पांच छह महीने बाद देश में एक बार फिर लोकसभा का चुनाव हो जाएगा और जोड़-तोड़ के बाद कोई प्रधानमंत्री भी बन जाएगा, फिर अब तक के प्रधानमंत्रियों की तरह वो भी देश को हांकने लगेगा। कई बार जब लोग कहते हैं कि भारत का लोकतंत्र दुनिया में सबसे ज्यादा मजबूत है, ये सुनकर मैं तो भड़क जाता हूं। मेरा मानना है कि भारत का लोकतंत्र सबसे ज्यादा मजबूर है। सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोग एक मजबूत और भरोसेमंद सरकार के लिए वोट करते है, घंटो लाइन में लगकर इसलिए वोट डालते हैं ताकि वो अपना भविष्य सुरक्षित बना सकें। लेकिन हैरानी तब होती है जब चुनाव के बाद एक ऐसा व्यक्ति सामने आता है जो चुनाव के दौरान कहीं पिक्चर में ही नहीं था, वो अचानक प्रधानमंत्री बन जाता है। सच बताऊं मैं बात कर रहा हूं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की। मैं कांग्रेस से जानना चाहता हूं कि क्या देश के मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट इसलिए दिया था ताकि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें ? मेरा मानना है कि देश में एक भी मतदाता ऐसा नहीं होगा जो ये कहे कि उसने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए ही वोट किया था। अगर ऐसा नहीं है तो फिर किस बात का लोकतंत्र ?
देश का लोकतंत्र लगभग 65 साल पुराना हो गया है, फिर भी लगता है कि इसमें बहुत खामियां हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में पहले तो देश ने किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं दिया। मतलब साफ है कि देश की जनता ने राजनीतिक दलों को खारिज कर दिया। अब जो जीत कर आए, कम से कम इतना तो है कि उन्हें अपने इलाके की जनता का समर्थन हासिल है। लेकिन हुआ क्या ? सोनिया गांधी ने एक थके हुए बिना रीढ़ की हड्डे वाले व्यक्ति का नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे बढ़ाया, और सब ताली बजाकर उन्हें अपना नेता मानने को तैयार हो गए। खैर सोनिया गांधी की राजनीति समझ को तो आसानी से समझा जा सकता है, उन्हें तो सरकार और पार्टी में अपनी हनक बनाए रखने के लिए कमजोर आदमी को ही प्रधानमंत्री बनाने के लिए नाम आगे करना था और उन्होनें किया भी। हैरानी इस बात पर हुई कांग्रेस को छोड़ दें तो गठबंधन के दूसरे नेता भला क्यों चुप्पी साधे रहे ? शरद पवार, करुणानिधि, मुलायम सिंह यादव, अजित सिंह, मायावती, लालू यादव, राम विलास पासवान, फारुख अब्दुल्ला जैसे लोगों की खामोशी का राज क्या है ? इनकी ओर से मांग क्यों नहीं उठी कि कोई मजूबत आदमी प्रधानमंत्री होना चाहिए, किसी को भी नेता हम सब स्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, सहयोगी दलों के ज्यादातर नेता मंत्रालयों की बंदरबांट में ही लगे रहे।
एक सवाल का जवाब दीजिए, क्या मुलायम सिंह यादव और मायावती को यूपी में इसलिए समर्थन मिला था कि वो दिल्ली में जाकर कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को समर्थन दें और समर्थन के एवज में अपने मुकदमें निपटाते रहें। हम सब जानते हैं कि चुनाव के पहले कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में कोई गठबंधन नहीं था, सब एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में थे, फिर दिल्ली में सपा और बसपा ने कांग्रेस को कैसे समर्थन दे दिया ? करुणानिधि ने तो हद ही कर दी, उन्होंने ए राजा के लिए संचार मंत्रालय मांग लिया। मांग पूरी होने के बाद क्या हुआ, ये किसी से छिपा नहीं है। आज इस गठबंधन सरकार की हालत ये हो गई समर्थन के एवज में छोटे-छोटे राजनीतिक दल एक तरह से हफ्ता वसूली कर रहे हैं। मैं तो प्रधानमंत्री से सवाल पूछता हूं कि दिल पर हाथ रखिए और बताइये कि क्या आप वाकई प्रधानमंत्री पद का काम बिना दबाव के कर पा रहे हैं ? क्या जो आप करना चाहता है, वो करने के लिए आजाद हैं ? अच्छा छोड़िए, आप साफ सुथरी बात करने वाले व्यक्ति है, खुद ही बताएं कि क्या जैसे आप प्रधानमंत्री बने, ऐसे ही पिछले दरवाले से प्रधानमंत्री बनना चाहिए ? मुझे पता है कि इसका कोई जवाब आपके पास नहीं है। जवाब होगा भी तो आप में इतनी हिम्मत नहीं है कि साफगोई से बात कर सकें।
बस देश के लोकतंत्र में यही कमी है। अब देश मेच्योर हो चुका है, देशवासियों को हर बात का हिसाब चाहिए। जब से कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद पर थोपा है, देश की जनता खुद को छला हुआ महसूस कर रही है। उसे लगता है कि उसके वोट के साथ कांग्रेस ने न्याय नहीं किया। इतना ही नहीं आगे भी कांग्रेस जनता के वोट के साथ न्याय करेगी, इसमें लोगों को संदेह है। देश ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहता है, जिसके शरीर में और कुछ हो ना हो, पर रीढ की हड्डी जरूर हो। उसमें आत्मसम्मान जरूर हो, उसमें इतनी क्षमता हो कि वो " नाँनसेंस " कहने वालों को मुंहतोड़ जवाब दे सके। लेकिन ये तभी संभव है, जब वो खुद जनता के बीच से चुनाव जीत कर आए। इतना ही नहीं उसे पार्टी नेता घोषित करे और वो अपने दम पर पार्टी उम्मीदवारों को भी जिता कर लाए। यहां तो हालत ये है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के लिए अपने क्षेत्र में बुलाने से घबराते हैं। बात होती है तो लोग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कह कर चुप हो जाते हैं। सवाल ये है कि देश एक कमजोर को प्रधानमंत्री कैसे स्वीकार कर सकता है?
मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि संविधान में बड़ा फेरबदल किया जाए। फेरबदल करके ये व्यवस्था बनाई जाए कि हर राष्ट्रीय पार्टी चुनाव में जाने के पहले अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करे। देश के मतदाताओं को अब पार्टी नेताओं पर भरोसा नहीं रहा है। उन्हें लगता है कि राष्ट्रीय पार्टी के नेता उनके मतों का सम्मान नहीं करते। अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी देश के मतदाताओं के वोट की कीमत समझतीं तो कम से कम प्रधानमंत्री के पद पर मनमोहन सिंह को कभी नहीं बैठाती। उन्होंने एक कमजोर व्यक्ति को जानबूझ कर प्रधानमंत्री बनाया जिससे पार्टी और सरकार दोनों पर उनकी पकड़ मजबूत रहे।
सुझाव..
1. राष्ट्रीय पार्टी चुनाव की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान करें ...
2. क्षेत्रीय पार्टियों के लोकसभा चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, क्योंकि वो दिल्ली आकर सौदेबाजी करते हैं।
3. अगर प्रतिबंध संभव ना हो तो क्षेत्रीय दल जिसे समर्थन देते हैं, वो सरकार के एक अंग माने जाएं, अगर समर्थन वापस लें तो उनकी सदस्यता खत्म हो।
4. अगर प्रधानमंत्री पद का घोषित उम्मीदवार चुनाव हार जाता है तो पार्टी + समर्थक दल के सांसद गु्फ्त मतदान के जरिए नेता का फैसला करें ।
5. नेता चुनने का अधिकार किसी भी पार्टी के अध्यक्ष को नहीं होना चाहिए ।
6. प्रधानमंत्री के लिए ये अनिवार्य होना चाहिए कि वो लोकसभा का चुनाव लड़कर सदन मे पहुंचे। राज्यसभा सांसद को प्रधानमंत्री के अयोग्य घोषित किया जाए।
7. अगर राज्यसभा को कोई सदस्य प्रधानमंत्री बनता है तो उसे छह महीने के भीतर देश के किसी भी हिस्से से चुनाव लड़कर लोकसभा में आने की बाध्यता होनी चाहिए।
8. जो दल एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हों, सरकार बनाने के लिए उनके एक दूसरे का समर्थन करने पर रोक होनी चाहिए।
9. समर्थन के लिए गलत तरीका अपनाने वालों और समर्थन के एवज में सौदेबाजी करने वाले दलों की मान्यता रद्द करने का प्रावधान होना चाहिए।
10. यही व्यवस्था राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी होनी चाहिए।
अब भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। सभी जानते हैं गुजरात दंगे को लेकर मोदी पर तरह तरह के गंभीर आरोप हैं। अब उनके बारे में देश की जनता अपना फैसला सुना देगी। दूसरी तरफ कांग्रेस है, उसका प्रधानमंत्री कौन होगा, किसी को नहीं पता। अगर राहुल गांधी उनके नेता हैं तो प्रधानमंत्री पद पर उनके नाम का ऐलान कर दिया जाना चाहिए। तीसरी ओर क्षेत्रीय राजनीतिक दल है। वो एक तरफ तो सरकार को समर्थन देकर अपने मुकदमें निपटा रहे हैं और बंगले हथियाने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर तीसरे मोर्चे की भी हवा बना रहे हैं। मैं फिर वही बात दुहराऊंगा कि क्षेत्रीय दलों पर लोकसभा का चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध होना चाहिए।