Friday 5 December 2014

आखिर कैमरे पर पकड़े गए केजरीवाल !

म आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल वैसे तो चप्पल पहनते हैं, दिखावे के लिए एक झरी हुई सी शर्ट पहनते हैं, कैमरे के सामने ट्रेन की सामान्य बोगी में सफर करते हैं, ड्रामेबाजी के लिए बदबूदार मफलर कान पर डाल लेते हैं और ठंड पडे तो कत्थई रंग का गंदा सा स्वेटर पहनते हैं, पर वही केजरीवाल जब हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में सफर करते पकड़े जाते हैं तो उनके चंगू-मंगू सफाई देते हैं कि आयोजकों ने टिकट उपलब्ध कराया था, इसलिए वो क्या कर सकते थे ? हाहाहा, क्या केजरीवाल साहब आप  इतने ना समझ है । चलिए मैं बताता हूं क्या कर सकते थे ! बात पुरानी है, लेकिन जिक्र करना जरूरी है। आप पार्टी नेता आशुतोष भी इस बात के गवाह हैं। टीवी न्यूज चैनल IBN 7 में कार्य के दौरान चैनल का अवार्ड फंक्शन होना था । उस दौरान UPA की सरकार में ममता बनर्जी रेलमंत्री थीं। उन्हें आमंत्रित करने मैं उनके पास गया और कार्ड देते हुए आग्रह किया कि आपको इस आयोजन में जरूर आना है। ममता दीदी ने आग्रह को स्वीकार कर लिया और मुझे आश्वस्त किया कि वो जरूर पहुंचेंगी। उन्होंने मेरे सामने ही कार्ड अपने पीए को दिया और कहाकि प्रोग्राम में मुझे जाना है। मैने उस दौरान मैनेजिंग एडिटर रहे आशुतोष जी को बताया कि ममता बनर्जी से बात हो चुकी है और वो पहुंच रही हैं।

लेकिन शाम को जब मैं आफिस में था, अचानक उनका फोन आया और उन्होंने जो मुझसे कहा, कम से कम वो बात केजरीवाल को जानना बहुत जरूरी है। ममता जी ने कहाकि मैं आपके चैनल के आयोजन में आना चाहती हूं, उस दिन में मैं दिल्ली में हूं भी, लेकिन मजबूरी ये है कि " मैं कभी भी किसी पांच सितारा होटल में होने वाले आयोजन में नहीं जाती हूं और आपका आयोजन पांच सितारा होटल में है, इसलिए मुझे माफ कीजिए, मैं इस आयोजन में शामिल नहीं हो पाऊंगी " पहले तो मुझे बुरा लगा कि वादा करने के बाद अब वो मना कर रही हैं, लेकिन सच कहूं उनका स्पष्ट बात कहना और सिद्धांतवादी होना मुझे अच्छा लगा।

इसलिए केजरीवाल जी ये कहना कि आयोजक ने टिकट उपलब्ध कराया तो ले लिया और बिजनेस क्लास में सफर कर लिया, ये ठीक नहीं है। इसका मतलब कोई बड़ा आदमी आपको कुछ आफर करेगा तो आप मना नहीं करेंगे ! फिर तो देश में आँफर देने वालों की कमी नहीं है। और हां वो बेचारे गरीब चाय वाले को गाली देते रहते हो, उन्हें भी तो अडानी ने चार्टर प्लेन का आफर कर दिया था, वो मना नहीं कर पाए, अब इसमें " चायवाले " की क्या गलती है ? आप उन्हें क्यों गरियाते रहते हो ? केजरीवाल साहब किसी पर उंगली उठाओ या किसी को बेईमान बताओ तो अपने तरफ भी देख लिया करो !

हां एक सवाल भी है : क्या आप पार्टी के चंदे का पैसा पार्टी के किसी नेता के पिता के खाते में ट्रांसफर हुआ है ? अगर हां तो उसका नाम क्या है ? पार्टी का पैसा पिता के खाते में ट्रांसफर करने की वजह क्या है ? क्या इस बात की जानकारी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को दी गई हैं ? बाकी बातें बाद में ...


Sunday 14 September 2014

हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद !

जी हां, आज ये कहानी आपको एक बार फिर सुनाने का  मन हो रहा है। जहां भी और जब  हिंदी की बात होती है तो मैं ये किस्सा लोगों को जरूर सुनाता हूं। मतलब ऊंचे लोग ऊंची पसंद। मेरी तरह आपने  भी महसूस किया होगा  कि एयरपोर्ट पर लोग अपने घर या मित्रों से अच्छा खासा हिंदी में या फिर अपनी बोलचाल की भाषा में बात करते दिखाई देते  हैं, लेकिन जैसे ही हवाई जहाज में सवार होते हैं और जहाज जमीन छोड़ता है, इसके यात्री भी जमीन से कट जाते हैं और ऊंची-ऊंची छोड़ने लगते हैं। मुझे आज भी याद है साल भर पहले मैं एयर इंडिया की फ्लाइट में दिल्ली से गुवाहाटी जा रहा था। साथ वाली सीट पर बैठे सज्जन कोट टाई में थे, मैं तो ज्यादातर जींस टी-शर्ट में रही रहता हूं। मैंने उन्हें कुछ देर पहले एयरपोर्ट पर अपने घर वालों से बात करते सुना था, बढिया हिंदी और राजस्थानी भाषा में बात कर रहे थे। लेकिन हवाई जहाज के भीतर कुछ अलग अंदाज में दिखाई दिए। सीट पर बैठते ही एयर होस्टेज को कई बार बुला कर तरह-तरह की डिमांड कर दी उन्होंने। खैर मुझे समझने में  देर नहीं लगी कि ये टिपिकल केस है। बहरहाल थोड़ी देर बाद ही वो मेरी तरफ मुखातिब हो गए ।

सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजी में मेरा नाम पूछा... लेकिन मैने उन्हें नाम नहीं बताया, कहा कि गुवाहाटी जा रहा हूं । उन्होंने  फिर दोहराया मैं तो आपका नाम जानना चाहता था, मैने फिर गुवाहाटी ही बताया। उनका चेहरा सख्त पड़ने लगा,  तो मैने उन्हें बताया कि मैं थोडा कम सुनता हूं और हां अंग्रेजी तो बिल्कुल नहीं जानता। अब उनका चेहरा देखने लायक था । बहरहाल दो बार गुवाहाटी बताने पर उन्हें मेरा नाम जानने में कोई इंट्रेस्ट नहीं रह गया । लेकिन कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा कि आप काम क्या करते हैं। मैने कहा दूध बेचता हूं। दूध बेचते हैं ? वो  घबरा से गए, मैने कहा क्यों ? दूध बेचना गलत है क्या ?  नहीं नहीं  गलत नहीं है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप क्या कह रहे हैं। उन्होंने फिर कहा  मतलब आपकी डेयरी है ? मैने कहा बिल्कुल नहीं  दो भैंस हैं, दोनो से 12 किलो दूध होता है, 2 किलो घर के इस्तेमाल के लिए रखते हैं और बाकी बेच देता हूं।

पूछने लगे गुवाहाटी क्यों जा रहे हैं.. मैने कहा कि एक भैंस और खरीदने का इरादा है, जा रहा हूं माता कामाख्या देवी का आशीर्वाद लेने। मित्रों इसके बाद तो उन सज्जन के यात्रा की ऐसी बाट लगी कि मैं क्या बताऊं। दो घंटे की उडान के दौरान बेचारे अपनी सीट में ऐसा सिमटे रहे कि कहीं वो हमसे छू ना जाएं । उनकी मानसिकता मैं समझ रहा  था । उन्हें लग रहा था कि बताओ वो एक दूध बेचने वाले के साथ सफर कर रहे हैं। इसे  अंग्रेजी भी  नहीं आती है, ठेठ हिंदी वाला गवांर है। हालत ये हो गई मित्रों की पूरी यात्रा में वो अपने दोनों हाथ समेट कर अपने पेट पर ही रखे रहे । मैं बेफिक्र था और  आराम  से सफर का लुत्फ उठा रहा था।

लेकिन मजेदार बात तो यह रही कि शादी के जिस समारोह में मुझे जाना था, वेचारे वे भी वहीं आमंत्रित थे। यूपी कैडर के एक बहुत पुराने आईपीएस वहां तैनात हैं। उनके बेटी की शादी में हम दोनों ही आमंत्रित थे। अब शादी समारोह में मैने भी शूट के अंदर अपने को  दबा रखा था, यहां मुलाकात हुई, तो बेचारे खुद में ना जाने क्यों  शर्मिंदा महसूस कर रहे थे । वैसे उनसे रहा नहीं गया और चलते-चलते उनसे हमारा परिचय भी हुआ और फिर काफी देर बात भी । वो राजस्थान कैडर के आईएएस थे, उन्होंने मुझे अपने प्रदेश में आने का न्यौता भी दिया, हालाकि  मेरी उसके  बाद से फिर बात नहीं हुई।



Monday 11 August 2014

कुपात्रों से वापस हो " भारत रत्न "




श्री नरेन्द्र मोदी जी
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
नई दिल्ली 

विषय : देश के सबसे बड़े सम्मान " भारत रत्न " की गरिमा को बचाने के संबंध में !

महोदय,

देश में एक बार फिर " भारत रत्न " को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। टीवी चैनलों पर तमाम लोगों के नाम इस सम्मान के लिए जा रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर अब ये सम्मान मिलता कैसे है ? वो कौन लोग हैं जो सम्मान के लिए नाम तय करते हैं ? मैने पढ़ा है कि देश के पहले शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जब भारत रत्न देने की बात हुई तो उन्होंने सम्मान लेने से साफ इनकार कर दिया और कहाकि जो लोग इसकी चयन समिति में रहे हों, उन्हें ये सम्मान हरगिज नहीं लेना चाहिए। बाद में कलाम साहब को ये सम्मान मरणोंपरांत 1992 में दिया गया। अब हालत ये है कि टीवी चैनलों पर भारत रत्न के लिए रोजाना एक नया नाम लिया जा रहा है, जाहिर कि उन सभी को ये सम्मान नहीं मिल सकता, ऐसे में जो लोग रह जाएंगे, उन्हें निश्चित रूप से ना सिर्फ पीड़ा होगी, बल्कि समाज में उनकी बेवजह किरकिरी भी होगी। इसलिए प्रधानमंत्री जी भारत रत्न जैसे गरिमापूर्ण सम्मान की रक्षा के लिए मीडिया में चल रहे अनर्गल प्रलाप को तुरंत बंद करने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री जी आपको पता है कि मीडिया ने कैसे क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान बना दिया। सोचिए ये क्रिकेट का भगवान भला क्या होता है ? भगवान की मौजूदगी में देश की टीम तमाम मैच हारती रही ! सचिन शतकों के शतक के करीब पहुंचे तो मीडिया का एक तपका उन्हें भारत रत्न सचिन तेंदुलकर लिखने लगा। धीरे-धीरे मीडिया ने ऐसा दबाव बनाया कि केंद्र सरकार सचिन को भारत रत्न देने पर मजबूर हो गई। मजबूर इसलिए कह रहा हूं कि सरकार खेल के क्षेत्र में पहला भारत रत्न हाँकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद्र को देना चाहती थी, लेकिन वो हिम्मत नहीं जुटा पाई। देश में लोकसभा का चुनाव होना था, इसलिए सरकार सचिन की अनदेखी कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। इसलिए आनन-फानन में सचिन को भारत रत्न देने का एलान कर दिया गया। सचिन को भारत  रत्न दिए जाने का मैं तो उस वक्त भी विरोधी था, आज भी हूं।

प्रधानमंत्री जी, सचिन को भारत रत्न देने का मैं विरोधी यूं ही नहीं हूं, उसकी वजह है। पहले तो खेल मंत्रालय क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को  मान्यता ही नहीं देता है। इसके अलावा इस खेल में ईमानदारी नहीं है। देश विदेश के तमाम क्रिकेटर मैच फिक्सिंग, स्पाँट फिक्सिंग में पकड़े जा चुके हैं और उन्हें जेल भी हुई है। जब  इस पूरे खेल में ही ईमानदारी नहीं है तो भला क्रिकेटर कैसे ईमानदार हो सकते हैं ? अब देखिए सचिन को भारत रत्न का सम्मान क्रिकेट में योगदान के लिए दिया गया, लेकिन यही सचिन आयकर से कुछ छूट मिल जाए, इसके लिए दावा किया कि उनका मुख्य पेशा क्रिकेट खेलना नहीं बल्कि एक्टिंग करना है। प्रधानमंत्री जी अब आप ही तय कीजिए क्या हमें ऐसे ही लोगों को भारत रत्न जैसा सम्मान देना चाहिए ? मेरा तो कहना है कि सचिन ने भारत रत्न सम्मान की गरिमा को गिराया है।

प्रधानमंत्री जी कांग्रेस इस सचिन के सहारे राजनीति करती रही, यही वजह है कि भारत रत्न देने के कुछ दिन बाद ही सचिन को राज्यसभा में मनोनीति कर दिया। अब उनकी लगातार गैरहाजिरी पर राज्यसभा में सवाल भी उठ रहे है। भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति को किसी उत्पाद का विज्ञापन करना चाहिए, या नहीं ! ये भी एक अहम सवाल है। मैं तो इसके भी खिलाफ हूं। प्रधानमंत्री जी, सच कहूं ! मुझे लगता है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर भले किसी को भारत रत्न से ना नवाजा जाए, बल्कि जिन लोगों को अब तक भारत रत्न दिए गए हैं, वक्त आ गया है कि उनकी ईमानदारी से समीक्षा की जाए। हम जान सकें कि जिन्हें दिया गया है, क्या वो उसके वाकई हकदार हैं ? इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए, जो तीन महीने के भीतर सरकार को अपनी रिपोर्ट जरूर दे, और अपात्र लोगों से ये सम्मान वापस लिया जाए !

