Saturday 1 October 2011

सोनिया के भारत में गांधी की औकात...

पको अटपटा लग रहा होगा कि ये क्या बात है। भारत सोनिया का कब से हो गया ? एक बार भारत को महात्मा गांधी का भारत कहें तो बात मानी भी जा सकती है, उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि सही मायने में तो ये देश ना गांधी का है और ना सोनिया का। ये देश उन शहीदों का है जिन्होंने आजादी की लडाई में अपने प्राण त्याग दिए। ये देश जलियांवाला बाग में कुर्बानी देने वालों का है, ये देश सुभाष चंद्र बोष, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और वीर अब्दुल हमीद का है। उन मां और बहनों का है जिन्होने जंग-ए-आजादी में अपने सुहाग को खोया है।
लेकिन पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि विदेशी लेखक और मीडिया गांधी बनाम गांधी का अभियान चलाए हुए हैं। लगातार ऐसी साजिश हो रही है, जिससे महात्मा गांधी को नीचा दिखाया जा सके, वहीं कुछ विदेशी मैग्जीन सोनिया गांधी को देश की सबसे ताकतवर महिला बताते फिर रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर अचानक विदेशी मीडिया देश पर इतना मेहरबान कैसे हो गया, उनमें यहां के मामलों में इतनी रुचि कैसे पैदा होती जा रही है।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों एक अमेरिकी लेखक जोसफ लेलीबेल्ड ने एक किताब लिखा, जिसका नाम है " ग्रेट सोल महात्मा गांधी " । उम्मीद की जा रही थी की महात्मा गांधी पर किताब लिखी गई है तो जाहिर है इसमें महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के जरिए कैसे देश को आजाद कराया, इसकी चर्चा की गई होगी और उन्हें महान बताया गया होगा। लेकिन नहीं ऐसा नहीं था, ये किताब गांधी को अपमानित करने वाली है। जाहिर है अब गांधी जी तो रहे नही, लेकिन देश उन्हें राष्ट्रपिता कहता है तो ये किताब देश को अपमानित करने के लिए लिखी गई है। ये कहा जाए तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।
किताब में कहा गया है कि गांधी जी समलैंगिग तो बताया ही गया है साथ ही उन्हें नस्लभेदी तक कहा गया। उनकी हरमन कालनबाख से संबंधों की चर्चा की गई है। हालांकि देश में इस किताब पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और गुजरात समेत कई राज्यों में इस किताब पर बैन भी लगाया गया। लेकिन इससे लेखक दोषमुक्त नहीं हो जाता है। बडा सवाल ये है कि देश के महापुरुषों पर इस तरह की टीका टिप्पणी के पीछे कौन सी ताकत काम कर रही है।
हमें लगता है कि कुछ हद तक इसके लिए हम भी जिम्मेदार हैं। बताइये देश का सबसे बड़ा सम्मान " भारत रत्न " तक महात्मा गांधी को नहीं दिया गया। देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने 1954 में जब इस पुरस्कार की शुरुआत की तो कहा गया कि ये उन्हीं लोगों को दिया जाएगा जो जीवित होंगे। लेकिन 1966 में पहली बार जब स्व.लाल बहादुर शास्त्री को ये सम्मान दिया गया तो साथ में महात्मा गांधी को भी ये सम्मान दिया जाना चाहिए था। वैसे भी दोनों महापुरुषों का जन्म दो अक्टूबर को ही हुआ है। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। सम्मान के बारे में जो नीति बनाई गई, उसमें कहा गया कि ये सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान और जनसेवा के क्षेत्र में अच्छा काम करने वालों को दिया जाएगा। हालांकि अब ये सम्मान विवादों में है। मैं जानना चाहता हूं कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद  स्व. राजीव गांधी को एक तरह से मृतक आश्रित होने के नाते प्रधानमंत्री की कुर्सी दी गई। क्योंकि इसके पहले तो वो एक साधारण पायलट भर थे। उन्होंने ऐसी कौन सी सेवा  कर दी, जिससे उन्हें भारत रत्न दिया गया। अगर दिया भी गया तो अकेले उन्हें क्यों, देश की सेवा तो उनके पूरे मंत्रिमंडल ने की थी।
अब सोनिया गांधी को ही ले लें। आए दिन विदेशी मैग्जीन में सोनिया गांधी का गुणगान होता है। वर्ष 2004 में सोनिया गांधी को फोर्ब्स पत्रिका ने विश्व की तीसरी सबसे ताकतवर महिला के पायदान पर रखा,  वहीं 2010 में सोनिया को इसी पत्रिका ने नौंवा स्थान दिया था। इसी साल एक ब्रिटिश पत्रिका द स्टेट्समैन ने भी सबसे ताकतवर लोगों की सूची में सोनिया गांधी को 29वां स्थान दिया था। टाइम पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में भी विश्व के सबसे प्रभावी लोगों में सोनिया गांधी का नाम शामिल है।

