हां मैं आपको ब्लाग के आतंकियों से भी मिलावाऊंगा, पर पहले बात देश में घट रहे एक बड़े सियासी घटनाक्रम की कर ली जाए। पहले डीजल, रसोई गैस की कीमतों को बढ़ाने के बाद अब सरकार ने रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दे दी है। मुझे लगता है कुछ दिन दिल्ली गरम रहेगी। वैसे आपको पता है तीन दिन के लिए दिल्ली से बाहर था, वापस लौटा तो यहां कई चीजें देख रहा हूं। एक ओर मंहगाई के खिलाफ देश भर में आवाज उठाई जा रही है, दूसरी ओर ब्लागिंग के कुछ आतंकी बता रहे हैं कि वो कितने पढ़े लिखे हैं। आइये पहले बात करते हैं मंहगाई की। वैसे तो पेट्रोल, डीजल के साथ ही रसोई गैस की कीमतों को बढ़ाने का फैसला काफी समय पहले हो गया था, लेकिन बात ये हो रही थी कि इसे लागू कब से किया जाए। अगर संसद न चल रही होती तो ये बढोत्तरी पहले ही कर दी जाती। कोयले पर घिरी सरकार को लग रहा था कि इस समय कीमतों में बढोत्तरी आग में घी डालने जैसी होगी, लिहाजा संसद का सत्र खत्म होने के बाद इसे लागू करने का फैसला लिया गया। सरकार की मंशा पहले से साफ थी, इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई, क्योंकि मैं देखता हूं कि पेट्रोलियम मंत्रालय आज कल तेल कंपनियों के लिए पीआरओ का काम करता है। मंत्रालय हमेशा उनका पक्ष लेकर बताता रहता है कि बढ़ोत्तरी जायज है, वरना तेल कंपनियां बंद हो जाएंगी।
बहरहाल अब इतना तो साफ हो गया है कि सरकार को सीबीआई चल रही है। अब देखिए ना समाजवादी पार्टी के नेता अगर गल्ती से भी सरकार के खिलाफ या फिर उनके युवराज राहुल गांधी को लेकर कोई टिप्पणी करते हैं तो शाम होते-होते वो अपना बयान बदलने को मजबूर हो जाते हैं। सीबीआई का डर ही ऐसा है कि खुद मुलायम सिंह को देखा गया है कि कई बार वो दूसरे नेताओं के साथ मिलकर कोई फैसला करते हैं, फिर खुद चुपचाप सरकार के पाले में खड़े हो जाते हैं। अब ये बात तो किसी को पता नहीं कि वो कांग्रेस अध्यक्ष के सामने जाकर कहते क्या होगें, लेकिन जैसा दिखाई दे रहा है उससे तो लगता है कि मुलायम सिंह यही बताते होंगे कि मैं तो इसलिए वहां जाता हूं जिससे आपको वहां जो कुछ चल रहा है उसकी खबर दे सकूं।
अब देखिए ना मुलायम सिंह यादव राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के साथ घंटो बतियाते रहे। ममता को भी लगा कि मुसलमान उम्मीदवार के मामले में मुलायम सिंह बात मान जाएंगे। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम भी ममता के साथ प्रेस कान्फ्रेस में आगे किया। फिर रात में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की और शाम की बात से पलट गए। हालांकि कि मैं मानने को तैयार नहीं हूं, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा यहां तक है ये मुलाकात सीबीआई ने अरेंज की थी। मुलाकात के दौरान तमाम सरकारी फाइलें वहां मौजूद थीं, उन्हें खोल कर दिखाने का नंबर नहीं आया, क्योंकि इसके पहले ही मुलायम सिंह ने सरकार की हां में हां कर दी थी। अब बेचारी ममता अकेले क्या सरकार को घेर पातीं, चुपचाप बंगाल निकल गईं। वैसे ममता भी चाहतीं तो अपनी बात पर अड़ी रहतीं, लेकिन अंत में वो भी सरकार के पाले में आ गईं।
मुलायम और ममता को ऐसा क्यों लगता है कि देशवासी मूर्ख हैं, उनकी राजनीति लोगों के समझ में नहीं आएगी। मेरा स्पष्ट मानना है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी को जिस तरह ऐतिहासिक जीत मिली है, उसी उत्तर प्रदेश मे लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मुंह की खानी पड़ सकती है। अगर ऐसा ही झूठा और दिखावे वाला विरोध ममता बनर्जी भी करतीं रहीं तो वो दिन दूर नहीं जब उन्हें बंगाल तगड़ा झटका दे दे। आप पूछ सकते हैं कि आखिर मैं इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों कर रहा हूं। मेरी टिप्पणी तल्ख इसलिए है कि सरकार जब भी गलत फैसले लेती है, तब माया, ममता और मुलायम ही सरकार के साथ सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं। कई बार लालू भी सरकार की हां में हां मिलाते नजर आते हैं। मेरा सवाल है कि ये सड़कों पर उतर कर बवाल काटने का मतलब क्या है ? आप आइये दिल्ली और सोनिया गांधी से साफ-साफ बात कीजिए कि अगर बढ़ी कीमते घंटे भर में वापस नहीं होती हैं तो हम समर्थन वापस ले लेगें। मुझे पक्का भरोसा है कि आपको रायसीना हिल यानि राष्ट्रपति भवन जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और जनता को राहत मिल जाएगी। अगर एक प्रतिशत सरकार बढ़ी हुई कीमतें वापस नहीं लेती है तो सीधे समर्थन वापसी का पत्र राष्ट्रपति को थमा आइये।
