Tuesday 5 July 2011

राहुल गांधी: ट्रेनी महासचिव !


सच तो ये है कि राहुल गांधी पर कुछ लिखना सिर्फ अपना समय खराब करना है, लेकिन आज सुबह से खबरिया चैनल जिस तरह से राहुल के आगे पीछे दौड़ लगा रहे हैं उससे मैं भी मजबूर हो गया कुछ लिखने के लिए। दो महीने पहले पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव के दौरान केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी एस अच्युदानंद ने जब राहुल को "अमूल बेबी " कहा तो तमाम लोगों के साथ ही मुझे भी अच्छा नहीं लगा। मुझे लग रहा था कि एक राष्ट्रीय पार्टी के महासचिव पर इस तरह व्यक्तिगत हमले से बचा जाना चाहिए। लेकिन अब जिस तरह की हरकतें राहुल गांधी कर रहे हैं, उससे मैं " अमूल बेबी " टिप्पणी को गलत नहीं मानता।
दरअसल राहुल जो कुछ कर रहे हैं उससे उन्हें अमूल बेबी कहना बिल्कुल गलत नहीं है। सच में उनकी सियासी हरकतें बचकानी लगतीं हैं। एक राष्ट्रीय पार्टी का महासचिव बचकानी हरकत करे, तो हैरत होती है। आज कांग्रेस के ही मित्रों से जब राहुल गांधी को लेकर बात होती है तो वो कहतें है कि राहुल अभी कांग्रेस के ट्रेनी महासचिव हैं। मुझे लगता है कि शायद इसीलिए राहुल के साथ एक फुलटाइम महासचिव दिग्विजय सिंह पूरे टाइम बने रहते हैं। वैसे राहुल का कान्वेंट शैली का भाषण लोगों को सुनने में अच्छा तो लगता ही है, वो खूब मजे लेकर राहुल को सुनते हैं। अपने राहुल बाबा मुंगेरी लाल के हसीन सपनों में खो जाते हैं कि लोग उन्हें पसंद कर रहे हैं।
आइये मुद्दे की बात करते हैं। राहुल उत्तर प्रदेश में पार्टी और खुद को मजबूत करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि इसके लिए अधिक से अधिक समय यूपी में बिताया जाना चाहिए। ये अच्छी बात है, लेकिन राहुल को क्यों लगता है कि भट्टा पारसौल गांव और आसपास (नोएडा) के किसानों का मुद्दा उठाने से ही उनकी पार्टी मजबूत होगी। यहां के किसानों से बदतर हालत में पूर्वांचल और बुंदेलखंड के किसान रह रहे हैं, लेकिन राहुल को उनकी याद नहीं आती। शायद आपको ना पता हो कि भट्टा पारसौल गांव में इक्का दुक्का किसान ही ऐसे होंगे जो करोडपति ना हों। इन पैसे वाले किसानों के बजाए और किसानों के गम का भागीदार क्यों नहीं बन रहे हैं राहुल बाबा।
वैसे राहुल बाबा से यहां की महिलाएं पहले ही काफी नाराज हैं। दो महीने पहले जब राहुल यहां आए तो उन्होंने पुलिस की बर्बरता की कहानी प्रधानमंत्री को सुनाते हुए कहा कि यूपी पुलिस ने किसानों पर फायरिंग तो की ही, महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया। इसके बाद से महिलाएं नाराज हैं। उनका कहना है कि वो ऐसी दबी कुची महिलाएं नहीं है कि पुलिस वाले उनके साथ कुछ भी कर लेगें। महिलाओं ने साफ कहा कि राजनीति के लिए उनकी इज्जत को दांव पर ना लगाएं। इस मामले की जानकारी के बाद काफी दिन तक राहुल भट्टा पारसौल के मामले में खामोश रहे। आज तड़के जब राहुल अचानक इसी गांव में फिर पहुंचे तो, सवाल उठा कि आखिर राहुल को हो क्या गया है वो नोएडा के महासचिव नहीं हैं, वो तो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। आखिर क्या चाहते हैं, तो पता चला कि उन्हें किसानों की समस्याओं से ज्यादा लेना देना नहीं है, बस भट्टा पारसौल की बात होती है तो मुख्यमंत्री मायावती को मिर्ची लगती है, बस इसीलिए वो यहां आ जाते हैं। फिर दिल्ली के करीब होने से मीडिया में भी छाए रहते हैं। कहावत है ना हर्रे लगे ना फिटकरी रंग चोखा।
चलिए छो़ड़ दीजिए की राहुल कब, क्या और कैसे करते हैं। लेकिन एक बात कांग्रेसियों को भी खटकती है कि उनके राष्ट्रीय महासचिव राष्ट्रीय मुद्दों पर क्यों खामोश रहते हैं। आज देश भर में जनलोकपाल बिल को लेकर माथापच्ची चल रही है। लेकिन राहुल गांधी खामोश हैं। कालेधन के मामले में पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है, यहां तक कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की ऐसी तैसी करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, लेकिन राहुल पर इसका कोई असर नहीं। महिलाओं पर अत्याचार को लेकर राहुल काफी संवेदनशील दिखने की कोशिश करते हैं। अत्याचार की ऐसी घटनाओं पर संवेदना व्यक्त करने चोरी छिपे वो कहां कहां पहुंच जाते हैं। लेकिन चार जून को रामलीला मैदान में पुलिस लाठीचार्ज में घायल महिला राजबाला को देखने वो आज तक नहीं गए, जबकि उसकी हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है।
एक सवाल दिग्विजय सिंह से करना जरूरी लग रहा है। उन्हें राहुल गांधी में ऐसा क्या दिखाई देता है जिसके आधार पर वो दावा करते हैं कि राहुल में अच्छे प्रधानमंत्री के सभी गुण मौजूद हैं। ठाकुर साहब कहीं ये तो नहीं सोच रहे हैं कि महासचिव राहुल को महासचिव की बारीकियां समझाने की जो जिम्मेदारी वो अभी निभा रहे हैं, अगर राहुल प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें प्रधानमंत्री का काम सिखाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी और राहुल को मुखौटा बनाकर पीछे से प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी वो खुद निभाएंगे।
सरकार की हालत आज इतनी खराब हो चुकी है कि इसे कोई भी धमका ले रहा है। बेचारे मजबूर प्रधानमंत्री को खुद को मजबूत बताने के लिए खुद ही आगे आना पड़ रहा है। पिछले सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। अब सिविल सोसाइटी ने सरकार का पसीना निकाल दिया है। मुश्किल में फंसी सरकार को सहारा देने के लिए राहुल कभी आगे नहीं आते। कई बार तो लगता है कि पार्टी का एक तपका चाहता है कि पार्टी इतनी मुश्किलों से घिर जाए कि लोग खुद मांग करने लगें कि अब राहुल को गद्दी सौंप दी जानी चाहिए। भाई राहुल मेरी आपको सलाह है कि आप सियासी काम चोरी छिपे करना बंद करें। ताल ठोंक कर जाएं, जहां जाना हो। शुरू में एक दो बार तो ये बात समझ में आ रही थी, लेकिन अब तो वाकई ड्रामेबाजी लगती है। इतना ही नहीं विषय की गंभीरता भी नहीं रह जाती। इस तरह आपके निकलने से पूरे दिन मीडिया में मुद्दों की चर्चा नहीं होती, राहुल कैसे मोटर वाइक से गए, गर्मी में कैसे वो पैदल चले, क्या खाया-पिया, किसके घर रुके इन्हीं बातों की चर्चा होकर खत्म हो जाती है।
केंद्र सरकार के काम काज की बात की जाए तो मुझे स्व. शरद जोशी की याद आ जाती है। वो कहते हैं कि सरकार किसी काम के लिए ठोस कदम उठाती है, कदम चूंकि ठोस होते हैं, इसलिए उठ नहीं पाते। मैने एक नेता से पूछा आप ये ठोस कदम क्यों उठाते हैं, पोले यानि हल्के कदम उठाएं, उठ तो जाएंगे, नेता जी आंख मार कर बोले कदम तो हल्के ही हैं, मैने पूछा फिर उठाते क्यों नहीं, बोले नहीं उठाते इसीलिए तो ठोस हैं। सरकार और हमारे ट्रेनी महासचिव का हाल भी कुछ ऐसा ही है।