मैं इस बात से हैरान हूं कि देश की सबसे ताकतवर महिला के क्या मायने हैं। अगर ये है कि सत्ता की चाभी सोनिया के हाथ में है, वो अभी चाहें तो मनमोहन सिंह को कुर्सी से उतार दें और किसी ऐरे गैरे को ये कुर्सी सौंप दें। इससे क्या सोनिया गांधी का सम्मान भले ही बढता हो, मगर देश का तो अपमान ही है। हमारे संबिधान के मुताबिक देश में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है और वो तीनों सेनाओं का भी प्रमुख है। अगर ऐसे देखा जाए तो महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सबसे ताकतवर कही जाएंगी। शारीरिक ताकत को अगर मानक बनाया जाए तो मेरीकॉम मुक्केबाजी में विश्व चैंपियन हैं, कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन में एशियन चैंपियन थीं। इन्हें देश की सबसे ताकतवार महिलाओं में रखा जा सकता है। पर सोनिया गांधी कैसे सबसे ताकतवर हैं, ये तो सर्वै कराने वाले लोग ही बता सकते हैं। जहां तक मेरी समझ है, विदेशी मैग्जीन देश को अपमानित करने के लिए इस तरह की रिपोर्ट सामने रखते हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि देश की मीडिया इस पर आपत्ति करने के बजाए, इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करती है।    
बहरहाल अगर महापुरुषों का सम्मान वाकई बरकरार रखना है तो हमें जागना होगा। हमें खुद आगे बढकर ऐसे लोगों को जवाब देना होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं और हम उनके खिलाफ एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं।  वरना तो फिर सोनिया की जय जयकार करते रहिए। पता नहीं आपको पता है या नहीं सोनिया का असली नाम एड्विग ऐंटोनिया एल्बिना माइनो है। इनके पिता स्टेफिनो भवन निर्माण ठेकेदार और पूर्व फासिस्ट सिपाही थे। इटली के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सोनिया अंग्रेजी की शिक्षा के लिए कैंब्रिज पहुंची, यहां एल्बिना माइनो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक होटल में काम करतीं थीं। यहीं इनकी मुलाकात स्व. राजीव गांधी से हुई, जिनका अब नया पता 10 जनपथ, नई दिल्ली है।












20 comments:

  1. वस्तुतः महात्मा गांधी को किसी पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है वह इससे से ऊपर हैं। हा उनके नाम पर पुरस्कार देने चाहिए। आज हमारे देश मे देशभक्ति की बात करना बेमानी है। अन्ना -भक्ति,सोनिया भक्ति ही तो आज का तकिया कलाम हैं। विदेशियों को तो हमे अपमानित करने मे ही आनंद आयेगा।

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  2. कठफोड़वे की तरह खानेवालों ने भारत का सही अर्थ मिटा दिया .... तो फिर न शहीदों का अस्तित्व रहा न गांधी का .... कुर्बानी किसी की लेबल किसी का - आह !

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  3. @@@जहां तक मेरी समझ है, विदेशी मैग्जीन देश को अपमानित करने के लिए इस तरह की रिपोर्ट सामने रखते हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि देश की मीडिया इस पर आपत्ति करने के बजाए, इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करती है।
    बहरहाल अगर महापुरुषों का सम्मान वाकई बरकरार रखना है तो हमें जागना होगा। हमें खुद आगे बढकर ऐसे लोगों को जवाब देना होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं और हम उनके खिलाफ एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं। @@@@@

    आपका लेख पढ़ा .......पर आज मन कर रहा है आपसे एक सवाल पूछूँ.....कि इस देश का अगला भगत सिंह कौन बनेगा ?????? अपने यहाँ सिर्फ बाते करने का रिवाज़ है ....कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा नहीं ?????

