Saturday 25 June 2011

नही चलेगी ये अन्नागिरी...


आज चर्चा के लिए तीन मुद्दे हैं जो मुझे बेहद परेशान कर रहे हैं। कल से यही सोच रहा हूं कि क्या करूं। अन्ना जी का मैं समर्थक हूं, मुझे ही नहीं देश के आम आदमी को उनके आंदोलन से बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन अब मुझे अन्ना को कटघरे में खड़ा करना पड़ रहा है। इस बारे में मैं कल ही लिखना चाहता था, लेकिन कल अन्ना और उनकी टीम को लेकर मैं बेहद गुस्से में था, लिहाजा मुझे लगा कि अभी मैं अपने लेख के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि मेरे लेख पर मेरे गुस्से का प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए मैं ये बात मन में दबाए रहा। लेकिन समय बीतने के साथ हालत ये हो गई कि हमें रात में डाक्टर के पास जाकर ब्लडप्रेशर चेक कराना पड़ा। मुझे जो अंदेशा था वही निकला। मेरा बीपी 105 और 180 था। चूंकि मैं अभी बीपी की दवा नहीं लेता हूं, लिहाजा काफी देर तक मैं बच्चों के साथ अपार्टमेंट के भीतर ही टहलता रहा। आज आराम है।  दूसरा मुद्दा उत्तर प्रदेश से जुड़ा है, जबकि तीसरी बात मुझे केंद्र सरकार की तेल नीति पर करनी है। आइये सबसे पहले बात अन्ना की कर लेते हैं।

नासमझ अन्ना
अब मुझे टीम अन्ना को नासमझ, अल्पज्ञानी, महत्वाकांक्षी कहने में जरा भी संकोच नहीं है, क्योंकि अन्ना जब जंतर मंतर पर आमरण अनशन कर रहे थे तो उन्हें आम जनता का भरपूर समर्थन मिला। इस दौरान कुछ राजनीतिक दलों के नेता भी उन्हें समर्थन देने के लिए जंतर मंतर पहुंचे, पर अन्ना समर्थकों ने नेताओं को खदेड़ दिया। मुझे लगता है कि ये इतनी बड़ी गल्ती थी कि अब अन्ना इस चूक की भरपाई आसानी से नहीं कर पाएंगे। अरे भाई भारत लोकतांत्रिक देश है, सबको पता है कि यहां कानून जंतर मंतर पर नहीं बनेगा, कानून बनेगा संसद में, और संसद में अगर कानून बनवाना है तो राजनीतिक दलों से नफरत नहीं दोस्ती करनी होगी। खैर कोई बात नहीं लेकिन अन्ना जी कल तक राजनीतिक दल अछूत थे तो अब राजनीतिक दलों के दरवाजे पर घुटने  टेकने क्यों पहुंच गए। अब आपको आडवाणी और ए वी वर्धन की याद आने की वजह क्या है। अब आप ऐसा क्यो सोच रहे हैं कि सभी दलों ने नेतृत्व से मुलाकात करें। आपको लगता है कि शरद पवार, करुणानिधि, मुलायम सिंह यादव, मायावती, लालू प्रसाद जैसे नेता जनलोकपाल बिल को समर्थन देंगे।
अन्ना जी आपके इस फैसले से आपकी किरकिरी हो रही है। जान लीजिए कि नेताओं से मिलने की जिसने भी सलाह दी है वो आपकी टोपी नेताओं के पैर में रखवाना चाहता है। उसकी नीयत में खोट है। देश का युवा आपको आज का गांधी मानता है, और गांधी दो कौडी के नेताओं के चौखट पर जाए, ये किसी को बर्दाश्त नहीं। अन्ना जी आप तो देश की जनता को मालिक और सियासी को नौकर बताते हैं, फिर ऐसा क्या हो गया कि मालिक को नौकर के दरवाजे पर मत्था टेकना पड़ रहा है, और नौकर दुत्कार रहा है। अरे आपकी टीम मूर्ख है क्या, जब आप सांसदों को जनलोकपाल के दायरे में लाना चाहते हैं तो सियासी दलों को कुत्ते ने काटा है कि वो आपका समर्थन करेंगे।
अन्ना जी लगता है कि कुछ गलतफहमी में आप और आपके सलाहकार भी हैं। उन्हें लग रहा है कि आपके अनशन से सरकार झुक गई और इसलिए आप से बातचीत को राजी हुई। अगर आप भी ऐसा समझते हैं तो मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोए रहिए। लेकिन सच्चाई ये है कि आपके आंदोलन को मिल रहे अपार जनसमर्थन ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। अब आप जनसमर्थन को ठेंगा दिखा कर नेताओं के तलुवे चाटने उनके दरवाजे पर जा रहे हैं। आप समझते हैं कि जिन बेईमानों के खिलाफ आप झंडा उठाए हुए हैं, वो आपके साथ खड़े होंगे। किसी पार्टी के नेता ने आपकी बात मान ली तो वो अपनी पार्टी के सांसदों से पिटेगा। इसलिए अन्ना जी आपको सलाह है कि कहीं ऐसा ना हो कि आपको नेता भी दुत्कार दें और जनता भी। आप मौके की नजाकत को समझें, नेताओं से जो दूरी है, वो बनाए रखें। देश भर से जनसमर्थन जुटाएं, ऐसा माहौल बनाना होगा कि जो दल जनलोकपाल के खिलाफ बात करे, उसे देश की जनता दुत्कार दे। आप गांधी हैं, आप गांधी बने रहें। आप आशीर्वाद देने की भूमिका में रहें, लेने की कत्तई ना सोचें।

