Friday 30 August 2013

चोर नहीं चोरों के सरदार हैं पीएम !

नमोहन सिंह जी मैं आपके साथ हूं, मैं कह रहा हूं कि आप चोर नहीं है, आप चोरों के सरदार हैं। अगर विपक्ष कहता है कि प्रधानमंत्री चोर हैं तो मान लिया जाना चाहिए कि विपक्ष की जानकारी कम है। वैसे आप भावुक व्यक्ति है, जज्ज़बाती हो गए और संसद में बोल गए कि विपक्ष प्रधानमंत्री को चोर कहता है, बताइये अब ये बात संसद की कार्रवाई में दर्ज हो गई ना। ऐसे तो देश अपने नेताओं के कितने बड़े-बड़े दाग भूल जाता है। आपकी ही की पार्टी की पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बारे में देश भर में क्या - क्या नारे नहीं लगते थे ? एक नारा ये भी लगा करता था " गली-गली में शोर है, इंदिरा गांधी .......... है। आपने सुना कभी कि इंदिरा जी या राजीव गांधी ने कोई जवाब दिया हो। उन्होंने कभी रियेक्ट नहीं किया। ये ऐसे मामले थोड़े होते हैं कि इस पर प्रतिक्रिया दी जाए। बस एक कान से सुनिए और दूसरे निकाल दीजिए। चलिए कोई बात नहीं गलती हो गई, अब आगे देखिए। वैसे पता नहीं आपके सलाहकार कौन हैं, लेकिन सच में आपको सलाह गलत मिल रही है। ये कहने की क्या जरूरत थी कि आप कोल ब्लाक से जुड़े फाइल के संरक्षक नहीं है, मुझे तो लगता है कि ये गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य है।

खैर प्रधानमंत्री जी, आप बेशक  चोर ना हों, लेकिन आपकी सरकार ने चोरी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। सरकारों पर एक आरोप हो, दो हो, बात समझ में आती है। आपकी सरकार के लगभग हर मंत्री पर कोई ना कोई आरोप लगता ही जा रहा है। बात टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की हुई तो आपकी सफाई आई कि गठबंधन की सरकारों में कुछ दिक्कतें रहती हैं। मतलब आपने समर्थन दे रही पार्टी पर इसका ठीकरा फोड़ दिया। लेकिन काँमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाले के बारे में आप क्या कहेंगे ? आपके रेलमंत्री ने क्या गुल नहीं खिलाया। कोल ब्लाक आवंटन के मामले ने तो आपकी सरकार को नंगा ही कर दिया। इसकी जांच रिपोर्ट में हेराफेरी के मामले में आपके कानून मंत्री को इस्तीफा देना पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह की टिप्पणी सरकार और सीबीआई के बारे में की वो भी सरकार के लिए शर्मनाक रही है। आप ही बताइये जिस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रही हो, उसकी फाइल गायब हो जाए, और ये मसला उस वक्त का हो, जब कोल मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास हो, ऐसे में आप भला जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं ? खैर इस मामले में सच्चाई सब को पता है।

चलिए प्रधानमंत्री जी हम आपके शुभचिंतक हैं, इसलिए कुछ बात आपसे सीधे पूछ रहे हैं। क्या आपको लगता है कि वाकई आप देश के प्रधानमंत्री हैं ? हां आप कानून और संविधान की बात करते हुए कह सकते हैं कि मैं देश का प्रधानमंत्री हूं। फिर मेरा सवाल होगा कि देश के प्रधानमंत्री के पास जो अधिकार हैं, क्या वो आपके पास है ? आप फिर कहेंगे कि हां वो अधिकार मेरे पास है। मैं फिर सवाल करूंगा कि आपकी सरकार में जो लोग मंत्री हैं, क्या आपको लगता है कि वो आपकी मर्जी यानि आपकी पसंद के हैं ? इस सवाल पर आप खामोश हो जाएंगे, कुछ नहीं बोलेंगे। बुरा मत मानिएगा, एक सवाल और पूछ रहा हूं। सोनिया गांधी ने आपको ही प्रधानमंत्री क्यों बनाया ? कभी इस पर विचार किया आपने ? अब ये मत कह दीजिएगा कि मैं लोकप्रिय नेता हूं और मेरी वजह से चुनाव में पार्टी को फायदा पहुंचता है। मैं बताता हूं आपको प्रधानमंत्री इसलिए बनाया गया क्योंकि सोनिया को पता था कि शरीर में जो सबसे जरूरी हड्डी यानि रीढ़ की हड्डी है, वो आपके पास नहीं है। आपकी सबसे बड़ी क्वालिटी सोनिया जी की नजर में यही थी कि आपको उंगली इशारे पर आसानी से नचाया जा सकता है। आपने कभी सोचा नहीं की प्रणव दा जब वित्तमंत्री थे तो आप वित्त विभाग के सचिव थे। क्या आपको प्रणव दा की काबीलियत पर किसी तरह का संदेह है? मेरे ख्याल से नहीं होगा। कड़वी बात कह रहा हूं, गुस्सा मत हो जाइयेगा। आप नौ साल पहले भी देश के प्रधानमंत्री नहीं थे और आज भी नहीं हैं। आप सिर्फ प्रधानमंत्री पद के केयरटेकर हैं, जैसे ही राहुल इसके काबिल हो जाएगें, आपकी छुट्टी हो जाएगी।

चूकि आज आपने खुद बात छेड़ दी, इसलिए एक आम आदमी की तौर पर मैं आपसे सीधे बात करना चाहता हूं। आपने राज्यसभा में कहा कि दुनिया में कहीं भी विपक्ष के नेता देश के प्रधानमंत्री को चोर नहीं कहते। मैं आपकी इस बात से सहमत हूं, लेकिन ज्यादा दूर की बात नहीं करूंगा, चीन में ही उसके एक मंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हुआ तो अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई है। अपने देश में कितने चोट्टे हैं, उन्हें फांसी तो दूर वो आपकी  सरकार में मंत्री बने बैठे हैं। इसलिए आप विदेशों से अपनी तुलना मत किया कीजिए। बात आपने शुरू की है तो एक सवाल और पूछ लेते हैं। किस देश में मुलायम सिंह यादव  और मायावती जैसी नेता और उनकी जैसी पार्टी है। बहुत गरज कर बोल रहे थे, बताइये अगर सीबीआई का डर ना हो तो ये दोनों आपकी सरकार को समर्थन दे सकते हैं ? नीतिगत विरोध पर आप अपने ईमानदार सहयोगियों को किनारे कर देते हैं। वामपंथी आपसे क्या मांग रहे थे ? कोई सौदेबाजी कर रहे थे ? नहीं ना । ममता बनर्जी क्या भ्रष्ट हैं, उनकी पार्टी की कुछ सोच है, जिससे वो समझौता नहीं कर सकतीं। आपने दोनों को किनारे कर दिया। आपको मुलायम और मायावती का साथ रास आ रहा है। प्रधानमंत्री जी आपकी सरकार की बुनियाद ही बेईमानी और भ्रष्टाचार पर टिकी है, इसलिए आपके मुंह से अच्छी बातें भी बहुत बुरी लगती हैं।

अब बहुत ज्यादा लंबी बात करने का मन नहीं है। क्या आपको अभी भी लगता है कि आप एक ईमानदार सरकार चला रहे हैं ? आपको पता है ना कि आपके समय में ये संसद भी कलंकित हो गई, जहां सांसदों की खरीद फरोख्त का मामला सामने आया। राज्यसभा में जब आप आक्रामक होने की कोशिश कर रहे थे और नेता विपक्ष अरुण जेटली ने आपको तीखा जवाब दिया कि दुनिया के दूसरे देशों में सांसदों की भी खरीद फरोख्त भी नहीं होती, उस वक्त आप का चेहरा देखने लायक था। ऐसा लगा कि सरेआम किसी चौराहे पर प्रधानमंत्री के कपड़े उतार लिए गए हों। आप भौचक रह गए, आपको उम्मीद भी नहीं थी कि विपक्ष से ऐसा तीखा जवाब मिलेगा। आमतौर पर प्रधानमंत्री की भाषा बहुत संयमित होती है, जिससे उनकी बातों के बीच सदन में टीका टिप्पणी ना हो, लेकिन आज तो सदन में भी आप चारो खाने चित्त हो गए। वैसे मेरी समझ में नहीं आया कि आप खड़े तो हुए थे चौपट हो रही अर्थव्यवस्था पर अपनी बात कहने, कई महीने पहले आपको सदन में चोर कहा गया था, उस वक्त तो आप खामोश थे, इतनी पुरानी बात आज कहां से याद आ गई ?

