Tuesday 16 August 2011

चिठ्ठी: अन्ना दादा के नाम....


अन्ना दा,
सादर प्रणाम
दादा जी उम्मीद है आपका गांव तो खुशहाल होगा, यहां दिल्ली में आपकी वजह से दम घुट रहा है। सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया है। हालत ये है कि 15 मिनट का रास्ता दो घंटे में भी पूरा हो जाए तो गनीमत है। दादा जी इस बार बच्चों का बहुत मन था कि वो 15 अगस्त को दिल्ली के लाल किला पहुंचे और वहां आजादी का जश्न मनाएं। इसके लिए उन्होंने बहुत तैयारी भी कर रखी थी,  लेकिन सुबह से ही टीवी पर आप और आपके समर्थकों का हो हल्ला देखकर हिम्मत नहीं पड़ी कि घर से बाहर निकलें। पहले तो बच्चों को  बुरा लगा, लेकिन कोई बात नहीं मैने उनके लिए मैकडोनाल्ड से पिज्जा मंगवा लिया था, इसलिए उन्हें झंडारोहण न देख पाने का कोई मलाल नहीं है। हां एक बात और बच्चों से वादा किया था कि शाम को दिल्ली में अच्छी रोशनी होती है, वो देखने चलेंगे। पर आजादी वाले दिन आपने रात को घर की बत्ती बंद रखने की अपील कर ये मुश्किल भी आसान कर दी। बच्चों को बताया कि अन्ना दादा ने रात में पूरे घंटे भर बिजली बंद रखने को कहा है, अंधेरे में तो दिल्ली में कुछ भी हो सकता है। बस बच्चे डर गए और उन्होंने खुद ही मना कर दिया घर से बाहर जाने के लिए।
दादा आप जानते हैं कि स्वतंत्रता दिवस देश का राष्ट्रीय पर्व है। आज के दिन और कुछ हो ना हो,  पर  इस दिन हम शहीदों को याद तो करते हैं, और उन्हें सम्मान देते हैं। लेकिन आपने शहीदों का ये हक भी छीन लिया। कल पूरे दिन लोग टीवी पर आपको ही तरह तरह की मुद्रा में देखते रहे। आप तो जानते ही हैं कि आजकल टीवी पर वैसे भी शहीदों के लिए कोई समय नहीं रह गया है। एक मौका था, जब शहीदों के बारे में बच्चे कुछ जान पाते तो वो मौका भी  आपने छीन लिया। दादा देश आपको आपको गांधी कह रहा है, इसलिए आपकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ गई है, क्योंकि  आपने कुछ भी ऐसा वैसा किया, जो नहीं होना चाहिए तो आपका  कुछ नहीं होगा, हां गांधी के बारे में बच्चों  के बीच  गलत राय बनेगी। पिछले दिनों आपने फांसी देने की बात की, आपने ये भी कहा कि गांधी के रास्ते बात ना बने तो शिवाजी का रास्ता अपनाना होगा। अरे दादा आपको तो पता है कि गांधी जी कहते थे कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा सामने कर दो। पर आप तो कुछ भी बोल रहे हैं। इससे बच्चों में गलत संदेश जा रहा है। गांधी जी तो हर हाल में अंहिसा को मानने वाले थे। दादा कई बार आप जब भाषा की मर्यादा तोडते हैं, उस समय बच्चे पूछते हैं कि गांधी जी भी ऐसे ही बोला करते थे, तो  मेरे पास  कोई जवाब नहीं होता है।
दादा, आपका जीवन बहुत कीमती है, पूरा देश आपको बहुत प्यार करता है। सभी लोग चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार ना रहे, लोगों को उनका हक मिले। हर आदमी का काम बिना रिश्वत और जल्दी हो। जरा सोचिए द अगर ऐसा हो जाए तो लोगों का जीवन कितना आसान हो जाएगा। लेकिन दादा जी अब मैं कुछ बात आपको बताना चाहता हूं, पर आप अपनी उम्र बताकर ये मत कहिएगा कि आपको सब पता है,  मुझे कुछ भी नहीं सुनना।  सच ये है दादा  कि जब तक आप फौज में थे, तो आप सामान पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते रहे, वहां से आए तो गांव में छोटे से मंदिर में रह कर गांव को दुरुस्त करने में लग गए। कई बार आपका आमना-सामना महाराष्ट्र की सरकार से हो चुका है। भूख हड़ताल तो आपकी एक तरह से आदत हो गई है। दादा आप नाराज मत होना, सच कहूं तो आप आज की दुनियादारी को  नहीं समझ पा रहे हैं। अब हम इतना भ्रष्ट हो चुके हैं कि सुधरने की गुंजाइश नहीं रह गई है।
अन्ना दादा कडुवा सच ये है कि अगर रिश्वत बंद हो जाए, तो सरकारी नौकरी करने के लिए कोई तैयार ही नहीं होगा। प्राईवेट सेक्टर में मैनेजमेंट किए बच्चों को जो वेतन मिलता है, उससे कम वेतन आईएएस, आईपीएस को मिलता है। अन्ना दा आपको तो पता होगा कि ज्यादातर राज्यों में जिले के कलक्टर और पुलिस कप्तान का पद बिकता है। दादा जब कलक्टर और कप्तान की ये हालत है तो और पदों के बारे में क्या कहा जाए। देश में थाने बिकना तो आमबात है। आज बाबू की तनख्वाह से दस गुना उसकी ऊपर की कमाई है। बडे शहरों में अगर अफसर और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हो जाएं तो उसका घर चलाना मुश्किल हो जाएगा।
