मुझे लगता था कि अब अन्ना के बारे में मैं बहुत लिख चुका हूं, बंद किया जाए ये सब, क्योंकि अन्ना और उनकी टीम की असलियत लगभग सामने आ चुकी है, भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी बातें करने वाली इस टीम पर भी वैसे ही गंभीर आरोप हैं जैसे नेताओं और नौकरशाहों पर। अच्छा चोरी चोरी होती है, इसमें ये कहना कि वो तो 1.76 लाख करोड़ डकार गया, इस बेचारी ने तो हवाई जहाज के किराए में ही चोरी की है, या ये कहें कि फलां सदस्य ने तो सरकार के महज कुछ लाख रुपये दबाए थे, वो भी जमा कर दिए। सवाल ये नहीं है, बड़ा और अहम सवाल ये है कि हमारी नियत कैसी है ? ऐसे में मैं ये कहूं कि चोर चोर मौसेरे भाई तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।
खैर छोड़िए ये बातें बहुत हो गईं, आज मैं आपके लिए कुछ नई जानकारी लेकर आया हूं। दरअसल अन्ना के गांव के बारे में इतनी बड़ी बड़ी बातें सुनकर मैं हैरान था, कि क्या वाकई जिस गांव में अन्ना रहते हैं, वहां कोई शराब नही पीता, तंबाकू पान की दुकाने तक नहीं हैं। गांव में सबके बीच भाईचारा है। मुझे लगा जिस जगह भगवान राम पैदा हुए या फिर भगवान श्रीकृष्ण पैदा हुए वहां तो इतना भाईचारा देखने को नहीं मिलता, अगर अन्ना के गांव रालेगनसिद्दि में ये सब है तो वाकई उनका गांव किसी भगवान का गांव होगा। अच्छा आपको मालूम हो कि घर में कोई मेहमान बता कर आएगा तो आप घर को साफ सुथरा तो करके रखते ही हैं, घर के बिगडैल बच्चे को भी समझा देते हैं कि देखो कुछ मेहमान आ रहे हैं, बिल्कुल शरारत मत करना, चुपचाप शांत होकर बैठना, जो पूछा जाए बस उसी का जवाब देना, लेकिन मेहमान अचानक आ जाए तो.. हाहाहहाहा...।
उसी तरह जब कहीं हम अपनी टीम के साथ होते हैं तो कैमरा देखते सब खुद अनुशासित हो जाते हैं और कैमरे के सामने बनावटी बातें शुरू कर देते हैं। लिहाजा मेरे मन में आया कि मैं एक बार जब गांव में कोई ऐसी हलचल ना हो कि मीडिया का वहां डेरा हो तब उनके गांव खाली हाथ जाता हूं और यूं ही घूमकर लोगों से बातचीत कर सच जानने की कोशिश करुंगा। यही सोचकर मैं पुणे पहुंच गया। एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी वाले से बात कर रहा था कि अन्ना के गांव चलना है और रात वहां या आसपास कोई होटल होगा तो वहां रुकूंगा और अगले दिन यहीं एयरपोर्ट पर छोड़ देना। ड्राईवर ने कहा कि चार हजार रुपये लूंगा, लेकिन आपने बिल अधिक पैसे का लिया, जो 30 प्रतिशत मुझे और देना होगा। बिल अधिक का मतलब पूछा तो उसने बताया कि अन्ना आंदोलन जब से शुरु हुआ है बहुत सारी टीमें आती हैं, जो पैसे देते हैं उससे कई गुना ज्यादा का बिल बनवाते हैं। सच पूछो तो पहला झटका एयरपोर्ट पर ही लगा और मैने इसी ड्राईवर को साथ ले लिया कि इस कुछ ज्यादा मालूम होगा।