आखिर में एक ही बात कहूंगा कि प्रधानमंत्री रहते हुए रिटायरमेंट ले लीजिए, आपके लिए ज्यादा बेहतर होगा। वजह पहले तो मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस के नेतृत्व में अगली सरकार बन सकती है। मान लीजिए बन भी गई तो सौ फीसदी गारंटी है कि आप प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। वैसे तो कांग्रेस की कोशिश होगी कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाकर घाघ कांग्रेसी नेता मजे लूटें, अगर किसी वजह से राहुल तैयार नहीं हुए तो विकल्प  की तलाश होगी। अंदर की बात बता दूं, बहुत सारे कांग्रेसी सोनिया जी के करीब आने के चक्कर में आपरेशन कराकर अपने शरीर में मौजूद रीढ़ की हड्डी निकलवा रहे हैं। इसलिए अच्छा मौका है अभी आप पर कमजोर प्रधानमंत्री का ही आरोप सिद्ध हुआ है, भ्रष्ट प्रधानमंत्री का नहीं। चुपचाप शानदार एक्जिट ले लीजिए, शुकून में रहेंगे। वरना चुनाव में पार्टी की हार का ठीकरा आप पर ही फोड़ी जाएगी, और आप सख्त होकर जवाब भी नहीं दे पाएंगे।



Tuesday 27 August 2013

ये राजस्थान नहीं आसाराम की पुलिस है !

मुझे नहीं पता ये कौन है, आप पहचानिए !
साराम के बारे मे आगे बात करने से पहले आप इस तस्वीर को देख लीजिए। आमतौर पर ऐसी तस्वीर सामने आने के बाद पहले तो लोग तस्वीर को ही खारिज कर देते हैं, कहते हैं कि इस तस्वीर के साथ छेड़छाड़ की गई है। लेकिन सोशल नेटवर्क साइट पर ये तस्वीर मौजूद है और जिसने इस तस्वीर को पोस्ट किया है, उसका दावा है कि इस तस्वीर के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसमें जो शख्स दिखाई दे रहा है, वो वही आसाराम है जो इन दिनों की एक बहुत ही घिनौने आरोपों में बुरी तरह फंस हुआ है। सवाल ये कि  अगर ये तस्वीर सही है तो आसाराम का ये कौन सा एकांतवास है ? ये कौन सी साधना कर रहे है आसाराम ? अच्छा चूंकि मैने तो ये तस्वीर खिंची नहीं है, इसलिए मैं भी इस तस्वीर को खारिज कर दे रहा हूं। लेकिन मासूम बेटी ने जिस तरह का आरोप लगाया है, अगर उसकी बातों के आधार पर आसाराम का चित्र बनाया जाए, तो वो तस्वीर इससे भी गंदी होगी। वो ऐसी तस्वीर होगी, जिसे यहां पोस्ट करना भी संभव नहीं होगा। आसाराम कहते हैं कि उनकी अवस्था 75 वर्ष की हो गई है, ऐसे में उन पर बलात्कार का आरोप लगाना ठीक नहीं है। योनशोषण का आरोप लगाने वाली लड़की को अब आसाराम अपनी पोती बताकर "दादा" के रिश्ते को भी कलंकित कर रहा है। चित्र में जिस लड़की को वो खिला रहे हैं, मुझे तो लगता है कि ये भी उनकी पोती के ही समान होगी, लेकिन आसाराम बताएगा कि पोती को स्नेह, प्यार और दुलार करने का ये कौन सा आसन है। बहरहाल एक लाइन की बात ये कि इस घृणित कार्य के बाद भी जिस तरह से पुलिस की कार्रवाई चल रही है, उसे तो यही लग रहा है कि ये राजस्थान की नहीं आसाराम की पुलिस है।

हम सब जानते हैं कि संत के पीछे भक्त लगे होते हैं, इस संत की पीछे पुलिस लगी है। संत भागवत गीता, रामायण, रामचरित मानस पढ़ता है, ये संत कानून की धाराएं पढ़ता है। संत भक्तों को भगवान से मिलने का रास्ता बताता है, ये संत लोगों कानून की आंख में धूल झोंकने का रास्ता सिखाता है। एक सामान्य आदमी पर भी ऐसा घिनौना आरोप लगता है तो वह भीतर से टूट जाता है और आत्ममंथन कर गलती को सुधारने की कोशिश करता है। ये गलती पर गलती को दोहराता रहता है। ये संत झूठ भी बोलता है और तब तक बोलता रहता है, जब तक पकड़ा नहीं जाता। इस तथाकथित संत के ऊपर देश भर में ना जाने कितने मामले चल रहे हैं, मैं तो यही देखकर हैरान हो जाता हूं। बलात्कार, हत्या की कोशिश, जमीन कब्जाने, काला जादू से लेकर और ना जाने क्या-क्या आरोप इस पर और इसके आश्रम पर नहीं लगे। अच्छा हैरानी तो ये कि गंदगी करने के बाद श्रद्धालुओं की आड़ में कानून को चुनौती भी देता है। उसे लगता है कि अगर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया तो देश में बवाल मचा देगा। फिर चुनाव का मौका है, लिहाजा कोई भी राज्य सरकार उससे पंगा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी।

बहरहाल पुलिस की जो कार्रवाई चल रही है, उससे तो लगता नहीं कि राजस्थान में पुलिस है, बल्कि वो सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम कर रही है। यही वजह है कि वो किसी तरह इस मामले का शांतिपूर्ण समाधान निकालना चाहती है। मसलन लाठी भी ना टूटे और काम भी बन जाए। लेकिन काम इतनी आसानी से बनने वाला नहीं है। नाबालिग लड़की के यौन शोषण का मामला है और आरोपी भी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि आसाराम हैं। ये तो साफ है कि आसाराम के खिलाफ जितनी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज है, अगर उसकी जगह कोई और होता तो अब तक तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर थर्ड डिग्री के जरिए अपराध भी कबूलवा चुकी होती। लेकिन आसाराम को अतिथि अपराधी का दर्जा हासिल है। जिन धाराओं में अपराध पंजीकृत है, उसमें पुलिस को तो ज्यादा मेहनत करने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि इसके तहत खुद आसाराम को साबित करना है कि वो पाक साफ है। पुलिस को तो बस उसे गिरफ्तार कर कोर्ट के सामने पेश भर करना है।

मैने देखा कि मुंबई बलात्कार की घटना के बाद राजस्थान सरकार, राजस्थान पुलिस और आसाराम बहुत खुश थे। इन्हें लगा कि अब मीडिया मुंबई में ही रहेगी, उसे जोधपुर की घटना से ज्यादा लेना देना नहीं रहेगा। लेकिन भला हो उस बेटी का कि इस वक्त संसद चल रही है। वैसे तो मैने संसद में शरद यादव को बेकार की बातें करते हुए ही ज्यादा सुना है, लेकिन पहली बार उन्होंने देश की जनता की आवाज में अपनी आवाज मिलाई और आसाराम के खिलाफ जमकर बोले। गुरुदास गुप्ता ने तो इसे फांसी देने तक की बात कह दी। इसके अलावा भी तमाम सांसदों ने आसाराम पर के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। संसद में माहौल गरम देख राजस्थान सरकार के पसीने छूट गए। मुख्यमंत्री को लगा कि अगर राजस्थान पुलिस की लापरवाही की वजह से संसद में कार्य बाधित हुआ तो पार्टी नेता उन्हें निशाना बना सकते हैं। इसी बीच गृहमंत्री ने अपनी बचाने के लिए राजस्थान सरकार से पूरी रिपोर्ट तलब कर ली। यहीं से पुलिस थोड़ा सतर्क हुई और इंदौर जाकर आसाराम को नोटिस देकर कहा कि वो 30 अगस्त तक पूछताछ के लिए हाजिर हों। वरना तो इसके पहले राजस्थान पुलिस पूरे केश का बलात्कार करने में जुटी हुई थी। राजस्थान के एक गैरजिम्मेदार पुलिस अफसर ने तो अपना  फैसला ही सुना दिया, कहाकि बलात्कार का मामला पुष्ट नहीं हुआ है, इसलिए धारा 376 हटा ली गई है। जब देश में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई तो पुलिस का वही अफसर अपनी बात से पलट गया। वैसे भी राजस्थान पुलिस की कार्रवाई का भगवान ही मालिक है। सब ने देखा कि आसाराम इंदौर में है और राजस्थान की पुलिस अहमदाबाद में उन्हें नोटिस थमाने गई थी। आसाराम मालामाल है, उन्हें पैसे की कमी तो है नहीं। इसलिेए वो कहीं भी भाग सकते हैं, लिहाजा राजस्थान की पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है, इससे अब आसाराम विदेश नहीं भाग सकेंगे।

शिकंजा कसता देख आसाराम अब परेशान है। लेकिन इसके बाद भी वो परेशानी से निकलने के लिए सच्चाई का रास्ता नहीं देख रहा है। वो सरकारों को डराने की कोशिश कर रहा है। ऐसा माहौल बनाना चाहता है जिससे सरकार डर जाए और गिरफ्तार ना करे। इसीलिए आज उसने भक्तों के बीच कहाकि  अगर  पुलिस ने गिरफ्तार किया तो वो अन्न जल त्याग देगा। अब उसे कौन समझाए कि तुझे तो फांसी पर लटकाने की बात तक संसद में हो रही है। ऐसे में खाना पानी छोड़ने से भी कोई सहानिभूति नहीं होने वाली। अब तो एकांतवास और साधना की आड़ में रंगबाजी या कहूं रंगरेलिया नहीं चल पाएगी। आपको पता है इंदौर में जब आसाराम को बताया गया कि पुलिस आई है, आसाराम तुरंत एक कमरे चला गया और चेलों से कहा कि उन्हें बता दो कि मैं साधना कर रहा हूं। हाहाहहा। वाह रे, साधना वाले आसाराम। हां एक बात तो बताना ही भूल गया। आसाराम कह रहा है कि पुलिस उसे गिरफ्तार करके कुछ ऐसा वैसा खिला देगी। अरे पुलिस क्यों खिला देगी ? पुलिस पागल है क्या ? पुलिस के लिए तो आसाराम संत नहीं बल्कि "मोटा माल" है। पुलिस अच्छी तरह जानती है कि किसके साथ कैसा सलूक करना है। मैं तो बहुत से पुलिस वालों को देखता हूं कि वो अपने सर्विस काल में किसी लंपू चंपू बाबा का साथ देते रहते हैं और रिटायर होने के बाद उसी के आश्रम पर कब्जा जमा लेते हैं। अब आसाराम को भी एक दो आश्रम से तो हाथ धोना ही पडेगा।