राजनीति के अयोग्य माया
चलिए आज आपको देश के एक हास्यास्पद कानून के बारे में बताता हूं। जिसके लिए निर्वाजन आयोग करोडों रुपये खर्च करता है। चुनावों में बेहिसाब खर्चों पर नियंत्रण के लिए निर्वाचन आयोग हर चुनाव क्षेत्र में पर्यवेक्षक भेजता है, जबकि पर्यवेक्षकों के आने जाने का कोई मतलब नहीं है, हर जगह उम्मीदवार मनमानी खर्च करते ही हैं। खास बात ये हैं कि चुनाव के बाद उम्मीदवार को चुनावी खर्च का पूरा व्यौरा निर्वाचन कार्यालय में जमा कराना पड़ता है। आपको पता है जो लोग चुनाव खर्चे को जमा नहीं कराते हैं, ऐसे लोगों को निर्वाचन आयोग चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देता है और वो फिर चुनाव नहीं लड़ पाते।
लेकिन चुनाव जीतने के बाद आप कितने अपराध करें, आपको चुनाव के अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। अब यूपी की मुख्यमंत्री मायावती को ले लें। उत्तर प्रदेश में अब वो समय आ चुका है जब की सरकार को बर्खास्त कर राष्टपति शासन लगाया जाना चाहिए। मायावती पैसे की बर्बादी कर रही हैं। सरकारी पैसे से मूर्ति,पार्क पर उनका ध्यान ज्यादा है। एक खास बिल्डर ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों पर गोली चलाई जा रही है। उनके पार्टी के मंत्री - विधायक संगीन अपराधों में लिप्त हैं। प्रदेश की राजधानी में कानून का राज बिल्कुल नहीं रह गया है। लखनऊ जेल में डा.सचान की हत्या से साफ हो गया है कि सूबे की सरकार के कुछ बड़े लोगों की कारगुजारी खुल ना जाए, इसलिए ये हत्या कराई गई है।
लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वालों पर लाठी चलाई जाती है, विरोधी दल के नेताओं के घरों को सरकार के विधायक अपने गनर के साथ जाकर फूंक देते हैं। ये तमाम ऐसे कारण मौजूद हैं कि सूबे की सरकार को ना सिर्फ बर्खास्त किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा प्रावधान भी किया जाना चाहिए, मायावती जैसे लोगों को चुनाव के अयोग्य ठहराया जा सके, क्योंकि इनके नेतृत्व में गुंडे पल रहे हैं और उन्हें संरक्षण भी मिल रहा है।  

बेशर्म केंद्र सरकार
ये मेरे लिखने की शैली नहीं है, लेकिन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी और पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने मजबूर कर दिया कि उन्हें गाली की भाषा ही समझ में आती है। डीजल की कीमतों में तीन रुपये और रसोई गैस सिलेंडर में 50 रुपये की बढोत्तरी को इन दोनों नेताओं ने मामूली बढोत्तरी बताया है। इनसे ये कौन पूछे कि ये बढोत्तरी तुम्हारे लिए मामूली है, इन्हें तो रसोई गैस की कीमत क्या हो गई है, ये भी पता नहीं होगा। इस बढोत्तरी से ज्यादा इन नेताओं की गंदी टिप्पणी ने लोगों को आहत किया है। जनता को पांच जूते मारने के बाद कह रहे हैं कि अरे मेरी वजह से सिर्फ पांच ही पड़े वरना तो 25 पड़ने वाले थे।  

Thursday 23 June 2011

धर्मनगरी का अधर्म...



जी हां आजकल देश भर में भ्रष्टाचार की बात जोर शोर से की जा रही है। आप सबको पता है कि समाज का कोई तबका ऐसा नहीं है, जिसके हाथ इस गोरखधंधे में ना सने हों। आप सब पहले से जानते हैं कि देश के ज्यादातर सियासी भ्रष्ट हैं, नौकरशाह भी ईमानदार नहीं रहे। यहां तक की सरकारी दफ्तरों के बाबू को भी घूस का खून लग चुका है। हमारी न्यायालयों में बहुत श्रद्धा थी, लेकिन जज के साथ बैठा उनका पेशकार जब उनके सामने ही पैसे थामता है, तो सिर शर्म से झुक जाता है। पेशकार को जब कटघरे में खडा किया जाता है तो वह साफ साफ बताता है कि इस पैसे में जज साहब की भी शाम की सब्जी शामिल है।
माफ कीजिएगा मैं भ्रष्टाचार की बातें कर रहा हूं, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, वजह आप कह सकते हैं कि मीडिया को ये बात कहने का अब कोई हक नहीं है, क्योंकि यहां भी चोर घुसपैठ कर चुके हैं। जी बिल्कुल...मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं। यहां भी चोरों ने पांव पसार लिए हैं। कारपोरेट दलाल नीरा राडिया का जो टेप सामने आया है, उसने मीडिया के ऐसे बड़े बडे़ चेहरों को दागदार किया है, जिससे हम सब को काफी उम्मीदें थीं। पंजाब के आईपीएस एसपीएस राठौर के खिलाफ छेडछाड़ का मामला दर्ज हुआ तो मीडिया ने इतना हो हल्ला मचाया कि उन्हे सर्विस के दौरान मिले सभी पदक सरकार ने वापस ले लिए, लेकिन मीडिया का दोहरा चरित्र तो  देखिए..जब बडे पत्रकारों की काली करतूतें सामने आ चुकी हैं, फिर भी कहीं से ये आवाज नहीं उठाई गई कि दागी पत्रकारों से पद्मश्री वापस लिया जाए।
 
आइये विषय पर आते हैं, जो मै कहना चाहता हूं। आज मैं बहुत ही जिम्मेदारी से ये बात कह रहा हूं कि देश के साधु संत भी अब ईमानदार नहीं रह गए। सिर्फ काली कमाई ही नहीं, जमीन कब्जाने, जमीन के लिए किसी भी हद तक जाने के साथ ही अब तो कई बाबाओं के चरित्र पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।  
फिलहाल छोटी सी बात पुत्तपार्थी की करते हैं। आप सब जानते हैं कि सत्य साईं बाबा का शुरू से ही विवादों से नाता रहा है। जीवन काल में उनके बारे में अनैतिक रिश्तों की बात सामने आई थी, और अब मौत के बाद अकूत संपत्ति की। हम विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने के लिए शोर कर रहे हैं, लेकिन देश में जमा कालेधन पर क्यों खामोश हैं। सत्य साईं आश्रम में चोरी से ले जाए जा रहे 35 लाख रुपये पकडे जाने के बाद ट्रस्टियों की भूमिका संदिग्ध हो गई है। अब तो यहां तक बताया जा रहा है कि आश्रम में कई तहखानों में अऱबो रुपये नकद और हीरा, सोना चांदी जमा है। हैरत है कि जब सत्य साईं के कमरे से धन बरामद हो रहा है, तो आप समझ सकते हैं कि जो संत लोगों को मोह माया से दूर रहने  का संदेश देते हैं, उनका असली चेहरा कितना भद्दा, गंदा और बदबूदार है।

