Sunday 18 October 2015

औकात है तो हमारा " प्यार " वापस दो !

देश के जाने माने शायर मुनव्वर राना का असली चेहरा आज सामने आया। इस उम्र में इतनी घटिया एक्टिंग एक राष्ट्रीय चैनल पर करते हुए उन्हें देखा तो एक बार खुद पर भरोसा नहीं हुआ। लेकिन चैनल ने भी अपनी टीआरपी को और मजबूत करने का ठोस प्लान बना रखा था, लिहाजा मुनव्वर राना का वो घटिया कृत्य बार बार दिखाता रहा। राना का फूहड़ ड्रामा देखकर एक बार तो ये भी भ्रम हुआ कि मैं टीवी का टाँक शो देख रहा हूं या फिर कलर्स चैनल का रियलिटी शो बिग बाँस देख रहा हूं। वैसे नफरत की राजनीति करने वाले राना अगर बिग बाँस के घर के लिए परफेक्ट हैं !


आइये अब पूरा मसला बता दे, रविवार के दिन आमतौर पर न्यूज चैनलों के पास करने को ज्यादा कुछ होता नहीं है। उन्हें कुछ सनसनी टाइप चीजों की जरूरत होती है। इसके लिए आज ABP न्यूज चैनल पर राजनीतिज्ञों के साथ साहित्यकारों को बैठाया गया और साहित्य अकादमी पुरस्कारों के वापस करने पर बहस शुरू हुई। सच ये हैं कि देश की जनता आज तक ये नहीं समझ पाई कि साहित्यकार अचानक सम्मान वापस क्यों कर रहे हैं। सोशल साइट पर तो भले ही बात मजाक में कही जा रही हो लेकिन कुछ हद तक सही भी लगती है। " शायद साहित्यकारों ने अपना ही लिखा दोबारा पढ़ लिया और उन्हें शर्म आ रही है कि ऐसी लेखनी पर तो वाकई अवार्ड नहीं बनता, चलो वापस कर दें " । मुझे तो हंसी इस बात पर आ रही है कि साहित्य अकादमी का पुरस्कार वापसी के बाद पता चल रहा है कि इन्हें भी मिल चुका है ये अवार्ड ।


चलिए अब सीधे मुनव्वर राना से बात करते हैं । जनाब आप तो कमाल के आदमी हैं, अवार्ड में मिले रुपये का चेक और मोमेंटो हमेशा साथ झोले में रख कर चलते हैं। आप तो टीवी शो पर एक बहस मे हिस्सा लेने आए थे, यहीं आपने चेक और मोमेंटो एंकर को थमा दिया। मै जानता हूं आपको खबरों और उसकी सुर्खियों में बने रहने का सलीका पता है। राना साहब ये सब संयोग तो बिल्कुल नहीं हो सकता । मैं तो दावे के साथ कह सकता हूं कि या तो आपने चैनल के साथ समझौता किया कि हम यहां अवार्ड वापस करेंगे और आपको उसके बाद पूरा शो इसी पर दिखाना है या फिर रायबरेली की उस पार्टी इशारे पर नाच रहे हैं जिसकी आप चरण वंदना करते नहीं थकते हैं। वैसे राना साहब आपके ही किसी शायर की दो लाइन याद आ रही है ....


कौन सी बात कब कहां और कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है । 

शायर की ये बेसिक बात भी आप भूल गए राना जी। न्यूज रूम कैमरा देख इतना भावुक हो गए कि आपने देश की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया । चलिए मैं देखता हूं कि आप कितने अमीर हैं और  हमारे कितने अवार्ड  वापस करते हैं। अगर है आप में दम और औकात तो आपको सुनने के लिए देर रात तक मुशायरे में बैठे रहने वाला समय हमें वापस कीजिए। है औकात तो देशवासियों से मिली तालियां वापस कीजिए, है इतनी हैसियत तो हमारी वाहवाही भी वापस कीजिए। इतना ही नहीं अगर आपके पूरे खानदान की औकात हो तो देशवासियों ने जो प्यार आपको दिया है वो वापस कीजिए। राना जी राजनीति घटिया खेल है, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन आप उसी घटिया राजनीति के शुरू से हिस्सा रहे हैं।


टीवी पर एंकर कमजोर थी, शो का प्रोड्यूसर भी शायद आपके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखता था। वरना तो उसी ABP न्यूज चैनल पर आपका असली रूप दिखा और सुना भी सकता था। लोगों को भी आपकी असलियत का पता तो चलता । आप को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी कितनी प्रिय हैं ये तो सबको पता होना ही चाहिए ।

सोनियां गांधी के चरणों में मुनव्वर राना की भेंट । पढ़ तो लीजिए ही उनकी भावनाओं को, लेकिन संभव हो तो यूट्यूब पर जाकर इसे राना साहब की आवाज में सुनें भी, देखिए कितना दर्द है उनके भीतर ...


