Sunday, 7 July 2013

झारखंड : समझौते की आड़ में नंगा नाच !

मुझे तो याद है, पता नहीं आपको याद है या नहीं। महीने भर पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी, इस यात्रा पर नक्सलियों ने हमला कर दिया, जिसमें कुछ सुरक्षा जवानों के साथ कुल 28 लोगों की मौत हो गई। इस हमले में कांग्रेस के कई नेता भी मारे गए। बीजेपी की सरकार वाले राज्य में नक्सली हमले में कांग्रेसियों की मौत से पार्टी आलाकमान में हड़कंप मच गया। पार्टी में इतनी बैचेनी कि राहुल बाबा बेचारे रात में ही वहां पहुंच गए, जबकि अगले दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी भी रायपुर जाकर घड़ियाली आंसू बहा आए। लेकिन इन नेताओं का असली चेहरा तब सामने आया, जब हफ्ते भर पहले झारखंड में नक्सली हमले में वहां के एसपी समेत कई और पुलिसकर्मी मारे गए। यहां आठ लोगों को जंगल में घेर कर नक्सलियों ने मार गिराया, लेकिन इस बार किसी भी कांग्रेसी के मुंह से संवेदना के दो शब्द नहीं निकले। बेशर्मी की हद तो ये हैं कि जिस वक्त  पुलिस महकमा नक्सलिओं को मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति बना रहा था, उस दौरान कांग्रेसी झारखंड मुक्ति मोर्चा के दागी नेताओं के साथ मिलकर चोर दरवाजे से समझौते की आड़ में सौदेबाजी कर सरकार बनाने गुत्थी सुलझा रहे थे। मैं जानना चाहता हूं कि क्या आज नेताओं में दो एक पैसे की भी शर्म नहीं बची है ?

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के इस शर्मनाक खेल को आम जनता नहीं समझती है। उन्हें जान लेना चाहिए कि ये पब्लिक है, सब जानती है। वैसे मैं बहुत कोशिश करता हूं, पर इस बात का जवाब मुझे नहीं मिल पार रहा है। सवाल ये कि क्या वाकई सोनिया गांधी में राजनीतिक विवेक शून्यता है ? या वो जानबूझ कर ऐसी मूर्खता करती हैं। आप सब देख रहे हैं कि झारखंड में एक ओर नक्सलियों के खिलाफ सख्त पुलिस कार्रवाई चल रही है, बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों ने जंगल में नक्सलियों की घेराबंदी कर ली है। नक्सलियों को जिस रास्ते से खाद्य सामग्री पहुंचती है, उन रास्तों पर पुलिस का सख्त पहरा है। वहां राज्यपाल और उनके सलाहकार इस मिशन को अंजाम देने में लगे हुए हैं। लेकिन इन सबसे बेखबर सोनिया गांधी अपने मूर्ख सलाहकारों के साथ मिलकर झारखंड के विवादित और दागी नेताओं के साथ कुर्सी की गंदी राजनीति में फंसी रहीं। अब जाहिर है जब झारखंड में सरकार की बहाली को लेकर दिल्ली में सौदेबाजी चल रही हो, तो चाहे राज्यपाल हों या फिर उनके सलाहकार कोई भी उतनी शिद्दत से तो आपरेशन को अंजाम नहीं दे सकता।

आप सब जानते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। वैसे तो सच यही है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के अगुवा शिबु सोरेन कोई साफ सुथरे नेता तो नहीं है, फिर भी कांग्रेस ने दिल्ली में उनकी जो दुर्गति की वो भी किसी से छिपी नहीं है। बेचारे बड़े बेआबरू होकर दिल्ली से झारखंड वापस गए हैं, यही वजह है कि अब दोबारा कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार गठन के मामले में खुद बातचीत बिल्कुल नहीं कर रहे हैं। रही बात उनके बेटे हेमंत सोरेन की तो वो पूरी तरह दिमाग से पैदल ही है। वरना जितना गिर कर उसने कांग्रेस के साथ समझौता किया है, कोई भी मान सम्मान वाला राजनीतिक व्यक्ति ऐसा समझौता नहीं कर सकता। हफ्ते भर तक जिस तरह हेमंत दिल्ली में कांग्रेस नेताओं के दरवाजे पर मत्था टेकता रहा, उसे देखकर एक बार भी नहीं लगा कि वो एक राज्य के मुख्यमंत्री बनने की बातचीत कर रहा है, बल्कि ऐसा लगा कि वो झारखंड के किसी पंचायत में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मांग रहा है। कांग्रेस ने भी जिस तरह हेमंत का गला मरोड़ कर समझौता किया, उसके दर्द का अहसास तो हेमंत को है, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की चाहत ने इस दर्द और बेइज्जत के अहसास को कम कर दिया है।

