उत्तराखंड की तबाही के आगे कश्मीर की ये घटना भले ही आपको गंभीर न लगे, चूंकि इस वक्त मैं यहां मौजूद हूं और आतंक की इस घटना को करीब से देख भी रहा हूं, या यूं कहूं कि कुछ हद तक भुक्तभोगी भी हूं, तो गलत नहीं होगा। सच में इस वक्त कश्मीर के जिस भयावह हालात रुबरू हूं, उसे शब्दों में बांधना आसान नहीं है। ये तो आपको पता ही है कि भारत प्रशासित कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में कल यानि सोमवार को एक चरमपंथी हमले में आठ सैनिकों की मौत हो गई, जबकि अर्धसैनिक सुरक्षा बल का एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गया। दो दिन बाद पवित्र अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होनी है, इसके मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इन सुरक्षा इंतजामों के बीच भी जब आतंकी सुरक्षा बलों पर ही हमला करने में कामयाब हो जाते हैं, इतना ही नहीं हमले के बाद वो सुरक्षित भाग निकलने में भी कामयाब हो जाते हैं, तब मुझे लगता है कि अपने सुरक्षा प्रबंध को एक बार जांचना जरूरी है। ये तो हुई एक बात ! दूसरी बात, आप सब जानते हैं कि कश्मीर में रोजाना 8-10 हजार पर्यटक आते हैं। इस वक्त तो देश और विदेश के दो लाख से ज्यादा पर्यटक कश्मीर में अपनी छुट्टियां बिताने आए हैं, पर सच बताऊं कि आतंकी हमले से पर्यटकों को उतनी मुश्किल नहीं हुई, जितनी आज मनमोहन और सोनिया गांधी के आने से हो रही है। इन दो लोगों ने दो लाख पर्यटकों को बंधक बना दिया।
सुबह जब मैं पहलगाम से श्रीनगर के लिए चला तो बातचीत में कार के ड्राईवर ने कहाकि "साहब केंद्र की सरकार कश्मीर को लेकर ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करती है, जिससे देश के बाकी हिस्से में लोगों को लगता है कि हमारे लिए इतना कुछ किया जा रहा है, फिर भी कश्मीरी सरकार के खिलाफ हैं और ये जहर उगलते रहते हैं, लेकिन सच्चाई ये नहीं है, हम कम में गुजारा करने को तैयार हैं, पर हमारी बुनियादी मुश्किलों के प्रति सरकार संवेदनशील तो हो। हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी करना तो दूर कोई सुनने को राजी नहीं है। आतंकी हमले में बेकसूर कश्मीरियों को जान गंवानी पड़ रही है, लेकिन सरकार कभी संवेदना के दो शब्द नहीं बोलती। हालाकि मैं तो सुनने में ही ज्यादा यकीन करता हूं, लेकिन मुझे लगा कि ये ड्राईवर जमीनी हकीकत बयां कह रहा है, लिहाजा मैने उससे कहा कि आतंकवादी हमले में सिर्फ कश्मीरी ही नहीं सुरक्षा बल के जवान भी मारे जाते हैं। इसके बाद तो ड्राईवर ने सरकार के प्रति जो गुस्सा दिखाया, मैं खुद सुनकर हैरान रह गया। बोलने लगा साहब हम घटनाओं को कश्मीर में खड़े होकर देखते हैं और आप दिल्ली से इसे देखते हैं। हम दोनों देख रहे हैं कि हमला हुआ है और सुरक्षा बल के लोग मारे गए हैं। जितनी तकलीफ आपको है, उससे कम तकलीफ मुझे भी नहीं है। लेकिन बात तो सरकार की है। अगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी इस हमले को लेकर गंभीर होती तो आज कश्मीर का दौरा रद्द कर सुरक्षा बलों को हिदायत देती कि आतंकियों को ढूंढ कर मारो। लेकिन यहां तो कल हमला हुआ, एक घंटे ये खबर जरूर न्यूज चैनलों पर थी, उसके बाद सब अपने काम में जुट गए। रही बात सुरक्षा बलों की तो उन्हें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सुरक्षा के मद्देनजर उन रास्तों की निगरानी में लगा दिया गया, जहां से उन्हें गुजरना है।
