Sunday 29 December 2013

"आप" का समर्थन कर मुश्किल में कांग्रेस !

ज बिना लाग लपेट के एक सवाल  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना जाए कि केजरीवाल ने जितने भी आरोप आपके परिवार और पार्टी पर लगाएं है, वो सही हैं, इसलिए आपकी पार्टी उनके साथ खड़ी हैं, या फिर पार्टी में कहीं कई विचार पनप रहे हैं,  लेकिन सही फैसला लेने में मुश्किल आ रही है और आपका बीमार नेतृत्व पार्टी को अपाहिज  बना रहा है।

खैर सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना अब कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। मेरी नजर में तो आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने एक ऐसी राजनीतिक भूल की है, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। सबको पता ही है किसी भी राजनीतिक दल को दिल्ली की जनता ने बहुमत नहीं दिया, लिहाजा लोग सरकार बनाने की पहल ना करते और ना ही किसी को समर्थन का ऐलान करते ! लेकिन कांग्रेस के मूर्ख सलाहकारों को लगा कि अगर वो आप को समर्थन का ऐलान करती है, तो ऐसा करके वो दिल्ली की जनता के दिल मे जगह बना लेगी और केजरीवाल जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पाएंगे, लिहाजा वो जनता का विश्वास खो देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। इधर पहले तो केजरीवाल समर्थन लेने से इनकार करते रहे और कहाकि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। इस पर कांग्रेसी दो कदम आगे आ गए और कहने लगे की उनका समर्थन बिना शर्त है, सरकार बनाकर दिखाएं।

अब कांग्रेसियों की करतूतों से केजरीवाल क्या देश की जनता वाकिफ है, सब जानते हैं कि इन पर आसानी से भरोसा करना मूर्खता है। लिहाजा केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो जनता से पूछ कर इसका फैसला करेंगे। इस ऐलान के साथ केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच निकल गए, और जनता की सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया। हर सभा में ऐलान करते रहे कि सरकार बनाते ही सबसे पहला काम भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे और दोषी हुई तो शीला दीक्षित तक को जेल भेजेंगे। आप पार्टी ने कांग्रेस पर हमला जारी रखा, लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि वो केजरीवाल को बेनकाब कर देंगे, इसलिए समर्थन देने के फैसले पर अडिग रहे। मैने तो पहली दफा देखा कि जिसके समर्थन से कोई दल सरकार बनाने जा रहा है वो उसके नेताओं को गाली सरेआम गाली दे रहा है और पार्टी कह रही है कि नहीं सब ठीक है। वैसे अंदर की बात तो ये भी है कांग्रेस में एक तपका ऐसा है जो पूर्व  मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोधी है, उसे लग रहा है कि केजरीवाल जब जांच पड़ताल शुरू करेंगे तो शीला की असलियत सामने आ जाएगी।

केजरीवाल ने शपथ लेने से पहले कांग्रेस को इतना घेर दिया है कि अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। शपथ लेने के दौरान भी केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वो किसी से समर्थन की गुजारिश नहीं करेंगे। बहुमत मिला तो सरकार चला कर जनता की सेवा वरना जनता के बीच रहकर उसकी सेवा। अब कांग्रेस के गले मे ये हड्डी ऐसी फंसी है कि ना उगलते बन रहा है ना ही निगलते बन रहा है। अगर कांग्रेस समर्थन वापसी का ऐलान करती है तो उसकी दिल्ली में भारी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। बता रहे हैं कि इस सामान्य मसले को पेंचीदा बनाने के बाद अब कांग्रेसी 10 जनपथ की ओर देख रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि 10 जनपथ में तमाम जानकार बैठे हैं, जो मुद्दे का हल निकाल देंगे। बहरहाल शपथग्रहण के बाद से जो माहौल बना है, उससे दो बातें सामने हैं। एक तो दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा, दूसरा दिल्ली में आराजक राजनीति की शुरुआत  हो गई है।

वैसे आप कहेंगे कि सोनिया गांधी से सवाल पूछना आसान है, लेकिन किसी मुद्दे का समाधान देना मुश्किल है। मैं समाधान दे रहा हूं। एक टीवी  न्यूज चैनल के स्टिंग आँपरेशन में पार्टी के पांच विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हट कर बयान दिया और केजरीवाल को  पागल तक बताया। कांग्रेस आलाकमान को इस मामले को तत्काल गंभीरता से लेते हुए अपने पांचो विधायकों को पार्टी से निलंबित कर उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इससे दिल्ली की जनता में ये संदेश जाएगा कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अरविंद की आलोचना करने पर इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उधर विधायक दल बदल कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे।   



Friday 27 December 2013

ईमानदार ही नहीं गंभीर भी हो सरकार !

