Saturday 27 April 2013

अमेरिका : मां डायन तो बेटा भी होगा राक्षस !


भारत माता को सार्वजनिक रूप से नंगा करने वाले नेता जब खुद नंगे होते हैं तो कैसी तिलमिलाहट होती है, दो दिन से ये देख रहा हूं। भारत माता को डायन कहने वाले यूपी के मंत्री आजम खां ने आज तक अपने विवादित बयान के लिए माफी नहीं मांगी। ऐसे में हम अमेरिकी एयरपोर्ट के अधिकारियों को भला बुरा क्यों कहें, उन्होंने भी सोचा होगा कि जब मां डायन है, तो बेटा भी राक्षस ही होगा। इसीलिए उन्होंने इस कद्दावर नेता के कपड़े उतार लिए और अच्छी तरह से जांच पड़ताल की। मीडिया को मसाला मिल गया, अब दो दिन से ये खबर सुर्खियों में है, खबर क्या है, अमेरिका गए यूपी के नगर विकास मंत्री आजम खां से सुरक्षा अधिकारियों ने कुछ ज्यादा पूछताछ कर ली। खां साहब का कहना है कि वो मुसलमान हैं, इसलिए उनसे इस तरह से पूछताछ की गई। मुझे लगता है कि उनकी बात पूरी तरह सही है। लेकिन खां साहब एक बात बताइये, क्या आपको पहले नहीं पता था कि अमेरिकी एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच कुछ ज्यादा ही सख्त है। आपको याद होना चाहिए कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम साहब को भी वहां अपमानित होना पड़ा था, इतना ही नहीं अभिनेता शाहरुख खान को देश और दुनिया में भला कौन नहीं पहचानता, लेकिन वो भी वहां रोके जा चुके हैं, उन्हें भी सुरक्षा अधिकारियों की बदसलूकी से दो चार होना पड़ा। यहां तक की समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडीज और अमेरिका में भारत के राजदूत रहीं मीरा शंकर राव को भी ऐसे हालात से गुजरना पड़ा है।

खां साहब सच कहूं तो मैं भी इस मत का हूं कि आज इतने अत्याधुनिक उपकरण मौजूद हैं, जिससे शरीर के भीतर भी अगर कुछ छिपाया गया हो तो उसका पता आसानी से चल जाता है, ऐसे में एयरपोर्ट पर एक-एक कपड़े उतरवा कर यानि पूरी तरह नंगा कर जांच पड़ताल करना सही नहीं है। लेकिन फिर सवाल उठता है कि जब सुरक्षा के मामले में अमेरिकी नागरिक को कोई तकलीफ नहीं है, वो अपनी सरकार के साथ खड़े हैं और जांच में पूरी तरह सहयोग करते हैं, फिर आप कौन सा वहां रोज रोज जा रहे हैं कि आपको तकलीफ है। अमेरिका की चुस्त व्यवस्था का ही नतीजा है कि वहां आतंकी हमले आसान नहीं है। मुझे तो उनकी सुरक्षा व्यवस्था से कोई तकलीफ नहीं है। अमेरिका पर जैसा आतंकवादी हमला हो चुका है, अगर उसके बाद वो सतर्क है तो इसमें तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। सबको पता है कि वहां सुरक्षा को लेकर कई बार वीआईपी को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। अगर नेताओं को सुरक्षा अधिकारियों के सामने नंगे होने में शर्म लगती है तो उन्हें अमेरिका जाने से बचना चाहिए। क्यों देश और दुनिया में अपनी किरकिरी कराते फिर रहे हैं।  

मुझे हसी आती है क्योंकि खां साहब को लगता है कि उनके पास राजनयिक पासपोर्ट है, इसलिए उन्हें हर प्रकार की जांच से छूट है, वो कुछ भी कर सकते हैं। दरअसल जो लोग खां साहब को करीब से जानते हैं, उन्हें पता होगा कि जब वो मंत्री बनते हैं तो मंत्री कम दरोगा ज्यादा दिखाई देते हैं। अपने शहर रामपुर में तो उनका ऐसा आतंक हो जाता है कि तमाम लोग रात बिरात घर से निकलना बंद कर देते हैं। गलत ढंग से गाड़ी चलाई तो आजम साहब अपने शहरवालों को रोक कर पिटाई तो करते ही हैं, बीच चौराहे पर मुर्गा बनाते हैं। कई बार अपने साथ चलने वाले सुरक्षा गार्डों से लोगों को पिटवाते हैं। उनके लिए ट्रेन में सफर के दौरान हंगामा भी सामान्य बात है। बात पुरानी है लेकिन बता दें कि एक बार उन्होंने ट्रेन के "कोच अटेंडेंट" को खुद भी मारा और अपने साथ चल रहे समर्थकों से भी पिटवाया। जानते हैं अटैंडेंट की गलती क्या थी, बस ये कि खान साहब के साथ बिना टिकट जो लोग सफर कर रहे थे  उन्हें दोबारा चिकन करी देने से उसने इनकार कर दिया था। अब आजम साहब को कौन बताए कि ईश्वर के यहां देर है, अंधेर नहीं। आप ट्रेन में,  अपने शहर में तमाम लोगों को रोजाना नंगा करते रहते हैं, बस ईश्वर ने आपके लिए नंगा होने का स्थान अमेरिका के बोस्टन शहर को चुना।

