Wednesday 16 May 2012

ये है साजिश का सम्मान ...


 दो दिन में ब्लागर्स के 40 से ज्यादा फोन अंटैंड कर चुका हूं, फोन रिसीव करते ही दूसरी ओर से आवाज आती हैश्रीवास्तव जी बोल रहे हैं, हां बोल रहा हूं, बहुत बहुत मुबारकबाद। फिर वो अपना परिचय देते हैं, बात आगे बढ़ती है। मैने पहले दो चार फोन अटैड किए और दूसरी ओर से मुझे मुबारकबाद दी गई तो मैं हैरान हो गया कि आखिर ऐसी कौन से खुशी है, जो मुझे नहीं मालूम और हमारे ब्लागर बंधुओं को इसकी जानकारी हो गई। बहरहाल बात-चीत में पता चला कि परिकल्पना के चुनाव के तरीकों पर मेरा जो संवाद रविंद्र प्रभात से टिप्पणी के जरिए हुआ ये इनके भी दिल की आवाज थी, लेकिन इनमें से कुछ लोग डरते हैं और कुछ लोग इस टीम से बात करना ही पसंद नहीं करते। अच्छा मैं यहां कोई मोर्चा लेने तो आया नहीं हूं, मैने तो रवींद्र जी की सूचना पर मन में उठी एक स्वाभाविक टिप्पणी की थी । लेकिन अगले दिन खुद रवींद्र जी आक्रामक हो गए और उन्होंने अपने दूसरे लेख में ये बताने की कोशिश की कि मैं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास ही नहीं करता। दुनिया भर में चुनाव को लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, और मैं इस चुनाव का विरोध कर रहा हूं, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था और ना है। बस प्रभात जी अपनी गलत और बात को सही साबित करने के लिए कुतर्क करते रहे और सच की हत्या न हो जाए, इसलिए मुझे उनकी बातों का मजबूरी में जवाब देना पड़ता रहा।
दरअसल कुछ लोगों की आदत होती है या कहें एक तपका ऐसा है जो एक झूठ को तब तक दोहराता रहता है, जब तक वो लोगों को सही ना लगने लगे। अगर आप पहले से आमादा हैं कि आपको कुछ खास लोगों को सम्मानित करना है तो उसके लिए बेवजह का ड्रामा क्यों किया जा रहा है। आप साफ सुथरे तरीके से कहिए कि हमारे निर्णायक मंडल ने इन पांच लोगों को 2012 के सम्मान के लिए चुनाव है। अरे आप कौन सा पदमश्री देने जा रहे हैं कि कोई ऊंगली उठाएगा। तकलीफ तब होती है जब आप बड़ी बड़ी बातें करते हैं और असल तस्वीर कुछ और ही होती है। हम सब जानते हैं कि परिकल्पना सम्मान के लिए कुछ लोगों ने पहले तो 41 लोगों के नाम तय किए। इसकी क्राइट एरिया क्या थी, ये साफ नहीं है। अच्छा आपने अगर 41 लोगों का नाम चुन ही लिया था तो ये वोटिंग में "अन्य" का कालम क्यों दिया ? क्या आपको अपनी इस टीम पर भरोसा नहीं था। अच्छा अगर आप पारदर्शिता दिखाते हुए ये अधिकार ब्लागर को देना चाहते थे कि उनके वोटों के आधार पर पांच नाम तय होंगे, तो क्या आपने जो 41 नाम घोषित किए हैं, उससे ऐसा नहीं लगता है कि ये उन लोगों के साथ बेईमानी है जिनके नाम आपने नहीं दिए।
ईमानदारी तो तब होती जब एक पांच या उससे अधिक लोगों की टीम बनाकर पूरी जिम्मेदारी उनके हवाले कर देते। ये टीम लोगों से आवेदन मांगती, वो जांच पड़ताल करती कि क्या ब्लाग पर जो सामग्री है, वो उनकी अपनी है, क्योंकि बहुत सारे ब्लाग में दूसरों की रचनाएं होती हैं। बहुत सारे ब्लाग में चोरी की रचनाएं होती हैं। बहुत सारे ब्लाग कई मामलों को लेकर विवादित हैं, क्योंकि परिकल्पना एक साहित्यिक मंच है और यहां साफ सुथरे नामांकन जरूरी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया, फिर ये भी तय होता कि वोट कौन दे सकता है, कम से कम इतना तो किया ही जा सकता था कि जिनके ब्लाग कम से कम साल या छह महीने पुराने हों, वही वोट दे सकते हैं। इससे फर्जी वोटिंग पर रोक लगती। यानि अभी लोग आज ब्लाग बनाकर वोट नहीं डाल सकते थे। अब इन बातों की ओर मैने ध्यान आकृष्ट किया मुझे कहा गया कि मेरा चुनाव और लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है।
               