लेकिन मुझे पता है कि आप ये काम नहीं करेंगे, क्योंकि आप सब के कई तरह के हित इन्वाल्व हैं। सीबीआई तो आपके पीछे है ही। इसके अलावा आपको यूपी के लिए बड़े पैकेज की भी लालच बनी रहती है। ममता की नाराजगी की एक खास वजह भी पैकेज रही है। बहरहाल आज की डेट में मायावती थोड़ा कम्फर्ट जोन में हैं। उनका आय से अधिक संपत्ति वाला मामला भी लगभग समाप्त हो गया है और अब सरकार में भी नहीं हैं कि उनकी कोई छीछालेदर हो सकती है। इसलिए मैं फिर दोहराता हूं कि जनता को मूर्ख बनाने के बजाए जनता के हित में सही निर्णय लेने का वक्त आ गया है, वरना 2014 आप सबको जीवन भर याद रहेगा, जब जनता अपना फैसला सुनाएगी।
ब्लाग में भी आतंकियों का गिरोह
चलिए अब थोड़ी सी बात ब्लाग के आतंकियों के गुंडागर्दी की कर ली जाए। मैं बाहर था, अचानक मेरे पास ब्लागर मित्रों के फोन आने लगे। सामान्य शिष्टाचार से बात शुरू हुई, फिर उन्होंने बताया कि आपने तहजीब के शहर लखनऊ वालों की करतूत नहीं पढ़ी। मैने पूछा कि अब क्या कर दिया इन्होंने, हम कितने दिनों से इन्हें देख ही तो रहे हैं, फिर मैं ही क्या सभी ब्लागर देख रहे हैं। मित्र ने बताया कि आपके बारे में अनाप-शनाप लिखा गया है। मैने कहा जब खुद कह रहे हैं कि अनाप-शनाप लिखा है, तो अनाप-शनाप पर इतना ध्यान क्यों देना। बहरहाल मित्र से तो यहीं बात खत्म हो गई। मेरा शूट चल रहा था, शाम को शूट खत्म करने के बाद होटल आया तो मुझे लगा कि देखा जाए, क्या कहा जा रहा है।
सच बताऊं तो आप हैरानी में पड़ जाएंगे, क्योंकि जिसके नाम से ये लेख पोस्ट किया गया है, दरअसल ये उसका लिखा नहीं है। इसे लिखने वाला है उसका चंपू नंबर एक। दरअसल लेख के जितने पैराग्राफ हैं, सब उसने मेरे लेख पर कमेंट किया था। मैने उसे पब्लिश होने से रोक दिया। आप मेरे लेख पर जाएं तो पाएंगे कि मैने खुद उसे सुझाव दिया था कि मेरे ब्लाग पर अभद्र भाषा मान्य नहीं है। इसके लिए आपके पास अपना ब्लाग है, वहां गंदगी कीजिए, पूरा स्पेश भी है और आपके परिवार और शुभचिंतक आसानी से आप तक पहुंच भी जाएंगे। चंपू भी चालाक है, उसने देखा कि इस भाषा से तो मेरे ऊपर लोग उंगली उठाएंगे, लिहाजा उसने अपने कमेंट को कट पेस्ट कर एक लेख बना डाला और उसे सरगना के नाम से पब्लिश करा दिया। हालाकि ये लेख में कोई नई बात नहीं कह पाए। नया एक था जो उन्होंने अपने घर परिवार में बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया। खैर उनका पारिवारिक मसला है, जो जुबान पर आई उसे बोलते रहते हैं, फिर लिख दिया तो कौन सा तूफान खड़ा हो गया। अच्छा होता कि घरेलू भाषा अपने घर तक ही सीमित रखते, क्योंकि बहुत जोर शोर से तहजीब और ना जाने क्या क्या कहते रहते हैं।
अरे एक बात तो रह ही जा रही थी। गिरोह के सरगना ने पहले खुद अपने पढ़ाई लिखाई की चर्चा की है, फिर उनकी संस्था से जुड़ी ब्लागर ने उनकी पढ़ाई लिखाई पर अपना ठप्पा लगाया है। यानि जो लिखा गया है वो सही है। अच्छा मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए, अगर पिता से पुत्र ज्यादा पढ़ ले तो क्या उसकी हैसियत ये हो जाती है कि वो अपने पिता को सम्मानित करे। इस मामले में तहजीब के शहर से तो कोई उम्मीद नहीं है, पर सच में मैं अपने बड़ों का मार्गदर्शन चाहता हूं। बहरहाल मेरे लेख पर कई लोगों की टिप्पणी में ये बात सामने आई कि मैने सच्चाई कहने की हिम्मत की, किसी ने कहा आप कम से कम सब कुछ साफ-साफ लिखते हैं, मेरी तो हिम्मत ही नहीं पड़ती। इस बात से मेरे मन में काफी दिनों से सवाल था कि आखिर लोग सच क्यों नहीं कह पाते, ऐसी क्या बात है ? अब समझ में आ गया। ये गिरोह के सदस्य ऐसी ही घरेलू भाषा में उनसे बात करने लगेंगे, जाहिर है कोई भी आतंकियों के मुंह नहीं लगना चाहेगा।
एक बात जानना चाहता हूं कि मैने शिखा जी के बारे में भला ऐसी क्या टिप्पणी कर दी, जिससे उनके सम्मान को चोट पहुंचा ? मैने तो यही कहा ना कि मेरी थोड़ी सी शिकायत उनसे है, वो शास्त्री जी की जानती थीं, वो चाहतीं तो शास्त्री जी अपेक्षित सम्मान मिलता। इसमें इतना हाय तौबा क्यों ? अच्छा चलिए आपको शिखा जी के बारे में बहुत तकलीफ हुई। लेकिन यहीं पर रश्मि दीदी के लिए क्या नहीं कहा गया। और महिलाओं के सम्मान की बड़ी बड़ी बातें करने वाले वहां क्यों खामोश रहे ? वैसे भी रश्मि दीदी तो आपकी पत्रिका परिवार से भी जुड़ी हैं ?