अमेरिका में सुरक्षा जांच

अच्छा सबसे जरूरी बात तो बताने से ही रह गया। आपको पता है कि ये जनाब अमेरिका गए क्यों हैं ? यूपी सरकार को कुछ भ्रम हो गया हैं, इनका दावा है कि इलाहाबाद का महाकुंभ इनकी  व्यवस्था के चलते कामयाब हुआ। अब कौन बताए कि यहां पहली बार तो महाकुंभ था नहीं, हर बार कुंभ होता है और एक पुराने ढर्रे पर व्यवस्था चली आ रही है। नया क्या कर दिया इस बार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने या फिर आजम साहब ने। फिर खान साहब बताइये ना कि आपने रेलवे स्टेशन पर हादसे में तमाम लोगों की मौत के बाद जनता के आक्रोश को देखते हुए महाकुंभ तैयारी समिति के अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था। देश भर में आप सब की थू थू हुई, सूबे की सरकार पर उंगली उठी। इसके बाद भी आप अपनी पीठ खुद ही थपथपाए जा रहे हैं। खान साहब आपको इन बातों में भरोसा नहीं होगा लेकिन मैं बताता हूं कि महाकुंभ क्यों कामयाब हुआ। इसकी कामयाबी की वजह गंगा और यमुना मइया हैं, इसकी कामयाबी की वजह वो सरस्वती नदी है जो खुद विलुप्त हो जाने के बाद भी  इस स्थान को त्रिवेणी बना गई। कुंभ की कामयाबी की वजह देश भर के साधु- संतो और अखाड़ों का पुण्य प्रताप है, जो यहां पूरे समय जमें रहते हैं। कामयाबी की वजह देश और दुनिया के करोड़ों श्रद्धालुओं की महाकुंभ में आस्था है। जो मुख्यमंत्री महाकुंभ की कामयाबी  की वजह खुद को मानता है वो "मूर्ख" है। यही वजह है कि अमेरिका पहुंचने के बाद भी विश्वविद्यालय में व्याख्यान नहीं दे पाए। इन मूर्खों से सिर्फ एक सवाल पूछा जाए कि आप सरकार में कब आए और महाकुंभ की तैयारी कब से चल रही थी ?

आजम साहब, अब आपको पता चला ना कि सार्वजनिक रुप से किसी को अपमानित करने से कैसी तिलमिलाहट होती है? बीएसपी की सरकार के दौरान तो आपकी बोलती बंद रहती है, लेकिन जैसे ही आप सत्ता में आते हैं आग उगलते हैं। चलिए वो आपका स्वभाव है, एक बार में नहीं जाने वाला। खैर बोस्टन में लोगान अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा पर आपके साथ हुई बदसलूकी को भारत सरकार ने गंभीरता से लिया है, इस मामले को भारतीय दूतावास ने अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों के सामने उठाया है। लेकिन मैं अभी भी इस मत का हूं कि अमेरिका के विदेश विभाग को शिकायत करने के बजाए, अमेरिका की तर्ज पर ही अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मुकम्मल बनाया जाना चाहिए। जब अमेरिकियों की भी यहां पैंट उतारी जाएगी, तब इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू होगी। लेकिन हम तो अमेरिका के सामने गीदड़ बन जाते हैं,  ऐसे में करते रहिए शिकायत, सुन कौन रहा है।

आपको बता दूं कि हवाई अड्डों की सुरक्षा को लेकर केवल भारत सरकार ही नहीं बल्कि दुनिया भर की सरकारें काफी गंभीर रहती हैं। क्योंकि कहीं भी अगर कोई लापरवाही हो गई तो हवाई जहाज के जरिए संदिग्ध व्यक्ति कहीं भी जा सकता है। इसलिए देश में विभिन्न एयर लाइंस की सिक्योरिटी विंग और सीआईएसएफ  के अधिकारियों को सुरक्षा संबंधी जिम्मेदारी सौंपने के पहले एक 15 दिन की परीक्षा ली जाती है। जिससे ये पता चल सके कि जिन अफसरों को लगाया गया है वो सुरक्षा संबंधी नियमों और बारीकियों से वाकिफ हैं या नहीं। हैरानी की बात ये है कि कुछ दिन पहले हुई परीक्षा में एयर इंडिया के 21 अफसर शामिल हुए, जिसमें सभी फेल हो गए। डायल एयरलाइंस के 20 अफसरों में 18 फेल हो गए, जबकि स्पाइस जेट के 7 अफसरों मे चार फेल हो गए। सबसे बड़ी बात कि सभी हवाई अड्डों की सुरक्षा इन दिनों सीआईएसएफ के पास है, इसके 35 अफसरों ने परीक्षा दी, जिसमें 22 फेल हो गए। परीक्षा में खासतौर पर टर्मिनल के प्रवेश और निकास, इन लाइन बैगेज सिस्टम, फ्रिक्सिंग, एक्सरे और बोर्डिंग गेट आदि शामिल हैं। आप जानते ही हैं कि इनमें से कहीं भी चूक हुई तो उसके कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसके पहले एक परीक्षा आठ से 21 जनवरी 13 के बीच हुई थी। इसमे एयर इंडिया, इंडिगो, स्पाइस जेट और सीआईएसएफ के कुल 103 सुरक्षा अधिकारी शामिल हुए। पता है 103 में 97 अफसर फेल हो गए। जब हवाई अड्डे की सुरक्षा का ये हाल है तो आप यहां रेलवे स्टेशन या फिर बस स्टेशन की सुरक्षा व्यवस्था का हाल आसानी से समझ सकते हैं।

अमेरिका में सुरक्षा जांच 

बहरहाल ज्यादा हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आजम साहब आपको पता होना चाहिए कि अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज तक ऐसी हैसियत ही नहीं बनाई कि वो अमेरिका से आंख मिलाकर बात कर सकें। इस मामले में मैं आज भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तारीफ करूंगा, जिन्होंने तमाम विरोध के बाद भी परमाणु परीक्षण किया और अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी डट कर खड़े रहे। आज के प्रधानमंत्री में शरीर की सबसे महत्वपूर्ण रीढ की हड्डी ही नहीं है। मुझे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा जब कुछ दिन बाद पता चले कि अमेरिका ने अपने प्रधानमंत्री की भी उसी तरह जांच की थी, जैसे और लोगों की होती है। वैसे भी प्रधानमंत्री और उनका पूरा मंत्रीमंडल देश में जितना नंगा हो चुका है, उसके बाद बचा क्या है जिस पर वो शर्मिंदा हों। ये मंत्रीमंडल कभी  अमेरिका जाएगा तो हवाई जहाज से उतरते ही खुद नंगे हो जाएंगे और वहां अखबारों में इनकी तस्वीर छपेगी कि ये सुरक्षा में कितनी मदद करते हैं। शर्म, शर्म, शर्म !

चलते-चलते

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव युवा हैं, सियासी तजुर्बा कम है, इसलिए पागलपन कर जाते हैं। उन्हें मैं हतोत्साहित नहीं करना चाहता, लेकिन उन्हें अपने चाचा लालू यादव का हाल देखना चाहिए ना। अमेरिकी उन्हें "मैनेजमेंट गुरु" बता रहे थे। उन्होंने भी अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों जाकर प्रबंधन का गुर सिखाया। आज क्या हालत है लालू यादव की ? चाचा वाली बेवकूफी से बचना होगा अखिलेश यादव जी, लोकसभा चुनाव है, उसकी तैयारी में जुट जाइये। अमेरिका जाना हो तो डिम्पल मैडम के साथ जाइये, कहां आजम खां और अभिषेक के चक्कर में पड़ जाते हैं। अब ऐसा मत कीजिएगा।





Thursday 25 April 2013

शर्मिंदा हूं क्योंकि " मैं दिल्ली हूं " ...