प्रधानमंत्री जी देश ये भी जानना चाहता है कि वो कौन सी वजह रही जिसके चलते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तो "भारत रत्न" नहीं मिल सका , लेकिन एक परिवार से पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सभी को ये सम्मान मिल गए। मेरे जैसे तमाम लोगों का विचार है कि आजादी की लड़ाई में गांधी के मुकाबले नेहरू का योगदान बहुत कम था, फिर भी गांधी जी ने उन्हे भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बना दिया। स्वतंत्रता के बाद भी कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधारों ने देश में राजतंत्र चलाया, विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और लोकहितों की उपेक्षा की। कहा जाता है कि आसपास चाटुकारों को जोड़ कर स्वयं को देवदूत घोषित कराते रहे और स्वयं अपनी छवि पर मुग्ध होते रहे।

प्रधानमंत्री जी, देश में तमाम लोग देश की बहुत सी समस्याओं के लिये सीधे नेहरू को जिम्मेदार मानते है। जैसे लेडी माउंटबेटन के साथ नजदीकी सम्बन्ध, भारत का विभाजन, कश्मीर की समस्या, चीन द्वारा भारत पर हमला, मुस्लिम तुष्टीकरण, भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये चीन का समर्थन, भारतीय राजनीति में वंशवाद को बढावा देना और हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने में देरी करना। देश की राजनीति में कुलीनतंत्र को बनाए रखने में भी नेहरू का बड़ा हाथ रहा है। सच ये भी है कि गांधीवादी अर्थव्यवस्था की उन्होंने हत्या की और ग्रामीण भारत की अनदेखी भी उनके समय में हुई। नेता जी सुभाषचंद्र बोस का पता लगाने में भी उन पर लापरवाही और गंभीरता ना बरतने के आरोप हैं। इन सबके बाद भी पंडित जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया, और सब खामोश रहे !

प्रधानमंत्री जी, मैं देख रहा हूं कि मीडिया में एक बार फिर नेता जी सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न दिए जाने की बात हो रही है। अच्छी बात है, नेता जी इसके हकदार है, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि जब 1992 में नेताजी को भारत रत्न से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था,  उस दौरान उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठा था। इसीलिए भारत सरकार ने यह सम्मान वापस ले लिया। देश में ये सम्मान वापस लिए जाने का एक मात्र उदाहरण है। मेरा सवाल है कि हालात तो आज भी वही बने हुए है, ऐसे में नेता जी का नाम फिर क्यों लिया जा रहा है ? प्रधानमंत्री जी मैं जानना चाहता हूं कि ये नाम सरकार की ओर से उठाया जा रहा है, या फिर मीडिया ने शुरू किया है ? ये साफ होना चाहिए और इस पर सरकार का पक्ष सामने आना चाहिए !

प्रधानमंत्री जी, नेता जी के अलावा मीडिया में इन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को भारत रत्न दिए जाने की चर्चा हो रही है। मेरा मानना है कि श्री वाजपेयी जी का कद इतना बड़ा है कि उनके नाम पर पर उंगली उठाने की हैसियत वाला आदमी आज किसी पार्टी में नहीं है, रही बात कांशीराम की तो ये राजनीति इतनी बिगड़ चुकी है कि वोट के लालची नेताओं की इतनी औकात ही नहीं है कि कोई खिलाफ में मुंह खोल सके। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कांशीराम ने दलितों को एकजुट कर उनके हक को लेकर इनमें जो जागरूकता पैदा की वो आसान काम नहीं था।

प्रधानमंत्री जी आज मीडिया बहुत चालाक है, वो मूर्खता भी करती है तो इस हद तक करती है कि उसकी मूर्खता भी सच के करीब लगने लगती है। अब देखिए भारत रत्न के लिए  नियम या परंपरा कहें कि एक साल में तीन लोगों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है। लेकिन मीडिया को लगता है कि कहीं उसकी बात गलत साबित ना हो जाए, लिहाजा वो हर संभावना पर काम करती है। अब देखिए दो नाम मीडिया ने ऐसे जोड़ दिए, जिससे लगता है कि हां इन्हें भी मिल सकता है। पहला नाम वो, जिसे आपने गुजरात का ब्रांड अंबेसडर बनाया, मतलब बिग बी अमिताभ बच्चन और दूसरा नाम वो जहां से आपने चुनाव लड़ा और पर्चा दाखिल करने से पहले जिस मूर्ति का आपने माल्यार्पण किया, मतलब स्व. महामना मदन मोहन मालवीय जी। ये दोनों नाम ऐसे हैं, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है।

खैर प्रधानमंत्री जी , आप इतने व्यस्त हैं कि आपको इतना समय कहां है कि आप लोगों के पत्र पढ़ सकें। लेकिन एक गुजारिश है, कुछ ऐसा कीजिए, जिससे हम सब को लगे कि वाकई हम देश में आजादी का जश्न मना रहे हैं, ऐसा ना लगे कि परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। इसलिए पात्रों को भले ही इस बार भारत रत्न ना दें लेकिन कुछ ऐसा करें कि एक भी कुपात्र के पास भारत रत्न ना रहे, उससे वापस लेने का ऐलान जरूर करें। 


आपका 

भारतीय नागरिक



Wednesday 16 July 2014

मोदी बताएं : टनल में क्यों फंसी ट्रेन ?

श्री शक्ति एक्सप्रेस के पहले ही सफर में उधरपुर - कटरा रेल लाइन ने संकेत दे दिया है कि वो अभी रेल यात्रा के लिए पूरी तरह फिट नहीं है। श्री शक्ति एक्सप्रेस बीती रात जैसे ही टनल के भीतर घुसी, पटरी पर फिसलन की वजह से ट्रेन आगे नहीं बढ़ सकी और टनल के भीतर ही फंस गई। ट्रेन को टनल से निकालने के लिए इंजन के ड्राईवर ने काफी मशक्कत की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। आधी रात को इसकी जानकारी जैसे ही उत्तर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को हुई, सब के होश उड़ गए। बहरहाल कोशिश शुरू हो गई कि कैसे ट्रेन को टनल से बाहर निकाला जाए। आनन फानन में फैसला किया गया कि एक और इंजन  वहां भेजकर ट्रेन में पीछे से धक्का लगाया जाए, हो सकता है कि दो इंजन के जरिए इस ट्रेन को आगे बढ़ाया जा सके। बहरहाल रेलवे की कोशिश कामयाब रही और ट्रेन को किसी तरह टनल से बाहर कर लिया गया। लेकिन इससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि  क्या इस ट्रैक पर आगे ट्रेन का संचालन जारी रखा जाए, या फिर इसे रोका जाए !  बहरहाल रेलवे की किरकिरी न हो, इसलिए मीडिया को जानकारी दी गई कि  इंजन में खराबी की वजह से ट्रेन टनल मे लगभग दो घंटे फंसी रही, जबकि सच ये नहीं है, रेल अफसर अपनी नाकामी छिपा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सहयोगी मंत्रियों को कहते रहते हैं कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और महत्वपूर्ण फैसलों में सोशल मीडिया के सकारात्मक राय को उसमें शामिल करें। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे लेकर लापरवाह हैं। वो अभी से अफसरों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं, खासतौर पर अगर रेलमंत्रालय की बात करूं, तो ये बात सौ फीसदी सच साबित होती है। आपको पता होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब ऊधमपुर से कटरा रेल लाइन की शुरुआत करने वाले थे, उसके पहले ही मैने आगाह कर दिया था कि ये रेल लाइन खतरनाक है, इस पर जल्दबाजी में ट्रेन का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस रेल पटरी के शुरू हो जाने से रोजाना ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू हो जाएगी, इसमें हजारों यात्री सफर करेंगे, इसलिए उनकी जान को जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि मोदी ने इन बातों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और वाहवाही लूटने के लिए रेल अफसरों के इशारे पर कटरा रेलवे स्टेशन पहुंच गए और ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के लिए हरी झंड़ी दिखा दी।

मैं प्रधानमंत्री को एक बार फिर बताना चाहता हूं कि इस रेल पटरी पर जल्दबाजी  में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करना खतरे से खाली नहीं है, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट इसे खतरनाक बता  रही है। इसी साल जनवरी में रेल अफसर ने रेल पटरी का सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कम से कम दो तीन मानसून तक इस पटरी पर ट्रेनों का संचालन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मानसून में इस ट्रैक का पूरी तरह परीक्षण होना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि टनल में अचानक  बड़ी मात्रा में पानी भर जाए, जिससे बीच में ट्रेनों की आवाजाही रोकनी पड़े। इतना  ही नहीं टनल नंबर 20 में तकनीकि खामियों की वजह से सेफ्टी कमिश्नर ने 27 से 29 जनवरी तक निरीक्षण किया, लेकिन एनओसी नहीं दिया।अंदर की खबर है कि काफी दबाव के बाद रफ्तार नियंत्रण कर ट्रेन चलाने की अनुमति दी है। टनल नंबर 18 में काफी दिक्कतहै। बताया गया है कि इस टनल में 100 लीटर पानी प्रति सेकेंड भर जाता है। ये वही टनल है, जिसकी वजह से अभी तक यहां ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा था। पानी का रास्ता बदलने के लिए फिलहाल कुछ समय पहले 22 करोड का टेंडर दे दिया गया, काम हुआ या नहीं, कोई बताने को तैयार नहीं। एक विदेशी कंपनी को कंसल्टैंसी के लिए 50 करोड रूपये दिए गए। उसने जो सुझाव दिया वो नहीं माना गया। इस कंसल्टैंसी कंपनी से कहा गया कि वो सेफ्टी सर्टिफिकेट दे, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया।

मैं फिर जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रेलवे के अधिकारी रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रेलमंत्री रेलवे को जानने समझने वालों की एक एक्सपर्ट टीम बनाएं और हर बड़े फैसले को लागू करने के पहले एक्सपर्ट की राय जरूर ले। रेल अफसरों के बड़बोलेपन की वजह से ही रेलमंत्री सदानंद गौड़ा की रेल हादसे के मामले में सार्वजनिक रूप से किरकिरी हो चुकी है, जब गौड़ा ने रेल अधिकारियों के कहने पर मीडिया में बयान दिया कि ट्रेन हादसे की वजह नक्सली हैं, उन्होंने बंद का आह्वान किया था और रेल पटरी के साथ छेड़छाड़ की, इसी वजह से हादसा हुआ। इसके थोड़ी ही देर बाद गृह मंत्रालय ने रेलमंत्री की बात को खारिज कर दिया। बाद में रेलमंत्री ने अपनी बात बदली और कहाकि पूरे मामले की जांच हो रही है, उसके बाद ही दुर्घटना की असल वजह पता चलेगी। लेकिन ये बात पूरी तरह सच है कि अगर रेलमंत्री थोड़ा भी ढीले पड़े तो ये अफसर मनमानी करने से पीछे हटने वाले नहीं है।

यही वजह है कि जिस अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में रेल पटरी को खतरनाक बताया, उसे तत्काल उत्तर रेलवे से स्थानांतरित कर दिया गया। वजह साफ है कि रेल अधिकारियों का मानना है कि वैष्णों देवी मां के धाम कटरा से अगर मोदी को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने  का अवसर मिला तो वो मंत्रालय पर नरम रहेंगे और अफसरों पर उनका भरोसा बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से सच्चाई को छिपाकर इन अफसरों ने एक ऐसे रेलमार्ग पर आनन फानन में ट्रेनों का संचालन शुरू करा दिया, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक है। ये अफसर नई सरकार को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को धोखा दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी, ट्रेनों  के संचालन की शुरुआत आप कर चुके हैं, अभी भी समय है इस रेल मार्ग की नए सिरे से पूरी जांच पड़ताल आप स्वयं कराएं। ब्राजील से वापस आएं तो 7 आरसीआर जाने के पहले सीधे रेल मंत्रालय पहुंचे और उन सभी अफसरों को सामने बैठाएं, जिन्हें इस रेल मार्ग को जल्दबाजी में शुरू करने की हडबड़ी थी। ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि रेल अधिकारियों ने अपने ही महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को खारिज कर ट्रेनों का संचालन शुरू कराया और पहले ही दिन श्री शक्ति एक्सप्रेस टनल मे फंस गई। जांच जरूरी है।  




Wednesday 9 July 2014

रेल बजट में नहीं दिखा 56 इंच का सीना !