और आखिरी बात.. ये लेख जो आया तो मन थोड़ा हल्का हो गया। आप खुद सोचें कि आप किसी को गल्ती करने पर पीट रहे हैं और वो चुपचाप खड़ा रहता है तो गुस्सा और बढ़ता जाता है ना। लगता है कि इस पर कोई असर ही नहीं हो रहा है, क्योंकि इतना पिटने पर भी रो ही नहीं रहा। लेकिन जब गल्ती करने वाला रोता है तो उस पर दया आती है और पीटना बंद हो जाता है। अब भाई मैं इतना भी सख्त नहीं हूं कि किसी कि पिटाई भी करुं और उसे रोने भी ना दूं। लेकिन कुछ लोग बहुत शातिर होते हैं, वो इसलिए भी चीख चीख कर रोने लगते हैं कि पिटाई से बच जाएं। अगर इशारे की बात समझ में आती है तो मस्त रहिए ..हाहहाहाहहा।
बहरहाल कई मित्रों ने मुझे मेल करके कहा कि आपने तहजीब के शहर वालों को अच्छा आइना दिखाया है, ऐसे ही तमाम और भी मेल मुझे मिले हैं। अब उन्हें लग रहा है कि उस गिरोह के सरगना ने जैसे व्यक्तिगत मेल को सार्वजनिक कर दिया, और एक लेख पर उसे टिप्पणी के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे कई लोग घबरा गए कि कहीं मैं भी ऐसा ना कर दूं। लेकिन मित्रों मैं इतना नीचे नहीं गिर सकता कि व्यक्तिगत मेल को आपकी टिप्पणी बना दूं। अगर मजबूर हुआ तो मैं सबसे पहले गिरोह के उसी सदस्य का मेल सबके सामने करुंगा जो मुझे तो माफीनामें का मेल करता है और रात में नशे के इंतजाम के लिए सरगना की चापलूसी करता है। उसने मुझे मेल करके अपनी मजबूरी बताई है, लिहाजा मैने उसे अभी तो माफ ही कर दिया है, जिससे रोजी रोटी चलती रहे बेचारे की । मेरी नजर है वहां आने वाली टिप्पणियों पर.. एक ने अपनी जात बताई है, उसके बारे में मैं जल्दी ही आपको पूरी जानकारी देने वाला हूं।
(नोट: मैं अपने उन ब्लागर मित्रों से माफी चाहता हूं जिनकी सलाह थी कि मैं इन सबको उन्हीं की भाषा में जवाब दूं। मित्रों मैं सच में गाली नहीं दे पाता हूं, लेकिन आप विश्वास कीजिए मेरी सीखने की क्षमता बहुत तेज है, दो चार लेख मैं ऐसे ही पढ़ता रहा तो जरूर सीख जाऊंगा, फिर आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। )
बहरहाल अब इतना तो साफ हो गया है कि सरकार को सीबीआई चल रही है। अब देखिए ना समाजवादी पार्टी के नेता अगर गल्ती से भी सरकार के खिलाफ या फिर उनके युवराज राहुल गांधी को लेकर कोई टिप्पणी करते हैं तो शाम होते-होते वो अपना बयान बदलने को मजबूर हो जाते हैं। सीबीआई का डर ही ऐसा है कि खुद मुलायम सिंह को देखा गया है कि कई बार वो दूसरे नेताओं के साथ मिलकर कोई फैसला करते हैं, फिर खुद चुपचाप सरकार के पाले में खड़े हो जाते हैं। अब ये बात तो किसी को पता नहीं कि वो कांग्रेस अध्यक्ष के सामने जाकर कहते क्या होगें, लेकिन जैसा दिखाई दे रहा है उससे तो लगता है कि मुलायम सिंह यही बताते होंगे कि मैं तो इसलिए वहां जाता हूं जिससे आपको वहां जो कुछ चल रहा है उसकी खबर दे सकूं।
अब देखिए ना मुलायम सिंह यादव राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के साथ घंटो बतियाते रहे। ममता को भी लगा कि मुसलमान उम्मीदवार के मामले में मुलायम सिंह बात मान जाएंगे। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम भी ममता के साथ प्रेस कान्फ्रेस में आगे किया। फिर रात में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की और शाम की बात से पलट गए। हालांकि कि मैं मानने को तैयार नहीं हूं, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा यहां तक है ये मुलाकात सीबीआई ने अरेंज की थी। मुलाकात के दौरान तमाम सरकारी फाइलें वहां मौजूद थीं, उन्हें खोल कर दिखाने का नंबर नहीं आया, क्योंकि इसके पहले ही मुलायम सिंह ने सरकार की हां में हां कर दी थी। अब बेचारी ममता अकेले क्या सरकार को घेर पातीं, चुपचाप बंगाल निकल गईं। वैसे ममता भी चाहतीं तो अपनी बात पर अड़ी रहतीं, लेकिन अंत में वो भी सरकार के पाले में आ गईं।
