खुशी का मौका हो और आप वहां मौंजूद ना हों, मुझे लगता है आप सबको इसका अहसास होगा। कल यानि नौ दिसंबर को मेरे भांजे की शादी थी, बढिया रही। लेकिन मैं वहां शामिल नहीं हो पाया, अब कल 11 दिसंबर को शादी का रिशेप्सन है, लेकिन मैं वहां नहीं पहुंच पा रहा हूं। अच्छा बात सिर्फ इतनी सी नहीं है, बल्कि 18 साल पहले कल के ही दिन यानि 11 दिसंबर को मैं भी विवाह के सामाजिक बंधन में बंधा था, तब से कभी ऐसा नहीं हुआ कि 11 दिसंबर को हम साथ ना रहे हों। अच्छा शादी की सालगिरह पर हमेशा ही घर पर मैडम के साथ रहा हूं तो मुझे कभी आभास ही नहीं हुआ कि इस दिन अलग अलग रहना पड़े तो आप कैसे रहते हैं। ईमानदारी से बताऊं, बागवान पिक्चर के कुछ दृश्य सामने से गुजर रहे हैं। एक बात और मैडम की शादी 11 दिसंबर को हुई, अगले ही दिन यानि 12 दिसंबर को उनका जन्मदिन है। हम बहुत पहले से बात कर रहे थे कि इस बार खास जन्मदिन है, जो फिर नहीं आने वाला है, मसलन 12-12-12, अब क्या कहूं। खैर गुजरात चुनाव का काम अब अंतिम चरण में है, हम वापस दिल्ली पहुंच कर खूब मस्ती करने वाले हैं। आपको भी ज्यादा बोर नहीं करना चाहता, आप जरा इस लेख पर दोबारा गौर कीजिए, सीधी सच्ची बात।
मौका खुशी का है, सोच रहा हूं कि आज अपने ब्लाग परिवार से खुल कर बातें करूं। आमतौर पर हमेशा दूसरों की बातें करता रहा हूं, लेकिन आज सिर्फ अपनी ही करुंगा। हां ये बता दूं कि जो बातें मैं आज करुंगा उसे आप आधा सच कत्तई न समझे, ये सच में पूरा सच है। मित्रों कल सुबह यानि 11 दिसंबर मेरे लिए क्या परिवार के लिए खास दिन है, क्योंकि 18 साल पहले आज ही के दिन लखनऊ में हम विवाह बंधन में बंध गए थे। 18 साल पीछे मुड़ कर देखता हूं तो लगता ही नहीं कि हम कितना सफर तय कर चुके हैं, सच कहूं तो लगता है कि सब कुछ कल ही की तो बात है।
जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिसे भुलाना आसान नहीं है। आपको ईमानदारी से बताता हूं कि मेरी शादी जिस दौर में हुई, उस समय किसी भी माता-पिता को अपनी बेटी की शादी किसी पत्रकार से करने में वो खुशी नहीं होती थी, जो खुशी उन्हें सरकारी महकमें के बाबू से करने में मिलती थी। या ये कह लें कि हाईस्कूल के बाद पालिटेक्नीक किया लड़का जो जेई हो जाता था, या फिर हाईस्कूल पास रेलवे में टिकट कलेक्टर बन जाते थे, पत्रकारों के मुकाबले लड़की वाले जेई और टीसी को ज्यादा बेहतर मानते थे। एक वाकया बताता हूं। 1991-92 में लोग मेरी शादी के लिए घर आने लगे थे। एक साहब वाराणसी से मेरी शादी के लिए पापा के पास आए, बातचीत शुरू हुई। उन्होंने पहला ही सवाल पापा से पूछ लिया " जी लड़का करता क्या है ? पापा ने जवाब दिया कि जर्नलिस्ट है। वो बोले ये तो ठीक है, पर करता क्या है ? मतलब आप समझ गए ना। दरअसल उस दौर में पत्रकारिता यानि जर्नलिज्म को कुछ करना माना ही नहीं जाता था। लोगों को ये भी पता नहीं था कि भाई पत्रकार भी नौकरी करते हैं और उन्हें भी हर महीने वेतन मिलता है।