भारतीय रेल आत्मनिर्भर होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमारी मदद करें ! भारतीय रेल अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमें सहारा दें ! आप हमारी मदद करेंगे... तो हम आत्मनिर्भर बनेंगे, आप मदद नहीं करेंगे तो भला हम आत्मनिर्भर कैसे होंगे ? आप  हमें सहारा देंगे तो हम अपने पैरों पर खड़े होंगे... आप सहारा नहीं देंगे तो हम अपने पैरों पर कैसे खड़े होंगे ? सच बताऊ... 56 इंच के सीने का दम भरने वाले नरेन्द्र मोदी से ऐसे रेल बजट की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। ईमानदारी से एक बात बताना चाहता हूं, मुझे इस सरकार के रेल बजट का बेसब्री से इंतजार था, मैं बजट के जरिए मोदी के विजन को जानना और समझना चाहता था, मैं देखना चाहता था कि 56 इंच का सीना रखने वाला नेता कहीं बजट में विदेशियों के आगे गिडगिड़ाता हुआ तो नजर नहीं आ रहा है, पर ऐसा ही हुआ। रेल बजट में देश के स्वाभिमान के साथ समझौता हुआ है, बजट में बातें तो बड़ी - बड़ी की गई हैं, पर इसके लिए पैसा कहां से आएगा, इस पर कोई बात नहीं की गई है। हर मसले का हल पीपीपी मतलब पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप को बताया जा रहा है, आसान भाषा  में बताऊं तो इस बजट में भारतीय रेल पूरी तरह विदेशियों के हाथ की कठपुतली नजर आ रही है।

सिडनी ( आस्ट्रेलिया ) रेडियो ने अपने हिंदी बुलेटिन में रेल बजट पर कार्यक्रम रखा था, जिसमें उन्होंने इस बजट के बारे में मुझसे बातें की। पहला सवाल पूछा गया कि पहले के रेल बजट से ये बजट किस मायने में अलग है ? मैं समझ गया कि विदेशों में भी लोग यही देखना चाहता हैं कि 56 इंच का सीना रखने वाले प्रधानमंत्री का पहला बजट किस दिशा में जा रहा है। सच बता रहा हूं, मैं जब भी विदेशी चैनल या रेडियो या अन्य किसी भी प्रचार माध्यम से जुड़ता हूं तो मेरी पूरी कोशिश होती है कि ऐसी बात ना कहूं जिससे विदेशों में देश की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। लेकिन इस सवाल के बाद मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला कि नया कुछ बता दूं..। कसम से, इस बजट में तो एक बात भी नई नहीं है, अलबत्ता मैं ये कहूं कि पुराने रेल मंत्रियों के बजट में मामूली फेरबदल करके इसे पेश किया गया है तो कहना गलत नहीं होगा। चूंकि जनता पुरानी बातों को बहुत जल्दी भूल जाती है, और उसे मामूली बात भी नई नजर आती है। मैं बताना चाहता हूं कि बजट में जिस " बुलेट ट्रेन " की बात को बहुत अहमियत दी गई है। इसकी असल सच्चाई भी जानना आप के  लिए बहुत जरूरी है।

बात उस समय की है, जब रेलवे की हालत बहुत पुख्ता थी, उस समय रेलमंत्री स्व. माधवराव सिंधिया थे, वो बड़ा सोचते थे। सबसे पहले देश में बुलेट ट्रेन का सपना उन्होंने ही देखा था। लेकिन इस मामले में काम ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद देश में एनडीए की सरकार आई, वो पुराने ढर्रे पर चलती रही, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए एक की सरकार में रेलमंत्री रहे लालू यादव ने देश को एक बार फिर बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया। सपना ही नहीं बल्कि उन्होंने ही पहली बार  रेल बजट में बुलेट ट्रेन का ऐलान किया और दिल्ली से पटना के अलावा मुंबई से अहमदाबाद के लिए बुलेट ट्रेन की फिजिविलिटी सर्वै शुरू कराया। बड़ा काम था, इसलिए विदेशी एजेंसियों को सर्वे के लिए हायर किया गया। सर्वे पर करोडों रुपये खर्च किए गए। खैर सच ये है कि रेल मंत्रालय ने बुलेट ट्रेन के लिए कुछ काम जरूर शुरू कर दिया था, पर यूपीए 2 में लालू के पास गिनती के सांसद रह गए, इसलिए रेल महकमा ममता बनर्जी के खाते में चला गया। ममता रेलमंत्री बनीं, पर उनकी निगाह बंगाल की कुर्सी पर थी, इसलिए रेलवे के लिए कुछ बड़ा काम नहीं कर पाईं। बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया, पर यात्री किराये में बढोत्तरी करने पर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया। सच बताऊं त्रिवेदी, मुकुल राय और पवन बंसल के बारे मे चर्चा करना, सही मायने में समय खराब करना है।

बहरहाल मैने आज तक पत्रकारिता में किसी स्तर पर कभी भी समझौता नहीं किया, लिहाजा सिडनी रेडियो पर मैने साफ - साफ पूरी बातें ईमानदारी से कहीं। दूसरा सवाल हाईस्पीड़ ट्रेन के बारे में पूछा गया। मैं हैरान रह गया कि क्या देश कि असल तस्वीर विदेशियों को भी पता है। सही मायने में हाई स्पीड ट्रेन के मामले में मोदी सरकार जनता को बेवकूफ बना रही है। हमारे यहां रेल पटरी की ये हालत अब नहीं रह गई है कि इस पर 100 किलो मीटर प्रतिघंटा से अधिक रफ्तार से कोई ट्रेन चलाई जा सके। मोदी के मंत्री वाहवाही लूटने के लिए ऐसे काम कर रहे हैं, जो महत्वाकांक्षी रेलमंत्री लालू यादव ने भी नहीं किया। उदाहरण के तौर पर दिल्ली से लखनऊ के बीच एक एसी स्पेशल ट्रेन चलती थी, जो सप्ताह मे तीन दिन एसी स्पेशल के नाम से जानी  जाती थी और तीन दिन यही ट्रेन दुरांतो के नाम से चल रही थी। जनता को मूर्ख समझने वाले रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने इस ट्रेन का नाम बदल कर राजधानी एक्सप्रेस कर दिया और लगभग 400 रुपये प्रति टिकट किराया बढ़ा दिया। इस ट्रेन का कोई स्टापेज कम नहीं हुआ, रफ्तार नहीं बढ़ी, यहां तक की जो बोगी पुरानी ट्रेन में चल  रही थी वही गंदगी से भरी बोगी भी इस राजधानी में इस्तेमाल हो रही है। अच्छा  ज्यादा पैसा ले रहे हो तो कम से कम इसे साफ सुथरे प्लेटफार्म से गुजारो, जिससे इस ट्रेन पर सफर करने वालों को वीआईपी होने का आभास हो,  पर ये भी नहीं। दिल्ली से ये ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 9 से छूटती है, जबकि लखनऊ में इसे प्लेटफार्म नंबर दो या पांच पर लिया जाता है। मुझे लगा था कि लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह इस पर आपत्ति करेंगे, लेकिन वो भी  खामोश हैं। यात्रियों की जेब काटी जा रही है, किसी से कोई मतलब नहीं है।

रेलवे की बातें करूं तो मेरी बात कभी खत्म ही नहीं होगी। पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप  (पीपीपी) पर नई सरकार को भी बहुत भरोसा है। उसे लगता है कि पीपीपी के तहत तमाम बड़े काम वो करा सकती है। मैं मोदी साहब को बताना चाहता हूं कि पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने देश के कुछ चुनिंदा रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए पीपीपी के तहत इंटरनेशनल टेंडर निकाला था। आपको हैरानी होगी कि किसी भी विदेशी निवेशक  ने इस काम को करने में अपन रुचि  नहीं दिखाई। जानते हैं क्यों ? क्योंकि रेलवे  ने अपनी विश्वसनीयता ही खो दी है। कोई भी विदेशी निवेशक रेलवे में पैसा लगाने से घबराता है। उसे लगता है कि  जिस देश में मामूली किराया बढ़ाने पर रेलमंत्री की छुट्टी हो जाती है, वहां कोई विदेशी निवेशक पैसा लगाने का रिस्क कैसे ले सकता है ? आपको पता है ना कि देश में रेलवे का किसी से कंपटीशन नहीं है, अकेली इतनी बड़ी संस्था है। आप सोचें कि कोई व्यक्ति अकेले किसी रेस में हिस्सा ले, फिर भी वो फर्स्ट ना आकर सेकेंड रहे तो आसानी से उसकी क्षमता को समझा जा सकता है। भारतीय रेल की हालत भी कुछ ऐसी ही है, अकेले दौड़ रही है, फिर भी दूसरे नंबर पर है।

मेरा मानना है कि रेलवे की तरक्की तब तक नहीं हो सकती, जब तक रेलमंत्री इसके  जरिए अपनी और पार्टी की राजनीति का हित देखते रहेंगे! वैसे तो जब दो सप्ताह के बाद संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला हो तो नैतिकता का तकाजा यही था कि रेलयात्री किराए में पिछले रास्ते से बढोत्तरी ना की जाए, रेल बजट में ही इसका प्रावधान किया जाए। पर यहां भी 56 इँच का सीना का दावा करने वाले मोदी जी का सीना 26 इंच का हो गया, क्योंकि उन्हें लगा कि बजट में  किराया बढाया तो देश में बहुत किरकिरी होगी, इसलिए बजट के पहले ही किराया बढ़ा दो.. बजट में फीलगुड लाने के लिए बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात कर जनता को बेवकूफ बनाने में आसानी होगी। सच कहूं तो मोदी भी ऐसा करेंगे, मुझे भरोसा नहीं था। अब देखिए ना पुराने रेलमंत्रियों की तरह सदानंद गौडा ने भी पचासों नई ट्रेन का ऐलान कर दिया, ये जाने बगैर कि पुराने रेलमंत्रियों ने जिन ट्रेनों का ऐलान किया है, उसमें से सैकड़ों ट्रेन अभी पटरी पर नहीं आई है। रेलवे  की क्षमता अब ऐसी  नहीं है कि किसी भी रुट पर नई ट्रेन का संचालन हो सके, लेकिन लोगों को खुश करने के लिए तमाम ट्रेनों का ऐलान किया गया, इसमें ज्यादातर ऐसी ट्रेन हैं, जो सप्ताह में एक दिन चलेगी।

पहली बार लगा कि ये रेलमंत्री सेफ्टी और सिक्योरिटी में अंतर नहीं समझते। संसद में ताली बजे, इसलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए चार हजार महिला आरपीएफ कांस्टेबिल की भर्ती की बात तो रेलमंत्री ने की, लेकिन सेफ्टी ( संरक्षा ) से जुडे 1.60 लाख खाली पड़े पदों पर भर्ती कब होगी, इस पर वो खामोश रहे। ढेर सारी नईं ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात भी उन्होंने इस बजट में की, लेकिन ट्रेन में किसी व्यक्ति को कैसे आसानी से टिकट मिल जाएगा, कैसे उसे रिजर्वेशन मिलेगा, इस पर वो खामोश रहे। मोदी और रेलमंत्री लगातार दावा करते हैं रेलवे को राजनीति से अलग रखा  जाएगा  और कोई भी फैसला राजनीति से प्रभावित नहीं होगा। प्रधानमंत्री जी मैं पूछना चाहता हूं कि जब सभी श्रेणी का यात्री किराया 14 प्रतिशत बढ़ाया गया तो इसका विरोध देश भर में हुआ। लेकिन रेलमंत्री ने मुंबई का बढ़ा किराया वापस ले लिया। वजह साफ है कि वहां सात आठ महीने में ही विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में जब रेलमंत्री कहते हैं  कि रेलवे से राजनीति नहीं होगी तो लगता है कि देशवासियों को मूर्ख और अज्ञानी समझते हैं।