मुलायम और ममता को ऐसा क्यों लगता है कि देशवासी मूर्ख हैं, उनकी राजनीति लोगों के समझ में नहीं आएगी। मेरा स्पष्ट मानना है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी को जिस तरह ऐतिहासिक जीत मिली है, उसी उत्तर प्रदेश मे लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मुंह की खानी पड़ सकती है। अगर ऐसा ही झूठा और दिखावे वाला विरोध ममता बनर्जी भी करतीं रहीं तो वो दिन दूर नहीं जब उन्हें बंगाल तगड़ा झटका दे दे। आप पूछ सकते हैं कि आखिर मैं इतनी तल्ख टिप्पणी क्यों कर रहा हूं। मेरी टिप्पणी तल्ख इसलिए है कि सरकार जब भी गलत फैसले लेती है, तब माया, ममता और मुलायम ही सरकार के साथ सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं। कई बार लालू भी सरकार की हां में हां मिलाते नजर आते हैं। मेरा सवाल है कि ये सड़कों पर उतर कर बवाल काटने का मतलब क्या है ? आप आइये दिल्ली और सोनिया गांधी से साफ-साफ बात कीजिए कि अगर बढ़ी कीमते घंटे भर में वापस नहीं होती हैं तो हम समर्थन वापस ले लेगें। मुझे पक्का भरोसा है कि आपको रायसीना हिल यानि राष्ट्रपति भवन जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और जनता को राहत मिल जाएगी। अगर एक प्रतिशत सरकार बढ़ी हुई कीमतें वापस नहीं लेती है तो सीधे समर्थन वापसी का पत्र राष्ट्रपति को थमा आइये।
लेकिन मुझे पता है कि आप ये काम नहीं करेंगे, क्योंकि आप सब के कई तरह के हित इन्वाल्व हैं। सीबीआई तो आपके पीछे है ही। इसके अलावा आपको यूपी के लिए बड़े पैकेज की भी लालच बनी रहती है। ममता की नाराजगी की एक खास वजह भी पैकेज रही है। बहरहाल आज की डेट में मायावती थोड़ा कम्फर्ट जोन में हैं। उनका आय से अधिक संपत्ति वाला मामला भी लगभग समाप्त हो गया है और अब सरकार में भी नहीं हैं कि उनकी कोई छीछालेदर हो सकती है। इसलिए मैं फिर दोहराता हूं कि जनता को मूर्ख बनाने के बजाए जनता के हित में सही निर्णय लेने का वक्त आ गया है, वरना 2014 आप सबको जीवन भर याद रहेगा, जब जनता अपना फैसला सुनाएगी।
ब्लाग में भी आतंकियों का गिरोह
चलिए अब थोड़ी सी बात ब्लाग के आतंकियों के गुंडागर्दी की कर ली जाए। मैं बाहर था, अचानक मेरे पास ब्लागर मित्रों के फोन आने लगे। सामान्य शिष्टाचार से बात शुरू हुई, फिर उन्होंने बताया कि आपने तहजीब के शहर लखनऊ वालों की करतूत नहीं पढ़ी। मैने पूछा कि अब क्या कर दिया इन्होंने, हम कितने दिनों से इन्हें देख ही तो रहे हैं, फिर मैं ही क्या सभी ब्लागर देख रहे हैं। मित्र ने बताया कि आपके बारे में अनाप-शनाप लिखा गया है। मैने कहा जब खुद कह रहे हैं कि अनाप-शनाप लिखा है, तो अनाप-शनाप पर इतना ध्यान क्यों देना। बहरहाल मित्र से तो यहीं बात खत्म हो गई। मेरा शूट चल रहा था, शाम को शूट खत्म करने के बाद होटल आया तो मुझे लगा कि देखा जाए, क्या कहा जा रहा है।
सच बताऊं तो आप हैरानी में पड़ जाएंगे, क्योंकि जिसके नाम से ये लेख पोस्ट किया गया है, दरअसल ये उसका लिखा नहीं है। इसे लिखने वाला है उसका चंपू नंबर एक। दरअसल लेख के जितने पैराग्राफ हैं, सब उसने मेरे लेख पर कमेंट किया था। मैने उसे पब्लिश होने से रोक दिया। आप मेरे लेख पर जाएं तो पाएंगे कि मैने खुद उसे सुझाव दिया था कि मेरे ब्लाग पर अभद्र भाषा मान्य नहीं है। इसके लिए आपके पास अपना ब्लाग है, वहां गंदगी कीजिए, पूरा स्पेश भी है और आपके परिवार और शुभचिंतक आसानी से आप तक पहुंच भी