐसे सवाल किए जा रहे हैं कि मैं बहुत दुविधा में पड़ गया हूं, मैं जानता हूं कि अगर मैने इन सबको सच-सच बताया तो इन्हें भरोसा तो होगा नहीं, उल्टे हमसे बेवजह मुंह फुला लेंगे। लिहाजा मेरा एक ही जवाब होता है सारी, मैं तो वहां इतना बिजी था कि दूसरी चीजों को देखने का मौका ही नहीं मिला। इसलिए मेरी किसी से मुलाकात ही नहीं हो पाई। सबको यही जवाब देकर किसी तरह पीछा छुड़ा लेता हूं।

सच सुनना चाहते हैं आप, बताऊं आपको ? मुझे काफी देर तक यमराज स्वर्ग में घुमाते रहे, वो यहां की एक एक सुविधाओं के बारे में मुझे बता रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान तो यहां जो लोग थे उन पर लगा हुआ था। पूरे स्वर्ग में एक भी जाना पहचाना चेहरा नहीं मिला। घर परिवार तो छोड़िए नातेदार, रिश्तेदार, पास पड़ोस, दोस्त कोई भी तो नहीं था स्वर्ग में। मुझे लगा कि चलिए हमारे लोग स्वर्ग के मापदंड को पूरा नहीं करते होंगे, लेकिन हमारे तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यानि आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को तो यहां होना ही चाहिए। पर कोई भी नहीं था यहां। मुझे सच में हैरानी हो रही थी कि धरतीलोक पर क्या वाकई कोई ऐसा नहीं है, जिसे स्वर्ग में जगह मिल सके। वैसे तो मैं बहुत सारे लोगों को जानता हूं जो निहायत ईमानदार रहे है, खुद के प्रति, परिवार के प्रति, समाज और देश के प्रति भी, लेकिन वो भी स्वर्ग मे नहीं थे।

मुझे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर हुई कि धरतीलोक में बड़े बड़े साधु, संत, महात्मा हैं, जो लोगों को स्वर्ग का रास्ता बताते हैं। वो बताते हैं कि ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। कौन कौन सी कथा सुननी चाहिए, कितनी तीर्थ यात्राएं की जानी चाहिए, क्या क्या व्रत, त्यौहार किए जाएं ये सब बताते हैं। धरतीलोक पर करोडों लोग इन संत महात्माओं के बताए रास्ते को अपनाते भी हैं। लेकिन मुझे जब स्वर्ग में संत महात्मा भी नहीं दिखाई दिए तब मुझे लगा कि शायद मैं स्वर्ग में नहीं हूं, वरना ये कैसे हो सकता है कि जो लोग दूसरों को स्वर्ग का रास्ता बताते रहे हैं, उनके लिए भी स्वर्ग में स्थान नहीं है। मुझसे रहा नहीं गया और मैने यमराज से पूछा कि ये कैसा स्वर्ग है, यहां तो मुझे धरतीलोक के वो चेहरे भी दिखाई नहीं दे रहे हैं जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि उन्होंने जीवन में कभी कुछ गलत नहीं किया है। यमराज मुस्कुरा कर रह गए, मुझे लगा कि वो हमारे नेताओं, साधु संतों के बारे में कुछ कहना चाहते हैं, पर ना जाने क्या सोच कर खामोश रह गए। लेकिन मेरे आग्रह पर उन्होंने दो एक बातें जरूर बताईं।

यमराज ने कहा कि यहां से जो भी व्यक्ति धरतीलोक पर जाता है, उसका सबकुछ यहां पहले ही तय कर दिया जाता है, मसलन ये कि वो धरतीलोक में क्या काम करेगा, उसका परिवार और समाज के प्रति कैसी जवाबदेही होगी। लेकिन देखा जा रहा है कि जिसका जो काम है, वो ना करके दूसरे के काम में दखल देता है। उन्होंने गांधी परिवार का उदाहरण देते हुए कहा कि  देखिए इंदिरा जी के दो बेटे थे, राजीव और संजय। राजीव को पायलट की जिम्मेदारी निभानी थी और संजय को राजनीति में योगदान देना था। दोनों अपना काम करने भी लगे थे। लेकिन बाद में संजय अपना काम छोड़ पायलट बनने गए तो वहां हेलीकाप्टर दुर्घटना में उनकी असमय में मौत हो गई। पायलट राजीव को ना जाने क्या सूझा वो राजनीति में आ गए और वो यहां मारे गए। यमराज ने कहा कि अब उम्र पूरी किए बगैर यहां आएं हैं तो उन्हें भी टेंट में अपनी बारी का इंतजार करना ही होगा। बताया गया कि ऐसे एक दो नहीं लाखों उदाहरण हैं। इससे यमलोक में व्यवस्था बनाए रखने में काफी दिक्कत हो रही है। उन्होंने कहा कि इसमें आप हमारी मदद कीजिए, लोगों में इस बात की चेतना जागृत करें कि जिनका जो काम है, वही करें, दूसरे के काम में अतिक्रमण करने से व्यवस्था बिगड़ती है।

अच्छा यमराज तो फिर यमराज ही है। उन्हें हर आदमी के बारे में बहुत कुछ जानकारी होती है। बात-बात में उन्होंने कहाकि आपसे भी मुझे शिकायत है, मैं घबरा गया। पूछा अब भला मैने ऐसा क्या कर दिया। कहने लगे आप तो जर्नलिस्ट हैं और खासतौर पर रेल महकमा आप ही देखते रहे हैं। मैने कहां ये बात तो सही है। कहने लगे कि आप बताइये कि ट्रेन में शराब पीकर सफर करना ज्यादा खतरनाक है या फिर शराब पीकर ट्रेन चलाना खतरनाक है। मैने कहा ट्रेन चलाना ही ज्यादा खतरनाक है। वो बोले तो फिर आप कुछ करते क्यों नहीं ? यात्री बोगी में तो जगह जगह लिखा रहता है कि शराब पीना मना है, लेकिन इंजन में क्यों नहीं लिखा जाता कि शराब पीकर ट्रेन ना चलाएं, जबकि कई बार शराब पीकर ट्रेन चलाते हुए ड्राईवर पकड़े भी जा चुके हैं। मुझे भी लगा कि यमराज की बातों में तो दम है। मैने कहा चलिए ये ठीक है ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन इस बात पर आप इतना जोर आप क्यों दे रहे हैं ? कहने लगे यमलोक में सबसे अधिक उन्हीं लोगों की संख्या है जो ट्रेन दुर्घटना में मारे गए हैं, एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां आ जाते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल होता है।

मैने देखा यमराज ठीक ठाक मूड में है, लिहाजा कुछ सवाल जो मेरे मन में थे मैने पूछ लिया। मैने कहाकि हमारे देश के तमाम जाने माने नेता कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुझे लगता है कि नीचे जाते ही मुझसे सबसे पहला सवाल इन नेताओं के बारे में ही होगा, सभी जानना चाहेंगे कि पूरे जीवन धरतीलोक पर मौज करने वाले नेता ऊपर कैसे रहते हैं। अगर मैं नहीं बता पाऊंगा तो लोगों को भरोसा ही नहीं होगा कि मैं वाकई ऊपर होकर आया हूं। यमराज ने मुझे बहुत दूर बने एक बड़े से हाल को दिखाया, पहले यहां यमराज की सवारी ( भैंसा ) रहता था, पर उनका भैंसा इतनी दूर जंगल में रखे जाने से नाराज था, लिहाजा उसके लिए अब स्वर्ग के पास ही इंतजाम कर दिया गया है और उसके पुराने आवास में राजनेताओं को रखा गया है, चाहे वो किसी पार्टी के भी हों, सब एक साथ रहते हैं, वहीं आपस में लड़ते झगड़ते हैं। दूर इसलिए रखा गया है कि उनकी बुरी आदतों से यमलोक का आम जनजीवन प्रभावित ना हो।

मैने कहा कि राजनेताओं का ये हाल है तो आतंकवादियों को आप कहां रखते हैं। यमराज ने कहा कि देखिए यहां कोई मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग या फिर बाल आयोग जैसी कोई चीज नहीं है। इससे हमे काम करने में आसानी रहती है। धरतीलोक पर तो ना जाने कितने आयोग हैं, किसी के खिलाफ कार्रवाई करने पर तरह तरह के जवाब देने पड़ते हैं अफसरों को। हमने आतंकवादियों को धरतीलोक और यमलोक के बीच में लटका रखा है, ऐसे लोगों के लिए ना नीचे जगह है और ना ही ऊपर। मैने कहाकि धरतीलोक पर तमाम आतंकवादी जेलों में हैं और उनकी सुरक्षा बहुत कड़ी रहती है। लज़ीज भोजन करते हैं, यमराज बोले, ऐसा नहीं है। मैने ही उन्हें वहां छोड़ रखा है, जिससे उनके साथियों तक पहुंचा जा सके। हां मै देखता हूं कि कई राजनेता और अफसर इनकी चाटुकारिता करते रहते हैं। वो अज्ञानी हैं, इन्हें नहीं पता उनकी रिपोर्ट यहां तैयार हो रही है। ये भी उन्हीं आतंकियों  के साथ बीच में लटके रहेंगे, इन्हें ना ही नीचे जगह मिलेगी और ना ही हमारे यहां ऊपर कोई जगह इनके लिए है। ऐसे लोगों की लगातार यहां समीक्षा चल रही है। अब मैं ये बात यहां के हुक्मरानों को बताऊं तो वो इसे मानेंगे नहीं, लेकिन जो कुछ मैं देख रहा हूं इससे  तो यही कह सकता हूं कि इन्हें वाकई सुधर जाने की जरूरत है।

यमराज से जब मेरी ये बातें हो रही थीं तो हम दोनों स्वर्ग में थे। तीन चार घंटे से ज्यादा समय हम यहां बिता चुके थे, मुझे बहुत अजीब लग रहा था। यहां का जीवन स्तर भले ही फाइव स्टार जैसा हो, पर बहुत ज्यादा अनुशासन की वजह से माहौल उबाऊ लग रहा था। पूरे स्वर्ग में ऐसा सन्नाटा की हम जैसे लोग तो घबरा ही जाएं। कोई किसी से बात नहीं करता है, सब अपने से ही मतलब रखते हैं। ना किसी से हैलो ना हाय , इन लोगों में कुछ काम्पलेक्स भी दिखाई दे रहा था, जैसे कि वो किसी से भला क्यों बात करें, वो स्वर्ग लोक में जो हैं। इन्हें लगता है कि जिसे बात करनी हो, वो खुद उनसे बात करेगा। इसी काम्पलेक्स की वजह से स्वर्गवासी वहां भी अलग थलग से हैं। चलते- चलते मैने यमराज से कहा कि क्या मैं 10 मिनट के लिए नरक में जा सकता हूं। यमराज ने कहा कि मुझे पता था कि आप जैसे लोग नरक देखे बिना कैसे जा सकते हैं। चूंकि प्रोटोकाल ऐसा है कि यमराज नरक में नहीं जा सकते, लिहाजा उन्होंने वहां के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाया और उससे बड़ा गंदा सा मुंह बनाकर कहा कि ये पत्रकार हैं इन्हें जरा नरक दिखा लाओ।