एक बेनाम सी चाहत के लिए आयी थी,
आप लोंगों से मोहब्बत के लिए आयी थी,
मैं बड़े बूढों की खिदमत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी ?
शिज्रा-ए-रंग-व-गुल-व-बू नहीं देखा जाता,
शक की नज़रों से बहु को नहीं देखा जाता !
रुखसती होते ही माँ बाप का घर भूल गयी,
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी,
घर को जाती हुयी हर राहगुज़र भूल गयी,
में वह चिड़िया हूँ जो अपना ही शजर भूल गयी,
में तो जिस देश में आयी थी वही याद रहा,
होके बेवा भी मुझे सिर्फ पति याद रहा !
नफरतों ने मेरे चेहरे से उजाला छीना,
जो मेरे पास था वह चाहने वाला छीना,
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मुझ से गिरजा भी लिया मेरा शिवाला छीना,
अब यह तकदीर तो बदली भी नहीं जा सकती,
में वो बेवा हूँ जो इटली भी नहीं जा सकती !
अपने घर में यह बहुत देर कहाँ रहती है,
लेके तकदीर जहाँ जाये वहां रहती है,
घर वही होता है औरत का जहाँ रहती है,
मेरे दरवाज़े पे लिख दो यहाँ माँ रहती है,
सब मेरे बाग़ के बुलबुल की तरह लगते है,
सारे बच्चे मुझे 'राहुल' की तरह लगते हैं !
हर दुखे दिल से मोहब्बत है बहु का ज़िम्मा,
घर की इज्ज़त की हिफाज़त है बहु का ज़िम्मा,
घर के सब लोंगों की खिदमत है बहु का ज़िम्मा,
नौजवानी की इबादत है बहु का ज़िम्मा आयी,
बाहर से मगर सब की चहीती बनकर,
वह बहु है जो रहे साथ में बेटी बनकर !



राना साहब आपकी हैसियत नहीं है देश से मिले सम्मान को वापस करने की। आपको देश से माफी मांगनी चाहिए । वरना देश आपको कभी माफ नहीं करेगा।






Monday 12 October 2015

इंदौर : जल्लाद से कम नहीं अफसर और डाक्टर !

रात के दो बज रहे हैं, कुछ देर पहले ही आफिस से आया हूं, नींद नहीं आ रही है, लेकिन मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं, वजह !  इंदौर में एक ऐसा हादसा जिसने कम से कम मुझे तो बुरी तरह झकझोर कर रख ही दिया है। पूरी घटना की चर्चा करूं,  इसके पहले आपका इतना जानना जरूरी है कि एक गरीब सड़क दुर्घटना में घायल हो गया, जब वो अस्पताल पहुंचा तो यहां डाक्टर इस घायल मजदूर के इलाज में कम उसके अंगदान करने पर ज्यादा रूचि लेते रहे।  इतना ही नहीं पर्दे के पीछे शहर में तैनात एक बड़ा हुक्मरान लगातार प्रगति पूछता रहा कि परिवार के लोग अंगदान खासतौर पर लिवर दान के लिए तैयार हुए या नहीं ? काफी मान मनौव्वल करके आखिर में परिवार को अंगदान के लिए डाक्टरों ने तैयार कर ही लिया और इस मरीज को " ब्रेनडेड " बताकर इसका लिवर, दोनों किडनी, दोनों आंखे और स्किन निकाल ली। इसके बाद इस परिवार के साथ जो हुआ उससे अफसर, अस्पताल और डाक्टरों की हैवानियत सामने आती है। परिवार को शव सौंपने के लिए पहले इलाज का बिल चुकाने का दबाव बनाया गया, 17 हजार जमा कराने के बाद ही शव दिया गया। अस्पताल से एंबुलेंस के जरिए ये शव जब मरीज के  गांव पहुंचा तो ड्राईवर शव उतारने के पहले किराए के 2800 रुपये वसूल लिए, तब लगता है कि मध्यप्रदेश में वो सब भी होता है जो यूपी और बिहार के अफसर भी करने के पहले सौ बार सोचते हैं। सच तो ये कि इन डाक्टरों और अफसरों को जल्लाद कहूं तो भी गलत नहीं है।


चलिए अब सीधे मुद्दे पर बात करते हैं। इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर खरगोन में सोमवार 5 अक्टूबर को सड़क दुर्घटना में एक मजदूर घायल हो गया, लोगों ने उसे वहां के जिला सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया। डाक्टर ने प्राथमिक चिकित्सा के बाद परिवार से कहाकि अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब है, आप बाहर से सीटी स्कैन करा लें । ये सुनकर परिवार के लोग एक दूसरे की ओर देखने लगे, क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो बाहर से सीटी स्कैन करा सकें। इस पर डाक्टर ने घायल मजदूर को ये कहकर इंदौर रैफर कर दिया कि यहां सुविधाएं नहीं है। परेशान परिजन रात करीब नौ बजे घायल मजदूर को वहां से लेकर इंदौर के लिए निकल जाते हैं।


असल कहानी यहां से शुरू होती है। तीन घंटे के रास्ते में परिवार के लोग इंदौर में रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार से बात करते हैं, जो एक साधारण सी नौकरी करता है। अंदरखाने इनकी क्या बातचीत होती है ये यही लोग बता सकते हैं, लेकिन हैरानी इस बात की हुई रात १२ बजे जब ये मरीज को लेकर इंदौर पहुंचते हैं तो वो यहां के सरकारी अस्पताल नहीं जाते, बल्कि सीधे एक प्राईवेट पांच सितारा अस्पताल में मरीज को ले जाते हैं। जबकि इस अस्पताल में मरीज को बाद में अंदर किया जाता है, पहले हजारों रुपये अंदर किए जाते हैं। अस्तपाल इस मामले में काफी बदनाम भी है, ज्यादातर लोग यहां से असंतुष्ट होकर ही जाते हैं। खैर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जिस परिवार के पास तीन घंटे पहले सीटी स्कैन कराने के पैसे नहीं थे, अचानक ऐसी कौन सी लाटरी लगी कि वो इस लुटेरे साँरी पांच सितारा अस्पताल में आ गए। खैर यहां उनका रिश्तेदार इंतजार कर रहा था, उसने तुरंत 10 हजार रुपये जमा किए और घायल मजदूर को अस्पताल वालो ने अंदर कर लिया।