राजनीति में समझौते होते रहते हैं, लेकिन मेरी आपत्ति समझौते की आड़ में हो रही सौदेबाजी और उसके समय को लेकर है। कांग्रेस ये सौदेबाजी उस वक्त कर रही थी जब झारखंड में राज्य पुलिस के एक एसएसपी समेत आठ लोगों की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। समूजा राज्य इस शोक में डूबा था, उस वक्त राज्य और वहां की पुलिस को जरूरत थी सहानिभूति की, लेकिन कांग्रेस सहानिभूति के बजाए सौदेबाजी की मेज पर अपने पासे पलटनें में मशगूल रही। बेशर्म कांग्रेसियों ने अपने आलाकमान को भी पुलिसकर्मियों की हत्या के असर से बेखबर रखा। अच्छा एक बार मैं मान लेता हूं कि कांग्रेस नेताओं में संवेदनशीलता की कमी हैं, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन को क्या कहें ? उनके दिमाग में ये बात क्यों नहीं आई कि सरकार बनाने के लिए सौदेबाजी का ये मौका सही नहीं है। अब क्या कहूं, कहते हैं कि कुर्सी आदमी को अंधा बना देती है। अगर मैं ये कहूं कि कुर्सी के लिए हेमत भी अंधा हो गया था तो बिल्कुल गलत नहीं होगा। वजह जानना चाहेंगे, चलिए बताता हूं। जिस तरह का समझौता हुआ है उससे तो हेमंत बस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा रहेगा, उसे कोई फैसला करने का अधिकार नहीं होगा। इसके लिए एक समन्वय समिति बनेगी और जो गुणदोष के आधार पर फैसला करेगी। इतना ही नहीं कांग्रेस कुछ वरिष्ठ नेताओं की एक कमेंटी बनाने वाली है जो सरकार के कामकाज पर निगरानी भी रखेगी। मसलन सोरेन को लूट खसोट की छूट नहीं होगी।

और हां संभावित सरकार में हेमंत मुख्यमंत्री तो होंगे, लेकिन महत्वपूर्ण विभाग कांग्रेस खेमे के मंत्रियों के पास होगा। इतना ही नहीं विधानसभा का अध्यक्ष भी कांग्रेस का ही कोई नेता होगा, मतलब ये कि कांग्रेस ने हेमंत का हाथ पैर बांधकर उसे कुर्सी पर बैठाने का फैसला लिया है, वो कुर्सी पर बैठकर अपनी मर्जी से हिल डुल भी नहीं सकेगा। इसके लिए भी उसे कांग्रेस की मदद की जरूरत होगी। कांग्रेस जानती है कि झारखंड में कुछेक नेताओं को छोड़ दें तो ज्यादातर नेताओं का चरित्र मधुकोड़ा से प्रभावित है। मतलब सियासी जमीन भले ही मजबूत ना हो लेकिन जमीर बेचने में वक्त नहीं लगता। यही वजह है कि इस राज्य के गठन को महज 13 साल हुए हैं, लेकिन जोड़तोड़ ऐसा कि अब तक यहां 8 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं और इस राज्य को तीन पर राष्ट्रपति शासन का मुंह देखना पड़ा है। चूंकि अगले साल लोकसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं, ऐसे में कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। यही वजह है कि हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षा देख कांग्रेस ने उसे लोहे की जंजीर में ना सिर्फ जकड़ दिया है, बल्कि ये कहूं कि हेमंत देश के पहले बंधक मुख्यमंत्री रहेंगे तो गलत नहीं होगा।

अच्छा सरकार में महत्वपूर्ण विभाग तो कांग्रेस के पास रहेगा ही, अगले साल होने वाले चुनाव के लिए भी कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की पूरी तरह से घेराबंदी कर दी है। राज्य के 14 लोकसभा सीटों में 10 पर कांग्रेस चुनाव लडेगी और मोर्चा सिर्फ चार सीटों पर चुनाव लडेगा। इस सौदेबाजी से कांग्रेस ने एक संदेश आरजेडी प्रमुख लालू को भी दे दिया है। झारखंड में उनके लिए कोई सीट नहीं छोड़ी गई है, मसलन लालू को यहां अकेले चुनाव लड़ना होगा। हां अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा चाहे तो अपनी चार सीटों में दो लालू को दे सकती है। बहरहाल हेमंत को मुख्यमंत्री बनाने की जो कीमत कांग्रेस ने वसूल की है, सच कहूं तो वो राजनीतिक मर्यादाओं के भी खिलाफ है। वैसे घुटनों पर आ गई झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए अभी भी सरकार बनाने का रास्ता इतना आसान नहीं है। मौजूदा 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में भाजपा के 18, झाविमो के 11, ऑजसू के 06, जदयू के 02 और वाम दल के 02 विधायक है। जबकि झामुमो के 18, कांग्रेस के 13, राजद के 05  विधायक हैं। जबकि दो निर्दलीय विधायक चमरा लिंडा और बंधु तिर्की का झुकाव भी झामुमो और कांग्रेस गठबंधन की ओर है। लेकिन कांग्रेस ने हेमंत को ये भी साफ कर दिया है कि किसी भी निर्दलीय को मंत्री ना बनाया जाए, अब बिना मंत्री बने तो मुझे नहीं लगता है कि निर्दलीय सरकार का समर्थन करेंगे।