यमराज का ये व्यवहार मुझे कत्तई अच्छा नहीं लगा, लेकिन जब हमें कहीं न्यूज या ब्रेकिंग खबर मिलने की उम्मीद होती है, फिर हम गधे को भी बाप कहने को तैयार हो जाते हैं, ये तो फिर भी यमराज थे। मुझे लेकर वो नरक की ओर चल पड़ा। वो आगे आगे और मैं उसके पीछे, लगभग पांच किलोमीटर चलने के बाद अब मैं नरक के मेन गेट पर था। यहां गेट पर मौजूद लोगों ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। यहां हर आदमी आजाद दिखाई दे रहा था, जिसे जो बेड एलाट थी, जरूरी नहीं कि वो 24 घंटा वहीं बना रहे। यहां हर आदमी को कहीं भी जाने की छूट थी। लोग यहां एक दूसरे से खूब घुल मिलकर रहते थे, बातचीत में बनावटी पन भी नहीं था, जब मन हो सो जाएं, जब तक जी करें सोते रहें। यहां किसी को कोई  टोकने वाला नहीं था। सच कहूं तो मुझे स्वर्ग से काफी बेहतर माहौल नरक का लगा। मैने देखा कि एक अंकल सूट बूट पहने किनारे बैठ कर खूब मजे ले रहे हैं। उनके हाव भाव से ऐसा नहीं लग रहा था कि उन्होंने कुछ ऐसा वैसा काम किया होगा जिससे उन्हें नरक भोगना पडे। मै उनके पास पहुंचा, नमस्कार के बाद कहा कि आप धरतीलोक पर कहां रहते थे। वो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए कहने लगे कि मैं तो धरतीलोक से यहां स्वर्ग मे आया था, लेकिन वहां मेरा मन नहीं लगा, लिहाजा मै तो जानबूझ कर नरक में ट्रांसफर लिया हूं।

उनकी इस बात से मुझे लगा कि अब यहां कुछ खबर मिल सकती है। लिहाजा मैने उनसे थोड़ी देर और बात की तो हैरान करने वाली जानकारी मिली। कहने लगे कि यमलोक में लोग नरक मे आने के लिए उतावले रहते हैं। यहां स्वर्ग तो आसानी से मिल जाता  है, लेकिन नरक में आने के लिए काफी सिफारिश करनी पड़ती है। यहां बताया गया कि स्वर्ग से हो रहे पलायन से यमराज भी काफी परेशान हैं। क्योंकि नरक में सब बिंदास तरीके से रहते हैं, यहां किसी तरह की पाबंदी नहीं है। स्वर्ग में अक्सर धमकी दी जाती है कि ठीक से नहीं रहोगे तो नर्क भेज दिए जाओगे। लेकिन नरक में यमराज भी चुप हो जाते हैं, क्योंकि वो हमें नरक से कहां भेज देंगे। ये नरक ऐसा है कि थोड़े दिन तो जरूर तकलीफ होती है, बाद में लोग खुद को अर्जेस्ट कर लेते हैं, फिर तो मौज ही मौज है। अभी ये बात कर ही रहा था कि मुझे यहां हजारों परिचित दिखाई देने लगे। घर परिवार के लोग तो यहां थे ही, पास- पडोस और यार दोस्त भी दिखाई दिए। सच बताऊं तो थोड़ी ही देर में मैं सबसे इतना घुल मिल गया कि मेरा यहां से आने का मन ही नहीं हो रहा था। बहरहाल कुछ देर बाद यमराज का संदेश मिला कि आपका समय खत्म हो गया है अब आप धरतीलोक पर चले जाएं। वापसी के दौरान वो एक गिफ्ट हैंपर जैसा कुछ मुझे दे रहे थे, मैने उनसे कहा कि अगर देना ही है तो एक वादा कीजिए। यमराज बोले हां बताइये आपको क्या चाहिए, मैने कहा जब भी मैं यहां आऊं, मुझे नरक में एक बैड बिना इंतजार कराए दे दीजिएगा। यमराज मुस्कुराए और कहा डन। आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा। मैं तो बहुत खुश हूं, अब आप सोच लीजिए, कहां रहना है, स्वर्ग में या फिर मेरे साथ नरक में। ( समाप्त )




Wednesday 22 August 2012

ब्रेकिंग न्यूज : यमलोक में हंगामा !


देश की घटिया राजनीति और बाबाओं की नंगई तो आप हमारी नजर से काफी समय से देखते और पढ़ते आ रहे हैं, चलिए आज आपको ऐसी जगह ले चलते है, जहां जाने के बाद कोई वापस नहीं आया। अगर कोई वापस आया भी तो उसे पहचानना मुश्किल हो गया। मसलन वो वहां गया तो मनुष्य शरीर में लेकिन वापस किस शरीर में आया, इस बारे में गारंटी के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। शायद मैं दुनिया का पहला आदमी हूं जो जिस शरीर में गया, उसी में वापस भी आया। मुझे पता है कि आपको भरोसा नहीं होगा, इसीलिए मैं कुछ ऐसी जानकारी जुटा कर लाया हू, जिससे आपको पता चल जाए कि मैं वाकई ऊपर होकर आया हूं।

बहरहाल ऊपर काफी अफरा-तफरी मची हुई है। मुझे लगता था कि बढती आबादी से सिर्फ नीचे ही मुश्किल हो रही है, पर ऐसा नहीं है, ऊपर तो और बुरा हाल है। ऊपर के नियम कायदे सब खत्म हो चुके हैं, खूब मनमानी चल रही है। चित्रगुप्त महराज का अपने ही महकमें के कर्मचारियों पर नियंत्रण नहीं रह गया है, लिहाजा लोगों के छोटे मोटे काम भी आसानी से नहीं हो पा रहे हैं। अच्छा वहां मुझे ना जाने लोग क्या समझ रहे थे कि मैं जैसे ही ऊपर पहुंचा, फूलों के गुलदस्ते से मेरी आगवानी हुई और मेरा यमराज के गेस्ट रूम में रुकने का इंतजाम कर दिया गया। यहां अभी चाय का प्याला उठाया ही था कि कमरे में चित्रगुप्त महराज आ धमके। दुआ सलाम की सामान्य शिष्टाचार के बाद बात घर परिवार की शुरू हो गई। हमारी बात चीत चल ही रही थी कि बाहर से काफी तेज शोर शराबे की आवाज आने लगी। मैं हैरान रह गया, मुझे लगा कि धरतीलोक और परलोक में ज्यादा फर्क नहीं है।

बहरहाल चित्रगुप्त महराज ने मुझसे कहाकि आइये आपको परलोक दिखाते हैं। उन्होंने आंख बंद कर मन में कुछ पढ़ा और बंद मुट्ठी मेरे चेहरे की ओर करके खोल दी, अब हम दोनों अदृश्य हो चुके थे, यानि मैं और चित्रगुप्त महराज तो सबको देख सकते थे, परंतु हम दोनों को कोई नहीं देख सकता था। अब हम काफी ऊंचाई से इस परलोक को देख रहे थे। मैने देखा कि एक ओर भव्य स्वर्ग की इमारत दिखाई दे रही है, दूसरी ओर नर्क। हालाकि नर्क की बिल्डिंग भी सामान्य नहीं थी। स्वर्ग और नर्क के सामने ही एक बहुत बड़ा मैदान दिखाई दे रहा है, यहां करोडो लोग बैठे भजन कीर्तन कर रहे हैं। यहीं इन सबके बीच एक आदमी जोर जोर से शोर शराबा कर रहा है, कहां है यमराज, चित्रगुप्त कहां बैठे हैं, जब काम नहीं कर सकते तो चले जाएं यहां से। क्यों वो जनता को परेशान कर रहे हैं।

मुझसे रहा नहीं गया, तब मैने चित्रगुप्त से कहाकि आप अपना काम देखिए, मैं थोड़ी देर अकेले यहां समय बिताना चाहता हूं। उन्होंने कहा हां क्यों नहीं, जाइये घूमिये। सच तो ये है कि मुझे ये जानने की उत्सुकता थी कि आखिर ये आदमी देखने से काफी शरीफ और पढा लिखा लग रहा है, लेकिन उसे ऐसी क्या तकलीफ है जो शोर मचा रहा है। मै सीधे उसी के पास पहुंचा और पूछ लिया कि क्या हो गया है आपको, क्यों शोर मचा रहे हैं। उसने बताया कि मेरा नाम पंडित योगराज है। जीवन में मैने आज तक कोई गल्ती नहीं की। बहुत ही सादा जीवन जीता रहा हूं, मंदिर का पुजारी रहा हूं, दिन भर कथा कीर्तन करता रहा। कुछ दिन पहले मैं एक सड़क दुर्घटना में घायल हुआ और धरती पर गाजियाबाद के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुआ। इलाज के दौरान मेरी मौत हो गई और अब मैं यहां हूं। मैने आज तक कोई गलत काम नहीं किया, इसलिए लगा कि मुझे तो स्वर्ग मे ही रखा जाएगा, मैने स्वर्ग के काउंटर पर पता किया तो बताया गया कि मेरा नाम तो यहां दर्ज ही नहीं है। फिर मैने सोचा कि कई बार आदमी से अनजाने में गल्ती हो जाती है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि अनजाने में हुई गल्ती के लिए मुझे कुछ दिन नर्क में रहना हो, उसके बाद मुझे स्वर्ग में जगह मिले। इसके लिए मैने नर्क के काउंटर पर पता किया, लेकिन वहां भी मेरा नाम नहीं है। यहां कोई कुछ सुनता ही नहीं है। दो दिन हो गए हैं मुझे यहां आए हुए पानी तक नहीं पूछा जा रहा है। मुझे पंडित जी की बात में दम लगा और मैने उनसे कहा आप घबराइये नहीं, मैं कुछ करता हूं। अब पत्रकारिता की ऐंठ एक-दम से तो जाती नहीं है, वो तो जाते जाते ही जाएगी। बस मैने तुरंत अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और इसे यमराज को देने को कहा। यमराज दफ्तर में पहली बार मीडिया को देख सब हैरान रह गए, किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। सब एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे। मैने देखा कि सब डर रहे हैं तो मैं एक कदम और आगे बढ़ा और बोला देख क्या रहे हो, कार्ड पहुंचाओ और बताओ कि महेन्द्र श्रीवास्तव आए हैं।

