मैं जानता हूं कि राहुल गांधी को युवराज लिखने पर हमारे मित्रों को आपत्ति हो सकती है, फिर भी मैं लिखूंगा, उसकी एक वजह है। भाई इस लेख को कांग्रेस के लोग भी पढ़ते हैं, वो तो इन्हें इसी नाम से जानते हैं, बहुत रिस्पेक्ट करते हैं, कई बार तो कांग्रेसी राहुल गांधी का चित्र भर देखकर कुर्सी छोड़ कर खड़े हो जाते हैं। इस युवराज के दरबार में हर कोई मत्था टेकता है, चाहे वो कांग्रेस पार्टी का नेता हो या फिर सरकार का मंत्री। सरकार के सरदार को भी खड़े होकर राहुल की आगवानी करनी पड़ती है।
बहरहाल इस युवराज ने जब यूपी चुनाव में पार्टी की कमान संभाली तो कांग्रेसियों को लगा कि अब तो उनकी सत्ता में वापसी तय है। युवराज ने भी आम आदमी खासतौर पर दलितों के यहां भोजन करके के ये बताने की कोशिश की कि वो भले युवराज हों, लेकिन दलितों के प्रति उनके मन में आदर है और वो उन्हें बराबरी का दर्जा देते हैं। इसलिए वो उनके साथ जमीन पर बैठ कर भोजन करते हैं। मैं कई बार सोचता हूं कि दलितों को ज्यादा खुशी युवराज के साथ दिल्ली में डाईनिगं टेबिल पर बैठ कर खाने से होगी या फिर युवराज को जमीन पर बैठाकर भोजन कराने से। मेरा तो मानना है कि बेचारे दलित तो रोज ही जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं, एक दिन अगर कुर्सी मेज मिल जाए तो क्या कहने। पर ये बात राहुल के समझ में नहीं आएगी, क्योंकि अपने को नीचे झुकाना आसान है, पर सामने वाले को ऊपर उठाना मुश्किल ही नहीं राजनीति में तो नामुमकिन है।
खैर छोड़िये बेकार की बातों में भला क्यों उलझा जाए, बात चुनाव की करते हैं और वो भी बिना लाग लपेट के। यूपी में बाराबंकी से शुरु हुए हमारे चुनावी सफर को आज एक हफ्ता हो गया। इस दौरान हम बाराबंकी, फैजाबाद, बहराइच, बलरामपुर और कपिलवस्तु यानि सिद्धार्थनगर में चुनावी दंगल का आयोजन कर चुके हैं, और आज पहुंच गए गोरखपुर। सफर के दौरान हमारी बात बहुत सारे नेताओं से तो हो ही रही है, मतदाताओं से भी हम रुबरू होते हैं। बातचीत में मैं देख रहा हूं कि मतदाता बहुत जागरुक है और बहुत ही सावधानी से सभी बातों का जवाब दे रहा है। अब मतदाताओं को बरगला कर वोट लेना आसान नहीं है। मैं यहां एक ग्राम प्रधान का नाम और गांव नहीं बता सकता, पर उसने बहुत ही सहजता से कहा कि " ये ससुरा नेता लोग चुनाव के बाद गायब हो जाता है, अभी आ रहा है और खूब लालच दे रहा है। का करना है अगर ई सब हमको पइसा दे रहे हैं तो हमको लेने में का हरज है। हमने गांव भर को बता दिया है कि अब तक हमको चार पार्टी के उम्मीदवार माल दे चुके हैं, पूरे गांव से कहा हूं कि आप सब भोट जिसको मन हो उसको दें, चुनाव के बाद हम इस पइसवा से गांव में जोरदार पार्टी करेंगे। "