ताजा मामला बाबा रामदेव का ही ले लें। वो कहते हैं कि मुझे दान मिलता है, जिससे 1100 करोड का ये विशाल एंपायर खड़ा है। बाबा जी अगर आपने सभी दान चेक से लिया है तब तो ठीक है, उसका हिसाब किताब आपके पास होगा ही, लेकिन अगर बड़ी मात्रा में आपने नगद चंदा लिया है, तो ये कैसे पता चलेगा कि आपकी सम्पत्ति में कालाधन नहीं है। बाबा जी पर जब भी सवाल दागे जाते हैं, तो वो ये नहीं कहते कि मेरे पास जो कुछ है सब नंबर एक में है। वो लचर कानून का सहारा लेते हैं, और कहते है कि जो कुछ भी उन्होंने किया है वो सब कानून के दायरे में रह कर किया है। वैसे तमाम ट्रस्ट और कंपनी बनाने से ही ये साफ है कि बाबा रामदेव भी दूध के धुले नहीं है। यही वजह कि अब खामोश हो गए हैं, उछल कूद और बोलती बंद है।
हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत ना हों, लेकिन मैं बहुत ही जिम्मेदारी के साथ ये बात कह रहा हूं कि नौकरशाहों ने संत समाज को भ्रष्ट बनाने में अहम रोल निभाया है। आप किसी भी बाबा, योगी, कथावाचक, या फिर संत को ले लें, उनके यहां कुछ नौकरशाह जरूर चिपके होगें। संत सरल होते हैं, इससे वो नौकरशाहों के कुचक्र में फंस जाते हैं। संत समाज में नौकरशाहों के बढते दखल से न्याय पालिका के भी कान खड़े हो गए, और जजों ने भी इन साधु संतो में घुसपैठ बना लिया। आज देश में ऐसा कोई साधु, संत, सन्यासी नहीं है, जिसके यहां कार्यरत नौकरशाह या फिर रिटायर नौकरशाह और जजों की फौज ना हो। इसमें दोनों का फायदा है। सत्य साईं के आश्रम पुत्तपार्थी में तो एक नौकरशाह पूरे साम्राज्य का मालिक बनने की फिराक में है। 
पिछले दिनों आईबीएन 7 चैनल के एक स्टिंग आपरेशन में कई बाबा पकड़े गए थे। वो लोगों के कालेधन को सफेद करते थे। कैमरे पर पकड़े गए बाबा  सौदेबाजी कर रहे थे, जिसमें वो बकायदा ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए परसेंटेज की बात कर रहे हैं।  वैसे तो आप भी जानते हैं  कि जहां कहीं भी "साला " शब्द जुड़ जाता है, वहीं गड़बड़ी शुरू हो जाती है। जैसे धर्मशाला, पौशाला, गौशाला, पाठशाला आदि आदि। इन सबके नाम पर सरकारी छूट की लूट हो रही है। इसमें साधु संत सबसे आगे हैं। किसी भी साधु संत को देख लें, उनके पास करोडों की प्रापर्टी है। सबके धंधे चल रहे हैं। सबके साथ विवाद जुडा हुआ है। कम साधु संत ऐसे हैं जिनके खिलाफ कोई विवाद ना हो। जमीनों के विवाद जितने साधु संतो के साथ है, भूमाफियाओं के खिलाफ भी उतने मामले नहीं होंगे।
मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि साधु संतों के साम्राज्य पर सरकार कड़ी नजर रखे। चूंकि इन साधू संतों को इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स समेत अन्य सभी प्रकार के टैक्स से छूट दी गई है। छूट इसलिए कि ये समाज सेवा करते हैं। लेकिन अब कहां समाज सेवा रह गई। जब योग क्लास के लिए पंजीकरण शुल्क हजारों में हो, आर्ट आफ लीविंग के कोर्स की फीस ली जा रही हो, आगे बैठकर प्रवचन सुनने का अतिरिक्त शुक्ल देना मजबूरी हो, ऐसे में बाबाओं को छूट क्यों। क्यों नहीं बाबाओं को टैक्स के दायरे में लाना चाहिए। जब छूट का फायदा ये बाबा ले रहे हैं तो इन्हें सरकार के नियंत्रण में रहना चाहिए। सरकार को भी देखना चाहिए कि कैसे ये बाबा लोगों को चूना लगाकर रातोंरात अकूत संपत्ति जमा कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस मामले पर गंभीर बहस की जरूरत है और मैं जोर देकर ये कहना चाहता हूं कि बाबाओं के धार्मिक प्रतिष्ठानों, मंदिरों सभी जगह टैक्स का प्रावधान होना चाहिए।
और अब बात धर्मनगरी के अधर्म की। आप किसी भी धर्मनगरी मथुरा, हरिद्वार, श्रृषिकेश समेत और भी महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों पर चले जाएं। यहां आपको रहने के लिए एक से एक आलीशान धर्मशाला मिलेंगे। जिसमें सभी तरह की फाइव स्टार सुविधाएं मिलेंगी और आपसे हजारों रुपये किराया भी वसूला जाएगा। लेकिन जब आप यहां बिल मांगेगे तो वो किराए का बिल ना देकर  धर्मशाला के लिए सहयोग राशि यानि दान की रसीद थमा देगें। ये काम सबसे ज्यादा कृष्णनगरी मथुरा में है। खुलेआम लूट करते हैं धर्म के ठेकेदार, पर कोई बोलने वाला नहीं है।



Tuesday 21 June 2011

संकलन


मित्रों,
कई बार कुछ ऐसी रचनाएं नजर से गुजरती हैं, जिसे बार बार न सिर्फ दुहराने का मन होता है, बल्कि सोचे जागते आप उसी रचना में रमें रहते हैं। मैं यहां दो तीन रचनाएं आपके सामने रखता हूं, मुझे लगता है कि आप भी इसे पसंद करेंगे और मेरी तरह गुनगुनाते रहेंगे। चलिए बात वीर रस के जाने माने कवि डा. हरिओम पंवार से शुरू करता हूं।


मैं भी गीत सुनाता हूँ, शबनम के अभिनन्दन के
मैं भी ताज पहनता हूँ नंदन वन के चन्दन के ||

लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के ||
जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम के गोली के,
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के ||

जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के,
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के ||

मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले,
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले||

क्रांतिकथा में गौण पड़े है, गुमनामी की बाहों में,
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में ||
यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला,
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला ||

राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता,
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता ||
ऐरे गेरे नत्थू खैरे तंत्री बन कर बैठे है,
जिनको जेलों में होना था मंत्री बन कर बैठे है ||

लोक तंत्र का मंदिर भी बाज़ार बना कर डाल दिया,
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया ||
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है,
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है ||

पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
,इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलायेगे ||
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी राजधानी,
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी ||

प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए,
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए ||
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले,
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल गए ||

आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला,
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला ||

क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने,
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||


जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है,
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है ||
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा करते है,
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को धरते है ||

लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है,
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है ||
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है,
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्ज्ज़त है ||

इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले,
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले ||
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो,
काला धन वापस न आये तो मुझको फ़ाँसी दे दो ||

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है,
तो बगला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है ||
जब जब जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है,
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है ||

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है,
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है ||

जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है,
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है ||
सिंहो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है,
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है ||

कहते है की सच बोलो तो प्राण गवाने पड़ते है,
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कोई साधू संन्यासी पर तलवारे लटकाता है,
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है ||
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है,
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है ||
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है,
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है ||

कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में,
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में ||
कोई ढाँचे का गिरना UNO में ले जाता है,
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है ||

कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है,
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है ||
सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है,
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ,
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ |

-डॉ. हरिओम पंवार

डा.हरिओम पंवार को पढने से ज्यादा उन्हें सुनना अच्छा लगता है। अक्सर कवि सम्मेलनों में उनकी बारी आने तक रात के डेढ दो बज चुके होते हैं, लेकिन जब डा. पवांर खडे होते है तो वो कवि सम्मेलन में मौजद लोगों में ऐसी जान फूंक देते हैं कि ऊंघ रहे लोग उठ बैठते हैं। अब हिन्दी के जाने माने कवि स्व. कैलाश गौतम की एक रचना। कैलाश जी की खास बात यह रहती है कि वो ऐसे विषय को लेते हैं जिससे आमतौर पर सभी का सामना होता है और गौतम जी अपने ही अंदाज में लोगों को संदेश देते नजर आते हैं।


कभी मेरे बेटे कचहरी न जाना
भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना- कचहरी न जाना.
कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है
तिवारी था पहले तिवारी नहीं है
कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही जिन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चुमतें है
कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फंसा है
यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे
यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे
कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे है
मर जी रहा है गवाही में ऐसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे
लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है
है बासी मुहं घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी
मुकदमें की फाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी
कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है
मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे
मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे
दलालों नें घेरा सुझाया -बुझाया
वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया
धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ
मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ
नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा
जहाँ था करौदा वहीं है करौदा
कचहरी का पानी कचहरी का दाना
तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना
कभी भूल कर भी न आँखें उठाना
न आँखें उठाना न गर्दन फसाना
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी ||

अवधी में हास्य व्यंग की बात हो और स्व. रफीक सादानी की चर्चा ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। सादानी साहब को जिसने एक बार भी सुना है, वो उनका कायल हो गया। उनकी रचना शैली का अलग अंदाज तो देखने को मिलता ही है, मै उनसे काफी संपर्क में रहा हूं, वो एक अच्छे इंशान भी थे। एक उनकी रचना भी..          


कविता : कुपंथी औलाद
औरन के कहे मा हम आयेन
काया का अपने तरसायेन
कालिज मा भेजि के भरि पायेन
      तू पढ़ै से अच्छा घरे रहौ,

      चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा लिखि पढ़ि जइहौ
आकास मा एक दिन चढ़ि जइहौ
पुरखन से आगे बढ़ि जइहौ
      अब घर कै खेती चरे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
जबसे तू इस्कूल गयौ
तू फर्ज का अपने भूलि गयौ
तुम क्वारै भैया झूलि गयौ
      भट्ठी मा हबिस के बरे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
तुमसे अच्छा रघुआ हरजन
डिगरी पाइस आधा दर्जन
अस्पताल मा होइगा सर्जन
      तू ऊ ..............करे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम सोचा रहा अफसर बनिहौ
या देसभक्त लीडर बनिहौ
का पता रहा लोफर बनिहौ
      अब जेब मा कट्टा धरे रहौ
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
फैसन अस तुमपै छाइ गवा
यक राही धोखा खाइ गवा
हिजड़े का पसीना आइ गवा
      जीते जी भैया मरे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।

हर बुरे काम पै अमल किहेउ
कुछ पढ़ेउ न खाली नकल किहेउ
बर्बाद भविस कै फसल किहेउ
      अब बाप कै सब सुख हरे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
हम पुन्न किहा तू पाप किहेउ
हम भजन तू फिल्मी जाप किहेउ
गुंडई मा कालिज टाप किहेउ
      जो मन मा आवै करे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।
अइसन जौ बिगाड़े ढंग रहिहौ
बेहूदन के जौ संग रहिहौ
जेस रफीक हैं वैसन तंग रहिहौ
      पूलिस के नजर से टरे रहौ,
      ... चाहे खटिया पै परे रहौ।”

   [ अवधी कवि रफीक सादानी ]

चलिए कुछ पंक्तियां राहत भाई इंदौरी की भी हो जाए, जो मुझे बेहद पसंद है। राहत भाई देश के उन चुनिंदा शायरों में हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है। जब सरकारें पटरी से उतरने लगती हैं तो राहत भाई उसे अपने शेर के जरिए संभालने की कोशिश करते हैं। दुनिया में अमन का पैगाम देना हो तो राहत भाई के शेर इस काम को भी बेहतर अंजाम देते हैं। बात प्यार मोहब्बत की हो तो भी राहत भाई का क्या कहना... आइये उनकी एक रचना की दो चार लाइनें जो मुझे याद हैं।


उसकी कत्थई आंखों में है, जंतर मंतर सब,
चाकू, वाकू, छुरियां, वुरियां, खंजर,वंजर सब।

जब से रूठी वो मुझसे, सब रुठे रुठे हैं,
चादर, वादर, तकिया, वकिया, बिस्तर विस्तर सब।

हम से बिछुड़ कर वो भी कहां अब पहले जैसी है,
फीके पड़ गए कपड़े, वपड़े, गहने, वहने सब।

इसमें कुछ और भी अच्छी लाइनें है, पर मुझे इस वक्त याद नहीं आ रही है। कोशिश करुंगा कि बाद में उसी भी शामिल किया जाए। मित्रों मैं चाहता हू कि अगर आपको ये संकलन अच्छा लगे तो इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए आप अपने ब्लाग पर भी इसे जगह दे सकते हैं।







Thursday 16 June 2011

गांव गया था,गांव से भागा..


