अब टीम अन्ना ईमानदारी की नई परिभाषा गढ़ रही है । लोकपाल में एनजीओ को शामिल किए जाने से ना जाने क्यों उनकी परेशानी बढ़ गई है । लोकपाल में और किसे किसे शामिल किया जाए, इससे ज्यादा जोर टीम अन्ना का इस पर है कि कैसे एनजीओ को इससे बाहर किया जाए । अब आंदोलन की हकीकत इसी बात से सामने आती है । मेरा मानना है कि आप ये मांग तो कर सकते हैं कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री, जजों को भी शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन आप ये मांग भला कैसे कर सकते हैं कि एनजीओ को इसके दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए ।
मेरी समझ में तो नहीं आ रहा है, आप अगर समझ रहे हैं तो मुझे भी बताएं । इस मांग का मतलब तो यही है ना कि " ए " को चोरी करने की छूट होनी चाहिए, लेकिन " बी " को चोरी करने का बिल्कुल हक नहीं होना चाहिए । एनजीओ को लोकपाल में लाने की खबर से टीम अन्ना की हवाइयां उड़ गईं । टीम के सबसे ईमानदार और मजबूत सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने तो आनन फानन में सरकार को रास्ता भी सुझा दिया, उनका कहना है कि चलो अगर एनजीओ को लोकपाल के दायरे में लाया ही जाना है तो सबको ना लाया जाए, सिर्फ उसे ही लाएं जो एनजीओ सरकारी पैसों की मदद लेते हैं । हाहाहाहहाहा हंसी आती इस ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता पर ।
अरे केजरीवाल साहब हम एनजीओ से तो ये उम्मीद करते हैं ना कि वो ईमानदारी से काम करते होंगे । फिर आपकी छटपटाहट की वजह क्या है ? अन्ना जी तो बेचारे हर जांच खुद अपने से शुरू करने की मांग करते हैं । वो कहते हैं कि सबसे पहले उनकी ही जांच हो , लेकिन आपको ऐसा करने में दिक्कत क्यों है । मैं दूसरे एनजीओ की चर्चा नहीं करुंगा, पहले आपकी दूसरी सहयोगी किरन बेदी की बात कर लेते हैं । उनके एनजीओ को सरकार से पैसा मिला या नहीं, मै ये तो नहीं जानता , लेकिन पुलिस कर्मियों के बच्चों को कम्प्युटर और कम्प्युटर ट्रेनिंग के लिए माइक्रोसाप्ट कंपनी ने 50 लाख रुपये लिए गए । अब आरोप लग रहा है कि उन्होंने इस पैसे का दुरुपयोग किया । ये सरकारी पैसा भले ही ना हो, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के नाम पर लिया गया पैसा था, अगर इसमें बेईमानी हुई है तो शर्मनाक है और दोषी लोगों को सख्त सजा होनी ही चाहिए । आप चाहते हैं कि ऐसे लोगों को हाथ में तिरंगा लेकर ईमानदारी की बात करने की छूट होनी चाहिए ।
आप खुद सोचें कि जो ईमानदारी की बडी बड़ी बातें कर रहे हैं, उनके दामन साफ नहीं है, कोर्ट ने सुनवाई के बाद उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं, तो फिर और एनजीओ का क्या हाल होगा । आखिर अरविंद केजरीवाल को इससे दिक्कत क्यों है ? वो किसे बचाना चाहते हैं ? मेरा अनुभव रहा है कि बहुत सारे सामाजिक संगठन विदेशों से पैसे लेते हैं, मकसद होता है का गरीबों को मुफ्त इलाज, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, गांव का विकास, बाल श्रम पर रोक, महिला सशक्तिकरण, पर क्या ईमानदारी से सामाजिक संगठन ये काम करते हैं, दावे के साथ कह सकता हूं.. नहीं । ऐसे में अगर इन्हें लोकपाल के दायरे में लाने की बात हो रही है तो आखिर इसमे बुराई क्या है, क्यों केजरीवाल आग बबूला हैं ?