अब एयरपोर्ट से हम अन्ना के गांव के लिए रवाना हो गए, शहर से बाहर निकले तो ड्राईवर ने पूछा आप मीडिया से हैं। मैने मना किया नहीं, मैं तो दिल्ली से आया हूं, बस यूं ही अन्ना का गांव देखने का मन हो गया। ड्राईवर के बाडी लंग्वेज से मुझे साफ लगा कि वो मेरी बात से सहमत नहीं है, फिर भी खामोश रहा। थोड़ी देर बाद बोला सर आप चलते समय ही पहले होटल बुक करा लें, वरना कई बार रात में दिक्कत हो जाती है। गांव से पहले शिरूर में होटल सारंग पैलेस है, (होटल का नाम जानबूझ कर बदला हूं) रात बिताने के लिए ठीक है। मैंने भी कहा ठीक है। होटल पहुंचे और कमरे के बारे में जानकारी कर ही रहा था, तो उसने सबसे पहले मैनेजर ने ये बताया कि भाईसाहब मैं आपको होटल का बिल सादे कागज पर दे पाऊंगा, क्योंकि दो महीने में मीडिया के इतने लोग आए और लोगों ने बिल बुक से रसीदें फाड़ लीं। एक कमरे मे कई लोग रुकते थे और कई कई बिल फाड़ ले जाते थे, अब बिल छपने को गए हैं, लिहाजा हम बिल नहीं दे पाएंगे।
मैं हैरान था कि ईमानदारी के आंदोलन को कवर करने आए थे और बेईमानी करते रहे मीडिया वाले। यहां अब मीडिया की चर्चा की जाए तो सच में पूरी किताब लिखी जा सकती है। बेचारे बहुत मुश्किल में थे, यहां की सही तस्वीर दें तो दिल्ली में बैठे बास नाराज होते थे, यहां कुछ ज्यादा बोले तो गांव वाले विफर जाते थे। गांव के दुकानदार ने बताया कि दिल्ली में अन्ना का अनशन शुरू हुआ तो रालेगनसिद्धि मे बैठे रिपोर्टर क्या करें ? झट से सौ पचास आदमी गांव के पकड़े और बैठा दिया पद्मावती मंदिर परिसर में, और शोर मचाने लगे कि यहां भी अनशन शुरू हो गया। पहले दिन तो टीवी पर दिखने के लिए तमाम लोग जमा हो गए, पर अगले दिन क्या करे, कोई आदमी बैठने को तैयार ही नहीं। रिपोर्टरों ने फैसला किया कि चलो आज गांव के स्कूली बच्चों को पकड़ लाते हैं, बेचारे बच्चे फंस गए। पर ये ज्यादा दिन तो चल नहीं सकता था, क्योंकि अगले दिन जब गांव वालों से बैठने की बात हुई तो उन्होंने पद्मावती मंदिर परिसर में बैठने के लिए रिपोर्टरों से पैसे की मांग कर दी। लोगों का कहना था कि आप तो यहां मलाई काट रहे हैं, हम क्यों आपके मोहरे बनें। रिपोर्टर बेचारे क्या करते, उन्होंने चैनलों में फोन करके बता दिया कि आज कोई अनशन पर नहीं बैठा है।
गांव की हकीकत एक एक कर मेरे सामने आ रही थी। यहां मेरी मुलाकात एक नौजवान से हुई। वैसे मैं उसका नाम भी लिख सकता हूं, पर उनके गांव वाले जान गए तो उस बंदे की खैर नहीं। लिहाजा इशारा कर देता हूं कि इसके एक पैर में थोड़ी दिक्कत है, जिससे चलने मे इसे परेशानी होती है। अगर इसके अंदर लालच को निकाल दें तो वाकई ये एक अच्छा नौजवान है। थोड़ी देर तक गांव के बारे में बताने के बाद इसने मुझसे दस रुपये मांगे, मैने कहा क्या हो गया? बोला गुटका खाना है, मैने कहा कि गुटका तो गांव में मिलता ही नहीं, इसके पहले की वो सनक जाता, मैने 50 रुपये का नोट उसे थमा दिया। थोड़ी देर में वो वापस आया और ईमानदारी से 40 रुपये मुझे वापस कर दिए और बताया भाईसाहब दारु तो गुजरात में भी बंद है, फिर तो वहां नहीं मिलनी चाहिए, पर मिलती है ना। रालेगांवसिद्धि में भी नशे का कोई सामान ऐसा नहीं है जो नहीं मिलता है, बस कीमत कुछ अधिक चुकानी पड़ती है। वैसे मैने देखा कि पूरे गांव में जगह जगह गुटके के पाउच मिल जाएगे। इतना ही नहीं शाम होते ही आधा से ज्यादा गांव टल्ली होकर घूमता फिरता है। हैरानी की बात तो ये है कि नाम सिर्फ लोग टल्ली होकर गांव में घूमते हैं, बल्कि अन्ना जहां रहते हैं पद्मावती मंदिर के आस पास भी ठरकी बंदे आपको मिल जाएंगे। मुझे ताज्जुब होता है कि जब गांव में नशाखोरी का सभी सामान आसानी से मिलता है तो किस आधार पर अन्ना कहते कि उनके गांव में कुछ नहीं होता ?
