Saturday 25 June 2011

नही चलेगी ये अन्नागिरी...


आज चर्चा के लिए तीन मुद्दे हैं जो मुझे बेहद परेशान कर रहे हैं। कल से यही सोच रहा हूं कि क्या करूं। अन्ना जी का मैं समर्थक हूं, मुझे ही नहीं देश के आम आदमी को उनके आंदोलन से बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन अब मुझे अन्ना को कटघरे में खड़ा करना पड़ रहा है। इस बारे में मैं कल ही लिखना चाहता था, लेकिन कल अन्ना और उनकी टीम को लेकर मैं बेहद गुस्से में था, लिहाजा मुझे लगा कि अभी मैं अपने लेख के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि मेरे लेख पर मेरे गुस्से का प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए मैं ये बात मन में दबाए रहा। लेकिन समय बीतने के साथ हालत ये हो गई कि हमें रात में डाक्टर के पास जाकर ब्लडप्रेशर चेक कराना पड़ा। मुझे जो अंदेशा था वही निकला। मेरा बीपी 105 और 180 था। चूंकि मैं अभी बीपी की दवा नहीं लेता हूं, लिहाजा काफी देर तक मैं बच्चों के साथ अपार्टमेंट के भीतर ही टहलता रहा। आज आराम है।  दूसरा मुद्दा उत्तर प्रदेश से जुड़ा है, जबकि तीसरी बात मुझे केंद्र सरकार की तेल नीति पर करनी है। आइये सबसे पहले बात अन्ना की कर लेते हैं।

नासमझ अन्ना
अब मुझे टीम अन्ना को नासमझ, अल्पज्ञानी, महत्वाकांक्षी कहने में जरा भी संकोच नहीं है, क्योंकि अन्ना जब जंतर मंतर पर आमरण अनशन कर रहे थे तो उन्हें आम जनता का भरपूर समर्थन मिला। इस दौरान कुछ राजनीतिक दलों के नेता भी उन्हें समर्थन देने के लिए जंतर मंतर पहुंचे, पर अन्ना समर्थकों ने नेताओं को खदेड़ दिया। मुझे लगता है कि ये इतनी बड़ी गल्ती थी कि अब अन्ना इस चूक की भरपाई आसानी से नहीं कर पाएंगे। अरे भाई भारत लोकतांत्रिक देश है, सबको पता है कि यहां कानून जंतर मंतर पर नहीं बनेगा, कानून बनेगा संसद में, और संसद में अगर कानून बनवाना है तो राजनीतिक दलों से नफरत नहीं दोस्ती करनी होगी। खैर कोई बात नहीं लेकिन अन्ना जी कल तक राजनीतिक दल अछूत थे तो अब राजनीतिक दलों के दरवाजे पर घुटने  टेकने क्यों पहुंच गए। अब आपको आडवाणी और ए वी वर्धन की याद आने की वजह क्या है। अब आप ऐसा क्यो सोच रहे हैं कि सभी दलों ने नेतृत्व से मुलाकात करें। आपको लगता है कि शरद पवार, करुणानिधि, मुलायम सिंह यादव, मायावती, लालू प्रसाद जैसे नेता जनलोकपाल बिल को समर्थन देंगे।
अन्ना जी आपके इस फैसले से आपकी किरकिरी हो रही है। जान लीजिए कि नेताओं से मिलने की जिसने भी सलाह दी है वो आपकी टोपी नेताओं के पैर में रखवाना चाहता है। उसकी नीयत में खोट है। देश का युवा आपको आज का गांधी मानता है, और गांधी दो कौडी के नेताओं के चौखट पर जाए, ये किसी को बर्दाश्त नहीं। अन्ना जी आप तो देश की जनता को मालिक और सियासी को नौकर बताते हैं, फिर ऐसा क्या हो गया कि मालिक को नौकर के दरवाजे पर मत्था टेकना पड़ रहा है, और नौकर दुत्कार रहा है। अरे आपकी टीम मूर्ख है क्या, जब आप सांसदों को जनलोकपाल के दायरे में लाना चाहते हैं तो सियासी दलों को कुत्ते ने काटा है कि वो आपका समर्थन करेंगे।
अन्ना जी लगता है कि कुछ गलतफहमी में आप और आपके सलाहकार भी हैं। उन्हें लग रहा है कि आपके अनशन से सरकार झुक गई और इसलिए आप से बातचीत को राजी हुई। अगर आप भी ऐसा समझते हैं तो मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोए रहिए। लेकिन सच्चाई ये है कि आपके आंदोलन को मिल रहे अपार जनसमर्थन ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। अब आप जनसमर्थन को ठेंगा दिखा कर नेताओं के तलुवे चाटने उनके दरवाजे पर जा रहे हैं। आप समझते हैं कि जिन बेईमानों के खिलाफ आप झंडा उठाए हुए हैं, वो आपके साथ खड़े होंगे। किसी पार्टी के नेता ने आपकी बात मान ली तो वो अपनी पार्टी के सांसदों से पिटेगा। इसलिए अन्ना जी आपको सलाह है कि कहीं ऐसा ना हो कि आपको नेता भी दुत्कार दें और जनता भी। आप मौके की नजाकत को समझें, नेताओं से जो दूरी है, वो बनाए रखें। देश भर से जनसमर्थन जुटाएं, ऐसा माहौल बनाना होगा कि जो दल जनलोकपाल के खिलाफ बात करे, उसे देश की जनता दुत्कार दे। आप गांधी हैं, आप गांधी बने रहें। आप आशीर्वाद देने की भूमिका में रहें, लेने की कत्तई ना सोचें।