मन ही मन सोच रहा था कि आज अगर यमराज मिल गए तो ब्रेकिंग न्यूज तय है। ये कोई छोटी बात थोड़े थी कि धरतीलोक से मौत के बाद आदमी यहां आया हो और दो दिन से उसे खाना तो दूर पानी तक नसीब नहीं हुआ हो। वैसे भी हमारे चैनल में इमोशनल स्टोरी ज्यादा पसंद भी की जाती है, फिर ये तो एक्सक्लूसिव स्टोरी भी थी। बहरहाल पांच मिनट में ही मैं यमराज के साथ बैठा था और पंडित योगीराज मेरे बगल में खड़े थे। मैने यमराज से कहा कि वैसे तो मैं यहां बस यूं ही घूमने आ गया था, मुझे लगता था कि यहां एक आदर्श सिस्टम के तहत काम धाम चल रहा होगा, पर क्या कहूं, मै तो हैरान हूं, यहां का हाल देखकर। यमराज मेरे  सवाल और तेवर से पसीने पसीने नजर आए। उन्होंने रुमाल से अपना चेहरा साफ किया और तुरंत चित्रगुप्त को तलब कर लिया। चित्रगुफ्त आए तो यमराज ने उनसे पूछा, ये सब क्या हो रहा है, आप आजकल कुछ लापरवाह होते जा रहे हैं, लगातार शिकायतें मिल रही हैं। बेचारे चित्रगुफ्त खामोश खड़े रहे। यमराज बोले अब देख क्या रहे हैं, योगीराज का रिकार्ड चेक कीजिए और मुझे पूरी जानकारी दीजिए।

चित्रगुप्त ने पहले स्वर्ग का रिकार्ड देखा, यहां वाकई उनका नाम शामिल नहीं था, नर्क  के रिकार्ड में भी योगीराज नहीं थे। परेशान चित्रगुप्त ने कहा कि योगीराज का जन्म से लेकर पूरा रिकार्ड चेक किया जाए। यहां मामला पकड़ में आ गया। दरअसल योगीराज की उम्र 70 साल तय की गई थी और वो 40 साल में ही ऊपर आ गए। ऐसे मे भला उनका नाम स्वर्ग या नर्क में कैसे आ सकता था। बस फिर क्या था, तमाम अभिलेखों के साथ चित्रगुप्त यमराज के पास पहुंचे, जहां मैं भी योगीराज के साथ मौजूद था। चित्रगुप्त ने कहाकि गल्ती  धरतीलोक पर होती है और आप बिना कुछ जाने हुए हमारे काम काज  पर  उंगली उठाते हैं। देखिए योगीराज की उम्र 70 साल थी और ये यहां 30 साल पहले यानि 40 साल की उम्र में ही आ गए। इसके पहले की यमराज कुछ बोलते, पं. योगीराज चिल्लाने लगे, अब इसमें हमारी क्या गल्ती है। मैं तो दुर्घटना के बाद सरकारी अस्पताल में भर्ती भी हुआ था, इलाज के दौरान मेरी मौत हुई है। मैं यहां कोई अपनी मर्जी से तो आया नहीं हूं।

चित्रगुप्त ने समझाया, देखिए गल्ती तो सरकारी अस्पताल के डाक्टर की है, उसने आपका इलाज ठीक से नहीं किया। योगीराज पूरी बात सुने बिना बीच में ही बोलने लगे, जब आपको पता चल गया कि मेरी गल्ती नही है और गल्ती डाक्टर की है तो उसे सजा दीजिए, मुझे स्वर्ग में रहने की इजाजत दी जानी चाहिए। चित्रगुप्त बोले, धरतीलोक और परलोक में कुछ तो अंतर रहने दीजिए। यहां नियम कायदे से ही सब काम होंगे। ये सही है कि आप वाकई एक अच्छे इंसान हैं, आप पर किसी तरह का कोई दाग धब्बा नहीं है, और आपको स्वर्ग में ही रहना है। लेकिन हम आपको अभी स्वर्ग में जगह नहीं दे सकते। अभी  तो 30 साल बाहर मैदान में आपको बीतना होगा। 30 साल बाद आपको स्वर्ग में जगह मिल जाएगी। उन्होंने कहाकि आप बाहर मैदान में देख रहे है ना, करोडों लोग भजन कीर्तन कर रहे हैं, इसमें से 80 फीसदी ऐसे ही केस हैं, जो यहां अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। और हां रही बात डाक्टर की तो उसे तो नरक में भी जगह नहीं मिल पाएगी।

मैं और यमराज ये बातें सुन रहे थे। यमराज बोले श्रीवास्तव जी, आपने देखा धरतीलोक पर  क्या क्या हो रहा है। हम यहां की व्यवस्था देखें या फिर धरतीलोक की। यमराज ने घर में आवाज दी और दो कप चाय लाने को कहा। योगीराज से कहा कि ठीक है ना, आपकी बात हो तो गई, अब क्या देख रहे हैं, जाइये मैदान में कथा कीर्तन कीजिए। मैं भी कुछ नहीं बोल  पाया, मेरी तो ब्रेकिंग न्यूज भी मारी गई। अब बेचारे योगीराज चुपचाप कमरे से बाहर चले गए। चित्रगुफ्त को भी यमराज ने जाने को कहा। कमरे में सिर्फ हम और यमराज रह गए। उन्होंने अपने लैपटाप पर मुझे स्वर्ग और नर्क के कमरे दिखाए और कहा कि यहां स्वर्ग और नर्क में ज्यादा फर्क नहीं है, दोनों ही जगह लगभग एक सी ही सुविधा है। लेकिन धरतीलोक पर इतना पाप बढ़ गया है कि व्यवस्था बनाने में बहुत मुश्किल हो रही है। उन्होंने मैदान में कथा कीर्तन कर रहे करोडों लोगों की ओर इशारा करते हुए कहाकि बताइये इन बेचारों की कोई गल्ती नहीं है, फिर भी यहां इन्हें खुले मैदान मे सोना पड़ रहा है। इतना ही नहीं इन करोड़ों लोगों  का अतिरिक्त भार भी हमारे ऊपर आ गया है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए रोज का भोजन पानी का इंतजाम कोई  छोटा काम थोड़े ही है।

बात-बात में यमराज ने खुलासा किया कि यहां होने वाली भीड़ को रोकने के लिए ही धरतीलोक पर तमाम अस्पताल खुलवाए गए हैं। दरअसल अस्पताल  भी नर्क की ही ब्रांच  हैं। मकसद ये था कि बड़े बड़े पापी वहीं अपने पापकर्मों को भोगें। लेकिन बेईमान डाक्टरों ने इस व्यवस्था को चौपट कर दिया है। जिनकी उम्र पूरी हो गई है, वो अस्पताल के वीआईपी वार्ड में मौज कर रहे हैं, जिन्हें जिंदा रखना है, वो सही इलाज ना मिलने से यहां आ जाते हैं। यमराज ने एक हैरान कर देने वाली जानकारी भी दी, कहने लगे कि 95 प्रतिशत डाक्टर अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं, लिहाजा उनका नाम नर्क की सूची में शामिल कर दिया गया है।

वापस लौटने के दौरान उन्होंने कहाकि आप नीचे जा रहे हैं तो लोगों को एक बात जरूर सब को बताइयेगा। मैने पूछा वो क्या। बोले कि अगर कोई आदमी खुद अच्छा काम कर रहा है, ये पर्याप्त नहीं है, उसे सोसाइटी को भी बेहतर करने में योगदान देना होगा। उन्होंने कहाकि आप सड़क पर जा रहे हैं, आप तो गाड़ी सही चला रहे हैं,  लेकिन सामने से आ रहा आदमी अगर गाड़ी सही नहीं चला रहा तो भी दुर्घटना हो जाएगी, इसमें किसी की भी जान जा सकती है। लिहाजा खुद ठीक से ड्राइव करें और लोगों को भी सही तरह गाड़ी चलाने को प्रेरित करें।

( नोट: अगली कड़ी में बताऊंगा कि वहां नेताओं और आतंकवादियों का जीवन स्तर कैसा है, लोग क्या कर रहे हैं, कितने ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र पूरी हो चुकी है, लेकिन वो धरतीलोक पर ही रहने को क्यों मजबूर हैं ? )   
    

Friday 17 August 2012

साध्वी फिर पहुंची बलात्कारी स्वामी के पास !

साध्वी चिदर्पिता एक बार फिर खबरों में हैं। ज्ञान की बड़ी-बड़ी बाते करने वाली चिदर्पिता ने प्रेम विवाह में आई खटास के बाद फिर बलात्कारी स्वामी की शरण में ही जाना बेहतर समझा। एक बात बता दूं बलात्कारी स्वामी मैं नहीं कह रहा है बल्कि खुद चदर्पिता ने उनके खिलाफ शाहजहापुर की कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई है। उस रिपोर्ट में स्वामी पर तमाम गंभीर आरोप लगाए गए हैं। चलिए पहले यही बात कर लेते हैं कि चिदर्पिता ने स्वामी चिन्मयानंद पर क्या क्या आरोप लगाए हैं।

साध्वी का आरोप है कि चिन्मयानंद कई मामलों का दागी है, उसने मेरे साथ बलात्कार तो किया ही, दो बार जबरन गर्भपात तक कराया। उसने तो मुझे बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि साध्वी कहती है कि चिन्मयानंद बलात्कारी स्वभाव का ही है, उसने सिर्फ मेरे साथ ही नहीं बल्कि दर्जनों दूसरी लड़कियों को भी बर्बाद किया है। वह वहशी दरिंदा और मानसिक रूप से बीमार भी है। वो तो चार से छह साल की बच्चियो तक से कुकर्म करता है। चिन्मयानंद से अनबन हो जाने के बाद साध्वी ने यहां तक कहा कि " ये बुढ्ढा लड़की के बगैर रह ही नहीं सकता, उसके सभी आश्रम में लड़कियां हैं, लेकिन वो वासना का ज्यादा खेल मुमुक्ष आश्रम में करता है।  लड़कियों को गर्भवती करने के बाद कभी उसकी शादी किसी गरीब ब्राह्मण से तो कभी अपने नौकर चाकर या फिर गनर से कर देता है। साध्वी ने कुछ लड़कियों के नाम भी गिनाये, जिसमें अन्नू, ऊषा,पिंकी, अलका जैसे नाम लिए। "