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  4. आधा?
    मुझे तो पूरा लगा!
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

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  5. sonia ko sabse takatvar mahila banakar videshi media apni roti senk raha hai aur shayad isiliye sarkar in ke dwara gandhiji ke apman par chuppi sadhe hue hai. vaise ye kam to deshi media bhi kar rahi hai.ye deah to sabhi ka hai unlogo ka bhi jinhone kurbani di aur unka bhi jinhone apno ko kurban hone diya. ham vyakti pooja ki mansikta se jane kab ubar payenge?????lekin ab iska purjor tareeke se virodh karne ka samy aa gaya hai.umeed hai bhartiya media isme sahyog karega...

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  6. सोनिया गांधी को ताकतवर महिला बताने से क्‍या महात्‍मा गांधी का सम्‍मान कम हो जाएगा....????
    क्‍या इससे गांधी जी की औकात की तुलना की जानी चाहिए...????
    मुझे लगता है कि गांधी जी का सम्‍मान इन सबसे परे है.... वे इस ऊंचाई पर हैं कि इन सब बातों से उन पर कोई फर्क नहीं पडेगा.....

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  7. सम्मान हकदारों को बहुत कम ही मिलता है ...

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  8. aadarniy mahendra ji
    baat aapki bilkul khare sone ki tarah sahi hai.par hamare desh ka jo haal.ab ho raha hai usme videshiyon ki ghush -paith bhi shamil hai par kahin na kahin par ye hamaari hi kamjori hai jo ki unhe badhava deti hai.vaise divya ji ki baat se main bhi sahmat hun.
    mujhe to is baat ki khushi hoti hai ki aapki kalam me sachchai ko likhne ki taqat haiaur aage bhi aapki lekhni yun hi sach ka parda -fass karti rahe
    inhi shubh kamnaon ke saath
    poonam

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  9. यही तो विडम्बना है....
    मन को उद्वेलित करने वाला लेख....

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  10. AAPKI post ekdam sateek hai! Apka kahna bilkul sahi hai!

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  11. yahi to humare desh ka durbhaagya hai ki samman ke haqdaaron ko kahaan milta hai kuch din baad hi sab bhool jaate hain.bahut achchi prastuti hamesha ki tarah.

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  12. आप किस गाँधी की बात कर रहे है वही जिसने साउथ-अफ्रीका में प्रवास के समय वहाँ की ट्रांसवॉल सरकार ने भारतीयों को परमिट लेकर ही रहने का आदेश दिया, जिस पर गाँधी जी समेत सभी भारतीयों ने विरोध किया. जब यह आंदोलन पूरे ज़ोर पर था तो एक दिन गाँधी जी अचानक चुपके से जनरल स्मटस के पास जाकर अपनी दसों अंगुलियों की छाप देकर यह परमिट प्राप्त कर लिया. जब इस बात की जानकारी अन्य भारतीयों को लगी, तो सभी ने गाँधी जी इस आचरण की भर्तसना की. या आप उस गाँधी की बात कर रहे है जिसने विदेशी का बहिष्कार और स्वदेशी को अपनाने की प्रेरणा दी, जिससे प्रभावित होकर लाखों भारतीयों ने अपने-अपने विदेशी वस्तुओं की होली जलाई, किंतु गाँधी जी अपनी विदेशी घड़ी का मोह न त्याग सके और अंत तक उसे अपने पास रखा. या फिर उस गाँधी की बात कर रहे है जो अँग्रेज़ी पढ़े लिखे बुद्धिजीविओं को ही भारत के गुलाम होने का कारण मानते रहे, किंतु अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में हैरो एवं कैंब्रिज में पढ़े नेहरू को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने में अपने लोभ का संवरण न कर सके. इसी तरह गाँधी जी अपने को लोकतंत्र का पुरोधा मानते रहे किंतु सन 1938 कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में बहुमत से जीते हुए सुभाष चंद्र बोस को स्वीकार नहीं कर सके. ये वही गाँधी थे जिन्होंने भगत सिंह जी की फंसी का विरोध नहीं किया क्यूंकि उनका मानना था की भगत सिंह जी ने हिंसा का मार्ग अपनाया है और गाँधी कभी हिंसा के पछ धर नहीं हो सकते किन्तु भारत के नौजवानों को सेना में भारती होने के लिए प्रेरित करते थे ताकि सेना अंग्रेजो की सहायता कर सके प्रथम विश्व युद्ध में.क्या युद्ध में की गयी हिंसा हिंसा नहीं होती है. और रही आजादी में उनके योगदान की बात तो ये बात मुझे समझ नहीं आती की गाँधी ने आजादी के लिए किया क्या था.