बहुत बुलंद फजाँ में तेरी पतंग सही,
मगर ये सोच जरा डोर किसके हाथ में है ।

मुझे लगता है कि इन दो लाइनों से अरविंद केजरीवाल को समझ लेना चाहिए कि उनके बारे में आम जनता की राय क्या है ? हम सब जानते हैं कि केजरीवाल ने अन्ना के मंच से जोर शोर से दावा किया था कि कभी राजनीति में नहीं जाऊंगा, पर राजनीति में आ गए। राजनीति में आने के लिए इस कदर उतावले रहे कि उन्होंने अन्ना को भी किनारे कर दिया। यहां तक आंदोलन में उनकी सहयोगी देश की पहली महिला आईपीएस अफसर किरण बेदी से भी नाता तोड़ लिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, बाद में
बच्चे की कसम खाई कि ना बीजेपी और कांग्रेस से समर्थन लूंगा और ना ही दूंगा, ये भी बात झूठी निकली, कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने जा रहे हैं। कह रहे थे कि सरकार में आते ही दिल्ली में रामराज ला दूंगा, अब कह रहे हैं कि हमारे हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है। बहरहाल जैसा दूसरे दलों में मंत्री पद के लालची होते हैं, वो चेहरा केजरीवाल की पार्टी में भी दिखाई दिया। उनकी पार्टी का एक विधायक मंत्री ना बनाए जाने से नाराज हो गया, महज नाराज होता तो भी गनीमत थी, वो तो कहने लगा कि प्रेस कान्फ्रेंस करके केजरीवाल की पोल खोल दूंगा। खैर रात भर मेहनत करके उस विधायक को मना तो लिया गया, लेकिन ये सवाल जनता में जरूर रह गया कि आखिर ये विधायक अरविंद केजरीवाल की कौन सी पोल खोलने की धमकी दे रहा था।


केजरीवाल कहते रहे कि सरकार बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी को निभानी चाहिए थी, क्योंकि उनके पास 32 विधायक हैं। अरे भाई केजरीवाल साहब वो सरकार बना लेते, पहले आप कहते तो कि " मैं बीजेपी को समर्थन देने को तैयार हूं"। जब बीजेपी को कोई समर्थन नहीं दे रहा है, तो उनकी सरकार भला कैसे बन सकती थी ? आप रोजना उनकी आलोचना कर रहे हैं, मैं पूछता हूं कि आप तो इन राजनीतिज्ञों से हट कर हैं, आपको तो कुर्सी की कोई लालच भी नहीं है, आप हमेशा कहते रहे हैं कि अगर सरकार जन लोकपाल लाने का वादा करे, तो वो चुनाव के मैदान से भी हट जाएंगे। मेरा सवाल है कि आपने खुद शर्तों के साथ समर्थन देने की पहल क्यों नहीं की ? भाई केजरीवाल साहब समर्थन देने के मामले में तो आप ये कहते हैं कि उनका जनता से वादा है कि किसी को समर्थन नहीं दूंगा। मित्र केजरीवाल जनता से तो आपका ये भी वादा था कि किसी से समर्थन लूंगा भी नहीं, फिर ये वादा तो आपने तोड़ दिया। उस कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना रहे हैं, जिससे चुनाव में आपकी सीधी लड़ाई थी, जिसके खिलाफ जनता ने आपको वोट दिया।