सवाल उठता है कि जब वहां का माहौल इतना खराब था तो ये साध्वी वहां स्वामी जी के साथ कैसे रह रही थीं। साध्वी कहती है कि वो हमेशा गुंडो से घिरी रहती थी, वहां वो आजाद कत्तई नहीं थी। अंदर से उबल रहीं थी, लेकिन मजबूरी में सब कुछ करना पड़ रहा था। हालाकि साध्वी स्वीकारती हैं कि वो तो स्वामी जी को 2003 में ही पहचान गईं थी। स्वामी जब भी नई लड़की को लाते, आश्रम में उसे पोती या फिर भतीजी बताया जाता और कुछ दिन बाद वो लड़की गायब हो जाती। बहरहाल साध्वी की बातों से साफ है उनके साथ 10 साल से अनैतिक व्यवहार या कहें कुकुर्म उसकी मर्जी के खिलाफ स्वामी चिन्मयानंद करते रहे और वो कुछ कर भी नहीं सकती थी, क्योंकि स्वामी के गुंडो से घिरी रहती थी। हां साध्वी ने कुछ घिनौनी बातें भी इस स्वामी के बारे में की और कहा कि वो अर्धनग्न होकर लड़कियों से मालिश कराया करते थे।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि साध्वी ने चिन्मयानंद के बारे में जिस तरह की तस्वीर खींची, उसके बाद उन्हें संत, सन्यासी तो दूर इंसान कहना भी ठीक नहीं। स्वामी को अगर गेरुवा वस्त्र में एक जीता जागता राक्षस कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बहरहाल आश्रम में रहते हुए आश्रम की बाहरी दुनिया से साध्वी भी खूब जु़ड़ी रहीं और उन्होंने चिन्मयानंद की जानकारी के बगैर चुपचाप बी पी गौतम नाम के आदम की साथ शादी तक कर ली। शादी के बाद  ही उन्होंने चिन्मयानंद के खिलाफ आग उगलना शुरू किया। सवाल उठता है कि दिल्ली की कोमल गुप्ता यानि साध्वी चिदर्पिता आखिर स्वामी के शरण में किस मकसद से आई थीं ? इस बात का जवाब वो देती हैं कि मैं तो सन्यासी बनने आई थी, लेकिन जब भी वो इसकी बात करती थीं, चिन्मयानंद टाल मटोल करते थे। मैडम कोमल आप जितनी चालाकी से सारी बातें कहतीं हैं उसे यूं ही भला कोई कैसे मान सकता है ? साध्वी खुद को पाक साफ बताती हैं लेकिन जब उनसे कहा जाता है कि आपने जिस बी पी गौतम के साथ शादी की. वो पहले से शादी शुदा है और उसके एक बच्चा भी है। इस पर साध्वी जवाब जवाब देती हैं कि गौतम उनका जीवन है, इससे मुझे ताकत मिली है, जिससे इस राक्षस स्वामी से लड़ सकूं।

हाहाहहाहा राक्षस से लड़ने के लिए साध्वी ने आश्रम से भाग कर शादी की और लगभग आठ महीने गृहस्थ जीवन का सुख भोगा। लेकिन साध्वी की शादी शुदा जिंदगी भी पटरी से उतर गई। साध्वी भाग कर हरिद्वार में उसी स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम चली गईं, जिसे वो बलात्कारी बताती थीं। घर से भागने की वजह भी मजेदार है। कहती हैं कि उनकी तवियत ठीक नहीं थी, और गौतम ने उसे कईं चाटे जड़ दिए। मार पीट की वजह से वो घर से बाहर निकली और पड़ोसी की मदद से थाने जाकर पूरा मामला दर्ज कराया और अगले दिन पुलिस की मदद से अपना सामान लेकर हरिद्वार निकल गईं। आरोप ये भी कि गौतम ने उनके सारे पैसे उडा दिए अब गहने बेचने को दबाव बना रहा था। साध्वी इसके लिए तैयार नहीं हुई, इसी वजह से ये मार पीट होती रही। अब साध्वी ने पति के खिलाफ बकायदा मार पीट, दहेज उत्पीडन जैसे गंभीर मामले में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और अपना पता स्वामी जी का वही ममुक्ष आश्रम बताया है, जहां स्वामी जी ज्यादा बलात्कार किया करते हैं।
अब साध्वी से मेरा सवाल है। आप जानती हैं कि स्वामी चिन्मयानंद आपको सन्यास नहीं धारण कराने जा रहे हैं, आपने खुद ही ऐसा इल्जाम उनके ऊपर लगाया है। फिर वहां इस बार जाने का मकसद क्या है। आपके साथ स्वामी बलात्कार करते रहे हैं, आपने खुद अपनी एफआईआर में ये बात कही है, आपने खुद कहा है कि आपको दो बार गर्भपात कराना पड़ा। आप खुद कहती हैं कि आश्रम में सिर्फ उनके साथ ही नहीं बल्कि और लड़कियों के साथ भी स्वामी बलात्कार करते हैं। इतना कुछ जानते हुए अब आप फिर उसी नर्क में खुद क्यों जा रही हैं ? आपको पता है ना कि स्वामी आपसे शादी तो कर नहीं सकते, स्वामी के आचरण के बारे में आपने ही दुनिया को जानकारी दी, फिर क्या अब ये समझा जाना चाहिए कि अब आपको बलात्कार से कोई परहेज नहीं है, क्योंकि आप शादी शुदा जिंदगी खुद छोड़कर फिर वहां गई हैं। वरना तो साध्वी जी आप अपना साध्वी का लिबास वहीं हरिद्वार में विसर्जित कर इंदौर में अपने प्रिय भाई के पास या फिर दिल्ली अपने घर चली आती और कोमल गुप्ता के नाम से नई जिंदगी की शुरुआत करतीं। लेकिन लगता है कि आप बनावटी साध्वी हैं, गंगा माता में ऐसी आस्था दिखाती है कि क्या कहने। सच कहूं तो गंगा माता से दूरी बना लीजिए। मइया अनजाने में हुए पाप को धोती हैं, जानबूछ कर किए गए पाप को वो धोएंगी, मुझे नहीं लगता।
अच्छा सवाल तो स्वामी चिन्मयानंद पर भी उठने लाजिमी हैं। साध्वी ने आपकी इतनी थू थू कराई। बताया कि आप लड़कियों के शौकीन हैं। बिना लड़की के आप रह नहीं सकते। आप अर्धनग्न होकर लड़कियों से मालिश कराते हैं। क्या आरोप इस साध्वी ने आपके ऊपर नहीं लगाया। यहां तक की अभी आपके खिलाफ शाहजहांपुर में साध्वी की रिपोर्ट पर कार्रवाई विचाराधीन है। आप गिरफ्तार ना हो जाएं, इसलिए आपको न्यायालय की शरण लेनी पड़ी है और न्यायालय ने आपकी गिरफ्तारी पर रोक लगा रखा है। स्वामी जी कहीं आपको ये भय तो नहीं सता रहा कि आने वाले समय में कुछ भी हो सकता है, लिहाजा अभी इस साध्वी को गले लगाकर पहले सारे मामले वापस कराए जाएं। उसके बाद तो इस साध्वी से निपटना कोई मुश्किल नहीं रह जाएगा। वैसे भी अब साध्वी अपनी विश्वनीयता खो चुकी है। वरना जिस आश्रम को वो नरक बता रही थी, जहां का स्वामी बलात्कारी है, वो वहां दोबारा भाग कर ना आती।

खैर सच्चाई क्या है, ये सबको पता है। सच बताऊं तो आजकल देश में कांडा ही कांडा है। कोई कांडा नौकरी देने की फीस वसूलता है, कोई कांडा नौकरी बचाए रखने की फीस वसूलता है। प्रमोशन में भी कांडाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सरकारी गैरसरकारी संस्थाओं में तो कांडा अपनी पहले से ही पकड़ बना चुके हैं, लेकिन अब देख रहा हूं कि गेरुवा वस्त्र में ज्यादा खतरनाक कांडा हैं। नित्यानंद की कांडागिरी सबको पता है, अब स्वामी चिन्मयानंद की कांडागिरी भी लोगों के सामने आ गई है। अच्छा कांडा की ताकत भी देखिए, इनका आसानी से बाल बांका भी नहीं हो पाता। हरियाणा के पूर्व मंत्री यानि असली कांडा को पुलिस क्या पकड़ पाएगी जब लाखों नकली कांडा अलग अलगे वेष में अपनी जड़े मजबूत कर चुके हैं। मस्त रहो स्वामी जी, अब तो साध्वी खुद आई है आपके पास कोई कुछ नहीं कह सकता। हां समाज में चेहरा दिखाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। जय हो कांडा।

 




Tuesday 14 August 2012

ये बाबा बड़बोला है ...

पांच दिन उपवास के बाद बाबा रामदेव आज बोरिया बिस्तर समेट कर हरिद्वार चले गए, लेकिन जाते जाते उन्होंने कहा कि उनकी जीत हुई है। अब ये पेंच फंसाकर वो तो दिल्ली से खिसक लिए, यहां लोग यही सोच रहे हैं अगर बाबा की जीत हुई है तो हार किसकी हुई, क्योंकि ये तो संभव ही नहीं है कि किसी के हारे बगैर किसी की जीत हो जाए। मैने जो देखा अगर उसके आधार पर आंदोलन को देखा जाए तो मैं कह सकता हूं कि अगर बाबा की जीत हुई है तो उनके चेलों की ही हार हुई होगी। आप कहेंगे वो कैसे ? मैं बताता हूं। बेचारे इतनी दूर से यहां आए थे कि बाबा कुछ बढिया बातें करेंगे, आंदोलन को और आगे कैसे ले जाएं इसका मंत्र देंगे, लेकिन ये क्या ? ना कोई नई बात, ना कोई मंत्र, ना कोई विजन बस पांचो दिन पागलपन, पागलपन और पागलपन। मैने एक आंदोलनकारी से पूछा आप यहां से क्या लेकर जा रहे हैं, बड़ा ही साधारण सा दिखने वाले इस आदमी ने कहा "कुच्छो नहीं, बस दू ढाई सौ सीडी ले जा रहे हैं।" मैने कहा सीडी ले जा रहे हैं ? बोला "हां हम आश्रम की दवाएं बेचते हैं, केवल उसके बिकने से पेट नहीं भरता है, तो सीडी वीडी भी बेच लेते हैं।"

