Saturday 28 May 2011

अंग्रेजों को गांधी ने नहीं गर्मी ने भगाया



आजकल ऑफिस का माहौल ही बदला हुआ है। आमतौर पर जो लोग देर से ऑफिस आते थे और जल्दी चले जाते थे, आजकल समय से पहले आते हैं और ऑफिस का समय खत्म हो जाने के भी काफी देर बाद जाते हैं। ये सब वो लोग हैं, जिन्हें समय से ऑफिस आने और जाने के लिए प्रबंधन ने कई हथकंडे अपनाए, पर वो कामयाब नहीं हो पाए। लेकिन अचानक ये बदलाव देख प्रबंधन के साथ हम सब भी हैरत में है। सच कहूं तो अंदरखाने ये कवायद भी चल रही है कि पता किया जाए कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो ऑफिस पूरे दिन ही भरा भरा रहता है।
अचानक एक दिन सुबह सुबह बॉस का मैसेज मिला, ऑफिस आते ही चैंबर में मुझसे मुलाकात करें। मैं घबरा गया, दो दिन पहले ही तो बॉस से मुलाकात हुई थी, उन्होंने ठीक-ठाक बात की, अब दो दिनों में ऐसा क्या हो गया कि ऑफिस आते ही काम शुरू करने के बजाए पहले उनसे बात करने जाना है। वैसे भी ब्लड प्रेशर का मरीज रहा हूं, काफी मार्निंग वॉक वगैरह करके किसी तरह सबकुछ पटरी पर लाया हूं  अब ये नया बवाल क्या है। कार ड्राइव करने के दौरान तरह तरह के ख्याल दिमाग में आते रहे। खैर जो होगा देखा जाएगा कह कर मन को दिलासा दिलाया और कुछ देर में मैं ऑफिस आ गया। जल्दबाजी में लंच बॉक्स गाडी़ में ही छूट गया।
ऑफिस के अंदर देखा बॉस अपने लैपटाप पर बिजी हैं, बॉडी लैंग्वेज पढ़ने की कोशिश की, सब कुछ सामान्य लग रहा था, खैर मैं उनके चैंबर में घुसा और बोला जी आपने बुलाया था। हां, हां...बैठिए। वो बोले, अरे मुझे कुछ जानना था आपसे, ये आजकल लोगों को क्या हो गया है, समय से पहले ऑफिस आ रहे हैं और समय के बाद भी ऑफिस में काम करते दिखाई दे रहे हैं। मैने कहा कुछ नहीं सालाना इन्क्रींमेंट का समय है, जाहिर है आपकी नजर में थोड़ा नंबर बढा़ना चाहते होंगे। वो बोले, ना ना ऐसा नहीं है। आप पता करके बताइये।
खैर मैं वापस आया और मित्रों से बातचीत शुरू हो गई। अब क्या बताऊं कि, मुझे बॉस ने क्या काम सौंपा है, और किससे पूछें कि भाई आप ऑफिस जल्दी क्यों आते हैं और देर तक क्यों रहते हैं। बॉस का ये सवाल मेरे मन में घूमता रहा। इस बीच लंच टाइम हो गया, हम सभी कैंटीन की ओर रवाना हुए। मुझे ध्यान आया कि मेरा लंच बॉक्स तो गाडी़ में ही रह गया है। गाड़ी से लंच बॉक्स लेकर आया, लेकिन गर्मी की वजह से ये खाना खराब हो चुका था। मित्रों को बताया भाई खाना गर्मी की वजह से खराब हो गया।
लोगों ने ऑफर किया, आइये यहीं बैठिए, हमारे साथ शेयर कीजिए ना। खाना खाने के दौरान बात गर्मी की शुरू हो गई। एक ने कहा गर्मी ने जान निकाल दिया है, मैं तो इसीलिए जल्दी ऑफिस आ जाता हूं और शाम को भी देर तक रहता हूं। सभी मित्रों ने उसकी हां में हां मिलाया और कहा सच है, मैं भी धूप निकलने के पहले ही ऑफिस पहुंच जाता हूं और जब तक मौसम ठीक नहीं हो जाता तब तक घर के लिए नहीं निकलता। हद तब हो गई जब एक मित्र ने ठंडा पानी पीने के बाद कहा कि भाई मुझे तो लगता है कि अंग्रेजों को गांधी ने नहीं गर्मी ने यहां से भगाया। वरना वो कहां दिल्ली छोड़ने वाले थे। सभी ने जोर का ठहाका लगाया और सहमति भी जताई।
लंच के साथ मेरा काम भी बन गया था। आप जानते ही हैं कि बॉस आपको कोई काम दे और आप उसे बिना देरी के कर दें तो आपके नंबर उनकी नजर में बढ़ेंगे ही। बस फिर क्या था लंच के तुरंत बाद उन्हें बताया कि सर दिल्ली की गर्मी से सब बेचैन हैं और इसी लिए जल्दी आते हैं और देर तक ऑफिस में बने रहते हैं। बॉस को सही बात बता तो दिया हूं, लेकिन डरा हुआ मैं भी हूं पता नहीं अब वो कैसे हंटर चलाएं, पता चला लपेटे में मैं भी आ गया। 

16 comments:

  1. सच है, अधिक रहते तो काले पड़ जाते वो अलग।

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  2. कहीं बॉस भी तो गर्मी के शिकार नहीं हुए... :)

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  3. ab angraj chahe jis bhi karan gaye ho.aapka kam to ban gaya aur number bhi badh gaye...to salana increment par mithai to khila hi deejiyega.

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  4. क्या बात है. बहुत खूब...अच्छी रचना
    बधाई

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  5. आपकी रचना की संरचना अच्छी है...लेकिन कहीं कहीं बिहारी होने का पुट भी साफ दिख रहा है...आप बढ़े हैं इसलिए अन्यथा मत लीजिएगा

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  6. khud ac me baithe boss ko ise samajhne me itni dikkat hui ...... aur unhen to khush hona chahiye , kam se kam sare kaam to ho rahe samay se

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  7. क्या बात है.... बहुत सुन्दर रचना .....

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  8. फिर तो बच गए गोरे लोग..... बहुत बढ़िया ...

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  9. अंग्रेज़ क्यों भागते.... उनके लिए तो शिमला, कश्मीर, दार्जिलिंग है ना :)

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  10. ला जवाब, हास्य भी व्यंग्य भी और एक नई बात भी । फेस बुक पर आपके दर्शन न होते तो ब्लाग का पता ही न चलता ।

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  11. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! शानदार पोस्ट!
    मेरे खानामसला ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! अभी अभी मैंने एक नया खाना पोस्ट किया है ज़रूर देखियेगा!
    http://khanamasala.blogspot.com/

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  12. अंग्रेजों को गांधी ने नहीं गर्मी ने भगाया....इस पर कुछ मित्र काफी नाराज हो गए हैं। मुझे एसएमएस और फोन करके गालियां दी जा रही हैं।
    मै बताना चाहता हूं कि ये एक सिर्फ निठल्ला चिंतन है। इसे राष्ट्रपिता के अपमान के साथ जोड़ कर कत्तई नहीं देखा जाना चाहिए।

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  13. क्या बात कही है! नई जानकारी के लिए धन्यवाद!
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    प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
    जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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    ’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  14. Beautifully written ! Loving the title as well.

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  15. kya aap bata saktey hain ki seo blog marketing k liye achhe sujhavv

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।