मुझे ये कहते हुए शर्म आ रही है कि "मैं दिल्ली हूं"। मैं इतनी कमजोर कभी नहीं थी कि मैं अपनी बेटियों की रक्षा ना कर पाऊं। पिछले साल दिसंबर में मेरी ही छाती पर बस दौड़ाते हुए कुछ दरिदों ने बेटी दामिनी को अपनी हवस का शिकार बनाया, उस समय अंधेरा था, लेकिन मैं चीख रही थी कि दामिनी को बचाओ, पर नशे में डूबे मेरे बेटों को मेरी आवाज नहीं सुनाई दी। मैं चीखती रही, रोती रही, मेरी आंखो के आंसू सूख गए, लेकिन मेरे बेटों की ना ही नींद खुली और ना दिल पसीजा। अब बेटे मेरी बातें नहीं सुनते, इन्हें लगता है कि मेरी उम्र ज्यादा हो गई है और मैं यूं ही चीखती रहती हूं। मैने पहले ही आगाह किया था कि सुधर जाओ, दामिनी के बलिदान को बेकार मत जाने दो, राक्षसों के संहार के लिए कमर कस लो, समय निकल गया तो फिर बहुत पछताओगे, लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनीं। अब  मासूम गुड़िया के साथ हैवानियत देख मेरी तो जान ही निकल गई। लेकिन जब मैं अपनी ही बेटियों की "लाज" नहीं बचा पाई तो अब इससे ज्यादा मेरे लिए बुरा दिन भला क्या हो सकता है। अब मैं खुद सड़क पर उतरूंगी, मेरे बच्चों ने मेरी दूघ का अगर एक घूंट भी पीया है, उसे उसी दूध का वास्ता दूंगी और कहूंगी कि मुझे फिर से ऐसी दिल्ली बना दो जिससे मैं कम से कम मुंबई, कोलकता, भोपाल, जयपुर और लखनऊ से आंख मिलाकर बात तो कर सकूं। मुझे पक्का भरोसा है कि एक ना एक दिन मेरे करन अर्जुन आएंगे और मुझे साफ सुथरी बेदाग दिल्ली बनाएंगे।

दिल्ली के बाहर था, आज वापस आया तो "दिल्ली" उदास मिली। पूछा हुआ क्या ? पर कोई जवाब नहीं। परेशान होकर टीवी खोला कि शायद कुछ पता चले, लेकिन नहीं, यहां तो सचिन तेंदुलकर के जन्मदिन दिन का केक काटकर खुशियां मनाई जा रहीं थी। देश भर से सचिन को बधाई देने की अपील की जा रही थी। ये देखकर मन खिन्न हो गया, लगा कि दो दिन पहले जिस गुडिया को टीवी चैनल वाले "देश की बेटी" बता रहे थे और रोना सा मुंह बनाकर सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रहे थे, आखिर आज उन्हें क्या हो गया ? क्या देश की बेटी स्वस्थ होकर घर आ गई कि उसी टीवी स्क्रिन पर खुशियां मनाई जा रही हैं। सचिन के प्रशंसक नाराज हो सकते हैं, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि क्या सचिन अपना एक जन्मदिन सादगी से नहीं मना सकते ? देश की बेटियां सड़कों पर हैं, मासूम बेटियों के साथ देश के कई हिस्सों में घिनौनी वारदात से देश सकते मे है। क्या सचिन आज के दिन एक ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दे सकते थे कि जिससे पीड़ित मासूम बच्चियां के चेहरों पर दो सेकेंड के  लिए ही सही, खुशी तो दिखाई देती। सचिन को आज क्या एक ठोस संदेश नहीं देना चाहिए था, दिल्ली का ये सवाल मेरे दिल को छलनी कर गया।

आइये ! लगे हाथ आईपीएल की बात भी हो जाए। हमें पता है कि नए फार्मेट मे गेम हो रहा है, लाखों लोग इस खेल के प्रेमी हैं और इससे जुड़े हैं, समय मिलता है तो मैं भी मैच देखता हूं। लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि जब देश में एक ऐसी घटना हो गई हो, जिसे लेकर पूरा देश दुखी है। ऐसे में क्या दो चार मैच सादगी से नहीं हो सकते, इन मैचों में लड़कियों को नहीं नचाया जाएगा तो क्या खेल खराब हो जाएगा ? क्या इस खेल की जान अब बल्लेबाजों के चौकों छक्कों में नहीं महज 10 ग्राम कपड़े पहने चीयर गर्ल्स की कमर में सिमट कर रह गया है। हैवानियत की शिकार मासूम बच्चियां देश की विभिन्न अस्पतालों में मौत से जूझ रही हैं और यहां खेल के मैदान पर क्रिकेट के नाम पर नंगा नाच जरूरी है। सब देख रहे हैं कि टीवी के कैमरे सचिन के बेट पर उतना फोकस नहीं रहते जितना चीयर गर्ल्स की टांगों पर फोकस करते हैं। आईपीएल का अगर यही मतलब है तो राजीव शुक्ला साहब तो बेशक आप इसे किसी दूसरे देश में ले जा सकते हैं। वैसे भी आप लोगों के लिए आईपीएल  इतना जरूरी है कि देश में चुनाव के दौरान सरकार ने सुरक्षा देने में असमर्थता जताई तो आपने मैच साउथ अफ्रीका में करा लिया, मैच आगे नहीं बढा पाए। इससे साफ है कि आपकी नजर में देशवासियों की क्या हैसियत है।

