Tuesday 4 October 2011

मैं राष्ट्रपति पद की दौड़ में नहीं...


सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दो दिन पहले अचानक ना जाने क्यों नया शिगूफा छोड़ा कि मैं राष्ट्रपति नहीं बनना चाहता। उन्होंने ऐसा क्यों कहा, ये तो वही जानें, लेकिन पुख्ता जानकारी ये है कि उन्हें किसी भी राजनीतिक दल ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने के लिए संपर्क नहीं किया है। वैसे भी कांग्रेस से तो उनका छत्तीस का आंकडा है, लिहाजा कांग्रेस उन्हें भला क्यों उम्मीदवार बनाएगी ? बीजेपी समेत और राजनीतिक दल भी अन्ना को लेकर असहज स्थिति में हैं, तो वो भी अन्ना को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कभी नहीं बना सकते। फिर भी अन्ना कहते फिर रहे हैं कि वो राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते। उनका ये बयान अखबार में पढकर मैं हैरान रह गया, मुझे लगा कि अन्ना तो वैसे भी दिल्ली में नहीं रहते, मैं तो यहीं रहता हूं और अक्सर सियासी गलियारे से होकर गुजरता हूं, कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन जबर्दस्ती मुझे ही राष्ट्रपति पद की शपथ दिला दें।  
जी हां ! इसीलिए मैने सोचा कि मुझे भी अपनी स्थिति साफ कर देनी चाहिए, वरना मैं तो मीडिया से जुड़े होने की वजह से अक्सर सभी राजनीतिक दलों के बड़े ब़ड़े नेताओं से भी मिलता जुलता रहता हूं, लोग ये ना समझें कि मैं राष्ट्रपति  बनना चाहता हूं, इसलिए इन नेताओं के घर की गणेश परिक्रमा कर रहा हूं। इसीलिए आज मैं शपथ पूर्वक ये बात दोहराना चाहता हूं कि ना मैं राष्ट्रपति बनना  चाहता हूं और ना ही इसकी दौड़ में शामिल हूं।
वैसे जब से ये बात घर में बच्चों ने सुनी है कि अन्ना ने राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया है, वो मुझे घर से बाहर जाने ही नहीं देते। दरअसल उनके दिमाग में राष्ट्रपति का बहुत खौफ है। कई बार ऐसा हुआ कि हम बच्चों के साथ घर से बाहर निकले और दिल्ली में सभी गाड़ियों को रोक दिया गया, सड़कों पर कारों की लंबी लंबी कतारें लग गईं, बच्चों ने पूछा पापा क्यों पुलिस वाले जाने नहीं दे रहे हैं, जबकि आगे पूरा रास्ता साफ है। अभी वो हमसे ये बात पूछ ही रहे थे कि एक बाइक सवार को पुलिस वाले ने पीटना शुरू कर दिया। दरअसल उस बाइक सवार का अगला पहिला पुलिस वालों ने जो रस्सी बांध रखी थी, उसे छू भर गया था। मैने बच्चों को बताया जब राष्ट्रपति का काफिला निकलता है तो सड़क पर कोई दूसरा वाहन नहीं निकल सकता। बच्चों ने पूछा ऐसा क्यों ? मैने उन्हें बताया कि ये सब उनकी सुरक्षा के लिए किया जाता है।
इस पर छोटी बेटी ने पूछ लिया कि उन्हें इतना खतरा क्यों होता है, आखिर ऐसा कौन सा काम उनके जिम्मे है कि उन्हें इतना खतरा बना रहता है। इसके पहले की मैं उसे जवाब देता सामने से शूं शां करता हुआ राष्ट्रपति का काफिला निकल गया और पुलिस वालों ने रास्ता खोल दिया। यही बात बच्चों  के दिमाग में घर कर गई है कि राष्ट्रपति बन जाने के बाद लोग आम आदमी से बहुत दूर हो जाते हैं। बताइये रास्ते से गुजरते वक्त भी लोगों को दूर भगा दिया जाता है। उन्हें लगा कि शायद इसीलिए अन्ना ने राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया।
बैसे मैं मानता हूं देश में राष्ट्रपति उसे ही बनना चाहिए, जिसने अपनी सभी जिम्मेदारी पूरी कर ली हो। यानि जिस तरह हज यात्रा उसे ही करनी चाहिए, जिसने अपनी सभी तरह की पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया हो, उसके ऊपर किसी तरह की जिम्मेदारी ना हो। फिर मेरी गृहस्थी तो अभी बहुत अधूरी है, मुझे तमाम जिम्मेदारियों को पूरा करना है। बच्चों के स्कूल में पीटीएम में जाना होता है। पता चला स्कूल गया तो वहां से पूरे स्कूल को भी पुलिस ने सुरक्षा कारणों से खाली करा दिया। मैं ऐसा नहीं कर सकता। जबकि अन्ना के पास इस तरह की कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं हैं, वो राष्ट्रपति बन जाएं तो उनके घर का कोई काम प्रभावित नहीं होगा।
बहरहाल सरकार को भी मेरा यही सुझाव है कि वो अन्ना को राष्ट्रपति बनाएं तो उनकी समस्या कम हो सकती है। सरकार सही मायने में अन्ना से नहीं डरती है, वो डरती है उनके सामने जमा होने वाली भीड़ से। अगर अन्ना राष्ट्रपति बन गए तो सुरक्षा कारणों से भीड को जमा होने ही नहीं दिया जाएगा। सरकार चाहे तो उन्हें राष्ट्रपति भवन में ही कैद करके रख सकती है।
खैर सरकार को जो करना है वो जाने, लेकिन मैं तो किसी भी सूरत में ये पद लेने को तैयार नहीं हूं। अब देखिए जब से अन्ना ने मना किया है, बच्चे लगातार फोन करके मुझसे मेरा लोकेशन पूछते हैं कि आप कहां हैं। हमारा आफिस नोएडा में है, उनका कहना है कि आप घर से सीधे आफिस जाइये और वहां से घर। भूल कर भी आप राष्ट्रपति भवन की तरफ मत जाना। वैसे भी मुझे राष्ट्रपति भवन से ज्यादा शुकून अपने छोटे से घर में है, क्योंकि यहां खाना बनने के बाद सबसे पहले हम लोग ही खाते हैं। सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं होता कि खाने को पहले डाक्टर टेस्ट करें, उनकी रिपोर्ट आए कि सब ठीक है, तब राष्ट्रपति को भोजन मिले। हमारे यहां कोई भी रिश्तेदार कभी भी आएं जाएं, उन्हें पुलिस की सुरक्षा से नहीं गुजरना पड़ता, वहां तो सुना है बहुत पाबंदी है भाई। प्लीज मुझे बख्श दीजिए, मैं यहीं संतुष्ट हूं।

