Tuesday 10 May 2011

पायलटों ने कोर्ट को दिखाया ठेंगा




जाटों ने आरक्षण के लिए ट्रेनों को बंधक बनाया तो एयर इंडिया के पायलटों ने लगभग 10 दिन तक हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों को बंधक बनाए रखा। उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकार ने जाटों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने से साफ इनकार कर दिया। वजह और कुछ नहीं सिर्फ जाट वोट नाराज ना हो जाएं कि अगले साल विधानसभा चुनाव में वो सरकार के खिलाफ बिगुल बजा दें। इसलिए प्रदेश की सरकारों ने जाटों से अंदरखाने समझौता किया कि वो ट्रेन रोकेंगे, सड़कों पर वे कोई उपद्रव नहीं करेंगे। अब ट्रेन तो केंद्र की और ममता की है, लिहाजा सूबे की सरकार ने इस आंदोलन से आंख मूंद लिया।

हालत ये हो गई रोजाना दर्जनों ट्रेन रद्द होने लगी, लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें खामोश रहीं। आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने जाटों के आंदोलन को गंभीरता से लिया और केंद्र के साथ राज्य सरकार को फटकार लगाने के साथ ही आंदोलनकारियों से सख्ती से निपटने के आदेश दिए। कोर्ट के आदेश के बाद अगले ही दिन जाटों ने रेल पटरी को खाली कर दिया।

अब बात एयर इंडिया के पायलटों की। इंडियन एयर लाइंस और एयर इंडिया के विलय के बाद पायलटों की मांग थी जब दोनों कंपनियों का विलय हो गया है तो वेतन में भेदभाव क्यों है। इस महत्वपूर्ण मांग को लेकर वो लंबे समय से प्रबंधन को हड़ताल की नोटिस दे रहे थे। इसके बाद भी प्रबंधन ने बातचीत से मसले को सुलझाने का प्रयास नहीं किया। ऐसे में मजबूर होकर एयर इंडिया के पायलट हड़ताल पर चले गए। इससे बड़ी संख्या में हवाई सेवाएं प्रभावित हुई। रोजाना 90 फीसदी फ्लाइट रद्द की जाने लगी। एयर इंडिया को करोडों का नुकसान हुआ, बाद में सख्ती दिखाते हुए पहले सरकार ने सात पायलटों को बर्खास्त किया, यूनियन की मान्यता खत्म की और हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया। इतना ही नहीं हड़ताली पायलटों पर एस्मा लगाने की बात हुई तो पायलटों ने साफ कर दिया कि वो काम पर नहीं लौटेगें भले जेल चले जाएं।


दिल्ली हाईकोर्ट को लगा कि अब इस मामले में उसे हस्तक्षेप करना चाहिए और कोर्ट ने तत्काल हड़ताल खत्म करने आदेश दिया। पर पायलटों का दिमाग सातवें आसमान पर था, लिहाजा उन्होंने कोर्ट का आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया।
पहले तो सरकार सख्त दिखने की कोशिश करती रही ओर कहा कि हड़ताल खत्म किए बगैर कोई बातचीत नहीं होगी। लेकिन जब कोर्ट का आदेश पायलटों ने मानने से इनकार कर दिया और उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी शुरू हो गई तो सरकार बैक फुट पर आ गई। उसे लगा कि एयर इंडिया के साथ ही बेवजह सरकार की भी फजीहत होगी। इसलिए हड़ताली पायलटों से अचानक बातचीत शुरू कर दी गई और उन्हें भरोसा दिलाया गया कि उनकी मांगों पर ना सिर्फ गंभीरता से विचार होगा बल्कि उसे पूरा भी किया जाएगा। इतना ही नहीं यूनियन की मान्यता बहाल करने और बर्खास्त पायलटों को भी सेवा में लेने का भरोसा दिया गया।