मैं दिल्ली से बात करता हुआ थोड़ा भटक गया। खैर बात-चीत के दौरान मैने पूछा आखिर आपकी ये हालत किसने बना दी ? किसने आपको इतना लाचार कर दिया कि अपनी आंखो के सामने बेटियों की इज्जत लुटती देखती रहीं ? कैसे एक पुलिस वाला बेटी पर हाथ उठा देता है और आपके बेटे देखते रहते हैं। राक्षसों के चलते बेटियों को फांसी का फंदा लगाने को मजबूर होना पड़ता है। अब अपनी दिल्ली भावुक हो गई, उसकी आंखें भर आईं। दीवार की ओर इशारा किया कि इन लोगों की वजह से न सिर्फ मैं कमजोर हुई, बल्कि अपंग भी हो गई हूं। दीवार पर मैने नजर दौड़ाई तो वहां मनमोहन सिंह और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की तस्वीर लगी हुई थी। मैने कहा मनमोहन सिंह ! इनकी वजह से भला क्यों ? दिल्ली बोली अगर आज इनकी जगह कोई और प्रधानमंत्री होता तो मैं इतना कमजोर कभी नहीं होती। मेरी इस हालत के लिए यही जिम्मेदार हैं, इनकी वजह से ही मेरी ये हालत हुई है। आज कोई सख्त आदमी पीएम होता तो क्या मुझे अहमदाबाद इतनी बातें सुनाकर यहां से चला जाता। लखनऊ, कोलकाता और भोपाल की हैसियत होती कि मेरी ओर आंख उठाकर देखे। आपको याद है ना कि मैने पटना की क्या हैसियत बनाकर रखी थी, लालू पूरे दिन मैडम दिल्ली, मैडम दिल्ली की रट लगाए रखता था, आज पटना की ये हैसियत हो गई कि वो मुझे आंखे तरेरता है। आखिर इसकी वजह तो यही मनमोहन सिंह ही है ना। मुझे भी लगा कि बात तो कुछ हद तक सही ही है। मैने पूछा खैर मनमोहन तो चलिए मान लेते हैं, पर सोनिया क्यों ? दिल्ली बोली मनमोहन की क्या हैसियत है, उसके पीछे ताकत तो उन्हीं की है।

हां ये बात तो बिल्कुल सही है। सिसकियां लेते हुए दिल्ली बोली कि ये दिन मै पहली बार देख रही हूं कि सिर्फ दो आदमी की वजह से एक आदमी कितने दिनों से मेरे सिर पर बैठा हुआ है और मैं लाचार हूं, कुछ नहीं कर पा रही हूं। दो आदमी की बात मैं समझ नहीं पाया, दिल्ली बोली सोनिया और सीबीआई। इनमें से एक भी मनमोहन का साथ छोड़ दे तो इनकी सरकार उसी दिन गिर जाएगी। दिल्ली की ये खरी-खरी बातें सुनकर मैं हैरान था। मैने सोचा कि विपक्ष अगर सरकार की आलोचना करता है तो बात समझ में आती है, लेकिन यहां तो खुद दिल्ली खून के आंसू रो रही है, आखिर दिल्ली को सरकार से इतनी शिकायत क्यों है ? कुछ इधर उधर की बातें करने के बाद मैने दिल्ली से पूछ ही लिया कि आखिर आपको सरकार से इतनी शिकायत क्यों है ? वो बोली आप शिकायत की बात कर रहे हैं, मेरा बस चले तो मैं इन सभी को दिल्ली से बेदखल कर दूं। इस सरकार में कई तो ऐसे हैं जिन्हें अगर सूली पर भी चढ़ा दिया जाए तो कम से कम मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होने वाली है। दिल्ली की बातें सुनकर मैं फक्क पड़ गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर एक शहर अपने ही रहनुमाओं को सूली पर लटकाने तक की बात क्यों कह रहा है।

बातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो मुझे भी लगा कि इन्हें कितनी भी सजा दे दो, वो कम है। कामनवेल्थ गेम में चोरी इन नेताओं ने की, बदनामीं दिल्ली की हुई, टूजी आवंटन में बदमाशी नेताओं ने की, बदमानी दिल्ली की हुई, कोल ब्लाक आवंटन में सबको पता है कि कौन-कौन शामिल है, लेकिन बदनामी दिल्ली के हिस्से आई। आदर्श सोसाइटी में घपलेबाजी में आरोप लगा कि दिल्ली ने लापरवाही बरती, कमजोर बिल्डिंग गिर गई, तमाम लोगों की मौत हुई, जिम्मेदार यहां के नेता और अफसर थे, लेकिन बदनामी दिल्ली के हिस्से में आई। इस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं, सरकार बुरी तरह फंसी हुई है, पर चर्चा दिल्ली की हो रही है। काफी देर बातचीत के बाद दिल्ली ने एक सवाल मुझसे पूछा, कहा कि आप तो जर्नलिस्ट हैं, आपको पता है कि किस नेता कि कितनी हैसियत है, फिर भी सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को आखिर प्रधानमंत्री क्यों बनाए हुए हैं। दिल्ली ने कहाकि मनमोहन ऐसे नेता हैं कि किसी को चुनाव जिता नहीं सकते, खुद चुनाव जीत नहीं सकते, उनकी आर्थिक नीतियां भी ऐसी नहीं है कि देश तरक्की कर रहा हो, फिर सोनिया की आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि अपनी और पार्टी की साख को उन्होंने दांव पर लगा रखा है ? सच में दिल्ली ने मुझसे महत्वपूर्ण सवाल पूछा, इसका जवाब मुझे पता था, लेकिन मैं टालता रहा। मैने दिल्ली से ही जानना चाहा कि उसे क्या लगता है, क्यों सोनिया गांधी ऐसा कर रही हैं। दिल्ली बोली सब अपने बेटे के लिए।

मैं समझ तो गया था, लेकिन मैने ऐसा नाटक किया जैसे मेरी समझ में नहीं आया कि दिल्ली क्या इशारा कर रही है। फिर दिल्ली ने मुझे और करीब आने को कहा। करीब गया तो उसने बताया कि अगर कांग्रेस के किसी मजबूत नेता को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जाती तो आगे चलकर पता नहीं वो राहुल के लिए कुर्सी छोड़ता या नहीं, लिहाजा बिना रीढ़ के ऐसे आदमी को ये कुर्सी सौंपी गई है, जिससे उनके बेटे को मुश्किल ना हो। मैं दिल्ली की हां में हां मिला रहा था तो उसे मुझ पर और भरोसा हो गया। उसने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके बेटे संदीप दीक्षित की ऐसी बातें बताईं कि मेरे कान खड़े हो गए। बहरहाल बात लंबी हो जाएगी, इसलिए मैं सारी बातों की चर्चा नहीं कर रहा हूं, लेकिन दिल्ली की बात सुनकर साफ हो गया कि ये दोनों भी ईमानदार नहीं है। संदीप को क्या कहा जाए, गुडिया के साथ हुए अमानवीय कृत्य पर वो दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार का इस्तीफा तो मांग रहे हैं, लेकिन अपनी मुख्यमंत्री मां शीला दीक्षित के मामले में उनकी जुबान नहीं खुल रही है। दिल्ली बोली कि इसका ये मतलब नहीं कि मैं पुलिस कमिश्नर के काम से संतुष्ट हूं, सच तो ये है कि उन पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है, पर वो इसके काबिल ही नहीं हैं। उनकी काबिलियत पर क्या कहूं, उनके आका, बोले तो गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को ही दिल्ली में रहने का हक नहीं है। बहरहाल भ्रष्टाचार के मामले में भी दिल्ली की मुख्यमंत्री की भूमिका पर उंगली उठती रही है, लेकिन उनके सात खून माफ हैं, क्योंकि धब्बा तो दिल्ली पर लग रहा है ना, इसलिए उनसे भला क्या लेना देना।

