( कौन कहता है कि पीते समय गंभीर बातें नहीं होतीं )
झटका लगा ना आपको, हैरत में पड़ गए होंगे, ये क्या बात है। अरे इन दोनों में भला क्या तुलना हो सकती है। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री हैं और अफजल गुरु देश की संसद पर हमले का मास्टर माइंड। हालाकि मैं भी जब अपने दिमाग पर बहुत ज्यादा जोर डालता हूं, तो इन दोनों में सिर्फ एक समानता दिखाई देती है, वो ये कि दोनों ही दाढ़ी रखते हैं, लेकिन यहां भी इनमें अंतर है, हमारे प्रधानमंत्री की दाढ़ी़ पूरी तरह सफेद हो चुकी है, लेकिन अफजल गुरु की सफेद होनी शुरू भर हुई है।
दरअसल नवरात्र शुरू होने से पहले कुछ मित्रों ने तय किया कि एक छोटी सी पार्टी कर ली जाए, वरना तो नौ दिन पीना-पिलाना और नानवेज पूरी तरह बंद हो ही जाएगा। हमारे एक साथी ने इस बात को जिस तरह पेश किया उससे एक बार तो ऐसा लगा कि अगर हम सबने नवरात्र के पहले आपस में गिलास नहीं टकराई तो पहाड़ टूट पड़ेगा। फिर क्या था, आफिस से छूटते ही हम सभी की कारें प्रेस क्लब की ओर निकल पडी। क्लब पहुंच कर सभी ने अपनी अपनी पसंद के ड्रिंक्स का आर्डर किया और एक टेबिल पर जम गए।
आधे घंटे बीते होंगे की बात संसद पर हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु पर शुरू हो गई। एक मित्र बहुत गुस्से में आ गए और कहाकि क्या हो गया है देश के नेताओं को। बताइये साहब अफजल गुरु की माफी के लिए कश्मीर विधानसभा में मामला उठाया जा रहा है। इस बीच हम सभी के दो दो पैग हो चुके थे, लिहाजा अफजल गुरु के समर्थन में भी एक मित्र खड़े हो गए। उन्होंने पूरी आधी ग्लास व्हिस्की एक ही घूंट में खत्म करते हुए गिलास मेज पर रखी और सिगरेट सुलगा ली। उसके बाद तो वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ऐसी तैसी करने में जुट गए।
दोस्त ने कहा कि अफजल गुरु से ज्यादा खतरनाक मनमोहन सिंह हैं। अफजल ने तो संसद पर बाहर से हमला कराया था, प्रधानमंत्री तो संसद के भीतर से संसद पर हमला बोल रहे हैं। अगर अफजल आतंकी हमले का मास्टर माइंड है, तो अपने पीएम को भी हम पाक साफ नहीं मानते, उन्हें देश में हो रहे लूट खसोट का मास्टर माइंड कहना गलत नहीं होगा। माहौल थोड़ा गरमा सा गया, इसी में से किसी की आवाज आई कि भाई आप कुतर्क कर रहे हैं, प्रधानमंत्री पर कोई दाग नहीं है। मित्र ने पलट कर जवाब दिया कि अफजल गुरू को हमले का मास्टर माइंड बताकर ही तो मौत की सजा सुनाई गई है, उसके पहले वो क्या था आप जानते हैं। सभी खामोश हो गए।
मित्र यहीं पर नहीं रुके, तीसरा पैग बनाते हुए उन्होंने कहा कि अगर समय रहते मनमोहन सिंह से कुर्सी खाली नहीं कराई गई तो देश गर्त में चला जाएगा। भला देश का प्रधानमंत्री ये कैसे कह सकता है कि टू जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में धांधली की उसे जानकारी नहीं थी। कामनवेल्थ घोटाला होता रहा और मनमोहन सिंह खामोश रहे। नोट के बदले वोट कांड में भले ही दूसरे लोग जेल में हैं, लेकिन फायदा किसको मिल रहा था, सरकार किसकी बच रही थी। देश की जनता को बेवकूफ समझते हैं।