दादा जी अंदर की बात तो ये है कि भ्रष्टाचारियों को फांसी देने की आपकी मांग पूरी हो जाए तो, कम से कम 10 हजार जल्लादों की भर्ती तत्काल करनी होगी, और इन्हें देश भर मैं तैनात करना होगा। इसके बाद हर जिले में कम से कम दो सौ लोगों को अगर रोजाना फांसी पर लटकाया जाए, और ये प्रक्रिया साल भर भी चलती रहे, फिर भी हम देश को सौ फीसदी भ्रष्टाचारियों से मुक्त नहीं कर सकेंगे। दादा ऱिश्वतखोरों की पैठ बहुत गहरी है। जिस देश में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बाबू को पैसे देने पडें, जिस मुल्क में शहीदों के लिए खरीदे जाने वाले ताबूत में दलाली ली जाती हो, जिस मुल्क में सैनिकों को घटिया किस्म का बुलेट प्रूफ जैकेट देकर सीमा पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता हो, जिस देश में डाक्टर चोरी से मरीज की किडनी निकाल लेते हों, जिस देश शहीदों की विधवाओं के लिए बने फ्लैट पर सेना के अफसर और नेता कब्जा जमा लेते हों, उस देश को पूरी तरह  ईमानदार बना देना इतना आसान है क्या।
मैं तो जानता हूं कि आपने कभी ईमानदारी से समझौता नहीं किया। आप तो देश में एक बार फिर रामराज्य की कल्पना कर रहे हैं। आप  जब भी किसी आंदोलन का बिगुल फूंक देते हैं तो पीछे नहीं हटते। लेकिन दादा ये आंदोलन कामयाब हो गया तो मेरे साथ ही करोडों लोगों को बहुत मुश्किल होगी। मेरा तो बड़ा से बडा काम इतनी आसानी से हो जाता है कि पता ही नहीं चलता। सब लोग महीनों पहले ट्रेन में सफर करने के लिए रिजर्वेशन कराते हैं, मुझे तो टीटीई को एक फोन भर करना होता है, उसके बाद सारा इंतजाम वो खुद करता है। हां थोडा पैसा ज्यादा देता हूं। बिजली का बिल जमा करने के लिए मैं आज तक कभी लाइन में नहीं लगा। बिजली विभाग का आदमी खुद ही हर महीने आकर चेक ले जाता है। उसे भी थोडे से पैसे देता हूं, मेरा बिल भी दूसरों के मुकाबले  कम आता है। सरकारी अस्पताल में कितनी भी भीड़ हो, मुझे डाक्टर सबसे पहले देखते हैं, और दवा भी वहीं से मिल जाती है,जबकि वही दवा दूसरे लोगों को  बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। दादा टेलीफोन विभाग से भी मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है। वो बेचारे थोडे से पैसे लेते हैं, मेरा बिल सिर्फ महीने का किराया भर आता है।
अन्ना दा आपको पता   है मैं जिस भी सरकारी महकमें में जाता हूं, लोग मेरी बहुत इज्जत करते हैं। इसके लिए मुझे ज्यादा कुछ नहीं करना पडता। बस थोडे से पैसे अफसरों से लेकर कर्मचारी तक को देनें पडते हैं, और दीपावली पर कुछ छोटा मोटा गिफ्ट। लेकिन काम  कोई नहीं रुकता। आज हालत ये है कि  दूसरों  का कोई काम रुकता है तो वो भी मेरे पास आते हैं। मेरे एक फोन करने भर से लोगों की मदद हो जाती है, पर दादा अगर रिश्वतखोरी बंद हो गई तो हमारा क्या होगा। मुझे तो अपना भी  कोई काम करने की आदत नहीं है। हमें ही नहीं हमारे जैसे करोडों लोग हैं, जो अपना काम भी खुद से नहीं कर पाते।
हां दादा भूल गया था, आज टीवी पर देखा कि पुलिस ने आपको गिरफ्तार कर लिया और अनशन करने  से रोक दिया। पहले तो  मुझे दिल्ली पुलिस पर थोडा गुस्सा आया, फिर लगा कि ठीक ही है। दिल्ली में शांति तो रहेगी, रास्ता चलना तो थोडा आसान रहेगा। बेवजह का शोर शराबा  बंद रहेगा।
दादा आप जनलोकपाल के चक्कर में ना पडें। आप पुराने जमाने की सोचते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 121 करोड की आवादी वाले देश को किसी भी कानून में नहीं बांधा जा सकता। ईमानदारी के लिए लोगों में नैतिकता की जरूरत है और आज देश में कोई नैतिक नहीं रह गया। दादा आप कहते हैं कि अगर जनलोकपाल बन गया तो आधे मंत्री जेल में होगे, ये सुनकर आप हैरत में पड जाएंगे कि अगर ईमानदारी से बेईमानों की पहचना की  गई तो सेना के आधे से ज्यादा बडे अफसरों को जेल भेजना होगा। आज जितनी भ्रष्ट हमारे देश की सेना है, उसका किसी दूसरे महकमें से कोई मुकाबला नहीं है। दादा आपने लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आंदोलन में शामिल होने को कहा था। सरकार कर्मचारियों ने तो छुट्टी नहीं ली, सब काम पर हैं, पर घर की बाई जरूर छुट्टी चली गई। इसलिए आपको लेकर घर में भी बहुत नाराजगी है।
चलिए दादा अब पत्र बंद करते हैं, आफिस भी जाना है। हां चलते चलते आपको स्व. शरद जोशी जी की दो लाइने पढ़ाना चाहता हूं। वो कहते हैं ना कि सरकार किसी काम के लिए ठोस कदम उठाती है, कदम चूंकि ठोस होते हैं, इसलिए उठ नहीं पाते। देश की बर्बादी के सिर्फ दो कारण हैं, ना आप कुछ कर सकते हैं, ना मैं कुछ कर सकता हूं। होता वही है जो होता रहता है।
दादा प्रणाम।
जेल से बाहर आइये तो मुलाकात होगी।