मित्रों वैसे भी एनजीओ पर शिकंजा कसना जरूरी है, क्योंकि यहां बडे पैमाने पर धांधली हो रही है । मैं इस बात का जवाब टीम अन्ना से चाहता हूं कि तमाम लोग आयकर में छूट पाने के लिए सामाजिक संगठनों को चंदा देते हैं और यहां से रसीद हासिल करके आयकर रिटर्न में उसे दर्ज करते हैं । जब आयकर में एनजीओ की रसीद महत्वपूर्ण अभिलेख है तो क्यों नहीं एनजीओ को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए । मैं देखता हूं कि कारपोरेट जगत ही नहीं बडे बडे नेताओं और फिल्म कलाकार अपने पूर्वजों के नाम पर सामाजिक संस्था बनाते हैं और पैसे को काला सफेद करते रहते हैं ।
यहां एक शर्मनाक वाकये की भी चर्चा कर दूं । देश में बड़े बड़े साधु संत धर्मार्थ संगठन के नाम पर धोखाधड़ी कर रहे हैं । साल भर पहले आईबीएन 7 के कैमरे पर कई बडे नामचीन साधु पकड़े गए थे, जो कालेधन को सफेद करने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे । वो दस लाख रुपये लेकर 50 रुपये की रसीद दिया करते थे । धर्मार्थ संगठन गौशाला, पौशाला, धर्मशाला, पाठशाला समेत कई अलग अलग काम के लिए सामाजिक संस्था बनाए हुए हैं । मेरा मानना है कि सामाजिक संस्थाओं को सरकारी और गैरसरकारी जितनी मदद मिलती है, अगर इसका ईमानदारी से उपयोग किया जाता तो आज देश के गांव गिरांव की सूरत बदल जाती । ये चोरी का एक आसान रास्ता है, इसलिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सेवा में रहते हुए एक एनजीओ जरूर बना लेते हैं और सेवाकाल के दौरान पद का दुरुपयोग करके इसे आगे बढाने में लगे रहते हैं, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद इसका स्वाद उन्हें मिलता रहे ।
अच्छा हास्यास्पद लगता है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की जा रही है, जबकि देश में आज तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं हुआ है, जिसके लूट खसोट से जनता परेशान हो गई हो । अब आज की केंद्र सरकार को ही ले लें, सब कहते हैं कि आजाद भारत की ये सबसे भ्रष्ट्र सरकार है, लेकिन प्रधानमंत्री को सभी ईमानदार बताते हैं । इसलिए अगर लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को एक बार ना भी शामिल किया जाए तो कोई पहाड़ टूटने वाला नहीं है, लेकिन जब सामाजिक संगठनों की करतूतें सामने आने लगी हैं तो कोई कारण नहीं जो इन्हें लोकपाल से अलग रखा जाए । टीम अन्ना से बस इतना ही कहूंगा कि जनता देख रही है, कम से कम ईमानदारी की बात तो ईमानदारी से करो ।
मेरी समझ में तो नहीं आ रहा है, आप अगर समझ रहे हैं तो मुझे भी बताएं । इस मांग का मतलब तो यही है ना कि " ए " को चोरी करने की छूट होनी चाहिए, लेकिन " बी " को चोरी करने का बिल्कुल हक नहीं होना चाहिए । एनजीओ को लोकपाल में लाने की खबर से टीम अन्ना की हवाइयां उड़ गईं । टीम के सबसे ईमानदार और मजबूत सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने तो आनन फानन में सरकार को रास्ता भी सुझा दिया, उनका कहना है कि चलो अगर एनजीओ को लोकपाल के दायरे में लाया ही जाना है तो सबको ना लाया जाए, सिर्फ उसे ही लाएं जो एनजीओ सरकारी पैसों की मदद लेते हैं । हाहाहाहहाहा हंसी आती इस ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ता पर ।
अरे केजरीवाल साहब हम एनजीओ से तो ये उम्मीद करते हैं ना कि वो ईमानदारी से काम करते होंगे । फिर आपकी छटपटाहट की वजह क्या है ? अन्ना जी तो बेचारे हर जांच खुद अपने से शुरू करने की मांग करते हैं । वो कहते हैं कि सबसे पहले उनकी ही जांच हो , लेकिन आपको ऐसा करने में दिक्कत क्यों है । मैं दूसरे एनजीओ की चर्चा नहीं करुंगा, पहले आपकी दूसरी सहयोगी किरन बेदी की बात कर लेते हैं । उनके एनजीओ को सरकार से पैसा मिला या नहीं, मै ये तो नहीं जानता , लेकिन पुलिस कर्मियों के बच्चों को कम्प्युटर और कम्प्युटर ट्रेनिंग के लिए माइक्रोसाप्ट कंपनी ने 50 लाख रुपये लिए गए । अब आरोप लग रहा है कि उन्होंने इस पैसे का दुरुपयोग किया । ये सरकारी पैसा भले ही ना हो, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के नाम पर लिया गया पैसा था, अगर इसमें बेईमानी हुई है तो शर्मनाक है और दोषी लोगों को सख्त सजा होनी ही चाहिए । आप चाहते हैं कि ऐसे लोगों को हाथ में तिरंगा लेकर ईमानदारी की बात करने की छूट होनी चाहिए ।
