Sunday 12 February 2012

पेप्सी का बाप है फैंटा ...

यूपी के चुनावी चौपाल का आज 22 वां दिन है, इस दौरान आईबीएन 7 की टीम ने लगभग पांच हजार किलो मीटर का सफर पूरा कर लिया है और अब तक 35 जिलों में हम दस्तक दे चुके हैं। इसमें 19  जगहों पर हम चौपाल लगा चुके हैं। सफर का अंत महीने की आखिरी तारीख यानि 29 फरवरी को लखीमपुर से होना है। तब तक हम लगभग 10 हजार किलोमीटर से अधिक सफर कर चुके होंगे।
दरअसल आज ये बात करने का मन इसलिए हो रहा है कि यूपी के हालात देख कर वाकई आंसू निकल आते हैं। चुनावी  चौपाल के लिए जब आफिस में टीम बनाई जा रही थी, तो इस टीम में मेरा नाम इसलिए शामिल किया गया कि मैं यूपी का रहने वाला हूं और यूपी को बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता हूं। मैं  भी  अभी तक यही मानता था कि मैं यूपी को अच्छी तरह से जानता हूं। लेकिन सच बताऊ, आज मेरी आंखे खुल गईं है, कसम से मैं यूपी को बिल्कुल नहीं जानता और ना ही मैने अभी तक यूपी को करीब से देखा था। लग तो ये रहा है कि मैने सिर्फ वही चीजें देखीं है, जो मुझे दिखाई गई है।

यूपी के हालात के बारे में चर्चा कहां से शुरू करुं, मैं तो यही नहीं समझ पा रहा हूं। दिमाग पर काफी जोर डाल रहा हूं कि कुछ तो अच्छी बातें मिल जाएं, जिससे मैं अपने प्रदेश की नाक बचा लूं, पर नहीं.. कुछ भी यहां ऐसा नहीं है, जिस पर मैं गर्व कर सकूं और आपके सामने जोरदार तरीके से सूबे की तारीफ करूं। चूंकि ये सफर सड़क के रास्ते चल रहा है, तो बात पहले सड़कों की ही कर ली जाए। सड़कों की बात होती है तो कहा जाता है कि सबसे ज्यादा खराब सड़क बिहार की है, मुझे लगता है कि अब ऐसा नहीं होगा, खराब सड़कों की बात हो तो यूपी पहले नंबर पर ही होगा। वैसे भी हम लोग खराब सड़कों पर सफर करने से हम सब कमर दर्द से परेशान हैं। हालत ये है कि हम सब रात में पेनकिलर लेकर किसी तरह सोने को मजबूर हैं। मेरी तो नींद उड़ गई है और लिहाजा देर रात तक तो गपबाजी करते हुए बीताना पड़ता है।

वैसे एक एक समस्या के बारे में चर्चा करुंगा तो मुझे लेख नहीं बल्कि किताब लिखनी होगी। इसलिए मैं संक्षेप में बता दूं कि सूबे के एक बड़े हिस्से में दूषित पेयजल  होने से लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। स्वास्थ सेवाएं पूरी तरह पटरी से उतर चुकी हैं। शिक्षण संस्थाओं का भारी अभाव है। ज्यादातर जिले या तो उद्योग शून्य हैं, या फिर वहां चल रहे काम धंधे बंद होने के कगार पर हैं। माफ कीजिएगा लेकिन सच ये है कि गांवो  में विकास की बात करना बेईमानी है। मुझे लगता है कि जब प्रदेश में छोटे छोटे बच्चों के शरीर पर इतनी ठंड में पूरे कपड़े ना हों और प्रदेश की सरकार बड़े बड़े विज्ञापन देकर तरक्की की बात कर रही हो तो लगता है कि इन नेताओं के भीतर जो दिल धड़कता है वो असली नहीं है, बल्कि आर्टिफीशियल है, जो बैटरी के जरिए धड़कता रहता है।