परिवार के लोगों को रात भर नहीं पता चला कि उसके मरीज का क्या हाल है, क्या इलाज चल रहा है, मरीज कोई रिस्पांड दे भी रहा है या नहीं। कुछ भी परिवार के लोगों से चर्चा नहीं हुई, हां एक दो बार ये जरूर कहा गया कि इलाज चल रहा है। अरे भाई अस्पताल है तो इलाज तो होगा ही ना, ये क्या बात हुई ? अब सुबह हो चुकी थी यानि मंगलवार का दिन और सुबह के लगभग साढे सात ही बजे होंगे कि दिल्ली से दो डाक्टर इंदौर आ गए । इन डाक्टरों ने मजदूर के परिवार को बुलाया और बात शुरू की। जानते हैं क्या बात चीत की गई ?  बात ये कि कम उम्मीद है कि आपका मरीज ठीक हो, अगर ऐसा है तो आप लिवर दान कर दीजिए,  किसी की जान बच जाएगी। वेवजह इंतजार करना ठीक नहीं है। सुबह साढे सात बजे ये बात शुरू हुई और हर घंटे दो घंटे पर यही बात दुहराई जाने लगी। मंगलवार को शाम होते होते अस्पताल के भी डाक्टर अंगदान पर जोर देने लगे। शर्मनाक ये कि लिवर लेने के लिए इंदौर का एक बडा हुक्मरान भी अस्पताल पहुंच गया, पर उन्होंने मरीजों से सीधे बात नहीं की,  डाक्टरों के जरिए ही दबाव बनाते रहे। बहरहाल जो कुछ भी हुआ हो अगले दिन सुबह ही शहर में हलचल तेज हो गई । इस पांच सितारा अस्पताल से एयरपोर्ट तक " ग्रीन कांरीडोर " घोषित कर दिया गया । ग्रीन काँरीडोर मतलब एंबुलेंस निकले तो हर वाहन को रोक दिया जाए।


ग्रीन कारीडोर की खबर शहर में फैलते ही मीडिया सक्रिय हुई तो पता चला कि एक घायल मजदूर को डाक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया है और अब उस मजदूर के परिवार की इच्छानुसार उसका अंगदान किया जाना है। मजदूर का लिवर दिल्ली जा रहा है, जबकि किडनी और आँख, स्किन इंदौर में इस्तेमाल किया जाएगा। यहां एक बात बताना जरूरी है, चमत्कार को मेडिकल साइंस भी पूरी तरह नकारता नहीं है, उसे भी लगता है कि कई बार चमत्कार होते हैं और ऐसे मरीज ठीक हो जाते हैं जिनकी उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं होती है। अब देखिए यहां तो रात में मरीज भर्ती हुआ और सुबह ही डाक्टर उसका लिवर और किडनी आंख सब मांगने लगे। इसके आगे का सच सुनेंगे तो डाक्टरों और अफसर पर थूकने लगेंगे। बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ दिन पहले एक एक्सीडेंट हुआ था, उसके घायल का भी लिवर लेने का विचार हो रहा था, लेकिन मरीज दगा दे गया और उसने समय से पहले ही दम तोड़ दिया, इसलिए इस बार डाक्टर कोई रिश्क नहीं लेना चाहते थे।


जब तक डाक्टरों के हाथ लिवर नहीं लगा था, तब तक तो परिवार वालों को तरह तरह के लालच दिए जा रहे थे। मरीज के भाई से कहा गया कि उसके अंधे बेटे को निशुल्क आँख लगा दी जाएगी, वो देखने लगेगा। ऐसे ही ना जाने क्या क्या दिलासा दिलाया गया, लेकिन जैसे ही लिवर लेकर डाक्टरों ने दिल्ली के लिए उडान भरी, यहां घंटो से डेरा डाले रहा अफसर सबसे पहले खिसक गया। अब अस्पताल ने परिवार वालों को शव दिए जाने के पहले इलाज का पैसा देने को कहा। बहरहाल उनका जो रिश्तेदार इँदौर में मौजूद था उसने कुछ इंतजाम कर  17 हजार रुपये जमा किए। तब जाकर बाँडी दी गई, लेकिन गांव पहुंचने पर शव को उतारने से पहले ड्राईवर अड गया और उसने 2800 रुपये ऐंठ लिए।


दो दिन बाद मीडिया में जब ये खबर आई कि अस्पताल ने अंगदान करने वाले के परिवार से ऐसा बर्ताव किया तो पहले अस्पताल प्रबंधन की ओर से कहा गया कि बिल तो सवा लाख के करीब था लेकिन सिर्फ  27 हजार ही लिया गया है, लेकिन मामला तूल पकड रहा था, इसे देखकर फिर अखबार के दफ्तरों को फोन कर कहा गया कि जो पैसा लिया गया है वो वापस कर दिया जाएगा। एक दिन खबर छपी तो इंदौर से भोपाल तक डाक्टर, अफसर और नेताओं सभी के पसीने छूट गए। तुरंत एक अफसर मजदूर के गांव पहुंचा और रेडक्रास सोसाइटी की तरफ से अंगदान करने वाले परिवार को एक लाख रुपये का चेक दे आया। अगले दिन मुख्यमंत्री ने भी पांच लाख रुपये की घोषणा कर दी । मेरी समझ में नहीं आया कि ये सहायता है या फिर सौदा ?

बहरहाल अब मजदूर की मौत हो चुकी है, उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है, पर ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर दिल्ली में किस बड़े आदमी को लिवर देने के लिए मजदूर की जान बचाने की कोशिश तक नहीं हुई और लिवर निकालने की डाक्टरों ने जल्दबाजी की। इंदौर के हुक्मरान ने तो नियम कायदे को भी ताख पर रख दिया और प्राईवेट अस्पताल के ओटी में पोस्टमार्टम करने के लिए सरकारी डाक्टरों को बुला लिया, जबकि नियमानुसार पोस्टमार्टम प्राईवेट अस्पताल में हो ही नहीं सकता। इससे भी लगता है कि कोई बडे नेता का रिश्तेदार होगा जिसे लिवर की जरूरत थी या फिर पैसे वाला। बहरहाल अब तड़के साढे तीन बजने वाले हैं, मन यही कह रहा है कि इँदौर का ये अफसर कहीं वाकई कातिल तो नहीं है ?


