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अब मुझे तो नहीं पता कि ये कौन सा आसन है ? |
हालाकि महर्षि पंतजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने योगसूत्र में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाले साधक को ही सच्चा योगी बताया है। आप भी जान लीजिए ये क्या है। ये योग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग में ये सभी चीजें आती हैं। अब मैं एक एक कर आपको ये बताने की कोशिश करुंगा कि इनके मायने क्या हैं। महर्षि के योग को जानने के बाद आप खुद तय करें कि बाबा जो योग टीवी पर करते दिखाई देते हैं, वो कितना सही है। ऐसा नहीं है कि योग के जो नियम मैं बता रहा हूं, वो कुछ अलग दुनिया की बात है। बल्कि इसके अनुयायी बाबा रामदेव भी हैं, इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम महर्षि पतंजलि रखा है। महर्षि के नाम से कारखाने का नाम तो रख दिया, पर उस पर अमल कितना करते हैं। ये आप योग के नियम को पढकर खुद तय करें।
1.यम--.इसके तहत पांच सामाजिक नैतिकताएं आती हैं---
(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना
( बताइये रामदेव ऐसा करते हैं ? )
(ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना
( सच्चाई से तो दूर दूर तक का वास्ता नहीं है)
(ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना
( इतना बड़ा कारोबार, टैक्स चोरी सब तो सामने आ चुका है)
(घ) ब्रह्मचर्य - इसके दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना, सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।
( बाबा ब्रह्मचर्य का कितना पालन करते हैं, ये विवादित विषय है, इसलिए ये बाबा ही जानें वैसे इस मामले में कुछ अलग तरह की चर्चा हैं बाबा और बालकृष्ण दोनों )
(च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।
( अपरिग्रह को आपको ठीक से समझना होगा, क्योंकि बाबा इसका पालन तो बिल्कुल नहीं करते। मतलब अगर आपको दो रोटी की भूख है, तो तीसरी रोटी के बारे में विचार भी मन मस्तिष्क में नहीं आना चाहिए। आवश्यकता से ज्यादा किसी चीज का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए। अब बाबा रामदेव तो इस पर बिल्कुल खरे नहीं उतरते। बिना संग्रह के वो इतना बड़ा अंपायर कैसे खड़ा कर सकते थे। संग्रह के बिना तो बाबा एक पल भी नहीं रह सकते। दिल्ली में अनशन के दौरान खुलेआम लोगों से चंदा वसूल किया जा रहा था)
२. नियम: पाच व्यक्तिगत नैतिकताएं
(क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि
( मन में जब फिजूल की बातें भरीं हों, किसे कैसे ठिकाने लगाना है, आंखो में शैतानी दिखाई देती हो, तो भला मन को कैसे शुद्ध कर सकते हैं।)
(ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना
( अपनी ताकत का विस्तार करने, देश दुनिया में संपत्ति बनाने, किसानों की जमीन कब्जाने में लगा आदमी कैसे संतुष्ट हो सकता है। जब वो संतुष्ट नहीं हो सकता तो प्रसन्न रहने का सवाल ही नहीं उठता।)
(ग) तप - स्वयं से अनुशासित रहना
( बाबा और अनुशासन दोनों एक नदी के दो किनारे हैं, जो कभी मिल ही नहीं सकते।)
(घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना
(मेरा मानना है कि बाबा आत्मचिंतन तो करते होगे, पर वो उस पर अमल नहीं करते)
(च) ईश्वर-प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
(आर्यसमाज में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार ही नहीं किया गया है)
३. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण
४. प्राणायाम: सांस लेने संबंधी खास तकनीक द्वारा प्राण पर नियंत्रण
५. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना
६. धारणा: एकाग्रचित्त होना
७. ध्यान: निरंतर ध्यान
८. समाधि: आत्मा से जुड़ना। शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था में समाधि का अनुभव।
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हाहाहहा, सब कुछ इसी पेट के खातिर |
मुझे लगता है कि महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग को आप सब काफी हद तक समझ गए होंगे। ऐसे में अब मैं अपने ब्लागर्स साथियों पर सब कुछ छोड़ देता हूं, वो अष्टांग योग को जानने के बाद बाबा को कहां रखते हैं, उनकी इच्छा। वैसे मैं आपको बताऊं मेरी एक जाने माने योग गुरु से बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सब कुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। अब देखिए मंच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, स्वदेसी के नाम पर अपने उत्पाद योग शिविर के दौरान बेचना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के समय नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए।
योगीराज महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग निर्विविद है, अभी तक किसी ने भी उनके अष्टांग योग पर सवाल नहीं खड़े किए हैं। खुद बाबा रामदेव भी इस योग के समर्थक हैं,पर अष्टांग योग मे शामिल मंत्रों का आधा भी अगर सार्वजनिक जीवन मे इस्तेमाल करते तो वो योग की असली सेवा कर रहे होते। आज उनकी नजर में योग महज बीमारी का इलाज भर है। लोग भी इतना ही जानते हैं। जबकि अष्टांग योग का अगर सही मायने मे पालन किया जाए तो कोई भी आदमी हमेशा सदाचारी रहेगा और सदाचारी रहेगा तो प्रसन्नता उसके चेहरे पर दूर से ही दिखाई देगी।
पर बाबा रामदेव को तो योग के बहाने लोगों को जमा करके कई तरह के काम करने होते हैं। पहले तो स्वदेसी के नाम पर अपने चूरन चटनी आचार मुरब्बे बेचने होते हैं। वो बताते हैं कि उनके उत्पाद क्यों खाने चाहिए। आंवला नगरी प्रतापगढ़ का आंवला उतना गुणकारी नहीं है, जितना बाबा रामदेव का आंवला। उत्पादों को बेचने के बाद कुछ नेताओं को गाली गलौच करना होता है। फिर अपना एजेंडा बताते है कि काला धन आ जाए तो हर आदमी के हाथ में अगले दिन एक एक करोड़ रुपये से ज्यादा हो जाएगा। फिर ताली बजवाने के लिए वो अपने पेट में तरह तरह की हलचल करते हैं। पूरी सीडी लेकर बैठें तो देखता हूं कि दो घंटे से ज्यादा के कार्यक्रम के दौरान योग पर दो मिनट भी समय नहीं देते। अब लोगों को योग के बारे में बताएंगे तो जनता पूछेगी नहीं, कि फिर आप योग क्यों नहीं कराते आप ये सब क्या बेच बाच रहे है।
चलते चलते
वैसे मैं ईश्वरवादी हूं। मुझे ईश्वर में पूरा भरोसा है। मैं मानता हूं कि भगवान ने मेरी जितनी सांसे तय कर दी हैं, उतनी सांसे लेनी ही हैं, ना कम ना ज्यादा। फिर मुझे लगता है कि अगर मैने योग किया तो जल्दी जल्दी सांस लूंगा तो जाहिर है जल्दी जल्दी छोड़ूंगा। इससे मेरी सांसों का स्टाक जल्दी खत्म हो जाएगा। बस इसीलिेए मै सोच रहा हूं आराम आराम से सांस लूं और आराम आराम से छोड़ूं, तो ज्यादा दिन तक सांसे चलेंगी।
( मित्रों अगर आप लेख से सहमत नहीं हैं, इसकी आलोचना करें, कोई दिक्कत नहीं है, पर भाषा की मर्यादा का ध्यान रखें, क्योंकि ये ब्लाग हमारे आपके परिवार में पढ़े जाते हैं। अशिष्ट भाषा होने पर मुझे मजबूरी में उसे यहां पब्लिश होने से रोकना पड़ेगा। )