Wednesday 18 July 2012

क्योंकि मैं हूं सोनिया गांधी ...


मैं चाहे ये करुं, मैं चाहे वो करुं मेरी मर्जी। अरे अरे आप सब तो गाना गुनगुनाने लगे। ऐसा मत कीजिए मै बहुत ही गंभीर मसले पर बात करने जा रहा हूं। मैं इस बात को मानने वाला हूं कि देश की कोई भी संवेधानिक संस्था हो, उसकी गरिमा बनी रहनी चाहिए। मैं ये भी मानता हूं कि अगर संवैधानिक संस्थाएं कमजोर हुईं तो देश नहीं बचने वाला। अच्छा संवैधानिक संस्थाओं को बचाने की जिम्मेदारी जितनी संस्था के प्रमुखों की है, उससे कहीं ज्यादा हमारी और आपकी भी है। सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव के ठीक पहले मतदाताओं को पांच सितारा होटल में लंच देकर चुनाव की आदर्श आचार संहिता को तोड़ा है, लेकिन निर्वाचन आयोग पूरी तरह खामोश है। मैं देखता हूं कि जब कहीं भी मामला सोनिया गांधी का आता है तो यही संवैधानिक संस्थाएं ऐसे दुम दबा लेतीं हैं कि इनकी कार्यशैली पर हैरानी होती है।
टीम अन्ना जब दागी सांसदों पर उंगली उठाती है, तो मैं उनका समर्थन करता हूं। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, पप्पू यादव, ए राजा, सुरेश कलमाड़ी, मायावती ऐसे तमाम नेता हैं, जिनका नाम लेकर अगर कोई बात की जाए, तो मुझे लगता है कि कोई भी आदमी इन नेताओं के साथ खड़ा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब किसी ना किसी तरह करप्सन में शामिल हैं, सभी पर कोई ना कोई गंभीर आरोप है। लेकिन गिने चुने नेताओं को लेकर जब आप संसद पर हमला करते हैं और तब सबसे पहले मैं टीम अन्ना के खिलाफ बोलता हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करके हमें ईमानदारी नहीं चाहिए। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की  जो हालत है ये इसीलिए है कि वहां संवैधानिक संस्थाएं कमजोर हो गई हैं। ऐसे में वहां तख्तापलट जैसी घटनाएं होती रहती हैं। आपको याद दिला दूं कि जिस तरह देश में एक ईमानदार पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह के साथ सरकार ने व्यवहार किया है, अगर वैसा पाकिस्तान में होता तो वहां सरकार नहीं रहती, बल्कि वहां का सेना प्रमुख तख्ता पलट कर सत्ता पर काबिज हो जाता। पर हमारे देश मे संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती और उनके अनुशासन का ही परिणाम है कि आज भी देश में लोकतंत्र है और ये मजबूत भी है।

अब बात भारत निर्वाचन आयोग की। एक जमाना था कि निर्वाचन आयोग मे और रोजगार दफ्तर में कोई अंतर नहीं था। क्योंकि इन दोनों को नान परफार्मिंग आफिस माना जाता था। लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने बताया कि निर्वाचन आयोग का महत्व क्या है। उसके बाद दो एक और निर्वाचन आयुक्तों में भी शेषन की छवि दिखाई दी। पर अब धीरे धीरे निर्वाचन आयोग अपनी पुरानी स्थिति में पहुंचता जा रहा है। दस पंद्रह साल से लगातार चुनाव आचार संहिता की बहुत चर्चा हो रही है। यानि ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख, विधायक और सांसद के चुनाव में निर्वायन आयोग ये अपेक्षा करता है कि वोटों की खरीद फरोख्त ना हो, मतदाताओं को लालच ना दिया जाए, खर्चों की एक निर्धारित सीमा होती है, उसके भीतर ही उम्मीदवार चुनाव लड़े। इसके लिए देश भर में आयोग पर्यवेक्षक भेजता है। पर्यवेक्षक देखते हैं, जहां कहीं कोई उम्मीदवार अगर लोगों को दावत देता है, तो वो अनुमान लगाता है कि इस दावत में कितना खर्च हुआ होगा और ये पैसा उसके खर्च रजिस्टर में दर्ज कर दिया जाता है।