हां एक नई बात मुझे जरूर दिखाई दी। इस बार बाबा थोड़ा नंगई पर उतारू दिखे। भाषा की मर्यादा की तो उन्हें कत्तई फिक्र थी ही नहीं। कहने लगे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उन्हें शर्म महसूस होती है और फर्जीवाड़े में फंसे अपने चेले बालकृष्ण पर उन्हें गर्व होता है। हैरानी तो इस बात की कि बालकृष्ण की तुलना वो शहीदों से करते रहे और कहा कि जेल जाना तो आंदोलनकारियों का सपना होता है। अरे बाबा कम से कम ऐसी बातें करो जिससे  लोगों में तुम्हारी विश्वसनीयता बनी रहे। अभी भी नहीं मान रहे हैं कि बालकृष्ण फर्जीवाडे में फंसा है। वो पढा लिखा नहीं है, गलत ढंग से खुद को आचार्य बता रहा है। गलत नागरिकता बताकर उसने ना सिर्फ पासपोर्ट हासिल किया है, बल्कि इसी पासपोर्ट से कई बार विदेशों की यात्रा भी की है, और अब उसी फर्जीवाड़े के पकड़े जाने के बाद वो जेल की सजा काट रहा है। सच तो ये है कि ऐसे आदमी से तो बाबा को अलग हो जाना चाहिए था, लेकिन कैसे अलग हो सकते हैं। कहावत है ना चोर- चोर मौसेरे भाई। दरअसल इसके पीछे कुछ दूसरे ही राज है। आपको पता होगा कि अगर बालकृष्ण चाहे तो रामदेव को पतंजलि आश्रम से बेदखल कर सकता है, क्योंक आश्रम, विश्वविद्यालय से लेकर सभी कंपनियां उसी के नाम से है। बस यही वजह है कि बालकृष्ण कितना बड़ा अपराध क्यों ना कर लें, बाबा उसका साथ नहीं छोड़ सकते।
 अब देखिए ना आंदोलन स्थल यानि रामलीला मैदान में तमाम ऐसे बैनर लगाए गए जिसमें शहीदे आजम भगत सिंह, चंद्रशेखर समेत अन्य के चित्र छोटे थे और बीच में फर्जीवाडे में फंसे बालकृष्ण की तस्वीर और वो भी शहीदों से बड़ी साइज में लगा दी गई। इतना ही नहीं इसी बैनर में हत्या के आरोप में जेल जा चुके जयेन्द्र सरस्वती की तस्वीर भी लगाई गई थी। इस बैनर को जो भी देखता वही हैरान हो जाता था। सब को लगने लगा कि अब बाबा अपने चेले को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो रहे हैं। कुछ भी हो बालकृष्ण ने अपराध किया है और वो किसी राजनीतिक या सामाजिक आंदोलन में जेल नहीं गया है, बल्कि फर्जीवाडा यानी 420 में जेल गया है। ऐसे में शहीदों की तरह सम्मान करना बचकानी हरकत है। लेकिन भाई बाबा की मजबूरी है, वो अपराधी ही क्यों ना हो, बाबा गले लगाए रखेंगे और ईमानदारी पर भाषण भी देंगे। बाबा को अपने इस दोहरे चरित्र पर शर्म नहीं आती, बालकृष्ण की पैरवी करने पर भी उन्हें शर्म नहीं आती, शर्म आती है मनमोहन सिंह पर।

वैसे इस बार बाबा डरे हुए थे। हालांकि उसकी वजह खुद बाबा है। पिछली बार दिल्ली की पुलिस ने बाबा को पीटा नहीं था, बस धक्का मुक्की कर उन्हें जीप में डाल दिया था। लेकिन बाबा ने पूरे देश में हल्ला मचाया कि पुलिस ने उन्हें खूब पीटा। इतना ही नहीं  उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पुलिस के जरिए उनकी हत्या कराना चाहती थी। बाबा ये अनाप शनाप बोल तो गए, अब एक बार फिर वो दिल्ली पुलिस के पास थे। रामदेव को खुद ये लग रहा था कि कही पुलिस वाले उनकी पिछली  गल्तियों का बदला ना लें और इस बार सच मे ही ना लठिया दें। यही वजह थी कि पहले तीन दिन बाबा सरकार के सामने याचक की भूमिका में थे। आप भी सुनिए क्या कहते थे बाबा.. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाधीं को पूज्यनीया माता जी और राहुल गांधी को आदरणीय भाई राहुल गांधी का संबोधन देकर अपने मंच पर आमंत्रित कर रहे थे। बार बार कहा कि वो यहां किसी पार्टी या सरकार के खिलाफ उपवास नहीं कर रहे हैं। सरकार बाबा के प्रति आक्रामक ना हो जाए, इसलिए पहले ही घोषणा कर दी कि इस बार उनका आंदोलन सांकेतिक है, इसलिए महज तीन दिन  उपवास रखा जाएगा। सरकार के करीब आने के लिए यहां तक कहा कि सरकार लोकपाल बिल पास करें और उसमें जो कमियां रह जाएंगी, उसे बाद में संशोधित कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री को अन्ना के सहयोगी बेईमान बता रहे थे, लेकिन रामदेव खुले मंच से उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे रहे थे।

इन सबके बावजूद कांग्रेस और सरकार ने तय कर लिया था कि रामदेव से बात करनी ही नहीं है, क्योंकि ये आदमी विश्वसनीय नहीं है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बातचीत मे बताया कि हम रामदेव के योग और उनके संत होने की वजह से उनका आदर करते थे। यही वजह है कि पहले आंदोलन के दौरान उनसे मिलने एयरपोर्ट पर प्रणव दा जैसे वरिष्ठ मंत्री भी गए। लेकिन ये  बाबा  दूसरे राजनीतिक दल और संगठन के लिए काम कर रहे हैं,लिहाजा इनसे बात करने का कोई मतलब ही नहीं है। तीन दिन तक लगातार बाबा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से सरकार को लुभाने की कोशिश करते रहे, लेकिन सरकार ने तय कर लिया था कि इनसे कोई बात नहीं की जाएगी, इनसे जो भी बात होगी वो सिर्फ और सिर्फ पुलिस करेगी। वही हुआ भी, वर्दीधारी ही रामदेव के पास जाते रहे और उन्हें याद दिलाते रहते कि उन्हें पुलिस से किया हुआ वादा याद रखना चाहिए। दरअसल बाबा से जब कोई बात करने नहीं आया, तो बाबा को लगा कि देश को जवाब क्या दें, फिर उन्होंने माहौल थोड़ा गरमाने की साजिश रची और तय किया कि संसद का घेराव करने का ऐलान करते हैं। ये तय है कि पुलिस वहां तक जाने नहीं देगी और सभी को हिरासत में ले लिया जाएगा। जहां हिरासत में लिया जाएगा, हम वहीं धरना देखर बैठ जाएंगे और फिर शोर शराबे के बीच कार्यक्रम का समापन कर दिया जाएगा।

लिखी हुई स्क्रिप्ट की तरह कल सोमवार को बाबा लोगों के साथ संसद की ओर निकले, फिर रास्ते में रोक लिए गए और रामलीला मैदान से निकल कर अंबेडकर पार्क में आ गए। अब पार्क में भी उन्होंने पूरा माहौल खराब करने की कोशिश की, वो चाहते थे कि यहां भी हल्का फुल्का पुलिस सीन क्रिएट करे, इसके बाद यहां से रवानगी हो। पहले उन्होंने मांग रखी कि सभी आंदोलनकारियों को खाना और पानी दें। सवाल ये है कि हिरासत में लेने के आधे घंटे बाद जब पुलिस ने सभी को मुक्त कर दिया तो किस बात का खाना पानी ? फिर बाबा जी आप तो अनशन करने आए हो, आपकी मांग कालेधन को वापस लाने की है, लेकिन ये क्या सारी मांगे पीछे छोड़ आप खाना पानी की मांग पर अड़ गए। खैर पुलिस को ना देना था ना ही दिया गया। बाद में बाबा के चेलो ने ही कुछ इंतजाम किया, फिर भारी मच्छरों के बीच किसी तरह रात बीती।

आज सुबह बाबा पूरी तरह पटरी से उतरे नजर आए। वजह सरकार की ओर से पुलिस के अलावा कोई उनसे बात करने को तैयार ही नही था। एक मंत्री से तो जब पूछा गया कि रामदेव की मांग पर कोई विचार हो रहा है तो मंत्री ने उल्टा पत्रकारों से ही पूछा कौन रामदेव। आप समझ सकते हैं कि जब मंत्री ये पूछने लगे कि कौन रामदेव, तब ये जान लेना चाहिए कि सरकार इनसे कोई बात करने वाली नहीं है। जैसे जैसे समय बीत रहा था रामदेव की खिसियाहट बढ़ती जा रही थी,जो उनके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। जब उन्हें लगा कि कांग्रेस या फिर सरकार से कोई बात नहीं करने वाला तो उन्होंने सुर बदल लिया। अब उनकी पूज्यनीय सोनिया गांधी पूज्यनीय नहीं रह गईं। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री होने पर उन्हें शर्म आती है। फिर उन्होंने नारे लगवाए कि कांग्रेस हराओ और देश बचाओ। यानि अब ये बाबा पूरी तरह बेनकाब हो चुके थे, क्योंकि पहले दिन कह रहे थे कि वो किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है, फिर पल्टी कैसे मार गए। कहने लगे कि आज कालेधन पर सदन मे चर्चा हो जाए तो सरकार गिर जाएगी। अरे बाबा जैसा की आप दावा है कि आपके मुद्दे पर सभी आपके साथ हैं, तो वो खुद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को गिरा सकते हैं।
बडबोले बाबा यहीं नहीं रुके कहने लगे कि मैं अगर चाह लूं तो कल प्रधानमंत्री झंडा नहीं फहरा सकते। पता नहीं बाबा को किस बात पर इतना घमंड है। आजकल गोली तो बहुत कम चलानी पड़ती है,पुलिस की लाठी से ही बड़े से बडा आंदोलन टूट जाता है। अब बात स्व. लोकनायक जय प्रकाश की मत करने लगिएगा, क्योंकि लोकनायक बनने का माद्दा ना रामदेव में है और ना ही अन्ना में। ये आंदोलन के फुटकर दुकानदार है, फिर अन्ना ने जिस तरह से अपना आंदोलन खत्म किया है, उससे सामाजिक आंदोलनों को गहरा झटका लगा है। बहरहाल कुछ वैसा ही हाल रामदेव के आंदोलन का भी रहा। भन्नाए रामदेव ने कहा कि अब भूखे रह कर नहीं खा पीकर आंदोलन करेंगे। हाहाहहाहाह। कौन जाने आप भूखे थे खा पीकर आंदोलन कर रहे थे, कोई डाक्टरी जांच तो चल नहीं रही थी। बहरहाल रामदेव 2014 में कांग्रेस का विरोध करने का संकल्प लेकर यहां से हरिद्वार के लिए रवाना हो गए, लेकिन सपोर्ट किसका करेंगे, ये पत्ते अभी नहीं खोले। वैसे रामदेव के मंच पर जिस तरह से बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी और शरद यादव दिखाई दिए, उससे इतना तो साफ है कि बाबा की पसंद एनडीए ही है। बहरहाल ये आंदोलन अब न सिर्फ भटक गया है, बल्कि बाबा के साथ आंदोलन भी पटरी से उतर गया है।

 
          

Thursday 9 August 2012

यमुना एक्सप्रेसवे : टोल टैक्स है या गुंडा टैक्स

दिल्ली में हूं, इसलिए आज बात तो रामदेव की होनी चाहिए थी, लेकिन देख रहा हूं कि रामदेव का आंदोलन थका हारा सा है,लिहाजा इस पर ज्यादा बात करने की जरूरत नही है। इसलिए आज मैं आपसे एक गंभीर मामले की चर्चा करुंगा, एक ऐसी सियासी लूट की कहानी, जिसमें माया और मुलायम में कोई अंतर नहीं है। यमुना एक्सप्रेसवे के नाम पर जिस तरह आम आदमी को पीसा गया है, ये कहानी शर्मनाक है। हैरानी इस बात की है कि राजनीतिक दल वैसे तो एक दूसरे पर बरसते रहते हैं, लेकिन जब मामला मलाई का हो, तो एक ही प्लेट को बारी बारी सब चाटने के लिए तैयार दिखते हैं। यमुना एक्सप्रेसवे की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

