सच तो ये है कि अब सड़े गले सरकारी तंत्र से बदबू आने लगी है। अगर हम भ्रष्ट्राचार पर नजर डालें तो देश में इसकी शुरुआत आजादी के एक साल बाद 1948 में ही हो गई थी, जब लेह और कश्मीर सीमा पर चौकसी के लिए जीपें खरीदें जानी थीं। विदेशों से खरीदी गई इन जीपों का कीमत से दोगुना भुगतान किया गया और ये जीपें जब देश में आईं, तो इनकी गुणवत्ता भी ठीक नहीं थी। इस भ्रष्टाचार में अहम किरदार था, एक भारतीय राजदूत का। हालाकि अब नेता, अफसर जिसे जब और जहां मौका मिला, वो हाथ साफ करने से पीछे नहीं है। हम कह सकते हैं कि आज इस गोरखधंधे में किसी का दामन बेदाग नहीं है. यहां तक की मीडिया का भी।
आप हैरान हो सकते हैं, लेकिन सच ये है कि आज भी अगर लोग किसी काम से अफसर या नेता से मिलने जाते हैं और नेता ने बात सुनने के बाद कहा कि ठीक है, काम हो जाएगा, तो लोगों को भरोसा ही नहीं होता है कि उनका काम हो जाएगा, क्योंकि नेता ने पैसे की बात तो की ही नहीं, और बिना पैसे के भला काम कैसे हो जाएगा। आज नेताओं और अफसरों ने जनता में ये भरोसा ही खो दिया है कि बिना पैसे के भी काम हो सकता है।
सवाल उठता है कि जब लोग खुद पैसे देने को तैयार हैं तो आखिर गडबड़ी कहां हुई। क्यों इतना बड़ा आंदोलन सड़कों पर आ गया। मै बताता हूं, गडबड़ी इसलिए हुई लोगों की बढ़ती लालच ने देश में भ्रष्ट्राचार को भी भ्रष्ट्र कर दिया। आप नहीं समझे, मैं समझाता हूं। उदाहरण के तौर पर हमने किसी काम के लिए नेता या नौकरशाह को पैसे दिए.. ये तो हुआ भ्रष्ट्राचार। लेकिन पैसे लेने के बाद भी उसने काम नहीं किया और पैसा भी डकार गया। ये हुआ भ्रष्ट्राचार को भ्रष्ट्र करना। मुझे लगता है कि अगर भ्रष्ट्राचार में ये नेता और नौकरशाह ईमानदारी बरतते तो उनकी चांदी कटती रहती। लेकिन बेईमानों सावधान हो जाओ..अब देश की जनता जाग गई है।
सरकारी तंत्र में जब ईमानदार की तलाश की जाती है तो बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि एक भी नहीं मिलता, जिसे दावे के साथ ईमानदार कहा जा सके। यहां तो सब चोर हैं, फर्क महज बड़े और छोटे का रह गया है। एक जमाना था की गांव में बड़े बुजुर्गों को जब आप प्रणाम करते थे तो आशीर्वाद मिलता था "बेटवा दरोगा बन जा "। ये आशीर्वाद अब क्यों नहीं ? क्योंकि खाकी वर्दी पर अब हमारा भरोसा ही नहीं रहा। ये वर्दी डीजीपी की हो या फिर कांस्टेबिल की। सब जानते हैं कि ये वर्दी दागदार है जो बदमाशों को संरक्षण देती है।
आइये.. देश के इंजीनियरों की भी बात कर लें, क्योंकि विकास के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी इन्हीं की है। आसानी से समझाने के लिए एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। भगवान श्री राम जब लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे, तो एक समय ऐसा आया जहां वो भी फेल हो गए। ये मुश्किल घड़ी थी कि समुंद्र को कैसे पार किया जाए ? भगवान राम की समझ में ये नहीं आ रहा था। फिर यहां उनकी मदद की नल और नील ने। वो अपने हाथ से पत्थर उठा कर भगवान श्रीराम को देते और भगवान उस पत्थर को फूंक मारकर समुंद्र में डालते तो वो पत्थर तैरने लगते थे और इस तरह समुंद्र पर पुल का निर्माण हुआ। जिससे भगवान राम की सेना समुद्र् पार कर पाई। कहते हैं उसी समय भगवान राम ने नल और नील को आशीर्वाद दिया कि जाओ कलयुग तुम दोनों जेई और एई बनकर राज करोगे, कैसा भी पुल बनाओगे, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। तब से इंजीनियर मस्त हैं।