मित्रों एक ऐसे आदमी को लेकर 20 दिन से हम सभी उलझे हुए थे, जो बात ईमानदारी की कर रहा था, लेकिन खुद इससे काफी दूर था। अब पिछले 20 दिन को देखता हूं तो लगता है कि बेवजह समय बर्बाद कर रहा था। खैर आप लोग भी ऊब गए होंगे। आइये आज आपको इलाहाबाद के जाने माने की कवि स्व. कैलाश गौतम की एक रचना से रुबरू कराता हूं। मुझे उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 रामराज का हाल देखकर
 पंचायत की चाल देखकर
 आँगन में दीवाल देखकर
 सिर पर आती डाल देखकर
 नदी का पानी लाल देखकर
 और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 सरकारी स्कीम देखकर
 बालू में से क्रीम देखकर
 देह बनाती टीम देखकर
 हवा में उड़ता भीम देखकर
 सौ-सौ नीम हक़ीम देखकर
 गिरवी राम-रहीम देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 जला हुआ खलिहान देखकर
 नेता का दालान देखकर
 मुस्काता शैतान देखकर
 घिघियाता इंसान देखकर
 कहीं नहीं ईमान देखकर
 बोझ हुआ मेहमान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 नए धनी का रंग देखकर
 रंग हुआ बदरंग देखकर
 बातचीत का ढंग देखकर
 कुएँ-कुएँ में भंग देखकर
 झूठी शान उमंग देखकर
 पुलिस चोर के संग देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 बिना टिकट बारात देखकर
 टाट देखकर भात देखकर
 वही ढाक के पात देखकर
 पोखर में नवजात देखकर
 पड़ी पेट पर लात देखकर
 मैं अपनी औकात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 नए नए हथियार देखकर
 लहू-लहू त्योहार देखकर
 झूठ की जै-जैकार देखकर
 सच पर पड़ती मार देखकर
 भगतिन का शृंगार देखकर
 गिरी व्यास की लार देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
 मुठ्ठी में कानून देखकर
 किचकिच दोनों जून देखकर
 सिर पर चढ़ा ज़ुनून देखकर
 गंजे को नाख़ून देखकर
 उज़बक अफ़लातून देखकर
 पंडित का सैलून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

Tuesday 14 June 2011

बाबा- ये कैसा योग


 

मित्रों मै जानता हूं कि कुछ लोग मेरे इस लेख को भी ये कह कर खारिज कर देगें कि कांग्रेसी मानसिकता से लिखा गया लेख है। 15 दिनों से देख रहा हूं कि गिने चुने लोग सत्य का गला घोटने के लिए अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सच बात की जा रही है तो उसे वो तर्कों के आधार पर नहीं अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं। जो जितना पढा लिखा है वो उतना ही स्तर गिरा कर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। मित्रों हो सकता है कि बाबा प्रेम में आपको मेरी बात बुरी लगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल जो है, वो आपको जानना ही चाहिए। वो ये कि आखिर योग क्या है। आज देश में एक बड़ा वर्ग इसे सिर्फ शारीरिक क्रियाओं से जोड़ कर देखता है। मसलन योग के मायने सिर्फ आसन या प्राणायाम हैं। लेकिन महर्षि पंतजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने योगसूत्र में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाले साधक को ही सच्चा योगी बताया है।




ये योग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। अष्टांग योग में ये सभी चीजें आती हैं। अब मैं एक एक कर आपको ये बताने की कोशिश करुंगा कि इनके मायने क्या हैं। ये जानने के बाद आप बाबा जो योग टीवी पर करते दिखाई देते हैं, उससे मिलान की कीजिए। जो योग के नियम मैं बता रहा हूं, इसके अनुयायी बाबा रामदेव भी हैं, इसलिए उन्होंने अपने " योग कारखाने " का नाम पतंजलि रखा है।

1.यम--.इसके तहत पांच सामाजिक नैतिकताएं आती हैं---

(क) अहिंसा - शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को हानि नहीं पहुँचाना

(ख) सत्य - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना

(ग) अस्तेय - चोर-प्रवृति का न होना

(घ) ब्रह्मचर्य - इसके दो अर्थ हैं:
चेतना को ब्रह्म के ज्ञान में स्थिर करना, सभी इन्द्रिय-जनित सुखों में संयम बरतना।

(च) अपरिग्रह - आवश्यकता से अधिक संचय नहीं करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा नहीं करना।

( अपरिग्रह को आपको ठीक से समझना होगा, क्योंकि बाबा इसका पालन तो बिल्कुल नहीं करते। मतलब अगर आपको दो रोटी की भूख है, तो तीसरी रोटी के बारे में विचार भी मन मस्तिष्क में नहीं आना चाहिए। आवश्यकता से ज्यादा किसी चीज का संग्रह नहीं हो किया जाना चाहिए। अरे ये बाबा तो संग्रह के आदि हैं।)