नोट :  मित्रों दिल को दहला देने वाली इस घटना ने मेरी तो नींद उड़ा दी है,  कहना सिर्फ इतना है कि ये वाकया हर आदमी तक पहुंचना चाहिए, जिससे मध्यप्रदेश और यहां के हुक्मरानों का असली चेहरा लोगों तक पहुंच सके । प्लीज ...




Tuesday 29 September 2015

इंदौर: कभी पी नहीं, फिर भी कर रहे शराब की बुराई !

जकल इंदौर में हूं, बड़ा सात्विक शहर है, मैं भी आज सुबह ही शहर के राजा यानि " खजराना गणेश " जी के दर्शन करके आया हूं। अभी यहां गणेश उत्सव चल रहा था, आज ही खत्म हुआ है, कहते हैं कि गणेश उत्सव के दौरान घर-घर गणेश जी विराजते हैं, इसलिए इस दौरान शराब वगैरह नहीं पीना चाहिए। रविवार को दोपहर १२.०६ बजे गणेश जी का विसर्जन होते ही श्राद्ध शुरू हो गया, अब शराब तो श्राद्ध में भी नहीं पी जाती और श्राद्ध खत्म होते ही नवरात्र की शुरुआत। अब मित्रों ऐसे तो नहीं चल सकता ना। एक बात बताऊँ, इंदौर में हर आदमी शराब का विरोधी है, कुछ दिन पहले सूबे की सरकार ने शराब की दुकानों के बंद होने का समय रात ११ से बढ़ाकर ११.३० कर दिया, इस बात पर शहर में बवाल हो गया, इसके खिलाफ अखबार के पन्ने रंग गए, कोर्ट में जनहित याचिका लग गई। मैने भी सोचा ये क्या हो गया है सूबे के मुख्यमंत्री को ... बेवजह बैठे बिठाए विवादों को जन्म दे दिया। खैर इंदौर के बारे में ये बताना भी जरूरी है कि शहर में जहां मैं रहता हूं, उसके करीब में ही कई नेशनल बैंक की शाखाएं हैं और इससे बिल्कुल लगी हुई व्हिस्की की एक बड़ी दुकान है, लेकिन यहां सुबह बैंक से पहले व्हिस्की की दुकान खुल जाती है और बैंक मे कस्टमर हों या ना हों शराब की दुकान पर रौनक जरूर रहती है। इंदौर में हर समाज के लोग शराब पीते तो हैं, लेकिन दुकान से खुद शराब खरीदने से डरते हैं, वजह ये कि कोई देख ना ले। इसलिए यहां ज्यादातर शराब की दुकानों के आस पास कुछ लड़के खड़े मिल जाएंगे जो शराब की दुकान से दूर खड़ी कारों में शराब पहुंचा देते हैं।

ये तो रही शराब की दुकानों की बात ! थोड़ी चर्चा नानवेज की भी जरूरी है। बात पुरानी है, मैं यहां अपने पारिवारिक मित्र के साथ एक दिन कारोबार पर था । ( नया शहर है, शायद कारोबार ना समझे, इसलिए बताना जरूरी है, कारोबार बोले तो कार में बार ) हम लोगों ने अपनी कार शहर के जाने माने नानवेज ठेले ( गुरुद्वारे के पास ) पर रोकी, मैं थोड़ा खुश भी हुआ कि बिल्कुल भीड़ नहीं है,  तुरंत नानवेज मिल जाएगा। यहां पर खासतौर पर चिकन फ्राई और फिश फ्राई ज्यादा टेस्टी है। ठेलेवाले को आर्डर देने के काफी देर बाद तक जब उसने हमें फिश और चिकन नहीं दिया तो मैं कार से उतरा और पूछा कि तुम्हारे पास एक भी ग्राहक नहीं है और इतनी देर हो गई, अभी तक हमें नहीं दिया। दुकानदार ने बड़े ही मासूमियत से कहा " बाबू जी आस पास २०० मीटर तक की दूरी पर जितनी भी गाड़िया खड़ी हैं, सभी के आर्डर हैं, इन सभी गाडियों में लोग ड्रिंक्स ले रहे हैं, ठेले के पास गाड़ी इसलिए खड़ी नहीं करते कि कोई देख ना ले, ज्यादातर लोग यहां चोरी से नानवेज खाते हैं। आपके आर्डर में थोड़ा समय और लगेगा। "  मेरा माथा ठनका, खुद से सवाल किया,  क्या है ये शहर, होता सब है लेकिन चोरी से ।

अच्छा खास बात ये कि नानवेज और शराब की बुराई करने में वो लोग शामिल हैं जिनको इसका दो पैसे का अनुभव नहीं है । इन लोगों ने न कभी शराब पर पैसे खर्च किए और ना ही लाइन में लगकर मटन की शाप से मांस खरीदा। ऐसे लोग जब शराब और नानवेज की बुराई करते हैं तो मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत पीड़ा होती है। मुझे नानवेज का बचपन से और ड्रिंक्स का पिछले २५ साल का पर्याप्त अनुभव है और मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि कुछ बातों का ख्याल भर रख लिया जाए तो ये दारू आपके लिए दवा बन जाती है और कई गंभीर बीमारियों के बीच में पत्थर की तरह खड़ी हो जाती है। जो नहीं जानते वो कुछ भी कहें, लेकिन रिसर्च में आई कुछ जानकारी आप से शेयर करना चाहता हूं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में व्हिस्की की बिक्री में काफी बढ़ोत्तरी हुई हैं । सच ये है कि अल्कोहल में भी लोगों का फेवरेट ब्रांड व्हिस्की बनता जा रहा है। आप हंसेंगे या फिर इसे जोक समझेगें, लेकिन सही ये है कि व्हिस्की के कई फायदे भी हैं।