हकीकत ये है कि उस दौरान लोग बहुत ज्यादा घूमने फिरने में भरोसा नहीं रखते थे, लोगो को अपने जिले और आस पास के अलावा कोई खास जानकारी भी नहीं होती थी। हमलोग मिर्जापुर के रहने वाले हैं, यहां दैनिक जागरण और आज अखबार का बोल बाला था। अब साल तो मुझे ठीक ठीक नहीं याद है, पर मुझे लगता है कि ये बात 1992 की होगी। मैं बरेली में दैनिक जागरण अखबार में उप संपादक/ संवाददाता के पद पर तैनात था। मेरी शादी भी लगभग पक्की हो चुकी थी। इसी बीच मुझे अमर उजाला अखबार में बेहतर पैकेज मिला तो मैने वहां ज्वाइन कर लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि मेरी तय हुई शादी सिर्फ इसलिए टूट गई, क्योंकि मैने अखबार बदल लिया। अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को अमर उजाला अखबार के बारे में जानकारी ही नहीं थी। उन्हें लगा कि पता नहीं किस अखबार में चला गया, दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अमर उजाला अखबार को जानते ही नहीं थे। मुझे और मेरे मित्रों को जब इस बात की जानकारी हुई तो हम बहुत हंसे..।
चलिए अब सीधे 11 दिसंबर 1994 पर आ जाते हैं। उस दौरान मैं अमर उजाला मुरादाबाद में तैनात था। हमारे ससुर जी सिचाई विभाग में इंजीनियर और सासू मां सरकारी स्कूल में टीचर। वैसे पता चला है कि ससुर जी तो मैडम की शादी की बात पहले किसी कस्टम इंस्पेक्टर से चला रहे थे। उनकी कई दौर की बात हो चुकी थी, पर शादी मंहगी पड़ रही थी। मुझे तो शादी के बाद मैडम ने ही बताया कि लड़के वालों ने सभी बारातियों के लिए अंगूठी की मांग रख दी, और इस मांग से वो पीछे नहीं हटे, लिहाजा बात आगे नहीं बढ पाई। फिर घर में सोचा गया कि चलो जर्नलिस्ट को ही टटोल लेते हैं, सस्ते में निपट जाएंगे। अब 18 साल पुरानी बात हो गई, इसलिए कोई इस बात से सहमत नहीं होगा, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरी शादी इसलिए तो बिल्कुल ही नहीं हुई कि लड़का जर्नलिस्ट है। अगर ऐसा होता तो मैं जहां काम कर रहा था, वहां एक बार कोई ना कोई ससुराल से जरूर आता। ये जानने के लिए कि अरे भाई लड़का यहां काम करता भी है या नहीं। हां एक दिन जब मैं शाम को आफिस पहुंचा तो मुझे गेटमैन ने जरूर बताया कि भाईसाहब आज एक सिचाई विभाग से कोई आदमी आया था, जो आपके बारे में बहुत जानकारी कर रहा था। मैने उसे सब बढिया बढिया बताया है। उसी ने कहाकि शायद आपकी शादी के लिए पूछताछ कर रहा होगा। वैसे ये बात तो यहीं खत्म हो गई, पर शादी के बाद पता चला कि मुरादाबाद में मेरे ससुर के एक सहायक थे, जिन्होंने मेरे बारे में प्राथमिक जानकारी उन्हें मुहैया कराई थी।
खैर मुझे तो लगता है कि वो यहां सिर्फ ये जानना चाहते होंगे, जिस लड़के से शादी के बारे में बातचीत चल रही है, वो वाकई मुरादाबाद में है भी या नहीं। इतना ही मतलब रहा होगा। मेरा मानना है कि मेरी शादी की दो वजहें थीं, एक तो ये कि मेरे जीजा जी के छोटे भाई की शादी मेरी मैडम की बड़ी बहन से हुई है। इससे दोनों परिवार एक दूसरे को ठीक ठीक जानते समझते थे। दूसरा ये कि हमारे यहां खेती बारी ठीक ठाक है। वैसे अच्छा तो ये है कि इस बात को यहीं खत्म कर दिया जाए, बेवजह मैं मैडम को नाराज नहीं करना चाहता, क्योंकि हमारे विवाह की सालगिरह 11 दिसंबर को और अगले ही दिन यानि 12 दिसंबर को मैडम का जन्मदिन भी है, बेहतर ये होगा कि सबकुछ ठीक ठाक रहे जिससे दोनों दिन हम साथ साथ कहीं बाहर जाकर डिनर कर सकें।
अच्छा फिल्मों ने भी पत्रकारों की इमेज कुछ इसी तरह की बना रखी थी। पत्रकार का नाम सुनते ही लोगों के मन में जो तस्वीर बनती थी वो बहुत डरावनी होती थी। यानि एक ऐसे युवक की जो महीनों बिना नहाए, चेहरे पर उलझी दाढ़ी़, बेतरतीब बाल, एक उद्धत हो चुकी जींस, गंदा कुर्ता, लंबा झोला और कुल्हापुरी चप्पल पहन कर साईकिल से चला जा रहा है, लेकिन उसे जाना कहां ये भी इस नौजवान को पता नहीं हैं। हां मैं ये नहीं कहता की जो तस्वीर बनाई गई थी वो गलत थी, सच्चाई ये थी कि जींस और कुर्ते में हम खुद को कम्फरटेबिल