ये संघर्ष आमआदमी का संघर्ष है, क्योंकि भ्रष्ट्राचार से सबसे ज्यादा आम आदमी ही प्रभावित है। अन्ना जी, देश आपके साथ है, मैं भी आपके साथ हूं। लेकिन कई बार डर लगता है, वो इसलिए कि हम "जनलोकपाल" बना भी लें, तो इस बात की क्या गारंटी है वो ईमारदार ही होगा। सुप्रीम कोर्ट को हम न्याय का मंदिर मानते है, लेकिन यहां भी के जी बालाकृष्णन जैसे लोग चीफ जस्टिस बन रहे हैं। निर्वाचन आयोग को अगर टीएन शेषन ने सम्मान दिलाने का काम किया तो दूसरे निर्वाचन आयुक्त नवीन चावला ने इस संस्था को कांग्रेस पार्टी का गिरवी बना दिया। सीबीआई से ईमानदारी की अपेक्षा करना अब चुटकुला लगता है। इसलिए मुझे लगता है कि जब तक लोगों में नैतिक बल मजबूत नहीं होगा, ईमानदारी की उम्मीद नहीं की जा सकती। 121 करोड़ की आबादी को कानून के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। आज केंद्रीय मंत्रिमंडल चोरों की जमात है, और मनमोहन उसके सरदार। पीएम मानते ही हैं गठबंधन की बहुत कुछ मजबूरी होती है, लेकिन मनमोहन जी चोरों का सरदार बने रहने की कोई मजबूरी नहीं। आप चाहें तो हट सकते हैं, लेकिन नहीं कुर्सी बगैर तो आप भी नहीं रह सकते।
एक छोटी सी बात अन्ना जी को फिर दुहराना चाहूंगा। आप बेईमान नेताओं के दरवाजे पर कितनी भी दस्तक दे लें, ये जनलोकपाल के लिए सहमत नहीं होंगे। आपकी ताकत देश की जनता है और इसी ताकत के बल पर हम जनता के मनमाफिक कानून बनवा सकते हैं। पहले ही आप ड्राफ्ट कमेटी में शामिल होकर दो महीने खराब कर चुके हैं, अब इन नेताओं के चक्कर काट कर और समय ना खराब करें। मैं देख रहा हूं कि तमाम नेता आफ द रिकार्ड बातचीत में आपकी खिल्ली उडा रहा है। प्लीज आप देश भर में यात्रा कर लोगों को जगाने का काम करें। जनलोकपाल बिल इनके पिता जी को संसद में पास करना होगा।
और हां प्रधानमंत्री जी, मुझे पता है कि आप मजबूत नहीं मजबूर प्रधानमंत्री हैं। इसलिए आप अपने मंत्रियों को चोर और भ्रष्ट्र तो नहीं कह सकते, लेकिन एक पत्र सभी मंत्रियों को जरूर लिख सकते हैं। वो यह कि वही मंत्री अपने आफिस में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र लगाए, जो वाकई ईमानदारी से काम कर रहा है। वरना गांधी जी के चित्र को वापस कर दे। देखिए क्या वाकई आपके मंत्री ईमानदारी से चित्र वापस करते हैं, या फिर इंतजार करते हैं कि जब तक न्यायालय उन्हें चोर नहीं कहता है तो भला वो चोर कैसे हो गए। वैसे सच्चाई यह है कि हर मंत्री, हर नेता, हर अफसर और हर जज के बारे में सभी को पता है कि कौन अन्ना है और कौन ए.राजा, क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है।
आपने आधा साच नहीं पूरी सच बयानी की है ज़नाब...बहुत ख़ूब...बधाई
ReplyDeleteभगवान राम ने नल और नील को आशीर्वाद दिया कि जाओ कलयुग तुम दोनों जेई और एई बनकर राज करोगे,
ReplyDeleteरक्त-कोष की पहरेदारी--(
चालबाज, ठग, धूर्तराज सब, पकडे बैठे डाली - डाली |
आज बाज को काज मिला जो करता चिड़ियों की रखवाली |
दुग्ध-केंद्र मे धामिन ने जब, सब गायों पर छान्द लगाया |
मगरमच्छ ने अपनी हद में, मत्स्य-केंद्र मंजूर कराया ||
महाघुटाले - बाजों ने ली, जब तिहाड़ की जिम्मेदारी |
जल्लादों ने झपटी झट से, मठ-मंदिर की कुल मुख्तारी||
अंग-रक्षकों ने मालिक की ले ली जब से मौत-सुपारी |
लुटती राहें, करता रहबर उस रहजन की ताबेदारी ||
शीत - घरों के बोरों की रखवाली चूहों का अधिकार |
भले - राम की नैया खेवें, टुंडे - मुंडे बिन पतवार ||
तिलचट्टों ने तेल कुओं पर, अपनी कुत्सित नजर गढ़ाई |
तो रक्त-कोष की पहरेदारी, नर-पिशाच के जिम्मे आई
"बिदेशी-बैंक"
घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||
लील रहा तब से पड़ा, दुष्ट अघासुर कोष |
जोंकों को कोंसे उधर, या घोंघो का दोष ||
* * **********
कुर्सी के खटमल करें, मोटी-चमड़ी छेद |
मर जाते अफ़सोस पर, पी के खून सफ़ेद ||
प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (02.07.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
aadha sach nahi ye pura sach hai... desh 1947 ke daur se gujar raha hai...