कांग्रेस  से जनता कितनी त्रस्त थी, ये बताने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आपको  भी ये उम्मीद नहीं थी कि उनकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी चुनाव में हार जाएंगी। ईमानदारी की बात तो ये है कि आप को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि आप चुनाव जीत सकते हैं। लेकिन जनता का गुस्सा ऐसा था कि कांग्रेस  के तमाम दिग्गजों को चुनाव हरा दिया। अब जिनको आप गाली देते रहे, उन्हीं की मदद से कुर्सी पर बैठ रहे हैं। वैसे तो आप पहले कुर्सी संभालिए, फिर जनता देखेगी कि कांग्रेस के बारे में आप की अब क्या राय है ? कांग्रेस के जिन मंत्रियों को आप गाली देते रहे, जिन पर गंभीर आरोप थे, जब आप विधानसभा में बहुमत साबित करेंगे तो वो आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे। चलिए एक आखिर बात कहकर इस विषय को यहीं खत्म करते हैं। चुनाव के दौरान 20 करोड़ रुपये चंदा आ गया तो आप ने कहाकि अब आपको पैसे की जरूरत नहीं है, लोग चंदा ना दें। यहां आप नैतिकता की बात कर रहे थे। अब विधानसभा में संख्या कम हो गई तो वही चोर, उचक्के, भ्रष्ट (ये सब  आप कहते रहे हैं) उनका साथ लेने से आपको कोई परहेज नहीं है। भाई अब नैतिकता की बात कभी मत कीजिएगा.. आपके मुंह से ये शब्द सुनना बेईमानी है।


पगलाई इलेक्ट्रानिक मीडिया टीआरपी के चक्कर में आपके आस पास चिपकी हुई है। दिन भर में आप और आपकी टीम भी कई बार कैमरे के सामने आती है। एक बार कहते हैं कि लाल बत्ती नहीं लूंगा, दो घंटे बाद फिर बाहर आते हैं अब कहते हैं गाड़ी नहीं लूंगा। केजरीवाल साहब लालबत्ती नहीं लूंगा का मतलब ही ये है कि आप गाड़ी भी नहीं लेगें। अब बताइये गाड़ी नहीं लेगें तो क्या लाल बत्ती हाथ में लेकर चलेंगे ? बात यहीं खत्म नहीं हुई, मीडिया में आप छाये रहें इसके लिए कुछ चाहिए ना.. इसलिए कुछ देर बाद आप फिर कैमरे के सामने आए और कहा कि शपथ लेने मेट्रो से जाएंगे। चलिए जनता  को मालूम हो आपकी हकीकत, इसलिए बताना जरूरी है कि रामलीला मैदान तक मेट्रो नही जाती है, ऐसे में केजरीवाल मैट्रो से बाराखंभा रोड तक मेट्रो से आएंगे, उसके बाद अपनी कार से रामलीला मैदान जाएंगे। आपकी कार बाराखंभा रोड पर तो रहती नहीं है, मतलब ये कि आप कार को घर से बाराखंभा तक खाली भेजेंगे, फिर यहां से उस पर सवार होंगे। ऐसे में मेरा सवाल है कि आप इस कार पर घर से ही क्यों नहीं सवार हो जाते ? ये हलकी  फुलकी  बातों से सरकार नहीं चलती केजरीवाल साहब ! ये सब करके आप  दिल्ली और मेट्रो यात्रियों को केवल डिस्टर्ब ही करेंगे। शहर में आराजकता के हालात पैदा करेंगे।


केजरीवाल कितने दिनों से गिना रहे हैं कि वो आटो पर चलेगे, मेट्रो का सफर  करेंगे, लाल बत्ती नहीं लेगें, बंगला और गाड़ी नहीं लेगें। आपने कभी गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर के मुंह से ये सब सुना है। वो काफी समय से गोवा के मुख्यमंत्री हैं। उनके पास भी  सरकारी गाड़ी, बंगला, लालबत्ती कुछ नहीं है। स्कूटी से दफ्तर जाते हैं, कई बार तो रास्ते में खड़े होकर किसी से  लिफ्ट लेते भी दिखाई दे जाते  हैं। और  हां केजरीवाल की पत्नी तो लालबत्ती की गाडी में ऑफिस जाती है जबकि गोवा के CM की पत्नी आज भी रिक्शे में बैठकर बाजार से खुद सामान लाती हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता  बनर्जी को ही ले लीजिए। रेलमंत्री रहने के दौरान कभी वो दिल्ली में लालबत्ती की कार पर नहीं चढ़ीं, मंत्रालय में अपनी टूटही जेन कार पर सवार होकर जाती हैं और सूती साड़ी के साथ हवाई चप्पल पहनती हैं। एक बार ममता ने देखा कि एक स्कूटर सवार सड़क पर अचानक गिर पड़ा , तो वो अपने कार से उतरी और घायल  को उसी कार से अस्पताल भेज दिया और खुद आटो लेकर संसद गईं। लेकिन उन्होने अपने मुंह से ये सब कभी नहीं कहा।