सच कहूं तो मैं ड्राईवर की बातें सुनकर हैरान था, क्योंकि मुझे भी लग रहा था कि वाकई बात तो इसकी सही है। सूबे में शांति ना हो और विकास की घिसी पिटी बातें लोगों को सुनाई जाएं, ये भी तो बेमानी ही है। ये सब बातें चल ही रही थीं कि श्रीनगर से लगभग 25 किलोमीटर पहले लंबा जाम दिखाई दिया। गाड़ी खड़ी कर ड्राईवर नीचे उतरा ये पता लगाने की जाम क्यों लगा है। ड्राईवर पांच मिनट में वापस आया और बताया कि आगे चार पांच किलोमीटर तक इसी तरह जाम है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सुरक्षा के मद्देनजर श्रीनगर को सील कर दिया गया है, जब तक उनके सभी कार्यक्रम खत्म नहीं हो जाते तब तक हमें यहीं रुकना होगा। घड़ी देखा, दोपहर के लगभग 12 बजने वाले थे, शाम यानि छह बजे के बाद हम श्रीनगर में घुस पाएंगे, ये सुनकर तो मैं फक्क पड़ गया। दिमाग में खुराफात सूझा, मैने कहाकि मीडिया का कार्ड तो मेरे पास है ही, सुरक्षा बलों को बताता हूं कि मैं प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को ही अटेंड करने दिल्ली से आया हूं, कोशिश करते हैं, शायद कामयाबी मिल जाए। मेरे कहने पर ड्राईवर ने गाड़ी को गलत साइड़ से आगे बढ़ाया, सुरक्षा बलों ने रोकने की कोशिश की, उसे बताया कि मीडिया से हैं, उसने कार्ड देखा और फिर मेरी गाड़ी यहां से आगे निकल आई। ये प्रक्रिया मुझे कई जगह दुहरानी पड़ी। मैं यहां से जरूर निकल आया, लेकिन दूसरे पर्यटकों की हालत देख मुझे वाकई तकलीफ हुई।
आज 25 जून मेरे लिए कुछ खास है, मेरी छोटी बेटी का जन्मदिन है। बेटी की इच्छा के मुताबिक हमने बर्थडे केक काटने के लिए कश्मीर के "हाउस वोट" को चुना। अब सुरक्षा बलों के साथ आंख-मिचौली करते हुए मैं श्रीनगर में लालचौक तक आ गया। यहां से बस तीन किलोमीटर की दूरी पर वो हाउस वोट है, जहां मेरी बुकिंग है। लेकिन इस पूरे इलाके को एसपीजी ने अपने कब्जे में ले रखा है, लिहाजा यहां से आगे जाना बिल्कुल संभव नहीं था। मैने अपने हाउस वोट के मैनेजर को फोन किया, उसने तो पूरी तरह हाथ ही खड़े कर दिए और कहा सर अभी इधर आना बिल्कुल ठीक नहीं होगा, क्योंकि सभी हाउस वोट को खाली करा लिया गया है। शाम के बाद ही पर्यटकों को एंट्री मिलेगी। इसके बाद तो मेरी हिम्मत भी टूट गई और मैं लाल चौक में अपने न्यूज चैनल के दफ्तर में आ गया।
यहां पता चला कि पर्यटकों का कल रात से बुरा हाल है। ना सिर्फ हाउस वोट बल्कि आस पास के होटल मालिकों को भी कह दिया गया कि वो सुबह नौ बजे तक पर्यटकों को होटल के बाहर निकाल दें और उन्हें साफ कर दें कि वो शाम से पहले वापस ना आएं। अब आप आसानी से सरकार की संवेदनहीनता को समझ सकते हैं। क्या सभ्य समाज में किसी को भी ये इजाजत दी जा सकती है कि एक शहर को पूरे दिन बंद कर दो। दो वीआईपी की वजह से दो लाख पर्यटक होटल और हाउस वोट का पेमेंट करने के बाद भी वहां जा नहीं पा रहे हैं। मेरा सवाल है कि सुरक्षा प्रबंध के नाम पर आखिर दो लाख पर्यटकों को पूरे दिन कैसे बंधक बनाया जा सकता है ? आम आदमी को इसका जवाब कौन देगा ?