बात नशाखोरी की चल रही है तो एक सच्ची घटना भी आपको बताते चलें। अन्ना की एक आदत है वो गांव के हर अच्छे काम का श्रेय खुद ले लेते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और होती है। इस गांव के 30 साल से भी ज्यादा समय तक सरपंच रहे हैं सदाशिव महापारी। आज भी सरपंच इनके ही बेटे जय सिंह हैं। 1982 में नशामुक्ति की बात चली तो सदाशिव महापारी ने गांव वालों के साथ ये फैसला किया कि यहां अब नशे का सामान नहीं बिकेगा। उन्होने सभी दुकानदारों से कहा कि वो पान, बीड़ी, सिगरेट और तंकाबू सभी चीजें लेकर पंचायत में आएं। सभी दुकानदारों ने सरपंच के सामने पान, बीड़ी सब चीजें जमा कर दीं। दुकानदारों से पूछा गया कि उन्हें कितने पैसे का नुकसान हुआ तो सभी के मिलाकर 2300 रुपये का नुकसान बताया। उस समय मरापारी ने अपने पैसे से इन सबका भुगतान किया और दुकानदारों को हिदायत दी गई कि अब ये सामान यहां नहीं बिकना चाहिए।
अब मजेदार वाकया सुनिये। पंचायत में कहा गया कि जमा हुए सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू का आखिर किया क्या जाए ? तो आज देश भर में ईमानदारी की अलख जगाने निकले हैं, इस अन्ना ने कहा कि ये सब बगल वाले गांव में बेच दिया जाए। लोग अन्ना की बात सुनकर हंस पड़े, बेचारे अन्ना झेंप गए। बाद मे सरपंच ने फैसला सुनाया कि इसे यहीं सबके सामने जला दिया जाए, ये बात सबकी समझ में आई और पंचायत की बैठक के दौरान ही इसे जला दिया गया।
इस गांव में एक भ्रष्ट्राचार विरोधी जन आंदोलन न्यास नामक संस्था है। इसकी अगुवाई अन्ना ही करते हैं। कहा जा रहा है कि अगर ईमानदारी से इस संगठन की जांच हो जाए, तो यहां काम करने वाले तमाम लोगों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। आरोप तो यहां तक लगाया जा रहा है कि भ्रष्टाचार का एक खास अड्डा है ये दफ्तर। यहां एक साहब हैं, उनके पास बहुत थोड़ी से जमीन है, उनकी मासिक पगार भी महज पांच हजार है, लेकिन उनका रहन सहन देखिए तो आप हैरान हो जाएगा। हाथ में 70 हजार रुपये के मोबाइल पर लगातार वो उंगली फेरते रहते हैं। हालत ये है कि इस आफिस के बारे में खुद रालेगनसिद्दि के लोग तरह तरह की टिप्पणी करते रहते हैं।
आज आप इस गांव की हालत सुनेगें तो चौंक जाएंगे। हां मैं इस बात की तारीफ करता हूं कि गांव की ऊसर भूमि (बंजर जमीन) को उपजाऊ बना दिया गया है, आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल सिचाई की मुकम्मल व्यवस्था की गई है। पैदावार के मामले में गांव के किसान रिकार्ड पैदावार कर रहे हैं। यहां से बड़ी मात्रा मे सब्जी और अन्य सामानों को बड़े शहरों मे भेजा जाता है। इन सबके बाद भी हम ये नहीं कह सकते कि गांव बहुत खुशहाल है। गांव के लोग बहुत नाराज हैं, उन्हें लगता है कि अपने गांव का भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो रहा, भ्रष्टाचारियों के साथ अन्ना देश का भ्रमण कर रहे हैं, बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं। इस गांव में करीब 22 घटे हमने बिताए, मैने देखा कि गांव का आदमी इतना निकम्मा हो चुका है कि अगर उससे आपने किसी के घर का पता भी पूछ लिया तो उसके एवज में वो पैसे मांगता है। इस गांव में जो भी आदमी आपसे थोड़ी देर भी बात करेगा, उसका मीटर शुरू हो जाता है और वो आपसे पैसे की मांग करेगा। सच बताऊं तो आप गांव में अगर तीन घंटा बिताने का मन बनाकर गए हैं तो आधे घंटे में आप के सामने गांव की जो असल तस्वीर सामने आएगी, उसके बाद आप पांच मिनट यहां रुकना पसंद नहीं करेंगे। क्रमश......
( अगली किस्त में मैं आपको बताऊंगा कौन है असली अन्ना, अन्ना की असल सच्चाई, अन्ना के रहन सहन का राज, क्यों डरते हैं लोग अन्ना से, अन्ना के पीए सुरेश पढारे की हकीकत, बताऊंगा नहीं है अन्ना संत, मंदिर की कुटिया मे रहने का दावे मे कितनी सच्चाई.. ये सब जानने के लिए इंतजार कीजिए अगली किस्त.... )