सच कहूं, मैं आसाराम से ज्यादा उनके श्रद्धालुओं को गलत मानता हूं। भक्ति तो ठीक है, लेकिन अंधभक्ति का क्या मतलब है ? जब हम सब देख रहे हैं कि जिस आदमी का हम सब जय जयकार कर रहे हैं, वो बहुत ही घृणित और नीच कर्म में शामिल हैं। ऐसे में हमें खुद ही उस आदमी के खिलाफ मुखर होना चाहिए। यहां मुखर होना तो दूर, हम उसकी जय-जय कार कर सरकार को ये बताने की कोशिश कर रहे हैं, कि हम इसी के पापी के साथ खड़े हैं। मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि जिस किसी को लगता है कि पीड़ित बेटी झूठ बोल रही है, वो किसी साजिश के तहत ऐसा आरोप लगा रही हो, तो प्लीज आप एक काम कर सकते हैं, जब ये आसाराम के एकांतवास में जाए तो अपनी बेटी को उसके पास भेज कर देखिए। शायद फिर आपकी आंखे खुल जाएं !





Thursday 22 August 2013

क्या " लाल " करना नहीं जानती दिल्ली पुलिस ?

मैं बात तो बापू आसाराम की ही करने आया हूं, लेकिन इस बूढ़े की करतूत से मन इतना खिन्न है कि इसके नाम के आगे बापू लिखने का बिल्कुल मन नहीं है। लिहाजा आगे बस आसाराम ही लिखूंगा। आपको पता ही होगा, हफ्ते भर पहले पुलिस के हत्थे चढ़ा 70 साल का आतंकी टुंडा ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि तीन साल पहले उसने 18 साल की लड़की से शादी की है, ये उसकी तीसरी बीबी है। शायद इसी टुंडा की कहानी आसाराम को जंच गई. और वो खुद को रोक नहीं पाया, और एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के लिए पागल हो गया। खैर इस बूढे आसाराम की तो मैं आगे खबर लूंगा ही, लेकिन सच बताऊं मैं आसाराम से ज्यादा दिल्ली और राजस्थान की पुलिस से नाराज हूं। एफआईआर दर्ज हुए तीन दिन बीत गए और अभी तक पुलिस इसे गिरफ्तार नहीं कर पाई। मेरा दावा है कि ये मामला अगर यूपी पुलिस के पास होता तो अब तक पुलिस न सिर्फ आसाराम को गिरफ्तार कर चुकी होती, बल्कि इतना लाल कर चुकी होती कि ये आसाराम कम से कम महीने भर तो बैठकर प्रवचन करने की हालत में नहीं होता। ये पुलिस वाले दो चार रूपये चोरी करने वाले बच्चों पर तो "थर्ड डिग्री" इस्तेमाल कर दरिंदगी की सारी सीमाएं तोड़ देते हैं, लेकिन जब इनके सामने किसी बड़े आदमी का नाम आता है, चाहे उसने कितना ही घिनौना काम क्यों ना किया हो, इनकी घिग्घी बंध जाती है।

स्वामी नित्यानंद, कृपालु महराज, चिन्मयानंद के बाद अब आसाराम। सभी पर महिलाओं के साथ यौन शोषण के गंभीर आरोप है। संत समाज का रवैया अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब संतों की विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी। हालाकि मेरा मानना है कि अब इन संतो के प्रवचन में कोई दम नहीं रहा, वरना आज जितनी अधिक मात्रा में भागवत कथा, रामकथा के साथ देश भर में जहां तहां धार्मिक प्रवचन हो रहे हैं। उसके बाद तो देश के लोगों में कोई सुधार नहीं है। आपको पता है कि लगभग हर प्रवचन का टीवी पर प्रसारण भी होने लगा है, ऐसे में तो देश में कोई बुराई रहनी ही नहीं चाहिए थी, लेकिन मेरा मानना है कि इन प्रवचनों में का समाज पर कोई असर नहीं है,  यही वजह है कि अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। अब बढ़े भी क्यों ना ! संतों का चरित्र जो सामने आ रहा है, ये सब देखकर इन भगवाधारियों से घिन्न आने लगी है। मुझे हैरानी इस बात पर भी है कि बिना जांच कि रिपोर्ट आए ही, बीजेपी नेता उमा भारती ने आसाराम को कैसे क्लीन चिट दे दिया। आसाराम के चरित्र को किस आधार पर उमा भारती साफ सुथरा बता रही हैं, जबकि आसाराम पर आज भी तरह तरह के गंभीर  आरोप हैं। खैर खग ही जाने खग की भाषा।

आसाराम पर आरोप लगा कि उनके आश्रम में काला जादू होता है, इससे दो बच्चों की मौत तक हो गई, उन पर जमीन कब्जाने के कई मामले चल रहे हैं। बद्जुबानी तो आसाराम के खून मे हैं। उनकी नजर में पत्रकार कुत्ते हैं, राहुल गांधी कम बुद्धि वाला लड़का है, महाराष्ट्र में पानी की बर्बादी पर सवाल उठा तो बोले पानी किसी के बाप का नहीं है। रतलाम में कहाकि पृथ्वी पर पानी की कमी नहीं है, अगर मैं झूठ बोलूं तो तुम सब मर जाओ। तुम सब का आशय सामने बैठे भक्तों से था। सबसे घृणित आचरण तो इसने तब किया जब दिल्ली में बलात्कार के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तो कहा कि " इतनी रात में लड़की सिनेमा देखकर आ रही थी, फिर भी अगर वो बलात्कारियों से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती और उन्हें भाई बना लेती तो ऐसा नहीं होता। ये तो यहां तक कहने से नहीं चूके कि गलती एक तरफ से नहीं होती। मतलब दामिनी की भी गलती थी। बहरहाल अब एक बच्ची ने इसी आसाराम पर इतने गंभीर आरोप लगाए हैं कि सुनकर इस आदमी से नफरत होने लगी है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली की पुलिस किसी भी लड़की के आरोप लगाने मात्र से इतनी गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कर लेगी ? ऐसा तो बिल्कुल नहीं है, बकायदा पुलिस ने लड़की का मेडिकल कराया है। रिपोर्ट में लड़की के आरोपों को सही पाया गया है, उसके बाद ही यहां एफआईआर दर्ज हुई है। फिर मामला गंभीर था, इसीलिए धारा 376 के साथ ही "पास्को" के तहत भी मामला दर्ज किया गया। मतलब ये कि अब खुद आसाराम को साबित करना है कि वो बेगुनाह हैं।

मुझे तो लगता है कि दिल्ली पुलिस लाल करना ही नहीं जानती है। वरना तो आसाराम कुछ दिन पहले यहीं दिल्ली में थे। बंद कमरे में आधे घंटे की पूछताछ में एक-एक बात बता देते। मेरा तो मानना है कि पुलिस को बहुत ज्यादा लाल करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। सच बताऊं, दिल्ली पुलिस ने एक बहुत बड़ा अवसर खो दिया। अगर वो आसाराम के मामले में सख्त कार्रवाई करती तो दिल्ली पुलिस पर लोगों का भरोसा बढ़ जाता। लगता कि दिल्ली में कानून का राज है, यहां कोई बड़ा छोटा नहीं है। लेकिन दिल्ली पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर महज खानापूरी की, कार्रवाई के नाम पर वो पीछे हट गई। हैरानी इस बात पर हो रही है कि आसाराम के प्रवक्ता मीडिया के सामने झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं। कह दिया कि जिस दिन बलात्कार की बात की जा रही है, उस दिन ये जोधपुर में थे ही नहीं। बाद में फार्महाउस के मालिक ने खुलासा किया कि नहीं आसाराम यहीं रुके थे और लड़की भी अपने परिवार के साथ यहां थी।  

बहरहाल आसाराम पर जो आरोप लगे हैं मैं तो उससे बिल्कुल हैरान नहीं हूं। मेरा तो मानना है कि एक अयोग्य आदमी को जब इतना मान सम्मान, एश्वर्य मिलता है तो वो पागल  हो जाता है। ये संत समाज ऐसे ही अपराधियों की शरणस्थली बनता जा रहा है। आपको याद होगा जो नित्यानंद एक अभिनेत्री के साथ अश्लील हरकत करते हुए पकड़ा गया और उसकी सीडी तक आम जनता के बीच आ गई। उसे जेल तक जाना पड़ा।  पर उस भगवाधारी को इसी संत समाज ने इलाहाबाद के कुंभ मेले के दौरान जगतगुरु की उपाधि से नवाजा। बुजुर्ग कृपालु महराज पर भी बलात्कार का गंभीर आरोप लग चुका है। स्वामी चिन्मयानंद पर भी उनकी  ही शिष्य़ा चिदर्पिता ने बलात्कार का ना सिर्फ आरोप लगाया, बल्कि थाने में रिपोर्ट तक दर्ज कराई। मैं तो ऐसा आचरण करने वालों को साधु संत बिल्कुल नहीं मानता। ये अपराधी हैं और इनके साथ अपराधियों जैसा ही सलूक होना चाहिए।









Wednesday 21 August 2013

रिटायर होकर आराम करने आया है आतंकी टुंडा !