अगर अपनी बात करुं तो मुझे लगता है कि मेरा और राजनीतिज्ञों का तो पिछले जन्म की दुश्मनी है। हालत ये है कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात का खेल चल रहा है। सियासियों के पैतरेबाजी, झूठे वायदे और बनावटी बातें सुन-सुन कर थक गया, तम मैने तय किया कि कुछ दिन परिवार के साथ इन सबको दिल्ली में छोड़कर कश्मीर आ जाता हूं, लेकिन ये राजनीतिक मेरा पीछा यहां तक करेंगे, मैने वाकई नहीं सोचा था। लेकिन आज जब मनमोहन और सोनिया ने दिल्ली से हजार किलोमीटर दूर श्रीनगर (कश्मीर) में मेरा रास्ता रोका तो मैं सच में हिल गया। अब आगे मुझे कोई भी यात्रा फाइनल करने के पहले सौ बार सोचना होगा। मैं फिर दोहराना चाहूंगा कि मैं तो सुकून से अपने आफिस में बैठकर इन नेताओं की ब्लाग पर ही सही, लेकिन खाल खींच तो रहा हूं। लेकिन बेचारे दूसरे पर्यटक जो रास्ते में फंसे हैं, जहां ना खाने को कुछ है और ना ही पीने को। वो बेचारे तो अपनी किस्मत को ही कोस रहे होंगे।
मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने जहां लोगों का रास्ता रोका, वहीं अलगाववादियों ने इन दोनों को अपनी ताकत दिखाने के लिए बंद का ऐलान कर दिया। हालत ये हो गई है कि पूरा श्रीनगर ही नहीं बल्कि कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह बंद हो गया। इससे सबसे ज्यादा मुश्किल पर्यटकों को ही होनी थी जो हुई भी। बेचारे पर्यटक एक कप चाय के लिए तरस गए। चलते चलते आपको ये भी बता दें कि अभी हमारी मुश्किल कम नहीं हुई है, क्योंकि मनमोहन और सोनिया गांधी ये जानते हुए भी उनके यहां रहने से पूरा श्रीनगर बंद हो गया है, वो आज श्रीनगर में रुक भी रहे हैं। कल यानि बुधवार को दोपहर बाद वापस होगें, तब तक पर्यटकों का क्या हाल होगा, भगवान मालिक है।
नोट : मित्रों वापस लौट कर आता हूं, फिर आपको कश्मीर के कई रंग दिखाऊंगा। खासकर धरती के स्वर्ग को कौन बना रहा है नर्क !
