आपसे वादा था कि गुजरात चुनाव के बारे में आप सबको
अपडेट दूंगा, तो चलिए आज गुजरात विधानसभा चुनाव की ही कुछ बातें कर ली जाए। दो दिन
पहले ही दिल्ली से अहमदाबाद पहुंचा हूं और इस 48 घंटे में बहुत सारे लोगों से मुलाकात
हुई, हर मुद्दे पर बहुत ही गहन विचार किया गया है। आप सबका ब्लड प्रेशर ना बढ़े इसलिए
एक बात पहले ही स्पष्ट कर दूं कि दिल्ली में था, तो वहां से भी यही लग रहा था कि मोदी
तीसरी बार भी सरकार बनाएंगे, गुजरात पहुंचने के बाद भी ऐसा ही लग रहा है की मोदी की
सरकार बन ही जाएगी। अब सवाल उठता है कि अगर मोदी की सरकार बन ही रही है तो फिर चुनाव
में इतनी मारा मारी क्यों है ? तो आइये अब भूमिका
खत्म, सीधे मुद्दे की बात की जाए।
वैसे तो युद्ध और चुनाव के सामान्य नियम हैं, मसलन
जो जीता वही सिकंदर। यहां बहुत ज्यादा साइंस नहीं है कि ऐसा होता तो ऐसा होता, वैसा
होता तो फिर ये होता। खैर इन सबके बाद भी मैं चाहता हूं कि आपको यहां की कुछ बारीक
जानकारी दूं। ये ऐसी जानकारी है जिससे यहां मोदी की हवा होते हुए भी खुद मोदी साहब
की हवा निकली हुई है। गुजरात मे विधानसभा की 41 सीटें ऐसी है, जो मोदी का गणित पूरी
तरह से बिगाड़ सकती हैं। यहां पिछले चुनाव में बीजेपी की जीत तो हो गई थी, लेकिन मतों
का अंतर काफी कम था। इसमें 18 सीटें कच्छ और सौराष्ट्र के हिस्से में आती हैं। इस बार
केशुभाई पटेल ने अलग पार्टी बना ली है, लिहाजा कुछ नुकसान तो यहां बीजेपी को उठाना
ही होगा। वैसे भी यहां जातिवाद की राजनीति बहुत चरम पर रहा करती है, इसलिए लोग केशुभाई
को कम आंकने को तैयार नहीं है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैने जो समझा है, मुझे नहीं
लगता कि केशभाई की गुजरात परिवर्तन पार्टी इस बार कोई बड़ा करिश्मा कर पाएगी।
हां आपको पता ही है कि मोदी ने पिछले यानि
2007 के विधानसभा चुनाव में 182 में से 117 सीटों पर जीत हासिल कर दूसरी बार अपनी सरकार
बनाई थी, जो सत्ता के जादुई आंकड़े 92 से सिर्फ
25 सीटें ज्यादा है, लेकिन, 76 सीटें ऐसी
रहीं, जिन पर भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे
का मुकाबला रहा और अंतिम राउंड में भाजपा इनमें से 41 सीटों को अपनी झोली में करने
में कामयाब हो गई। इन 41 सीटों में भी 4 सीटों पर उसके उम्मीदवार बमुश्किल एक हजार
वोट के अंतर से जीत पाए। इसी तरह 9 उम्मीदवार तीन हजार वोट, 11
उम्मीदवार पांच हजार वोट और 16 उम्मीदवार सिर्फ दस हजार वोट ज्यादा लेकर ही जीत का
सेहरा अपने सिर पर बांध सके।
मोदी को पिछले चुनाव मे सबसे ज्यादा कामयाबी कच्छ
– सौराष्ट्र में मिली थी। गुजरात के इस सबसे बड़े हिस्से में बीजेपी के खाते में
58 में से 43 सीटें गईं। लेकिन 18 सीटों पर तो यहां भी बीजेपी उम्मीदवारों को जीत के
लिए बहुत पसीना बहाना पड़ा। हालत ये थी कि यहां की खंभलिया सीट भाजपा का उम्मीदवार
महज 798 वोट से ही जीत पाया। बात यहां के दूसरे हिस्से
की करें तो राजपीपला विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 631, मांडल में