जाएंगे। चंपू भी चालाक है, उसने देखा कि इस भाषा से तो मेरे ऊपर लोग उंगली उठाएंगे, लिहाजा उसने अपने कमेंट को कट पेस्ट कर एक लेख बना डाला और उसे सरगना के नाम से पब्लिश करा दिया। हालाकि ये लेख में कोई नई बात नहीं कह पाए। नया एक था जो उन्होंने अपने घर परिवार में बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया। खैर उनका पारिवारिक मसला है, जो जुबान पर आई उसे बोलते रहते हैं, फिर लिख दिया तो कौन सा तूफान खड़ा हो गया। अच्छा होता कि घरेलू भाषा अपने घर तक ही सीमित रखते, क्योंकि बहुत जोर शोर से तहजीब और ना जाने क्या क्या कहते रहते हैं।
अरे एक बात तो रह ही जा रही थी। गिरोह के सरगना ने पहले खुद अपने पढ़ाई लिखाई की चर्चा की है, फिर उनकी संस्था से जुड़ी ब्लागर ने उनकी पढ़ाई लिखाई पर अपना ठप्पा लगाया है। यानि जो लिखा गया है वो सही है। अच्छा मुझे एक सवाल का जवाब चाहिए, अगर पिता से पुत्र ज्यादा पढ़ ले तो क्या उसकी हैसियत ये हो जाती है कि वो अपने पिता को सम्मानित करे। इस मामले में तहजीब के शहर से तो कोई उम्मीद नहीं है, पर सच में मैं अपने बड़ों का मार्गदर्शन चाहता हूं। बहरहाल मेरे लेख पर कई लोगों की टिप्पणी में ये बात सामने आई कि मैने सच्चाई कहने की हिम्मत की, किसी ने कहा आप कम से कम सब कुछ साफ-साफ लिखते हैं, मेरी तो हिम्मत ही नहीं पड़ती। इस बात से मेरे मन में काफी दिनों से सवाल था कि आखिर लोग सच क्यों नहीं कह पाते, ऐसी क्या बात है ? अब समझ में आ गया। ये गिरोह के सदस्य ऐसी ही घरेलू भाषा में उनसे बात करने लगेंगे, जाहिर है कोई भी आतंकियों के मुंह नहीं लगना चाहेगा।
एक बात जानना चाहता हूं कि मैने शिखा जी के बारे में भला ऐसी क्या टिप्पणी कर दी, जिससे उनके सम्मान को चोट पहुंचा ? मैने तो यही कहा ना कि मेरी थोड़ी सी शिकायत उनसे है, वो शास्त्री जी की जानती थीं, वो चाहतीं तो शास्त्री जी अपेक्षित सम्मान मिलता। इसमें इतना हाय तौबा क्यों ? अच्छा चलिए आपको शिखा जी के बारे में बहुत तकलीफ हुई। लेकिन यहीं पर रश्मि दीदी के लिए क्या नहीं कहा गया। और महिलाओं के सम्मान की बड़ी बड़ी बातें करने वाले वहां क्यों खामोश रहे ? वैसे भी रश्मि दीदी तो आपकी पत्रिका परिवार से भी जुड़ी हैं ?
और आखिरी बात.. ये लेख जो आया तो मन थोड़ा हल्का हो गया। आप खुद सोचें कि आप किसी को गल्ती करने पर पीट रहे हैं और वो चुपचाप खड़ा रहता है तो गुस्सा और बढ़ता जाता है ना। लगता है कि इस पर कोई असर ही नहीं हो रहा है, क्योंकि इतना पिटने पर भी रो ही नहीं रहा। लेकिन जब गल्ती करने वाला रोता है तो उस पर दया आती है और पीटना बंद हो जाता है। अब भाई मैं इतना भी सख्त नहीं हूं कि किसी कि पिटाई भी करुं और उसे रोने भी ना दूं। लेकिन कुछ लोग बहुत शातिर होते हैं, वो इसलिए भी चीख चीख कर रोने लगते हैं कि पिटाई से बच जाएं। अगर इशारे की बात समझ में आती है तो मस्त रहिए ..हाहहाहाहहा।
बहरहाल कई मित्रों ने मुझे मेल करके कहा कि आपने तहजीब के शहर वालों को अच्छा आइना दिखाया है, ऐसे ही तमाम और भी मेल मुझे मिले हैं। अब उन्हें लग रहा है कि उस गिरोह के सरगना ने जैसे व्यक्तिगत मेल को सार्वजनिक कर दिया, और एक लेख पर उसे टिप्पणी के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे कई लोग घबरा गए कि कहीं मैं भी ऐसा ना कर दूं। लेकिन मित्रों मैं इतना नीचे नहीं गिर सकता कि व्यक्तिगत मेल को आपकी टिप्पणी बना दूं। अगर मजबूर हुआ तो मैं सबसे पहले गिरोह के उसी सदस्य का मेल सबके सामने करुंगा जो मुझे तो माफीनामें का मेल करता है और रात में नशे के इंतजाम के लिए सरगना की चापलूसी करता है। उसने मुझे मेल करके अपनी मजबूरी बताई है, लिहाजा मैने उसे अभी तो माफ ही कर दिया है, जिससे रोजी रोटी चलती रहे बेचारे की । मेरी नजर है वहां आने वाली टिप्पणियों पर.. एक ने अपनी जात बताई है, उसके बारे में मैं जल्दी ही आपको पूरी जानकारी देने वाला हूं।