व्हिस्की से वजन नहीं बढता : आमतौर पर नासमझ लोग बीयर पीते हैं, जबकि कई साऱी मिक्स ड्रिंक्स पीने से बेहतर है कि लो कैलोरी वाली व्हिस्की पी जाए। जानकारों की माने तो व्हिस्की में कार्बोहाइड्रेट का पर्याप्त श्रोत पाया जाता है, इसके एक पैग में सिर्फ ५ केलोरी होती है, जिससे मोटापा नहीं नहीं बढ़ता है और ये आपके पाचन को भी दुरुस्त रखती है।


ह्दय के स्वास्थ के लिए फायदेमंद : डार्क बीयर और वाइन के अलावा व्हिस्की भी ऐसा पदार्थ है जो कि ह्रदय के लिए काफी फायदेमंद है, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर व्हिस्की हार्ट अटैक के खतरे को कम करती है, इतना ही नहीं ये गुड कॉलेस्ट्रॉल को भी बढ़ाता है।

कैंसर से लड़ने में मदद : व्हिस्की में एलाजिक एसिड, एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण ये शरीर में कैंसर से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, इतना ही नहीं, व्हिस्की केंसरे के मरीजों को होने वाली  कीमोथेरेपी के प्रभाव को भी कम करता है।

दिमाग की सेहत को रखती है तंदरूस्त : कई रिसर्च अब ये बात साबित कर चुकी हैं कि व्हिस्की की एक सीमित मात्रा लेने से अल्जाइमर बीमारी और डिमेन्शिया के खतरे को कम किया जा सकता है, इथेनोल की अच्छी मात्रा होने के कारण ये दिमाग के न्यूरॉन्स को सक्रिय रखने में मदद करता है, इससे याददाश्त ठीक रहती है।

स्ट्रोक के खतरे को करती है कम : क्योंकि ये बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है इस वजह से स्ट्रोक का खतरा भी कम हो जाता है, व्हिस्की धमनियों में खून क्लॉट होने से रोकने में मदद करती है, जिससे दिल के दौरे का खतरा काफी कम हो जाता है।

तनाव को करता है कम : ये तो सभी जानते हैं तनाव ना सिर्फ शरीर को बीमार करता है बल्कि इससे मेंटल हेल्थ भी प्रभावित होती है, ऐसे में व्हिस्की की एक सीमित मात्रा लेने से तनाव दूर होता है और नर्व्स को आराम मिलता है.

मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद : व्हिस्की में शुगर की मात्रा कम होती है ऐसे में ये उन लोगों के लिए परफेक्ट ड्रिंक हो सकती है जो डायबिटीज के शिकार है, यहां याद रखना होगा कि रम जरूर शूगर को बढाता है। रम और व्हिस्की में अंतर करना जरूरी है।

चलते- चलते

दो दिन पहले इंदौर में बकरीद पर हुई नमाज के बाद अपनी तकरीर में शहर काजी ने कहाकि कुछ स्थानों पर मुश्लिम महिलाएं नशे का सेवन कर रही हैं, उन्हें इससे दूर रहना चाहिए। हालाकि नशा करना ठीक नहीं है, ये बात सौ प्रतिशत सही है, पर मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि अब मुश्लिम महिलाएं भी देश की मुख्यधारा से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं।



Sunday 9 August 2015

UP : कम से कम भ्रष्टाचार में तो ईमानदारी हो




माननीय अखिलेश यादव जी
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
लखनऊ

विषय : भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू करने के संबंध में

महोदय,

मैं आपसे ऐसी कोई मांग नहीं करना चाहता जो संभव न हो, मै ये भी नहीं चाहता कि आप दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह भ्रष्टाचार पर बड़ी बड़ी बातें करें और फिर भ्रष्टाचारियों को खुद ही संरक्षण दें। अखिलेश जी मेरी मांग बहुत ही व्यवहारिक है और इसे लागू करने से सरकार की आमदनी तो बढेगी ही, प्रदेश के लोगों का सरकार पर भरोसा भी बढेगा। खास बात ये है कि इस योजना को लागू करने से सरकार पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ भी नहीं बढ़ने वाला है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इससे जनता की शिकायतें भी कम हो जाएंगी। बस सर भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दीजिए।

कैसे करना है ?  चलिए ये भी मैं बताता हूं। केंद्र सरकार की तर्ज पर कीजिए। केंद्र सरकार रेलवे में " तत्काल टिकट " के नाम पर अतिरिक्त पैसे वसूल रही है ना ! एक ही क्लास, एक ही ट्रेन, एक ही डिब्बे में आमने सामने बैठे यात्री अलग - अलग किराया देकर आराम से सफर करते हैं ना ! आज तक किसी ने इसकी शिकायत की ? ये वो सरकारी भ्रष्टाचार है जो लीगल है। अब तो रेलवे ने प्रीमियम ट्रेन के नाम पर और अधिक पैसे वसूलने की तैयारी कर ली ।

केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय का उदाहरण ले लीजिए, पासपोर्ट बनवाने की फीस है १५०० रुपये, लेकिन आपको तत्काल ये सुविधा चाहिए तो दो हजार रुपये अतिरिक्त देने पर ये काम भी आसानी से हो जाता है। आपको तय समय के भीतर पासपोर्ट मिल जाता है। ये भी तो भ्रष्टाचार का काउंटर ही है मुख्यमंत्री जी।