यानि मतदाता नेता जी का पइसवो सटा दे रहा है और भोटवो देने की बात नहीं कर रहा है। अब युवराज को कौन समझाए कि ये मतदाता जिससे पैसे ले रहे हैं, उसे भी वोट नहीं दे रहे है, सोच समझकर वोट देने की बात कर रहे हैं, तो भला कांग्रेस को वोट क्यों देंगे। बेचारे दलितों ने युवराज का कुछ खाया नहीं है, उल्टे खिलाया ही है। बेवजह राहुल को गुस्सा आ जाता है, और ये बेचारे राहुल के गुस्से का भी सामना करते हैं। खैर इस पूरे इलाके में पार्टी के तीन बड़े नेता हैं, बेनी प्रसाद वर्मा, जगदंबिका पाल, और पी एल पुनिया हैं। वैसे चुनाव में टिकट के बटवारे में बेनी बाबू ही बाजी मार पाए, उन्होंने अपने बेटे समेत 60 से ज्यादा टिकट अपने चहेतों को दिलवाए, पाल साहब की भी नहीं चली, पर वो अपने बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाब हो गए। सबसे बेचारे की हालत रही पूनिया की, उनके किसी भी चहेते को टिकट नहीं मिला। अब हालत ये है कि कांग्रेस उम्मीदवारों को कांग्रेसी ही हराने में लगे हैं। इतना लंबा सफर तय कर चुका हूं, लेकिन सच तो ये है कि मैं दावे के साथ कांग्रेस के किसी एक उम्मीदवार को भी नहीं कह सकता कि वो जीत सकता हैं। यहां तक की बेनी बाबू और पाल साहब को अपने बेटों को भी चुनाव में जीताने में पसीने बहाने पड़ रहे हैं।
मुझे लगता है कि आज राहुल राजनीति के सलमान खान हैं, जिन्हें लोग देखने आते हैं। वैसे आपको पता होगा कि आज भी पिछड़े गांव में आप कार से चले जाएं तो गांव में भीड़ लग जाती है, कार देखकर बच्चे ताली बजाते हैं, तो महिलाएं दरवाजे के पास खड़ी होकर देखती हैं कि कार किसके दरवाजे पर रुक रही है और अगर आपने किसी आदमी से रास्ता पूछ लिया तो एक साथ आठ आदमी कार वाले को रास्ता बताते हैं। बच्चे तो कार के आगे आगे दौड़ लगाकर जहां जाना होता है, वहां तक जाते हैं। ऐसे में जब युवराज पैदल चल रहे हों और उनकी एक नहीं कई गाड़ियां उनके पीछे पीछे चल रही हों तो भला लोग इन्हें नही देखने आएंगे। ऐसी भीड़ में दिल्ली के पत्रकारों को दिखाई देता है कि राहुल क्या से क्या करने जा रहे हैं। सच तो ये है कि जितनी जगह से होकर आया हूं अभी तक कहीं भी कांग्रेस का कोई उम्मीदवार कांटे के संघर्ष में नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन टेलीविजन में इस चौथे नंबर की पार्टी की चर्चा सबसे पहले होती है और सबसे ज्यादा होती है।
वैसे अभी कुछ कहना जल्दबाजी हो सकती है, लेकिन इस सियासी सफर पर जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे हैं, मैं समाजवादी पार्टी को और पार्टी के मुकाबले बेहतर हालत में पा रहा हूं। जिस तरह लगातार समाजवादी पार्टी का ग्राफ बढ रहा है, उससे तो लगता है कि पिछले चुनाव में जिस तरह बसपा को अप्रत्याशित समर्थन मिला है, वैसा ही कुछ अगर इस बार समाजवादी पार्टी के साथ हो सकता है। कुछ सीटें अगर कम रह भी गईं तो मुलायम सिंह कांग्रेस और आरएलडी के साथ मिलकर सरकार भी बनाने में कामयाब हो सकते हैं। बहरहाल जब तक नौबत यहां तक पहुंचेगी, तबतक को काफी देर हो चुकी होगी। लेकिन एक बात तो है, यूपी कांग्रेस के नेता हैं बहुत चालू, सब राहुल को नेता बता रहे हैं, ऐसे में अगर पार्टी की हार भी होती है तो सब जिम्मेदारी राहुल पर डालकर किनारे हो जाएंगे।