राजनीति के अयोग्य माया
चलिए आज आपको देश के एक हास्यास्पद कानून के बारे में बताता हूं। जिसके लिए निर्वाजन आयोग करोडों रुपये खर्च करता है। चुनावों में बेहिसाब खर्चों पर नियंत्रण के लिए निर्वाचन आयोग हर चुनाव क्षेत्र में पर्यवेक्षक भेजता है, जबकि पर्यवेक्षकों के आने जाने का कोई मतलब नहीं है, हर जगह उम्मीदवार मनमानी खर्च करते ही हैं। खास बात ये हैं कि चुनाव के बाद उम्मीदवार को चुनावी खर्च का पूरा व्यौरा निर्वाचन कार्यालय में जमा कराना पड़ता है। आपको पता है जो लोग चुनाव खर्चे को जमा नहीं कराते हैं, ऐसे लोगों को निर्वाचन आयोग चुनाव लड़ने के अयोग्य करार देता है और वो फिर चुनाव नहीं लड़ पाते।
लेकिन चुनाव जीतने के बाद आप कितने अपराध करें, आपको चुनाव के अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। अब यूपी की मुख्यमंत्री मायावती को ले लें। उत्तर प्रदेश में अब वो समय आ चुका है जब की सरकार को बर्खास्त कर राष्टपति शासन लगाया जाना चाहिए। मायावती पैसे की बर्बादी कर रही हैं। सरकारी पैसे से मूर्ति,पार्क पर उनका ध्यान ज्यादा है। एक खास बिल्डर ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों पर गोली चलाई जा रही है। उनके पार्टी के मंत्री - विधायक संगीन अपराधों में लिप्त हैं। प्रदेश की राजधानी में कानून का राज बिल्कुल नहीं रह गया है। लखनऊ जेल में डा.सचान की हत्या से साफ हो गया है कि सूबे की सरकार के कुछ बड़े लोगों की कारगुजारी खुल ना जाए, इसलिए ये हत्या कराई गई है।
लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वालों पर लाठी चलाई जाती है, विरोधी दल के नेताओं के घरों को सरकार के विधायक अपने गनर के साथ जाकर फूंक देते हैं। ये तमाम ऐसे कारण मौजूद हैं कि सूबे की सरकार को ना सिर्फ बर्खास्त किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा प्रावधान भी किया जाना चाहिए, मायावती जैसे लोगों को चुनाव के अयोग्य ठहराया जा सके, क्योंकि इनके नेतृत्व में गुंडे पल रहे हैं और उन्हें संरक्षण भी मिल रहा है।  

बेशर्म केंद्र सरकार
ये मेरे लिखने की शैली नहीं है, लेकिन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी और पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने मजबूर कर दिया कि उन्हें गाली की भाषा ही समझ में आती है। डीजल की कीमतों में तीन रुपये और रसोई गैस सिलेंडर में 50 रुपये की बढोत्तरी को इन दोनों नेताओं ने मामूली बढोत्तरी बताया है। इनसे ये कौन पूछे कि ये बढोत्तरी तुम्हारे लिए मामूली है, इन्हें तो रसोई गैस की कीमत क्या हो गई है, ये भी पता नहीं होगा। इस बढोत्तरी से ज्यादा इन नेताओं की गंदी टिप्पणी ने लोगों को आहत किया है। जनता को पांच जूते मारने के बाद कह रहे हैं कि अरे मेरी वजह से सिर्फ पांच ही पड़े वरना तो 25 पड़ने वाले थे।  

16 comments:

  1. विचारनीय प्रश्न।

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  2. भाई श्रिवास्तव जी, पहले अपना ब्लड प्रेशर कम कीजिए क्योंकि गुस्से में कही गई बात पर फिर पछतावा न हो। अन्ना साहब ने जो भी किया वह वक्त की नज़ाकत को देख कर किया होगा। यह सही है कि इस धूर्त सरकार को जीतने के लिए एक चाणक्य की ज़रूरत है जो चोटी खोल कर प्रण ले॥