२. नियम: पाच व्यक्तिगत नैतिकताएं

(क) शौच - शरीर और मन की शुद्धि

(ख) संतोष - संतुष्ट और प्रसन्न रहना

(ग) तप - स्वयं से अनुशासित रहना

(घ) स्वाध्याय - आत्मचिंतन करना

(च) ईश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा

३. आसन: योगासनों द्वारा शरीरिक नियंत्रण

४. प्राणायाम: सांस लेने संबंधी खास तकनीक द्वारा प्राण पर नियंत्रण

५. प्रत्याहार: इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना

६. धारणा: एकाग्रचित्त होना

७. ध्यान: निरंतर ध्यान

८. समाधि: आत्मा से जुड़ना। शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था में समाधि का अनुभव।
 अब मैं अपने ब्लागर्स साथियों पर सब कुछ छोड़ देता हूं, वो अष्टांग योग को जानने के बाद बाबा को कहां रखते हैं, उनकी इच्छा। वैसे मैं आपको बताऊं मेरी एक जाने माने योग गुरु से बात हो रही थी। उन्होंने कहा कि योग के दौरान दुनिया भर की फिजूल बातें नहीं की जा सकतीं, क्योंकि जब आपका ध्यान भटकता रहेगा तो आप सबकुछ कर सकते हैं, पर योग नहीं। मच पर बाबा के उछल कूद करने को भी योग नहीं कहा सकता। योग कराने के दौरान हल्की फुल्की बातें, अजीब तरह से हंसना, अपने उत्पादों को बेहतर बताना, योग के दौरान बीमारी की बात करना ऐसे तमाम मसले हैं जो योग के दौरान नहीं की जानी चाहिए। पर ये बात बाबा और उनके अनुयायियों को कौन समझाए। मुझे पक्का यकीन है कि कुछ लोग जो बाबा से जुडे हुए हैं, वो इन बातों को भी खारिज करते हुए अशिष्ट भाषा में टिप्पणी करेंगे। बहरहाल मेरा मकसद आपको अष्टांग योग के बारे में बताना भर है।



Tuesday 7 June 2011

बाबा रामदेव- ना बाबा ना


 बाबा रामदेव पर दो लेख लिखने के बाद सोचा था कि अब बस करते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि चार जून के बाद के घटनाक्रम पर अगर अपनी राय न रखूं तो कुछ अधूरा सा लग रहा है। मित्रों मैं इस बात से सहमत हूं कि देर रात में पुलिस की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी, एक तरफ तो केंद्र सरकार उसी दिन रात 11.30 बजे बाबा को लिखित मसौदा भेज रही है और उसके घंटे भर बाद ही पुलिस कार्रवाई। बाबा के जवाब आने का भी इंतजार नहीं किया गया, यहां मैं सरकार की कारगुजारी से पूरी तरह असहमत हूं। अब हर मुद्दे पर छोटी छोटी बात रखता हूं, जिससे आपको पूरे घटनाक्रम को समझने में आसानी होगी।

दिल्ली में सरकार है ना
बाबा के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में मित्रों से बात हो रही थी। सबके अलग अलग विचार थे। मेरी भी राय पूछी गई। मैने साफ कहा कि दिल्ली में मुझे पहली बार लगा कि यहां कोई सरकार काम करती है। सत्याग्रह के नाम यहां जमें नौटंकीबाजों को देर रात में हटाना सही है, या गलत ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन मैं सरकार के इस साहस की तारीफ करुंगा कि उन्होंने इतनी बड़ी भीड़ को बलपूर्वक हटाने का फैसला किया। इससे उन लोगों को सबक मिलेगा जो भीड़ को आगे कर सरकार को बंधक बनाने की कोशिश करते हैं। इस फैसले के बाद अब बीजेपी कमजोर सरकार और कमजोर पीएम का राग अलापना तो बंद कर ही देगी।  
 संतों ने बाबा से किया किनारा.
 अनशन के पहले सिर्फ एक धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर जी बाबा का समर्थन कर रहे थे, लेकिन बाबा की हरकत देख बाद में उन्होंने भी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके अलावा देश में तमाम धर्मगुरु हैं, पर कोई भी धर्मगुरु बाबा के साथ खड़ा क्यों नहीं हो रहा है। क्या बाबा के साधु धर्म की असलियत की जानकारी सभी धर्मगुरुओं को हो गई है। एक डाक्टर पिट जाता है, देश भर के डाक्टर एक जुट हो जाते हैं, एक इंजीनियर की पिटाई होती है, सभी इंजीनियर हड़ताल पर चले जाते हैं, पत्रकार की पिटाई के खिलाफ पत्रकार एकजुट हो जाते हैं। लेकिन ये बात बाबा को सोचनी चाहिए क्यों आज उनके साथ धर्मगुरू नहीं हैं।
बाबा की कारस्तानी..
बाबा रामदेव सरकार से कुछ बातें करते रहे और लोगों को दूसरी बात बता रहे थे। हुआ ये कि एयरपोर्ट पर जब मंत्रियों के ग्रुप से बाबा की बातचीत हुई, तभी ज्यादातर मामले में सहमति बन गई थी। लेकिन बाबा सभी मामलों में लिखित आश्वासन चाहते थे, लिहाजा तय हुआ कि तीन जून को फिर मिलते हैं और सभी बिंदुओं पर लिखित आश्वासन दे दिया जाएगा। अगले दिन सरकार की ओर से बाबा को फोन कर बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया तो, बाबा कुछ बेअंदाज लहजे में बात कर रहे थे। जैसे मैं नार्थ ब्लाक में बात नहीं करुंगा। नार्थ ब्लाक या साउथ ब्लाक  में केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण आफिस हैं। यहां बातचीत की एक अलग गरिमा होती है। बहरहाल बाद में बाबा बात के लिए होटल में मिलने को तैयार हो गए। यहां बातचीत से बाबा पूरी तरह समहत हो गए और सहमति का पत्र भी कपिल सिब्बल को तीन जून को ही थमा दिया और सरकार से बाबा ने आग्रह किया कि अब वो अनशन नहीं करेंगे, लेकिन उन्हें एक दिन तप करने की अनुमति दी जाए। चार जून को दोपहर ढाई बजे तक मैं सब समाप्त कर दूंगा।
वादे से पलटे बाबा 
वादे के मुताबिक बाबा को दोपहर ढाई बजे तप खत्म करना था। इस दौरान भी उनकी लगातार सरकार से फोन पर बातचीत होती रही। और वो अब तब करते रहे। आखिर में बाबा को चेतावनी दी गई कि अगर वो तप खत्म नहीं करते हैं तो सरकार के साथ जो समझौता उन्होंने तीन जून को किया है, उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा। इस पर बाबा रामदेव हिल गए और उन्होंने शाम को लगभग सात बजे ऐलान किया कि उनकी सभी मांगे मान ली गई हैं, बस कुछ चीजें लिखित में आनी है और उसके बाद हम अपनी जीत मनाएंगे। यहां तक की बाबा समेत सभी लोग मंच पर जयकारा भी करने लगे थे। 
सरकार का रुख सख्त
एयरपोर्ट पर बाबा से मंत्रियों के मिलने से सरकार की काफी छीछालेदर हो चुकी थी। दरअसल मीडिया और बीजेपी ने इस मुलाकात को ऐसे पेश किया जैसे सरकार बाबा के आगे नतमस्तक हो गई है। बाबा को सम्मान देने को जब सरकार की कमजोरी समझी जाने लगी तो सरकार सख्त हो गई और तय किया गया कि अब कोई मुरव्वत नहीं बरती जाएगी। जो बात बाबा से लगातार हो रही है, अगर वो उसे मानते हुए तप खत्म नहीं करते हैं, तो सख्ती बरती जाएगी। बाबा को ये बात पहले बताई भी गई थी। लेकिन बाबा भीड़ देख बेअंदाज थे, उन्हें लग रहा था कि इतनी बडी संख्या में लोग यहां है, पुलिस उनका कुछ नहीं कर पाएगी।

