कल जब मैने सुना कि सचिन तेंदुलकर ने 10 जनपथ में हाजिरी लगाई, तो मैं हैरान हो गया। क्योंकि दो दिन पहले ही उनका 39 वां जन्मदिन था, लेकिन आईपीएल के व्यस्त कार्यक्रम के बीच वो इतना भी समय नहीं निकाल पाए कि अपने घर मुंबई में परिवार के साथ जन्मदिन की खुशियां मनाएं। फिर ऐसी क्या आफत आ गई कि दिल्ली में आंधी पानी के बीच वो सोनिया के घर आ गए। अच्छा सचिन के साथ केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला का होना थोड़ा हैरान करने वाला था, क्योंकि ये शुक्ला जी बस शुक्ला जी ही हैं। यानि ना ही में ना सी में फिर भी पांचो ऊंगली घी में। वैसे लोगों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, कांग्रेस ने खुद ये खबर लीक कराई और सभी न्यूज चैनल में एक साथ ब्रेकिंग न्यूज में सचिन छा गए। हर जगह सिर्फ एक ही खबर सचिन राज्यसभा में आएंगे, सचिन राज्यसभा में मनोनीत किए गए।
कल इस खबर पर ज्यादा हो हल्ला नहीं हुआ, सियासी गलियारे से पहली प्रतिक्रिया जो आई, उसमें सभी ने सचिन का राज्यसभा में स्वागत किया। लेकिन रात में नेताओं ने सोचा कि ये क्या हो रहा है. कांग्रेस सचिन को राज्यसभा में मनोनीत कर 2014 की बाजी ना मार ले जाए। यही सोच कर दूसरे दलों के नेताओं ने बाहें चढा ली, नतीजा ये हुआ कि आज सुबह संसद परिसर में नेताओं के सुर बदल गए। मामला सचिन का है, वो लोगों के दिलों पर राज करते हैं। लिहाजा राजनीतिक दलों ने विरोध का नया तरीका इजाद किया और कहा कि अच्छा होता कि राज्यसभा में मनोनीत करने के बजाए उन्हें भारत रत्न दिया जाता। हमें उम्मीद थी कि मराठी मानुष की बात करने वाली शिवसेना तो इस फैसले का स्वागत करेगी, क्योंकि सचिन मराठी हैं और उन्हें राज्यसभा में मनोनीत कर सम्मानित किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ शिवसेना ने सबसे तीखी प्रतिक्रिया दी और कहाकि कांग्रेस सचिन को लेकर राजनीति कर रही है। लेफ्ट नेताओं ने तो इसे जातिवाद से जोड़ दिया और कहाकि अगर सचिन मनोनीत हो सकते हैं तो सौरभ गांगुली क्यों नहीं ? कुल मिलाकर राजनीतिक गलियारों से जो बातें छनकर आ रही हैं वो कम से कम सचिन जैसे शांतिप्रिय व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है।
वैसे सच तो ये है कि सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा की सदस्यता आसानी से कुबूल नहीं ही की होगी। निश्चित रूप से उन पर दबाव बनाया गया होगा, अगर मैं ये कहूं कि सरकार की ओर ये दबाव मुकेश अंबानी के जरिए बनाया गया हो तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार इस समय बहुत ही मुश्किल के दौर से गुजर रही है,उस पर तरह तरह के हमले हो रहे हैं, जनता का ध्यान बांटने के लिए उसके पास इससे बेहतर और कोई चारा नहीं था। पार्टी का मानना है कि सचिन को ये सम्मान देने से कुछ दिन मीडिया का रुख भी दूसरी ओर हो जाएगा। इसके अलावा आईपीएल में जहां हर बैट्समैन सबसे ज्यादा रन ठोक कर आरेंज कैप हासिल करने में लगा है, वहीं काग्रेस सचिन को व्हाइट कैप पहना रही है। निश्चित है कि हर मैंच अब कमेंटेटर सचिन की तारीफ में उन्हें सांसद बोलते भी नजर आएंगे। वैसे मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है, सचिन राज्यसभा में मनोनीत होने के पहले सोनिया गांधी से क्यों मिले ? जबकि अभिनेत्री रेखा के साथ तो ऐसा नहीं हुआ, उन्हें तो ये जानकारी मुंबई में ही दे दी गई। क्या यहां बुलाकर सोनिया गांधी देश को ये संदेश देना चाहतीं थी कि सचिन को मनोनीत करने का फैसला उन्होंने लिया है। यानि सोनिया की वजह से सचिन राज्यसभा में पहुंचे हैं।