सुबह जब मैं पहलगाम से श्रीनगर के लिए चला तो बातचीत में कार के ड्राईवर ने कहाकि "साहब केंद्र की सरकार कश्मीर को लेकर ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करती है, जिससे देश के बाकी हिस्से में लोगों को लगता है कि हमारे लिए इतना कुछ किया जा रहा है, फिर भी कश्मीरी सरकार के खिलाफ हैं और ये जहर उगलते रहते हैं, लेकिन सच्चाई ये नहीं है, हम कम में गुजारा करने को तैयार हैं, पर हमारी बुनियादी मुश्किलों के प्रति सरकार संवेदनशील तो हो। हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी करना तो दूर कोई सुनने को राजी नहीं है। आतंकी हमले में बेकसूर कश्मीरियों को जान गंवानी पड़ रही है, लेकिन सरकार कभी संवेदना के दो शब्द नहीं बोलती। हालाकि मैं तो सुनने में ही ज्यादा यकीन करता हूं, लेकिन मुझे लगा कि ये ड्राईवर जमीनी हकीकत बयां कह रहा है, लिहाजा मैने उससे कहा कि आतंकवादी हमले में सिर्फ कश्मीरी ही नहीं सुरक्षा बल के जवान भी मारे जाते हैं। इसके बाद तो ड्राईवर ने सरकार के प्रति जो गुस्सा दिखाया, मैं खुद सुनकर हैरान रह गया। बोलने लगा साहब हम घटनाओं को कश्मीर में खड़े होकर देखते हैं और आप दिल्ली से इसे देखते हैं। हम दोनों देख रहे हैं कि हमला हुआ है और सुरक्षा बल के लोग मारे गए हैं। जितनी तकलीफ आपको है, उससे कम तकलीफ मुझे भी नहीं है। लेकिन बात तो सरकार की है। अगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी इस हमले को लेकर गंभीर होती तो आज कश्मीर का दौरा रद्द कर सुरक्षा बलों को हिदायत देती कि आतंकियों को ढूंढ कर मारो। लेकिन यहां तो कल हमला हुआ, एक घंटे ये खबर जरूर न्यूज चैनलों पर थी, उसके बाद सब अपने काम में जुट गए। रही बात सुरक्षा बलों की तो उन्हें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सुरक्षा के मद्देनजर उन रास्तों की निगरानी में लगा दिया गया, जहां से उन्हें गुजरना है।
सच कहूं तो मैं ड्राईवर की बातें सुनकर हैरान था, क्योंकि मुझे भी लग रहा था कि वाकई बात तो इसकी सही है। सूबे में शांति ना हो और विकास की घिसी पिटी बातें लोगों को सुनाई जाएं, ये भी तो बेमानी ही है। ये सब बातें चल ही रही थीं कि श्रीनगर से लगभग 25 किलोमीटर पहले लंबा जाम दिखाई दिया। गाड़ी खड़ी कर ड्राईवर नीचे उतरा ये पता लगाने की जाम क्यों लगा है। ड्राईवर पांच मिनट में वापस आया और बताया कि आगे चार पांच किलोमीटर तक इसी तरह जाम है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सुरक्षा के मद्देनजर श्रीनगर को सील कर दिया गया है, जब तक उनके सभी कार्यक्रम खत्म नहीं हो जाते तब तक हमें यहीं रुकना होगा। घड़ी देखा, दोपहर के लगभग 12 बजने वाले थे, शाम यानि छह बजे के बाद हम श्रीनगर में घुस पाएंगे, ये सुनकर तो मैं फक्क पड़ गया। दिमाग में खुराफात सूझा, मैने कहाकि मीडिया का कार्ड तो मेरे पास है ही, सुरक्षा बलों को बताता हूं कि मैं प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को ही अटेंड करने दिल्ली से आया हूं, कोशिश करते हैं, शायद कामयाबी मिल जाए। मेरे कहने पर ड्राईवर ने गाड़ी को गलत साइड़ से आगे बढ़ाया, सुरक्षा बलों ने रोकने की कोशिश की, उसे बताया कि मीडिया से हैं, उसने कार्ड देखा और फिर मेरी गाड़ी यहां से आगे निकल आई। ये प्रक्रिया मुझे कई जगह दुहरानी पड़ी। मैं यहां से जरूर निकल आया, लेकिन दूसरे पर्यटकों की हालत देख मुझे वाकई तकलीफ हुई।