एक प्रस्ताव आया कि दिल्ली से आगरा की दूरी कम की जा सकती है, इससे पर्यटन को तो बढावा मिलेगा ही, एक्सप्रेसवे बन जाने से आम जनता को भी सहूलियत होगी। वैसे तो ये प्रस्ताव 2001 में ही आ गया था, और कुछ दिन इस पर काम चला भी, लेकिन सूबे की सियासी उठापटक में ये प्रोजेक्ट पिसता रहा। बहरहाल जेपी ग्रुप ने बुद्धिमानी से काम लिया, उन्हें लगा कि किसी एक पार्टी के सहारे ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सकता। बताते है कि उन्होंने हर पार्टी को मोटा पतला दाना डाला, और सभी आ गए उनके झंडे के नीचे। लेकिन इसमें पहले बेचारे किसान पिसे और अब जनता की बारी है।

यहां के किसानों से औने पौने दाम में जमीन का अधिग्रहण किया गया और अब वही जमीन यमुना एक्सप्रेसवे बन जाने के बाद लोगों को मोटी रकम में दी गई। सड़क के किनारे फूड प्लाजा के लिए मनमानी पैसे के वसूली की गई। चूंकि इस सड़क के नाम में एक्सप्रेस जुडा है, तो आम आदमी की ऐसी तैसी करने की तैयारी कर दी गई। सच तो ये है कि इस सड़क के आस पास की जमीन पर जिस तरह से फूड प्लाजा, माल्स, होटल और रेस्टोरेंट प्रस्तावित हैं, उससे होने वाली आमदनी से ही इसका खर्च आसानी से निकाला जा सकता है, टोल टैक्स की वसूली कोई जरूरी नहीं है। फिर टोल टैक्स वसूला ही जाना था तो इसके रेट व्यवहारिक रखने चाहिए थे। चूंकि ये वसूली का काम भी जेपी ग्रुप को ही करना है, लिहाजा नेताओं ने खुली छूट दे दी। इसका नतीजा ये हुआ कि नोएडा से आगरा जाने के लिए एक तरफ से लगभग 350 रुपये टोल टैक्स के रुप में चुकाने होंगे और वापसी मे भी यही रकम अदा करनी है। इतनी बड़ी रकम को टोल टैक्स कहा जाता है, ये टोल टैक्स नहीं गुंडा टैक्स लगता है।

बीएसपी की सरकार के दौरान ही ये चर्चा शुरू हो गई थी कि इस एक्सप्रेस वे पर मनमानी टोल टैक्स की वूसली की साजिश चल रही है, इस बीच सूबे में सरकार बदल गई और कमान संभाली समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने। इसके बाद लोगों को लगा कि कम से कम टोल टैक्स ऐसा होगा जो देखने में ही व्यवहारिक लगे। लेकिन ये सियासत है, यहां गोरखधंधे में सब नंगे हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही किया समाजवादी पार्टी की सरकार ने और टोल टैक्स के मामले में खुली छूट दे दी। मुझे हैरानी है कि आखिर इतनी बड़ी रकम टोल टैक्स के रुप में वसूलने की इजाजत सरकार ने दे कैसे दी। अच्छा स्थानीय लोगों की सुविधा का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। एक्सप्रेसवे को चालू कराने की इतनी जल्दी थी, लेकिन प्रोजेक्ट में दोनों ओर सर्विस लेन की बात थी, वो अभी अधूरा पडा है।

इतना ही नहीं एक्सप्रेस वे के दोनों ओर केवल तीन फुट ऊंची बाड़ बनाई गई है जो रास्ते पर जानवरों तथा लोगों के अनाधिकृत प्रवेश को रोकने के लिए नाकाफी है। इससे अक्सर जानवर एक्सप्रेस वे पर आ जाते हैं जिससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। हाल ही में एक दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो भी चुकी है। इसलिए बाड़ की ऊंचाई तो हर कीमत पर बढ़ाई ही जानी चाहिए। एक्सप्रेस वे के साथ पांच स्थानों पर 500 एकड़ के भूखण्ड विभिन्न परियोजानाओं के लिए प्रस्तावित है लेकिन टप्पल और आगरा के किसानों से भूमि का समझौता अभी तक नहीं हुआ है और वहां के किसान इस समय भी आन्दोलित हैं। आज इस एक्सप्रेसवे के शुरु होने पर किसानों ने काले झंडे दिखाए और कई स्थानों पर रास्ता जाम कर दिया।

कब क्या हुआ

-निर्माण के लिए सात फरवरी 2003 को सरकार और जेपी समूह के बीच हुआ करार

-प्रोजेक्ट के लिए भूमि हस्तातरण जुलाई 2003 में शुरू

-प्रोजेक्ट से जुड़ी औपचारिकताओं की जाच के लिए जस्टिस सिद्धेश्वर नारायण की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जाच आयोग अक्टूबर 2003 में गठित

-जाच आयोग ने अक्टूबर 2006 में परियोजना को दी मंजूरी

-मार्च 2007 में एक्सप्रेसवे के संरेखण को अंतिम रूप दिया गया

-एक्सप्रेसवे का निर्माण 2007 से शुरू हुआ

-एक्सप्रेसवे के लिए यमुना एक्सप्रेसवे ने सात अगस्त 2012 को कम्प्लीशन सर्टिफिकेट जारी किया

एक नजर में

-लंबाई-165.5 किमी

-चौड़ाई-छह लेन (जिसे आठ लेन तक बढ़ाया जा सकता है)

-लागत-तकरीबन 12 हजार करोड़ रुपये

-टोल प्लाजा-तीन, इंटरचेंज-छह

-वाहनों के लिए अंडरपास-70

-माइनर ब्रिज-41,पेडेस्ट्रियन/कार्ट/कैटल अंडरपास-76, कल्वर्ट-183

टोल टैक्स की दर

-कार, जीप व हल्के वाहन 2.10 रु. प्रति किमी.

-मिनी बस व हल्के कॉमर्शियल वाहन 3.25 रु. प्रति किमी.

-बस व ट्रक 6.60 रु. प्रति किमी.

-भारी वाहन10.10 रु. प्रति किमी.

-विशाल भारी यान  12.95 रु. प्रति किमी.

मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री को एक बार फिर इसके टोल टैक्स की दरों की समीक्षा करनी चाहिए और इसे व्यवहारिक बनाने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए। मुझे लगता है कि इस मामले को मीडिया को भी गंभीरता से उठाना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं हो रहा। मै जानना चाहता हूं कि एक रुपये पेट्रोल  की कीमत बढने पर पूरी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाली मीडिया आखिर इस मामले में खामोश क्यों है ? जनहित के मामले में एक आवाज तो उठनी ही चाहिए..।

 





Tuesday 7 August 2012

गांधीगिरी की आड़ में नेतागिरी ....


गांधीगिरी से नेतागिरी में कदम रखते ही अन्ना सियासी चाल चलने लगे हैं। अन्ना को पता है कि यहां अपनी चालों से ही शह-मात का खेल खेला जा सकता है। बस फिर क्या आज उन्होंने पहला झटका अपनी ही टीम को दिया, और मंजे हुए नेताओं की तरह अपने ब्लाग पर लोगों को जानकारी दी कि अब "टीम अन्ना" को भंग कर दिया गया है, टीम अन्ना नाम का इस्तेमाल भी आगे से नहीं किया जा सकता। इसकी वजह भी अन्ना ने अपने ब्लाग में साफ किया है। उन्होंने कहा कि है जनलोकपाल के लिए टीम अन्ना का गठन किया गया था। चूंकि अब जनलोकपाल की लड़ाई खत्म हो गई है, इसलिए टीम अन्ना का अस्तित्व भी खत्म हो जाना चाहिए। उन्होंने अपनी टीम से भी कहा है कि अब ये नाम खत्म समझा जाए और मीडिया से भी आग्रह किया है कि इस नाम का इस्तेमाल तत्काल बंद हो जाना चाहिए।

अन्ना की बात कुछ हद तक सही है, भाई जनलोकपाल के लिए टीम अन्ना बनी थी, अब जनलोकपाल का मुद्दा फिलहाल स्थगित या समझ लीजिए कि खत्म हो गया है, क्योंकि टीम ने रास्ता ही बदल कर अपना रुख राजनीति की ओर कर लिया है। चूंकि राजनीति तो अन्ना के अलावा बाकी लोग  ही करने वाले हैं, फिर ये नाम वाकई बेमानी है। चलिए अन्ना ने टीम अन्ना को भंग किया, ये ठीक है। लेकिन ये जानकारी उनके टीम के सदस्यों को भी उनके ब्लाग से हुई। किसी को पता नहीं था कि अन्ना ऐसा कदम उठाने जा रहे हैं। अन्ना के इस कदम से कई सवाल उठ रहे हैं। क्या अन्ना टीम के सदस्यों से संतुष्ट नहीं हैं ? क्या अन्ना को लग रहा था कि टीम अन्ना के नाम का दुरुपयोग किया जा रहा है ? क्या उन्हें लग रहा था कि टीम अन्ना के नाम पर कुछ लोग गलतबयानी कर रहे हैं ? बहरहाल सवाल तो खड़ा होगा ही क्योंकि अन्ना ने किया ही कुछ ऐसा है। अच्छा अन्ना ने टीम को भंग करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया कि वो जल्दी ही अपने राजनीतिक दल का ऐलान करने जा रहे हैं या फिर विकल्प की कोई ठोस रुपरेखा पेश करने वाले हैं।

अन्ना ने ब्लाग में इस मसले पर सिर्फ इतना कहाकि ‘‘ मैने संसद मे अच्छे लोगों को भेजने के लिए विकल्प दिया है। लेकिन मैं किसी पार्टी का हिस्सा नहीं बनूंगा और ना ही मैं चुनाव लडूंगा। सबसे बड़ी बात जो अन्ना ने की है वो ये कि जनलोकपाल बन जाने के बाद मैं वापस महाराष्ट्र चला जाऊंगा और अपनी गतिविधियों में संलग्न हो जाऊंगा। अच्छा अन्ना ने अपनी यहां सफाई भी दी है कि मैने पार्टी बनाने वाले लोगों को साफ कर दिया है कि भले राजनीतिक दल बन जाए, लेकिन ये आंदोलन चलते रहना चाहिए। आंदोलन में पहले हमने जनलोकपाल की मांग की थी ओर अब इस आंदोलन को जीवित रखने के लिए लोगों की मदद से अच्छे व्यक्तियों को संसद में भेजा जाना चाहिए,  जिससे कानून बनाना आसान हो जाए। अन्ना ने ब्लाग के जरिए सारी बातें की, लेकिन इशारों इशारों में। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि अन्ना ने आखिर ये बात क्यों कही कि वो जनलोकपाल बिल के बाद वापस महाराष्ट्र चले जाएंगे। क्या वो दिल्ली में खुद को ठगा सा महसूस कर रहे थे ?