दिल्ली ने आखिर में जो बात कही, वो सुनकर मै हैरान रह गया। दिल्ली ने कहाकि यहां की संसद का सिर्फ देश में ही नहीं दुनिया में सम्मान और गरिमा है। लेकिन दागदार खद्दरधारी जिनके खिलाफ बलात्कार के मामले न्यायालयों में विचाराधीन है। फिर भी वो दिल्ली आ जाते हैं। मैं इनका चेहरा देखती हूं तो कई बार सोचती हूं कि कोई जरूरी है कि देश की राजधानी मेरे यहां यानि दिल्ली में ही रहे और देश भर के लफंगे यहां आते रहें। दिल्ली ने कहाकि ऐसे तो तमाम लोगों पर आरोप हमेशा से ही लगते रहे हैं, लेकिन जब राज्यसभा के उपसभापति पर ऐसा आरोप लगा तो मैं हिल गई, ईश्वर से मनाती रही कि ये बात गलत हो, वरना ये दाग तो मैं कभी धो नहीं पाऊंगी। खैर आगे देखिए क्या सच सामने आता है। लेकिन दिल्ली एक चीज चाहती है, वो कहती है कि रामसिंह, मनोज और प्रदीप जैसे लोग तो बहुत कमजोर कड़ी हैं, मैं तो चाहती हूं कि बलात्कार के बड़े आरोपी यानि नेता, अफसर और बिजिनेस मैन को पहले रामलीला मैदान मे सरेआम सूली पर चढाया जाए। बलात्कारी कोई भी कांडा यानि कीड़ा जिंदा नहीं रहना चाहिए। सच कहूं तो उसी दिन मेरी आत्मा को शांति मिलेगी। तब मैं कहूंगी कि हां दिल्ली दिलवालों की है, आज तो दिल्ली दरिंदों की है।

 

Monday 15 April 2013

नायक नहीं खलनायक हैं नीतीश !


संडे ! यानि साप्ताहिक अवकाश बोले तो आराम का दिन। लेकिन क्या करें, मैने अपना कीमती समय देश के दो कौड़़ी के राजनेताओं और उनकी दो कौड़ी की राजनीति पर खराब कर दिया। काफी देर तक कुर्सी के लालचखोरों यानि जनता दल यू के नेताओं का भाषण सुनता रहा। वैसे जनता दल यू और बीजेपी की बात तो आगे करूंगा ही लेकिन आज जेडी यू के राष्ट्रीय अधिवेशन में पूरे दिन जो कुछ भी चलता रहा, उससे एक बात और साफ हो गई कि पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की उतनी ही हैसियत है जितनी इस पार्टी की औकात मिजोरम में है। मतलब साफ है मिजोरम में जद यू की ना कोई हैसियत है, ना कोई पकड़ है और ना ही कोई इस पार्टी को भाव देता है। शरद यादव की भी अब इस पार्टी में इतनी ही हैसियत रह गई है। देखिए ना राष्ट्रीय अधिवेशन को अध्यक्ष की हैसियत से संबोधित करने के दौरान शरद यादव ने पार्टी के नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाया और कहाकि बीजेपी के साथ हमारा गठबंधन मुद्दों पर आधारित है और अभी ऐसा कुछ नहीं है कि एक दूसरे के खिलाफ सख्त टिप्पणी की जाए। लेकिन कुछ देर बाद जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बारी आई तो उन्होंने तो ना सिर्फ गठबंधन धर्म की बल्कि नैतिकता की भी सारी सीमाएं तोड़ दीं। शरद जी से मैं कई मुद्दों पर बात करने जाता रहा हूं, वो बड़ी बड़ी बातें करते हैं, लेकिन आज पार्टी में उनकी हैसियत देखकर वाकई हैरानी हुई। फिर मन में एक सवाल उठा कि जिस शरद को उनकी पार्टी में ही लोग नहीं पूछते तो इतने कमजोर नेता को एनडीए का संयोजक कैसे बनाया जा सकता है?

खैर ये तो रही शरद यादव की बात। हम आज बात करेंगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। नीतीश कुमार का जो राजनीतिक चरित्र सामने आ रहा है, वो देखकर मैं वाकई हैरान हूं। सच कहूं तो नीतीश एक ऐसे शाकाहारी राजनीतिक हैं, जिन्हें मांस तो पसंद है, लेकिन उन्हें इस मीट की तरी से सख्त ऐतराज है। अब आप ही देखिए नीतीश कितने समय से नानवेज का मजा लेते आ रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी आज उनकी आंख की किरकिरी बन गए हैं। सिर्फ एक समुदाय के वोट के लिए नीतीश इस स्तर पर आकर राजनीति करेंगे, मैने तो कभी कल्पना नहीं की थी। एक सवाल पूछता हूं, गुजरात दंगे के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार रेलमंत्री थे। गुजरात में जो कुछ भी हुआ आपने सब देखा था, गोधरा में ट्रेन में आग लगाए जाने के बाद इसकी शुरुआत हुई और इसके बाद पूरे गुजरात में आग धधक गई। उस समय प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने कम से कम इतनी हिम्मत जुटाई कि गुजरात में जाकर नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पाठ पढाया, लेकिन नीतीश तो चुप थे ना। आखिर क्या वजह थी उनकी  चुप्पी की ?

