Sunday 19 February 2012

आसान नहीं है गुंडाराज की वापसी ...


यूपी चुनाव की सरगरमी बढ़ती जा रही है, सभी लोग अपनी अपनी तरह से चुनाव नतीजों को लेकर कयास लगा रहे हैं। ज्यादा संख्या ऐसे लोगों की है जो समाजवादी पार्टी की सरकार बनवा रहे हैं, जो थोड़ा संकोच कर रहे हैं, उनका कहना है कि सरकार तो समाजवादी पार्टी की ही बनेगी, बस देखना ये है कि वो अकेले सरकार बनाते हैं या फिर उन्हें कांग्रेस और आरएलडी की जरूरत पड़ती है। नतीजे कुछ भी हों, पर देखा जा रहा है कि मायावती को लेकर पूरे प्रदेश में भारी नाराजगी है। वैसे ये गुस्सा भी बेवजह नहीं है, गुस्से की मुख्य वजह है कि पूरे प्रदेश में कोई काम हुआ ही नहीं है।

मायावती की अगुवाई में बेईमानों का एक गिरोह सरकार में बना रहा, और चुनाव आते आते खुद मायावती भी समझ गईं कि उनके मंत्री निकम्में है, यही वजह है कि एक के बाद एक मंत्री को वो बाहर का रास्ता दिखातीं रहीं। हालाकि बेईमान मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी हो चुकी थी, क्योंकि कई मंत्री लोकायुक्त की जांच के दायरे में आ चुके थे। शुरु में माना जा रहा था कि यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच मुख्य लड़ाई होगी। हां अगर पूरे प्रदेश में एक ही दिन वोटिंग होती तो समाजवादी पार्टी बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब भी हो जाती। लेकिन मैं देख रहा हूं कि अब समाजवादी पार्टी का रास्ता आसान नहीं है।

यूपी में लगभग पांच हजार किलोमीटर का सफर और 50 से ज्यादा जिलों तक घूमने के बाद मै इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि पहले दो चरण के मतदान में बेहतर प्रदर्शन के के बाद समाजवादी पार्टी के लिए अब कुछ मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि सूबे में समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। लेकिन समाजवादी पार्टी के पक्ष में हवा चलते ही सिर्फ आम आदमी ही नहीं व्यापारी, डाक्टर, नौकरशाह तमाम लोगों के कान खड़े हो गए और ये लामबंद होकर  एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में जुट गए कि अगर ऐसा हुआ तो सब बर्बाद हो जाएगा। अभी तक प्रदेश में बेईमान सरकार थी और अब तो गुंडाराज कायम होने जा रहा है। इस हालात में तो लोगों का घर से निकलना बंद हो जाएगा, अच्छे प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों को यूपी छोड़कर दिल्ली की ओर रुख करना होगा, जेल से गुंडे छूटने लगेंगे और सड़कों पर महिलाओं का निकलना मुश्किल हो जाएगा। आज पूरे प्रदेश में ऐसी हवा चल रही है कि गुंडाराज को रोकना है, अब गुंडा राज को रोकने की बात हो तो जाहिर है कि लोगों को विकल्प तलाशना होगा। यूपी में विकल्प बीजेपी के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता। वैसे भी मैने देखा है कि उत्तर प्रदेश में जब भी समाजवादी पार्टी मजबूत होती है तो बीजेपी अपने से मजबूत हो जाती है, या बीजेपी मजबूत होती है तो समाजवादी पार्टी की ताकत खुद ही बढ़ जाती है।

समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ा गुंडाराज का दाग मिटाना उसके लिए आसान नहीं है। हालाकि पिछले दिनों बाहुबली नेता डी पी यादव को पार्टी में शामिल करने के सवाल पर हुए विवाद के बाद लग रहा है कि पार्टी बाहुबलियों से दूरी बनाए रखेगी, लेकिन ऐसा कब तक होगा, विश्वास के साथ कहना मुश्किल है। मुलायम के राज में यादव दरोगा अपने एसपी  को कुछ नहीं समझता था, हालत ये थी कि एसपी अपने ही दरोगा से डरता था और अपनी सिफारिश उसी के जरिए कराता था। अगर मैं एक लाइन में कहूं कि उस समय कानून का राज पूरी तरह खत्म  हो गया था, तो गलत नहीं होगा। मायावती से परेशान लोग जब मुलायम के गुंडाराज के बारे में सोचतें हैं तो उनकी रुह कांप जाती है, यही वजह है कि पहले दो चरण में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने वाली समाजवादी पार्टी के लिए आगे का सफर बहुत मुश्किल भरा है। वैसे कुछ भी हो जाए, कितना भी उसके खिलाफ प्रचार हो जाए, लेकिन समाजवादी पार्टी और दलों के मुकाबले अच्छी बढ़त बना चुकी है और उसके खाते में 160 से अधिक सीटें आनीं लगभग तय है।

इस पूरे चुनाव में अगर किसी के लिए अच्छी खबर है तो वो है बीजेपी के लिए। लेकिन ऐसा नहीं है कि नीतिन गडकरी, राजनाथ सिंह कमाल कर रहे हैं, या फिर उमा भारती का जादू चल रहा है। बस समाजवादी पार्टी के गुंडाराज को सोच कर लोगों ने बीजेपी की ओर रुख कर लिया है। वैसे तो बीजेपी की हालत ये है कि उनके प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही की ही जीत आसान नहीं है, पार्टी में सिर फुटव्वल किसी से छिपी नहीं है। बीएसपी से आए बाबूलाल कुशवाह के मामले को लेकर विनय कटियार सरीखे नेता खामोश बैठे हैं। पार्टी में अहम का टकराव चरम पर है, पर यूपी के बड़े नेताओं को पता है कि अगर सूबे में अपनी नाक बचानी है तो कुछ सीटें भी जीतनी जरूरी है। यही वजह है कि लगे तो सब हैं, पर कितने मन से कौन लगा है ये सबको पता है। दिल्ली के ड्राइंग रूम नेताओं की सभा यूपी में लगाई जा रही है, जो 10 वोट इधर उधर नहीं करा सकते, वो यूपी के आसमान में उडन खटोला लिए कुलाचें मार रहे हैं। बहरहाल कुल मिलाकर आज ये हालत है कि बीजेपी 75 प्रतिशत सीटों पर कड़ी टक्कर दे रही है और 90 से 100 सीटों को जीतने के करीब पहुंच चुकी है।

इस बार हम बीएसपी से किसी तरह की अप्रत्याशित परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते। पार्टी की छवि पर जो धब्बा लगा हुआ है, उसे धोना मायावती के लिए आसान नहीं है। हम कह सकते हैं अब बहुत हो गया। आइये कुछ जिलों  की चर्चा कर लेते हैं। 2007 में बीएसपी ने बलिया में 6 सीटें जीतीं थी, इस बार सिर्फ एक सीट की उम्मीद है। यहां चार सीटें समाजवादी पार्टी और दो बीजेपी के खाते में जाने वाली हैं। आजमगढ में भी पिछले चुनाव में बीएसपी को 6 सीटें मिलीं थी, इस बार बमुश्किल उसे एक सीट मिल सकती है, यहां भी पांच सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में जा रही है, जबकि एक बीजेपी को मिल सकती है। जौनपुर में बीएसपी की पांच सीटें थीं, इस बार दो ही हाथ हाने वाली है, अमेठी में एक थी वो भी नहीं मिलने वाली। सुल्तानपुर में बीएसपी की चार थीं दो मिल  सकती है। सबसे तगड़ा झटका बीजेपी को इलाहाबाद से लगने जा रहा है, यहां उसकी आठ सीटें थीं, दो ही वापस मिलने वाली हैं। यहां बीजेपी को चार और चार ही समाजवादी पार्टी को मिल सकती है।
यहां हमने कुछ जिलों का जिक्र करके वो ट्रेंड बताने की कोशिश की है, जो यूपी में देखा जा रहा है। अगर हम कुछ और जिलों का जिक्र करें तो बाराबंकी, फैजाबाद, बहराइच,गोंडा, बलरामपुर, गोरखपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, भदोही, फतेहपुर, कानपुर, बांदा, झांसी, आगरा, मथुरा, मेरठ समेत तमाम और जिलों में बीएसपी  को जहां भारी नुकसान हो रहा है, वहीं समाजवादी पार्टी को फायदा हो रहा है। जबकि कई सीटों पर बीजेपी भी मुकाबले में आ गई है। वैसे इन तमाम निगेटिव वोट के बाद भी बीएसपी का अस्तित्व पूरी तरह खत्म नहीं होने जा रहा है, यहां 70 से 80 सीटें बीएसीपी को मिल सकती है और  उसके हाथ में सरकार की चाभी हो सकती है।

