Tuesday 12 February 2013

बड़ा सवाल : क्या मूर्ख हैं रेलमंत्री ?


सका जवाब सिर्फ यही है हां हमारे रेलमंत्री मूर्ख हैं, मैं कहूं कि बिल्कुल 24 कैरेट के मूर्ख हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। महाकुंभ में मौनी अमवस्या के दिन इलाहाबाद रेलवे प्लेटफार्म पर मची भगदड़ और उसमें मारे गए लोगों के बारे में चर्चा करूंगा पहले मैं आपको ये बता दूं कि जब से पवन कुमार बंसल रेलमंत्री बने हैं, वो कर क्या रहे हैं। सच बताऊं वो कुछ नहीं कर रहे हैं , रेल अफसरों के साथ बैठकर रेल को समझने की कोशिश भर कर रहे हैं। जिस तरह से रेलवे के मामले में उनके बयान आ रहे हैं, उससे तो ऐसा लगता है कि रेलवे के बारे में उनकी जानकारी एक थर्ड क्लास यात्री से ज्यादा नहीं है। यही वजह है कि वो अफसरों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं। उन्होंने आंखो पर काली पट्टी बांध रखी है और रेल अफसर महाभारत के संजय की तरह उन्हें जो समझाते हैं, उन्हें उतना ही समझ में आता है। रेलमंत्री बनने के बाद सिर्फ एक ही रोना रोए जा रहे हैं, रेलवे की माली हालत खराब है, इसलिए किराया बढ़ाना पड़ेगा।

किराया बढ़ाइये, मगर देश की जनता को गुमराह मत कीजिए। बार-बार कह रहे हैं कि रेलवे में 12 साल से किराया नहीं बढ़ा। अगर कोई रेलमंत्री ऐसी बात कहता है तो समझ लेना चाहिए कि वो रेलवे की एबीसीडी नहीं जानता। मैं आपको बता दूं कि चोर दरवाजे से रेलवे का किराया बढ़ाकर इन 12 सालों में किराया दोगुना से भी ज्यादा हो गया है। सच ये है कि रेलवे का किराया तर्कसंगत नहीं है। यानि आप स्लीपर क्लास में दिल्ली से इलाहाबाद का सफर करें तो किराया है 300 रुपये, वहीं एसी थ्री में चले जाएं तो किराया 810 रुपये हो जाता है, एसी सेकेंड में ये किराया 1155 रुपये हो जाता है। देश में मात्र 20 फीसदी लोग ही एसी कोच में सफर करते हैं, जिन पर हर साल किराए का बोझ बढ़ा दिया जा रहा है, इससे शोरगुल भी हो जाता है कि किराया बढा और रेलवे को अपेक्षित आय भी नहीं होती है। ऐसे में 80 फीसदी यात्री जिस क्लास में चलते हैं, वहां किराए को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। खैर.. मैं देख रहा हूं कि बंसल जी जब मुंह खोलते है कि रेलवे का किराया बढ़ाने के अलावा कोई बात ही नहीं करते। बसंल जी थोड़ा रेलवे को और समझिए फिर मुंह खोलिए, कभी भी चुनाव हो सकते हैं, किराया-किराया ज्यादा शोर मत मचाइये। रेलवे के खजाने को दुरुस्त करने के तमाम और भी उपाय हैं, उन पर भी गौर कीजिए। पिछले दिनों जिस तरह से आपने किराया बढ़ाया है, ऐसे तो आज  तक किराया नहीं बढ़ा। इससे तो अच्छा है कि आप रेलवे में जेबकतरों की भर्ती कर लें, जो सफर के दौरान यात्रियों की जेब भी काटे। दो दिन से शोर मचा रहे हैं कि डीजल के दाम बढ़ गए,  अब किराया बढ़ाना जरूरी हो गया है। ये भी कहिए ना कि इलाहाबाद भगदड़ में कई लोगों के मारे जाने पर उन्हें मुआवजा देने से रेलवे पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा है, इसलिए किराये में और बढ़ोत्तरी और भी जरूरी हो गई है। इस बात को यहीं खत्म करते हैं, लेकिन किराए के मामले में थोड़ा पढ़े लिखों की तरह व्यवहार कीजिए।