समझते थे। दरअसल कल और आज में फर्क भी बहुत है। उस दौर में पत्रकारों को पड़ी लकड़ी उठाने की आदत होती थी। यानि हम अगर सरकारी अस्पताल पहुंच गए और देख लिया कि कोई मरीज कराह रहा है और उसे देखने वाला कोई नहीं है। तो हम पूरे अस्पताल की चूलें हिला दिया करते थे। एक एक्टिविस्ट की तरह हम काम करते थे, पहले मरीज के बेहतर इलाज के लिए संघर्ष करते थे फिर दफ्तर पहुंच कर रिपोर्ट लिखते थे। अब ऐसा नहीं है, अब तो पत्रकार महज रिपोर्टर बनकर रह गए हैं। वो सिर्फ रिपोर्ट लिखते हैं। आज हालत और सोच इतनी बदतर हो गई है कि दुर्घटना के बाद घायल अस्पताल में पहुंचते हैं, आफिस अपने रिपोर्टर से घायलों का हाल-चाल नहीं पूछता है, बल्कि बार-बार मरने वालों की संख्या पूछी जाती है। हद तो तब हो जाती है जब रिपोर्टर से कहा जाता है कि मरने वालों का फाइनल फीगर दो, तो रिपोर्टर बेचारा क्या करे, ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर मे वहीं अस्पताल में बैठा मरने वालों की संख्या बढ़ने की दुआ करता रहता है।
वैसे आज कल तो पत्रकार भी डिजाइनर ड्रेस पहने नजर आ जाएंगे। सच बताऊं पत्रकारों का पहनाना चकाचक होने की एक बड़ी वजह महिलाएं भी हैं। मै अखबार का जिक्र नहीं करूंगा, लेकिन बताऊं कि प्रिंट में काम करने के दौरान मेरे आफिस में रिसेप्सनिस्ट के पद पर एक लड़की की तैनाती हो गई। हफ्ते भर के भीतर ही आधे से ज्यादा लोगों ने शेविंग करनी शुरू कर दी। हम पत्रकारों में नए कपड़े खरीदने का चलन ही नहीं था। हम तीन चार दोस्त एक कमरे में रहते थे, कुछ कपडे़ खरीदे जाते थे, और ये कपडे किसी एक के नहीं होते थे। जिसे जो जी में आया पहन कर निकल जाता था। पर इस लड़की ने हमें ब्रीफकेश खरीदने को मजबूर कर दिया, क्योंकि फिर सबके अपने अपने कपड़े हो गए जो ताले वाले ब्रीफकेश में रखे जाने लगे। एक बार अखबार के डायरेक्टर यानि मालिक का आना हुआ, वो लोगों का बदला हुआ ये रूप देखकर हैरान रह गए। उन्होंने मैनेजर से पूछा ये माजरा क्या है, सब के सब अप टू डेट कैसे हो गए। जवाब आया रिसेप्सन पर लड़की की तैनाती इसकी मुख्य वजह है। मैनेजर इस बात से भी परेशान थे के लोग एक बार मैनेजर से हैलो हाय भले ना करें, पर रिसेप्शन पर जरूर करते थे।
बहरहाल हमारे डायरेक्टर खुश हुए और उन्होंने सभी स्टाफ को रेमंड का कोट गिफ्ट किया, लेकिन इसके साथ ये शर्त रखी गई कि लोगों को आफिस कोट टाई में आना होगा। सभी ने कहा बिल्कुल, हम जरूर पहना करेंगे। लेकिन हमारे एक मित्र कौशल किशोर आफिस से देर रात घर के लिए निकले। कोट टाई पहने कौशल को मुहल्ले का कुत्ता पहचान नहीं पाया और काट लिया। बात मालिक तक पहुंची और कोट टाई की अनिवार्यता खत्म हो गई।
समय कैसे बदलता है, आज देखिए, जो जर्नलिस्ट कभी शादी के लिए लोगों की प्राथमिकता में नहीं थे, आज तमाम बडे बडे अफसर लाखों रुपये खर्च कर अपनी बेटी को जर्नलिज्म का कोर्स करा रहे हैं। देश में मास कम्यूनिकेशन हजारों कालेज खुल गए हैं। लगभग सभी विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता की पढाई शुरू हो गई है, मेरिट इतनी हाई है कि अच्छे संस्थान में लोगों को दाखिला नहीं मिल रहा है। अब अखबार का दफ्तर हो या फिर न्यूज चैनल, सभी जगह लड़कियों की अच्छी खासी संख्या है। सच तो ये है कि अब शादी के लिए जर्नलिस्ट भी लोगों की प्राथमिकता में आ गए हैं। बहरहाल पत्रकारों को समाज की स्वीकार्यता मिल गई, मुझे लगता है कि ये पत्रकारों की काम की वजह से हैं। बहरहाल बात बेवजह की लंबी हो गई, मैं तो बस अपनी शादी की सालगिरह को यादगार बनाने के लिए पुरानी बातों को याद करने लगा। एक एक बात याद इसीलिए है, कि मुझे लगता ही नहीं कि हमने लंबा सफर तय किया है, मेरे हिसाब से ये सब कुछ दिन पहले की बात है।