आप सोच रहे होंगे कि अभी तक मैने कांग्रेस की कोई बात ही नहीं की। सही बात तो यही है कि यूपी में भी कांग्रेस की कोई बात नहीं कर रहा है। कांग्रेस की बात दिल्ली में हो रही है। वो भी इलेक्ट्रानिक मीडिया में। दरअसल इलेक्ट्रानिक मीडिया राहुल  को लेकर बहुत गंभीर है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के ज्यादातर कर्ताधर्ता जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं, उन्हें लगता  है कि राहुल गांधी इतने दलितों के यहां जाकर भोजन कर चुके हैं, इसलिए दलित तो राहुल को ही वोट देगें। मैने एक दलित से पूछा कि भाई आपके यहां राहुल गांधी आकर भोजन कर गए और आप उन्हें वोट नहीं देगें। वो बोला अरे हमने उन्हें भोजन कराया है, उनका भोजन किया थोड़े ही है, उनका कोई हम पर अहसान थोड़े है। वोट उसे देगें जिसे ठीक समझेंगे। खैर बात तो इसकी भी सही है। इसके अलावा कांग्रेस मुस्लिम वोटों को रिझाने के लिए जिस तरह नंगई पर उतारू रही, इससे खुद मुसलमान कांग्रेस से नफरत कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि कांग्रेसी हमें वोट बैंक समझते हैं और चौराहे पर खड़ा करके हमारी इज्जत तार तार कर रहे हैं। वो खुद कहते हैं कि आरक्षण का मुद्दा सलमान खुर्शीद ने उस समय क्यों नहीं उठाया जब चुनाव आचार संहिता लागू नहीं हुई थी। सुर्खियों में आने और बीबी के लिए वोट  बटोरने के लिए उन्होंने ये घटिया बयान दिया। कांग्रेस ने बेनी प्रसाद वर्मा पर भरोसा किया और लगभग 80 टिकट उनके कहने के अनुसार दिए। हालत ये है कि बेनी बाबू अपने बेटे राकेश को ही जिता लें तो उनके लिए बड़ी सफलता होगी। जगदंबिका की सिफारिश तो नहीं चली, लेकिन वो भी अपने बेटे को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए। पर बेटा बेचारा चक्रव्यूह में फंस गया है। जो हालात हैं, उससे तो लगता है कि सलमान एक बार फिर बीबी को लखनऊ पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पाएँगे। लेकिन मरी गिरी हालत में भी कांग्रेस 2007 से बेहतर प्रदर्शन करेगी और वो 40-45 सीटें जीतने में कामयाब हो जाएगी। चौधरी अजित सिंह के सरकार में शामिल होने से जाट बहुत नाराज हैं। पर आखिर जाट जो जाट ही हैं, वो आखिर में जाट के पक्ष में ही जाएंगे और 10 से 12 सीटें चौधरी के खाते में आ सकती हैं। लेकिन चौधरी के बेटे जयंत जीतेंगे ये कहना मुश्किल है।