 बाबा और सलवार सूट
 बाबा शाम को काफी देर तक आक्रामक तेवर में बात कर रहे थे। वो शिवाजी और भगत सिंह की बात कर रहे थे। लेकिन पुलिस को देख 15 फीट ऊंचे मंच से बाबा महिलाओं के बीच में कूद गए। उन्हें लगा कि महिलाओं की आड़ लेकर वो यहां से चंपत हो सकते हैं। लेकिन लगातार कैमरे उन्हें कवर किए हुए थे, इसलिए भाग नहीं पाए। लेकिन जैसे ही अंधेरे का आड मिला, बाबा अपना भगवा त्याग कर एक महिला के पहने हुए सलवार सूट को पहन कर भागने की कोशिश की। बाबा जी आप तो मरने से नहीं डरते, लेकिन पुलिस को देखते ही आपने अपना भगवा धर्म तो भंग किया ही, सत्याग्रहियों को उनके हालत पर छोड़ भागने की कोशिश की।
बाबा ने पिटवाया सत्याग्रहियों को
बाबा के पास जव पुलिस पहुंची और उन्हें बताया कि रामलीला मैदान में योग कार्यक्रम की अनुमति रद्द कर दी गई है तो बाबा अगर पुलिस को सहयोग करते तो यहां कोई उपद्रव नहीं होता। पुलिस अधिकारी चाहते थे कि बाबा लोगों को खुद संदेश दें की वो यहां शांति बनाए रखें और पुलिस जैसा कहती है वैसा ही करें, क्योंकि पुलिस ने तमाम बसों का इंतजाम किया था जिससे लोगों को रेलवे स्टेशन या बस अड्डे तक पहुंचाया जा सके। लेकिन बाबा जब महिलाओं के बीच में कूद गए, तब पुलिस को हरकत में आना मजबूरी हो गई। इस तरह से बाबा के सहयोग ना करने के कारण ही वहां लाठी चली, और हां जिस तरह से बाबा ने उतनी ऊंचाई से छलांग लगाई वो कोई साधु संत तो नहीं लग सकता। 
अनशन की हकीकत
हालाकि ये बात बहुत ही भरोसे से नहीं कही जा सकती, लेकिन बाबा के करीबियों में ही कुछ लोग बाबा के बचकानी हरकतों से खफा हैं। उनका कहना है कि बाबा खुद मंच से कहते रहे कि 99 फीसदी मांगे मान ली गई हैं, तो फिर इन्हें तप नहीं करना चाहिए था। वैसे तप करने के पीछे एक वजह करोडों के चेक थे। बताते हैं कि दानदाताओं ने चेक अनशन के लिए दिया था। जब अनशन होता ही नहीं तो बाबा को डर था कि लोग चेक को बैंक से स्टाप पेमेंट ना करा दें। 
झूठ दर झूठ बोलते रहे बाबा
मुझे लगता है कि कम से कम साधु संतो से इतनी अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि वो झूठ नहीं बोलेगें, लेकिन ये बाबा तो झूठ का पुलिंदा है। अनशन शुरु करने से पहले ही सरकार से सभी बातें कर चुके थे, लेकिन अपने ही भक्तों को इस बात की जानकारी नहीं दी। लोगों को उकसाने के लिए सत्याग्रहियों से कहते रहे, मुझे दबाने की कोशिश की जा रही है। मेरी हत्या की साजिश की जा रही थी। मेरा एनकाउंटर होने वाला था। डुपट्टे से मेरा गला घोंटने की तैयारी थी। वाह रे बाबा जी..
मुंबई में राजा दिल्ली में बाबा तड़ीपार
एक्टर राजा चौधरी सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था, लिहाजा मुंबई पुलिस ने उसे मुंबई से तड़ीपार कर दिया। इसी तरह बाबा ने दिल्ली में उपद्रव मचा रखा था। सरकार से बातचीत में सब कुछ ठीक रहता था, बाद में उन्हें कोई पंप कर देता था और वो फिर अड़ जाते थे। आखिर दिल्ली पुलिस ने उन्हें रास्ते पर लाने का फैसला किया और तमाम गंभीर धाराओं में मुकदमें दर्ज करने के बाद दिल्ली से तड़ीपार कर दिया। मुझे लगता है इतने बडे साधु संत को पहली बार किसी शहर से तड़ीपार किया गया है।
 राजघाट को शर्मशार किया
जब सब नाटक में व्यस्त हों तो बीजेपी भला क्यों पीछे रहती। उसे लगा कि बाबा के मामले को देश भर में गरमाने से सरकार के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया जा सकता है। बाबा के खिलाफ कार्रवाई के गम में नहीं अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ने की खुशी में भाजपाई 24 घंटे के सत्याग्रह पर राजघाट पहुंच गए। यहां जिस तरह से पार्टी के बडे नेताओं ने ठुमके लगाए, उससे कई सवाल खड़े कर दिए। सबसे बड़ा सवाल आखिर ये ठुमका किस खुशी में था । 







Saturday 4 June 2011

बाबा रे बाबा... ऐसा सत्याग्रह ?