महेन्द्र श्रीवास्तव

12 comments:

  1. bahut sarthak baten likhi hain aapne .aabhar .

    ReplyDelete
  2. anna ek bat to aapko main bhi kahoongi ki aap chahe kuchh bhi kar len ye bhrashtachar kabhi khatm hone vala nahi hai jab mahendra ji jaise log swayam jor shor se bhrashat aachran kee bate kah rahe hain to fir ham jaise sadharan jan kya kahenge .isliye koi aur hi mudda aap dhoondh len to shayad bharat v bharatiyon ke liye behtar hoga.

    ReplyDelete
  3. अच्छा ख़त लिखा अन्ना जी के नाम का .....हम आपकी इस पाती से सहमत हैं ...!

    ReplyDelete
  4. वाह! क्या-क्या नहीं है आपकी इस पाती में, अन्ना दा को इससे ज़ुरूर इत्तेफ़ाक होना चाहिए...बड़े ही रोचक अन्दाज में लिखी यह आपकी पाती हमें बहुत रास आयी...बधाई

    ReplyDelete
  5. बहुत बढिया पाती

    राम राम

    ReplyDelete
  6. bahut khula sach , jisko sweekarna padta hai...ek patrakaar ki kalam se jo nazariya mila wah prashansniy hai , manne yogya hai...

    ReplyDelete
  7. यहाँ तो ये नहीं समझा आ रहा कि ...जब यहाँ सब के सब भ्रष्ट है तो अन्ना किस किस को बदलने की बात करते है ...आम नागरकि किन परेशानियों का सामना कर रहा है ..इस बात को अन्ना और उसके समर्थक नहीं समझ रहे है

    ReplyDelete
  8. नमस्कार....
    बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

    मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

    आपका ब्लागर मित्र
    नीलकमल वैष्णव "अनिश"

    इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
    वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्

    MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

    ReplyDelete
  9. शानदार व्यंग्य ...अन्ना के पीछेवाहवाही लूटने की चाह लिए वे लोग भी खड़े हैं जो आकंठ भ्रषटाचार में लिप्त है कैंडल मार्च के बजाय एक कदम भ्रषटाचार के विरुद्ध बढ़ाते तो अच्छा होता

    ReplyDelete
  10. कदम चूंकि ठोस होते हैं, इसलिए उठ नहीं पाते।
    हा!हा!हा!..बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete

जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।