एक सवाल पूछता हूं, बजट में जिस तरह की बातें की जा रही हैं, उससे क्या ये सवाल पैदा नहीं होता कि  संसद में रेल का अलग से बजट रखने का मतलब क्या है ? पहले एक रुपये किराया बढ़ता था तो देश में हाय तौबा मच  जाती थी,  यहां दूसरे रास्ते से सैकडों रुपये किराया बढ़ा दिया जाता है और कोई चूं चां  तक  नहीं करता है। ट्रेन का नाम बदल कर जनता की जेब काट ली जा रही है। अगर यही सब किया जाना है तो मुझे लगता है कि रेल बजट रेलवे के लिए एक सालाना जलसा से ज्यादा कुछ नहीं है।  बहरहाल रेल बजट ने तो लोगों को  निराश किया है, अगर आम बजट में भी लोगों को कोई राहत ना मिली और रेल बजट की तरह  इसमें भी  लफ्फाजी की गई तो मोदी की किरकिरी ही होगी। किरकिरी इस मायने में कि वो संख्या बल के आधार पर संसद में भले ही जीत हासिल कर लें, लेकिन जनता के दिलों से वो पूरी तरह उतर जाएंगे। एक बात कहूं मोदी जी प्लीज मुझे मुंगेरी लाल के हसीन सपने मत दिखाइये, मेरे सपनों पर राजनीति मत कीजिए। तकलीफ होती है। विदेशी चैनल पर मुझे देश की असल तस्वीर रखने में आज बहुत कष्ट हुआ।





Thursday 3 July 2014

हाई स्पीड ट्रेन के नाम पर धोखा !

ई सरकार को रेल अधिकारी लगातार मूर्ख बना रहे हैं, इसकी मुख्य वजह कमजोर रेलमंत्री है। संभवत: वो रेल अफसरों की चापलूसी को समझ नहीं पा रहे हैं, इसी वजह से उन्हें अधिकारी गुमराह कर रहे हैं ।

एक ओर रेल अधिकारी प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए यात्रियों की सुरक्षा की अनदेखी कर  कटरा तक ट्रेन चलाने जा रहे हैं, जबकि रेलवे के ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपने निरीक्षण रिपोर्ट में साफ कहा है कि जल्दबाजी में ट्रेन चलाना खतरनाक होगा, दूसरी ओर " सेमी हाईस्पीड ट्रेन " के नाम पर रेलवे को एक बार फिर करोडों का चूना लगाने की तैयारी है।

याद कीजिए 15 फरवरी 2006 तत्कालीन रेलमंत्री लालू यादव ने दिल्ली से आगरा के बीच 150 किलोमीटर की रफ्तार से शताब्दी ट्रेन चलाने का दावा करते हुए नई दिल्ली स्टेशन से शताब्दी ट्रेन को हरी झंडी भी दिखाई थी।

दरअसल रेल अफसरों ने लालू को समझाया कि दिल्ली भोपाल शताब्दी ट्रेन को आगरा तक 150 किलोमीटर की स्पीड से चलाते हैं। इस काम के लिए उस समय भी रेल की पटरी पर लगभग 20 करोड रुपये से ज्यादा खर्च भी किए गए।

आप जानकर हैरान होंगे रेल मंत्रालय ने उस दौरान भी यही दावा किया था कि दिल्ली से आगरा 195 किलोमीटर की दूरी को सिर्फ 90 मिनट में पूरा किया जा सकेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

रेलवे टाइम टेबिल के हिसाब से ये शताब्दी ट्रेन सुबह 6 बजे नई दिल्ली से रवाना होती है और सुबह 8.06 बजे आगरा पहुंचती है। मतलब साफ है कि कई करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी शताब्दी ट्रेन आज तक 150 किलोमीटर की रफ्तार से नहीं चल सकी।

अब आठ साल बाद फिर रेल अधिकारियों ने " मोटा माल "  बनाने का रास्ता खोज निकाला है। इसी रेल पटरी पर " सेमी हाईस्पीड " ट्रेन चलाने के लिए ट्रायल रन किया जा रहा है, ये ट्रेन 160 किलोमीटर की रफ्तार से चलेगी और 90 मिनट में आगरा पहुंचेगी ।

अब रेल अफसरों से ये पूछने वाला कोई नहीं है कि क्या शताब्दी एक्सप्रेस 150 किलो मीटर की रफ्तार से चल रही है ? अगर चल रही है तो इसे आगरा पहुंचने में 2.06 घंटे क्यों लगते हैं ? नहीं चल रही है तो 2006 में करोड़ों रुपये खर्च हुए, उसका जिम्मेदार कौन है ?

अच्छा एक बात रेल अफसरों से ये भी पूछना चाहता हूं कि जिस ट्रैक पर 150 किलो मीटर की रफ्तार से एक ट्रेन चल रही थी, उस पर 160 किलोमीटर की रफ्तार से एक और ट्रेन चलाने में आठ साल लग गए ?

मैं जानना चाहता हूं कि 150 की रफ्तार को अपग्रेड कर 160 किलोमीटर करने के लिए क्या क्या काम किया गया ? इस पर कितना पैसा खर्च हुआ ? अब रेल मंत्रालय का कौन सा अफसर गारंटी देगा कि दिल्ली से आगरा के बीच इस खास ट्रेन की स्पीड 160 किलोमीटर रहेगी ही ?

बहरहाल मेरा पुख्ता दावा है कि इस पूरे रेल खंड पर 160 किलोमीटर की रफ्तार से ट्रेन को चलाना अभी संभव नहीं है। इस रेल खंड में 45 से 50 किलोमीटर ही ऐसी दूरी है जहां 160 की स्पीड  से ट्रेन चल सकती है।

चूंकि रेल के इतिहास में पहली बार इतना अधिक किराया बढ़ाया गया है, इसलिए रेल मंत्रालय " फेस सेविंग " के लिए लुभावनी घोषणाएं करने में लगा है। रेलमंत्री अनुभवहीन है, वो मंत्री की नहीं बोर्ड के चेयरमैन की भाषा बोल रहे हैं।

प्रधानमंत्री जी,

प्लीज
रेल मंत्रालय से ये जरूर पूछा जाना चाहिए कि लालू यादव ने जिस शताब्दी को 150 किलो मीटर रफ्तार से चलाने के लिए 8 साल पहले हरी झंडी दिखाई थी, उसकी असल रफ्तार क्या है ? रेल मंत्रालय पर अगर सख्ती नहीं की गई तो ये यूं ही सरकार को मूर्ख बनाते रहेंगे।



Thursday 15 May 2014

UPA : दस साल दस गल्तियां !

क्जिट पोल के नतीजों से कांग्रेस बुरी तरह घबराई तो है, इसके बाद भी पार्टी आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है। पार्टी आत्ममंथन करने के बजाए नेतृत्व को बचाने में लगी है। मसलन पार्टी चाहती है कि किसी तरह हार का ठीकरा सरकार पर यानि मनमोहन सिंह पर फोडा जाए। चुनाव की जिम्मेदारी संभाल रहे राहुल गांधी पर किसी तरह की आँच ना आने दी जाए। बहरहाल पार्टी का अपना नजरिया है, लेकिन यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में दस बड़ी गल्तियों पर नजर डालें तो हम कह सकते हैं सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है। कमजोर नेतृत्व, निर्णय लेने में देरी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। आइये एक नजर डालते हैं कि दस साल में दस वो गलती जिसकी वजह से पार्टी को ये दिन देखने पड़ रहे हैं।

मनमोनह सिंह को प्रधानमंत्री बनाना 

कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती यही रही कि उसने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के  रूप में चुना। दरअसल  2004 में जब सोनिया गांधी को लगा कि उनके प्रधानमंत्री बनने से देश भर में बवाल हो सकता है तो उन्होंने ब्यूरोक्रेट रहे मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला किया, जबकि पार्टी में तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे, जो इस पद के काबिल भी थे, पर सोनिया को शायद वफादार की तलाश रही। मनमोहन सिंह एक विचारक और विद्वान माने जाते हैं, सिंह को उनके परिश्रम, कार्य के प्रति बौद्धिक सोच और विनम्र व्यवहार के कारण अधिक सम्मान दिया जाता है, लेकिन बतौर एक कुशल राजनीतिज्ञ उन्‍हें कोई सहजता से स्‍वीकार नहीं करता। यही वजह है कि उन पर कमजोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगा।

भ्रष्टाचार और मंहगाई रोकने में फेल

यूपीए सरकार में एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार का खुलासा होता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री किसी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में नाकाम रहे। यहां तक की कोल ब्लाक आवंटन के मामले में खुद प्रधानमंत्री कार्यालय तक की भूमिका पर उंगली उठी। इसी तरह मंहगाई को लेकर जनता परेशान थी, राहत के नाम पर बस ऐसे बयान सरकार और पार्टी की ओर से आते रहे, जिसने जले पर नमक छि़ड़कने का काम किया। आम जनता महंगाई का कोई तोड़ तलाशने के लिए कहती तो दिग्‍गज मंत्री यह कहकर अपना पल्‍ला झाड़ लेते कि आखिर हम क्‍या करें, हमारे पास कोई अलादीन का चिराग तो है नहीं। कांग्रेसी सांसद राज बब्‍बर ने एक बयान दिया कि आपको 12 रुपये में भरपेट भोजन मिल सकता है, इससे पार्टी की काफी किरकिरी  हुई।

अन्ना आंदोलन से निपटने में नाकाम

एक ओर सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे थे, दूसरी ओर जनलोकपाल को लेकर अन्ना का दिल्ली में अनशन चल रहा था। सरकार इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाई और ये आंदोलन देश भर में फैलता रहा। सरकार आंदोलन की गंभीरता को समझने में चूक गई, ऐसा सरकार के मंत्री भी मानते हैं। अभी अन्ना आंदोलन की आग बुझी भी नहीं थी कि निर्भया मामले से सरकार बुरी तरह घिर गई। देश भर में दिल्ली और यूपीए सरकार की थू थू होने लगी। जनता सरकार से अपना हिसाब चुकता करना चाहती थी, इसी क्रम में पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की बुरी तरह हार हुई, अब लोकसभा में भी पार्टी हाशिए पर जाती दिखाई दे रही है। अगर इन दोनों आंदोलन के प्रति सरकार संवेदनशील होती तो शायद इतने बुरे दिन देखने को ना मिलता ।

देश की भावनाओं को समझने में चूक 

यूपीए सरकार के तमाम मंत्री पर आरोप लगता रहा है कि वो देश की भावनाओं का आदर नहीं करते हैं। कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पर सरकार का रवैया दुत्कारने वाला रहा है। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो हद ही कर दी, इस मामले में उन्होंने संसद में ऐसा बयान दिया कि जिससे जनता और देश दोनों शर्मसार हो गए। एंटनी ने पाकिस्तान का बचाव करते हुए कहाकि पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने हुए लोगों ने की, जबकि रक्षा मंत्रालय ने साफ कहा था कि हमलावरों के साथ पाक सैनिक भी थे। उस समय पाक को दोषमुक्‍त बताने वाले इस बयान पर जमकर हंगामा हुआ था। इसके अलावा निर्भया कांड में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की चुप्पी से भी सरकार और पार्टी के प्रति गलत संदेश गया।

काँमनवेल्थ गेम ने डुबोई लुटिया

मैं समझता हूं कि एशियन गेम के बाद काँमनवेल्थ खेलों का आयोजन देश में खेलों का सबसे बड़ा आयोजन था, लेकिन ये आयोजन लूट का आयोजन बनकर रह गया। इसमें खेलों की उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी खेल के आयोजन मे हुए घोटाले की हुई। यहां तक की कांग्रेस के दिग्गज नेता को जेल तक की हवा खानी पड़ी। आखिरी समय में जिस तरह से पीएमओ ने इस आयोजन की खुद माँनिटरिंग शुरू की, अगर पहले ही ऐसा कुछ किया गया होता तो विश्वसनीयता बनी रहती।  इसके अलावा 2 जी घोटाले  ने तो सरकार के मुंह पर कालिख ही पोत दी, जिसमें महज 45 मिनट में देश को 1.76 लाख  करोड का चूना लगा।