महसूस होता है ये दौर-ए तबाही है
शीशे की अदालत है, पत्थर की गवाही है.
दुनिया में कहीं ऐसी तहरीर नहीं मिलती.
कातिल ही मुंसिफ है कातिल ही सिपाही है

जब सम्मान के लिए ब्लाग का नामांकन आपने किया, वोट देने की अपील भी आप कर रहे हैं, वोटों की गिनती भी आप करेंगे  और रिजल्ट आप ही घोषित करेंगे। ये लोकतंत्र है। इसे ही आप कहते हैं कि लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। और अगर मुझे आप पर शक हो, तो इसकी शिकायत का कोई फोरम है ? बहरहाल आपकी परिकल्पना है, आप सम्मान दे रहे हैं, आप अपने लोगों को चुनें, उन्हें बडे़ से बडा पदक दें, इन सबसे किसी को कोई शिकायत नहीं है। शिकायत ये है कि आप उस पर हम सबका ठप्पा लगवाने की कोशिश ना करें। फिर मैने ही नहीं अगर किसी का कोई सुझाव है तो उसे आइना मत दिखाइये। आप अपने को बुद्धिमान समझे, मुझे लगता है कि किसी को इससे शिकायत नहीं होगी। लेकिन आप सामने वाले को मूर्ख समझें तो मेरे जैसे स्वाभिमानी आदमी को तो जरूर होगी।

हां एक सवाल और बहुत लोगों ने उठाया है कि ब्लागिंग के दस वर्ष हुए हैं या नहीं। नेट पर देखने से इस मामले में साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। लेकिन ब्लागिंग खासतौर पर इगलिश ब्लागिंग 1993 के आसपास शुरू हो चुकी थी। ये अलग बात है। मैं कहता हूं कि अगर मुझे कोई संदेह है और मैं इस मामले में एक टिप्पणी करता हूं, और आपको लगता है कि मैं गलत कह रहा हूं, तो आप तथ्यों के साथ मेरी जानकारी दुरुस्त कर सकते हैं। अदा जी से मेरी कोई मुलाकात नहीं है, लेकिन मैं उन्हें पढता रहा हूं और उनका प्रशंसक हूं। अगर उन्होंने एक कमेंट में कहा कि ब्लागिंग को अभी दस वर्ष नहीं हुए तो आप जिनका सम्मान कर चुके हैं, उसे ही नसीहत दे रहे हैं कि आप अपने ब्लाग का वर्ष ना बताएं। मैं तो इस जवाब से भी हैरान हूं।
बहरहाल मै पहले भी बता चुका हूं कि मैने अपने मन में उठी एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मैं यहां किसी गुट का सक्रिय सदस्य नहीं हूं। लेकिन मेरी टिप्पणी पर जिस तरह की प्रतिक्रिया आई वो तथ्यात्मक रुप से तो बिल्कुल गलत थी ही, असभ्य भी थी। मैने जितनी बातें की सभ्यता की लक्ष्मण रेखा के दायरे में रह कर ही की। मेरा ये स्पष्ट मत है कि अगर आप किसी काम की अगुवाई नहीं कर सकते और कोई दूसरा व्यक्ति कर रहा है तो उसमें नुक्ताचीनी करने का हक नहीं है। इसलिए मेरा कोई नुक्ताचीनी का मकसद ही नहीं था, बस अगर मेरे मन में सवाल है, तो उसे उठाने में हर्ज क्या है ? इतना ही मेरा मकसद था। 
लेकिन मैं परिकल्पना और वटवृक्ष से जुडे साथियों को बता देना चाहता हूं कि यहां लोग बहुत धैर्यवान हैं। दो दिनों में जितने फोन मैने अटेंड किए और जिस तरह की बातें सामने आईं, मै समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या साहित्य जगत में ऐसा भी होता है। मीडिया से जुडे होने की वजह से मीडिया और राजनीति की गंदगी से तो बखूबी वाकिफ हूं, पर मुझे लगता था कि साहित्य में अभी सुचिता बनी होगी। लेकिन यहां तो तस्वीर और भयावह है। और देखिए लोग पीड़ित भी हैं, फिर भी बेचारे बोल भी नहीं पा रहे हैं। कहते हैं फिर लोग मुझे बिल्कुल अलग थलग कर देगें। कहावत है कि मारे  और रोने भी ना दे। मैने अपनी पहली टिप्पणी में आगाह किया था चुनाव के जरिए कहीं लालू, राजा, कलमाडी जैसे लोग वोटों का जुगाड़ ना कर लें। मसलन गलत लोगों को यहं आने से रोकना चाहिए। पर मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे ये लाइन नहीं लिखनी चाहिए थी, हां मैं गलत था. क्योंकि यहां राजा, कलमाडी, कनिमोझी सब तो पहले से ही मौजूद हैं, फिर मैं क्यों उन्हें कोस रहा हूं। आखिर में

ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तां वालों ।
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।।


47 comments:

  1. महेंद्र जी ...इस बार आप बेहद ज्वलंत मुद्दा लेकर आए हैं ...इस बारे में बहुत से फोन मुझे भी आ चुके हैं ...चूँकि किन्ही कारणों से मेरा नाम भी वटवृक्ष से जुड़ा हैं ....(पर उसके भीतर की कोई भी जानकारी मुझे आज तक पूछने के बाद भी नहीं दी गई हैं ...)ब्लोगर मुझे फोन करके इस उत्सव की जानकारी लेना चाहते हैं ..उत्सुकतावश वो कुछ पूछते हैं तो मेरे पास उनके किसी सवाल का कोई जवाब नहीं होता ....कुछ ना जानने की स्थिति में मुझे चुप्पी ओढनी पड़ती हैं.....परिकल्पना का मुद्दा इस वक्त बहुत गंभीर स्थिति में हैं ...इस वक्त ब्लॉग जगत में जो हो रहा हैं बहुत गलत हो रहा हैं .......पूर्ण कमेटी को सबको विश्वास में लेकर ...इस उत्सव को अंजाम देना चाहिए ......

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी बातों से सहमत हूं.. समझ सकता हूं

      Delete
  2. बहुत बढ़िया।
    आपकी आवाज में हम भी अपना सुर मिलाते हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हर सही ब्लागर की पीडा है, शास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार

      Delete
  3. महेन्द्र जी,जिस तरह दशक के ब्लॉगर के चुनाव प्रक्रिया चल रही है और लोकतांत्रिक तरीके की बात कही जा रही है, वह मुझे बेमानी ही लगती है। अब दो-चार या दस बीस ब्लॉगर नहीं है कि जिनके बीच से चुनाव करवा लिया जाए। खुद रविन्द्र जी ही ब्लॉगस की संख्या 50000 के आस पास बताते है, अगर इनमें नियमित ब्लॉगर भी 5000 है तो उनके भी वोट होने चाहिए। इन्होने 8 नाम पहले ही तय कर लिए, जिन्हे वोट देना है। अदर्स का विकल्प भी जोड़ दिया। फ़िर निर्णय होने से पहले ही रुझान बताने लग गए। ब्लॉगर साथियों के फ़ोन मेरे पास भी आ रहे हैं क्योंकि गत वर्ष परिकल्पना ब्लॉगोत्सव से मैं भी जुड़ा रहा हूँ। लेकिन दशक का ब्लॉगर का फ़ंडा मेरी समझ में नहीं आया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ललित जी ब्लाग की बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलंद करना ही होगा, नहीं तो ब्लागिंग एक खास गुट की कठपुतली बनकर रह जाएगी..आपका शुक्रिया

      Delete
  4. ''हां मैं गलत था. क्योंकि यहां राजा, कलमाडी, कनिमोझी सब तो पहले से ही मौजूद हैं, फिर मैं क्यों उन्हें कोस रहा हूं।'''.......आपने कुछ गलत नहीं कहा हैं ...यहाँ के चालचलन के आधार पर आपकी बात सत्य हैं ...

    ReplyDelete
  5. Mahendra ji ke tark sahi prateet hote hain.... Sach ti yah hai ki 'Samman' ki chah sabhi ko hoti hai...fir vo convassing se mile ya voting se..ya fir kuchh de le ke..kya farak padta hai...!!!...