यूपी में कई बार छोटे दल बड़ी भूमिका में आ जाते हैं। सोनेलाल पटेल के बाद अब अपना दल का दम निकल चुका है। हालाकि इसमें जान फूंकने की बहुत कोशिश हो रही है, पर मैदान में कही दिखाई नहीं दे रहा है अपना दल का दम। हां दो एक बाहूबली  अपने दम पर जीत हासिल कर लें तो ये अलग बात है। लेकिन अपना दल का जो जनाधार तेजी से बढ़ रहा था, वो अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। इस बार चुनाव में पीसपार्टी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कहा तो ये जा रहा है कि पीस पार्टी को भगवाधारी फंडिंग कर रहे हैं, जिससे वो मुसलमानों  के वोटों को काटे और इसका फायदा भगवा उम्मीदवारों को मिले। इस बात में कितनी सच्चाई है, ये तो पीसपार्टी के कर्ताधर्ता  ही बता सकते  हैं। लेकिन ये बात को जानना जरूरी है कि इस पार्टी को फंड  कहां से मिल रहा है। वैसे इतना तो जरूर है कि पीसपार्टी की चर्चा पूरे चुनाव में है। भले लोग इसे वोट कटुवा पार्टी  ही क्यों ना कहें। लेकिन दो तीन सीटें पीसपार्टी के खाते में आ जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उलेमा काउंसिल लगभग खत्म हो चुकी है, इस चुनाव के बाद अब इसका कोई नाम लेवा नहीं रहेगा।

सोमवार यानि कल अब मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर रुख कर रहा हूं। इसमें मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बदायूं, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर और आखिर में लखीमपुर जाना है। 29 फरवरी को पूरे प्रदेश का भ्रमण खत्म हो जाएगा। उसके बाद मैं एक बार फिर आपके साथ चुनाव के रुझान के साथ मौजूद रहूंगा।  

Sunday 12 February 2012

पेप्सी का बाप है फैंटा ...

यूपी के चुनावी चौपाल का आज 22 वां दिन है, इस दौरान आईबीएन 7 की टीम ने लगभग पांच हजार किलो मीटर का सफर पूरा कर लिया है और अब तक 35 जिलों में हम दस्तक दे चुके हैं। इसमें 19  जगहों पर हम चौपाल लगा चुके हैं। सफर का अंत महीने की आखिरी तारीख यानि 29 फरवरी को लखीमपुर से होना है। तब तक हम लगभग 10 हजार किलोमीटर से अधिक सफर कर चुके होंगे।
दरअसल आज ये बात करने का मन इसलिए हो रहा है कि यूपी के हालात देख कर वाकई आंसू निकल आते हैं। चुनावी  चौपाल के लिए जब आफिस में टीम बनाई जा रही थी, तो इस टीम में मेरा नाम इसलिए शामिल किया गया कि मैं यूपी का रहने वाला हूं और यूपी को बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता हूं। मैं  भी  अभी तक यही मानता था कि मैं यूपी को अच्छी तरह से जानता हूं। लेकिन सच बताऊ, आज मेरी आंखे खुल गईं है, कसम से मैं यूपी को बिल्कुल नहीं जानता और ना ही मैने अभी तक यूपी को करीब से देखा था। लग तो ये रहा है कि मैने सिर्फ वही चीजें देखीं है, जो मुझे दिखाई गई है।

यूपी के हालात के बारे में चर्चा कहां से शुरू करुं, मैं तो यही नहीं समझ पा रहा हूं। दिमाग पर काफी जोर डाल रहा हूं कि कुछ तो अच्छी बातें मिल जाएं, जिससे मैं अपने प्रदेश की नाक बचा लूं, पर नहीं.. कुछ भी यहां ऐसा नहीं है, जिस पर मैं गर्व कर सकूं और आपके सामने जोरदार तरीके से सूबे की तारीफ करूं। चूंकि ये सफर सड़क के रास्ते चल रहा है, तो बात पहले सड़कों की ही कर ली जाए। सड़कों की बात होती है तो कहा जाता है कि सबसे ज्यादा खराब सड़क बिहार की है, मुझे लगता है कि अब ऐसा नहीं होगा, खराब सड़कों की बात हो तो यूपी पहले नंबर पर ही होगा। वैसे भी हम लोग खराब सड़कों पर सफर करने से हम सब कमर दर्द से परेशान हैं। हालत ये है कि हम सब रात में पेनकिलर लेकर किसी तरह सोने को मजबूर हैं। मेरी तो नींद उड़ गई है और लिहाजा देर रात तक तो गपबाजी करते हुए बीताना पड़ता है।