एक और उदाहरण देता हूं ! भारतीय डाक तार विभाग ने क्या किया ? एक ही वजन और दूरी के पत्र को निर्धारित स्थान पर पहुंचाने का अलग अलग कीमत वसूल रहा है। इसे नाम दिया गया है स्पीड पोस्ट ! धडल्ले से सरकार काउंटर खोलकर जनता को बेशर्मी से चूना लगा रही है।

अखिलेश जी, आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप भी सूबे में भ्रष्टाचार का काउंटर खोल दीजिए, अतिरिक्त पैसे वसूलना शुरू कीजिए, लेकिन इसके लिए बकायदा काउंटर खुलवा दीजिए। आज उत्तर प्रदेश में कोई भी काम बिना पैसे के नहीं हो रहा है। हर छोटे छोटे काम के लिए पैसे दिए जा रहे हैं, फिर भी मुख्यमंत्री जी काम नहीं हो रहा है।

उदाहरण के लिए आपको बताऊं...

मै खुद अपनी बेटी के लर्निंग लाइसेंस के लिए जुलाई १५ में लखनऊ के आरटीओ आफिस गया और नियम के तहत लर्निंग लाइसेंस बनवाने के लिए पूरा दिन लगाया। कई कतार में लगा, सारे अभिलेख चेक कराए, आफिस में फोटो खिंच गए, लेकिन जब टेस्ट हुआ तो जो बेटी हाईस्कूल और इंटर में प्रथम श्रेणी में पास है, वो इस परीक्षा में फेल हो गई। आरटीओ आफिस से एक पत्र थमाया गया कि १५ दिन में दोबारा टेस्ट दीजिए।

मुख्यमंत्री जी आपको पता है सुबह ११ बजे से शाम को पांच बजे तक आरटीओ आफिस में जुटे रहने के बाद सिर्फ फेल का रिजल्ट ही मेरे हाथ लगा। वापस लौट रहा था तो एक दलाल ने टोका, भाई साहब अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। पांच सौ रुपये मैने दिए और पांच छह दिन बाद जुलाई में ही मेरे पास लर्निंग लाइसेंस आ गया। मुख्यमंत्री जी मै आपको फेल का लेटर और लाइसेंस दोनों दिखा सकता हूं।

बात यहीं खत्म नहीं हुई। एक बार जब लर्निंग लाइसेंस बन गया तो लगा कि अब छह महीने के भीतर स्थाई लाइसेंस बनवाने में कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन बेटी दौड़ भाग करती रही और स्थाई लाइसेंस नहीं बन पाया। नजीता ये हुआ कि जनवरी के बाद लर्निंग लाइसेंस के छह महीने पूरे हो गए और स्थाई नहीं बन पाया। अब बताया गया कि फिर से लर्निंग लाइसेंस बनवाना होगा।

मुख्यमंत्री जी अगले लाइसेंस के लिए ७०० रुपये दलाल को दे आया हूं, १० दिन बीत गए, लेकिन अभी तक लाइसेंस नहीं आया है। आप से प्रार्थना है कि इस भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दें, तत्काल लाइसेंस जैसी व्यवस्था कर दें, क्योंकि आपके राज में ९५ फीसदी लाइसेंस दलालों के जरिए ही बनते हैं। लाइन में लगने वालों को साजिश के तहत टेस्ट में फेल कर दिया जाता है।

हम रेलवे में तत्काल टिकट लेते हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, जिन्हें जल्दी पासपोर्ट लेना होता है वो अधिक पैसे देकर पासपोर्ट बनवाते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं है,  अधिक पैसे देकर स्पीड पोस्ट से डाक भेजते हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है। प्लीज आप " सुविधा शुल्क " काउंटर की व्यवस्था कर दें, इससे कम से कम हमें अधिक पैसे देने पर सरकार की ओर से एक रसीद और भरोसा तो मिलेगा ना कि हमारा काम हो जाएगा। दलाल को पैसे भी देते हैं और भरोसा के साथ गारंटी भी नहीं कि काम हो ही जाएगा।

मुझे उम्मीद है कि मेरी बात पर ध्यान देंगे और जल्दी ही ऐसी व्यवस्था जरूर करेंगे, जिससे प्रदेश में ईमानदारी से भ्रष्टाचार को लागू किया जा सके।


आपका

महेन्द्र श्रीवास्तव
९८७१०९६६२६
लखनऊ

Thursday 26 February 2015

रेल बजट : डरपोक नजर आए प्रभु !

रेल बजट से सिर्फ निराशा ही नहीं हुई बल्कि इस बजट ने रेलवे बोर्ड के प्रबंधन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं ! बजट पर बात करूंगा, लेकिन पहले रेलवे बोर्ड की प्रासंगिकता पर बात करना जरूरी हो गया है। इस बजट को सुनने के बाद मन में जो पहला सवाल है वो ये कि रेलवे बोर्ड की आखिर जरूरत क्या है ? जर्नलिज्म से जुड़े होने की वजह से मेरा 15 - 20 साल से रेलवे और बोर्ड के तमाम अफसरों से संपर्क रहा है, इसलिए रेलवे के सिस्टम को बखूबी समझता हूं। बोर्ड में मैकेनिकल और सिविल इंजीनियरों की जबर्दस्त खेमेबंदी है। दोनों गुट की कोशिश रहती है कि बोर्ड में उनकी तूती बोलती रहे, इसके लिए ये बहुत नीचे तक गिर जाते हैं। खैर इस मसले पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी, आज मैं ये जानना चाहता हूं कि रेलवे बोर्ड के पास ना कोई प्लानिंग है ना कोई विजन है और ना ही कोई सिस्टम है, ऐसे में रेलवे को इस हाथी ( रेलवे बोर्ड ) की जरूरत क्यों है ? ये इंजीनियर ट्रेन को पटरी से उतार देगें, वरना मेरा तो यही मानना है कि बोर्ड का प्रबंधन इंजीनियरों से लेकर IAS को सौंप दिया जाना चाहिए, क्योंकि मुझे लगता है कि योजना, बजट, अनुशासन ये सब एक इंजीनियर के मुकाबले IAS बेहतर कर सकता है।  