लेकिन देश के पहले नागरिक यानि राष्ट्रपति के चुनाव में आयोग की आचार संहिता कहां है ? मैं पूछना चाहता हूं आयोग से राष्ट्रपति के चुनाव में खर्च की सीमा कीतनी है ? इस चुनाव में पर्यवेक्षक कौन है ? आदर्श आचार संहिता तोड़ने वालों के खिलाफ रिपोर्द दर्ज कराने की जिम्मेदारी किसकी है ? वोटों की खरीद-फरोख्त पर नजर कौन रख रहा है? हो सकता है कि निर्वाचन आयोग को ये सब दिखाई नहीं दे रहा हो, लेकिन राष्ट्रपति के यूपीए उम्मीदवार को जिताने के लिए सरकारी खजाने का खुलेआम दुरुपयोग किया जा रहा है। वोट हासिल करने के लिए राज्यों को पैकेज देने की तैयारी है। यूपी के अफसरों के साथ तो बैठक भी हो गई और 45 हजार करोड मिलना लगभग तय हो गया है। बिहार में कहां एक केंद्रीय विश्वविद्यालय को लेकर यूपीए सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल और बिहार सरकार के बीच ठनी हुई थी, जेडीयू का समर्थन मिलते ही वहां दो केंद्रीय विश्वविद्यालय की बात मान ली गई। मायावती को कोर्ट के जरिए एक बड़ी राहत यानि आय से अधिक मामले को लगभग खत्म करा दिया गया। ये सब तो ऐसे मामले हैं जो आम जनता तक पहुंच चुकी हैं, इसके अलावा अंदरखाने क्या क्या सौदेबाजी हो रही होगी, ये सब तो जांच का विषय है। पर सवाल ये है कि कौन करेगा जांच और इस जांच का आदेश कौन देगा ?

अब चुनाव के लिए कल यानि 19 जुलाई को वोटिंग है। इसके ठीक पहले आज यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने सभी वोटर सांसदों को लंच पर निमंत्रित किया। लंच के बहाने वो प्रणव दा की जीत को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहती हैं। मेरा सवाल है कि अगर ग्राम प्रधान के चुनाव में उम्मीदवार बेचारा गांव वालों को एक टाइम का भोजन करा देता है तो उसके खिलाफ चुनाव की आदर्श आचार संहिता को तोड़ने का मामला दर्ज करा दिया जाता है। सोनिया गांधी दिल्ली के पांच सितारा होटल अशोका में लंच के बहाने सिर्फ यूपीए ही नहीं उन सब को भोजन पर बुलाया है जो प्रणव दा को वोट कर रहे हैं। मसलन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के अलावा कई और ऐसे दल आमंत्रित हैं, जिसने दादा को समर्थन देने का ऐलान किया है। मैं पूछता हूं कि क्या ये लंच चुनाव की आदर्श आचार संहिता के खिलाफ नही है? और अगर है तो क्या निर्वाचन आयोग इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कराएगा ?

मुझे जवाब पता है कुछ नहीं होने वाला है। क्योंकि देश में राष्ट्रपति सोनिया बनाती हैं, उप राष्ट्रपति सोनिया बनाती हैं, प्रधानमंत्री सोनिया बनाती हैं, लोकसभा स्पीकर सोनिया बनाती हैं, मुख्यमंत्री सोनिया गांधी के सहमति से बनते हैं, राज्यपाल सोनिया गांधी की सहमति से बनते हैं, निर्वाचन आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त भी सोनिया बनाती हैं। ये सब देखने मे भले लगते हों कि लोग एक निर्धारित प्रकिया से चुन कर आते हैं या फिर सरकारी सिस्टम से बनते हैं, पर ये सब गलत है, सच है कि हर तैनाती में सोनिया की ना सिर्फ राय होती है बल्कि उनकी अहम भूमिका होती है।  ऐसे में भला सोनिया के खिलाफ ये मामला कैसे दर्ज हो सकता है। बहरहाल मामला भले ना दर्ज हो, पर मैडम..ये पब्लिक सब जानती है।




   

42 comments:

  1. एकदम सही कहा है..है कोई ..का लाल..वाली ही बात है न..

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  2. paini nazar hai aapki har mamale par...vicharniya masala hai ye...

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  3. राजा और प्रजा में कुछ अंतर तो होना चाहिए ..

    संवैधानिक संस्‍थाओं की गरिमा का तो ख्‍याल रखें ..
    आप ग्राम प्रधान और राष्‍ट्रपति को एक तरालु पर तौलेंगे ?
    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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    1. kya aap sindhya khandan se ho? jisne paisa dekar angrejo ko bulaya tha.

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  4. राजा ..रानी कुछ भी करे ...उन्हें सब कुछ माफ हैं ....ये प्रथा सदियों से चली आ रही हैं ...और प्रजा बेचारी निहिर सी खड़ी हमेशा ही निहिर ही रही ...