मंत्रियों और नेताओं ने जनता से बनाई दूरी 

ये तो कांग्रेस का हमेशा से चरित्र रहा है। उनके सांसद विधायक चुनाव जीतने के बाद जनता से संवाद खत्म कर लेते हैं। दोबारा क्षेत्र में वह तभी जाते हैं जब चुनाव आ जाता है। छोटे मोटे नेताओं की बात तो दूर इस बार जब सोनिया गांधी अमेठी पहुंची तो वहां के लोगों ने राहुल की शिकायत की और कहाकि राहुल चुनाव जीतने के बाद यहां उतना समय नहीं दिए, जितना देना चाहिए था। यही वजह कि अमेठी में जहां दूसरी पार्टियों के झंडे नहीं लगते थे, इस बार ना सिर्फ बीजेपी बल्कि आप पार्टी का भी झंडा देखने को मिला। राहुल की हालत इतनी पतली हो गई कि उन्हें मतदान वाले दिन अमेठी में घूमना पड़ा ।

सीबीआई को बनाया तोता 

राजनीति को थोड़ा बहुत भी समझने वाले जानते हैं कि यूपीए की सरकार देश में 10 साल इसलिए चली कि उसके पास सीबीआई थी और सरकार ने उसे तोता बनाकर रखा था। मुलायम, मायावती, स्टालिन के स्वर जरा भी टेढ़े होते तो सीबीआई सक्रिय हो जाती थी, ये सब सीबीआई से बचने के लिए सरकार को समर्थन देते रहे। हालाँकि सरकार के काम काज का ये कई बार विरोध भी करते रहे, लेकिन समर्थन वापस लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। राजनाथ सिंह भी समय समय पर इशरत जहां मुठभेड़ मामले की सीबीआई की जांच को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हैं, वहीं भ्रष्‍टाचार के खिलाफ बिगुल बजा सरकार की चूलें हिलाने वाले अन्‍ना हजारे भी कांग्रेस पर सीबीआई दुरुपयोग के आरोप लगाते रहे हैं।

युवाओं को जोड़ने में राहुल नाकाम 

युवाओं की बात सिर्फ  राहुल  के भाषण में हुआ करती थी, राहुल या फिर सरकार ने इन दस सालों में ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे युवाओं को सरकार पर भरोसा हो। सरकार और कांग्रेस नेताओं को पहले ही पता था कि इस पर 18 से 22 साल  के लगभग 15 करोड़ ऐसे मतदाता हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं, इसके बाद भी सरकार ने कोई मजबूत ठोस प्लान युवाओं के लिए तैयार नहीं किया। केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालयों में लाखों पद रिक्त हैं, एक अभियान चलाकर इन्हें भरा जा सकता था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। इस चुनाव में बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण मुद्दा था, ये बात यूपीए सरकार के घोषणा पत्र में तो था, लेकिन दस साल सरकार इस मसले पर सोती रही। यूपीए की हार की एक प्रमुख वजह बेरोजगारी भी है।

सोशल मीडिया और तकनीक से परहेज

यूपीए के फेल होने की एक ये भी खास वजह हो सकती है। नरेन्द्र मोदी जहां तकनीक के इस्तेमाल के मामले में अव्वल रहे, उन्होंने आक्रामक और हाईटेक प्रचार का सहारा लिया, वही राहुल गांधी पुराने ढर्रे पर चलते रहे। सोशल नेटवर्किंग का भी पार्टी उतना इस्तेमाल नहीं कर पाई जितना बीजेपी या फिर आम आदमी पार्टी ने किया। कहा गया कि राहुल ने पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन मेरे हिसाब से तो प्रचार में वो केजरीवाल से भी पीछे रहे। राहुल ने एक दो चैनलों को इंटरव्यू दिया, लेकिन वो कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए, मात्र सरकारी योजनाओं पर उबाऊ तरीके से बात करते रहे। ऐसे में लोगों ने उनकी बात को खारिज कर दिया। प्रियंका गांधी नीच राजनीति का बयान देकर सोशल मीडिया के निशाने पर रहीं, इससे भी पार्टी को मुश्किल का सामना करना पड़ा।

कमजोर चुनावी रणनीति 

सरकार हर  मोर्चे पर फेल रही, उसके पास ऐसा कुछ नहीं था, जिसे गिना कर वो वोट हासिल कर सके। ऐसे में उन्हें चुनाव की रणनीति पर अधिक काम करने की जरूरत थी,  लेकिन अनुभवहीन राहुल ऐसा कुछ करने में नाकाम रहे, वहीं पार्टी के नेता भी खुद भी अलग थलग रहे। ऐन चुनाव के वक्त तमाम नेताओं ने चुनाव लड़ने से इनकार किया, इससे भी पार्टी की किरकिरी हुई। दूसरी ओर बीजेपी की चुनावी रणनीति अव्वल दर्जे की रही, इसके अलावा मोदी ने जिस आक्रामक शैली में प्रचार किया, उससे कांग्रेस पूरी तरह बैकफुट पर रही।



Tuesday 25 February 2014

मनमोहन सिंह यानि स्पाँट ब्वाय आँफ 7 RCR

15 वीं लोकसभा में ना सिर्फ कामकाज कम हुआ, बल्कि मैने जितना देखा और पढा है, उसके आधार पर मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि मौजूदा केंद्र की सरकार अब तक की  सबसे घटिया, भ्रष्ट और निकम्मी सरकार रही है। कांग्रेस में आज एक बड़ा तबका ना सिर्फ भ्रष्टाचार में शामिल रहा है, बल्कि उसका आचरण भी नारायण दत्त तिवारी जैसा रहा है।  हालत ये हो गई कि एक तरफ भ्रष्टाचार की खबरों से अखबार और न्यूज चैनल रंगे रहे, वही दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों की अय्याशी की भी खबरें रहतीं थीं। इन दोनों गंदगी का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था, वो सिर्फ प्रधानमंत्री की ईमानदारी छवि को आगे करने की कोशिश करते रहे। हालत ये हुई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीर से लोगों को बदबू आने लगी। मेरा अनुभव यही कहता है कि मनमोहन सिंह की हैसियत 7 आरसीआर के स्पाँट ब्वाय से बढ़कर नहीं रही, मुझे तो नहीं लगता कि 10 साल में एक दिन भी वो देश के प्रधानमंत्री रहे, असल में तो वो 10 जनपथ के पिट्ठू बन कर रहे। इस 10 साल का शासन मेरी नजर में इतना गंदा है कि बस चले तो मैं इस पूरे कार्यकाल को भारत के इतिहास से निकाल बाहर कर दूं।

खैर कहते हैं ना कि "बोया पेड़ बबूल का तो फल काहे को होय " अब कांग्रेस ने जो गंदगी बोई है, उसे काटना भी उसी को होगा, और इसके लिए कांग्रेस को पूरी तरह तैयार भी रहना चाहिए। वैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पता चल गया है कि जनता का कांग्रेस के प्रति कितना गुस्सा है । इतना ही नहीं कांग्रेस की जगह लेने के लिेए कौन आगे आ रहा है, ये भी उसे अब पता चल गया है। अगर मैं कहूं कि कांग्रेस की इसी गंदगी की पैदावार है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तो ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा। अब जिस पार्टी की पैदावार के पीछे कांग्रेस हो, वो पार्टी आगे कैसा प्रदर्शन करेगी, इसे भी समझा जा सकता है। जब बुनियाद बेईमानी की होगी, जब बीज बेईमानी का बोया जाएगा, तो भला वो पार्टी कैसे साफ सुथरी रह सकती है ? अब देखिए पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा का चुनाव जीतते  ही बच्चे की कसम खाई और कहाकि कांग्रेस और बीजेपी से ना समर्थन लेगें और ना ही समर्थन देंगे। बच्चे की कसम से पलट गए और कांग्रेस के सहयोग से कुर्सी पर जम गए। एक दिन पहले फिर दोहराया कि भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा खतरनाक साम्प्रदायिकता है। मतलब केजरीवाल कांग्रेस को इशारों में ये संकेत दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, अगर चुनाव के बाद चुनना हुआ तो वो भ्रष्टाचारियों के गोद में बैठ  जाएंगे।

वैसे भी कुर्सी मिलते ही केजरीवाल में कुर्सी की लालच की भी शुरुआत हो गई। वो तो  भगवान का शुक्र है दो चार न्यूज चैनलो में ईमानदारी अभी बची है, वरना तो केजरीवाल ऐसी सोने की लंका में पहुंच चुके होते जहां से वापस आना उनके लिए संभव नहीं होता। आप सबने सुना होगा कि चुनाव के दौरान वो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्ट बताते रहे, उन पर तमाम गंभीर आरोप लगाते रहे। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए विपक्ष ने दबाव बनाया तो कहने लगे कि नेता विपक्ष यानि हर्षवर्धन उन्हें सुबूत दे दें तो वो रिपोर्ट दर्ज करा देंगे। मैं केजरीवाल से पूछता हूं कि अगर आपके पास सुबूत नहीं था तो ये अनर्गल आरोप क्यों लगा रहे थे ? खैर अंदर की बात ये है कि शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों अभिन्न मित्र और एनजीओबाज हैं, दोनो को एक दूसरे की करतूतें पता है, लिहाजा संदीप की मम्मी के खिलाफ भला कैसे एफआईआर कराते।    

हालाकि मेरे साथ आप भी अरविंद केजरीवाल में तेजी से बदलाव महसूस कर रहे होंगे। केजरीवाल जब राजनीतिक पार्टी बना रहे थे तो बड़ी बड़ी बातें करते रहे। दावा कर रहे थे कि उनके यहां कोई हाईकमान नहीं होगा, सारे फैसले जनता से पूछ कर किए जाएंगे। यहां तक की पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा, ये फैसला भी इलाके की जनता करेगी। केजरीवाल साहब क्या मैं जान सकता हूं कि लोकसभा के लिए कौन सा टिकट आपने जनता से पूछ कर दिया है ? जिस आम आदमी की आप बार-बार बात करते हैं वो आम आदमी को अपनी बात कहने के लिए आपके घर के सामने नारेबाजी क्यों करनी पड़ती है ?  फिर भी आप उनकी बात नहीं सुनते। दिल्ली की जनता जानना चाहती है कि अगर आपने सभी की राय से टिकट दिया है तो रोज आपके घर के बाहर प्रदर्शन करने वाले लोग कौन हैं ? चलिए आप तो ईमानदार हैं ना, बस ईमानदारी से एक बात बता दीजिए.. क्या वाकई आपके यहां कोई हाईकमान नहीं है ? सभी फैसले आम आदमी की राय मशविरे से होते हैं। मैं जानता  हूं कि इन सवालों का आपके पास कोई जवाब नहीं है। सच यही है कि केजरीवाल की हां में हां ना मिलाने वाला पार्टी बाहर हो जाता है, और उससे आम आदमी होने का हक भी छीन लिया जाता है।

अब देखिए..राजनीतिक पार्टी का ऐलान करने के दौरान और भी कई बड़ी-बड़ी बातें की। कहाकि हमारे मंत्री विधायक सरकारी बंगले नहीं लेगें। देश को लगा कि ये ईमानदारी आदमी है, देखो सरकारी बंगला लेने से भी मना कर रहा है। वरना तो लोगों ने राजनीति छोड़ दी, मकान नहीं छोड़ा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद हुआ क्या.. केजरीवाल का असली चेहरा सामने आ गया, सरकारी आवास के लिए सिर्फ केजरीवाल ही नहीं उनके  माता पिता सब किस तरह बेचैन थे, वो पूरे देश ने देखा। मुख्यमंत्री को आवंटित होने वाले आवास को देखने के  लिए सबसे पहले माता - पिता ही घर से निकल लेते थे। बहरहाल खुद केजरीवाल ने पहले 10 कमरों के दो बंगला लेने के लिए हां कर दिया, टीवी चैनलों पर शोर शराबा मचा तो दो फ्लैट यानि आठ कमरे में आ गए। अगर ईमानदार होते और नैतिकता बची होती तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही सरकारी मकान से निकल लिए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. उनके जूनियर मंत्री मनीष सिसोदिया भी सरकारी मकान दबाकर बैठ गए, इन्होंने भी मकान नहीं छोड़ा। सवाल उठा तो कहने लगे कि उनके पास कोई मकान नहीं है। मजेदार बात तो ये कि जब पत्रकारों ने केजरीवाल से पूछा कि क्या साहब आप सरकारी मकान क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? इस पर जो जवाब केजरीवाल ने दिया, इससे तो दिल्ली की जनता की निगाह से ही गिर गए। मकान के मुद्दे पर केजरीवाल ने कहाकि पहले जाकर शीला दीक्षित का बंगला देखो, फिर बात करो कि उनसे छोटा है मेरा घर या बड़ा है। लेकिन केजरीवाल को कौन समझाए, यहां बात छोटे बड़े मकान की नहीं ये तो आपकी ईमानदारी की बात है। रही बात शीला दीक्षित की तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या मैडम शीला दीक्षित ही अरविंद केजरीवाल की रोल माँडल  हैं ? अंदर की खबर ये है कि आपके ही पार्टी के बाकी मंत्री अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।