(नोट: मैं अपने उन ब्लागर मित्रों से माफी चाहता हूं जिनकी सलाह थी कि मैं इन सबको उन्हीं की भाषा में जवाब दूं। मित्रों मैं सच में गाली नहीं दे पाता हूं, लेकिन आप विश्वास कीजिए मेरी सीखने की क्षमता बहुत तेज है, दो चार लेख मैं ऐसे ही पढ़ता रहा तो जरूर सीख जाऊंगा, फिर आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। )
महेंद्र जी ...ये बात तो सही है कि आप में सच को सच कहने और लिखने की हिम्मत है ...चाहें वो राजनीति हो या और कोई भी विषय ....अन्ना ,रामदेव,ममता याँ मायावती ...आपकी कलम ने किसी को नहीं छोड़ा ...आज मंहगाई का मुद्दा सच में इस देश के लिए इस वक्त बहुत बड़ा हैं ...भस्मासुर राक्षस की तरह ...जो सबकी सुखशांति को भस्म करने पे तुला हैं ...सरकार क्या कर रही हैं ...ये सब देख और सुन रहे हैं ...देश में मंहगी से मंहगी कारे आ गई ...पर गरीब अभी तक दूर नहीं हुई ...और इसका कोई हल भी नहीं हैं किसी के पास भी |
ReplyDeleteऔर रही ब्लोगिंग के सच की बात ....वो सब जानते हैं ..पर सच में बोलने की हिम्मत किसी ने भी नहीं की ...यहाँ तक ..मैंने भी नहीं .....सादर
जी बहुत बहुत आभार..
Deleteवैसे सच कहने के लिए हिम्मत की जरूरत नहीं होती,
अपनी बात हमेशा सीधी और सच्ची रखनी चाहिए।
खैर आपने कहा कि सच सब जानते हैं, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं कर पाते, मुझे पता है कैसे कह पाएंगे। फिऱ लोग अपने घर में बोले जाने वाली भाषा में यहां आ धमकते हैं। क्या करें बेचारे सीधे सच्चे ब्लागर, चुप रहना ही ठीक है...
सुवन सातवाँ सिलिंडर, माया लड़की रूप ।
ReplyDeleteछूट उड़ी आकाश की, वाणी सुन रे भूप ।
वाणी सुन रे भूप, कंस कंगरसिया मामा।
पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा ।
लेगा तेरे प्राण, यही वह पुत्र आठवाँ ।
किचेन देवकी जेल, कहे है सुवन सातवाँ ।।
जी
Deleteये मंहगाई वाकई लोगों का जीना दुश्वार करने वाली है..
अपनी क़ब्र ख़ुद कैसे खोदी जाती है ?
ReplyDeleteयह कांग्रेस के दाम बढ़ाने के फ़ैसलों को देखकर जाना जा सकता है। अब कांग्रेस का जाना तय है। यह क़ीमतें थोड़ी बहुत कम भी कर दे तब भी यह जाएगी ही। पूंजीपति नोट दे सकता है लेकिन वोट तो जनता से लेना है। जनता की कमर तोड़ दी जाएगी तो वह पोलिंग बूथ तक कैसे आएगी ?
और आएगी भी तो वह नए विकल्प को आज़माकर पुराने को सज़ा देगी। यह और बात है कि नया विकल्प पुराने से भी ख़राब ही निकलता आया है इस देश में।
आप केवल सच कहें और इल्ज़ाम लगाने वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने से बचें। आरोप की भाषा निम्नस्तरीय होती है।
हमें इस बात का 3 साल का तजर्बा है।
हमारी मानें तो पशुओं का फ़ोटो हटा दें। ब्लॉग की गुणवत्ता हमेशा उच्च बनाए रखें।
एक अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया !
बीवी का भी सदुपयोग करता है बड़ा ब्लॉगर
शुक्रिया डाक्टर साहब
Deleteपशुओं की तस्वीर को और किसी संदर्भ में बिल्कुल ना लें... वो सिर्फ आतंक की भयावहता के प्रतीक भर हैं।
मन की शान्ति के लिए कुछ बातों को भूलाना ही बेहतर होता है..
ReplyDeleteजी आपकी बात बिल्कुल सही है, पर मानव स्वभाव को कहां ले जाएं। हां एक बात जरूर कहूंगा कि मैं स्तर बनाएं रखूंगा, इसके प्रति आश्वस्त करना चाहता हू।
Deleteमैं इनके गिरने स्तर को देखना चाहता हूं....