    ReplyDelete
  6. आप ने आवाज़ बुलंद की, बहुत है, जो लिख दिया बहुत है, इस विषय को ज्यादा तूल देने की आवश्यकता नहीं, मेरे ख्याल से.


    बाकी आज हिंदी साहित्य उस मुकाम पर पहुँच चूका है कि कई साहित्यिक आर्य खुद ही टैंट कनात का भाड़ा अपने जिम्मे ले शाल और प्रतीक चिन्ह हाथ में दबाये - स्टेज पर पहुँच जाते हैं - लीजिए साहेब, हमरा भी सम्मान कीजिए.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी बात सही है.. कमजोरी हमारे में ही है

      Delete
  7. सुर से सुर मिले तुम्हारा,तो सुर बने हमारा,...

    महेंद्र जी,....आपने जो भी कहा, सही कहा है,और हम आपके साथ है,..

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,

    ReplyDelete
    Replies
    1. धीरेंद्र जी मिलकर आवाज उठानी होगी,
      हमें ध्यान रखना होगा कि हम किसी के कठपुतली नहीं है

      Delete
  8. वोट तो मैंने वहाँ दे दिया पर यह भी सत्य है कि जो सवाल आप उठा रहे है उन से भी मैं सहमत हूँ !

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये बात मेरी नहीं है, ज्यादातर ब्लागर की पीडा है। जिसे मैने तो सिर्फ आवाज दी है.

      Delete
  9. अनेकानेक लोगों की भावनाएं व्यक्त हुईं हैं आपके इस आलेख के माध्यम से - आपको साधुवाद महेंद्र भाई - २००८ से मैं भी प्रतिदिन (नियमित नहीं) ब्लॉग लेखन से जुड़ा हूँ और निरंतर लिख रहा हूँ - आगे भी इसी तरह लिखने की कोशिश रहेगी

    आलेख के अंत में आपने लिखा कि - हाँ! मैं गलत था - यहाँ मैं आपसे सहमत नहीं हूँ - दीप्ति जी की पंक्तियाँ याद आयी-
    सच को मैंने सच कहा जब कह दिया तो कह दिया
    अब जमाने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

    महेंद्र भाई आप बधाई के पात्र हैं जो आपने एक गलत परम्परा (जो आजकल स्थापित होने की पुरजोर कोशिश में है) के विरुद्ध आवाज उठाई - इन्ही सब परिस्थितियों से आजिज होकर एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की थी हाल ही में - बस वो चन्द शेर आपके समर्थन में आपको और आप सरीखे विचार रखनेवालों को भेंट करना चाहता हूँ -

    सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
    लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहीं
    प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं

    बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
    जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं

    मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
    कितने डर से करते हैं तकरार नहीं

    धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
    कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं

    रचना में ना दम आती विज्ञापन से
    ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं

    उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
    खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं

    खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
    सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपने लेख को पढा और जोरदार तरीके से समर्थन किया, मै आपका आभारी हूं.. आपने आखिरी पैरा पूरा नहीं पढा, इसलिए कह रहे हैं कि मैने अपने को गलत कहा..... पूरा संदर्भ देखें...

      मैने अपनी पहली टिप्पणी में आगाह किया था चुनाव के जरिए कहीं लालू, राजा, कलमाडी जैसे लोग वोटों का जुगाड़ ना कर लें। मसलन गलत लोगों को यहं आने से रोकना चाहिए। पर मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे ये लाइन नहीं लिखनी चाहिए थी, हां मैं गलत था. क्योंकि यहां राजा, कलमाडी, कनिमोझी सब तो पहले से ही मौजूद हैं, फिर मैं क्यों उन्हें कोस रहा हूं।

      Delete
  10. बहुत बढ़िया !, वैसे हम जैसो के तो ये सब पता भी नहीं है ...

