Sunday 14 September 2014

हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद !

जी हां, आज ये कहानी आपको एक बार फिर सुनाने का  मन हो रहा है। जहां भी और जब  हिंदी की बात होती है तो मैं ये किस्सा लोगों को जरूर सुनाता हूं। मतलब ऊंचे लोग ऊंची पसंद। मेरी तरह आपने  भी महसूस किया होगा  कि एयरपोर्ट पर लोग अपने घर या मित्रों से अच्छा खासा हिंदी में या फिर अपनी बोलचाल की भाषा में बात करते दिखाई देते  हैं, लेकिन जैसे ही हवाई जहाज में सवार होते हैं और जहाज जमीन छोड़ता है, इसके यात्री भी जमीन से कट जाते हैं और ऊंची-ऊंची छोड़ने लगते हैं। मुझे आज भी याद है साल भर पहले मैं एयर इंडिया की फ्लाइट में दिल्ली से गुवाहाटी जा रहा था। साथ वाली सीट पर बैठे सज्जन कोट टाई में थे, मैं तो ज्यादातर जींस टी-शर्ट में रही रहता हूं। मैंने उन्हें कुछ देर पहले एयरपोर्ट पर अपने घर वालों से बात करते सुना था, बढिया हिंदी और राजस्थानी भाषा में बात कर रहे थे। लेकिन हवाई जहाज के भीतर कुछ अलग अंदाज में दिखाई दिए। सीट पर बैठते ही एयर होस्टेज को कई बार बुला कर तरह-तरह की डिमांड कर दी उन्होंने। खैर मुझे समझने में  देर नहीं लगी कि ये टिपिकल केस है। बहरहाल थोड़ी देर बाद ही वो मेरी तरफ मुखातिब हो गए ।

सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजी में मेरा नाम पूछा... लेकिन मैने उन्हें नाम नहीं बताया, कहा कि गुवाहाटी जा रहा हूं । उन्होंने  फिर दोहराया मैं तो आपका नाम जानना चाहता था, मैने फिर गुवाहाटी ही बताया। उनका चेहरा सख्त पड़ने लगा,  तो मैने उन्हें बताया कि मैं थोडा कम सुनता हूं और हां अंग्रेजी तो बिल्कुल नहीं जानता। अब उनका चेहरा देखने लायक था । बहरहाल दो बार गुवाहाटी बताने पर उन्हें मेरा नाम जानने में कोई इंट्रेस्ट नहीं रह गया । लेकिन कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा कि आप काम क्या करते हैं। मैने कहा दूध बेचता हूं। दूध बेचते हैं ? वो  घबरा से गए, मैने कहा क्यों ? दूध बेचना गलत है क्या ?  नहीं नहीं  गलत नहीं है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप क्या कह रहे हैं। उन्होंने फिर कहा  मतलब आपकी डेयरी है ? मैने कहा बिल्कुल नहीं  दो भैंस हैं, दोनो से 12 किलो दूध होता है, 2 किलो घर के इस्तेमाल के लिए रखते हैं और बाकी बेच देता हूं।

पूछने लगे गुवाहाटी क्यों जा रहे हैं.. मैने कहा कि एक भैंस और खरीदने का इरादा है, जा रहा हूं माता कामाख्या देवी का आशीर्वाद लेने। मित्रों इसके बाद तो उन सज्जन के यात्रा की ऐसी बाट लगी कि मैं क्या बताऊं। दो घंटे की उडान के दौरान बेचारे अपनी सीट में ऐसा सिमटे रहे कि कहीं वो हमसे छू ना जाएं । उनकी मानसिकता मैं समझ रहा  था । उन्हें लग रहा था कि बताओ वो एक दूध बेचने वाले के साथ सफर कर रहे हैं। इसे  अंग्रेजी भी  नहीं आती है, ठेठ हिंदी वाला गवांर है। हालत ये हो गई मित्रों की पूरी यात्रा में वो अपने दोनों हाथ समेट कर अपने पेट पर ही रखे रहे । मैं बेफिक्र था और  आराम  से सफर का लुत्फ उठा रहा था।

लेकिन मजेदार बात तो यह रही कि शादी के जिस समारोह में मुझे जाना था, वेचारे वे भी वहीं आमंत्रित थे। यूपी कैडर के एक बहुत पुराने आईपीएस वहां तैनात हैं। उनके बेटी की शादी में हम दोनों ही आमंत्रित थे। अब शादी समारोह में मैने भी शूट के अंदर अपने को  दबा रखा था, यहां मुलाकात हुई, तो बेचारे खुद में ना जाने क्यों  शर्मिंदा महसूस कर रहे थे । वैसे उनसे रहा नहीं गया और चलते-चलते उनसे हमारा परिचय भी हुआ और फिर काफी देर बात भी । वो राजस्थान कैडर के आईएएस थे, उन्होंने मुझे अपने प्रदेश में आने का न्यौता भी दिया, हालाकि  मेरी उसके  बाद से फिर बात नहीं हुई।