मुझे देश में बढ़ रहे आतंकवाद के बारे में तो अच्छी जानकारी है, लेकिन आतंकवादियों इनके ठिकाने, इनके संगठन के बारे में बस सुनी सुनाई बातें ही पता हैं। देख रहा हूं तीन चार दिन से एक सेवानिवृत्त आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा को लेकर दिल्ली पुलिस इधर उधर घूम रही है। हालाकि इसने अकेले ही पुलिस के पसीने छुड़ा दिए हैं। पुलिस उसे आतंकवाद की पांच घटनाओं में शामिल होने की बात करती है, टुंडा पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए दावा करता है कि वो पांच और यानि आतंकवाद की 10 घटनाओं में शामिल रहा है। खुद को अंडरवर्ल्ड डाँन दाउद इब्राहिम का सबसे करीबी भी बता रहा है। इतना ही नहीं खुद ही कह रहा है कि वो लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का बड़ा आतंकवादी है। पुलिस बहुत मेहनत से सवाल तैयार करती है, उसे लगता है कि टुंडा सही जवाब देने से हिचकेगा, लेकिन वो पुलिस को बिल्कुल निराश नहीं कर रहा है, आगे बढ़कर अपने अपराध कुबूलता जा रहा है। जानते हैं टुंडा खाने पीने का भी काफी शौकीन है, वो खाने में सिर्फ ये नहीं कहता है कि उसे बिरयानी चाहिए, बल्कि ये भी बताता है कि जामा मस्जिद की किस दुकान से बिरयानी मंगाई जाए। टुंडा के हाव भाव से साफ है कि वो यहां पुलिस से टांग तुडवाने नहीं बल्कि जेल में रहकर मुर्गे की टांग तोड़ने आया है।

सुना है कि भारत - नेपाल सीमा यानि उत्तराखंड के बनबसा से दिल्ली पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया है। देखिये ये तो पुलिस का दावा है। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि टुंडा पुलिस के बिछाए जाल में फंसा है, मेरा तो मानना है कि पुलिस इसके जाल में फंसी है। अंदर की बात बताऊं ? टुंडा की जो तस्वीर पुलिस के रिकार्ड में है, उस तस्वीर से तो पुलिस सात जन्म में भी टुंडा को तलाश नहीं सकती थी। हो सकता है कि ये बात गलत हो, पर मेरा तो यही मानना है कि टुंडा ने खुद ही पुलिस को अपनी पहचान बताई है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं क्या कहता जा रहा हूं। भला टुंडा क्यों पुलिस के हत्थे चढ़ेगा ? उसे मरना है क्या कि वो दिल्ली पुलिस के पास आएगा ? हां मुझे तो यही लगता है कि वो बिल्कुल आएगा, क्योंकि इसकी ठोस वजह भी है। दरअसल टुंडा अब बूढा हो गया है और इस उम्र में वो पुलिस के साथ आंखमिचौनी नहीं खेल सकता। ऐसे मे हो सकता है कि आतंकवादी गैंग से ये रिटायर हो गया हो। साथियों ने उसे सलाह दी हो कि अब तुम्हे आराम की जरूरत है।

किसी आतंकवादी को आराम की जरूरत हो तो उसके लिए भारत की जेल से बढिया जगह भला कहां मिल सकती है। मुझे तो लगता है कि वो यहां पूरी तरह आराम करने के मूड में ही आया है। यही वजह है कि वो किसी भी मामले में अपना बचाव नहीं कर रहा है। आतंकवाद से जुड़ी जिस घटना के बारे में भी पुलिस उससे पूछताछ करती है, वो सभी अपने को शामिल बताता है। इतना ही देश के दूसरे राज्यों में भी हुई आतंकी घटनाओं में भी वो अपने को शामिल बताने से पीछे नहीं हटता। हालत ये है कि दिल्ली पुलिस से उसकी पूछताछ पूरी होगी, फिर उसे एक एक कर दूसरे राज्य की पुलिस रिमांड पर लेकर अपने यहां ले जाएगी। ऐसे में टुंडे का पर्यटन भी होता रहेगा। टुंडा को इस बात का दुख होगा कि पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध राज्य की पुलिस अपने यहां की आतंकी वारदात में उसका नाम शामिल क्यों नहीं कर रही है ? केरल, जम्मू कश्मीर, पोर्ट ब्लेयर, सिक्किम और मिजोरम, मेघालय में भी कुछ मामले निकल आएं तो टुंडा की चांदी हो जाए । घूमने फिरने का टुंडा वैसे भी शौकीन है, अब सरकारी खर्चे पर उसे ये सुविधा मिलेगी, तो भला उसे क्या दिक्कत है।

70 साल का ये बूढा आतंकी अपने को खुंखार साबित करने का कोई मौका नहीं चूक रहा है। कह रहा है कि जब वो स्कूल में पढ़ रहा था, तब वह एक चूरनवाले से बहुत प्रभावित हुआ, क्योंकि चूरनवाला पोटाश, चीनी और तेजाब की मदद से बच्चों को आकर्षित करने के लिए हल्की आतिशबाजी किया करता था। इसी से प्रभावित होकर बम बनाना शुरू किया। वो कहता है कि आसानी से मिलने वाली सामग्री ही वो बम बनाने में इस्तेमाल करता है। मसलन  यूरिया, नाइट्रिक एसिड, पोटैशियम क्लोराइड, नाइट्रोबेंजीन और चीनी की सहायता से बम बनाता था। मुझे तो इसकी बात में झोल नजर आ रहा है। क्योंकि इसने बम बनाने की किसी से ट्रेनिंग नहीं ली, लेकिन ये आतंकवादी गिरोहों का सबसे बड़ा ट्रेनर जरूर बन गया। अपने को बड़ा खिलाड़ी बताने के लिए ये अपना संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी बता रहा है। दिल्ली के दरियागंज में एक गरीब परिवार में जन्मा टुंडा वैसे तो गाजियाबाद के पिलखुवा में बढ़ईगिरी करता था। बाद में इसने कबाड़ का काम शुरू किया । इसमें भी फेल हो जाने के बाद कुछ समय तक कपड़े का कारोबार में रहा। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल में जिस तरह ये अपना आना जाना बता  रहा है, उससे तो लगता है कि इन देशों के बीच कोई लोकल ट्रेन चलती है, जिससे ये बिना देरी पहुंच जाता था।

बहरहाल मुझे ना जाने क्यों लग रहा है कि 70 साल की उम्र में टुंडा यहां एक रिटायरमेंट प्लान के तहत आया है। आसानी से समझा जा सकता है कि इतने बूढे आतंकी का खर्च दाउद या फिर पाकिस्तानी क्यों उठाएंगे ? इसलिए टुंडा किसी साजिश के तहत तो यहां नहीं आया है ! ये भी देखा जाना चाहिए । वैसे भी सब जानते  हैं कि देश की पुलिस पद, प्रमोशन और पदक के लिए पागल रहती है। जाहिर है इतने बड़े आतंकी को पकडने वाली पुलिस टीम को पद भी मिलेगा, प्रमोशन भी मिलेगा और पदक भी। इसलिए टुंडा पुलिस की हर बात बिना दबाव के खुद ही मान ले रहा है। उसे ये भी पता है कि  कोर्ट में उसका जितने साल मुकदमा चलेगा, उतनी तो उसकी उम्र भी नहीं बची है। अब टुंडा इतना बड़ा आतंकी है तो उसे कड़ी सुरक्षा में रखा भी जाएगा। टुंडा जानता कि यहां कसाब के रखरखाव पर मुंबई सरकार ने कई सौ करोड रुपये खर्च किए हैं। कसाब को उसकी मन पसंद का खाना मिलता था, अब इस उम्र में टुंडा और क्या चाहिए ? लेकिन टुंडा ने कुछ जल्दबाजी कर दी, अभी पुलिस की पूछताछ चल ही रही है कि उसने पुलिस से लजीज खाने की मांग रखनी शुरू कर दी। एक सलाह दे रहा हूं टुंडा, थोड़ा तसल्ली रखो, जेल में अच्छी सुविधा मिलेगी। अभी अगर बिरयानी वगैरह मांगने लगे तो आगे मुश्किल हो जाएगी।








Tuesday 20 August 2013

ट्रेन हादसा : बड़बोले नीतीश का असली चेहरा !