    ReplyDelete
  11. मुझे तो ज्यादा समझ नही आया लेकिन थोड़ी बहुत जो भी समझी हूँ उसमें मैं आपसे सहमत हूँ

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका नैतिक समर्थन ही मुझे ताकत देने वाला है

      Delete
  12. महेन्द्र जी आपका कथन हर जगह पढा और आपने जो प्रश्न किया वो भी जायज है मगर ब्लोगिंग भी अब चंद हाथों की कठपुतली बनती जा रही है जब मैने हास्य कविता लिखी थी ये वाली "http://redrose-vandana.blogspot.in/2012/05/blog-post_04.htmlआज तो लग रहा है सबके कहो या अपने ऊपर ये ही फ़िट बैठेगा ……तो लोगों ने मुझे कहा कि आप बेकार मे पंगा ले रही हैं अब बताइये कोई ख्याल दिल मे उठेगा तो व्यक्त भी होगा ना अब इसमे पंगे वाली क्या बात है किसी को पसन्द आई और किसी को नही मगर मेरा तो निर्मल हास्य था और यही कह रहा था वो भी जो आपने प्रश्न उठाये हैं मगर ब्लोगजगत मे अभी परिपक्वता नही आयी है यहाँ तो मठाधीशी ज्यादा चलती है कुछ लोग ही गुट बना लेते हैं और मन मर्जी करते हैं जैसे बाकी ब्लोगर्स कुछ हैं ही नहीं ………जहाँ तक आपने जितने प्रश्न उठाये हैं वो सब जायज हैं और उनका जवाब भी ससम्मान मिलना चाहिये था बेशक वोट हमने भी कर दिया क्योंकि वहाँ दूसरी कोई आप्शन थी ही नही दूसरी बात आज की तारीख मे कुछ ब्लोग तो काफ़ी समय से सक्रिय नही हैं उन्हे भी सम्मानित करने की प्रक्रिया जारी है तो ऐसे मे क्या कहा जा सकता है मेरे ख्याल से तो जो ब्लोग लगातार दस साल तक सक्रिय रहे हों और अपना भरपूर योगदान दिया हो उन्हे ही शामिल किया जाता तब तो बात थी ………हमने तो खुद उन ब्लोग पर वोट किया जो हमारी दृष्टि मे लगातार सक्रिय हैं जो नही हैं उन पर नही किया अब इसके अलावा और किया भी क्या जा सकता था ………बस यही कहना चाहूंगी कि बेशक रविन्द्र जी एक सराहनीय कार्य कर रहे है और हर कार्य की प्रशंसा और आलोचना होती ही है मगर उसमे थोडी और फ़ेर बदल कर दें और सबके सुझावों को ध्यान मे रखें तो ये कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हो सकता है ………वैसे एक बात और अब ब्लोग तो सिर्फ़ अभिनेताओ के भी हैं वो कहाँ इसमे शामिल हैं ऐसे ना जाने कितने ब्लोग होंगे जिनका सबको पता ही नही। कहने को बहुत कुछ होता है सबके पास मगर कहने से हल नही निकलना इसलिये सब चुप रहते हैं और अपनी ब्लोगिंग मे मस्त ………अब आपने मुद्दा उठाया तो जो लगा कह दिया बाकि हम भी अपनी ब्लोगिंग मे मस्त हैं ये दुनिया ऐसे ही चली है ऐसे ही चलती रहेगी फिर चाहे मिडिया हो, राजनीति या साहित्य सबका हाल एक जैसा ही है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वंदना जी,
      मै ब्लाग परिवार में किसी तरह की हेराफेरी में शामिल होने नहीं आया हूं। मैं यहां आत्मसंतुष्टि के लिए आया हूं। गलत बात देखते हुए चुपचाप निकल जाने की आदत नहीं है। मैं तो ब्लागिंग में जो कुछ चल रहा है, उसके भी बहुत ज्यादा पक्ष में नहीं हूं। रचनात्मक और दिशा देने वाली ब्लागिंग रह कहां गई है।

      बहरहाल वो विषय फिर कभी, लेकिन मैं जानता हूं कि परिकल्पना का ये जो प्रयास है, इसके पीछे की सोच घटिया है। मैं बराबर एक बात कहता हूं कि बेईमानी की बुनियाद पर खड़ी ईमारत मे ईमानदारी की कल्पना करना भी बेईमानी होगी। सबको पता है कि नियत साफ नहीं है, दो चार लोगों को अर्जैस्ट करना है बस इसी की कवायद है। बाकी बातें तो लेख में शामिल हैं। पर आपने ब्लाग पर समय दिया आपको बहुत बहुत शुक्रिया