चलिए इलाहाबाद की घटना का जिक्र कर लें। आपके रेलमंत्री रहते इलाहाबाद का ये महाकुंभ आपके लिए पहली चुनौती थी, जिसमें आप फेल हो गये। सच कहूं तो रेलमंत्री फेल नहीं हुए हैं, बल्कि अपनी गैरजिम्मेदार और गैरजरूरी बातों से ये भी साबित कर दिया कि वो कम से कम रेलमंत्री बनने के काबिल बिल्कुल नहीं हैं। जब से उन्होंने रेलमंत्री  के तौर पर मुंह खोलना शुरू किया है एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि कोई जनप्रतिनिधि बोल रहा है। हमेशा यही लगा कि कोई घुटा हुआ रेल का अफसर अपनी काली जुबान खोल रहा है। रेलवे का बचाव करना भी इन्हें नहीं आता। कह रहे हैं कि महाकुंभ में चार करोड़ लोग आए थे, और इतने लोगों की सुरक्षा करने में रेल महकमा सक्षम नहीं है। मुझे लगता है कि रेलमंत्री का गणित बहुत कमजोर है, चलिए कुछ दिन बाद ही सही जरा बता दीजिएगा कि रेलवे ने कितने लोगों को गन्तव्य तक पहुंचाया ? रेलमंत्री को कौन समझाए, कह रहे हैं कि इलाहाबाद में इतने ज्यादा लोग थे कि संभाल नहीं पाए, मैं पूछता हूं कि 2010 में छठ पूजा के दौरान दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई थी, यहां भी कई लोगों की मौत हो गई थी, मंत्री जी यहां तो संख्या हजारों में भी नहीं थी। दरअसल मानना चाहिए की रेलवे में आज भी "प्रोफेशनल एटीट्यूड" की कमी है। इस पर ध्यान देने के बजाए झगड़ा ये हो रहा है कि इसमें गलती केंद्र सरकार की है या राज्य सरकार की।

राज्य सरकार की भी बात करुंगा, पहले जरा रेलवे के इंतजामों की बात कर लें। मैं जानना चाहता हूं कि दर्शनार्थियों की भीड़ एक ही जगह ना जमा हो जाए, इसके लिए क्या रेलवे ने कोई इंतजाम किया था। मसलन क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि बिहार की तरफ जाने वाली स्पेशल ट्रेनों को नैनी और करछना से संचालित किया जाता, जौनपुर, लखनऊ, फैजाबाद, गोंडा सुल्तानपुर की ओर जाने वाले यात्रियों को प्रयाग और फाफामऊ से ट्रेन की सुविधा दी जाती। इसले अलावा फतेहपुर, कानपुर दिल्ली की ओर जाने वाले यात्रियों को भरवारी या दूसरे किसी हाल्ट से ट्रेन मुहैया कराई जाती। छोटी लाइन की ट्रेन रामबाग से चलती ही है। इससे कम से कम इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर उतनी भीड़ नहीं होती, जितनी वहां हो गई थी। इलाहाबाद से लंबी दूरी के यात्रियों को ट्रेन दी जाती। मैं कहता हूं कि इसी तरह का कुछ और भी किया जा सकता था, जिससे कम से कम एक ही स्टेशन पर भीड़ का दवाब ना होता। आप सबको पता है कि खास मौकों पर स्नान के लिए यहां कई दिन पहले से लोग जमा होते हैं, लेकिन जाते एक ही दिन हैं। ऐसे में क्या ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता कि स्टेशन से काफी पहले टिकट खिड़की की सुविधा होती और ट्रेनों की क्षमता के अनुसार ही यहां टिकट देने के बाद खिड़कियां बंद कर दी जातीं और स्टेशन की ओर उन्हें ही आने की इजाजत होती, जिनके पास टिकट है।