15 comments:

  1. इस आलेख में आपने आधा सच नहीं पूरा सच लिखा है।

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  2. Mahendra ji aap har lekh poori pardarshita,sachchai se likhte hain ya kah sakte hain danke ki chot se likhte hain aapka yeh andaaj kabile tareef hai.

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  3. यह ख़ामोशी इस परिवार की खासियत है..... उनके अपने स्वार्थों के लिए

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  4. मैने एक नेता से पूछा आप ये ठोस कदम क्यों उठाते हैं, पोले यानि हल्के कदम उठाएं, उठ तो जाएंगे, नेता जी आंख मार कर बोले कदम तो हल्के ही हैं, मैने पूछा फिर उठाते क्यों नहीं, बोले नहीं उठाते इसीलिए तो ठोस हैं। सरकार और हमारे ट्रेनी महासचिव का हाल भी कुछ ऐसा ही है।

    वाह! जी वाह! करारा व्यंग्य किया है आपने.
    आपकी बातों से पूर्ण सहमत हूँ.
    सच का पर्दाफाश किया है आपने,शुद्ध सच के दर्शन हुए.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  5. सही .....एक एक बात से सहमत ...!

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  6. ढूंढ़ दुलहिनी--
    बूढ़ कुँवारा गली-गली की खाख छानता |
    भूमि-अधिग्रहण के 'भट्टे' से राख छानता ||

    मिलने का विश्वास उसे है, इकदम पक्का |
    बार - बार 'परसौली' पूरे पाख छानता ||

    पर माया की माया से अनभिग्य नहीं वो |
    प्रकृति-अंक से प्रति-दिन दर्शन सांख्य छानता

    बाबा - नाना के चरणों की बड़ी महत्ता |
    गठरी में रख ले 'रविकर' जो शाख छानता ||

    किन्तु सियासत कही पड़े न भारी कुल पर |
    ढूंढ़ दुलहिनी भटक रहा क्या *माख छानता || * अभिमान / अपने दोष को ढापना

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  7. आपकी बातों से पूर्ण सहमत हूँ.
    सच का पर्दाफाश किया है आपने.....

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  8. आपकी व्यंगात्मक पोस्ट बहुत सटीक है ... राहुल बाबा को पढनी चाहिए ...

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  9. सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! सटीक लिखा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! आपकी लेखनी को सलाम!

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  10. pura sach likhne ke liye abhar
    aapke likhne ka nadaj bahut prabhavi hai .
    rachana

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  11. आप पत्रकार है इस नाते अच्छी राजनितिक समीक्षा
    करते है ! आभार नियमित ब्लॉग पर आने के लिये !

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  12. बहुत दिनोंसे आपके ब्लॉग पर मेरे कमेंट्स
    नहीं लग रहे थे ! शुक्रिया आज तकनीकी सूधार हुआ
    लगता है !

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  13. सही ही तो कहा है आपने...

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  14. आपकी विश्लेषण क्षमता एक अलग प्रभाव छोड़ती है .बढ़िया पोस्ट.

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।