त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार भी साफ छवि वाले राजनेता हैं। गरीबी में पले-बढ़े माणिक सरकार की कुल चल और अचल संपति ढाई लाख रुपए से भी कम आंकी गई है। चुनाव आयोग को सौंपे शपथ पत्र के अनुसार, 64 साल के माणिक सरकार के पास 1,080 रुपए कैश और बैंक में 9,720 रुपए हैं। केजरीवाल तो फिर भी लाखों  रूपये के मालिक हैं। माणिक तो अपनी सैलरी और भत्ते भी पार्टी फंड में देते हैं। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी सादगी पसंद इंसान हैं। वह किराये के सरकारी मकान में रहते हैं। चुनाव आयोग को सौंपे शपथ पत्र में उन्होंने जानकारी दी थी कि उनके पास न ही कोई मकान है और न ही गाड़ी। कैश के नाम पर उनके पास केवल पांच हजार रुपए हैं। ऐसा नहीं  है कि गाड़ी, बंगला ना लेने वाले आप कोई पहले नेता हैं, बहुत सारे लोग ऐसे रहे हैं।  लेकिन हां आप इस मामले में जरूर पहले नेता हैं जो अपने मुंह से पूरे दिन मीडिया के सामने गाते रहते हैं कि मैं ये नहीं लूंगा वो नहीं लूंगा। दूसरे नेताओं ने कभी अपने मुंह से कहा नहीं।


खैर आप मुख्यमंत्री बनिए, हमारी  भी शुभकामनाएं हैं। हम भी चाहते हैं कि दिल्ली मे एक ईमानदार सरकार  ही न हो, बल्कि वो ईमानदारी से काम भी करे। लेकिन जिस सरकार की बुनियाद में बेईमान हों, उससे बहुत ज्यादा ईमानदारी की उम्मीद रखना, मेरे ख्याल से  बेईमानी होगी। मैं चाहता हूं कि दिल्ली में ना सिर्फ एक ईमानदार बल्कि गंभीर सरकार होनी  चाहिए। दिल्ली की सड़कों पर जिस तरह से टोपी लगाए गुमराह नौजवान घूम रहे हैं, इन्हें आपको ही नियंत्रित करना होगा, वरना कल ये आपके लिए ही सबसे बड़ा खतरा  बन जाएंगे।




Thursday 12 December 2013

कुर्सी से भाग रहे हैं केजरीवाल !

पको ऐसा नहीं लग रहा कि केजरीवाल अब कुछ ज्यादा बोल रहे हैं ? इन दिनों उनमें कुछ ज्यादा ही अहम दिखाई दे रहा है। उनके बयानों से लगता है कि या तो वो दिल्ली की  जनता को मुर्ख समझ रहे हैं या फिर एक साजिश के तहत मूर्खता कर रहे हैं। उन्होंने जीत के जश्न में कहाकि भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने से डर रही है। ये बात केजरीवाल किस आधार पर कर रहे हैं, ये तो वही बता सकते हैं, क्योंकि दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जो जरूरी संख्या है, वो किसी के पास  नहीं है। आइए पहले मैं आपको विधानसभा का गणित समझा दूं। दिल्ली की 70 विधान सभा सीट में बहुमत के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए। बीजेपी के पास महज 32 ही विधायक हैं, आप के पास 28 और कांग्रेस के पास 8 जबकि दो अन्य सदस्य हैं। बीजेपी को कांग्रेस और आप दोनों ने ही समर्थन देने से इनकार कर दिया है, फिर कैसे बन सकती है सरकार ? अब इसका जवाब तो केजरीवाल के पास ही होगा।