सरकार के झुकने के बाद पायलटों की हड़ताल खत्म हो गई। हड़ताल भले खत्म हो गई, लेकिन बड़ा सवाल ये कि हड़ताल के दौरान यात्रियों को जो मुश्किल हुई उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा, एयर इंडिया को करोडों की चपत लगी इसकी जिम्मेदारी किसकी है। अगर पायलटों की बात माननी ही थी तो जब हड़ताल की नोटिस दी गई उस समय बातचीत क्यों नहीं की गईं। और सबसे बड़ा सवाल ये कि पायलटों ने जो कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाया इसके लिए कौन जिम्मेदार है।

जहां तक मुझे याद है कि पहली बार किसी संगठन ने कोर्ट के आदेश को ठुकराया है और अपनी जिद्द पर अडे रहे। फिर भी केंद्र सरकार कोशिश कर रही है कि हड़ताली पायलटों पर अवमानना की कार्रवाई को किसी तरह रोका जाए। सच ये है कि अगर पायलटों को अवमानना की कार्रवाई से मुक्त किया गया तो ये एक नजीर बन जाएगी और आने वाले समय में इसी तरह लोग कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते रहेंगे, इसलिए कोर्ट के काम में किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए।





7 comments:

  1. hadtaal se aam jeevan kis tarah ast vyast ho raha hai iski chinta kisi ko nahi hai sab ek doosaron ko bachane me lage hai aur ye pilot to aaye din hadtal kar dete hai.aur croro ka nukasan ....is bar to had ho gayee iske khilaf sakht kadam uthana chahiye.

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  2. बेहद अफसोसजनक ........ आगे भी हिम्मत बढ़ेगी लोगों की आपका कहना सही है....

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  3. सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बढ़िया लगा!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  4. मैं इस विवाद में नहीं जाना चाहूंगा कि एयर इंडिया के पायलटों ने दस दिनों तक हड़ताल के नाम पर जो कुछ किया वो कितना जायज था और कितना नाजायज? कोर्ट के आदेश की अवमानना हुई, सरकार और एयर इंडिया मैनेजमेंट की फजीहत हुई और ना जाने क्या क्या हुआ। आने वाले समय में इस तरह के हड़तालों की संख्या और बढ़ेगी, सरकार और कर्मचारियों के बीच तनातनी भी कम नहीं होगी। हड़ताल होंगे, प्रदर्शन भी होंगे, नारे लगेंगे और बलवे भी होंगे- ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि हमारे देश में विरोध की एक सकारात्मक संस्कृति क्यों नहीं विकसित हो रही है? क्या सरकार और मैनेजमेंट के बंद पड़े कानों में आवाज बुलंद करने के लिए काम पर ना जाना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, आम लोगों को तकलीफ पहुंचाना ही एकमात्र विकल्प रह गया है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि काम ठप्प करने जैसा आसान रास्ता ना अपनाकर विरोध करने वाले एक ऐसा रास्ता अपनाएं जिससे काम भी निकल जाए और बात भी बन जाए।

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  5. रजनीश जी ब्लाग पर आने के लिए और विचार व्यक्त करने के लिए शुक्रिया। आप जानते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में विरोध को आप ताकत से नहीं दबा सकते। और विरोध का तरीका भी स्पष्ट है, पहले आप प्रबंधन को नोटिस देते हैं, बात नहीं बनती है तो काला फीता बांध कर काम करते हैं, फिर सांकेतिक प्रदर्शन यानि काम का नुकसान किए बगैर विरोध जताना। इसके बाद भी बात नहीं बनती है तो कुछ लोग धरने पर बैठ सकते हैं। इसके बाद आमरण अनशन... की बात होती है। अगर इन सबके बाद भी बात नहीं बनती है तो तब काम बंद हडताल की बात होती है। विरोध का तरीका बिल्कुल साफ है, लेकिन आज लोगों में धैर्य नहीं रह गया है और वो काम सबसे पहले करते हैं जो आखिर में होना चाहिए।
    अग्निमन जी, कविता जी,डा. मोनिका जी और बबली जी आपका भी शुक्रिया।

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  6. भाई साहिब ऐसा मेरे देश में ही क्यों होता है ?

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।