    बाकी आपने जो मिडिया के बारे में लिखा है वो सही है.

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  14. किस गाँधी की बात कर रहे है आप वही जिसने साउथ-अफ्रीका में प्रवास के समय वहाँ की ट्रांसवॉल सरकार ने भारतीयों को परमिट लेकर ही रहने का आदेश दिया, जिस पर गाँधी जी समेत सभी भारतीयों ने विरोध किया. जब यह आंदोलन पूरे ज़ोर पर था तो एक दिन गाँधी जी अचानक चुपके से जनरल स्मटस के पास जाकर अपनी दसों अंगुलियों की छाप देकर यह परमिट प्राप्त कर लिया. सभी ने गाँधी जी इस आचरण की भर्तसना की. या आप उस गाँधी की बात कर रहे है जिसने विदेशी का बहिष्कार और स्वदेशी को अपनाने की प्रेरणा दी, जिससे प्रभावित होकर लाखों भारतीयों ने अपने-अपने विदेशी वस्तुओं की होली जलाई, किंतु गाँधी जी अपनी विदेशी घड़ी का मोह न त्याग सके और अंत तक उसे अपने पास रखा. या फिर आप उन गाँधी के बारे में बोल रहे है जो अँग्रेज़ी पढ़े लिखे बुद्धिजीविओं को ही भारत के गुलाम होने का कारण मानते रहे, किंतु अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में हैरो एवं कैंब्रिज में पढ़े नेहरू को राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने में अपने लोभ का संवरण न कर सके. इसी तरह गाँधी जी अपने को लोकतंत्र का पुरोधा मानते रहे किंतु सन 1938 कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में बहुमत से जीते हुए सुभाष चंद्र बोस को स्वीकार नहीं कर सके. या आप उस महात्मा की बात कर रहे है जिसने भगत सिंह जी की फंसी का विरोध नहीं किया क्यूंकि भगत सिंह जी हिंसा के मार्ग पर थे और महात्मा जी हिंसा के पछधर नहीं थे. किन्तु उसी गाँधी ने भारत के नौजवानों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया ताकि भारत के नौजवान अंग्रेजो की तरफ से पहले और दुसरे विश्व युद्ध में लड़ सके. ये कैसी अहिंसा है जिसमे देश के लिए लड़ने वाले भगत सिंह का साथ तो गाँधी ने नहीं दिया किन्तु युद्ध में अंग्रेजो का साथ महात्मा ने दिया. बाकी गाँधी में देश की आजादी में बोहोत बड़ा योगदान दिया है ये बात तो कई जगह पढ़ी है किन्तु आज तक समझ नहीं पाया गांधी ने आखिर आजादी के लिए किया क्या था.

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  15. आपने बिल्कुल सही लिखा है ! सुन्दर एवं सार्थक लेख!
    दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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  16. सही लिखा है |

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  17. क्या यह सही नहीं है कि आज सोनिया सब से ताकवत, कद्दावर नेता बन कर उबर रही है और सारे नेता इसके इर्दगिर्द घूम रहे हैं? यदि कोई इसे सच नहीं समझ रहा है तो वह ‘बिल्ली आंख मूंद कर दूध पीने’ के मुहावरे को सच कर रहा है। जो लोग उनके नागरिकता पर कल तक सवाल उठा रहे थे, आज राजघाट पर हाथ जोडे उनके सामने खडे हैं:(

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।