वैसे एक एक समस्या के बारे में चर्चा करुंगा तो मुझे लेख नहीं बल्कि किताब लिखनी होगी। इसलिए मैं संक्षेप में बता दूं कि सूबे के एक बड़े हिस्से में दूषित पेयजल  होने से लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। स्वास्थ सेवाएं पूरी तरह पटरी से उतर चुकी हैं। शिक्षण संस्थाओं का भारी अभाव है। ज्यादातर जिले या तो उद्योग शून्य हैं, या फिर वहां चल रहे काम धंधे बंद होने के कगार पर हैं। माफ कीजिएगा लेकिन सच ये है कि गांवो  में विकास की बात करना बेईमानी है। मुझे लगता है कि जब प्रदेश में छोटे छोटे बच्चों के शरीर पर इतनी ठंड में पूरे कपड़े ना हों और प्रदेश की सरकार बड़े बड़े विज्ञापन देकर तरक्की की बात कर रही हो तो लगता है कि इन नेताओं के भीतर जो दिल धड़कता है वो असली नहीं है, बल्कि आर्टिफीशियल है, जो बैटरी के जरिए धड़कता रहता है।

बहरहाल सूबे में विकास की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। मैं दो ऐसे जिलों की चर्चा करना चाहता हूं, जिस जिले के नेता प्रधानमंत्री तक हुए हैं। पहले चर्चा करते हैं यूपी के बलिया जिले की, जहां के नेता स्व. चंद्रशेखर जी देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। बलिया के मुख्यालय पर हमारी चौपाल एक स्कूल में लगनी थी और अगले दिन हमें जौनपुर के लिए रवाना होना था। रात बलिया में कटनी थी, हमने यहां पता किया तो बताया गया कि सबसे बेहतर होटल स्टेशन के पास है, जिसका नाम होटल पेप्सी है। नाम से लगा कि अच्छा  होटल  होगा, चलो रात शुकून से बीत जाएगी। लेकिन नहीं, कमरे घुसे तो नाक बंद करनी पड़ी। बिस्तर पर दाग धब्बे वाले चादर  बिछे  हुए थे, पूरे कमरे से बदबू आ रही थी। रात काटना तो दूर कुछ मिनट खडा होना भी यहां मुश्किल था। हमारे लिए तो  वहां के मित्रों का आग्रह था कि मैं उनके घर जाकर रुकूं, पर टीम को छोड़कर अकेले कहीं जाना ठीक नहीं लगा। बहरहाल इसी कमरे में अगरबत्ती जलवाने के बाद कमरे में बैठना संभव हो पाया। इस कमरे में खाना खा पाना तो  संभव ही नहीं था, लिहाजा लोगों ने इतनी रात तक ड्रिंक्स किया कि उन्हें पता ही ना चल पाया कि हम सब कहां सो रहे हैं।
बलिया के पेप्सी के बाद कई शहरो से होता हुआ हमारा काफिला एक बार फिर ऐसे जिले में पहुंचा जिस जिले ने देश को प्रधानमंत्री दिया है। ये जिला है फतेहपुर और यहां से स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह सांसद रहे और प्रधानमंत्री भी बने। बताया गया कि होटल विशेष यहां का सबसे अच्छा होटल है। हमें प्रतापगढ़ से फतेहपुर आना था, हमारी टीम सुबह ही निकल गई और होटल पहुंची तो सब हैरान रह गए। दोपहर बाद जब मैं फतेहपुर पहुंचा तो मेरे एक मित्र ने कहा कि सर ये होटल तो पेप्सी का बाप यानि फैंटा है। मानों  पैरों तले जमीन खिसक गई हो। होटल में अंदर जा रहा था तो  देखा कि मेरे कमरे के सामने एक आदमी साबुन से हाथ धो रहा था, पूछने पर पता चला कि वो फ्रेश होकर आया है और यहां वासवेसिंग नहीं है, इसलिए वो यहीं  हाथ धो रहा है।