बीजेपी को अगर सरकार बनानी है तो उसे कम से कम चार विधायकों का समर्थन जुटाना होगा। माना की बीजेपी बहुत कोशिश करेगी तो जो अन्य दो सदस्य जीते हैं, उनका समर्थन हासिल कर सकती है, लेकिन बाकी दो विधायक कहां से आएंगे, ये मैं केजरीवाल से ही पूछना चाहता हूं। समर्थन जुटाने के लिए अगर बीजेपी दूसरी पार्टियों यानि कांग्रेस या आप  को तोड़ने की कोशिश करे तो उसे दो तिहाई सदस्यों को तोड़ना होगा। मसलन कांग्रेस के 8 विधायकों में जब तक छह लोग एक साथ पार्टी से विद्रोह नहीं करेंगे, वो कांग्रेस से अलग नहीं हो सकते। इसी तरह अगर केजरीवाल की पार्टी आप को तोड़ना हो तो उसके 28 सदस्यों में दो तिहाई का मतलब 19 विधायकों को पार्टी में विद्रोह करना होगा। अब केजरीवाल ही बताएं कि उनके 19 विधायकों को क्या बीजेपी तोड़ सकती है ? या फिर वो ये कहना चाहते हैं कि कांग्रेस के 6 विधायक आसानी से बीजेपी को समर्थन दे देंगे ? इन हालातों में बीजेपी सरकार बनाने के लिए भला कैसे आगे आ सकती है ?

दिल्ली का जो गणित है, उसके आधार पर बीजेपी कैसे सरकार बना सकती है जो वो नहीं बना रही है ? ये बात दिल्ली की जनता को अरविंद केजरीवाल ही समझा दें। क्या उन्हें ये लगता है कि उनकी पार्टी या फिर कांग्रेस के लोग टूटने के लिए बेकरार हैं, लेकिन बीजेपी नहीं तोड़ रही है ? ऐसे में बीजेपी की सरकार तो बनने से रही। बात कांग्रेस की करें, तो  उसकी सरकार किसी सूरत में नहीं बन सकती। उनके पास महज आठ सदस्य हैं, बीजेपी उसे समर्थन दे नहीं सकती, और केजरीवाल ने समर्थन देने से इनकार कर दिया है। इन हालातों में बाकी कौन बचता है ? बाकी बचते हैं, केजरीवाल और उनकी पार्टी आप ।

अब आप कहेंगे कि आप क्यों सरकार बनाए ? दरअसल कांग्रेस विधायक दल की बैठक में तय हुआ है कि वो केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार हैं। अगर कांग्रेस बिना शर्त समर्थन दे रही है तो केजरीवाल साहब आप सरकार बनाने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं ? राजनीति में सहयोग और समर्थन जरूरी है। वरना तो कोई भी सरकार नहीं चल सकती। जनता ये भी जानना चाहती है कि बिना शर्त समर्थन लेने से आप क्यों भाग रहे हैं ? अब अगर मैं आपसे कहूं कि आप सरकार  बनाने से खुद डर रहे हैं, क्योकि जब आपके हाथ में माइक होता तो आप क्या बोल रहे हैं, उस पर तो नियंत्रण है नहीं, कुछ भी बोलते हैं। लंबे चौडे जो वादे आपने जनता के सामने किए हैं, उसे भी पूरा करना होगा, वरना अगले चुनाव में जनता आपका हिसाब पूरा कर देगी।

केजरीवाल साहब मुख्यमंत्री बनिए, दिल्ली की जनता चाहती है कि आप मुख्यमंत्री बनें और बिजली दरों को आधी कर दें। आपका सबसे बड़ा मुद्दा ही ये रहा है कि सरकार बनते ही बिजली दरों को आधी करेंगे। अब वक्त आ गया है, दिल्ली में कम दर पर बिजली मिलने का। लेकिन अंदर की बात ये है कि आप बिजली दरों को जैसे ही आधी करने को कहेंगे, बिजली कंपनियां दिल्ली को अंधेरे में छोड़ कर दूसरे राज्य को चली जाएंगी। उसके बाद पड़ने वाली गाली से बचने के लिए यही अच्छा है कि आप कुर्सी से दूर रहें और साजिश के तहत आप कुर्सी पर नहीं बैठ रहे हैं। वैसे मौका है आपको दूसरे वादे भी याद दिला ही दूं, वरना नेताओं का क्या है, उनकी याददास्त बहुत कमजोर होती है।