बिहार के सहरसा के पास एक ट्रेन हादसे में 37 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनका करीब के अस्पताल में इलाज चल रहा है। ये एक घटना है, कहीं भी हो सकती है। इस पर मुझे ज्यादा बात नहीं करनी है। लेकिन मुझे हैरानी मुख्यमंत्री के उस बयान पर हो रहा है,  जिसमें वो राज्य सरकार की गलती मानने को तैयार ही नहीं हैं। सच कहूं तो ये एक गंभीर मामला है, क्योंकि जब सूबे का मुख्यमंत्री ऐसे टुच्चेपने का जवाब देगा तो भविष्य में भी उसके अफसर इसी तरह लापरवाह बने रहेंगे। मै समझ में नहीं पा रहा हूं कि इतना गैर-जिम्मेदाराना बयान एक ऐसा मुख्यमंत्री दे रहा है, जो कभी रेलमंत्री भी रह चुका है। इन्हें तो रेल मंत्रालय और राज्य सरकार दोनों की जिम्मेदारी और कार्यप्रणाली की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे रेल मंत्रालय की गलती मानते हैं, फिर तो वो ट्रेन को फूंक देने और ट्रेन चालक की पीट पीट कर हत्या कर देने को भी जायज ही ठहराएंगे। क्योंकि जो गलत है, उसे सजा तो मिलनी ही चाहिए, और बिहार की जनता ने उसे सजा दे दिया। मैं समझता हूं कि अपनी खोखली तारीफों से अब नीतीश कुमार ना सिर्फ हवाबाज हो गए हैं, बल्कि मैं तो कहूंगा कि बद्जुबान भी हो गए हैं।

एक मिनट में नियम और कानून की बात कर ली जाए। नियम तो ये है कि अगर आप रेल पटरी क्रास भी करते हैं तो ये अपराध है। इसमें आपके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इतना ही नहीं अगर पटरी पर कोई जानवर आ जाता है, और उसकी वजह से दुर्घटना होती है, जान माल की हानि होती है तो भी जानवर के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है। आइये अब इस हादसे की बात कर लेते हैं। बताते हैं कि खगड़िया और धमौरा रेलवे स्टेशन के पास ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। ट्रेन से उतर कर यात्रियों को रेल की पटरी के सहारे ही काफी दूरी तय करनी पड़ती है। अगर ये सच है तो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करना ही होगा, भला ये कैसे संभव है कि स्टेशन की पहुंच में सड़क ही ना हो। दुर्घटना के बाद अपनी सफाई में मुख्यमंत्री ने खुद भी कहाकि ये एक ऐसा इलाका है, जहां सड़क नहीं है। इसलिए राहत दल को पहुंचने में समय लगा। दुर्घटना के कई घंटे बाद तक घायल रेल पटरी पर ही तड़पते रहे, ना डाक्टर पहुंचे और ना बिगड़ती कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए पुलिसकर्मी ही पहुंच पाए।

आपको पता है कि इसी रेलवे स्टेशन के पास एक कात्यायनी देवी का मंदिर है। बताया गया कि यहां हर साल सावन के महीने में काफी भीड़ होती है, खासतौर पर अंतिम सोमवार को। अब रेल मंत्रालय अपने 86 हजार किलोमीटर रेल पटरी पर के अगल-बगल कौन सा मंदिर है और यहां कब-कब मेला लगता है, ये हिसाब लगाता रहेगा। मुख्यमंत्री की बात से तो यही लगता है कि ये हिसाब राज्य सरकार को नहीं बल्कि रेलमंत्रालय को रखना चाहिए। कमाल है मुख्यमंत्री जी, आपकी समझ और सोच तो राहुल गांधी से भी घटिया होती जा रही है। मैं नीतीश कुमार से पूछना चाहता हूं कि क्या आपके स्थानीय प्रशासन को ये जानकारी थी, सोमवार के दिन माता कात्यायनी देवी के मंदिर में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आएंगे ? अगर जानकारी थी तो मंदिर और आसपास सुरक्षा के क्या प्रबंध किए गए थे ? एसडीएम और तहसीलदार स्तर के किस अधिकारी की यहां तैनाती थी ? कितने पुलिसकर्मियों की यहां ड्यूटी लगाई गई थी ? क्या सहरसा के जिलाधिकारी ने संभावित भीड़ के मद्देनजर मुख्य सचिव के अलावा रेल अफसरों से ट्रेनों के संचालन को लेकर कोई पत्र लिखा था ? क्या राज्य सरकार और रेलमंत्रालय के बीच ट्रेनों की रफ्तार कम किए जाने को लेकर कोई मीटिंग या पत्राचार हुआ ? अब ये सब नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री जी आपको तो मुंह छिपाकर घर में बैठे रहना चाहिए था, कैसे कैमरे के सामने कुतर्क करने आ गए?

एक और कुतर्क किया जा रहा है। राज्य  सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि पहले जब यहां मीटर गेज की लाइन थी, तब यहां "कासन" लगा हुआ था। अब ब्राडगेज होने के बाद वो कासन क्यों हटा लिया गया ? सच कहूं जब नीतीश कुमार ऐसा बकवास कुतर्क करते हैं, तब मैं सोचता हूं कि आखिर इन्होंने रेल मंत्रालय कैसे चलाया होगा ? इन्हें तो अफसर छोड़िए ग्रुप डी के कर्मचारी मूर्ख बनाते रहे होंगे। बात बहुत लंबी हो जाएगी, लेकिन नीतीश जी इतना जान लीजिए कि "कासन" कोई स्थाई प्रबंध नहीं होता है। कासन कई वजहों से लगाए जाते हैं, कभी रेल पटरी की मरम्मत हो रही हो, स्थानीय जरूरतों के हिसाब से भी कई बार लगाए जाते हैं। कासन होता भी कई तरह का है, कुछ कासन में स्पीड कम कर दी जाती है, कुछ में टोकेन एक्सचेंज करना होता है, कुछ डेड कासन होते है, जहां ट्रेन को पूरी तरह रोक कर, फिर चलाना होता है। लेकिन इसकी समीक्षा होती रहती है और कासन लगना और हटना एक सामान्य प्रक्रिया है।

एक हास्यास्पद तर्क और दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि स्टेशन मास्टर क्या कर रहा था, उसे देखना चाहिए कि रेल पटरी पर लोग जमा हैं तो ट्रेन की गति धीमी करा दे। अब मूर्खों को कौन समझाए ? जब  बताया जा रहा है कि वहां लोग रेल पटरी पर चलने के आदि हैं, वहां कोई रास्ता ही नहीं है। आप सब जानते हैं कि छोटे स्टेशनों पर एनाउंसमेंट का कोई सिस्टम होता नहीं है, लेकिन सिगनल देखकर लोग खुद ही रेल की पटरी से छोड़कर अलग चलते हैं। ट्रेन  को आता देख लोग पटरी से दूर हो जाते हैं। अच्छा ऐसा भी नहीं है राज्यरानी एक्सप्रेस के पहले इस पटरी से कोई ट्रेन नहीं निकली।  इस पटरी पर लगातार ट्रेन दौड़ लगा रही थीं, फिर एक एक्सप्रेस ट्रेन को अचानक कैसे रोका जा सकता है ? अच्छा स्थानीय ग्रामीणों को ट्रेनों के संचालन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, उन्हें लगता है कि ट्रेन को चालक और स्टेशन मास्टर चलाते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री जी आपको पता है ना कि ट्रेनों का संचालन कैसे होता है। इन सभी ट्रेनों का संचालन मंडल मुख्यालय के कंट्रोल रूम से होता है। बाकी सब उसके आदेशों का पालन करते रहते हैं। इसके अलावा जब यहां सड़क ही नहीं है तो मुख्यमंत्री जी आप ये कहना चाहते हैं कि यहां तैनात स्टेशन मास्टर पूरे समय पटरी देखता रहे कि कब कौन आ रहा है और कौन जा रहा है, जिससे लगातार कंट्रोल रूम को बताता रहे।

नीतीश कुमार जी आप तो बिहार मे कानून व्यवस्था का बहुत बखान करते हैं। कहते हैं कि अब बिहार मे कानून का राज है। कानून का राज होने के बाद आपके प्रदेश की हालत ये है कि एक दुर्घटना के कई घंटे बाद तक आपकी पुलिस का कोई अता पता नहीं होता। अधिकारी राहत के काम में लगने के बजाए आपको गुमराह करते रहते हैं। वरना ये कैसे संभव है कि दुर्घटना के तीन घंटे बाद उत्तेजित भीड़ स्टेशन पर खड़ी दो ट्रेनों को आग के हवाले कर दे। आपके कानून के राज में उस ट्रेन चालक की पीट पीट कर हत्या कर दी जाती है, जिसकी कोई गलती नहीं है। ट्रेन चालक सिगनल देख कर ट्रेन चलाता है, अगर सिगनल ग्रीन है, तो वो भला क्यों ट्रेन रोकेगा। फिर भी आपके प्रदेश मे उसकी हत्या हो गई। मुख्यमंत्री जी आपने तो पूरी जिम्मेदारी शातिराना अंदाज में रेलवे पर सौंप दी और खुद दूर खड़े हो गए। आप ने ट्रेन चालक की हत्या पर शोक संवेदना जाहिर करने से भी परहेज किया। इस वीभत्स घटना के बाद भी अगर आप कहते हैं कि बिहार मे कानून का राज है, तो मैं ऐसे कानून के राज पर थूकता हूं।