सिर्फ 677, खंभलिया में 798 और कांकरेज में जीत-हार का ये अंतर महज 840 वोटों का रहा। मुझे लगता है कि इस नजरिये से अगर पिछले
चुनाव को देखा जाए तो मोदी की हालत उतनी अच्छी नहीं रही है, जितनी देश भर में चर्चा
है। इसीलिए तो कहता हूं कि सावधानी हटी, दुर्घटना हुई।
हालाकि विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन
के बाद शहरी आबादी की सीटें पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई हैं। कहा तो ये जा रहा है
कि शहरी क्षेत्र में सीटें बढ़ने का फायदा मोदी को होगा, लेकिन इसे दूसरी तरह से भी
देखा जा रहा है। मसलन जो लोग मोदी से नाराज हैं, या जो उनकी सरकार के प्रदर्शन से नाखुश
हैं, वो कांग्रेस को वोट करते, लेकिन मैदान में केशूभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी
के उतरने से अब विरोधी वोटों का कांग्रेस और गुजरात परिवर्तन पार्टी में बटवारा हो
जाएगा, जिसका फायदा सीधे मोदी को हो सकता है। बदले हालात में अपनी संभावना जानने के
लिए बीजेपी ने जो सर्वे कराया, उसमें 48 विधान सभा
सीटों पर तो उसकी जीत सौ प्रतिशत बताई गई, लेकिन 32 सीटों पर
ये संभावना सिर्फ 30 प्रतिशत, 42 सीटों पर 50 प्रतिशत और 60 सीटों
पर 60 प्रतिशत आंकी गई है। हालांकि गुजरात की सत्ता में बने रहने के लिए 92 सीटें ही
पर्याप्त हैं. यदि सर्वे पर यकीन किया जाये तो हैट्रिक के लिए
मोदी को सिर्फ 44 सीटों पर ही कड़ी मेहनत करने की जरूरत होगी।
वैसे यहां चुनाव प्रचार में भी काफी नयापन दिखाई
दे रहा है। आजकल बीजेपी का एक विज्ञापन चर्चा में है। इसमें कबड्डी के खेल के लिए दो
टीमें तैयार हैं, और मैदान में हैं। रेफरी दोनों टीमों के कप्तान को बुलाता है तो बीजेपी
का कप्तान आगे आ जाता है, लेकिन कांग्रेस का
कप्तान नहीं आता है, यहां खिलाड़ी एक दूसरे की ओर देखते हैं। फिर रेफरी कांग्रेस की
ओर से उप कप्तान को बुलाया जाता है तो सभी खिलाड़ियों में मारी मारी हो जाती है और
सब आगे बढ़ते हैं। इससे बीजेपी ये साबित करना चाहती है कि कांग्रेस एक ऐसी टीम है,
जिसका कोई कप्तान ही नहीं है। लेकिन सवाल ये उठता है कि गुजरात में बीजेपी से ही उसका
उप कप्तान पूछ लिया जाए तो मुझे लगता है कि बीजेपी के पास भी उप कप्तान के लिए कोई
नाम नहीं है। इसी तरह के कई विज्ञापन यहां लोगों के बीच खास चर्चा में हैं।
वैसे यहां कांग्रेसियों को एक साथ दो चुनाव लड़ने
पड़ रहे हैं। एक तो वो विधानसभा का चुनाव लड़ ही रहे हैं, दूसरी अपनी पार्टी के भितरघात
से भी उन्हें जूझना पड़ रहा है। माना जा रहा था कि कांग्रेस के दिग्गज नेता शंकर सिंह
बाघेला को पार्टी पूरी ताकत देगी और उन्हीं की अगुवाई में ये चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन
कांग्रेस ने बाघेला को जितना तवज्जो देना चाहिए था, शायद वो नहीं दिया, लिहाजा खुले
तौर पर तो नहीं लेकिन बाघेला अपनी अनदेखी से काफी खफा हैं और चुनाव के ऐन वक्त वो हैं