भाई केजरीवाल जी सरकार बनाकर ही आप आधी दर पर बिजली देने के अलावा, 700 लीटर मुफ्त पानी, सभी गैरकानूनी कॉलोनियों को रेगुलराइज, मुस्लिम युवाओं पर लगे फर्जी मुकदमे वापस, सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी और ओबीसी का रिजर्वेशन सख्ती से लागू करने और बैकलॉग वैकेंसी भरने, करप्शन करने वाले लोकसेवक को नौकरी से निकालने, जेल भेजने और संपत्ति जब्त करने, दिल्ली के तमाम सफाई कर्मचारियों और ड्राइवरों को पर्मानेंट करने, उर्दू और पंजाबी भाषा की हैसियत बढ़ाने जैसे कदम उठा पाएंगे। चुनाव के दौरान जिस तरह आपने जनता को भरोसा दिया था, उससे लग रहा था कि सारे नेता, अफसर, कर्मचारी चोर हैं, उनमें ईमानदारी से काम करने की क्षमता नहीं है, इसीलिए सारी चीजें मंहगी है। लेकिन मैं जानता हूं कि आप सिर्फ कीचड़ उछालना जानते हैं, कोई विजन या क्षमता नहीं है आपमें जिससे मुश्किल आसान हो।

आखिर में एक बात और कहना चाहूंगा कि जिस तरह से आज एक गुमराह युवा वर्ग सफेद टोपी पहन कर सार्वजनिक स्थानों पर गुंडागर्दी कर रहा है, उससे इतना तो साफ है कि इनके खिलाफ अगर शुरू में ही सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले समय में देश में एक खतरनाक आराजक राजनीति की शुरूआत होगी। वैसे तो देश की राजनीति में पहले ही गुंडे बदमाश हावी रहे हैं। हर पार्टी इन बदमाशों, हिस्ट्रीशीटरों को गले लगाती रही है, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम रही है, जिससे समय-समय पर उन्हें जेल भी भेजा गया। लेकिन ये संगठित आराजक तत्व आसानी से कब्जे में नहीं आने वाले हैं। वैसे एक बात और , अगर केजरीवाल सरकार में आते हैं, तो जरा उनके विधायकों की शैक्षिक योग्यता तो देख लीजिए...


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Wednesday 4 December 2013

आसाराम का भी बाप है नारायण साईं !

इये आज एक बार फिर बात बाबाओं के बलात्कार पर मचे बवाल की करते हैं। आसाराम की करतूतें सामने आ चुकी हैं, बाबा की जो करतूतें है उससे लग नहीं रहा है कि इसके बाल इसकी उम्र की वजह से सफेद हैं। लग रहा कि अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए इसने अपने दाढ़ी-बाल खुद सफेद किया है। खैर भगोड़ा घोषित हो चुका इसका बेटा नारायण साईं के भी पाप का घड़ा भर गया, देर रात ये भी आखिर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। पकडे़ जाने के दौरान नारायण सिख के वेष में था। इसने पिंक कलर की पगड़ी बांध रखी थी और जींस- टीशर्ट पहने हुए था। पकड़े जाने के बाद उसे इस बात की शर्म नहीं थी कि वो बलात्कार का आरोपी है, उसे इस बात पर शर्म थी कि अगर लोगों ने उसे जींस-टीशर्ट में देख लिया तो आगे बाबागिरी की दुकान का क्या होगा ? लिहाजा वो पुलिस वालों से गिड़गिड़ाने लगा कि पहले उसे धोती- कुर्ता पहन लेने दो, फिर गिरफ्तार करो। बहरहाल रात में तो पुलिस ने उसे कपड़े बदलने की छूट नहीं दी, लेकिन सुबह पुलिस ने उसे फिर बाबा बना दिया। कहावत है ना बाप एक नंबरी तो बेटा दस नंबरी। ये कहावत इस बाप-बेटे पर सटीक बैठती है, क्योंकि आसाराम का बाप है नारायण साईं...