मैं पूछता हूं कि अगर आप अपनी रेलमंत्री की कुर्सी की लालच छोड़ देते और उसी समय प्रधानमंत्री पर दबाव बनाते की नरेन्द्र मोदी की सरकार को बर्खास्त किया जाना चाहिए, वरना केंद्र की सरकार में बने रहना उनके लिए मुश्किल होगा, तो शायद ये नौबत ना आती। हो सकता है कि उसी दौरान भारी दबाव में मोदी के पर कतर दिए जाते। लेकिन नीतीश जी आप पूरे पांच साल केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे और बीजेपी के साथ रामधुन गाते रहे। इस समय कोई नीति नहीं, कोई अल्पसंख्यक प्रेम नहीं, अब 10 साल बाद अचानक आप एक खास समुदाय के हितैषी नजर आने लगे। सही मजा ले रहे है नीतीश जी ! भाई बिहार का अल्पसंख्यक इतना बेवकूफ है क्या कि वो आपके चाल में आ जाएगा। अगर आप सच में अल्पसंख्यकों के प्रति ईमानदार हैं और आपको इनसे हमदर्दी है तो पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी का त्याग कीजिए, क्योंकि ये बीजेपी  की बैशाखी पर टिकी हुई है। लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि आप राजनीति ही कुर्सी और वोटों के लिए करते रहे है। मुझे तो लगता है कि आप जब तक बीजेपी की कृपा पर मुख्यमंत्री हैं तब तक आपके लिए धर्मनिरपेक्षता की बात करना बेमानी है। अच्छा देश ने आपका असली चेहरा भी देखा है। शनिवार की रात तो आप बीजेपी  नेताओं की चौखट पर मत्था टेकते नजर आए, पहले आपने बंद कमरे में बीजेपी नेता अरुण जेटली से मुलाकात की और फिर देर रात चुपचाप बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ के घर चले गए। वो तो अच्छा रहा कि मीडिया के कैमरे हर बीजेपी नेता के दरवाजे पर लगे रहे, वरना आप तो ये भी छिपा जाते कि रात के अंधेरे में बीजेपी के नेताओं से मुलाकात की। अगर देश खासतौर पर बिहार के अल्पसंख्यकों से कुछ छिपाया नहीं जा रहा है तो आपको साफ साफ बताना चाहिए कि इन मुलाकातों के दौरान क्या बात हुई ?

रही बात बीजेपी नेताओं की तो चाहे अरुण जेटली हों या फिर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह दोनों ने साफ साफ कह दिया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। नेताओं के ये भी कहना है कि मोदी एक  ऐसे नेता हैं जिनके विचारों को देश की जनता बहुत ध्यान से सुनती है। फिर देश को पता है कि भारतीय जनता पार्टी जिस प्रकार की राजनैतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है वह हिंदुत्व, रामजन्म भूमि, धारा 370, समान नागरिक संहिता आदि अनेक संवेदनशील विषयों में एक अलग प्रकार का वैचारिक आरक्षण रखती है और मात्र इन विषयों के साथ ही भाजपा के राष्ट्रवाद के विचार का पोषण होता है।  ये तथ्य भारतीय राजनीति में जदयू सहित किसी से छिपा नहीं है। नीतीश इन सब बातों को जानकर भी अगर लंबे समय से बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं तो आखिर अब 2013 में क्या हो गया जो 2002 गुजरात दंगे से ज्यादा गंभीर मसला बन गया है। खैर मैं इन बातों में नहीं जाना चाहता, लेकिन सच यही है कि अगर साबरमती ट्रेन से अयोध्या से कार सेवा कर लौट रहे 56 यात्रियों को ज़िंदा जलाकर उनकी नृशंस ह्त्या न की गई होती तो शायद गुजरात में ऐसा दंगा न भड़कता। मगर ये पूरा मामला आज भी अदालतों में है, लिहाजा इस पर बात करना बेमानी होगी।

सबसे हास्यास्पद क्या है ? अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े हितैषी समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों को बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी से कोई तकलीफ नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव भी इन दिनों खुलेआम आडवाणी की तारीफ कर रहे हैं और नीतीश भी कह रहे हैं कि आडवाणी को अगर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। अब क्या कहूं, मुझे लगता है कि अगर अल्पसंख्यकों को किसी नेता से सबसे ज्यादा तकलीफ होगी तो वो आडवाणी ही हो सकते हैं, क्योंकि रामरथ पर सवार होने के दौरान देश में जो हालात थे, वो किसी से छिपे नहीं हैं। फिर बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के दौरान भी अयोध्या में आडवाणी मौजूद थे। ऐसे में आखिर ऐसा क्या है कि आडवाणी से दोनो नेताओं को तकलीफ नहीं है, लेकिन मोदी से है। आपको बता दूं इसमें कोई राकेट साइंस नहीं है, सबको लगता है कि आडवाणी फेल हो चुके हैं, अगर उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो सहयोगी दलों की भूमिका एनडीए में मजबूत बनी रहेगी। लेकिन मोदी के आने के बाद पासा पलट सकता है, हो सकता है कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार से परेशान जनता मोदी में विश्वास जताए और उन्हें  पूर्ण बहुमत के करीब पहुंचा दे। मोदी के खिलाफ म्यान से तलवार निकालने की एक ये भी साजिश हो सकती है।  

पिछले महीने नीतीश दिल्ली आए और यहां अधिकार रेली की। कहा तो गया कि वो बिहार के हजारों लोगों के साथ यहां अपना अधिकार मांगने आएं हैं, लेकिन वो जिस तरह  से अपनी बात रख रहे थे, एक बार भी नहीं लगा कि वो अधिकार मांग रहे हैं, बल्कि मैसेज यही गया कि वो केंद्र से भीख मांग रहे हैं, लेकिन आज जिस राजनीतिक दल यानि बीजेपी की बदौलत वो बिहार में कुर्सी पर जमें  हुए हैं, उनसे भीख मांगने के बजाए अधिकार की बात कर रहे थे। एक बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है कि एक क्षेत्रीय पार्टी का नेता दिल्ली में राष्ट्रीय पार्टी के कद्दावर नेता को खरी खरी सुनाकर चला गया और बीजेपी गूंगी बहरी क्यों बनी रही ? पार्टी का कोई बड़ा नेता तुरंत नीतीश को भी खरी खरी सुनाने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा सका ? बीजेपी के लगातार कमजोर होने की एक ये भी  बड़ी बजह है। अगर आज बीजेपी ने हिम्मत जुटाई होती तो शाम होते  होते तस्वीर बदल गई होती। मुझे लगता है कि नीतीश आज रात चैन की नींद नहीं सो पाते  और रात भर बीजेपी नेताओं के दरवाजे पर मत्था  टेकते नजर  आते। लेकिन बीजेपी की कमजोर नेतृत्व  और अंदरुनी उठा-पटक के चलते ये मौका बीजेपी  ने गवां दिया।