चलते - चलते
आखिर में एक बात और । अपनी शादी पर जनवासे से बारात के रवाना होने के पहले मैने बैंड बाजा के मास्टर को बुलाया और उसे समझाया कि देखो भाई मुझे दो गानों से बहुत परहेज है और आप इस बात का पूरा ध्यान रखें कि रास्ते ये गाना किसी भी कीमत पर बजना नहीं चाहिए। एक गाना है आज मेरे यार की शादी है और दूसरा ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश के यारों.......। मेरे समझाने का असर था, सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन जैसे ही बारात दरवाजे पर पहुंची और मैं कार से नीचे उतर रहा था, तभी बैंडवालों से रहा नहीं गया और ये गाना बजा ही दिया कि ये देश है वीर जवानों का.......। खैर अब मैं कुछ नहीं कर सकता था ।
बहुत बहुत शुक्रिया,
ReplyDeletekal ke liye ..........
ReplyDelete* MANY-MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY *
प्रणाम विभा दी
Deleteमहेंद्र जी ...मज़ा आ गया ! आत्मकथा में हमेशा ही लीन हो जाता हूँ पर आप तो कलम के भी धनी निकले ! कायस्थ और नौकरी की जुगलबंदी शादी में...क्या कहें बड़ा ही परेशान करती है...तो कल और परसों जश्न रहेगा कुटुंब पे .. दो दो केक का आर्डर हो जाये
ReplyDeleteमहेंद्र जी ...मज़ा आ गया ! आत्मकथा में हमेशा ही लीन हो जाता हूँ पर आप तो कलम के भी धनी निकले ! कायस्थ और नौकरी की जुगलबंदी शादी में...क्या कहें बड़ा ही परेशान करती है...तो कल और परसों जश्न रहेगा कुटुंब पे .. दो दो केक का आर्डर हो जाये
ReplyDeleteशुक्रिया भाई संदीप जी
Deleteसबका सच बताने वाले हमारे महेंद्र भाई अपने जीवन का भी बहुत सारा
ReplyDeleteयथार्थ बता दिया आज बहुत खूब ...बढ़िया लेख बहुत जगह पढ़ते हुए हंस रही थी :)
शादी की सालगिरह की आप दोनों को बहुत बहुत शुभकामनायें ...और "उनके" जन्मदिन की हार्दिक बधाई मेरी तरफ से भाई !
बहुत बहुत आभार सुमन दी
Deleteशादी की सालगिरह की अग्रिम बधाई .... रोचक प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार,
Deleteआप दोनों को शादी की सालगिरह की बहुत बहुत शुभकामनायें ...और भाभीजी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई...आज आप ना भी लिखते तो भी हम इसे पूरा सच ही समझते... बहुत अच्छा लगा लेख पढ़कर
ReplyDeleteहाहाहाह
Deleteशुक्रिया संध्या जी
शादी की सालगिरह की बहुत बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा
Deleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteशुभकामनायें भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
ReplyDeleteथैंक्स
Deleteबहुत बहुत आभार
mubarak bad swikar kije,jodi salamt rahe ,khush rahe,badhaye ka sisila hame milta rahe
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट ... अग्रिम शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteरोचक आलेख - आप दोनों को शादी की सालगिरह हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteशुक्रिया राकेश जी
Deleteबैंड वालो ने आप पर मेहरबानी कर दी,,महेन्द्र जी ! वरना ये तो "आन" पिक्चर का भी गाना लगा देते थे...मैंने खुद बचपन में सुना है (हम आज अपनी मौत का सामान ले चले ....):-))))अन्यथा बिल्कुल न लें !