बहरहाल मुख्यमंत्री जी मेरा मानना है कि राजनीति के भूत का जो पागलपन आप पर सवार है, उससे आप दूर होने की कोशिश कीजिए। होना तो ये चाहिए था कि जैसे ही आपको दुर्घटना की खबर मिली, आपको सारे काम छोड़कर खुद वहां पहुंचना चाहिए था, इससे वहां राहत के काम में भी तेजी आती। लेकिन इतिहास गवाह है कि जब भी बिहार के लोग मुश्किल में होते हैं, आप  लोगों के दुख दर्द मे शामिल नहीं होते हैं। मिड डे मील के तहत जहरीला खाना खाने से जब तमाम बच्चे दम तोड़ रहे थे, उस समय भी आप सियासत कर रहे थे। इस घटना को भी आप राजनीति के चश्मे से देख रहे थे। आपने वहां जाना तक ठीक नहीं समझा और आज तमाम श्रद्धालु जब ट्रेन की चपेट में आ गए तो भी आप लोगों के दुख दर्द मे शामिल होने के बजाए पटना में बैठकर सियासत करते रहे। सच कहूं तो आप बेनकाब हो चुके हैं, इसलिए बिहार की जनता से माफी मांगिए और कुर्सी तो आप छोड़ने वाले नहीं, फिर भी हो सके तो आत्ममंथन जरूर कीजिए,  जिससे फिर ऐसी घटना हो तो आप कुछ करें या ना करें, लेकिन बिहार की जनता का भरोसा हासिल करने की तो कोशिश जरूर कीजिए। आज की घटना और आपके व्यवहार से ये तो साफ हो गया है कि आपके लिए कुर्सी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।







Thursday 15 August 2013

मोदी के भाषण में ही था प्रधानमंत्री का रंग !

ठीक बात है, आज यानि 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री पर सीधा हमला नहीं होना चाहिए, ऐसा तो मेरा भी मानना है। मैं भी इसी मत का हूं कि आजादी के जश्न में सभी को एक साथ शरीक होना चाहिए वो भी मन में किसी के प्रति बिना कटुता का भाव रखे हुए। आजाद भारत में आज पहली बार किसी प्रधानमंत्री को इस तरह जलील होना पड़ा। एक मुख्यमंत्री  15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री पर इस कदर हमलावर होगा, ये तो हमने और आपने कभी सोचा ही नहीं होगा। इन सब बातों के बावजूद मैं मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हूं। मेरा मानना है कि मोदी ने तो सिर्फ जनता की भावनाओं को अपनी आवाज दी है। सच तो यही है कि आम जनता के मन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए अब वाकई कोई सम्मान नहीं रह गया है। यही वजह है कि जब गुजरात के कच्छ से नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पर हमला बोला तो तालियां सिर्फ कालेज के मैदान में ही नहीं बजी, बल्कि मोदी को घर बैठे टीवी पर सुन रहे लोग भी ताली बजाने से नहीं चूके। वैसे सच बताऊं, सरकार का जो हाल मनमोहन सिंह ने बना दिया है, इससे तो वो इसी दुत्कार के पात्र हैं।

इस बहस को शुरू करने से पहले आडवाणी की बात दो लाइन मे कर लूं, वरना आगे भूल जाऊंगा। सच बताइये क्या अब ऐसा नहीं लगता कि आडवाणी प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बाद कुछ असहज हो गए हैं। वो शानदार एक्जिट ना मिलने से काफी परेशान हैं। पार्टी में "बड़का बाबू" तो कहलाना चाहते हैं, लेकिन उनका काम ऐसा नहीं है, जिससे लोग उन्हें सम्मान से बड़का बाबू कह कह बुलाएं। हम सब जानते हैं कि इस जंग का ऐलान तो मोदी ने कल ही यानि एक दिन पहले कर दिया था। उन्होंने साफ कर दिया था कि लालन कालेज की आवाज लाल किले तक पहुंचेगी। अगर आडवाणी को लग रहा था कि मोदी गलत कर रहे हैं, तो उन्होंने कल ही क्यों नहीं समझाया ? जब मोदी ने दो दो हाथ कर लिया, तो घर में झंडा फहरा कर भाषण देने लगे। चलिए दो चार बार और ऐसे ही बक-बक करते रहे तो जो दो चार लोग दुआ सलाम कर रहे हैं, वो भी बंद हो जाएगा। आइये हम आप लाल किले पर चलें।

देश को इंतजार था कि कम से कम लालकिले पर तो मनमोहन सिंह सही मायने में प्रधानमंत्री नजर आएंगे। यहां से जब भाषण होगा तो लगेगा कि देश का प्रधानमंत्री बोल रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह ने लालकिले से भी देश को निराश किया। एक बार भी नहीं लगा कि लाल किले से देश का एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री बोल रहा है। ऐसा लगा कि पंजाब का कोई थका हारा, मरा गिरा सा ब्लाक स्तर का कांग्रेस नेता भाषण पढ़ रहा है। इतना ही नहीं जो कागज वो पढ़ रहा है, शायद उसका अर्थ उसे भी नहीं पता है। आज देश में सबसे ज्यादा दो बातों की चर्चा है, पहला मंहगाई और दूसरा भ्रष्टाचार। मीडिया में इन दोनों विषयों पर लगातार चर्चा हो रही है। अगर प्रधानमंत्री के भाषण में इन दोनों विषयों की चर्चा तक ना हो तो भला देश के प्रधानमंत्री को कौन कहेगा कि ये जिम्मेदार प्रधानमंत्री हैं। फिर अपने प्रधानमंत्री के बाँडी लंग्वेज से तो लगता है कि शायद वो लालकिले से बोलने के लिए तैयार ही नहीं थे, लेकिन उन पर भाषण देने का काफी दबाव था, इसलिए वो बस खूंटी पर टंगी सदरी डाल कर भाषण पढ़ने आ गए। चेहरे पर भी कोई खुशी नहीं, लग रहा था कि प्रधानमंत्री किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होकर आटो रिक्शा से लाल किला पहुंचे हैं।

मैं तो कहता हूं कि प्रधानमंत्री भले ही ज्यादा कुछ ना कहते, लेकिन राष्ट्रपति के भाषण का जिक्र करते हुए, पाकिस्तान की ओर इशारा कर इतना ही कह देते कि वो हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले। एक कड़ा संदेश देते, जिससे देश की जनता को कम से कम इतना तो भरोसा होता कि देश सुरक्षित हाथों में है। लेकिन प्रधानमंत्री ने तो वही घिसी पिटी दो लाइनें दुहरा दीं जो कई साल से कहते आ रहे हैं। इससे लगता है कि पाकिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री और सरकार कितनी लापरवाह है। हैरानी इस बात पर भी हुई कि उन्होंने पूरे भाषण के दौरान चीन का जिक्र तक नहीं किया। अब ऐसे प्रधानमंत्री को अगर नरेन्द्र मोदी ने उठक - बैठक करा भी दी, तो इतना  हाय तौबा क्यों मचा है भाई ? 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री को कटघरे में नहीं खड़ा किया जाएगा, ऐसा कोई नियम थोड़े है। ये तो महज एक परंपरा है। लेकिन जब देश का प्रधानमंत्री देश के बारे में ना सोचे, सिर्फ कुर्सी पर चिपके रहने के लिए कुर्सी की मर्यादा के साथ समझौता कर ले, ऐसे प्रधानमंत्री पर सिर्फ एक मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि हर सूबे का मुख्यमंत्री हमला बोले वो भी कम है।

बात नरेन्द्र मोदी की होती है तो कुछ पत्रकार 2002 याद करने लगते हैं, मैं इन तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों से कहता हूं कि उन्हें अगर 2002 याद है, तो वो 1984 क्यों भूल जाते हैं। मैं कहता हूं कि 1984 दंगे में शामिल लोग भी उतने ही बड़े गुनाहगार हैं जितने 2002 के। खैर ये बात अब बहुत पुरानी हो चुकी है और देश यहां से बहुत आगे निकल गया है। लेकिन कुछ नेता, पत्रकार और तथाकथित समाजसेवी देश को बीती बातों को भूलने ही नहीं देना चाहते। चलिए मैं मोदी की बातों पर आता हूं। कहा जा रहा है कि मोदी ने गलत परंपरा कायम की है। 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री पर सीधा हमला किया है, ये नैतिक नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि चोट गरम लोहे पर ही की जाए तभी असर होता है। कम से कम आज रात प्रधानमंत्री जब सोने जाएंगें तो एक बार सोचेंगे जरूर कि 67 सालों में कितने प्रधानमंत्री रहे हैं, कितनों ने यहां झंडा फहराया है, पर किसी को ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा, आखिर उन्हें ही क्यों ये सब सुनना पड़ रहा है। शायद कल से कुछ बदलाव देखने को मिले।