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  5. आपकी पोस्ट पढ़ कर झटका लगा ..आम जनता ये चुनाव की ये सब बातें /प्रावधान /कमियां नहीं जानती ... इस तरह से तो हम फिर ग़ुलाम हो गए हैं और अधिकाँश को तो इसका अहसास तक नहीं है..

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  6. चुनाव कोई भी हो आचार संहिता का पालन होना ही चाहिए,,,,,,

    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

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  7. सच है जो कुछ हो रहा है देश को दिशाहीन ही करेगा....कर भी रहा है.... न कुछ स्वायत्त बचा है न ही संस्थानिक.....

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  8. राष्ट्रपति पद का चुनाव भी अब ग्राम पंचायत जैसा ही लगाने लगा है ...

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  9. सोनिया ji ka ye कार्य aadarsh chunav sahinta ko todne vala है kintu unke khilaf karyavahi नहीं hoti iskeliye ve नहीं balki chunav aayog jimmedar है kyon vah kisi ko samvidhan se upar sthan deta है?aur rahi bat gram pradhan bechare ki to aapki jankari के लिए हमारे यहाँ चेयरमैन पद के umeedvar ne हमारे ward के logon ko samose घेवर खिलाया कोई कार्य वाही नहीं hui.सार्थक post chunav aayog yadi karyavahi kar सही kadam uthaye to hame bhi utni hi khushi hogi jitni आपको .समझें हम

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    1. जी ये भी गलत है, वोट के लिए लालच बिल्कुल गलत है

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  10. मैं चाहे ये करुं, मैं चाहे वो करुं मेरी मर्जी।... ye to soniya gaati hui nazar aane lagin

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  11. आँखे खोलती हुई पोस्ट करोडो जनता के सामने ये सब हो रहा है और जनता खामोश है क्या करे कोई जिसकी लाठी उसी की भैंस जब से इन सोनिया जी के चरण कमल अपने देश में पड़े हैं सब उलट पलट हो गया है पता नहीं कौन सा जादू करती हैं जो सभी पप्पट बन जाते हैं एक वफादार पप्पट तो पहले ही था एक और आ जाएगा शायद कसाब की मुक्ति के लिए ही आ रहा हो

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  12. एकदम सही कहा है..ये पब्लिक सब जानती है।पर कुछ नहीं कर पाती है..

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  13. बिल्‍कुल सच कहा ... एक बार फिर से ...आभार आपका

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  14. बिल्‍कुल सच कहा

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  15. जो विचार आपने लिखे हैं, वही सारी बाते मन में उथल-पुथल मचा रही थी। और कल तो हद ही हो गयी जब मुलायम सिंह जी ने मतपत्र ही फाड़ डाला। इस देश का दुर्भाग्‍य है कि यह देश एक दल का गुलाम बनता जा रहा है।

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  16. मैं देखता हूं कि जब कहीं भी मामला सोनिया गांधी का आता है तो यही संवैधानिक संस्थाएं ऐसे दुम दबा लेतीं हैं कि इनकी कार्यशैली पर हैरानी होती है।
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    लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने बताया कि निर्वाचन आयोग का महत्व क्या है। उसके बाद दो एक और निर्वाचन आयुक्तों में भी शेषन की छवि दिखाई दी। पर अब धीरे धीरे निर्वाचन आयोग अपनी पुरानी स्थिति में पहुंचता जा रहा है।
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    bilkul sahi kaha hai aapne

    shubhkamnayen

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  17. Mahendraji, mujhe ap se shikayat h, usse jyada apke samarthako se. Jo ap ko galt marg par le jate h. Ajadi ke 60 sal bad bhi yah raja aur prja ki mansikta se upar nahi usake. Lagta h inke liye vises apresa kanaa paega

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  18. ये अलग बात है कि अभी देश में 'सोनियातंत्र' हावी है
    लेकिन कोई भी तंत्र लोकतंत्र से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकता ..
    समय आने दीजिये और तमाशा देखते रहिये ..
    ये पब्लिक है सब जानती है ...

    उत्कृष्ट व सार्थक लेखन ..
    सादर !

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  19. राष्ट्रपति चुनाव पर बहुत गहन अवलोकन. सार्थक लेख, शुभकामनाएँ.

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  20. 'समर्थ को नही दोष गुसाई'

    सोनिया अब समर्थ है.
    उनके आगे सब पिद्दी हो रहें हैं ,क्यूँ ?

    जिन्होंने सोनिया जी के निमंत्रण को स्वीकार किया,क्या वे
    सब उल्लंघन नही कर रहे हैं आचार संहिता का.

    दोषी केवल सोनिया ही नही है,महेंद्र जी.

    यदि आपका बस चले तो आप क्या दंड देंगें सोनिया जी को

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।