आज 25 जून मेरे लिए कुछ खास है, मेरी छोटी बेटी का जन्मदिन है। बेटी की इच्छा के मुताबिक हमने बर्थडे केक काटने के लिए कश्मीर के "हाउस वोट" को चुना। अब सुरक्षा बलों के साथ आंख-मिचौली करते हुए मैं श्रीनगर में लालचौक तक आ गया। यहां से बस तीन किलोमीटर की दूरी पर वो हाउस वोट है, जहां मेरी बुकिंग है। लेकिन इस पूरे इलाके को एसपीजी ने अपने कब्जे में ले रखा है, लिहाजा यहां से आगे जाना बिल्कुल संभव नहीं था। मैने अपने हाउस वोट के मैनेजर को फोन किया, उसने तो पूरी तरह हाथ ही खड़े कर दिए और कहा सर अभी इधर आना बिल्कुल ठीक नहीं होगा, क्योंकि सभी हाउस वोट को खाली करा लिया गया है। शाम के बाद ही पर्यटकों को एंट्री मिलेगी। इसके बाद तो मेरी हिम्मत भी टूट गई और मैं लाल चौक में अपने न्यूज चैनल के दफ्तर में आ गया।
यहां पता चला कि पर्यटकों का कल रात से बुरा हाल है। ना सिर्फ हाउस वोट बल्कि आस पास के होटल मालिकों को भी कह दिया गया कि वो सुबह नौ बजे तक पर्यटकों को होटल के बाहर निकाल दें और उन्हें साफ कर दें कि वो शाम से पहले वापस ना आएं। अब आप आसानी से सरकार की संवेदनहीनता को समझ सकते हैं। क्या सभ्य समाज में किसी को भी ये इजाजत दी जा सकती है कि एक शहर को पूरे दिन बंद कर दो। दो वीआईपी की वजह से दो लाख पर्यटक होटल और हाउस वोट का पेमेंट करने के बाद भी वहां जा नहीं पा रहे हैं। मेरा सवाल है कि सुरक्षा प्रबंध के नाम पर आखिर दो लाख पर्यटकों को पूरे दिन कैसे बंधक बनाया जा सकता है ? आम आदमी को इसका जवाब कौन देगा ?
अगर अपनी बात करुं तो मुझे लगता है कि मेरा और राजनीतिज्ञों का तो पिछले जन्म की दुश्मनी है। हालत ये है कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात का खेल चल रहा है। सियासियों के पैतरेबाजी, झूठे वायदे और बनावटी बातें सुन-सुन कर थक गया, तम मैने तय किया कि कुछ दिन परिवार के साथ इन सबको दिल्ली में छोड़कर कश्मीर आ जाता हूं, लेकिन ये राजनीतिक मेरा पीछा यहां तक करेंगे, मैने वाकई नहीं सोचा था। लेकिन आज जब मनमोहन और सोनिया ने दिल्ली से हजार किलोमीटर दूर श्रीनगर (कश्मीर) में मेरा रास्ता रोका तो मैं सच में हिल गया। अब आगे मुझे कोई भी यात्रा फाइनल करने के पहले सौ बार सोचना होगा। मैं फिर दोहराना चाहूंगा कि मैं तो सुकून से अपने आफिस में बैठकर इन नेताओं की ब्लाग पर ही सही, लेकिन खाल खींच तो रहा हूं। लेकिन बेचारे दूसरे पर्यटक जो रास्ते में फंसे हैं, जहां ना खाने को कुछ है और ना ही पीने को। वो बेचारे तो अपनी किस्मत को ही कोस रहे होंगे।
मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने जहां लोगों का रास्ता रोका, वहीं अलगाववादियों ने इन दोनों को अपनी ताकत दिखाने के लिए बंद का ऐलान कर दिया। हालत ये हो गई है कि पूरा श्रीनगर ही नहीं बल्कि कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह बंद हो गया। इससे सबसे ज्यादा मुश्किल पर्यटकों को ही होनी थी जो हुई भी। बेचारे पर्यटक एक कप चाय के लिए तरस गए। चलते चलते आपको ये भी बता दें कि अभी हमारी मुश्किल कम नहीं हुई है, क्योंकि मनमोहन और सोनिया गांधी ये जानते हुए भी उनके यहां रहने से पूरा श्रीनगर बंद हो गया है, वो आज श्रीनगर में रुक भी रहे हैं। कल यानि बुधवार को दोपहर बाद वापस होगें, तब तक पर्यटकों का क्या हाल होगा, भगवान मालिक है।
नोट : मित्रों वापस लौट कर आता हूं, फिर आपको कश्मीर के कई रंग दिखाऊंगा। खासकर धरती के स्वर्ग को कौन बना रहा है नर्क !