शास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार..
ReplyDeleteसीधी सच्ची बात लोगों तक पहुंचाने के लिए..
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteयहीं पर रश्मि दीदी के लिए क्या नहीं कहा गया। और महिलाओं के सम्मान की बड़ी बड़ी बातें करने वाले वहां क्यों खामोश रहे ? वैसे भी रश्मि दीदी तो आपकी पत्रिका परिवार से भी जुड़ी हैं ? ........
ReplyDeleteसही सवाल . मैंने वहाँ भी इसी बात पर क्षोभ प्रगट किया है .
माफ कीजिएगा रश्मि दीदी मुझे आपका जिक्र करना पड़ा, लेकिन बहुत जरूरी था।
Deleteये एक साजिश के तहत शिखा जी का नाम बार बार लेकर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहें कि मैं महिलाओं का सम्मान नहीं करता।
व्यक्तिगत स्वार्थ इनके जुड़े होंगे, ये निपटाते रहें। मैं हमेशा साफ सुथरी बात करता हूं और करता रहूंगा।
हम्म...कल शीला दीक्षित जी का बयान सुना " महंगाई बढ़ती है तो डेली वेजेस भी तो बढ़ते हैं .." मगर जीतनी जल्दी जल्दी महंगाई बढाई है उतनी जल्दी डेली वेजेस कहाँ बढे और कहाँ पर पर लागू हुए हैं? ,आज का सच ये है की एक छोटा सा खोमचा लगाने वाले की दूकान पर ग्राहकों की आवक ही कम हो गयी है और घर पर उसके बच्चे वैसे ही आधा पेट खाना खाते हैं जैसे कल ...शायद अब तो आधा भी न भर पाए और अब तो घिन्न आने लगी है इन नेताओं से ..
ReplyDeleteऔर हाँ... कल जाने क्यूँ अचानक याद आया की कुछ महीने पहले कोई वेदेशी नेता आया था अपने देश के लोगों के लिए भारत में रोजगार के अवसर दिलवाने ...और याद आई एक विदेशी नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी "सोने की चिड़िया एक बार फिर गुलाम होगी वेदेशी शक्ति की,कुछ घंटे , कुछ महीने ...कुछ साल "
सच कहने का सामर्थ्य सबमें होना चाहिए,संतुलित शब्द भी अपनी बात कहते हैं - अपशब्द तो उन शब्दों का प्रयोग करनेवालों को उजागर करता है . सब अपने मान्य उद्देश्यों से भटक गए हैं .... सरस्वती अपने दिए वरदान पर दुखी हैं
ReplyDeleteमेरा तो मानना है कि जब आदमी सत्य के रास्ते अलग हो जाता है तो उसे चीख, चिल्लाहट, गाली गलौच का सहारा लेना पड़ता है।
Deleteवहां सभी में एक प्रतियोगिता चल रही है कि कौन कितना गिर सकता है, बस उसी प्रतियोगिता को जीतने में सब लगे हुए हैं।
हां कष्ट हुआ कि एक पिता जिसे अपने पुत्र को अच्छा रास्ता दिखाना चाहिए वो अपनी जीत के लिए पुत्र को भी आगे कर दिया...बहरहाल पिता के लिए मैं क्या कहूं, पर पुत्र को तो मेरी नेक सलाह होगी कि वो अच्छे रास्ते पर आगे बढ़े।
कुछ नहीं कर सकते,सिवाए कमल बनने के और कमल का सत्य दृष्टिगत है ...
Deleteहम्म...कल शीला दीक्षित जी का बयान सुना " महंगाई बढ़ती है तो डेली वेजेस भी तो बढ़ते हैं .." मगर जीतनी जल्दी जल्दी महंगाई बढाई है उतनी जल्दी डेली वेजेस कहाँ बढे और कहाँ पर पर लागू हुए हैं? ,आज का सच ये है की एक छोटा सा खोमचा लगाने वाले की दूकान पर ग्राहकों की आवक ही कम हो गयी है और घर पर उसके बच्चे वैसे ही आधा पेट खाना खाते हैं जैसे कल ...शायद अब तो आधा भी न भर पाए और अब तो घिन्न आने लगी है इन नेताओं से ..
ReplyDeleteऔर हाँ... कल जाने क्यूँ अचानक याद आया की कुछ महीने पहले कोई वेदेशी नेता आया था अपने देश के लोगों के लिए भारत में रोजगार के अवसर दिलवाने ...और याद आई एक विदेशी नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी "सोने की चिड़िया एक बार फिर गुलाम होगी वेदेशी शक्ति की,कुछ घंटे , कुछ महीने ...कुछ साल "
बिल्कुल सहमत हूं आपकी बात से
Deleteआने वाले समय और मुश्किल भरे होने वाले हैं... तैयार रहना होगा
मित्रों! मैं ये बात चाहता हूं कि आप सब अपनी बातें रखें जिससे तहजीब के शहर वालों को अपना चेहरा छुपाने के लिए भी कहीं जगह ना मिलें, लेकिन मर्यादा का ध्यान रखिए।
ReplyDeleteआप सब लोग उनके लिए गाली गलौच की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कम से कम मेरे ब्लाग पर प्रकाशित नहीं हो सकती। अब तक 19 से ज्यादा ऐसे कमेंट हैं जिसमें उन्हें गाली दी गई।
भाई अगर गाली ही देना होता तो मैं भी उसी शहर के एक बंदे को कुछ पैसे दे कर लिखवा लिया होता।
आप सब संयमित भाषा में अपनी बात कहिए, उन्हें पता चलना चाहिए कि ऐसे भी लिखने से बात पूरी हो जाती है....