आप खुद सोचें कि जो ईमानदारी की बडी बड़ी बातें कर रहे हैं, उनके दामन साफ नहीं है, कोर्ट ने सुनवाई के बाद उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं, तो फिर और एनजीओ का क्या हाल होगा । आखिर अरविंद केजरीवाल को इससे दिक्कत क्यों है ? वो किसे बचाना चाहते हैं ? मेरा अनुभव रहा है कि बहुत सारे सामाजिक संगठन विदेशों से पैसे लेते हैं, मकसद होता है का गरीबों को मुफ्त इलाज, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, गांव का विकास, बाल श्रम पर रोक, महिला सशक्तिकरण, पर क्या ईमानदारी से सामाजिक संगठन ये काम करते हैं, दावे के साथ कह सकता हूं.. नहीं । ऐसे में अगर इन्हें लोकपाल के दायरे में लाने की बात हो रही है तो आखिर इसमे बुराई क्या है, क्यों केजरीवाल आग बबूला हैं ?
मित्रों वैसे भी एनजीओ पर शिकंजा कसना जरूरी है, क्योंकि यहां बडे पैमाने पर धांधली हो रही है । मैं इस बात का जवाब टीम अन्ना से चाहता हूं कि तमाम लोग आयकर में छूट पाने के लिए सामाजिक संगठनों को चंदा देते हैं और यहां से रसीद हासिल करके आयकर रिटर्न में उसे दर्ज करते हैं । जब आयकर में एनजीओ की रसीद महत्वपूर्ण अभिलेख है तो क्यों नहीं एनजीओ को लोकपाल के दायरे में आना चाहिए । मैं देखता हूं कि कारपोरेट जगत ही नहीं बडे बडे नेताओं और फिल्म कलाकार अपने पूर्वजों के नाम पर सामाजिक संस्था बनाते हैं और पैसे को काला सफेद करते रहते हैं ।
यहां एक शर्मनाक वाकये की भी चर्चा कर दूं । देश में बड़े बड़े साधु संत धर्मार्थ संगठन के नाम पर धोखाधड़ी कर रहे हैं । साल भर पहले आईबीएन 7 के कैमरे पर कई बडे नामचीन साधु पकड़े गए थे, जो कालेधन को सफेद करने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे । वो दस लाख रुपये लेकर 50 रुपये की रसीद दिया करते थे । धर्मार्थ संगठन गौशाला, पौशाला, धर्मशाला, पाठशाला समेत कई अलग अलग काम के लिए सामाजिक संस्था बनाए हुए हैं । मेरा मानना है कि सामाजिक संस्थाओं को सरकारी और गैरसरकारी जितनी मदद मिलती है, अगर इसका ईमानदारी से उपयोग किया जाता तो आज देश के गांव गिरांव की सूरत बदल जाती । ये चोरी का एक आसान रास्ता है, इसलिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सेवा में रहते हुए एक एनजीओ जरूर बना लेते हैं और सेवाकाल के दौरान पद का दुरुपयोग करके इसे आगे बढाने में लगे रहते हैं, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद इसका स्वाद उन्हें मिलता रहे ।
अच्छा हास्यास्पद लगता है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की जा रही है, जबकि देश में आज तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं हुआ है, जिसके लूट खसोट से जनता परेशान हो गई हो । अब आज की केंद्र सरकार को ही ले लें, सब कहते हैं कि आजाद भारत की ये सबसे भ्रष्ट्र सरकार है, लेकिन प्रधानमंत्री को सभी ईमानदार बताते हैं । इसलिए अगर लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को एक बार ना भी शामिल किया जाए तो कोई पहाड़ टूटने वाला नहीं है, लेकिन जब सामाजिक संगठनों की करतूतें सामने आने लगी हैं तो कोई कारण नहीं जो इन्हें लोकपाल से अलग रखा जाए । टीम अन्ना से बस इतना ही कहूंगा कि जनता देख रही है, कम से कम ईमानदारी की बात तो ईमानदारी से करो ।