फिर नरेन्द्र मोदी ने कोई कडुवी या अभद्र भाषा इस्तेमाल नहीं किया, अगर उन्होंने अपने भाषण में प्रधानमंत्री का संबोधन किया भी तो उन्हें "प्रधानमंत्री जी" कह कर संबोधित किया। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है। लोकतंत्र में हर आदमी को अपने नेता से सवाल पूछने का हक है। अगर मोदी ने प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि भाषण में सिर्फ एक परिवार की बात क्यों की ? उत्तराखंड की मदद सभी राज्यों ने की, फिर सिर्फ  केंद्र की ही बात क्यों की ? पाकिस्तान को कड़ा जवाब क्यों नहीं दिया ? भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री क्यों चुप रहे ?  अगर मोदी ने गुजरात की तुलना दिल्ली से करने की चुनौती दी तो इसमें गलत क्या है ? आपने अगर अच्छा काम किया है, तो चुनौती का सामना कीजिए। मै देखता हूं कि कांग्रेस के नेता मोदी की बातों पर चुप्पी साध लेते हैं और मोदी पर हमला करने लगते हैं। अब ये तो सच है कि मोदी अच्छे वक्ता हैं और बात कहने का उनका अंदाज भी अलग है। उन्होंने राष्ट्रपति की बात को आगे बढ़ाते हुए कहाकि राष्ट्रपति कह रहे हैं कि हमारी सहन शक्ति की सीमा होनी चाहिए। अब ये सीमा शासक ही तो तय करेंगे। चीन आकर हमारी सीमाओं पर अड़ंगा डाले, इटली के सैनिक केरल के मछुआरों की हत्या कर दें, पाकिस्तान के सैनिक हमारे जवानों के सिर काट लें, तब हमें चिंता होती है कि सहनशीलता की सीमा कौन सी है। वो सीमा परिभाषित होनी चाहिए, राष्ट्रपति जी आपकी चिंता से मैं भी अपना सुर मिलाता हूं। मैं फिर पूछना चाहता हूं कि इसमें मोदी ने आखिर क्या गलत कहा ?

भ्रष्टाचार पर मोदी के तेवर से वाकई कुछ लोगों को दिक्कत हो सकती है। इसकी वजह ये है कि मोदी पिछले दरवाजे सोनिया गांधी के घर मे घुस गए। उन्होंने कहा कि जैसे पहले टीवी सीरियल आते थे, वैसे अब भ्रष्टाचार के सीरियल आने लगे हैं। मसलन भ्रष्टाचार पर पहले भाई - भतीजावाद के सीरियल का दौरा था,  फिर नया सीरियल आया मामा - भांजे का और अब इससे आगे बढ़ते हुए सास - बहू और दामाद का सीरियल शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कितना भी गंभीर आरोप लगे कांग्रेस के नेता उसे बर्दास्त कर लेंगे, लेकिन सोनिया गांधी के परिवार पर कोई उंगली उठाए, ये बात उन्हें नागवार लगती है। इसका विरोध कर सोनिया की नजर में नंबर बढ़ाने के लिए एक साथ कई नेता मैदान में उतर आते हैं। ऐसा ही आज भी हुआ, इशारों इशारों में रावर्ट वाड्रा पर हमला करने के मामले में बौखलाए नेता कैमरे के सामने आए और मोदी के खिलाफ जहर उगलने लगे।

हाहाहा इस पूरे मामले में एक चैनल का भी जिक्र करना जरूरी है। वो मनमोहन और मोदी के भाषण को प्रतियोगिता मान कर उस पर चार पांच लोगों को न्यूज रूम में बैठाकर नंबर मांगने लगे। चैनल की 28 - 30 किलो की एंकर जिसकी विषय पर जानकारी सिर्फ "माशाल्लाह" दिखी, उसकी रुचि किसी की बात सुनने में नहीं, बल्कि नंबर हासिल करने में ज्यादा दिखी। एक पत्रकार भाई जो इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने मोदी को 4.5 नंबर दिए इसके पीछे जो तर्क दिया, इसे सुनकर लगा कि वो चैनल के न्यूज रूम में बैठकर नंबर नहीं दे रहे हैं, बल्कि कांग्रेस दफ्तर में बैठकर नंबर दे रहे हैं। हां वैसे तो आज चैनल अपनी लाइन बदलने के मूड में भी दिखे और वो चाहते थे कि 15 अगस्त के दिन मोदी के हमलावर तेवर को लेकर उनके कपड़े उतारे जाएं, पर डर सताने लगा कि कहीं औद्योगिक घराने अपने विज्ञापन वापस ना ले लें, लिहाजा वो ये हिम्मत नहीं जुटा सके। पर मैं एक सवाल पूछता हूं चैनलों के संपादक से, मोदी पर उंगली उठाने के पहले अपने गिरेबां क्यों नहीं झांकते ? देश में 28 राज्य हैं, हर जगह झंडा फहराया गया, हर जगह मुख्यमंत्री का भाषण हुआ, फिर चैनल ने केवल गुजरात के मुख्यमंत्री का ही भाषण क्यों दिखाया ? दोस्त साफ - साफ कहो ना मोदी टीआरपी मैटेरियल हैं। इसलिए उन्हें दिखाना चैनल की मजबूरी है।

चलते - चलते

एनबीआई यानि न्यूज ब्राडकास्टिंग आँफ इंडिया जो टीआरपी का आंकलन करती है। उसके अनुसार जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण दे रहे थे तो उस वक्त देश में 73.27 लाख टीवी खुले हुए थे। लेकिन जब मोदी का भाषण शुरू  हुआ तो 5.60 करोड़ टीवी देश में खुले  हुए थे। ऐसे में आज की जंग तो मोदी ने जीत ली।









Sunday 4 August 2013

बड़ी बहस : क्रिकेट का काठमांडू सम्मान !


ये तो आप भी मानते ही होंगे कि पाप का घड़ा एक ना एक दिन भरता जरूर है। अब क्या मेरी तरह आप भी विश्वास के साथ ये बात कह सकते हैं कि बीसीसीआई के हाशिए पर डाल दिए गए अध्यक्ष श्रीनिवासन के पाप का घड़ा भर गया है ? देखा जाए तो पहली नजर में तो यही लगता है। उनके चेहरे पर जो अहंकार दिखाई देता था, कल दिल्ली में बेचारगी दिखाई दे रही थी। देखने से ही लग रहा था कि वो अपने और दामाद के किए पर शर्मिंदा हैं, लेकिन आप जानते ही हैं कि रस्सी जल भी जाए तो उसकी ऐंठन नहीं जाती। लिहाजा उन्हें लगा कि हो सकता है कि उनकी दादागिरी जिस तरह अभी तक चलती रही है, शायद उनके रुतबे के आगे सब बौने हो जाएं और अध्यक्ष की कुर्सी पर फिर जम जाएं। पर प्यारे श्रीनिवासन आगे से जब दिल्ली आओ, तो एक बार यहां के लोगों से राय ले लिया करो, फायदे में रहोगे। ये दिल्ली है, कुर्सी किसी को आसानी से नहीं देती, हां यही बैठक अगर आप काठमांडू में कर लेते तो कोई पूछने ही वाला नहीं था। जिसको जैसे चाहते बेवकूफ बनाते, सब आपके सामने सिर झुकाए खड़े रहते। लगता है कि आप सोशल मीडिया से दूर है, वरना आपको काठमांडू के बारे में सबकुछ पता होता।

खेल के बारे में जब भी कुछ चर्चा करता हूं तो डर लगता है। मुझे लगता है कि पता नहीं आप लोगों को इसके बारे में कितना पता है। चलिए फिर भी दो चार बातें फटाफट बता देते है, उसके बाद असल मुद्दे पर चर्चा करेंगे। दरअसल बीसीसीआई ने आईपीएल के बारे में जो " रुल बुक " तैयार किया है उसमें साफ है कि अगर आईपीएल की किसी भी टीम के प्रबंधन से जुड़ा आदमी अनैतिक कार्य करता है, तो उस टीम को डिबार यानि अयोग्य़ घोषित कर दिया जाएगा। आपको जानते ही है कि चेन्नई सुपर किंग के मालिकों में श्रीनिवासन के अलावा उनका दामाद मयप्पन भी शामिल है, जबकि राजस्थान रायल्स में शिल्पा के पति राजकुंद्रा है। इन दोनों पर सट्टेबाजी के गंभीर आरोप हैं। राजस्थान टीम के तो कई खिलाड़ी और भी गंभीर हरकतों में पकड़े जाने पर जेल तक की हवा खा चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर चेन्नई और राजस्थान की टीमों को अभी तक अयोग्य़ घोषित क्यों नहीं किया गया ? आपको पता है कि श्रीनिवासन बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रहे हैं और उनकी टीम भी है। इसलिए उनके बारे में नियम कायदे की बात करना बेमानी है। मीडिया ने जब उनके दामाद मयप्पन, राजस्थान रायल्स के राजकुंद्रा के साथ बिंदू दारा सिंह की हरकतों के बारे में खबरें दिखाई तो कई हफ्तों के ड्रामें के बाद श्रीनिवासन बीसीसीआई से अलग होने को मजबूर गए। इतना ही नहीं जल्दबाजी में दो सदस्यों की एक कमेटी बना दी गई। इस कमेटी ने जांच कर अपनी  रिपोर्ट में श्रीनिवासन को क्लीन चिट्ट दे दी। लेकिन मुंबई हाईकोर्ट ने जांच कमेटी को ही अवैध बताकर उसकी रिपोर्ट खारिज कर दी।