खैर सोमवार से सरकार गठन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। हो सकता है कि कल यानि सोमवार को हेमंत की राज्यपाल से मुलाकात हो, जिसमें वो उनसे सरकार बनाने का प्रस्ताव कर सकते हैं। वैसे देखने में तो ऐसा ही लग रहा है कि अब सरकार बनने में कोई अड़चन नहीं है, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सामने इस बार बीजेपी नहीं कांग्रेस है। यहां तो बड़े नेताओं से मुलाकात करने भर में ही पसीने छूट जाते हैं। कांग्रेस और मोर्चा की अभी जितनी भी बातें हुई हैं वो सब मौखिक हैं। अभी कांग्रेस विधायकों की बैठक होनी है, जिसमें पार्टी के विधायक फैसला करेंगे कि हेमंत को समर्थन देना है। समर्थन का पत्र मिलने के बाद  ही सोरेन राज्यपाल से मुलाकात करेंगे। बहरहाल राजनीतिक अस्थिरता को लेकर ये राज्य पहले भी सुर्खियों में रहा है, इस बार तो बहुत ही कमजोर सरकार है, इसका फायदा कांग्रेस जरूर उठाएगी। समझौते की आड़ में जिस तरह राजनीति का नंगा नाच हुआ वो एक बार भी गठबंधन के तौर तरीकों पर सवाल खड़े करने वाला है।  बहरहाल सोदेबाजी की सरकार के कामकाज के तौर तरीके जल्दी ही हम सबके सामने होंगे।





46 comments:

  1. राजनीति में फायदा देखकर समझोता करना जायज है,
    RECENT POST: गुजारिश,

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ये तो सही है, पर राजनीतिक मर्यादा बनाकर..

      Delete
  2. राजनीति में जो सक्रिय है उसे ऐसे ही दांवपेंच चलने पड़ते हैं .ये विवशता में किये जाये या जानबूझकर पर करने पड़ते हैं .आप सोनिया जी के आंसुओं को घड़ियाली लिख सकते हैं पर ये उचित नहीं है .

    ReplyDelete
    Replies
    1. दांवपेच के बिना राजनीति भला क्या होगी ?
      घडियाली आंसू कहने का मेरे पर जायज वजह है!

      Delete
  3. abhi to bihar me bhi saudebaaji ki hi sarkar chal rahi hai aur nitish babu ki lutiya dubo kar hi dam legi kangres..................

    ReplyDelete
  4. सही कह रहे हैं आप सोनिया जीमें राजनितिक विवेकशून्यता है और वह इसलिए क्योंकि वे राजनीतिज्ञ है ही नहीं वे एक भावुक इन्सान हैं और ये भी आपको समझ लेना चाहिए कि वे आंसू बहाती नहीं फिरती तो फिर घडियाली आंसू कैसे कहे आपने और यदि उनके और प्रधानमंत्री जी के आंसू घडियाली हैं तो भारत में कोई ऐसी शख्सियत नहीं जिसके आंसू सच्चे हों . .सराहनीय प्रस्तुति आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? #
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,

    ReplyDelete
    Replies
    1. मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं और उसका आदर भी करता हूं।
      आभार

      Delete
  5. जनता के सामने कोई विकल्प नहीं है इसीलिए कांग्रेस मनमर्ज़ी शासन करती आ रही है ..... अब नेताओं का कोई चरित्र नहीं रहा ... सिर्फ कुर्सी की लालसा और और पैसों की भूख बची है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच है, बिल्कुल सहमत हूं
      आभार

      Delete
  6. कितनी ही शर्मनाक बात है एक एसपी और पुलिस कर्मी शहीद होते है..... वहां सोनिया नहीं जाती न ही राहुल ..उसके नजर में ये कोइ बडी बात नहीं थी... पब्लिक सब जानती समझती है.. ये तो उसे समय बतलायेगा

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी यही तो विडंबना है, फिर मैं कहता हूं कि इनके आंसू घड़ियाली हैं, तो कुछ लोगों को मेरी बात बुरी लगती है।
      आभार

      Delete
  7. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय ||

    पाका घौता आम का, झारखंड बागान |
    अपनी ढपली पर फ़िदा, रंजिश राग भुलान |

    रंजिश राग भुलान, भला हेमंत भीग ले |
    दिल्ली तलक अजान, साथ में कई लीग ले |

    बंटवारे की बेर, नक्सली करें धमाका |
    हो जाए अंधेर, आम पाका तो पाका ||

    ReplyDelete
  8. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥

    ReplyDelete
  9. जिसकी लाठी उसकी भैस..