ReplyDeletebahut sahi likha pura sach
ReplyDeletebahut uttam umda prastuti aapki lekhni ko salaam.agar sabhi is tathya ko samjhe to desh ki tasveer kuch aur hogi.humaare desh ki bhrashtachar ki kahaani videshon me bhi sunaai de rahi hai.
ReplyDeletebahut hi pyaare tarike se gart mein jati watan ki kisti ki taraf dhyan dilaya hai...nal aur neel ko diya vardaan jaisi baat lekh ko rochak aur dilchasp banati hai..aap mere blog pe aaye iske liya aapko dhanyawad..eun hi kisi roj phir baat hogi..phir baithenge phir milakat hogi
ReplyDeleteआज के हालात तो यही हैं ....जो बहुत दुखद है....
ReplyDeleteसरकार की नहीं व्यवस्था बदलने की बात होनी चाहिए॥
ReplyDeleteआपके इस लेख और विचार पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है
ReplyDeleteयह जख्म अब नासूर बन गया है इसका इलाज करना जरुरी है सार्थक पोस्ट , आभार
ReplyDeleteसच्चाई से परिपूर्ण बेबाक लेख....
ReplyDeleteये सच है कि जब तक हम स्वयं जागरूक नहीं होते ....देश और देशवासियों को यूँ ही लूटा जाता रहेगा
vartman paridrashy ka sateek chitran....
ReplyDeletesach ye Public sab jaankar bhi kitni anjaan hai jiski keemat khud hi to chukane ko majboor rahti hain..
badiya jangagrukta bhari prastuti ke liye aabhar!
बात भी ,व्यंग भी.
ReplyDeleteवाह.
bahut sachchi baat aapne byangki shali main kahi hai.bahut hi saarthak lekh.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
ये तो पूरा सच बयाँ कर दिया।
ReplyDeleteसच कहा आपना भ्रष्टाचार भी ब्रष्ट हो गया है। एक दिन एक स्टोरी के लिए मैं वॉक्स पॉप लेने गई, तो एक सज्जन जो देखने में काफी हैसियत वाले लग रहे ते, उन्होंने कहा... 'जब तक अफसर मुझ से पैसे नहीं ले लेते मुजे चिंता रहती है कि वो काम करेगा भी कि नहीं... इसलिए मैं चाहता हूं कि वो जो मांगना है मांग ले, कम से कम इस बार का विश्वास हो जाता है कि अब काम हो जाएगा '
ReplyDeleteसुन्दर छिद्रान्वेषण .आपको पढ़ना अच्छा लगता है..
ReplyDeleteभ्रष्टाचार भ्रष्ट हो गया है ... एक नई परिभाषा जो देश के वर्तमान हालात को बयान करती है। आलेख बहुत ही सार्थक है। गंभीर व्यंग्य भी सरकारी तंत्र पर।
ReplyDeletesach hi kaha hai aapne...ye public hai sab janti hai...:)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! शानदार, सटीक एवं सार्थक पोस्ट!
ReplyDeletebahut steek vyang kiya aapne....
ReplyDeletebt the best part was the title n the photo.
very good 1 sir.
sarthak aalekh .aabhar
ReplyDeleteआधा सच ब्लॉग पर तंत्र का पूरा सच उजागर हुआ है...एकदम सही विवेचन
ReplyDeleteएक एक शब्द खरी कही आपने....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार is सार्थक आलेख के लिए...
सच और वह भी पूरा कहा है आपने..बहुत सारगर्भित और विचारणीय आलेख..
ReplyDelete