आवश्यक सूचना : मित्रों इस लेख को लिखने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी है। दरअसल मैं चाहता था कि कहानी सच के करीब हो, इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आंदोलन के दौरान जिस भाषा का इस्तेमाल किया, मैं भी उसी भाषा में बात करना चाहता हूं... क्या हुआ आप नहीं समझे.. मतलब बेहूदी भाषा में बात करना है। दोस्तों पूरी कोशिश तो की है कि जिस सड़क छाप, लंपटी भाषा में दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल देश के गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गर्वनर से संवाद कर रहा था, मेरी भाषा भी वैसी ही हो.. इसके लिए मैने भाषा की मर्यादा को पूरी तरह ताख पर रख दिया है.. फिर भी गलती से अगर कहीं मैं मर्यादित हो गया हूं.. तो प्लीज इसे पारिवारिक संस्कार समझ कर माफ कर दीजिएगा। मेरी मंशा सम्मान देने की बिल्कुल नहीं है।
सच बताऊं, अब बिल्कुल मन नहीं होता कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल के बारे में कुछ लिखा जाए ! वजह इसकी बद्जुबानी, बेहूदा आचरण और घटिया राजनीति है। वैसे मैं भाषा के स्तर पर बेईमान नहीं होना चाहता था, मेरी कोशिश भी रहती है कि आलोचना मर्यादा में रहकर ही की जानी चाहिए, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने मजबूर कर दिया है, इसलिए उससे उसकी ही भाषा में बात करना जरूरी है। बात आगे करूं, इससे पहले मुख्यमंत्री की बेहूदगी का एक प्रसंग सुन लीजिए। रेलभवन के सामने उसके धरने को 28 घंटे से ज्यादा समय हो गया था, दिल्ली में अफरा-तफरी मची हुई थी, राजपथ के साथ ही एक दर्जन से ज्यादा सड़कों को बंद कर दिया गया था, चार महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशन भी बंद थे। इन हालातों को देखते हुए एक संवेदनशील पत्रकार ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछ लिया कि " अरविंद केंद्र सरकार के साथ गतिरोध को खत्म करने के लिए क्या कोई बीच का रास्ता हो सकता है ? इस पर मुख्यमंत्री ने बहुत ही गंदा या यूं कहूं कि बेहूदा और बचकाना जवाब दिया, तो गलत नहीं होगा। उसने कुतर्क करते हुए कहाकि बीच का रास्ता क्या होता है ? मतलब महिला से पूरा नहीं आधा बलात्कार किया जाए ? 50 महिलाएं हैं तो 25 से रेप करो, ये बीच का रास्ता है ? अब आप ही बताएं, जब ऐसा बदजुबान मुख्यमंत्री महिलाओं के सम्मान की बात करता है, तो कोई भला क्या भरोसा करेगा ऐसे मुख्यमंत्री पर... ऐसे मुख्यमंत्री से तो बदबू आती है। वैसे अरविंद मैं बताता हूं कि बीच का रास्ता क्या होता है ? बीच का रास्ता यही होता है जो तुमने किया ... तुम तो दरोगा को ट्रांसफर करने की मांग कर रहे थे और गृहमंत्रालय ने पुलिस वालों से कहाकि वो कुछ दिन की छुट्टी पर चले जाएं। बस इतने से तुम्हारा इगो शांत हो गया और जीत का जश्न मनाते हुए तुम अपने गैंग के साथ चले भी गए। इसे ही कहते हैं बीच का रास्ता ! समझ गए ना ! और पत्रकार ने यही बात तुमसे जानने की कोशिश की थी।
हां वैसे इस मुख्यमंत्री की एक बात से तो मैं पूरी तरह सहमत हूं, वो ये कि दिल्ली पुलिस लोगों में भेदभाव करती है। बड़े लोगों के लिए उसका कानून कुछ है और छोटे लोगों के लिए कानून कुछ और ही है। दिल्ली का मुख्यमंत्री कहता है दिल्ली पुलिस बेईमान है, मैं भी मानता हूं कि वो आम आदमी और खास आदमी के बीच फर्क करती है, इसलिए दिल्ली की पुलिस बेईमान है। अगर दिल्ली पुलिस ईमानदार होती तो दिल्ली में धारा 144 को तोड़ने वालों की सुरक्षा नहीं करती, इन सबको तबियत से कूट कर अस्पताल पहुंचा चुकी होती ! मुख्यमंत्री जी वाकई दिल्ली पुलिस बेईमान है, तभी तो 38 घंटे से ज्यादा समय तक तुम्हारी गुंडई रेल भवन के सामने चलती रही, और कानून बौना बना रहा। ईमानदारी से सोचो, अगर मुख्यमंत्री की जगह कोई आम व्यक्ति इस तरह सरेआम