मुझे याद है कि लखनऊ में मायावती की रैली में लगभग तीन लाख लोग यूपी से शामिल हुए और भीड़ का ठीक से प्रबंधन न कर पाने की वजह से यहां भगदड़ मची, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। जब रेल महकमा लाख दो लाख लोगों का प्रबंध सही तरह से नहीं कर सकता है तो इतने बड़े मेले का प्रबंध भला वो क्या करेगा, फिर जब लल्लू टाइप रेलमंत्री हों तब तो बिल्कुल नहीं। इस हादसे की अभी जांच होनी है, जिससे तय होगा कि आखिर  चूक कहां हुई ? अभी ये पता किया जाना है कि आखिरी समय में ट्रेन का प्लेटफार्म क्यों और किसके आदेश पर बदला गया ? इसके पहले ही रेलमंत्री अपने महकमें को क्लीन चिट दे रहे हैं। कह रहे हैं कि रेलवे की ओर से सबकुछ ठीक था। सच बताऊं गाली देने का मन हो रहा है ऐसे मंत्री को, लेकिन क्या करें थोड़ी देर और मर्यादा में रह ही लेते हैं। पवन कुमार बंसल को ये नहीं दिखाई दिया कि हादसे के बाद घायलों को चादर और कंबल में उठाकर एंबूलेंस तक ले जाया जा रहा था, प्लेटफार्म पर स्ट्रेचर तक की व्यवस्था नहीं थी। हादसे के ढाई घंटे के बाद पहली एंबूलेंस लोगों को दिखाई दी, घटना स्थल पर तीन घंटे तक कोई डाक्टर नहीं आया। हादसे में मारे गए लोगों के शव चार घंटे तक प्लेटफार्म पर यूं ही पड़े रहे। इन सबके  बाद भी रेलमंत्री कहते हैं कि सबकुछ ठीक ठाक था।

आखिर में एक बात और रेलमंत्री ने साफ साफ कह दिया कि इतनी बड़ी भीड़ को संभालने में रेल महकमा असमर्थ है। बंसल जी अगर ऐसा है तो आपको एक मिनट भी रेलमंत्री रहने का हक नहीं है। सच तो ये है कि इस हादसे के पहले और बाद जो तस्वीर रेल महकमें के सामने आई है, कहीं से ऐसा नहीं लगा कि रेलवे ने भी कोई तैयारी की है। अब तैयारी भी भला क्या करते ? रेलमंत्री को सिर्फ किराया बढ़ाने से मतलब है, इसके अलावा वो कोई और बात करते ही नहीं है। खैर बंसल साहब जो हालात दिखाई दे रहे हैं उससे साफ है कि आप तो डूबेंगे ही रेलवे को भी डुबा देगें। फिलहाल सिर्फ एक बात आपको बता रहा हूं इसे ही गांठ बांध लीजिए, रेल के अफसरों पर भरोसा कम कीजिए, ये आपको कहीं का नहीं छोड़ेंगे। सारी गलत बातें मीडिया के सामने आपसे कहलाएंगे और खुद पाक साफ बने रहेंगे। समझ गए ना।

अब छोटी सी बात यूपी सरकार की। मैं राहुल गांधी के मुकाबले अखिलेश यादव को समझदार मानता था। मुझे लगता था कि इन्हें पता है कि मूली और आलू जमीन के अंदर लगते हैं और जबकि भिंडी और तरोई ऊपर लगता है। मतलब ये कि शासन- प्रशासन का बेसिक तो कम से कम यादव जी जानते ही होगे। मुख्यमंत्री जी राजकीय रेलवे पुलिस यानि जीआरपी रेलवे स्टेशन पर तैनात होती है। ये पुलिस राज्य सरकार के अधीन काम करती है। इनके ट्रांसफर, पोस्टिंग, दंड सबकुछ तो राज्य सरकार के हाथ में होता है। फिर आपात स्थिति में स्थानीय प्रशासन को असीमित अधिकार प्राप्त हैं। ये आपको पता है ना। अगर आपके प्रशासन को लगता है कि रेलवे की लापरवाही से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है तो आपका प्रशासन कोई भी कड़ा फैसला कर सकता है। खैर आप तो शादी में व्यस्त थे, इसलिए आपको पूरी बात पता ही नहीं चली होगी,  अभी मेला महीने भर है और कई स्नान भी हैं, रेलवे के साथ तालमेल करके ऐसा प्रबंध करें कि अब आगे कुछ ना हो। भूल से भी ये मत कहिएगा कि राज्य सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है, वरना लोग हंसेगे।


33 comments:

  1. दफ्न कर डाले हैं सबने फ़र्ज अपने ,
    दौर ये अंगुली उठाने का चला है |
    .
    @!</\$}{

    ये कहेंगे साब गलती मेरी नहीं फलाने की है , वो कहेगा मेरी नहीं अगले की है , आखिर में जांच होगी(अगर हुई तो), न इनकी गलती निकलेगी न उनकी , नापेगा कोई तीसरा(अगर नापा गया तो) जो बहुत निचले स्तर का मातहत होगा |
    पता नहीं शास्त्री जी सतयुग के थे क्या , आजकल तो ऐसा दीखता ही नहीं !!