मित्रों ,
बाबा रामदेव ने देश को धोखा दिया। तीन जून को ही बाबा ने सरकार के साथ समझौता कर लिया था। रामदेव कल तक ड्रामा कर रहे थे कि 90 फीसदी बात मान ली गई है, कुछ ही रह गई है। लेकिन सच्चाई ये है कि कपिल सिब्बल के साथ मीटिंग में एक दिन पहले ही वो समझौता कर चुके थे, और बाबा ने लिखित में समझौता भी कर लिया था। सरकार से सिर्फ छह घंटे के लिए तप करने की अनुमति मांगी और कहाकि चार जून को दोपहर ढाई बजे तक सब खत्म कर दूंगा। ये समझौता करने के बाद भी बाबा सुबह मंच से चंदा वसूल रहे थे। क्या सब ड्रामा चंदे के पैसे के लिए था। ये बाबा भी हमाम में ...... है। अब आगे लेख पढिए।

चलिए सबसे पहले असली सत्याग्रह को समझ लिया जाए। 
"सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति भी वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।'
ये एक परिभाषा है, लेकिन आप सोचें की क्या बाबा रामदेव ऐसा कर रहे हैं। वो सरकार में बैठे लोगों पर लगातार हमले कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमें जो मंत्री अनशन करने से रोकने में नाकाम रहा है, उसे शीर्षाशन करना पड़ रहा है। ये बाबा नहीं उनका घमंड बोल रहा है। आइये एक और परिभाषा देखते हैं।
"सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्ट सहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।'
मतलब साफ है कि आप खुद को कष्ट देकर सत्याग्रह करें। लेकिन बाबा तो अपने और अपने साथ लाए समर्थकों को सुविधा देने के लिए करोडों रुपये का चंदा मांग रहे हैं। बताते हैं कि अब तक देश भर से 50 करोड रुपये से ज्यादा चंदा जमा कर चुके हैं। बाबा पैसे की बर्बादी की खूब बात करते हैं। रामलीला मैदान मे लगभग ढाई करोड की लागत से आरओ लगाया गया है, जिससे पीने के पानी को ठंडा किया जा सके। बाबा जी ये कैसा सत्याग्रह है। एक और परिभाषा देखिए..
सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाने की बात है। सत्य का पालन करते हुए मृत्यु के वरण की बात है। सत्य और अहिंसा के पुजारी के शस्त्रागार में "उपवास' सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। जिसे किसी रूप में हिंसा का आश्रय नहीं लेता है, उसके लिए उपवास अनिवार्य है। मृत्यु पर्यंत कष्ट सहन और इसलिए मृत्यु पर्यत उपवास भी, सत्याग्रही का अंतिम अस्त्र है।' परंतु अगर उपवास दूसरों को मजबूर करने के लिए आत्मपीड़न का रूप ग्रहण करे तो वह त्याज्य है।

पढा आपने, सत्याग्रह में आप स्वयं को कष्ट देते हुए सत्य का पालन मृत्यु तक करना होता है। अरे बाबा जी आप और आपके चेले सत्याग्रह कर रहे हैं ना,  इसमें तो उन्हें कष्ट उठाना है, तब आप खुलेआम लोगों से चंदा रूपी भीख क्यों मांग रहे हो। यहां तो आप शरीर को तपाने आए हो. या मौज करने। यहां आप और आपके चेलों के लिए ठंडी हवा और पानी के लिए करोडो रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैं। आप तो पैसे के बेहतर इस्तेमाल की बड़ी बड़ी बातें करते हो। क्या बाबा जी आपको नहीं लगता कि जिस तरह आप ये पैसा बहा रहे हैं इससे पतंजलि योग पीठ के ही आसपास के कई गांवों में बेहतर सड़क और पानी का इंतजाम किया जा सकता था।
मित्रों सत्याग्रह के असली रुप के बारे में इसलिए भी जानकारी दी जानी जरूरी है कि कल ये कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चें सवाल पूछेगें कि क्या ऐसा ही सत्याग्रह करके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमें आजादी दिलाई थी। क्या बाबा की तरह गांधी जी का भी भव्य मंच बनता था और वहां एसी लगाकर गांधी जी बैठा करते थे और उनके साथ जो लोग होते थे उन्हें पंखे और कूलर की सुविधा दी जाती थी।
क्या गांधी जी भी बाबा की तरह सत्याग्रह के लिए चार्टर्ड प्लेन से आते थे और फिर 35 लाख की कार से सत्याग्रह के स्थान पर सुख सुविधाओं का इंतजाम देखने के लिए तीन दिन पहले पहुंचते थे। जिस मंच पर सत्याग्रह किया जाता था, उसी मंच से क्या गांधी जी भी चंदा वसूलते थे। मित्रों आज आप भावनावश कुछ भी कहें, पर कल आपके बच्चे बड़े होकर पूछेंगे कि गांधी और बाबा के सत्याग्रह में क्या फर्क था। तो क्या आप ये बात नहीं बताएंगे।
सत्याग्रह में दूसरों को तकलीफ दिए बगैर खुद को पीड़ा पहुंचाना होता है। बाबा दूसरों को पीडा पहुंचाने के साथ ही सत्याग्रह से  लोगों के लिए  भी मौत ही तो मांग रहे हैं। वो चाहते हैं कि देश में बेईमानों को फांसी की सजा हो। मित्रों दरअसल देश का यही दुर्भाग्य है कि जिसका जो काम है, वो न करके दूसरा काम कर रहा है। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री स्व. इंदिरागांधी के दो बेटे थे। राजीव गांधी और संजय गांधी। राजीव पायलट थे और संजय राजनीति में थे। दोनों अपना काम कर रहे होते तो आज भी देश की सेवा कर रहे होते। लेकिन संजय ने पायलट बनने की कोशिश की वो हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे गए और राजीव राजनीति में आकर मारे गए। ये सिर्फ एक उदाहरण भर है। मैं फिर कहता हूं कि जिसका जो काम है वो करे, देश को ज्यादा फायदा होगा।

 वैसे भी बाबा जी जिसके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फैंकते। जिस दिन देश की जनता हिसाब मांगेगी कि स्वदेशी के नाम पर पांच रुपये का चूरन 50 रुपये में बेचते हो, तो जवाब नहीं दे पाएंगे। और बाबा जी आपके मंच से गाना बजाना से लेकर उगाही जो सब चल रहा है, उस मंच पर सत्याग्रह को बैनर अच्छा नहीं लग रहा है, कृपया अपने आंदोलन का नाम कुछ और कर लें। प्लीज गांधी जी को बख्श दें। 

अंत में हुल्लड मुरादाबादी की दो लाइनें
गणपति बप्पा मौरिया, गणपति बप्पा मोरिया,

राजघाट में गांधी बाबा, सुबुक सुबुक कर रो रिया।