    ReplyDelete
  10. वैसे ये सौदा बी जी पी भी तो कर सकती थी ... वो क्या दूध की धूलि पार्टी है ... या सिधान्त्वादी पार्टी है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. पहले तो इनका समझौता बीजेपी के साथ था ही, ये समझौता टूटने के बाद नया सौदा हुआ ना। और हां मैं बीजेपी को बहुत शुद्ध या दूध का धुला नहीं मानता हूं।
      लेकिन यहां बात झारखंड के हालात और उस पर सेकी जा रही सियासी रोटी की हो रही है।

      Delete
  11. राजनीति के दाव पेंच आम जनता कभी समझ ही नहीं पाती है ..अपनी रोजी रोटी से उन्हें फुर्सत मिले तो सोचे भी ....५ साल में उनका सिर्फ एक दिन आता है उसे भी वे कोई बला समझकर बिना सोचे समझे पूरा कर खुश हो लेते है ...
    ..जन जागरण के लिए ऐसी जानकारी बहुत जरुरी है ..देश में क्या चल रहा है इसकी जानकारी अधिक से अधिक लोग तक पहुंचे यह काम आप बखूबी निभाते आ रहे है ...धन्यवाद

    ReplyDelete
  12. इस गंदी राजनीति में सौदेबाजी आम बात हो गयी है
    सटीक लेखन

    ReplyDelete
  13. यहाँ यही देखना लिखा है भाई ...
    आप की कलम मज़बूत है मगर इसे समझने वाले ब्लॉग जगत में कम ही हैं , कौन पढ़ेगा इसकी परवाह मत करियेगा महेंद्र भाई !
    मंगल कामनाएं आपके लिए !

    ReplyDelete
  14. हमेशा की तरह बढ़िया आलेख भाई,
    आभार आपका !

    ReplyDelete
  15. आपसे पूरी सहमति है और आपके विचारों,भावनाओं के प्रति सम्पूर्ण आदर. बेशर्मी असहनीय हो गई है

    ReplyDelete
  16. काँग्रेस की इन गन्दी चालों से अब सब वाकिफ़ है ....वैसे तो अब पूरी की पूरी ही राजनीति गन्दी हो चुकी है ....

    ReplyDelete
  17. सार्थक लेख,बहुत लाजवाब लिखा है आपने, आभार

    ReplyDelete
  18. कांग्रेस मनमर्ज़ी शासन करती आ रही है ,इंतजार किसजिए अच्छे दिन जल्द आएंगे

    ReplyDelete
  19. राजनीति की यही हकीकत है...

    ReplyDelete
  20. बहुत यथार्थ परक लेखक , यह दुर्भाग्यपूर्ण है परन्तु परन्तु सत्य है , मैं झारखण्ड में रहता हूँ इसलिए यहाँ की घटनाएँ ज्यादा प्रभावित करती है यहाँ सभी पार्टियों का यही हाल है . कांग्रेस ने झारखण्ड ऐसा मजाक कोई पहली बार नहीं किया . आपको शायद याद हो , कांग्रेस ने भारत के इतिहास में पहली बार किसी निर्दलीय को मुख्य मंत्री बनाने का काम किया था , अंजाम क्या हुआ सभी जानते हैं ।
    आपके इस लेख के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (15.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .

    ReplyDelete
  21. निकली अक्कल दाढ़ अब, झारखंड दरबार |
    कार चलाना छोड़ कर, चला रहे |सरकार
    चला रहे सरकार, मरे ना कोई पिल्ला |
    करे नक्सली वार, सके ना पब्लिक चिल्ला |
    कर ले बन्दर-बाँट, कसर पूरी कर पिछली |
    अंधे हाथ बटेर,, लाटरी रविकर निकली ||

    ReplyDelete
    Replies
    1. क्या बात है, बहुत सुंदर
      आभार

      Delete
  22. नेता घडियाली आंसू ही तो बहाते हैं और करते क्या है ! जवानों के मरने का इन्हें दुःख नहीं होता लेकिन आतंकवादियों के मरने का जरुर दुःख होता है !
    सटीक आलेख !!

    ReplyDelete
  23. वाह ,बहुत सुंदर भावपूर्ण आलेख . बधाई

    ReplyDelete

जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।