अब देखिए सिख दंगों के लिए जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी को देश की जनता और नेताओं ने माफ कर दिया, जबकि इस दंगे में देश भर में हजारों सिखों की मौत हुई। उसके बावजूद स्व. राजीव गांधी का बयान आया कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो.. मतलब साफ कि धरती हिलती ही है। यानि उन्हें इसके लिए कोई अफसोस नहीं था। दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने बेहमई में 21 ठाकुरों को लाइन से खड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया, उस फूलन देवी को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में शामिल किया और मिर्जापुर से चुनाव लड़ाकर संसद भेजा। उत्तराखंड की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में महिलाओं के साथ जो क्रूरता (बलात्कार) यूपी पुलिस ने की, मुलायम को इसके लिए भी लोगों ने माफ कर दिया। लेकिन मोदी को कोई माफ करने को तैयार क्यों नहीं है ?  एक मिटन,  इसका ये मतलब नहीं कि गुजरात में जो कुछ हुआ मैं उसका समर्थक हूं। बिल्कुल नहीं, उसकी मैं कडे शब्दों में निंदा करता हूं और मानता हूं कि मोदी प्रशासन अगर चुस्त रहता तो ऐसी घटनाओं को  टाला जा सकता था। इस दंगे में तमाम बेगुनाहों की मौत हुई, पीड़ित परिवारों के साथ मेरी पूरी सहानभूति है, लेकिन मैं कहता हूं कि देश में तमाम बड़ी बड़ी घटनाएं हुई हैं और हम उसे भूल कर आगे बढ़े हैं, फिर गुजरात के मुद्दे पर क्यों इतना कठोर हो जाते हैं ? मेरा तो मानना है कि आज बहस भ्रष्टाचार को लेकर होनी चाहिए थी, लेकिन बहस उल्टी चल  रही है। जो हालात हैं उसे देखकर तो मैं यही कहूंगा कि नायक नहीं खलनायक हैं नीतीश । एक पुरानी बात याद आ रही है, आप भी सुनिए...


वृक्षारोपड़ का कार्य चल रहा था,
नेता आए, पेड़ लगाए
पानी दिया, खाद दिया,
जाते-जाते भाषण झाड़ गए,
गाड़ना आम का पेड़ था
पर, बबूल गाड़ गए !





Thursday 11 April 2013

देवी भक्तों ने जमकर उड़ाया नानवेज !

देवी के भक्तों ने कल यानि 10 अप्रैल की रात को जमकर उड़ाया नानवेज ! वैसे तो मैं नवरात्र में पूरे नौ दिन व्रत ना करके पहले और आखिरी दिन ही व्रत करता हूं, लेकिन कोशिश ये रहती है कि इस दौरान नानवेज से दूरी बनाएं रखें। दूरी बनाएं रखें का मतलब नवरात्र तक परहेज किया जाए। वैसे मैडम नौ दिन व्रत रहती हैं, इसलिए घर पर बनाना भी मुश्किल है। अब हुआ ये कि कल शाम बच्चों ने कहा कि 11 अप्रैल यानि कल से नवरात्र शुरू हो रहा है तो नानवेज बंद हो जाएगा, तो क्यों ना आज रात में कुछ नानवेज बाहर से ही मंगा लें। बच्चों की राय मुझे अच्छी लगनी ही थी, क्योंकि मैं तो नानवेज खाने के लिए 40-50 किलोमीटर सफर भी करना पड़े तो पीछे हटने वाला नहीं हूं।

बस फिर क्या होम डिलीवरी के लिए रात नौ साढे नौ बजे के करीब रेस्टोरेंट पर फोन करना शुरू किया। घर से पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 20- 22 रेस्टोरेंट है, कुछ के यहां नानवेज रात नौ बजे के करीब खत्म हो चुका था, कुछ ने कहा कि आज रेस्टोरेंट में बहुत ज्यादा भीड़ है, हम होम डिलीवरी नहीं कर पाएंगे। मैं हैरान रह गया कि देवी भक्तों को आज नानवेज का ये कैसा बुखार चढ़ा है। खैर मैने गाड़ी निकाली और बच्चों को कहा चलो बाहर ही चलते हैं। भाई आप विश्वास कीजिए सात आठ दुकानों पर पहुंचा, जहां दुकानदारों ने कहाकि आज हम आपको नानवेज नहीं खिला पाएंगे। वो खुद भी हैरान थे कि आखिर आज ऐसा क्या हो गया है कि इतने ज्यादा लोग नानवेज मांग रहे हैं। खैर मुझे लगा कि शहरों में कई बार खास मौकों पर ऐसा हो जाता है। बहरहाल मैने अपनी कार का रुख ढाबे की ओर कर दिया, लेकिन यहां भी मुझे निराश होना पड़ा।

आमतौर पर जिन ढ़ाबों पर ट्रकों की लंबी कतारें दिखाई देंती हैं और यहां का नजारा बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा था। लंबी-लंबी कारें खड़ी हैं। कुछ उत्साही युवक कारोबार में लगे हुए थे। मैं जानता हूं कि " कारोबार " आपकी समझ में नहीं आएगा, दरअसल ये शब्द मीडिया का है। वैसे आपको इसका अर्थ जानना जरूरी है। कारोबार का मतलब "कार में बार" यानि लोग कार में ही शराब वगैरह पी रहे थे। ये लोग निश्चिंत इसलिए दिखाई दे रहे थे, क्योंकि इनका खाने का आर्डर हो चुका था। खैर मुझे लगा कि यहां इतनी भीड़ जमी हुई है तो नानवेज मिल ही जाएगा। वरना तो यहां सन्नाटा रहता। मैं हैरान हो गया ये जानकार कि ढाबे वाले का नानवेज दो बार खत्म हो चुका था अब वो आखिरी बार बना रहा था और उसका आर्डर बुक हो चुका था और यहां लोग नानवेज बनने का इंतजार कर रहे थे। नया आर्डर ढाबे पर भी नहीं लिया जा रहा था।