आपने बहुत राग अलापा कि कोई सरकारी कार इस्तेमाल नहीं करेगा। मीडिया में खबर बनने के लिए आपने 8 किलोमीटर की यात्रा भी रिजर्व मेट्रो ट्रेन से की। कार्यकर्ताओं ने मेट्रो स्टेशनों पर हंगामा बरपा दिया। पांच दिन तक केजरीवाल ने अपनी बैगनआर गाड़ी पर खूब तस्वीरें खिंचवाई। लेकिन थोड़े ही दिन बाद पूरा मंत्रिमंडल चमचमाती आलीशान सरकारी वाहनों पर आ गया। केजरीवाल साहब अगर आप सबको सरकारी वाहन इस्तेमाल ही करना था तो क्या आपकी मारुति कंपनी वालों से कोई साँठ गांठ थी कि टीवी चैनल पर उनकी कार वैगनआर का विज्ञापन कर रहे थे। अरविंद जी सच ये है कि आपको अवसर नहीं मिला, जब अवसर मिला तो आपने भी दूसरे नेताओं की तरह ओछी हरकत करने में आपको भी  कोई परहेज नहीं  रहा।

अब देखिए, केजरीवाल ने देश में आम आदमी की परिभाषा ही बदल दी। सबको पता है कि दिल्ली में इस बार " आप " पार्टी बेहतर कर सकती है। ऐसे में आप अगर सच में आम आदमी की हितों की बात करते तो किसी आँटो वाले को लोकसभा का चुनाव लड़ा देते। जो झुग्गी झोपड़ी वाले केजरीवाल के लिए लड़ते पिटते रहे हैं, वो किसी झुग्गी वाले को उम्मीदवार बनाते। लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया, वो हर क्षेत्र के शिखर पहुंचे लोगों को हायर कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि जिसे वो ले रहे हैं, या जिसे उम्मीदवार बना रहे हैं, वो अपने क्षेत्र में कितना विवादित रहा है। केजरीवाल को लगता है कि आज देश में ये हालत है कि अगर केजरीवाल किसी जानवर को भी टिकट दे दें तो वो ना सिर्फ आदमी हो जाएगा, बल्कि टोपी पहनते ही आम आदमी हो जाएगा। यही वजह है कि उन्हें सामान्य आदमी दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। आप पार्टी ने एक अभियान चला रखा है कि बड़े आदमी को टोपी पहना कर आम बनाओ, लेकिन केजरीवाल साहब इस बड़े आदमी की काली और मोटी खाल को कैसे बदलोगे।

आखिरी बात !

केजरीवाल दुनिया भर से सवाल पूछ रहे हैं, मेरा मानना है कि कुछ जिम्मेदारी भी केजरीवाल साहब की है, इतना ही नहीं वो भी जनता के प्रति आप जवाबदेह हैं। लेकिन हो क्या रहा है, कोर्ट और गृहमंत्रालय केजरीवाल से लगातार पूछ रहा है कि उन्हें किस-किस विदेशी संस्था से धन मिल रहा है और वो उसका क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन और खुफिया एजेंसी सीआईए से केजरीवाल का क्या संबंध है ? अब केजरीवाल की हालत ये है कि वो दुनिया भर से सवाल पूछेंगे, जवाब ना आए तो गाली देगें, लेकिन वो खुद देश की संवैधानिक संस्थाओं को जवाब देना ठीक नहीं समझते। लेकिन उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रीय पार्टिया उनके इशारे पर नाचें और उनके हर सवाल का जवाब दें। एक बात सिर्फ केजरीवाल से... आपने राजनीति से हटकर कभी ईमानदारी से सोचा कि  49 दिन की सरकार में सच  में आपने जनता के लिए कितना काम किया। आप बिजली पानी में भी ईमानदार नहीं रहे। नियमों को ताख पर रखकर सिर्फ घोषणाएं करते रहे, यानि गरीब का बिजली पानी आपके  लिए लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार करने भर से ज्यादा कुछ नहीं रहा। आए थे झुग्गी को पक्का करने, लेकिन खुद और अपने खास चेले मनीष के साथ मिलकर दोनों ने करोडो का मकान अपने नाम आवंटित करा लिया, जबकि दिल्ली की जनता को मिला बाबा जी का ठुल्लू.. मैने गलत तो नहीं कहा ना। वैसे मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर टीम केजरीवाल को भी आठ दस साल मिल गया होता तो ये टीम भ्रष्टाचार के सारे कीर्तिमान तोड़ देती।




Friday 24 January 2014

केजरीवाल की काली करतूत ...

आवश्यक सूचना : मित्रों इस लेख को लिखने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी है। दरअसल मैं चाहता था कि कहानी सच के करीब हो, इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आंदोलन के दौरान जिस भाषा का इस्तेमाल किया, मैं भी उसी भाषा में बात करना चाहता हूं... क्या हुआ आप नहीं समझे.. मतलब बेहूदी भाषा में बात करना है। दोस्तों पूरी कोशिश तो की है कि जिस सड़क छाप, लंपटी भाषा में दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल देश के गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गर्वनर से संवाद कर रहा था, मेरी भाषा भी वैसी ही हो.. इसके लिए मैने भाषा की मर्यादा को पूरी तरह ताख पर रख दिया है.. फिर भी गलती से अगर कहीं मैं मर्यादित हो गया हूं.. तो प्लीज इसे पारिवारिक संस्कार समझ कर माफ कर दीजिएगा। मेरी मंशा सम्मान देने की बिल्कुल नहीं है। 

च बताऊं, अब बिल्कुल मन नहीं होता कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल के बारे में कुछ लिखा जाए ! वजह इसकी बद्जुबानी, बेहूदा आचरण और घटिया राजनीति है। वैसे मैं भाषा के स्तर पर बेईमान नहीं होना चाहता था, मेरी कोशिश भी रहती है कि आलोचना मर्यादा में रहकर ही की जानी चाहिए, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने मजबूर कर दिया है, इसलिए उससे उसकी ही भाषा में बात करना जरूरी है। बात आगे करूं, इससे पहले मुख्यमंत्री की बेहूदगी का एक प्रसंग सुन लीजिए। रेलभवन के सामने उसके धरने को 28 घंटे से ज्यादा समय हो गया था, दिल्ली में अफरा-तफरी मची हुई थी, राजपथ के साथ ही एक दर्जन से ज्यादा सड़कों को बंद कर दिया गया था, चार महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशन भी बंद थे। इन हालातों को देखते हुए एक संवेदनशील पत्रकार ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछ लिया कि " अरविंद केंद्र सरकार के साथ गतिरोध को खत्म करने के लिए क्या कोई बीच का रास्ता हो सकता है ? इस पर मुख्यमंत्री ने बहुत ही गंदा या यूं कहूं कि  बेहूदा और बचकाना जवाब दिया, तो गलत नहीं होगा। उसने कुतर्क करते हुए कहाकि बीच का रास्ता क्या होता है ?  मतलब महिला से पूरा नहीं आधा बलात्कार किया जाए ? 50 महिलाएं हैं तो 25 से रेप करो, ये बीच का रास्ता है ? अब आप ही बताएं, जब ऐसा बदजुबान मुख्यमंत्री  महिलाओं के सम्मान की बात करता है, तो कोई भला क्या भरोसा करेगा ऐसे मुख्यमंत्री पर... ऐसे  मुख्यमंत्री से तो बदबू आती है। वैसे अरविंद मैं बताता  हूं कि बीच का रास्ता क्या होता है ? बीच का रास्ता यही होता है जो तुमने किया ... तुम तो  दरोगा को ट्रांसफर करने की मांग कर रहे थे और गृहमंत्रालय ने पुलिस वालों से कहाकि वो कुछ दिन की छुट्टी पर चले जाएं। बस इतने से तुम्हारा इगो शांत हो गया और जीत का जश्न मनाते हुए तुम अपने गैंग के साथ चले भी गए। इसे ही कहते हैं बीच का रास्ता ! समझ गए ना ! और पत्रकार ने यही बात तुमसे जानने की कोशिश की थी।

हां वैसे इस मुख्यमंत्री की एक बात से तो मैं पूरी तरह सहमत हूं,  वो ये कि दिल्ली पुलिस लोगों में भेदभाव करती है। बड़े लोगों के लिए उसका कानून कुछ है और छोटे लोगों के लिए कानून कुछ और ही है। दिल्ली का मुख्यमंत्री कहता है दिल्ली पुलिस बेईमान है, मैं भी मानता हूं कि वो आम आदमी और खास आदमी के बीच फर्क करती है, इसलिए दिल्ली की पुलिस बेईमान है। अगर दिल्ली पुलिस ईमानदार होती तो दिल्ली में धारा 144 को तोड़ने वालों की सुरक्षा नहीं करती,  इन सबको तबियत से कूट कर अस्पताल पहुंचा चुकी होती ! मुख्यमंत्री जी वाकई दिल्ली पुलिस बेईमान है, तभी तो 38 घंटे से ज्यादा समय तक तुम्हारी गुंडई रेल भवन के सामने चलती रही, और कानून बौना बना रहा। ईमानदारी से सोचो,  अगर मुख्यमंत्री की जगह कोई आम व्यक्ति इस तरह सरेआम दिल्ली की सड़क पर गुंडागर्दी कर रहा होता तो क्या ये पुलिस इसी तरह बर्दास्त कर रही होती ? फिर क्या पुलिस वालों के सिर पर पत्थर पड़ रहे होते और ये पुलिस यूं ही मूकदर्शक बनी रहती ? सब को पता है कि सड़क पर ये गुंडई मुख्यमंत्री की अगुवाई में चल रही थी, बेईमान पुलिस ने रिपोर्ट में मुख्यमंत्री का नाम ना लिखकर भीड़ के नाम से रिपोर्ट दर्ज किया। सच है केजरीवाल.. दिल्ली की पुलिस वाकई बेईमान है। मेरा मानना है कि दिल्ली की पुलिस और गृह मंत्रालय में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो सभी मंत्रियों के साथ तुम जेल में होते और गुंडागर्दी पर उतारू टोपी वाले अस्पताल में पड़े कराह रहे होते।

मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली को तुम लोग क्या बनाना चाहते हो, जिस तरह से सड़कों पर खुले आम नंगा नाच चल रहा है उससे क्या साबित करना चाहते हो ? पहले तो तुम लोग बात करते थे पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की, बात करते थे सोनया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बेईमानी की, बात करते थे बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नीतिन गडकरी के बेईमानी की,  उद्योगपति मुकेश अंबानी के गड़बडियों की.. अब कुर्सी पर आते ही सब एजेंडा भूल गए। बात करने लगे गली मुहल्ले की.. शपथ लेने के बाद तीन मंत्रियों ने न्यूज चैनल के रिपोर्टरों के साथ बस तीन रात  दौरा किया। एक ने आदेश दे दिया कि 48 घंटे के भीतर 45 रैन बसेरा बनाया जाए। वो अफसरों को कैमरे वालों के सामने फर्जी फोन कर अपना नंबर भी बढ़ाता रहा। हालत ये है कि इस बार ठंड से अब तक 187 लोगों की मौत हो चुकी है और सरकार सड़क पर गुंडागर्दी कर रही है। एक महिला मंत्री शाम को निकली, क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद से उसकी कार का शीशा टूट गया, इसने तमाम लोगों की भीड़ जमा कर ली और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी कि उस पर हमला किया गया है। बेचारा पूरा परिवार छिपा-छिपा फिर रहा था, कई दिन बाद सुलह सपाटा हो पाया। तीसरा मंत्री रात में दिल्ली के एक मुहल्ले में पहुंचा और पुलिस से कहने लगा कि मकान में छापेमारी करो, वहां विदेशी महिलाएं धंधा कराती हैं। पुलिस ने कहाकि छापेमारी के लिए उनके साथ महिला पुलिस का होना जरूरी है, तो ये मंत्री हत्थे से उखड़ गया और अपने नेता की तरह ही बदजुबान हो गया। जब पुलिस ने भी अपना असली रूप दिखाया तो फिर तो मंत्री की शिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बाद में कुछ असामाजिक तत्वों के साथ खुद ही मकान में छापेमारी कर युंगाडा की पांच महिलाओं को कार में बैठा कर उन्हें एम्स ले गया और उनका मेडिकल टेस्ट कराया, हालांकि टेस्ट में कुछ नहीं निकला। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि रात में उनके साथ मंत्री और उनके साथ वालों ने छेड़छाड़ की। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है, फैसला आ जाएगा।