      Delete
  13. मैं भी ब्लोगिंग से २०१० से जुडी हूँ ब्लॉग पर लिखती हूँ ,दूसरों का भी पढ़ती हूँ बस इतना ही दायरा है मेरा पर आपकी इस पोस्ट ने हैरत में दाल दिया कि यहाँ भी इतनी बड़ी राजनीती चल रही है अरे देश कि राजनीती क्या कम है देखने के लिए ..आपके हर तर्क से मैं सहमत हूँ सब कुछ निष्पक्ष सब को साथ लेकर चलने से कोई काम सही रहता है ऐसा काम क्यूँ करना जिसमे शक कि गुंजाइश हो क्वान्टिटी के बजाय क्वालिटी के आधार पर चुनाव हो और पूरी ट्रांसपरेंसी के साथ तो ठीक है महसूस होता है ये दौर-ए तबाही है
    शीशे की अदालत है, पत्थर की गवाही है.
    दुनिया में कहीं ऐसी तहरीर नहीं मिलती.
    कातिल ही मुंसिफ है कातिल ही सिपाही है
    आपकी इन पंक्तियों ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया .....इस पोस्ट के लिए बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मैं आपको पढता हूं। आपका बहुत बहुत आभार

      Delete
  14. bat to khari hai aur bebaki se kahi gayee hai..lekin is tarah ke tour treekon se vo log jo sirf blogging ke jariye apni bat kahna aur kuchh rachna chahte hai dheere dheere isse door hote ja rahe hai..behtar ho ise sirf blogging rahne diya jaye ise numbaron ki doud me na uljhaya jaye.
    khari khari kahne ke liye badhai.

    ReplyDelete
    Replies
    1. देखिए बातें खरी खरी नहीं हैं। बल्कि हर बातें सही सही हैं। मैं चाहता हूं कि पढे लिखों के बीच मे अगर आप कुछ करते हैं तो उसमें ईमानदारी होनी चाहिए। बस..

      Delete
  15. इस सम्मान के बारे में पढ़कर मुझे भी हैरत हुई कि इतने कम लोगों में चुनने को क्यों कहा जा रहा है जबकि बहुत से ऐसे ब्लॉग और ब्लॉगर हैं, जो भले कम लिखें, पर बेहतर लिखते हैं और ब्लॉग जगत को समृद्ध कर रहे हैं। पहले नाम मांगे जाने चाहिए थे, उसके बाद सम्मान की घोषणा की जानी चाहिए थी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं।

      Delete
  16. वैसे मैंने अदर्स में तीन चार ब्लॉगों और ब्लॉगरों के नाम दे दिए हैं... पता नहीं वह वैलिड होगा या नहीं :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. चलिए कोई नहीं, ये वोटिंग सिर्फ बहाना है।
      जिन्हें सम्मान दिया जाना है, उन्हें पहले से पता है, वो अपने कुर्ते टेलर मास्टर के यहां सिलने को दे आए हैं।

      Delete
  17. कुछ लोग इतिहास का हिस्सा बनने के लिए कुछ भी कर गुजुरते हैं .....और ऐसे लोगों को लोग बाद में याद तो करते हैं, लेकिन किस निगाह से ...किस सोच से यह तो आप सब जानते हैं ......आपने सही मुद्दा उठाया है ....और मुझे लगता है कि यहाँ सबको शामिल होना चाहिए... एक सार्थक बहस के लिए ....जिनका सम्मान किया जा रहा है वह भी .....जो दे रहे हैं वह भी ....और जिन्होंने वोट किया है वह भी .....फिर देखना कैसे सार्थक निष्कर्ष निकलते हैं ........और हाँ आप अच्छा लिख रहे हैं ....पाठक से ज्यादा कोई सम्मान नहीं आपके लिए .....प्रेमचंद जी की बात कितनी महत्वपूर्ण है " साहित्यकार दो तरह के होते हैं एक वो जिनका साहित्य उनकी मृत्यु के साथ मर जाता है , और एक वो जिनका साहित्य उनकी मृत्यु के बाद ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है ". यह सब सिलसिले तो चलते रहते हैं ....लेकिन आवाज उठाना और सार्थक बहस उसे सही दिशा देते हैं यह नहीं भूलना चाहिए हमें ....!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सार्थक बहस के लिए पहले नियत साफ होनी चाहिए। जब नियत साफ न हो तो बहस का भी कोई मतलब नहीं है। मैने सिर्फ इसलिए इन बातों का जिक्र किया कि कुछ लोग ये ना समझें कि वो जो कर रहे हैं दूसरे लोग समझते नहीं है।