ReplyDeleteआप दोनों को बहुत-बहुत शुभकामनायें और आशीर्वाद !
खुश रहें और स्वस्थ रहें !
प्रणाम सर
Deleteआभार
खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteथैक्स
Deleteव्यंग्य विनोद की चुटकियाँ लेते रहे लिखते रहे बिंदास वह ,(महेंद्र सिंह श्रीवास्तव नाम है ),उनको हमारा सलाम है .हाँ एक दौर था हिंदी पत्रकारिता दारिद्र्य का प्रतीक थी .चैनलों ने आके स्थिति बदल दी .अब हर लड़का लड़की अंग्रेजी के साथ हिंदी भी सीखना चाहता है .पत्रकार इलेक्त्रोनिया ज्यादा ग्लेमर लिए है .प्रिंट वाले अभी भी बेक सीट पर हैं .हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष प्रभाष जोशी जी ता -उम्र पोलिश पेंट उड़ी गाड़ी में घूमें .अब वक्त बदल रहा है सत्र सालों में सरयू में काफी पानी बह चुका है .
ReplyDeleteबधाई आपकी सालगिरह की ,जन्म दिन की आपकी पत्नी श्री के (भाभी श्री के ).हास्य कवियों के दिन भी बहुरे हैं अब गाड़ियों में घूम रहें हैं .
कस्टम इन्स्पेक्टर का प्रसंग बड़ा रोचक रहा .
अन्तरंग झांकी जीवन की सांझा की आपने .आभार .बधाई पुनश्चय :
हाहाहहा आभार
Deleteआधा सच बोलने का स्कोप नहीं था...शादी की सालगिरह है यह तो पूरा सच ही रहेगा...अनंत शुभकामनाएँ...भाभी जी को जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ !!
ReplyDeleteजर्नलिस्ट से शादी करने के लिए कोई तैयार नहीं होता था...यह साफगोई बहुत अच्छी लगीः)
बात तो आपकी सही है
Deleteबहुत बहुत आभार
अग्रिम बधाइयाँ
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवीण जी
Deleteaashirwaad ke saath is saalgirah par phulon ki barsaat ....
ReplyDeleteजी प्रणाम
Deleteshadi ki salgirah ki bahut bahut shubhkamnaye..is sal to aap gujrat me hai lekin aane vale har sal aap ek doosare ke sath ho yahi shubhkamna karti hu.
ReplyDeleteजी,बिल्कुल
Deleteइंशाल्लाह.......
आभार कविता जी
शादी की सालगिरह पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteबहुत बहुत आभार
बहुत बधाई आपको . बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत बहुत आभार
शादी की सालगिरह पर हार्दिक बधाई....
ReplyDeleteशुभकामनाएं .....
:-)
जी शुक्रिया
Deleteश्रीवास्तव दम्पत्ति को शादी की सालगिरह की हार्दिक बधाइयाँ
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteइस शुभ अवसर पर आप दोनों को ढेरों बधाईयाँ !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
Deleteआपको और आपकी पत्नी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteशुक्रिया जी
Deleteसालगिरह की बहुत-बहुत शुभकामनाएं...प्रस्तुति अच्छी लगी।।।
ReplyDeleteव्यंग का पुट लिये मजेदार आलेख.
ReplyDeleteजी आभार
Deletehttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_5096.html
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
DeleteBelated Happy anniversary Mahendra ji ...!!Sorry for wishing u late.
ReplyDeleteजी शुक्रिया, कोई नहीं
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 जून 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह आदरनीय महेंद्र जी -- अभिभूत हूँ आप की शादी का किस्सा पढ़कर | आबरी हूँ पञ्च लिंकों की जिनकी बदौलत आपके ब्लॉग पर आ पायी | मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं स्वीकार हों | आपके ईमानदार और बेबाक लेखन को सलाम है | किसी दिन दुबारा बाकि रचनाएँ पढती हूँ | सादर नमन |
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