वैसे सच कहूं तो सरकार जल्दबाजी में कुछ ऐसे फैसले करती है जिससे उसकी नासमझी दिखाई पड़ने लगती है। इससे पता चलता है कि सरकार की सोच कितनी घटिया स्तर की है। इससे ये भी पता चलता है कि सरकार के सलाहकारों का स्तर क्या है। अगर आप ऐसा कुछ करते हैं जिससे एक व्यक्ति का सम्मान हो और देश में कई लोगों का अपमान तो मुझे लगता है कि वो सम्मान ठीक नहीं है। क्रिकेट का जो एबीसी भी जानता होगा, उसे ये बात पता है कि क्रिकेट में भारत ने जब पहली बार वर्ल्ड कप जीता, कपिल देव की अगुवाई में तो उस समय हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि भारत कभी वर्ल्ड कप भी जीत सकते हैं। अब तो हमारी टीम में ऐसे खिलाडी हैं कि हमें हैरानी और आश्चर्च नहीं होता वर्ल्ड कप जीत जाने में। ऐसे में अगर ये सम्मान कपिल देव या फिर सुनिल गावस्कर को दिया जाता तो लगता कि सरकार की सोच वाकई खेल को प्रोत्साहित करने की है राजनीति की नहीं। सचिन को राज्यसभा में भेजने से साफ संदेश जा रहा है कांग्रेस सचिन के जरिए अपनी ईमेज ठीक करने में लगी है। सचिन ने अभी सन्यास नहीं लिया है, अभी उनकी रुचि खेल में बनी हुई है। देश के लोगों को उन पर नाज है, फिर बेचारे को बेवजह क्यों विवाद में घसीटा गया। मेरा मानना है कि कांग्रेसी निकम्मे.. पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए किसी भी हद को पार कर सकते हैं। बहरहाल नियम के तहत मनोनीत सदस्य छह महीने तक कोई पार्टी ज्वाइन नहीं कर सकता, अगर यही हाल रहा तो छह महीने बाद सचिन कहीं कांग्रेसी चोले मे ना सिर्फ नजर आएंगे बल्कि राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ जुटाने का काम भी करते दिखेंगे।
अच्छा राज्यसभा में बैक बेंचर होकर सचिन करेंगे क्या ? कोई सुनता तो है नही, संसद में होने वाले शोर शराबे में बेचारे सचिन आइला आइला ही चिल्लाते रह जाएंगे। मैं जानता हूं कि कम से कम खेलों के मामले में सचिन बेहतर सुझाव दे सकते हैं, वो क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों की बेहतरी के लिए भी अच्छा काम कर सकते हैं, पर जरूरी नहीं था कि इसके लिए वो संसद भवन ही जाते। क्योंकि आज तक जो सचिन पूरे देश की आंखों का तारा था, अब वो कांग्रेसी होकर एक तपके का होकर रह जाएगा। सचिन के इस कदम से निश्चित रूप से उसके खेल पर प्रभाव पडेगा। बहरहाल इस नई जिम्मेदारी को सचिन कैसे संभालते हैं, कुछ नया करते है, यहां भी नाट आउट शतकों का शतक लगाते हैं, या फिर पहली गेंद पर बोल्ड होकर निकल लेते हैं। बहरहाल सचिन ने अभी इस नई पारी की शुरुआत नहीं की है तो हमें ऐसा कुछ नहीं सोचना चाहिए, हम उनकी इस नई पारी की कामयाबी के लिए शुभकामनाएं देते हैं।
चलिए ये तो हो गई राज्यसभा में मनोनीत होने की बात। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि कांग्रेस ने अपनी इच्छा तो पूरी कर ली, लेकिन देश की इच्छा कब पूरी होगी ? देश तो उन्हें भारत रत्न देना चाहता है। सरकार भारत रत्न के मसले पर बिल्कुल खामोश है। सच तो ये है कि अगर राज्यसभा में सचिन कुछ बेहतर नहीं कर पाए तो फिर भारत रत्न का मामला भी ठंडा ही पड़ जाएगा। वैसे आपको इस मामले में सच बताना जरूरी है। जानकारों का कहना है कि सरकार सचिन को भारत रत्न देने में जल्दबाजी नहीं करना चाहती। भारत रत्न के बाद सचिन को नैतिकता के आधार पर तमाम चीजों को छोड़ना होगा। हालाकि ये जरूरी नहीं है, लेकिन भारत रत्न सचिन तेंदुलकर अगर कुछ समय बाद अंडर गारमेंट के विज्ञापन में नजर आए, या फिर टायर ट्यूब का विज्ञापन करें तो ये अच्छा नहीं लगेगा। सचिन का चेहरा अभी बिकाऊ है, जब वो सन्यास लेगें तो कम से कम साल भर तो तमाम बड़ी बड़ी कंपनियां चाहेंगी कि उन्हें अपने प्रोडक्ट का ब्रांड अंबेसडर बनाएं। सूत्र तो कहते हैं कि अभी भारत रत्न न दिए जाने की पीछे एक वजह ये भी रही है।