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
    3. आपका कहना सही है ......जिस तरह से हम ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति की नयी क्रांति या स्वतन्त्र क्रांति के नाम से अभिहित करते हैं उसे समझने की आवश्यकता है और जितने भी बड़े ब्लॉगर हैं उन्हें इस दिशा में चिंतन करने की जरुरत है ....वरना आज हिंदी साहित्य का क्या हाल है .....चिंतन को महता दी जानी चाहिए ....सरदार पूर्ण सिंह कुछ निबंध लिखकर हिंदी साहित्य में अपना स्थान बनाते हैं , चंद्रधर शर्मा गुलेरी " उसने कहा था" कहानी के माध्यम से एक नया आयाम स्थापित करते हैं ....यूँ तो हर युग में लाखों लोग इस भीड़ का हिस्सा बनते हैं ...लेकिन जो सही परिप्रेक्ष्यों में अपना काम करे वही सार्थक है .

      Delete
  18. महेंद्र जी पूरा पैरा पढ़ा भाई और उसे समझ कर ही यह कहने की कोशिश की कि (जो संभवतः स्पष्ट नहीं हो पायी) आप बिलकुल ठीक हैं हर दृष्टिकोण से कम से कम इस मुद्दे पर और उसी समर्थन में दीप्ति जी का शेर भी लिखा - पुनश्च आभार

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया श्यामल जी

      Delete
  19. kya likhoo ?aapne sab likh diya hai .

    ReplyDelete
  20. यह आलेख पढ़ने के बाद एक मशहूर ग़ज़ल की एक लाइन याद आ रही है-
    'अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखने के बाद'

    ReplyDelete
  21. आपने सही मुद्दा उठाया है महेंदर जी और हम सभी ब्लोगर मुझे लगता है कि यहाँ सबको शामिल होना चाहिए !

    ReplyDelete
  22. सही सच्ची बात कहने के लिए आप सचमुच बधाई के पात्र हैं...
    मेरी बातों को आपने मान दिया, मैं कृतज्ञं एवं आभारी हूँ..
    आपका हृदय से धन्यवाद..!!

    ReplyDelete
  23. london olympic bicycle company
    Excellent Working Dear Friend Nice Information Share all over the world.God Bless You.
    Bicycle shops in north London
    cycle shops north in london

    ReplyDelete
  24. "मै ब्लाग परिवार में किसी तरह की हेराफेरी में शामिल होने नहीं आया हूं। मैं यहां आत्मसंतुष्टि के लिए आया हूं। गलत बात देखते हुए चुपचाप निकल जाने की आदत नहीं है। मैं तो ब्लागिंग में जो कुछ चल रहा है, उसके भी बहुत ज्यादा पक्ष में नहीं हूं। रचनात्मक और दिशा देने वाली ब्लागिंग रह कहां गई है।" आपका यह कथन शत-प्रतिशत सही है। आप अपने विचारों,विश्लेषण को जिस प्रकार प्रस्तुत करते हैं वह अनुकरणीय होता है। कुछ लोगों को विवादों मे ही लाभ नज़र आता है अतः वे जान-बूझ कर विवाद वाली बातें उठा देते हैं,जैसे कुछ लोगों ने ब्लाग को श्रेष्ठ और फेसबुक को निकृष्ट घोषित करके एक विवाद खड़ा किया था। हमे अपनी बात आत्म-सम्मानपूर्वक कहते जाना चाहिए ,उसे कोई कैसे ले या नज़रअंदाज़ करे इसकी परवाह किए बगैर।

    आप ने जिनकी खामी खोजी उनकी सहयोगी का सम्मान भी करते हैं दोनों बातें एक साथ चलाने पर आपकी बात खुद-ब-खुद हल्की न हो जाये ,यह भय है।

    ReplyDelete
  25. ----मैं यहां आत्मसंतुष्टि के लिए आया हूं।
    -----बस लिखते रहिये .... दशक का ब्लागर क्या होता है????.....ब्लागर ब्लागर है....स्वयं सम्माननीय .....दूसरों से सम्मान की आवश्यकता ही क्या है...
    -----बस लिखते रहिये...समाज के सरोकारों हेतु...

    ReplyDelete

जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।