    सादर

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    1. बिल्कुल सहमत हूं,
      लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है

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  2. "ज्यादातर तो मूर्ख ही, बनते यहाँ वजीर।
    पंक सरोवर में भरा, नहीं अमल है नीर।।"
    --
    बहुत बढ़िया!
    --
    चर्चा मंच पर भी आपका लिंक है!

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  3. Replies
    1. सरकारी खिलवाड़ से, प्लेटफॉर्म हो सुर्ख ।

      इस झिड़की फटकार से, चेते मंत्री मूर्ख ।

      चेते मंत्री मूर्ख, असंभव रविकर भैया ।

      हाय हाय चहुँ-ओर, मचा दैया रे दैया ।

      सी एम् खाएं भोज, मौत जन जन पर भारी ।

      भटकें रिश्तेदार, चिकित्सालय सरकारी ।।

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    2. बहुत बढिया,
      सहमत हूं आपसे

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  4. लापरवाह हो गया प्रशासन,घटना के बाद ही इनको होश आता है,सुंदर और सार्थक विवरण दिए,आभार.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, सही कहा आपने

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  5. महेन्द्र जी .नमस्कार ! जनता की प्रातक्रिया को आपने अपने सुंदर शब्दों द्वारा अच्छी तरह से व्यक्त कर दिया है! चेतावनी के साथ साथ नेक सलाह भी दे दी ..अब अम्ल करने के लिए हम उन्हें भगवान् से सधबुधि देने की
    प्राथना करतें हैं ......
    आभार!

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    1. सर प्रणाम
      आपका बहुत बहुत आभार

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  6. शुक्रिया भाई जी
    बहुत बहुत आभार

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  7. बात तो सौ प्रतिशत सही

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  8. सार्थक आकलन..

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  9. नेता औने-पौने दाम भइ मूंगफली बादाम.....

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  10. बान हारे की बान न जाए ,

    कुत्ता मूते टांग उठाय .

    पुरानी आदत है कोंग्रेसियों की अपनी शेव बनाके साबुन दूसरे के मुंह पे फैंकना .आपका विश्लेषण सटीक था .बहरसूरत मेला स्थल से भी लोगों को लताड़ा गया था .स्टेशन पे आने न दिया गया इस

    घटना के बाद .राटा कटी फुटपाथों पे .ऐसे रेल मंत्रियों को काशी करवट दिलवानी चाहिए .

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  11. सही कहा है आपने अब झगड़ा होगा कि इसमें गलती केंद्र सरकार की है या राज्य सरकार की. मरने वाला गया अपनी जान से इन्हें उससे क्या...यही होता आया है और होगा भी

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  12. कुल मिला के प्रशासन के लिए आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं ....यह बार बार हर बार साबित होता है ....

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  13. बढ़िया विश्लेषण किया है भाई !

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  14. अक्सर दुर्घटना के बाद प्रशासन सतर्क हो जाता है लेकिन इस केस में ऐसा है ही नहीं ..इस दुर्घटना के बाद भी वही ढाक के तीन पात!

    उत्तर प्रदेश की जनता को अन्य सरकारों की तरह अखिलेश सरकार ने भी निराश किया है.जबकि इनसे हमें बहुत उम्मीदें थीं कि युवा है पढ़े- लिखे हैं,ज़मीं से जुड़े भी हैं लेकिन...!

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    1. जी आपकी बातों से मैं बिल्कुल सहमत हूं।
      अखिलेश ने तो वाकई लोगों को निराश किया है।

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  15. सही है ....ये जनता हैं अब सब जानती हैं ...बस अगली बार चुनाव में ज़रा सोच समझ कर कुछ फैसले किए जाने जरुरी हैं ...

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    1. बिल्कुल सही बात है, सहमत हूं आपसे

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।