अगर मैं नारायण साई को आसाराम का बाप बता रहा हूं तो इसके पीछे खास वजह है। इन दोनों के यौन उत्पीड़न को लेकर तो रोजाना नए - नए खुलासे होते ही रहते थे, लेकिन सबसे चौकाने वाली बात ये कि नारायण साईं दो-दो नाजायज औलाद का बाप है। मेरा मानना है कि कोई महिला आमतौर पर बच्चों के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकती। महिला का आरोप है कि साईं उसके साथ दुराचार करता रहा है और ये संतान भी उसी की है। महिला ने यह भी दावा किया कि साईं केवल उसके ही संतानों का पिता नहीं है, बल्कि वह एक अन्य सेविका की बेटी का भी पिता है। यह लड़की अभी अहमदाबाद में रह रही है। इतना ही नहीं नारायण साईं को मैं इसलिए भी आसाराम का बाप बता रहा हूं, क्योंकि ये अपने ही बाप की अश्लील सीडी बनाने की फिराक में था। साईं चाहता था कि आसाराम की कई महिलाओं के साथ सीडी बना ली जाए और फिर उसे ही संपत्ति से बेदखल कर पूरे राज पर कब्जा जमा ले। आपको पता है ये नारायण साईं अपने आश्रम की लड़कियों के साथ कृष्ण लीला करता था और वह लड़कियों के साथ नहाता था। इसे वह अपनी रासलीला कहता था। सूरत की जिस महिला ने साईं के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया था, उसी ने यह सनसनीखेज आरोप एक समाचार चैनल से बातचीत में लगाया है।

बहरहाल दोनों ही कुकर्मियों के पाप का घड़ा भर चुका था, लिहाजा दोनों की धोती खुल गई। बाप एकांतवास और बीमारी के इलाज नाम महिलाओं का शोषण करता रहा और बेटे का तो भगवान ही मालिक है। आमतौर पर स्मगलर कोडवर्ड में बातचीत करते हैं,  जिससे वो कभी धरे ना जाएं। लेकिन यहां तो नारायण साईं भी लड़कियों के मामले में कोडवर्ड में बात करता था। कोडवर्ड जानना चाहते हैं ? हां क्यों नहीं जानना चाहेंगे, आपको भी तो अय्यास बाबाओं की स्टोरी चटखारे लेकर पढ़ने में मजा आ रहा है। तो सुनिए कोडवर्ड.....जो लड़की एक बार आश्रम की चारदीवारी के अंदर पहुंच गई उसके बाद उसका बाहर आ पाना मुश्किल हो जाता है। आश्रम में लड़कियों को लाने और ले जाने के लिए कुछ खास कोडवर्ड् का इस्तेमाल किया जाता था।  मसलन जब नारायण साईं के लिए कोई नई लड़की पेश की जाती थी तो उसके लिए कहा जाता था `लाल तिलक लगा लिया है`। जब आश्रम में पहले से मौजूद किसी लड़की को नारायण साईं के पास दोबारा भेजा जाता था तो कहा जाता था ` चंदन का तिलक लगा लिया है `। जब नारायण साईं के पास पेश करने के लिए लड़कियों को तैयार कर लिया जाता था तो कहा जाता था` भगवान का भोग तैयार हो गया है`। जब किसी लड़की को आश्रम में रोकने का फरमान जारी करना होता था तो कहा जाता था ` तिलक मिटने न पाए, मुंह मत धोना`। जांच में ये भी पता चला है कि आश्रमों में लड़कियों को डराया धमकाया जाता था और नारायण साईं के पास जाने के लिए मजबूर किया। तफ्तीश में ये भी साफ हो चुका है कि आश्रम में काम करने वालों को नारायण साईं की काली करतूतों की पूरी जानकारी थी ।