 

19 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति ||
    सरकार चाहे तो उन्हें राष्ट्रपति भवन में ही कैद करके रख सकती है ||
    आपको --
    हमारी बहुत बहुत बधाई ||

    ReplyDelete
  2. कम से कम मैं भी इस दौड़ में शामिल नहीं .....!

    ReplyDelete
  3. bataiye ab aapne bhi mana kar diya....ab aur kise dhoondha jaye???vaise fir soch leejiye jab tab delhi ke trafic jam me fanste rahte hai...aage sadak khali milegi....

    ReplyDelete
  4. बढिया प्रस्‍तुति।
    आपकी इस पोस्‍ट को पढकर लग रहा है कि मुझे भी स्थिति साफ कर देनी चाहिए कि मैं भी राष्‍ट्रपति पद की दौड में नहीं हूं। मुझे भी माफ करें...

    ReplyDelete
  5. अब तो लगता है आपको राष्ट्रपति बनवाना ही पड़ेगा,महेंद्र जी.
    वर्ना,आप अन्ना का पीछा कैसे छोडेंगें जी,

    भले ही आपने कहा कि मैं राष्ट्रपति नहीं बनना चाहता,
    पर अंदर कहीं चाहत तो है ही न.
    आप आपने राष्ट्रपति बनने का प्रसंग कोई यूँ ही थोड़ी न उठाते.

    खैर,आपका व्यंग्य लाजबाब रहा.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  6. आपको राष्ट्रपति बन कर उसे सर्व-सुलभ बना देना चाहिए।

    ReplyDelete
  7. samajh men nahin aaya jaisi unnki ichccha :)

    ReplyDelete
  8. वैसे भी मुझे राष्ट्रपति भवन से ज्यादा शुकून अपने छोटे से घर में है, क्योंकि यहां खाना बनने के बाद सबसे पहले हम लोग ही खाते हैं। सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं होता कि खाने को पहले डाक्टर टेस्ट करें, उनकी रिपोर्ट आए कि सब ठीक है, तब राष्ट्रपति को भोजन मिले। हमारे यहां कोई भी रिश्तेदार कभी भी आएं जाएं, उन्हें पुलिस की सुरक्षा से नहीं गुजरना पड़ता, वहां तो सुना है बहुत पाबंदी है भाई। प्लीज मुझे बख्श दीजिए, मैं यहीं संतुष्ट हूं।
    santosh hi to sukh chhupa hai ..kash yah baat sabhi samjh lete to ghar-ghar aur desh mein rona kis baat ka rah jaata..
    bahut badiya prastuti..
    Dussehra kee haardik shubhkamnayen

    ReplyDelete
  9. मुझे तो आलेख बड़ा ही रोचक और मजेदार लगा .

    ReplyDelete
  10. अन्ना जी को लेकर एक नई बात पता चली आपके माध्यम से .......बहुत करारा व्यंग ......आभार

    ReplyDelete
  11. थोड़ा मन डगमगाया ... मैं बढूँ क्या .... पर फिर - ओह , विचार त्याग दिया

    ReplyDelete
  12. पहले इन्कार मगर इकरार कर बैठे
    ना ना करते प्यार कुर्सी से कर बैठे :)

    ReplyDelete
  13. लाइन में लगा जा सकता है . उबाल ज्यादा मारे तो लाइन को तोड़ कर सबसे आगे भी हुआ जा सकता है.एन-केन-प्रकारेण!!!*** शुभकामनाएं***!!!

    ReplyDelete
  14. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  15. भाई साहब, यदि सब लोग यह कहने लगेंगे कि मैं राष्ट्रपति के पद के लिए दौड़ में शामिल नही हूँ तब यह पद किसे मिलेगा । गोलमाल है भाई गोलमाल है । दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  16. ha ha ha... waise mera bachpan se president banne ka sapna hai. tell anna to recommend my name, agar wo nahi banna chahte :-P

    ReplyDelete
  17. कल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
    नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद

    ReplyDelete

जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।