दिल्ली की सड़क पर गुंडागर्दी कर रहा होता तो क्या ये पुलिस इसी तरह बर्दास्त कर रही होती ? फिर क्या पुलिस वालों के सिर पर पत्थर पड़ रहे होते और ये पुलिस यूं ही मूकदर्शक बनी रहती ? सब को पता है कि सड़क पर ये गुंडई मुख्यमंत्री की अगुवाई में चल रही थी, बेईमान पुलिस ने रिपोर्ट में मुख्यमंत्री का नाम ना लिखकर भीड़ के नाम से रिपोर्ट दर्ज किया। सच है केजरीवाल.. दिल्ली की पुलिस वाकई बेईमान है। मेरा मानना है कि दिल्ली की पुलिस और गृह मंत्रालय में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो सभी मंत्रियों के साथ तुम जेल में होते और गुंडागर्दी पर उतारू टोपी वाले अस्पताल में पड़े कराह रहे होते।
मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली को तुम लोग क्या बनाना चाहते हो, जिस तरह से सड़कों पर खुले आम नंगा नाच चल रहा है उससे क्या साबित करना चाहते हो ? पहले तो तुम लोग बात करते थे पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की, बात करते थे सोनया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बेईमानी की, बात करते थे बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नीतिन गडकरी के बेईमानी की, उद्योगपति मुकेश अंबानी के गड़बडियों की.. अब कुर्सी पर आते ही सब एजेंडा भूल गए। बात करने लगे गली मुहल्ले की.. शपथ लेने के बाद तीन मंत्रियों ने न्यूज चैनल के रिपोर्टरों के साथ बस तीन रात दौरा किया। एक ने आदेश दे दिया कि 48 घंटे के भीतर 45 रैन बसेरा बनाया जाए। वो अफसरों को कैमरे वालों के सामने फर्जी फोन कर अपना नंबर भी बढ़ाता रहा। हालत ये है कि इस बार ठंड से अब तक 187 लोगों की मौत हो चुकी है और सरकार सड़क पर गुंडागर्दी कर रही है। एक महिला मंत्री शाम को निकली, क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद से उसकी कार का शीशा टूट गया, इसने तमाम लोगों की भीड़ जमा कर ली और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी कि उस पर हमला किया गया है। बेचारा पूरा परिवार छिपा-छिपा फिर रहा था, कई दिन बाद सुलह सपाटा हो पाया। तीसरा मंत्री रात में दिल्ली के एक मुहल्ले में पहुंचा और पुलिस से कहने लगा कि मकान में छापेमारी करो, वहां विदेशी महिलाएं धंधा कराती हैं। पुलिस ने कहाकि छापेमारी के लिए उनके साथ महिला पुलिस का होना जरूरी है, तो ये मंत्री हत्थे से उखड़ गया और अपने नेता की तरह ही बदजुबान हो गया। जब पुलिस ने भी अपना असली रूप दिखाया तो फिर तो मंत्री की शिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बाद में कुछ असामाजिक तत्वों के साथ खुद ही मकान में छापेमारी कर युंगाडा की पांच महिलाओं को कार में बैठा कर उन्हें एम्स ले गया और उनका मेडिकल टेस्ट कराया, हालांकि टेस्ट में कुछ नहीं निकला। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि रात में उनके साथ मंत्री और उनके साथ वालों ने छेड़छाड़ की। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है, फैसला आ जाएगा।
अब इस ईमानदार मुख्यमंत्री का चरित्र देखिए। पुलिस वालों पर आरोप है कि उसने मंत्री की बात नहीं सुनीं, जबकि ये आरोप उसके मंत्री ने ही लगाया है। मुख्यमंत्री ने तुरंत इन पुलिसकर्मियों की सजा तय कर दी और कहाकि इन्हें निलंबित किया जाए। गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने उसे समझाने की कोशिश की.. और कहाकि जांच के आदेश किए गए हैं, रिपोर्ट आ जाने की दो, जरूर कार्रवाई होगी। लेकिन अपने बिगड़ैल मंत्री की बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि वो गृहमंत्रालय के सामने धरना देगा। चूंकि गणतंत्र दिवस परेड की तीन महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है, धरने से तैयारियों में मुश्किल होगी, ये सोचकर