आइये बजट पर चर्चा करते हैं। रेलमंत्री सुरेश प्रभु पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है, इसलिए वो गुणा भाग में माहिर हैं। उनकी ये महानता बजट में दिखाई दी और उन्होंने सबसे बड़ा झूठ ये कहाकि आज रेलवे का आँपरेशन रेसियो 88.5 है। मतलब रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए 88.50 रुपये खर्च करता है। सच्चाई ये है कि रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए करीब 113 रुपये खर्च करती है। वैसे प्रभु आपकी लीला अपंरपार है, आपने कहा कि अभी तक लोग 60 दिन पहले का ही रिजर्वेशन करा सकते थे, जिसे बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है। मतलब लगभग पांच हजार करोड रूपये बिना सफर कराए ही एडवांस में रेलवे के खाते में जमा हो जाएंगे । यात्रियों की इस रकम पर बैंक तो रेलवे को ब्याज देगा, लेकिन टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो रेलवे यात्री को पूरा पैसा तक वापस नहीं करेगी, वो कैंसिलेशन चार्ज वसूलेगी। फिर चार महीने बाद क्या होगा ये साधारण यात्री तो नहीं जानता, ये तो प्रभु आपको ही पता हो सकता है। 

प्रभु आपका ये ऐलान कि ट्रेनों और प्लेटफार्म पर विज्ञापन के जरिए रेलवे आय का स्रोत बढाएगी, ये बात तो समझ में आती है। लेकिन आप का ये ऐलान गले नहीं उतरा कि कंपनियों के नाम पर स्टेशन और ट्रेन का नाम रखकर बड़ी रकम वसूल की जाएगी। मुझे याद है कि पूर्व रेलमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी ने एक बार रेल के अफसरों को इसीलिए लताड लगाई थी कि वो ट्रेनों का नाम ठीक तरह से नहीं रखते थे। पहले ट्रेन का नाम होता था, बाम्बे मेल, तूफान मेल, कालका मेल आदि आदि। स्व. त्रिपाठी ने कहाकि ट्रेन के नाम सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक पहचान के आधार पर रखे जाएं। उनके समय में जो भी ट्रेनें चलीं उनका नाम बहुत सोच समझ कर रखा जाता था, जैसे काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस, त्रिवेणी एक्सप्रेस, गंगा गोमती एक्सप्रेस, हिमगिरी एक्सप्रेस इत्यादि। लेकिन प्रभु आपके ऐलान के बाद तो लगता है कि ट्रेनों का नाम होगा एमडीएच चिकन मसाला एक्सप्रेस, कुरकुरे एक्सप्रेस, पेप्सी मेल, सहारा एक्सप्रेस, जाँकी अंडरवियर सुपरफास्ट ट्रेन, तुफान बीडी मेल, बेगपाईपर सुपर फास्ट ! ये सब क्या है प्रभू ? 

वैसे प्रभु एक बात बताऊं, पूर्व रेलमंत्री लालू यादव को आज मैं वाकई याद कर रहा हूं। लालू का मैं बड़ा आलोचक रहा हूं, लेकिन आपके बजट के बाद इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि लालू बजट पर मेहनत करते थे और उनके बजट में रेलवे के मुनाफे के साथ दूरदर्शिता दिखाई देती थी। लालू ने रेलवे बोर्ड के इंजीनियरों पर आंख मूंद कर कभी भरोसा नहीं किया, वो अपने साथ बिहार कैडर के कुछ आईएएस अफसरों को  अपना OSD बनाकर बोर्ड में बैठा दिया था। नतीजा ये हुआ कि बिगडैल इंजीनियरों पर लगाम कसा जा सका। सच कहूं प्रभु आपका बजट तो मैं अभी तक यही नहीं समझ पा रहा हूं कि ये है किसके लिए ? इसे ना यात्रियों का बजट कह सकते है, ना रेल कर्मचारियों का बजट कह सकते हैं और ना ही व्यापारियों का बजट कह सकते हैं। संसद में आपने साफ-साफ बता दिया कि दिल्ली मुंबई राजधानी की औसत गति सिर्फ 79 किलोमीटर प्रति घंटा है, जबकि दूसरी राजधानी की औसत गति तो 55 से 60 किलोमीटर प्रतिघंटा ही है। इसलिए प्रभु जी आपने ऐलान किया कि आप कुल 9 रेलमार्ग पर गति सीमा बढ़ाएंगे। पता नहीं आपको याद है या नहीं, लेकिन ये काम लालू यादव ने शुरू किया था, उन्होंने सबसे पहले दिल्ली से आगरा तक भोपाल शताब्दी को 150 किलोमीटर की रफ्तार से चलाने की कोशिश की। कई साल काम चला, रेलवे ने 180 करोड रुपये ज्यादा पटरियों को अपग्रेड करने पर खर्च भी किया। लेकिन आज भी भोपाल शताब्दी की औसत गति 110 - 120 किलोमीटर ही है। मुझे लगता है कि बोर्ड के इंजीनियरों ने मोटा माल बनाने के लिए पुरानी पटरी को अपग्रेड करने का तरीका तलाशा है। 