वैसे आसाराम जैसे का बेटा नारायण ही होना चाहिए । कहा जाता है ना कि जैसा बाप वैसा बेटा । नारायण साईं से जुड़े अब तक जितने भी खुलासे हुए हैं, उनसे एक बात तो साफ हो चुकी है कि बेटा अपने बाप से किसी भी मामले में कम नहीं है। आश्रमों में होने वाली हर काली करतूत को बाप बेटे की ये जोड़ी मिलजुलकर अंजाम देती रही है, और आश्रम के सेवादार और सेविकाएं इनके गलत काम में उनका भरपूर साथ देते रहे हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि नारायण साईं भी अपने बाप आसाराम के पदचिह्नों पर चल रहा था । बाप-बेटे की इस जोड़ी ने देश भर में फैले अलग-अलग आश्रमों में सेविकाओं के नाम पर 50 से ज्यादा महिलाओं को रखा हुआ था, इन सेविकाओं में कई नारायाण साईं की बेहद खास थीं,  आरोप तो ये भी है कि आश्रम की कई सेविकाएं ही नारायण साईं के लिए लड़कियां मुहैया कराती रही हैं। मासूम लड़कियों को आस्था, भक्ति और इलाज के नाम पर अपने जाल में फंसाया जाता था और फिर उन्हें आसाराम और नारायण साईं के पास भेज दिया जाता था। अब नारायण साईं के पकड़े जाने के बाद पुलिस को उम्मीद है कि इन दोनों की काली करतूतों के और मामले भी सामने आएंगे।

आइये इस नारायण साईं की गिरफ्तारी पर भी थोड़ी चर्चा कर ली जाए। 58 दिन से ये पुलिस की आंख में धूल झोंककर गिरफ्तारी से बचता रहा है। लेकिन यौन उत्पीड़न का ये आरोपी आखिर में पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। दिल्‍ली और सूरत पुलिस की टीम ने मंगलवार देर रात नारायण साईं को कुरुक्षेत्र के पास पीपली से गिरफ्तार किया। नारायण साईं के साथ उसके सहयोगी हनुमान, भाविका, विष्‍णु और रमेश भी पुलिस के  हत्थे चढ़ गए। साईं को दिल्‍ली लाया गया, जहां उससे पूरे दिन क्राइम ब्रांच ने खूब पूछताछ की। पुलिस को साईं ने बताया कि उसके सलाहकार ही छिपने को कह रहे थे, इसलिए वो इधर-उधर भागता रहा। साईं ने यह भी बताया कि वह छिपने के क्रम में यूपी के आगरा और बिहार के सीतामढ़ी भी गया था। बताते हैं कि गिरफ्तारी के पहले उसे अंदेशा हो गया था कि वो पुलिस से घिर चुका है। इसलिए उसने भागने की भी कोशिश की। साईं जिस मकान में छिपा  था उसके आसपास के सभी रास्‍तों पर पुलिस ने पहले ही बैरीकेडिंग कर रखी थी। फिर भी उसकी हिम्मत देखिए , वो एक  एसयूवी में बैठकर वहां से निकल भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन तब तक पुलिस ने अपना हाथ उसके गले पर जकड़ दिया। इस ऑपरेशन में करीब 60 पुलिसवाले थे जिनकी अगुवाई दिल्‍ली पुलिस के डीसीपी कर रहे थे।

आपको  पता है कि पुलिस से बचने के लिए नारायण साईं ने क्या क्या नहीं किया। उसके पास से कई मोबाइल फोन के साथ ही लगभग 120 सिम बरामद किए गए। बहरहाल नारायण साईं ने जितनी अय्य़ाशी की, आज सब निकल गई है। अब पुलिस ने इसे दिल्ली कोर्ट में पेश किया है, इसके बाद इसे गुजरात पुलिस ट्रांजिट रिमांड लेकर गुजरात ले जाएगी। वैसे कुछ दिन तो नारायण भी सुर्खियों  में रहेगा, क्योंकि इसकी अय्य़ाशी से जुड़ी खबरें जो सामने आती  रहेंगी। हां आखिर में ये बात जरूर बताना चाहूंगा कि पुलिस जब इसके  डाक्टरी जांच के लिए अस्पताल या फिर कोर्ट में पेश करने के लिए ले गई, तो इसके  चेहरे पर दो पैसे की शर्म-लिहाज नहीं दिखा। हंसता हुआ ये कोर्ट में रुम दाखिल हुआ, बाहर निकलने के दौरान तो ये जिस तरह दोनों हाथ  ऊपर उठाकर लोगों का  अभिवादन स्वीकार कर रहा था, लगा ही नहीं कि ये यौन उत्पीड़न का आरोपी है।