Tuesday, 24 May 2011

भूख

सिर्फ चार लाइनें.........
भूख ने मजबूर कर दिया होगा,



आचरण बेच कर पेट भर लिया होगा।


अंतिम सांसो पर आ गया होगा संयम,


बेबसी में कोई गुनाह कर लिया होगा।

29 comments:

  1. भूख जो न कराये कम है} अच्छा मुक्तक॥

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  2. chandramauleshwar prasad ji ke kathan se poorntaya sahmat.

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  3. आचरण का सौदा कोई यूँ ही नही करता
    भूख क्या न करवा दे

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  4. एक सच कहा आपने इस कविता में.

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  5. bhookh kya kya nahi karvaati gareeb se.bahut sachchaai hai in panktiyon me.aabhar.

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  6. क्या बात ..
    बिलकुल वास्तविक....बहुत सुन्दर गागर में सागर भर दिया आप ने

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  7. क्या बात है सर! आपकी इस कविता से मुझे स्कूल के समय पढ़ी 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी की ये कविता 'भिक्षुक' याद आ गई...

    'भिक्षुक'- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

    वह आता--
    दो टूक कलेजे के करता पछताता
    पथ पर आता।
    पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
    चल रहा लकुटिया टेक,
    मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
    मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--
    दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
    साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
    बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
    और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
    भूख से सूख ओठ जब जाते
    दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
    घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
    चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
    और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!

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  8. सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! उम्दा प्रस्तुती!

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  9. kisi ne to bebasi samjhi ....

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  10. कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी..

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  11. वाह !! चार लाइन निशब्द कर गई

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  12. lijiye aapke follower ka shatak bhi laga diya hamne.

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  13. चार लाइन में बहुत कुछ ..!
    बहुत सुन्दर ..!

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  14. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  15. गागर में सागर...
    सादर

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  16. बहुत कम स्तिथियों में 'आह' के साथ 'वाह' निकलता है ...आपकी रचना ने वह कर दिखाया !
    पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर ...

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  17. ह्रदय कटा सा जा रहा है..

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  18. बहुत बहुत बढ़िया.........
    सादर.

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  19. कम शब्दों में कुनेन पिला दी है आपने....!!

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  20. लाज़वाब! कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया...

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  21. बहुत दिनों बाद ये रचना एक बार फिर चर्चा में आई..
    बहुत शुक्रिया

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।