कहां ? किसी को नहीं पता। अच्छा फिर कांग्रेस ने कुछ जल्दबाजी
भी की, मसलन चुनाव के दो महीने पहले ही तमाम चुनावी घोषणाएं कर डाली, अब चुनाव के वक्त
उनके कमान में कोई तीर ही नहीं है। सही तो ये है कि जब दो महीने कांग्रेस ने चुनावी
घोषणाएं करनीं शुरू कीं तो इससे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भी परेशान हो गए थे। लेकिन
आज कांग्रेस का हाथ खाली है।
सच बताऊं तो इस चुनाव में मुद्दा क्या हो
? ये नरेन्द्र मोदी भी नहीं समझ पा रहे हैं। दावा भले किया जा रहा हो
कि चुनाव में विकास मुद्दा होगा, लेकिन यहां सड़क, बिजली, पानी जैसी कोई खास दिक्कत
नहीं है। हां कुछ इलाकों में पानी की दिक्कत जरूर है, लेकिन वो इतना बड़ा मुद्दा नही
हैं जो इस चुनाव को सीधे प्रभावित करे। अंदर की बात तो ये है कि खुद मोदी गुजरात मे
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुनावी सभाओं का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें लगता
है कि अगर सोनिया पिछले चुनाव की तरह इस बार भी उनके खिलाफ कुछ तल्ख टिप्पणी करतीं
हैं तो उसी को लेकर मोदी मैदान में कूद जाएगें। आपको याद होगा कि पिछले चुनाव में सोनिया
गांधी ने नाम भले ना लिया हो, लेकिन मोदी को ” मौत का सौदागर
“ बताया था। सोनिया तो
एक बार बोल कर गुजरात से दिल्ली पहुंच गईं, लेकिन मोदी ने मौत के सौदागर को ऐसा भुनाया
कि यहां कांग्रेस औंधे मुंह जा गिरी। अब इस बार भी उन्हें भरोसा है कि उनके बारे में
कुछ ऐसी टिप्पणी आए, जिसे वो मुद्दा बना लें। सच यही है कि गुजरात में विकास की बातें
करना बेमानी सी लगती है।
मेरा वोट मेरी सरकार : मेरे न्यूज चैनल आईबीएन 7 का ये खास
कार्यक्रम है। जिसका रोजाना शाम 7.30 पर गुजरात के विभिन्न शहरों से सीधा प्रसारण किया
जाता है। इसमें हम खासतौर पर गुजरात के चुनाव की नब्ज टटोलने और नेताओं से जनता सवाल
पूछ कर उनका हिसाब मांगती है, यानि नेताओं को देना होता है अपने काम काज का लेखा जोखा।
एक बात मैं खास तौर पर देख रहा हूं कि गुजरात का दंगा यानि गोधरा कहीं अब वैसे तो चर्चा
में नहीं है। लेकिन इसे मुद्दा बनाने की साजिश की जा रही है। साजिश कौन कर रहा है,
क्यों कर रहा है, ये तो वही जानें, लेकिन एक तपका चाहता है कि हिंदु मुस्लिम की बात
हो और इस पर प्रमुखता से चर्चा हो। आप सोचें कि अगर चुनाव में हिंदू मुस्लिम की बात
आती है तो फायदा किसे होगा ? चौपाल के दौरान कुछ लोग गोधरा पर
सवाल भी पूछते हैं ।
बहरहाल अगर आप गुजरात में हैं तो हमारे चौपाल में
शामिल हो सकते हैं। चौपाल की तारीख भी दे देता हूं आपको.... 26 नवंबर, अहमदाबाद,
27 नवंबर अमरेली, 28 नवंबर जूनागढ़, 29 नवंबर पोरबंदर, 30 नवंबर जामनगर, एक दिसंबर
रोजकोट, तीन दिसंबर भावनगर, 4 दिसंबर बड़ोदरा, 5 दिसंबर भरुच, 6 दिसंबर वालसाड़, 7
दिसंबर नवसारी, 8 दिसंबर सूरत, 10 दिसंबर गोधरा, 11 दिसंबर आणद, 12 दिसंबर मेहसाणा,
13 दिसंबर वनासकांटा और 14 दिसंबर को आखिरी चौपाल भुज से करके दिल्ली वापसी होगी।