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  3. सबको ही यह विषय सालते हैं,
    हम दुखी होने का भ्रम पालते हैं।

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  4. वो आपकी टोपी नेताओं के पैर में रखवाना चाहता है। उसकी नीयत में खोट है। देश का युवा आपको आज का गांधी मानता है, और गांधी दो कौडी के नेताओं के चौखट पर जाए, ये किसी को बर्दाश्त नहीं।

    इस धूर्त सरकार को जीतने के लिए एक चाणक्य की ज़रूरत है जो चोटी खोल कर प्रण ले॥

    इस बढोत्तरी से ज्यादा इन नेताओं की गंदी टिप्पणी ने लोगों को आहत किया है।

    जनता को पांच जूते मारने के बाद कह रहे हैं कि अरे मेरी वजह से सिर्फ पांच ही पड़े वरना तो 25 पड़ने वाले थे।

    विचारनीय ||


    सोखे सागर चोंच से, छोट टिटहरी नायँ |
    इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

    * * * * *
    सौदागर भगते भये, डेरा घुसते ऊँट |
    जो लेना वो ले चले, जी-भर के तू लूट ||
    * * * * *
    कछुआ-टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |
    खरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||
    * * * * *
    कोशिश अपने राम की, बचा रहे यह देश |
    सदियों से लुटता रहा, माया गई विदेश ||
    * * * * *
    कोयल कागा के घरे, करती कहाँ बवाल |
    चाल-बाज चल न सका, कोयल चल दी चाल ||
    * * * * *
    रिश्तों की पूंजी जमा, मनुआ धीरे खर्च |
    एक-एक को ध्यान से, ख़ुशी-ख़ुशी संवर्त ||
    * * * * *
    प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||
    * * * * *

    कुर्सी के खटमल करें, चमड़ी में कुछ छेद |
    मर जाते अफ़सोस कर, निकले खून सफ़ेद ||

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  5. यही आक्रोश देश की जनता में दिखना चाहिए ...विचारणीय पोस्ट

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  6. yathart ko batataa hua saarthak lekh.kai baaton main mai aapse sahmat hoon.gussa to sabhi ko aataa
    hai.per apnaa blood pressar badhane se hamaara hi nuksaan hai.in moti chamadiwaale netaon ka kuch nahi bigadanaa.inhe to naa jantaa ka der rah gayaa hai naa bhagwaan ka.itane achche lekh ke liye badhaai.

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  7. आपका आक्रोश बिलकुल सही है |
    टीम अन्ना ने अनशन के जरिये लोकपाल समिति में शामिल होकर ही बहुत बड़ी गलती की थी | जिस दिन अन्ना अपनी मांगे मनवाकर समिति में शामिल हुए उसी दिन भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को पलीता लग गया था |
    यदि अन्ना लोकपाल में शामिल नहीं होते तो सरकार अन्ना व रामदेव से अब तक डर रही होती और उस डर के सहारे ये अपना दबाव बनाकर सरकार पर नकेल डाले रहते तो ही ज्यादा सही था |

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  8. आपका आक्रोश वाजिब है .....

    तीनों मुद्दों का आपने सही विश्लेषण किया है

    अन्ना जी की टीम लक्ष्य से भटक गई लगती है

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  9. टीम अन्ना के द्वारा सरकार ने बाबा रामदेव को तोडा ... अब वो अन्ना को तोड़ेंगे ... टेम अन्ना और जनता जुन्झुना है सरकार के हाथों में ...

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  10. सभी मुद्दों का आपने सही विश्लेषण किया है । विचारणीय पोस्ट ..

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  11. नासमझ अन्ना अब thebhaskar.com पर भी. pls wellcome @ www.thebhaskar.com

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  12. perfect and true on every topic
    thanks for stopping my blog i like ur post very much

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  13. सटीक, सार्थक तथा बहुत ही प्रभावशाली पोस्ट - आभार

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  14. Very true Sir, when govt cnt do nythng good for the country and countrymen then,they dnt deserve to be the government.we really need to make some solid efforts.Anna ji is doing the best in a peaceful manner bt i believe they will nt do nythng peacefully, they need a "BANG ON".

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  15. अन्ना जी ओर उनकी टीम के कारण आप का रक्तचाप १८० तक पहुँच गया!
    नासमझ ओर गलतफहमियों में जी रहे अन्ना जी पर एक विचारणीय लेख .

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  16. आपकी कलम क्या क्या सच लिखती है ....पढ़ कर ताजुब होता है .....कृपया आप आगे भी ऐसे ही लिखते रहे ...

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।