इन सबके बाद भी श्रीनिवासन " मैं हूं डान " की स्टाइल में कुर्सी पर कब्जा करने की जुगत बैठाने लगे। अध्यक्ष का ख्वाब मन पाले हुए बेचारे दिल्ली तो आ धमके, लेकिन वो जिन लोगों के बूते दिल्ली आए थे, यहां उन्हीं लोगों ने उनकी खूब बजाई। बैठक के दौरान उनके खास लोगों ने ही उन्हें डराया धमकाया और कहाकि अब पूरा मामला कोर्ट में है। कोर्ट बीसीसीआई की हर गतिविधियों पर कड़ी नजर बनाए हुए है, लिहाजा ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए जिससे कोर्ट में अपना केस कमजोर हो। श्रीनिवासन चाहते थे कि वो ही इस मीटिंग की अध्यक्षता करें। जब उन्हें बताया गया कि इस होटल में तो आप कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने अगर अपना रुख कड़ा कर लिया तो इसके बाद क्या होगा ? बताते हैं कि जो तस्वीर उनके सामने रखी गई, बेचारे श्रीनिवासन हिल गए। अब सोचा जाने लगा कि बाहर मीडिया वाले खड़े हैं, उन्हें क्या बताया जाए ? कहा गया कि वो कौन सा हमें नंबर देने वाले हैं, कुछ भी बता दो। बस मीटिंग रद्द हो गई और कहा गया कि मीटिंग का एंजेंडा ही तैयार नहीं था। ये सुनकर आपको भी हंसी आ रही होगी, हमें तो खैर आ ही रही है।

आइये एक मिनट सीरियस बात कर लें, आपको ये पता है कि देश में क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों में उन्ही खिलाड़ियों को राष्ट्रीय सम्मान मिल सकता है, जिस खेल के महासंघ को भारत सरकार के खेल मंत्रालय से मान्यता मिली हुई है। मसलन कुश्ती, दौड़, टेबिल टेनिस, हाकी, टेनिस, तैराकी, बैडमिंटन कोई भी खेल हो, इससे से जुड़े महासंघ को अगर खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं है तो कितना बढ़िया खिलाड़ी हो या फिर कितने ही पदक ही क्यों ना जीता हो, उसे सरकार मान्यता नहीं देती है, और ऐसे खिलाड़ी को कभी राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिल सकता। मतबल ऐसे खिलाड़ी को पद्मश्री, पद्मभूषण या अन्य किसी भी सम्मान से नही नवाजा जा सकता है। लेकिन देश में क्रिकेट को लोग धर्म मानते हैं और सचिन जैसे खिलाड़ी को भगवान। यही वजह है कि सरकार के क्रिकेट के मामले में सारे नियम कायदे किनारे रह जाते हैं। यहां बीसीसीआई जो पैसे वालों का एक गिरोह है, वो जो भी चाहे कर सकती है। आज तक बीसीसीआई को खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं है, पर तमाम क्रिकेटर को पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान मिल चुके हैं। अब तो बात इससे भी आगे की हो रही है है, वो ये कि क्रिकेटर को भारत रत्न दिए जाएं। हाहाहाहा.... आपने शोले पिक्चर देखी होगी, एक डायलाँग है ना, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना। मुझे भी लगता है कि अगर बीसीसीआई खेल मंत्रालय की मान्यता नहीं लेती है तो क्रिकेटरों को भी राष्ट्रीय सम्मान से वंचित कर दिया जाना चाहिए।

सच कहूं तो बीसीसीआई और क्रिकेटरों ने राष्ट्रीय सम्मान को काठमांडू सम्मान बना दिया है। मसलन कोई नियम कायदा नहीं। सम्मान किसको दिया जाएगा, सम्मान देने की प्रक्रिया क्या होगी, सम्मान के लिेए योग्यता क्या होगी, सम्मान के लिए निर्णयाक मंडल मे कौन होगा, कुछ भी से तय नहीं होगा। बस 4100 रुपये दो और सम्मान की पूरी प्रक्रिया इसी से पूरी हो जाएगी। मेरा मानना है कि ऐसे सम्मान खेल में तो नहीं बस ब्लाग में दिए जा सकते हैं। चलिए अंदर की बात बताते हैं। मेरे पिछले पोस्ट से ब्लाग परिवार में थोड़ी खलबली जरूर मची। वैसे एक बार आंख खोलने से आयोजकों की आंख खुल जाएंगी, अगर ऐसा कोई भी सोचता है तो मैं तो उसे 24 कैरेट का मूर्ख समझूंगा। लेकिन थोड़ा बहुत सुधार होगा, ये मुझे जरूर उम्मीद थी। काठमांडू सम्मान में भी थोडा बदलाव आया है। दो दिन पहले जिन नए आठ - दस नए लोगों का नाम सम्मान के लिए घोषित किया गया है। इसमें पहली बार ये बताने की कोशिश की गई है कि उन्हें किस क्षेत्र में सम्मान दिया जा रहा है। इसके पहले जो नाम थे, उन्हें तो यही लग रहा था कि ये 4100 रुपये का सम्मान है।

ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि एक ब्लागर ने स्वीकार किया कि उसे नहीं पता कि ये 5100 रुपये मुझे क्यों दिए जा रहे हैं। बस मैं इतना कहूंगा कि हां मुझे काठमांडू में 5100 रुपये दिए जा रहे हैं। रुपयों के साथ ही कुछ कपड़े वपडे भी दिए जाने का वादा किया गया है। अब प्राइमरी स्कूल के बच्चों से भी पूछा जाए कि अगर 4100 रुपये खर्च करने पर 5100 रुपये हासिल होते हैं तो 4100 रुपये खर्च करने चाहिए या नहीं ? बच्चे का जवाब होगा कि बिल्कुल खर्च करना चाहिए। अब भाई लोग भले ही ये कहें कि सम्मान की पैसे से तुलना नहीं करनी चाहिए, लेकिन सच यही है कि पूरा मामला ही पैसे का है। वरना सम्मान के लिए ब्लागरों को लुभाने के लिए नई स्कीम ना जारी की गई होती।  जानते हैं अब नए सम्मान की जो सूची जारी की गई है, उसमें एक बदलाव देखा गया है। कहा जा रहा है कि तमाम कपड़े - वपड़े के साथ ही एक निश्चित धनराशि भी दी जाएगी। मुझे लगता है कि ये स्कीम इसलिए घोषित करनी पड़ी क्योंकि लोगों को पता चल गया कि भारतीय रुपये की कीमत नेपाल मे ज्यादा है। बहरहाम मुझे इस बात की खुशी है कि अब मेरे ब्लागर मित्रों को जो बेचारे पैसे जमा कर फंस गए हैं, उन्हें कुछ तो राहत मिलेगी ।  

आप भी जानते हैं कि आयोजक आसानी से सही रास्ते पर आएंगे,  इसकी तो किसी को उम्मीद नहीं है। लेकिन सामाजिक न्याय का यही तकाजा है कि एक ना एक दिन पाप का घड़ा भरता ही है। ऐसे में हम सब को भी इनके पाप के घड़े को भरने तक का इंतजार करना ही होगा। लेकिन मैं देख रहा हूं कि जिन लोगों का नाम सम्मान के लिए घोषित किया गया है, अब वो बेचारे जरूर सकते में हैं। सब एक बार सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि कहीं वो वाकई ठगे तो नहीं जा रहे हैं ? 4100 रुपये कोई छोटी रकम तो है नहीं, ऊपर से काठमांडू पहुंचने का किराया भाड़ा अलग ! अब ये भी एक दूसरे से बात कर पूछ रहे हैं कि "आखिर मुझे ही सम्मानित क्यों किया जा रहा है ? ये बात ब्लागर सोचने को मजबूर है, क्योंकि उन्हें भी लग रहा है कि हमने ऐसा कोई तीर भी नहीं मार लिया कि सम्मानित होने के लिए मेरा पहला हक बनता हो ? ऐसा नही है कि इस सम्मान से सब पीछा ही छुड़ा रहे हों, कुछ लोग इस सम्मान के चक्कर में जगह-जगह प्रशंसा में खूब कमेंट कर रहे हैं, जिससे आयोजको का ध्यान उन पर भी जाए। मैं ऐसे लोगों को बता दूं कि घबराने की जरूरत नहीं है, जल्दी ही आयोजक ऐलान कर सकते हैं कि सम्मान के लिए 4100 रुपये के साथ अपना नाम खुद सूची में शामिल कर लें। चलिए ये तो ऐसा  मुद्दा है कि कभी खत्म ही नहीं होगा। इस पर तो लंबी बात चलती ही रहेगी, लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम अब जितने भी लोग सम्मानित होंगे, उन्हें कुछ कम ही सही लेकिन रकम तो मिलेगी ना। चलते चलते एक बात बताऊं, अब लखनऊ में यही तय नहीं हो पा रहा है कि ब्लागर को किस कटेगरी में सम्मानित किया जाए ? चूंकि इतने ज्यादा  सम्मान है कि कटेगरी कम पड़ गई है। मित्रों ये बात आगे भी जारी रहेगी।