अब इस ईमानदार मुख्यमंत्री का चरित्र देखिए। पुलिस वालों पर आरोप है कि उसने मंत्री की बात नहीं सुनीं, जबकि ये आरोप उसके मंत्री ने ही लगाया है। मुख्यमंत्री ने तुरंत इन पुलिसकर्मियों की सजा तय कर दी और कहाकि इन्हें निलंबित किया जाए। गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने उसे समझाने की कोशिश की.. और कहाकि जांच के आदेश किए गए हैं, रिपोर्ट आ जाने की दो, जरूर कार्रवाई होगी। लेकिन अपने बिगड़ैल मंत्री की बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि वो गृहमंत्रालय के सामने धरना देगा। चूंकि गणतंत्र दिवस परेड की तीन महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है, धरने से तैयारियों में मुश्किल होगी, ये सोचकर स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगाया, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए संसद भवन के करीब रेल भवन के सामने अपने गुर्गों के साथ धरने पर बैठ गया। बात पुलिस वालों के निलंबन से शुरू किया और आखिर में तबादले तक आ गया, लेकिन दिल्ली वालों का बढ़ता गुस्सा देख पीछे खिसक गया और उन पुलिस वालों के कुछ दिन के लिए छुट्टी पर चले जाने से धरना खत्म करने को तैयार हो गया। खैर अब दिल्ली की जनता कह रही है कि मुख्यमंत्री साहेब तुम्हें तो जांच पड़ताल से कोई मतलब नहीं है, अगर आरोप लगने के बाद तुमने पुलिस वालों का निलंबन मांग लिया तो अब तो तुम्हें अपने कानून मंत्री को भी तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। इस पर जो आरोप है वो पुलिस वालों से कहीं ज्यादा गंभीर है। मंत्री पर विदेशी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करने का आरोप है। उन विदेशी महिलाओं को आधी रात में जबर्दस्ती उठाकर एम्स ले जाया गया। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हो गई। अब केजरीवाल को इस आरोपी मंत्री की छुट्टी करने में क्यों तकलीफ हो रही है ? अगर पुलिस वालों को बिना जांच के ही कार्रवाई करने की बात दिल्ली का मुख्यमंत्री कर रहा था तो अपने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने में जांच की आड क्यों ले रहा है ?

खैर नए नए मंत्री बने थे, पूरा मंत्रिमंडल बेलगाम हो गया था। खासतौर पर केजरीवाल की तो भाषा बदल चुकी है। राजनीति में जिस भाषा की शुरुआत केजरीवाल ने की, कांग्रेसी उससे एक कदम और आगे निकल गए। गृहमंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री को " येडा मुख्यमंत्री " कह रहे हैं। खैर राजनीति में ये नई विधा की शुरुआत हो रही है, जिसका संस्थापक केजरीवाल ही रहेगा। आखिर में मैं चेतन भगत की बात का जिक्र जरूर करूंगा। मैं उनकी बातों से सहमत हूं। उन्होने दिल्ली की राजनीति को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। कहा कि बाँलीवुड में लड़कियां आती हैं और सिनेमा में हीरोइन का अभिनय कर खूब नाम कराती हैं। लेकिन जब उनकी फिल्म नहीं चलती है तो वो फिल्म तड़का डालने की कोशिश में आइटम गर्ल बन जाती हैं। ठीक उसी तरह दिल्ली की राजनीति हो गई है और अब केजरीवाल अपनी फिल्म को चलाने के लिे आइटम को तड़का देने में लगा है। बहुत बुरा समय आ गया है केजरीवाल ! जय हो ...


Monday 6 January 2014

"आप" मुझे दिल्ली ही रहने दें .. प्लीज !

रोजाना कुछ ऐसी बातें होती हैं कि खुद को रोक नहीं पाता और चला आता हूं आप सबकी अदालत में एक नई जानकारी के साथ। कुछ मित्रों की सलाह थी कि कुछ दिन केजरीवाल साहब को काम करने दीजिए, फिर उनकी समीक्षा की जाएगी। मैने सोचा बात भी सही  है, मौका तो मिलना ही चाहिए। लेकिन रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे मजबूर होकर इनके बारे में लिखना जरूरी हो जाता है। अब देखिए ...."आप "के मंत्री रात को रैन बसेरा की हालत देखने जाने के पहले  इलेक्ट्रानिक मीडिया के दफ्तर में फोन करते हैं। पूछते हैं कि नाइट शिफ्ट का रिपोर्टर आफिस आ गया है क्या ? जब आफिस से बताया जाता है कि हां आ गया है, तो कहा जाता है कि उसे भेज दीजिए, मैं रैन बसेरा देखने जा रहा हूं। आफिस से जवाब मिलता है कि नहीं आज तो रिपोर्टर कहीं और बिजी है, तो बताया जाता है कि आज तो जरूर भेज दीजिए, क्योंकि एक्सक्लूसिव खबर मिलेगी ! जब मंत्री एक्सक्लूसिव खबर की बात करें तो तमाम चैनलों के रिपोर्टर मौके  पर पहुंच ही जाते हैं। रिपोर्टरों के मौके पर आ जाने के बाद मंत्री का चेला मंत्री को बताता है कि आ जाइये,  रिपोर्टर पहुंच गए हैं। थोड़ी देर में ही मंत्री पहुंच जाते हैं और रिपोर्टर से पूछते हैं कि आप सबका कैमरा चालू हो गया है, शुरू करूं मौके मुआयना। रिपोर्टर कहते हैं हां सर ! हम सब रेडी हैं।

अब " आप "के मंत्री जी रैन बसेरा के अंदर जाते हैं, यहां लोगों की हालत देखते हैं और लोगों से उनकी तकलीफ सुनते हैं। 15 मिनट बाद जब मंत्री जी वापस लौटने के लिए निकलने लगते हैं तो एक रिपोर्टर कहता है,  सर मजा नहीं आया। ये तो आप कल भी कर चुके थे, मुझे तो लगता नहीं कि चैनल पर आज दोबारा ये कहानी चल पाएगी,  क्योंकि इसमें कुछ नया तो है नहीं। रिपोर्टर सलाह देते हैं कि खबर चलवानी है तो ... चलिए किसी अफसर के घर और उन्हें रात में ही जगाकर कैमरे के सामने डांटिए..। मंत्री मुस्कुराने लगते हैं, रिपोर्टरों से कहते हैं ..नहीं ...नहीं.. , ज्यादा हो जाएगा। फिर रिपोर्टर सलाह देते हैं कि अच्छा अफसर को फोन मिला लीजिए और उसे जोर-जोर डांटिए । हम लोग यही शूट कर लेते हैं।

बेचारे मंत्री जी अब फंस गए, उन्होंने कहा कि इतनी रात में अफसर को फोन मिलाना ठीक नहीं है। तब एक बड़े चैनल के रिपोर्टर ने सलाह दी, अरे सर ..चलिए फोन मिलाइये मत, बस मोबाइल को कान के पास लगाकर डांट - डपट कर दीजिए। कैमरे पर ये थोड़ी दिखाई पड़ेगा कि बात किससे हो रही है। मंत्री जी ये करने के लिए तत्काल तैयार हो गए। मंत्री ने कहा चलिए जी,  कैमरा चालू कीजिए, हम अभी फोन पर अफसरों को गरम करते है। एक मिनट में मंत्री ने मूड बनाया और फिर एक सांस मे लगे अफसर को डांटने। पूरा ड्रामा मंत्री ने इतनी सफाई से की कि बेचारे रिपोर्टर भी बीच में कुछ बोल नहीं पाए। जब मंत्री की बात खत्म हो गई, तब एक कैमरामैन अपने रिपोर्टर से बोला, भाई कुछ भी रिकार्ड नहीं हुआ है,  मंत्री जी अंधेरे में ही चालू हो गए।

तब सभी रिपोर्टरों ने एक साथ मंत्री से कहा  " सर.. बहुत बढिया था, बस इसी मूड में एक बार और करना होगा, क्योंकि जहां आप खड़े थे.. वहां लाइट कम थी, आप का चेहरा बड़ा काला काला आया है, चेहरे पर गुस्सा दिखाई भी नहीं दे रहा है। मंत्री ने पूछा फिर क्या करें ? कुछ नहीं बस अब आपको वहां खड़ा करते हैं, जहां थोड़ी लाइट होगी, इससे आपका चेहरा चमकता हुआ आएगा और लाइट में चेहरे पर  गुस्सा भी साफ दिखाई देगा। बस फिर क्या, मंत्री जी ने दोबारा फोन पर अफसर को डांट लगा दी । चलते-चलते सब से पूछ लिया अब ठीक है ना, कोई दिक्कत तो नहीं। रिपोर्टरों की तरफ से आवाज आई, नहीं सर, अब बिल्कुल ठीक है। चलिए आप लोग भी जाइए आराम कीजिए, हम भी जा रहे हैं आराम करने।


रैन बसेरों के औचक निरीक्षण का यही असली चेहरा है, वरना सप्ताह भर पहले मंत्री ने कहाकि 48 घंटे के भीतर दिल्ली मे 45 रैन बसेरा बनकर तैयार हो जाना चाहिए। अगर तैयार नहीं हुआ तो अफसरों की खैर नहीं। अब क्या बताए यहां 48 घंटा नहीं 148 घंटा बीत गया है, लेकिन दिल्ली में कोई नया रैन बसेरा नहीं बनाया गया। मैं जानना चाहता हूं कि जो मंत्री रात मे मोबाइल पर  अफसरों को गरम करते हुए खुद को शूट करा रहे थे, क्या कोई जवाब है उनके पास ? मंत्री जी बताएंगे कि किस अफसर के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ? दरअसल सच्चाई ये है कि इस समय दिल्ली में बहुत ही टुच्ची राजनीति चल रही है। कहा जा रहा है मंत्री लाल बत्ती नहीं लेगें। अरे भाई लाल बत्ती लोगे तो आम आदमी का क्या नुकसान हो जाएगा और नहीं लेने से उसे क्या फायदा हो जाएगा। पगलाई इलेक्ट्रानिक मीडिया भी पूरे दिन इसी पर चर्चा कर रही है। बात मंत्रियों की सुरक्षा की होने लगती है, कुल मिलाकर छह तो मंत्री है, वो सुरक्षा नहीं लेगें, इससे आम आदमी पर क्या फर्क पडने वाला है। हम कुछ नहीं कहेंगे, आप सुरक्षा भी लीजिए, गाड़ी भी लीजिए, बत्ती भी लीजिए, बंगला भी लीजिए.. मसलन मंत्री के तौर पर जो सुविधा मिलती है, सब ले लीजिए, लेकिन दिल्ली के लिए कुछ काम कीजिए।  हल्के बयानों से कुछ नहीं होने वाला है, ये दिल्ली है, प्लीज इसे दिल्ली ही रहने दीजिए।

यहां बात वो होनी चाहिए जिससे आम आदमी की मुश्किलें आसान हो, लेकिन आज बात वो  की जा रही है, जिससे आम जनता खुश हो और ताली बजाए। ठीक उसी तरह जैसे रामलीला के दौरान जोकर के आने पर लोग ताली बजाते हैं। दिल्ली की आज सच्चाई ये है कि अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ही चर्चा कर लें, तो इस समय आँटो वाले बेलगाम हो गए हैं। मनमानी किराया तो आम बात रही है, अब वो सवारी के साथ बेहूदगी भी करने लगे हैं। मसला क्या है, बस आम आदमी की सरकार है, लिहाजा अब वो कुछ भी करने को आजाद हैं, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता। ये मैसेज है आज दिल्ली में। खैर धीऱे धीरे ही सही, लेकिन सब कुछ अब सामने आने लगा है।




Saturday 4 January 2014

क्या खतरनाक खेल में शामिल हैं केजरीवाल ?