मित्र चुप होने को तैयार ही नहीं। अपनी बात में वजन डालने के लिए उन्होंने कहा कि आप लोग ये बिल्कुल ना समझें की मैं पीकर बहक रहा हूं, श्रीवास्तव जी जानते हैं, मैं कभी कभार पीने वाला नहीं हूं, रोजाना तीन ड्रिंक्स लेता हूं। उन्होंने फिर हम सबको समझाने की कोशिश की और बोले देखो भाई सुप्रीम कोर्ट में वित्त मंत्रालय से निकले जो अभिलेख दाखिल किए गए हैं, उससे साफ है कि राजा के फैसले की पूरी जानकारी ना सिर्फ पी चिदंबरम को थी बल्कि पीएमओ कार्यालय यानि प्रधानमंत्री तक को थी।
अगर देश पर कोई हमला दुश्मन करता है, तो हमें उतनी तकलीफ नहीं होती, क्योंकि हम जानते हैं कि आतंकवादियों ने ये हमला किया है। लेकिन जब ऐसे ही हमलों में साध्वी प्रज्ञा और असीमानंद जैसे लोगों के नाम सामने आते हैं तो रोना आता है।
मित्र जरा भावुक हो गए, बोले जब दुश्मन संसद पर हमला करने आए तो हमारे बहादुर सैनिकों ने उन्हें मौत की नींद सुला दी, लेकिन भाइयों इन निकम्में नेताओं से हिसाब बराबर कौन करेगा ? संसद पर हमला कर तबाही मचाने का अफजल गुरु का मिशन पूरा नहीं हो पाया, लेकिन उसे फांसी की सजा मुकर्रर कर दी गई, पर देश को लूटने का मिशन पूरा कर चुके इन नेताओं को फांसी कब होगी ?
अरे ये क्या मित्र की आंखों में आंसू आ गए, बोले वैसे तो मैं गांधी जी का समर्थक हूं और फांसी के खिलाफ हूं। अन्ना जी ने जब बेईमान नेताओं को फांसी देने की मांग की तो एक बार मुझे भी लगा कि ये मांग जायज नहीं है, लेकिन जिस तरह से इन नेताओं ने देश को लूटा है, उससे ये फांसी से भी सख्त सजा के हकदार हैं।
माहौल बहुत ही गरम होता जा रहा था, मुझे लगा कि इस बात को खत्म करना चाहिए। वरना तो हालात बिगड भी सकते हैं. वैसे भी आजकल दिल्ली में पीने पिलाने के बाद कार ड्राइव करने पर पुलिस बहुत सख्त हो गई है, सो हमने सभी से एक किस्सा सुनने का आग्रह किया। लोग मेरी तरफ मुखातिब हुए,, मैने कहा देखो भाई गांधी जी अपने आश्रम तीन बंदर रखते थे, इनमें से एक आंखें बंद रखता था, एक मुंह बंद रखता था और तीसरा अपने कान बंद किए रहता था। लेकिन आज गांधी जी होते तो वो तीनों बंदरो को हटाकर मनमोहन सिंह का चित्र रख लेते, क्योंकि ये ना देखते हैं, ना सुनते हैं और ना ही बोलते हैं। सभी ने जोर का ठहाका लगाया और चलने के लिए खडे हो गए। अब मैं ही सबसे ज्यादा दुरुस्त था, मैने तो तीसरा पैग भी अभी तक नहीं बनाया था, लिहाजा इस रात का आठ हजार का बिल मेरे ही जिम्मे आ गया।
कार्ड से बिल चुकता करने के बाद मैं भी अपनी कार में घर लौटने को सवार हो गया। वैसे तो दोस्तों पीने पिलाने के दौरान हुई बात चीत वहीं भूल जानी चाहिए, उसे याद रखने का कोई मतलब नहीं होता। पर एक सवाल मेरे दिमाग में जरूर घूम रहा है कि अफजल गुरू को फांसी की सजा हो गई है, उसे दी ही जानी चाहिए, पर आजाद देश में इतना करप्ट मंत्रिमंडल पहली बार सामने आया है, तो सख्त सजा के हकदार तो ये भी हैं। संसद पर हमले का मिशन अफजल गुरु का फेल हो गया था, लेकिन देश को लूटने का मिशन तो नेताओं का पूरा हो गया है, इन्हें बचाने की कोशिश आखिर क्यों हो रही है ? आपके पास इसका क्या जवाब है।