स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगाया, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए संसद भवन के करीब रेल भवन के सामने अपने गुर्गों के साथ धरने पर बैठ गया। बात पुलिस वालों के निलंबन से शुरू किया और आखिर में तबादले तक आ गया, लेकिन दिल्ली वालों का बढ़ता गुस्सा देख पीछे खिसक गया और उन पुलिस वालों के कुछ दिन के लिए छुट्टी पर चले जाने से धरना खत्म करने को तैयार हो गया। खैर अब दिल्ली की जनता कह रही है कि मुख्यमंत्री साहेब तुम्हें तो जांच पड़ताल से कोई मतलब नहीं है, अगर आरोप लगने के बाद तुमने पुलिस वालों का निलंबन मांग लिया तो अब तो तुम्हें अपने कानून मंत्री को भी तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। इस पर जो आरोप है वो पुलिस वालों से कहीं ज्यादा गंभीर है। मंत्री पर विदेशी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करने का आरोप है। उन विदेशी महिलाओं को आधी रात में जबर्दस्ती उठाकर एम्स ले जाया गया। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हो गई। अब केजरीवाल को इस आरोपी मंत्री की छुट्टी करने में क्यों तकलीफ हो रही है ? अगर पुलिस वालों को बिना जांच के ही कार्रवाई करने की बात दिल्ली का मुख्यमंत्री कर रहा था तो अपने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने में जांच की आड क्यों ले रहा है ?
खैर नए नए मंत्री बने थे, पूरा मंत्रिमंडल बेलगाम हो गया था। खासतौर पर केजरीवाल की तो भाषा बदल चुकी है। राजनीति में जिस भाषा की शुरुआत केजरीवाल ने की, कांग्रेसी उससे एक कदम और आगे निकल गए। गृहमंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री को " येडा मुख्यमंत्री " कह रहे हैं। खैर राजनीति में ये नई विधा की शुरुआत हो रही है, जिसका संस्थापक केजरीवाल ही रहेगा। आखिर में मैं चेतन भगत की बात का जिक्र जरूर करूंगा। मैं उनकी बातों से सहमत हूं। उन्होने दिल्ली की राजनीति को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। कहा कि बाँलीवुड में लड़कियां आती हैं और सिनेमा में हीरोइन का अभिनय कर खूब नाम कराती हैं। लेकिन जब उनकी फिल्म नहीं चलती है तो वो फिल्म तड़का डालने की कोशिश में आइटम गर्ल बन जाती हैं। ठीक उसी तरह दिल्ली की राजनीति हो गई है और अब केजरीवाल अपनी फिल्म को चलाने के लिे आइटम को तड़का देने में लगा है। बहुत बुरा समय आ गया है केजरीवाल ! जय हो ...
सच बताऊं, अब बिल्कुल मन नहीं होता कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल के बारे में कुछ लिखा जाए ! वजह इसकी बद्जुबानी, बेहूदा आचरण और घटिया राजनीति है। वैसे मैं भाषा के स्तर पर बेईमान नहीं होना चाहता था, मेरी कोशिश भी रहती है कि आलोचना मर्यादा में रहकर ही की जानी चाहिए, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने मजबूर कर दिया है, इसलिए उससे उसकी ही भाषा में बात करना जरूरी है। बात आगे करूं, इससे पहले मुख्यमंत्री की बेहूदगी का एक प्रसंग सुन लीजिए। रेलभवन के सामने उसके धरने को 28 घंटे से ज्यादा समय हो गया था, दिल्ली में अफरा-तफरी मची हुई थी, राजपथ के साथ ही एक दर्जन से ज्यादा सड़कों को बंद कर दिया गया था, चार महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशन भी बंद थे। इन हालातों को देखते हुए एक संवेदनशील पत्रकार ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछ लिया कि " अरविंद केंद्र सरकार के साथ गतिरोध को खत्म करने के लिए क्या कोई बीच का रास्ता हो सकता है ? इस पर मुख्यमंत्री ने बहुत ही गंदा या यूं कहूं कि बेहूदा और बचकाना जवाब दिया, तो गलत नहीं होगा। उसने कुतर्क करते हुए कहाकि बीच का रास्ता क्या होता है ? मतलब महिला से पूरा नहीं आधा बलात्कार किया जाए ? 