साफ-सफाई तो खैर जितना भी हो कम है, इस पर आपने ध्यान दिया है अच्छी बात है। लेकिन फिर मुझे कहना पड़ रहा है कि बोगी में बायो टायलेट की शुरुआत पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ना सिर्फ अपने बजट में कर चुके है, बल्कि उनके समय में ही आईआरडीएसओ ने एक बोगी तैयार कर दिल्ली में इसका प्रदर्शन भी किया था। इस दौरान लालू के साथ कैबिनेट मंत्री रहीं अंबिका सोनी भी मौजूद थीं। आपने कहाकि मेक इन इंडिया के तहत इंजन, बोगी, पहिए देश में बनाए जाएंगे। प्रभु देश में तो आज भी ये तीनों चीजें बन रही हैं, हां जरूरत के मुताबिक उत्पादन नही कर पा रहे हैं। सफर के दौरान यूज एंड थ्रो बेडरोल की बात नई जरूर है, बहरहाल इसका इंतजार रहेगा। ये अच्छा प्रयास है। 

प्रभु आपके एक ऐलान से तो मेरा पूरा परिवार हंसते हंसते थक गया। आपने कहाकि चार महीने पहले आप ट्रेन का टिकट ले सकते हैं और टिकट लेने के दौरान ही मनचाहे खाने का आर्डर भी IRCTC के जरिए आँनलाइन ही कर सकते है। पहला तो ये कि जहां लोग सुबह नाश्ते के बाद सोचते हों कि लंच में क्या खाया जाए, वहां आप चार महीने पहले खाने के आर्डर को मनचाहा खाना बता रहे हैं। चलिए ये तो कोई खास नहीं.. लेकिन एक वाकया बताता हूं। दिल्ली से गोवा जा रहा था, ट्रेन को दोपहर एक बजे भोपाल पहुंचना था, एक  मित्र ने कहाकि भोपाल में वो खाना लेकर आएंगे ! ट्रेन 6 घंटे लेट हो गई और हम सभी  बिस्किट खाकर भूख से जूझते रहे। ट्रेनों की लेट लतीफी के बीच अगर यात्री भोजन का इंतजार करता रहा तो उसका भगवान ही मालिक है। 

जनरल कोच में मोबाइल चार्ज करने की सुविधा दे रहे हैं, लेकिन प्रभु कुछ ऐसा कीजिए कि सामान्य श्रेणी के कोच में यात्री आराम से सफर भर कर सके, तो भी चल जाएगा। स्टेशन पर फ्री वाईफाई भी गैरजरूरी बात लगती है, क्योंकि आज कल सभी के फोन पर नेट की सुविधा आमतौर पर होती ही है। सरकारी पैसे को बेवजह खर्च करने की जरूरत नहीं है। और हां प्रभु ये बताएं आपने एक भी नई ट्रेन का ऐलान नहीं किया ! मुझे तो ये बात समझ में ही नहीं आ रही है। आपको पता है कि लोगों को आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है, रेलवे आज भी डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है ऐसे में नई ट्रेन का ऐलान होना ही चाहिए। मुझे पता है कि रेल रूट बिजी है, लेकिन जब आप कह रहे हैं कि ट्रेनों की स्पीड बढ़ाकर कुछ समय निकाला जाएगा, तो नई ट्रेन चलाई जा सकती है। इससे तो आपकी और बोर्ड अफसरों में इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। डिमांड पूरी करने के लिए ट्रेनों में बोगी बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ज्यादातर ट्रेनो में 24 कोच लगाए जा रहे हैं, इससे ज्यादा कोच लगाने की क्षमता ही नहीं है। कई रेलवे स्टेशन पर तो 24 कोच की ही ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी नहीं हो पाती है, फिर और बोगी बढ़ाने की बात तो बेमानी लगती है। 

आखिर में रेलवे के आय पर बात करना है। एक बार फिर बजट में पीपीपी की बात की गई है। प्रभु आपको पता है कि वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के लिए पीपीपी के तहत देश विदेश से टेंडर आमंत्रित किए गए थे, लेकिन कोई भी आवेदन नहीं आया। दरअसल सच्चाई ये है कि भारतीय रेल पर किसी को भरोसा ही नहीं है। आपने सिर्फ पीठ थपथपाने के लिए रेल किराए में कोई बढोत्तरी नहीं की। मै तो आपके इस फैसले से पूरी तरह असहमत हूं। देश में रोजाना 2.30 करोड यात्री ट्रेन से सफर करते हैं। इसमें अकेले मुंबई में 85 लाख यात्री रोजाना लोकल ट्रेन से सफर करता है। अभी वहां तीन महीने का मासिक सीजन टिकट सिर्फ 15 दिन के किराए पर दिया जाता है। मासिक सीजन टिकट में बढोत्तरी की गुंजाइश थी, लेकिन आपने नहीं किया। इसी तरह अपर क्लास का किराया लगातार बढाया गया है लेकिन जनरल और स्लीपर क्लास में किराया नहीं बढ़ा है, इसलिए जरूरी है कि किराए को तर्कसंगत बनाया जाए। माल भाडा बढ़ाया तो.. लेकिन आपकी हिम्मत नहीं हुई कि बजट भाषण में इसे आप पढ सकें। मुझे बजट तो दिशाहीन लगा ही प्रभु आप डरपोक भी नजर आए। 

चलते-चलते
रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अरुणेन्द्र कुमार टीवी बहस में इस रेल बजट को 10 में 11 नंबर दे रहे थे, मुझे लगता है कि उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी सरकार रेलवे बोर्ड की किसी कमेटी का उन्हें चेयरमैन बना देगी !