बहरहाल यूपी के इस थका देने वाले सफर से हम सभी को तमाम नई नई जानकारी मिल रही है। दिल्ली में बैठकर विकास की तमाम बाते होती हैं, बड़ी बड़ी योजनाओं पर चर्चा करते हुए कहा जाता है कि इसका लाभ गरीबों को मिल रहा है। लेकिन मैं आज भी इसी मत का हूं कि विकास नापने का जो पैमाना सरकार के पास है, उसे बदल दिया जाना चाहिए, क्योंकि विकास के दावे खोखले हैं, इसमें कत्तई सच्चाई नहीं है। मेरी कोशिश है कि मैं आपको इस यात्रा के दौरान होने वाले अनुभवों को जरूर शेयर करुं। मेरा सवाल है कि जब मुझे इन जिलों के सबसे अच्छे होटल में रात बितानी मुश्किल है, तो ये बेचारे जिनके सिर पर छत नहीं है, जेब में धेला नहीं है, बच्चों के तन पर कपड़े नहीं है, महिलाएं घर गृहस्थी के साथ बोझा ढोने को मजबूर है तो फिर विकास की बात करना बेईमानी नहीं तो क्या है।

Tuesday 7 February 2012

यूपी चुनाव से तय होगा असली " युवराज "

मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी बुरे फंस गए, बेचारे अभी तो राजनीति की एबीसीडी सीख रहे हैंऔर पार्टी ने उन्हें यूपी में फंसा दिया। अरे भाई पहले राहुल को किसी छोटे और शांतिप्रिय राज्य में चुनाव के दौरान भेजा जाना चाहिए था, जैसे गोवा, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में। यहां उन्हें कोई खास दिक्कत भी नहीं होती। वहां जाते और पार्टी के लिए काम करते, पार्टी को जीत भी मिल जाती और वाहवाही लूटते। लेकिन पता नहीं क्यों लगता है कि कुछ लोग राहुल के खिलाफ ही साजिश कर रहे हैं। उनको स्टार प्रचारक बता कर यूपी चुनाव में टहला रहे हैं।

बहरहाल अब तो यूपी में राहुल की साथ और ताज दोनों दांव पर लगा है। साख मतलब कई महीनों से बेचारे कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने के लिए गांव गांव दौड़ लगा रहे हैं। दलितों के यहां भोजन कर रहे हैं, पार्टी को उन पर भरोसा है कि वो यूपी में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में कामयाब हो जाएंगे। ताज भी दावं पर लगा है, यानि असली युवराज कौन है, ये मसला भी इस  चुनाव में तय हो जाएगा। मित्रों सच तो ये है कि जिस तरह मुलायम सिंह यादव के बेटे  अखिलेश यादव की सभाओं में भीड़ उमड़ रही है, उससे इतना तो साफ  है कि इस चुनाव के बाद वो भी  किसी युवराज से कम नहीं रहेंगे। यानि हम कह सकते हैं कि चुनाव के नतीजे ये भी साफ करेंगे कि असली युवराज कौन है, राहुल या फिर अखिलेश ।

पिछले दिनों पेड न्यूज की बात चल रही थी, देश भर में बहुत हायतौबा मचा। लोगों ने ऊंगली उठानी शुरू कर दी अखबार मालिकों पर। लेकिन ये पेड सर्वे के नाम पर क्या हो रहा है। कुछ लोगों ने सर्वे को धंधा बना लिया है। यूपी के 25 से ज्यादा जिलों में हो आया हूं, ईमानदारी से कह रहा हूं कि खुद ऐसे कांग्रेसी भी नहीं मिले जो दावे से अपने उम्मीदवार की जीत का दावा कर रहे हों। हालत ये है कि बाराबंकी में बेनी प्रसाद वर्मा, बस्ती में जगदंबिका पाल को अपने बेटों को चुनाव जीताने में पूरी ऐडी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं अमेठी में डा.संजय सिंह अपनी पत्नी को चुनाव जीताने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं। इन सबके बाद भी ये तीनों चुनाव  जीत पाएंगे या नहीं, इस पर लोगों को शक है।