50 महिलाएं हैं तो 25 से रेप करो, ये बीच का रास्ता है ? अब आप ही बताएं, जब ऐसा बदजुबान मुख्यमंत्री महिलाओं के सम्मान की बात करता है, तो कोई भला क्या भरोसा करेगा ऐसे मुख्यमंत्री पर... ऐसे मुख्यमंत्री से तो बदबू आती है। वैसे अरविंद मैं बताता हूं कि बीच का रास्ता क्या होता है ? बीच का रास्ता यही होता है जो तुमने किया ... तुम तो दरोगा को ट्रांसफर करने की मांग कर रहे थे और गृहमंत्रालय ने पुलिस वालों से कहाकि वो कुछ दिन की छुट्टी पर चले जाएं। बस इतने से तुम्हारा इगो शांत हो गया और जीत का जश्न मनाते हुए तुम अपने गैंग के साथ चले भी गए। इसे ही कहते हैं बीच का रास्ता ! समझ गए ना ! और पत्रकार ने यही बात तुमसे जानने की कोशिश की थी।
हां वैसे इस मुख्यमंत्री की एक बात से तो मैं पूरी तरह सहमत हूं, वो ये कि दिल्ली पुलिस लोगों में भेदभाव करती है। बड़े लोगों के लिए उसका कानून कुछ है और छोटे लोगों के लिए कानून कुछ और ही है। दिल्ली का मुख्यमंत्री कहता है दिल्ली पुलिस बेईमान है, मैं भी मानता हूं कि वो आम आदमी और खास आदमी के बीच फर्क करती है, इसलिए दिल्ली की पुलिस बेईमान है। अगर दिल्ली पुलिस ईमानदार होती तो दिल्ली में धारा 144 को तोड़ने वालों की सुरक्षा नहीं करती, इन सबको तबियत से कूट कर अस्पताल पहुंचा चुकी होती ! मुख्यमंत्री जी वाकई दिल्ली पुलिस बेईमान है, तभी तो 38 घंटे से ज्यादा समय तक तुम्हारी गुंडई रेल भवन के सामने चलती रही, और कानून बौना बना रहा। ईमानदारी से सोचो, अगर मुख्यमंत्री की जगह कोई आम व्यक्ति इस तरह सरेआम दिल्ली की सड़क पर गुंडागर्दी कर रहा होता तो क्या ये पुलिस इसी तरह बर्दास्त कर रही होती ? फिर क्या पुलिस वालों के सिर पर पत्थर पड़ रहे होते और ये पुलिस यूं ही मूकदर्शक बनी रहती ? सब को पता है कि सड़क पर ये गुंडई मुख्यमंत्री की अगुवाई में चल रही थी, बेईमान पुलिस ने रिपोर्ट में मुख्यमंत्री का नाम ना लिखकर भीड़ के नाम से रिपोर्ट दर्ज किया। सच है केजरीवाल.. दिल्ली की पुलिस वाकई बेईमान है। मेरा मानना है कि दिल्ली की पुलिस और गृह मंत्रालय में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो सभी मंत्रियों के साथ तुम जेल में होते और गुंडागर्दी पर उतारू टोपी वाले अस्पताल में पड़े कराह रहे होते।
मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली को तुम लोग क्या बनाना चाहते हो, जिस तरह से सड़कों पर खुले आम नंगा नाच चल रहा है उससे क्या साबित करना चाहते हो ? पहले तो तुम लोग बात करते थे पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की, बात करते थे सोनया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बेईमानी की, बात करते थे बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नीतिन गडकरी के बेईमानी की, उद्योगपति मुकेश अंबानी के गड़बडियों की.. अब कुर्सी पर आते ही सब एजेंडा भूल गए। बात करने लगे गली मुहल्ले की.. शपथ लेने के बाद तीन मंत्रियों ने न्यूज चैनल के रिपोर्टरों के साथ बस तीन रात दौरा किया। एक ने आदेश दे दिया कि 48 घंटे के भीतर 45 रैन बसेरा बनाया जाए। वो अफसरों को कैमरे वालों के सामने फर्जी फोन कर अपना नंबर भी बढ़ाता रहा। हालत ये है कि इस बार ठंड से अब तक 187 लोगों की मौत हो चुकी है और सरकार सड़क पर गुंडागर्दी कर रही है। एक महिला मंत्री शाम को निकली, क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद से उसकी कार का शीशा टूट गया, इसने तमाम लोगों की भीड़ जमा कर ली और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी कि उस पर हमला किया गया है। बेचारा पूरा परिवार छिपा-छिपा फिर रहा था, कई दिन बाद सुलह सपाटा हो पाया। तीसरा मंत्री रात में दिल्ली के एक मुहल्ले में पहुंचा और पुलिस से कहने लगा कि मकान में छापेमारी करो, वहां विदेशी महिलाएं धंधा कराती हैं। पुलिस ने कहाकि छापेमारी के लिए उनके साथ महिला पुलिस का होना जरूरी है, तो ये मंत्री हत्थे से उखड़ गया और अपने नेता की तरह ही बदजुबान हो गया। जब पुलिस ने भी अपना असली रूप दिखाया तो फिर तो मंत्री की शिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बाद में कुछ असामाजिक तत्वों के साथ खुद ही मकान में छापेमारी कर युंगाडा की पांच महिलाओं को कार में बैठा कर उन्हें एम्स ले गया और उनका मेडिकल टेस्ट कराया, हालांकि टेस्ट में कुछ नहीं निकला। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि रात में उनके साथ मंत्री और उनके साथ वालों ने छेड़छाड़ की। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है, फैसला आ जाएगा।
अब इस ईमानदार मुख्यमंत्री का चरित्र देखिए। पुलिस वालों पर आरोप है कि उसने मंत्री की बात नहीं सुनीं, जबकि ये आरोप उसके मंत्री ने ही लगाया है। मुख्यमंत्री ने तुरंत इन पुलिसकर्मियों की सजा तय कर दी और कहाकि इन्हें निलंबित किया जाए। गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने उसे समझाने की कोशिश की.. और कहाकि जांच के आदेश किए गए हैं, रिपोर्ट आ जाने की दो, जरूर कार्रवाई होगी। लेकिन अपने बिगड़ैल मंत्री की बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि वो गृहमंत्रालय के सामने धरना देगा। चूंकि गणतंत्र दिवस परेड की तीन महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है, धरने से तैयारियों में मुश्किल होगी, ये सोचकर स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगाया, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए संसद भवन के करीब रेल भवन के सामने अपने गुर्गों के साथ धरने पर बैठ गया। बात पुलिस वालों के निलंबन से शुरू किया और आखिर में तबादले तक आ गया, लेकिन दिल्ली वालों का बढ़ता गुस्सा देख पीछे खिसक गया और उन पुलिस वालों के कुछ दिन के लिए छुट्टी पर चले जाने से धरना खत्म करने को तैयार हो गया। खैर अब दिल्ली की जनता कह रही है कि मुख्यमंत्री साहेब तुम्हें तो जांच पड़ताल से कोई मतलब नहीं है, अगर आरोप लगने के बाद तुमने पुलिस वालों का निलंबन मांग लिया तो अब तो तुम्हें अपने कानून मंत्री को भी तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। इस पर जो आरोप है वो पुलिस वालों से कहीं ज्यादा गंभीर है। मंत्री पर विदेशी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करने का आरोप है। उन विदेशी महिलाओं को आधी रात में जबर्दस्ती उठाकर एम्स ले जाया गया। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हो गई। अब केजरीवाल को इस आरोपी मंत्री की छुट्टी करने में क्यों तकलीफ हो रही है ? अगर पुलिस वालों को बिना जांच के ही कार्रवाई करने की बात दिल्ली का मुख्यमंत्री कर रहा था तो अपने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने में जांच की आड क्यों ले रहा है ?
खैर नए नए मंत्री बने थे, पूरा मंत्रिमंडल बेलगाम हो गया था। खासतौर पर केजरीवाल की तो भाषा बदल चुकी है। राजनीति में जिस भाषा की शुरुआत केजरीवाल ने की, कांग्रेसी उससे एक कदम और आगे निकल गए। गृहमंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री को " येडा मुख्यमंत्री " कह रहे हैं। खैर राजनीति में ये नई विधा की शुरुआत हो रही है, जिसका संस्थापक केजरीवाल ही रहेगा। आखिर में मैं चेतन भगत की बात का जिक्र जरूर करूंगा। मैं उनकी बातों से सहमत हूं। उन्होने दिल्ली की राजनीति को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। कहा कि बाँलीवुड में लड़कियां आती हैं और सिनेमा में हीरोइन का अभिनय कर खूब नाम कराती हैं। लेकिन जब उनकी फिल्म नहीं चलती है तो वो फिल्म तड़का डालने की कोशिश में आइटम गर्ल बन जाती हैं। ठीक उसी तरह दिल्ली की राजनीति हो गई है और अब केजरीवाल अपनी फिल्म को चलाने के लिे आइटम को तड़का देने में लगा है। बहुत बुरा समय आ गया है केजरीवाल ! जय हो ...