अन्ना सच में दिल्ली में खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके  नाम पर ही यहां भीड़ जमा होती है, उनके ही नाम से करोड़ो रुपये जमा हो रहे हैं, आंदोलन की साख मेरे नाम से ही है, जबकि टीम में दूसरे जितने लोग भी अग्रिम पंक्ति में हैं, जैसे अरविंद केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण समेत और लोग कहीं ना कहीं विवादित हैं। अन्ना को लगता है कि इस आंदोलन से उनकी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाया गया, और अब बात इतनी आगे बढ़ गई है कि वापस लौटने पर उनकी ही किरकिरी होगी। लिहाजा अन्ना ने मौका देखते ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी और साफ कर दिया कि अब टीम अन्ना नाम का अस्तित्व में रहना ठीक नहीं है क्योंकि जिस मकसद को लेकर ये टीम बनी थी अब मकसद खत्म हो गया है। बहरहाल अन्ना के मन में क्या है वो तो वही जानें, लेकिन जिस तरह से उन्होंने ब्लाग के जरिए टीम को भंग किया है, उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। खासतौर पर टीम अन्ना की भूमिका को लेकर।

अब एक सवाल जनता की ओर से... देश भर से लोगों ने इंडिया अगेंस्ट करप्सन को करोडों रुपये का चंदा दिया। लोगों ने जो चंदा दिया वो अरविंद केजरीवाल को राजनीति करने के लिए नहीं दिया है, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में मदद करने के लिए दिया है। ऐसे में ईमानदारी तो यही कहती है कि सभी के पैसे वापस कर दिए जाएं। वैसे भी केजरीवाल ईमानदारी की बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हैं, उन्हें तो राजनीति में इसका एक पैसा भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अच्छा ये तो ईमानदारी का दावा करते हैं, इसलिए ऐसा भी नहीं कि इन्होंने चंदा गलत तरीके से लिया होगा, केजरीवाल तो हिसाब किताब के मास्टर हैं,   हमेशा दूसरों से पैसे का हिसाब मांगते रहते हैं फिर उन्हे तो पता होगा ना कि किसने कितना पैसा दिया है। ऐसे में भाई केजरीवाल साहब जनता से पूछ लो कि क्या वो भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने वाले पैसे का इस्तेमाल राजनीति मे इस्तेमाल करने की इजाजत देते भी हैं या नही। अगर नहीं तो उनके पैसे वापस करने का इंतजाम करना चाहिए।

चलिए अब कुछ खरी खरी बातें कर ली जाए। आखिर अन्ना को टीम भंग करने जैसा ऐलान अचानक क्यों करना पड़ा ? क्या अन्ना अपनी ही टीम में खुद को बेगाना महसूस कर रहे थे? क्या अन्ना किसी मजबूरी में टीम के साथ थे ? क्या अन्ना टीम के सदस्यों की कारगुजारी से खुश नहीं थे ? क्या अन्ना अपनी टीम से एक के बाद एक सदस्यों के टीम छोड़ने से दुखी थे ? क्या अन्ना को लग रहा था कि टीम मे सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है ? क्या अन्ना को भी लगने लगा था कि पैसों का हिसाब किताब ठीक से नहीं रखा जा रहा है? सबसे बड़ी बात क्या अन्ना किसी मजबूरी  में टीम के साथ थे ? ये तमाम ऐसे सवाल है जिसका जवाब अब टीम के सदस्यों को देना होगा, क्योंकि अगर ऐसा नहीं था तो अन्ना ने अपने ही साथियों को टीम भंग करने के पहले भरोसे में क्यों नहीं लिया। बहरहाल दिल्ली मे सदस्यों ने मीटिंग कर राजनीतिक पार्टी के सिलसिले में एक प्रीपेशन कमेटी ( तेयारी समिति) गठित कर झेंप मिटाने की कोशिश की है।

वैसे मैने पहले ही इस बारे में सभी को आगाह करने की कोशिश की थी। मैने ये भी बताने की कोशिश की थी अन्ना भी उतने पाक साफ नहीं है। अन्ना हमेशा चरित्र, निष्कलंक जीवन, ईमानदारी के साथ ना जाने किन किन बातों पर जोर देते हैं। लेकिन मै चाहता हूं कि खुद अन्ना ही बताएं कि मुंबई प्रवास के दौरान क्या क्या हुआ। जब वो सिनेमा हाल के बाहर टिकट ब्लैक किया करते थे, जब वो मंदिर के बाहर फूल बेचते थे। उस दौरान क्या क्या हुआ ? ये सारे वाकये खुद अन्ना ही बताएं तो ज्यादा बेहतर है। सेना से अचानक वापस  लौटने पर उन्हें गांव में कैसे शरण मिली, परिवार  के प्रति उनका व्यवहार कैसा रहा, मंदिर मे उन्हें ठिकाना लेने के लिए क्यों  मजबूर होना पड़ा,  महाराष्ट्र पुलिस क्यों उनके पीछे लगी  रही, आर आर पाटिल ने उनकी किस तरह मदद की? इन तमाम सवालों  का जवाब खुद अन्ना दें तो ज्यादा बेहतर है।

चलिए अभी तो दिल्ली की  टीम से अन्ना ने किनारा करने का संकेत दिया है। लेकिन सच ये है कि आने वाले समय मे ये टीम बेनकाब होगी तो सामाजिक आंदोलनों को बहुत ठेस लगने वाला है। जब पता चलेगा कि इस आंदोलन के पीछे किन लोगों का हाथ था, आंदोलन के लिए विदेश की कौन कौन सी संस्थाओं ने फंडिंग किया है। आंदोलन को खड़ा करने में देश के लोगों ने कितना चंदा दिया है और उसका कैसे इस टीम ने दुरुपयोग किया है। ये सारी बातें छिपने वाली नहीं है। मित्रों शायद अब आपको भरोसा हो जाए की बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की ईमारत नहीं खड़ी हो सकती। अब देखिए ना अन्ना गांधीगिरी करते रहे, हम अन्नागिरी में बिजी रहे और टीम नेतागिरी की राह तलाश रही थी।

टूट चुके हैं रामदेव ....

सच तो ये है कि रामदेव को अगर पहले पता होता कि आंदोलन का उन्हें ये खामियाजा भुगतना पड़ सकता है तो शायद वो अपनी दुनिया में मस्त रहते। इस पचड़े में कत्तई ना पड़ते। देखिए ना बेचारे विदेश में आयरलैंड का आनंद भी नहीं उठा पा रहे हैं। वैसे रामदेव को लग रहा था कि देश विदेश में उनके इतने समर्थक हैं,  ये सब देखकर सरकार की सांसे फूल जाएंगी और सरकार उनके आगे अनुलोम विलोम करने लगेगी, लेकिन सरकार ने तो रामदेव और उनके चेलों से सीधे मुंह बात करने के बजाए पुलिस से लाठी ठुकवा दी।

अब सरकार रामदेव के अभिन्न बालकृष्ण को अपने पाले में करने की साजिश कर रही है। रामदेव हमेशा दावा करते रहे हैं कि उनके नाम पर तो कुछ भी नहीं है, इसी बूते पर वो केंद्र सरकार को चुनौती दे रहे थे, लिहाजा अब जेल में बंद बालकृष्ण को सरकार इतना टार्चर करेगी की वो सरकारी गवाह बन जाएं और रामदेव के काले कारनामों का चिट्ठा खोले। अगर बालकृष्ण ने ऐसा करने से इंकार किया तो जाहिर है उन्हे नेपाली टोपी पहना कर देश निकाला करने का रास्ता तैयार किया जाएगा। वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि बालकृष्ण डरपोक है, वो टूट जाएगा। वैसे भी पतंजलि आश्रम में रामदेव के अलावा उसने बहुत सारे लोगों को अपना दुश्मन बना रखा है। ऐसे में बालकृष्ण ज्यादा दबाव झेलने की स्थिति मे नहीं होंगा। जब सीबीआई उसे बताएगी कि उसने जो अपराध किया है उसकी सजा क्या है, जेल में ही चक्की पीसनी पड़ सकती है, तो उसके सामने विकल्प चुनना होगा कि  वो आराम  पतंजलि मे रहना चाहते है या फिर जेल में चक्की पीसेगें।

खैर अन्ना ने जिस तरह अनशन को खत्म किया है, उससे रामदेव पर भी दबाव बन गया है। रामदेव को पता है कि अब सरकार उनसे बात तो करने वाली नहीं है, क्योंकि अन्ना से बात न करके सरकार ने देख लिया कि थोड़ा बहुत हो हल्ला के अलावा कुछ नहीं होने वाला। मीडिया के साथ जिस तरह से अन्ना के चेलों ने गाली गलौच किया है, उससे अब मीडिया भी समझ गई है, इन्हें ज्यादा तवज्जो देने का कोई मतलब नहीं है। बहरहाल आगे आगे देखिए होता है क्या.....  

Thursday 2 August 2012

अधूरी क्रांति की खलनायक टीम अन्ना ....


टीम अन्ना को लेकर आज बहुत सारी बातें करनी हैं, लेकिन इसकी शुरुआत करते हैं अनशन खत्म करने के ऐलान से। अनशन शुरू करने के पहले तो टीम अन्ना बड़ी बड़ी बातें कर रही थी, अन्ना और उनके साथी जान देने की बात कर रहे थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक अनशन खत्म करने का ऐलान करना पड़ा। अब मंच से भले दावा किया जा रहा हो कि देश के 23 वरिष्ठ लोगों ने उनसे आग्रह किया कि अनशन से कुछ नहीं होगा, उनकी जान कीमती है, इसलिए अनशन खत्म कर दें और टीम अन्ना ने बैठक की और आपस मे ही निर्णय ले लिया कि कल यानि तीन अगस्त को पांच बजे अनशन खत्म कर दिया जाएगा। सवाल ये उठता है कि अचानक आंदोलन खत्म करने की बात कहां से शुरू हो गई ? अब जिन लोगों ने अनशन खत्म  करने की अपील की, टीम अन्ना ने उनसे पूछ कर तो अनशन शुरू नहीं किया था, फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि अनशन खत्म करने का ऐलान करना पड़ा?