बहरहाल सूबे में विकास की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। मैं दो ऐसे जिलों की चर्चा करना चाहता हूं, जिस जिले के नेता प्रधानमंत्री तक हुए हैं। पहले चर्चा करते हैं यूपी के बलिया जिले की, जहां के नेता स्व. चंद्रशेखर जी देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। बलिया के मुख्यालय पर हमारी चौपाल एक स्कूल में लगनी थी और अगले दिन हमें जौनपुर के लिए रवाना होना था। रात बलिया में कटनी थी, हमने यहां पता किया तो बताया गया कि सबसे बेहतर होटल स्टेशन के पास है, जिसका नाम होटल पेप्सी है। नाम से लगा कि अच्छा  होटल  होगा, चलो रात शुकून से बीत जाएगी। लेकिन नहीं, कमरे घुसे तो नाक बंद करनी पड़ी। बिस्तर पर दाग धब्बे वाले चादर  बिछे  हुए थे, पूरे कमरे से बदबू आ रही थी। रात काटना तो दूर कुछ मिनट खडा होना भी यहां मुश्किल था। हमारे लिए तो  वहां के मित्रों का आग्रह था कि मैं उनके घर जाकर रुकूं, पर टीम को छोड़कर अकेले कहीं जाना ठीक नहीं लगा। बहरहाल इसी कमरे में अगरबत्ती जलवाने के बाद कमरे में बैठना संभव हो पाया। इस कमरे में खाना खा पाना तो  संभव ही नहीं था, लिहाजा लोगों ने इतनी रात तक ड्रिंक्स किया कि उन्हें पता ही ना चल पाया कि हम सब कहां सो रहे हैं।
बलिया के पेप्सी के बाद कई शहरो से होता हुआ हमारा काफिला एक बार फिर ऐसे जिले में पहुंचा जिस जिले ने देश को प्रधानमंत्री दिया है। ये जिला है फतेहपुर और यहां से स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह सांसद रहे और प्रधानमंत्री भी बने। बताया गया कि होटल विशेष यहां का सबसे अच्छा होटल है। हमें प्रतापगढ़ से फतेहपुर आना था, हमारी टीम सुबह ही निकल गई और होटल पहुंची तो सब हैरान रह गए। दोपहर बाद जब मैं फतेहपुर पहुंचा तो मेरे एक मित्र ने कहा कि सर ये होटल तो पेप्सी का बाप यानि फैंटा है। मानों  पैरों तले जमीन खिसक गई हो। होटल में अंदर जा रहा था तो  देखा कि मेरे कमरे के सामने एक आदमी साबुन से हाथ धो रहा था, पूछने पर पता चला कि वो फ्रेश होकर आया है और यहां वासवेसिंग नहीं है, इसलिए वो यहीं  हाथ धो रहा है।

बहरहाल यूपी के इस थका देने वाले सफर से हम सभी को तमाम नई नई जानकारी मिल रही है। दिल्ली में बैठकर विकास की तमाम बाते होती हैं, बड़ी बड़ी योजनाओं पर चर्चा करते हुए कहा जाता है कि इसका लाभ गरीबों को मिल रहा है। लेकिन मैं आज भी इसी मत का हूं कि विकास नापने का जो पैमाना सरकार के पास है, उसे बदल दिया जाना चाहिए, क्योंकि विकास के दावे खोखले हैं, इसमें कत्तई सच्चाई नहीं है। मेरी कोशिश है कि मैं आपको इस यात्रा के दौरान होने वाले अनुभवों को जरूर शेयर करुं। मेरा सवाल है कि जब मुझे इन जिलों के सबसे अच्छे होटल में रात बितानी मुश्किल है, तो ये बेचारे जिनके सिर पर छत नहीं है, जेब में धेला नहीं है, बच्चों के तन पर कपड़े नहीं है, महिलाएं घर गृहस्थी के साथ बोझा ढोने को मजबूर है तो फिर विकास की बात करना बेईमानी नहीं तो क्या है।

15 comments:

  1. बहुत सही और सटीक लेख...

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  2. MAHENDR JI-THIS IS REALLY VERY SAD THAT OUR LEADERS ARE MISLEADING US .THEY DO NOT WANT TO SOLVE ANY PUBLIC PROBLEM .MAY GOD SAVE YOU FROM U.P. ROADS .

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  4. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।

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  5. चुनाव यात्रा और ज्ञान अनुभूतियाँ

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  6. यही तो शाइनिंग इंडिया है :)

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  7. चौसठ साल मे यह हालत है। पर दोशी यूपी के लोग ही है धर्म और जात पर वोट पड़ेंगे तो हश्र यही होना है। आप्से अनुरोध किया था कि हवा किस दल की बह रही है इस पर प्रकाश डाले।

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  8. जेब में धेला नहीं है, बच्चों के तन पर कपड़े नहीं है, महिलाएं घर गृहस्थी के साथ बोझा ढोने को मजबूर है तो फिर विकास की बात करना बेईमानी नहीं तो क्या है...bhukhmari, majbori, jaat-paat ki bhawanaon mein ijafa..shayad ise hi vikas samjh liya jaata hai..
    ..bahut umda samayik prastuti ...

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  9. सच्‍चाई के दर्शन तो जमीनी हकीकत से ही होते हैं।

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  10. आपकी मेहनत से प्रस्तुत की गई तस्वीर
    मायावती जी द्वारा प्रस्तुत तस्वीर पर धूल डाल
    रही है.कितनी सीटें कम करवा रहें हैं आप उनकी.

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  11. yahi is chunavi doure ka hasil hai ,jab aap asli up ab dekh rahe hai to umeed hai is asli up ki asli pareshaniyon ko bhi behtar tareeke se samne la kar vikas pa prashn chinh lagayenge.

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।