ज सुबह से मित्रों के फोन आ रहे हैं और सब एक ही बात कह रहे हैं, भाईसाहब आप बिल्कुल सही कह रहे थे, अब हमें भी कुछ-कुछ समझ में आ रहा है, अरविंद केजरीवाल जो कह रहे हैं या कर रहे हैं वो सब महज दिखावा है, असल मकसद तो कुछ और ही लग  रहा है। दरअसल मैं तीन दिन लखनऊ में रहा, कुछ व्यस्तता के चलते खबरों से बिल्कुल कटा हुआ था। मित्रों ने ही मुझे फोन पर बताया कि केजरीवाल ने भी दिल्ली में फ्लैट पसंद कर लिया है, वो भी एक नहीं दो.. मैं चौंक गया कि दो फ्लैट क्यों ? पता चला कि अगल बगल के दो फ्लैट के पांच पांच कमरों को मिलाकर 10 कमरे का मुख्यमंत्री आवास तैयार किया जा रहा है। इन दोनों फ्लैट को लाखों रूपये खर्च कर चमकाने का भी काम  शुरू  हो गया है। बहरहाल न्यूज चैनलों पर खबर आई तो अब भाग खड़े हुए, कह रहे है, इससे छोटा आवास तलाशा जाए। अच्छा अभी इस मित्र ने फोन काटा ही था, दूसरे का फोन आ गया, कहने लगे अरे महेन्द्र जी आपका जवाब नहीं, जो आपने कहा था सब सामने आ रहा है। मैंने पूछा अब क्या हुआ, कहने लगे कि कल तक जो लोग मेट्रो और आटो में सफर करके न्यूज चैनलों की हेडलाइन बने हुए थे, आज सभी ने दिल्ली सरकार से इनोवा गाड़ी उठा ली, अब हर मंत्री शानदार लक्जरी गाड़ी पर चल रहा है। चलिए एक-एक कर सभी मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

सबसे पहले केजरीवाल साहब के नए ठिकाने की बात करते हैं। दिल्ली के प्राइम लोकेशन भगवानदास रोड पर 7/6 डीडीए ऑफिसर्स कॉलोनी अब आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नया पता बनने को तैयार हो रहा है। वैसे तो मुख्यमंत्री की हैसियत से वो लुटिंयन दिल्ली में एक शानदार बंगले के हकदार हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन खुद अरविंद ने ऐलान किया था कि उनका कोई भी मंत्री किसी तरह की सरकारी सुविधा यानि बंगला, मोटर, वेतन कुछ नहीं लेगा, हम सब सिर्फ जनता की सेवा करेंगे। लेकिन जब केजरीवाल ने पांच-पांच कमरों वाले दो फ्लैट लेने का फैसला किया तो दिल्ली वालों के कान खड़े हो गए। अरविंद केजरीवाल से पहले इस फ्लैट को देखने उनके माता-पिता पहुंच गए। सब ने ओके कर दिया, यहां तक कि इस फ्लैट को मुख्यमंत्री के रहने के काबिल बनाने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह बहाने का फैसला भी हो गया और आनन-फानन में अफसरों ने काम भी शुरू कर दिया। खैर मीडिया में आज भी एक तपका ऐसा है जिसकी आंखे खुली हुई हैं। उसे लगा कि दिल्ली को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि अरविंद जो एक समय बड़ी - बडी बात कर रहे थे, दरअसल वो सच्चाई नहीं है, सच्चाई ये है कि अरविंद भी दूसरे राजनीतिक दलों और नेताओं से अलग नहीं है। खैर थोड़ी देर बाद टीवी पर अरविंद के शानदार फ्लैट की तस्वीर दिखाई जाने लगीं।

अब बारी थी अरविंद केजरीवाल की, दिल्ली वाले जानना चाहते थे कि आम आदमी के मुख्यमंत्री इस आरोपों का क्या जवाब देते हैं ? बहरहाल जवाब आया कि पहले जाकर शीला दीक्षित का आवास देखो फिर मेरे फ्लैट की तुलना करो। उनसे तो बहुत छोटा है मेरा फ्लैट। मुझे लगता है किसी आम आदमी के बीच के मुख्यमंत्री का इससे फूहड़ और गंदा जवाब हो ही नहीं सकता। इसका मतलब तो ये कि  मैं कहूं कि शीला ने मुख्यमंत्री रहते अगर भ्रष्ट तरीके से एक हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी की है तो ढाई सौ करोड़ की हेराफेरी करने का आपका भी हक बन जाता है। क्यों केजरीवाल साहब आप ने ईमानदारी की ये नई परिभाषा गढ़ ली है। बहरहाल अभी केजरीवाल का कद उतना नहीं बढ़ा है कि मीडिया की पूरी तरह अनदेखी कर सकें। रात भर कुछ चैनल को छोड़कर ज्यादातर ने केजरीवाल को खूब खरी-खरी सुनाई और दिल्ली वालों को उनका असली चेहरा दिखाया, तब कहीं जाकर सुबह केजरीवाल मीडिया के सामने आए और कहा कि अब वो इस बड़े फ्लैट में नहीं रहेंगे। छोटा फ्लैट तलाशने के लिए अफसरों को कहा गया है। यहां एक सवाल है कि क्या केजरीवाल का भी मन डोल गया है सरकारी आवास को लेकर? क्या ये सच नहीं है कि मीडिया के दबाव में केजरीवाल ने ये फ्लैट छोड़ दिया, वरना तो उनके पापा मम्मी ने भी इस फ्लैट को ओके कर दिया था ?

अब दूसरी बात करते है, सरकारी गाड़ी को लेकर उनके विचार। केजरीवाल तीन दिन तक  ड्रामा करते रहे कि वो सरकारी गाड़ी नहीं लेगें, अपने निजी कार से दफ्तर जाएंगे। मीडिया ने उनके इस फैसले को बढ़ा चढ़ाकर खूब चलाया। तीन दिन तक हर चैनल पर उनकी नीले रंग की कार दौड़ती भागती दिखाई दे रही थी। न्यूज चैनल पर केजरीवाल भाषण देते रहे कि यहां से वीआईपी कल्चर खत्म करेंगे और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देंगे। ड्रामेबाजी का आलम ये कि केजरीवाल ने शपथ लेने के लिए आधा रास्ता मेट्रो से तय किया, बाद में अपनी कार से गए। हालाकि ये अलग बात है कि उनके लिए अलग ही मेट्रो ट्रेन की व्यवस्था की गई थी। अब उनके मंत्री दो कदम आगे निकले, वो सुबह उठते ही न्यूज चैनलों को फोन करते और बताते कि सुबह साढ़े नौ बजे घर से सचिवालय के लिए निकलेंगे और पहले आटो से मालवीयनगर मेट्रो स्टेशन जाएंगे, फिर मेट्रो से सचिवालय जाएंगे। अगर न्यूज चैनल के रिपोर्टर जाम में फंस गए तो मंत्री भी घर से नहीं निकल रहे थे। वो भी रिपोर्टरों के आने के बाद ही आटो पर बैठे। खैर ये ड्रामा भी ज्यादा दिन नहीं चल पाया। अब मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों के पास शानदार सरकारी लक्जरी गाड़ी है। सभी गाड़ियों पर वीवीआईपी नंबर है। मैं पूछना चाहता हूं कि केजरीवाल साहब ये तीन दिन अपनी बैगनआर कार पर चल कर आप क्या बताना चाहते थे ? क्या ये कि आपके पास भी कार है ! अब आपके मंत्रियों ने भी कार लपक ली, कहां गया आपका पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रेम ?

अच्छा आप पानी बिजली पर बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं। जनता को हकीकत क्यों नहीं बताते। आपने जिस तपके यानि मीडिल क्लास को ध्यान में रखकर पानी की बात की, पूरी दिल्ली जानती है कि आपके फरमान से उसे कोई फायदा नहीं होने वाला है। दिल्ली में झुग्गी झोपड़ी या फिर अवैध कालोनी में पानी पहुंच ही नहीं रहा है, मीटर की तो बात ही दूर है। हां मीडिल क्लास तपका हाउसिंग सोसाइटी में रहते हैं, जहां सबके अलग-अलग कनेक्शन नहीं है, पूरी सोसाइटी का एक कनेक्शन है। ऐसे में मुझे तो नहीं लगता कि किसी को फायदा होगा। दूसरा आपने बिजली के बिल को आधा करने की बात की थी, लेकिन अब उसमें चालाकी कर दी आपने। चुनाव के पहले आपने बिजली कंपनियों को चोर बताया था और कहा था कि इन पर शिकंजा कसा जाएगा। हो क्या रहा है कि आप ने तो इन्हीं बिजली कंपनियों को करोडो रुपये सौंपने की तैयारी कर ली। बिजली का बिल कम करने के लिए सब्सिडी का क्या मतलब है ? केजरीवाल साहब सब्सिडी आप अपने घर से नहीं हमारी जेब से दे रहे हैं। हमारे टैक्स के पैसे जिसे कहीं विकास के काम में लगाया जा सकता था, वो पैसा आप बिजपी कंपनियों को दे रहे हैं, फिर मेरा सवाल है कि अब आप में और कांग्रेस में अंतर क्या है ? दोनों के लिए ही आम आदमी से कहीं ज्यादा बिजली कंपनियो की फिक्र है। फिर बड़ी बात तो ये है कि अभी तो बजट पास नहीं हुआ, आपके पास पैसे ही नहीं है, ऐसे में आप सब्सिडी दे कैसे सकते हैं ? केजरीवाल साहब कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको दिल्ली सरकार के घाघ अफसर मूर्ख बना रहे हैं ?

वैसे आप अपनी बातों पर ज्यादा समय तक कायम नहीं रह पाएंगे, इस बात का आभास तो आपके शपथ ग्रहण समारोह में ही हो गया था। आप ने कहाकि सादगी से समारोह होगा, कोई वीआईपी नहीं होगा, सब आम आदमी होंगे। केजरीवाल साहब आपकी आंखों पर पट्टी पड़ी हुई थी क्या ? आपने देखा नहीं कि आम आदमी रामलीला मैदान में किस तरह से धक्के खा रहा था और खास आदमी सोफे और शानदार सफेद कवर चढ़ी कुर्सियों पर विराजमान था। क्या आप अभी भी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि आपके समारोह में खास लोगों के लिए वीआईपी इंतजाम नहीं था ? हां भूल गया था, आप सुरक्षा को लेकर भी काफी कुछ कहते रहे हैं। पुलिस विभाग के रिकार्ड बता रहे हैं कि आपकी सुरक्षा में काफी पुलिस बल शामिल है। अगर आप सुरक्षा लेते तो 10-20 पुलिस कर्मी आपके साथ हो जाते, लेकिन सुरक्षा ना लेने की वजह से जहां से आप का आना जाना होता है, उस पूरे एरिया में सुरक्षा बलों को तैनात किया जाता है। बताते हैं की तीन सौ से चार सौ पुलिस वाले आपके आस पास रहते हैं। इससे तो बेहतर यही होता कि आप सुरक्षा ले लें। खैर ये वो बातें हैं जो आप दावा करते रहे और खोखली साबित हुई..

केजरीवाल साहब अब मैं कुछ गंभीर मुद्दा उठाना चाहता हूं। विधानसभा के भीतर आप पर एक गंभीर आरोप लगा, कि आप ने अपने एनजीओ में विदेशों से चंदा लिया। आप जिससे चंदा लेते हैं उसके क्रिया कलाप जानने की कोशिश करते हैं? मेरी जानकारी है कि ये संस्थाएं   लोकतंत्र को अस्थिर करने का काम करती हैं। मेरा सवाल है कि विधानसभा में आपने इस आरोप का जवाब क्यों नहीं दिया ? विधानसभा के रिकार्ड में आप पर आर्थिक धांधलेबाजी के आरोप दर्ज हो गया है। लेकिन उस दौरान आप मौजूद थे, फिर भी इस पूरे मामले में खामोश हैं, दिल्ली की नहीं देश की जनता सच्चाई जानना चाहती है। कुछ बातें हैं जो आपको जानना जरूरी है।

केजरीवाल का  काला सच !

दरअसल अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो  ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ और कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति और चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारत अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति तक बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल को वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिल चुका है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है।

‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिला है। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है। अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है।  इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।

डच एनजीओ ‘हिवोस’  दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं।  इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है।