सच ये है कि पहली बार सरकार ने थोड़ा बुद्धिमानी से काम लिया। अनशन की अनुमति मांगी, अनुमति दे दी गई। अनुमति के लिए दिए गए हलफनामें में जो वादा अन्ना टीम ने किया था, वो उसे तोड़ रहे थे। इस पर सरकार ने खुद कुछ कहने के बजाए, पुलिस को आगे किया और कहा कि जहां कहीं भी कानून की अवहेलना हो तो पुलिस ही उससे निपटे। पुलिस के लिए इस आंदोलन से निपटने की चुनौती थी। इस बीच नवनियुक्त गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सीधे तौर पर भले ही कुछ ना कहा हो, परंतु उन्होंने टीम अन्ना को उनकी लक्ष्मण रेखा की याद इशारों इशारों में जरूर दिला दी। इससे पुलिस को भी बल मिला और पुलिस मुख्यालय पर लगातार बैठकें होने लगीं, और सरकार खामोश रही। पुलिस कार्रवाई की आशंका ने टीम अन्ना को बुरी तरह हिला कर रख दिया। उन्हें मीडिया के कुछ साथियों और सरकारी तंत्र के जरिए सूचना मिलने लगी कि पुलिस कभी भी एक्शन में आ सकती है। उन्हें याद दिलाया गया कि रामलीला मे मैदान में रामदेव के साथ तो रात में हजारों लोग होते थे, फिर भी पुलिस ने उन्हें ठिकाने लगा दिया, यहां तो रात में गिने चुने लोग ही होते हैं। ऐसे में पुलिस कार्रवाई टीम अन्ना को मंहगी पड़ सकती है।

बहरहाल जिस तरह से इस अनशन को खत्म करने का निर्णय लिया गया, इससे टीम अन्ना की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। टीम अन्ना कल तक कुछ लोगों के लिए भले ही हीरो रही हो, पर आज देश के सामने उसकी इमेज एक खलनायक की बन गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे आंदोलन को देशवासियों ने भरपूर समर्थन दिया, इस मुद्दे पर मिल रहे समर्थन से टीम अन्ना बहक गई, टीम के सदस्यों को लगने लगा कि ये समर्थन मुद्दे को नहीं बल्कि उन्हें मिल रहा है। ऐसे में उनका बेलगाम होना स्वाभाविक था। सरकार से तो वो दो-दो हाथ पहले से कर रहे थे, फिर उन्होंने विपक्ष की ईमानदारी पर भी सवाल खड़े करने शुरू किए, चलिए यहां तक सब ठीक था। पर अब ये इतने बिगड़ैल हो गए है, जिस मीडिया ने इनका पूरा आंदोलन खड़ा किए, अब ये उसी मीडिया पर हमला कराने लगे। इन्होंने देखा कि अब मीडिया भी इस आंदोलन से किनारा कर रही है, ऐसे में पुलिस कार्रवाई हुई तो पूरा आंदोलन तितर बितर हो जाएगा। लिहाजा पीछे हट जाना ही बेहतर है।

हां एक बात और....। जब इतना बड़ा आंदोलन चल रहा हो और उसमें आंदोलन की अगुवाई करने वालों की विश्वसनीयता पर उंगली उठने लगे, तब समझ लेना चाहिए आंदोलन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। अरविंद केजरीवाल के साथ ही दो अन्य लोगों पर आरोप लगा कि इनके अनशन में ईमानदारी नहीं है यानि ये सभी अनशनकारी मंच के पीछे बने कैंप में खाते पीते रहते हैं। ये चर्चा जब ज्यादा होने लगी तो मीडिया ने अरविंद से कैमरे के सामने पूछ भी लिया कि आपके अनशन में ईमानदारी नहीं है। इस सवाल पर केजरीवाल भी थोड़ा असहज हो गए, पर बाद में उन्होंने बात को संभालते हुए कहा कि हां डाक्टर भी कह रहे हैं कि उनकी मेडिकल साइंस हमारे अनशन को लेकर फेल हो गई है। बहरहाल देखा गया कि जब से ये बात शुरू हुई, उसके अगले ही दिन से खबर दी जाने लगी कि अनशनकारियों की तबियत बिगड़ रही है और इस आंदोलन को अचानक विराम देने का फैसला सुना दिया गया। बहरहाल ये आंदोलन जिस तरह खत्म हुआ है, इससे देश को दो बड़ा नुकसान हुआ है। एक तो भ्रष्टाचार के खिलाफ देश भर में बने माहौल पर पानी फिर गया दूसरे अब ऐसा आंदोलन खड़ा करना आसान नहीं होगा। दूसरे लोग सड़क पर उतरने के पहले सौ बार सोचेंगे।

वैसे अगर आप इस आंदोलन को शुरू से देखें तो लगातार इस पर आरोप लगता रहा है कि इनके आंदोलन के पीछे कुछ छिपा एजेंडा है। ये बात आज साबित हो गई। अन्ना ने राजनीतिक विकल्प देने का ऐलान कर दिया। सच तो ये है कि टीम अन्ना राजनीतिक एजेंडे पर शुरू से ही काम कर रही थी। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि शुरु में इस आंदोलन की बुनियाद आरएसएस ने ही रखी। बाद में जब टीन अन्ना की छीछालेदर होने लगी कि तो टीम अन्ना ने संघ से दूरी बनानी शुरू की। इस दूरी के बाद सच कहा जाए तो आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया। टीम के हर सदस्य की राय अलग अलग हो गई। हर मुद्दे पर आंदोलन भटकता नजर आने लगा। टीम के सदस्यों में दूरी ही नहीं मतभेद की खबरें आम हो गईं। बाबा रामदेव के मुद्दे पर तो टीम अन्ना पूरी तरह बिखर सी गई थी। सबकी अलग अलग राय सामने आ रही थी। बहरहाल टीम अन्ना को इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि आंदोलन से एक एक करके तमाम लोग उनका साथ क्यों छोड़ गए ?

अगर मुझसे कोई इस बात का जवाब मांगे तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसका सिर्फ एक कारण है और वो है अरविंद केजरीवाल का अहम, अरविंद केजरवाल की बदजुबानी, अरविंद केजरीवाल का निरंकुश आचरण, अरविंद केजरीवाल की मनमानी, केजरीवाल का बड़बोलापन और सबसे बड़ा उनका घमंड। बातचीत का तौर तरीका भी ऐसा कि उनसे लोग बात करने से भी परहेज ही करते रहे। अरविंद की जगह कोई और होता, जिसमें सहनशीलता और दूसरों के साथ अच्छा सूलूक करने की कला होती, तो शायद जनलोकपाल बिल पास भी हो जाता। इनके अनैतिक  रवैये के कारण सरकार के मंत्री इनसे बात करने से ही कतराने लगे। अरविंद एक बात बार- बार दुहराते हैं कि संसद में 160 दागी सांसद बैठे हैं। ये बात बिल्कुल सही है कि इस  संसद में 160 दागी हैं। लेकिन अरविंद के पास इस बात का क्या जवाब है कि इन सांसदों ने चुनाव के पहले अपने नामांकन पत्र में साफ कर दिया कि उनके ऊपर कौन कौन से मामले विचाराधीन है। इसके बाद भी जनता ने उन्हें चुना है। अब आप उसी बात को बार बार दुहराते है, इसका मतलब क्या है ? क्या आपको देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरोसा नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आज अन्ना अगर मुंबई में रहने के दौरान उन पर लगे आरोपों के बारे में लोगों को सच सच बता दें, तो जनता की नजरों से गिर जाएंगे, उनके साथ लोग बिल्कुल खड़े नहीं हो सकते। खैर.. आपने इतना बड़ा आंदोलन चलाया, चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में तमाम जिलों मे दौरा कर सभाएं की,  लोगों को बताने की कोशिश की कि दागी और भ्रष्ट उम्मीदवारों से दूरी बनाएं। क्या उत्तर प्रदेश मे दागी चुनकर नहीं आए ? मुझे तो लगता है कि टीम अन्ना का मकसद भी कोई बहुत बड़ा बदलाव लाने का नहीं है, वो महज सक्रिय राजनीति में अपना दाखिला भर चाहते हैं।

आज जब मंच से अन्ना और केजरीवाल ने इशारों-इशारों में राजनीति में आऩे का ऐलान किया तो मुझे हंसी आ रही थी, मैं सोच रहा था कि ये अभी तक क्या कर रहे थे। क्या ये राजनीति नहीं कर रहे थे ? चुनावी मैदान में एक राजनीतिक दल की तरह सभाएं करते रहे। हरियाणा में तो कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ ना जाने कितनी सभाएं की गईं। राजनीतिक दलों के काम को अच्छा बुरा बताते रहे। अब कौन सी राजनीति करेंगे ये, भाई यही तो राजनीति है। बहरहाल टीम अन्ना और कांग्रेस के बीच जो लड़ाई चल रही थी, उसमें टीम अन्ना लोकपाल बिल मांग रही थी, कांग्रेस कह रही थी कि आप चुनाव जीत कर आएं और अपने मनमाफिक बिल बना लें। खैर टीम अन्ना को बिल तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने राजनीति में आने का लगभग फैसला कर लिया, जो मांग उनसे कांग्रेस लगातार कर रही थी। ऐसे में अगर हार जीत की बात की जाए, तो निश्चित ही इसमें कांग्रेस की जीत  हुई है।

हां एक बात अन्ना की भी कर ली जाए। अन्ना बार बार कहते हैं कि वो भीतर नहीं जाएंगे, मतलब संसद में नहीं जाएंगे। मैं अन्ना के गांव रालेगनसिद्धी हो आया हूं और मैं चुनौती देता हूं कि अन्ना लोकसभा, विधानसभा चुनाव तो दूर अपने गांव में प्रधान का चुनाव जीत कर दिखाएं। इनका गांव ही नहीं बल्कि आसपास का पूरा इलाका एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का समर्थक है और यहां से उन्हीं की पार्टी की अक्सर जीत होती है। ऐसे में अन्ना वहां अपने ही गांव से चुनाव नहीं जीत सकते। यही वजह है कि जब भी चुनाव की बात होती है, अन्ना पहले ही हाथ खड़े कर देते हैं कि वो अंदर नहीं जाएंगे। अच्छा कई बार उनकी बातों से हंसी आती है, राष्ट्रपति के चुनाव के पहले उन्होंने कहा कि वो राष्ट्रपति बनने के इच्छुक नहीं हैं। अब सवाल ये उठता है कि उन्हें राष्ट्रपति बना कौन रहा था ? कांग्रेस ने या फिर बीजेपी किसी ने उन्हें उम्मीदवार बनाने की बात की थी क्या ? फिर अन्ना जी मेरा ये मानना है कि राष्ट्रपति को कम से कम पढा लिखा तो होना ही चाहिए। आप क्यों बेवजह हर जगह अपना नाम लेने लगते हैं, जबकि कोई आपको पूछता तक नहीं है।

बहरहाल भ्रष्टाचार की इस लड़ाई से जिस तरह टीम अन्ना पीछे हटी है, उससे सामाजिक  आंदोलनों  को झटका लगा है। आज टीवी चैनलों पर बहस के दौरान कांग्रेस नेता बहुत उत्साह के साथ बात करते नजर आए। अब तो सबसे बड़ी मुश्किल होगी बाबा रामदेव के साथ। कालेधन पर रामदेव का अनशन नौ अगस्त से शुरू हो रहा है, अन्ना टीम के पीछे हटने सरकार को ताकत मिली है। सरकार को लग रहा है कि आंदोलनकारियों से बातचीत का कोई मतलब नहीं है। बात करने से इनका दिमाग सातवें आसमान पर होता है। लिहाजा इनसे बात करने का कोई मतलब ही नहीं है। टीम अन्ना ने देश को इस हालात में पहुंचा दिया कि अब यहां सामाजिक आंदोलन करने के पहले लोगों को सौ बार सोचना होगा। आखिर में टीम अन्ना को सिर्फ एक सलाह...

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए
औरन को शीतल करे,आपहूं शीतल होए।