मैं आज रायबरेली में हूं। सच बताऊं तो बहुत थका हुआ हूं, क्योंकि शनिवार को वाराणसी में रात नौ बजे कार्यक्रम खत्म होने के बाद मैने मुगलसराय से रांची राजधानी पकड़ लिया और दिल्ली के लिए रवाना हो गया, क्योंकि संडे को कोई कार्यक्रम नहीं था, सोमवार को ये चौपाल गांधी परिवार के गढ रायबरेली में लगनी थी। रविवार को दोपहर बाद मैं घर पहुंच गया, 15 दिन बाद बच्चों से मुलाकात हुई। कुछ देर घर मे रुकने के बाद मैं बच्चों को लेकर मांल घूमने चला गया। वापसी देर रात में हुई और सुबह जल्दी उठकर दिल्ली से हवाई जहाज से लखनऊ और लखनऊ से कार लेकर दोपहर दो बजे रायबरेली आया हूं। अभी शाम के चार बजने वाले हैं, जब में ये ब्लाग लिख रहा हूं। मैने ये सब सिर्फ इसलिए बताया कि इतना थका होने के बाद भी अगर ब्लाग लिखने बैठा हूं तो कुछ खास बात जरूर होगी।

दरअसल रायबरेली के जिस होटल में मैं हूं, ये यहां का जाना माना होटल है। लेकिन होटल के ज्यादातर कमरे खाली  पड़े हैं। मैने वैसे ही होटल के कुछ लोगों से बातचीत के दौरान पूछ लिया कि भाई बहुत सन्नाटा है आपके होटल में। फिर  उसने जो कुछ बताया वो हैरान करने वाला था। उसका कहना है कि यहां जब भी चुनाव होते हैं, यहां देश के बड़े बड़े कारपोरेट घरानों के नुमाइंदे यहां आकर डेरा डाल देते हैं और हर गांव में ना सिर्फ पैसे बांटे जाते हैं, बल्कि महीनों तक पूरे गांव का भरपूर मनोरंजन किया जाता है।  करोडो रुपये इसी होटल से लोगों को बांट दिए जाते हैं। लेकिन इस बार रास्ते में इतनी चेकिंग हो  रही है कि रुपये पैसों का बांटना इतना आसान नहीं रह गया है।
बताइये जब ये हाल  उस निर्वाचन क्षेत्र का है जहां कांग्रेस का बोलबाला माना जाना है। सोनिया और राहुल गांधी का निर्वाचन क्षेत्र है। हालाकि मैं ये बात होटल से मिली जानकारी के आधार पर ही कह रहा हूं। लेकिन मुझे इनकी बातों में सच्चाई इसलिए लगती है कि यहां  से राहुल सोनिया तो जीत जाते हैं, परंतु विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ही उम्मीदवार हार जाते हैं। क्या इसकी वजह ये तो नहीं कि बड़े चुनाव में खूब पैसे बंटते है और छोटे चुनाव में नहीं बंटते, लिहाजा लोग गुस्से  में आकर कांग्रेस के खिलाफ वोट करते हैं।

खैर दिल्ली में बैठकर कुछ लोग कांग्रेस का झंडा बुलंद किए हुए हैं, कांग्रेस को लगभग 100 सीटें दे रहे हैं। लेकिन 25 से ज्यादा जिलों में घूमने के बाद मेरा मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस को किसी भी तरह की गलतफहमीं में नहीं  रहना चाहिए, उनके गंठबंधन को 60 सीटें मिल  जाएं तो वो इसे पार्टी और राहुल गांधी की कामयाबी समझें। हां एक बात तो मैं कह सकता हूं कि चुनाव में काग्रेसी भी इस बार मैदान में दिखाई दे रहे हैं। चुनाव भले हार जाएं, पर वो चुनाव लड़ते तो नजर आ रहे हैं। ऐसे में जहां पिछले चुनावो में 85 फीसदी से ज्यादा कांग्रेस उम्मीदवारों  की जमानत जब्त हुई थी, इस मुझे लगता है कि इस प्रतिशत में  दस पांच प्रतिशत लोगों की गिरावट दर्ज होगी। यानि कुछ और भी कांग्रेस उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब हो सकते हैं।  बहरहाल देखना अब देखना ये है कि युवराजका ताज राहुल  गांधी बचा पाते हैं या फिर  मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव इस ताज को भी अपने  नाम करने में कामयाब हो जाते हैं।