आपको पता होगा कि शहरों में कुछ ठेले बहुत फेमस होते हैं, वहां भी नानवेज लोग बड़े ही स्वाद लेकर खाते हैं। ऐसा ही एक ठेला हमारे यहां भी है। मैने कहाकि अब आखिरी विकल्प यही है, ठेले पर चलते हैं और कार में बैठे बैठे ही खाना मंगा लिया जाएगा। रात 11 बजे के करीब ठेले के पास पहुंचा तो वहां का हाल देखकर हैरान रह गया । शामी कबाब का जो तवा रात 12 बजे तक गरम रहता है वो मेरे पहुंचने के पहले साफ हो चुका था और सीक कबाब की अंगीठी भी बुझाई जा चुकी थी। मतलब यहां भी नानवेज की कोई गुंजाइश बाकी नहीं थी। लेकिन अब तो मैं वाकई परेशान हो गया, सोचने लगा आखिर ये क्या बात है? इतने बड़े-बड़े होटल रेस्टोरेंट होने के बाद भी मैं एक दिन अपनी पसंद का खाना नहीं खा सकता ?

मैने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, आज नानवेज तो खाना ही है। बच्चे भी कार में हंस रहे थे कि पापा नानवेज नहीं मिल रहा है तो वेज ही खा लेते हैं, वरना थोड़ी देर बाद वेज खाना भी नहीं मिलेगा और घर चलकर मम्मी को ही कुछ बनाना होगा। बच्चों की ये सामान्य बात भी जैसे मुझे चुभ रही थी । अब तो अंदर से मेरा "जर्नलिस्ट" भी जाग चुका था, जो मुझे धिक्कारने लगा। बताओ श्रीवास्तव जी दूसरे पत्रकार भाई होते तो अब तक नानवेज उनके घर पहुंच चुका होता और वो भी बिना पैसे के। एक आप हो कि दो सौ रुपये के नानवेज के चक्कर में कई लीटर पेट्रोल फूंक चुके हो और पचासों फोन काल अलग। इसके बाद भी नानवेज मिलेगा या नहीं भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

सच कहूं तो मैं भी किसी को फोन करके नानवेज मंगा सकता था, लेकिन मै संकोच में था। संकोच के अपने इसी स्वभाव के लिए चलते मैं पत्रकारों की मुख्य धारा में आज तक शामिल नहीं हो पाया। हालाकि मैं बहुत दूर तक सोच रहा था कि ऐसा क्या कर सकता हूं, जिससे इस बड़ी समस्या का समाधान हो सके। दिमाग पर काफी जोर देने के बाद भी कुछ सूझ नहीं रहा था। बहरहाल अब तो मैं हार मान गया और घर की ओर वापस चल दिया। अब कहते हैं ना जिसका कोई नहीं उसके साथ भगवान होता है। मैं गेट पर पहुचा तो देख रहा हूं कि एक होम डिलीवरी व्वाय गेट पर शोर मचा रहा था। वो कह रहा था कि खाने का आर्डर कर देते हैं और लेकर आओ तो कहते हैं मैने आर्डर नहीं किया। उसका शोर सुनकर मैने कार गेट पर ही कार रोक दी और नीचे उतरा, पूछा क्या हो गया ? बताया गया कि फ्लैट B 703 से खाने आर्डर किया गया और अब कह रहे हैं कि उन्होंने खाना नहीं मंगाया। मैने पूछा क्या लाए हो ? बोला कढ़ाई चिकन, मटर पनीर, रुमाली रोटी, एक नान और एक मिस्सी रोटी है।

मैने कहाकि अपने रेस्टोरेट में बात करो और कहो कि जिनके यहां खाने की डिलीवरी के लिए आया था, वो तो मना कर रहे हैं कि खाना उन्होंने नहीं मंगाया। लेकिन अपार्टमेंट के दूसरे सज्जन ये डिलीवरी लेने को तैयार हैं, क्या उन्हें दे दूं ? उसके मालिक ने कहा होगा दे दो, उसे मैने 480 रुपये दिए और खाने की डिलीवरी ले लिया। खाने का थैला हाथ में था हम कार में वापस आए तो बच्चों ने भी यही कहा कि आखिर भगवान ने हम लोगों की सुन ली। खैर हम घर पहुंचे, खाना तुरंत खाने की जल्दबाजी इसलिए थी कि सुबह नवरात्र का व्रत करना है इसलिए तारीख बदलने के पहले खाना खा लिया जाए। वैसे भी मैं चाहता था कि नानवेज खाना है तो रात के 12 बजने के पहले ही खा लिया जाए। खैर खाना पीना हो चुका था, मैं टीवी के सामने बैठा हैड लाइन सुन रहा था, इसी बीच इंटरकांम की घंटी बजी।

गेट से सिक्योरिटी वाले ने बताया कि सर वो डिलीवरी वाला लड़का आया है और खाना वापस मांग रहा है। मैने बताया कि अरे भाई हम तो खाना खा चुके हैं। दरअसल गड़बड़ी ये थी कि मेरे अपार्टमेंट का नाम जनसत्ता अपार्टमेंट है और मेरे बगल में सहयोग अपार्टमेंट है। डिलीवरी व्वाय को बताया गया कि जनसत्ता अपार्टमेंट के बगल वाले अपार्टमेंट में ये खाना देना है। अब वो कई आर्डर एक साथ लेकर निकला था, लिहाजा सहयोग अपार्टमेंट जाने के बजाए वो जनसत्ता के गेट पर ही झगड़ा कर रहा था। खैर मुझे वाकई सहयोग अपार्टमेंट के उन सज्जन प्रति सहानिभूति है, जो खाने का आर्डर करके देर रात तक खाने का इंतजार कर रहे थे और उनका खाना मेरे पास आ गया था। खैर सुबह जो बात पता चली, उससे मैं निश्चिंत हो गया कि कोई बात नहीं, क्योंकि वो खाना एक पुलिस अफसर जो उस अपार्टमेंट में रहते हैं, उनके यहां जाना था। ऐसा नहीं हो सकता कि पुलिस अफसर बिना खाना खाए सो जाए। रेस्टोरेंट का मालिक उल्टे पांव भागा-भागा आया होगा दूसरा आर्डर लेकर। खैर मेरा तो मस्त रहा भोजन.. हाहाहहा ।