वैसे मेरे एक अभिन्न मित्र का मेल उसी तहजीव के शहर से आया है, कह रहे हैं कि भाई साहब आप नहीं जानते, आप जिस भाषा में बात करते हैं, वो इनके समझ में कभी नहीं आएगी।
अरे प्यारे ! मैने इन्हें अच्छे आचरण सिखाने का कोई ठेका थोड़े लिया है। ये रहें अपने धुन में मस्त।
आपकी लेखनी सशक्त रहे एवं सदैव सच का साथ दे .. यही शुभकामनाएं
ReplyDeleteजी
Deleteपूरी कोशिश होगी कि आप सबकी अपेक्षाओं पर मैं खरा उतरूं...
kya bat hai, jawab bhi danke kichot par.. ha ha ha
ReplyDeleteनहीं नहीं...
Deleteमैं उन्हें क्या जवाब दूंगा, वो यहां के बरगद हैं। लेकिन ऐसे बरगद जिसके नीचे किसी को छांव नहीं मिलती । बस उस पर कौवे बैठते हैं और नीचे बैठे लोगों पर .......... करते रहते हैं।
सच को बाहर आना ही चाहिए..
ReplyDeleteसच लगभग सामने आ चुका है, लोग भी बेनकाब हो चुके हैं। अब उनकी कोशिश है कि गाली गलौच करके असल मुददे से सभी का ध्यान हटाया जाए।
Deleteलेकिन मैं कभी धैर्य खोने वाला नहीं हूं, जानता हूं ये कैसे लोग हैं...
बोलने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता हर जगह होनी चाहिए और अभद्र भाषा का प्रयोग तो कहीं भी मान्य नहीं है राजनीति की बातें भी आप निष्पक्ष ही लिखते हैं जिस कारण आपको पढना अच्छा लगता है
ReplyDeleteजी काश आपकी बात ही तहजीब की दुहाई देने वालों की समझ में आए।
Deleteलेकिन नहीं आएगी, ये इसी को अपनी ताकत समझते हैं। ये खुद को सुधारने के बजाए सामने वाले की बोलती बंद करने के हिमायती हैं। खुद अभद्र आचरण करते हैं और अपने बच्चों को भी इसी रास्ते पर ला रहे हैं।
मैं तो आपको भरोसा दिला सकता हूं कि ये कितने भी नीचे गिर जाएं, पर मैं नीचे तो नहीं गिर सकता, लेकिन आखिर तक छोड़ने वाला भी नहीं हूं. सच्चाई इसी ब्लाग के जरिए देता रहूंगा...
महेंद्र जी ...ये बात तो सही है पर सच में बोलने की हिम्मत किसी ने भी नहीं की
ReplyDeleteसच बताऊं...
Deleteअगर मुझे पता होता कि सही बात कहने वालों के साथ इस तरह गाली गलौच करते हैं तो मुझे भी लगता कि इस गिरोह ने आखिर मेरा क्या हड़प लिया है, मैं ही क्यों बुरा बनूं...
लेकिन अब संतोष है... इन्हें सुधारने का तो हमने ठेका लिया नहीं है, पर आइनों तो दिखा ही दिया।
अब ये और इनके चंपू बकते रहें, असलियत सबके सामने है।
नई पोस्ट ..नई पोस्ट ....पुस्तक समीक्षा उजला आसमाँ
ReplyDeleteपर आपका स्वगत है
बिल्कुल संजय जी
Deleteआज ही
सत्य जीवित रहेगा आपके इन लेखों के माध्यम से .....!
ReplyDeleteमैं देख रहा हूं कि ब्लाग के बहुत सारे लोग मुझे मेल कर रहे हैं, फोन कर रहे हैं, सब मुझे बधाई दे रहे हैं।
Deleteलेकिन माफी मांग रहे हैं कि मैं ऐसा नहीं कर सकता / सकती। उनका कहना है कि कुछ लोग मिले हुए हैं और ये सब मिलकर गाली गलौच करते हैं। कई लोगों ने बताया कि इनके फर्जी नाम और तस्वीर से कई ब्लाग हैं और उसी के जरिए ये एक माहौल बनाने की साजिश करते हैं..
मेरा तो सिर्फ इतना कहना है कि हम सब ब्लाग पर शौक और अपनी जिम्मेदारी निभाए आएं है, लेकिन हां कुछ लोग धंधे के लिए भी हैं। तो भाई इन्हें धंधा करने दीजिए...
लेकिन मैं एक बात हर जगह कहता हूं कि बेईमान आदमी कभी सिर उठाकर समाज में नहीं चल सकता। क्योंकि उसमें इतना नैतिक साहस नहीं होता है...
कोई नहीं भगवान उन्हें भी सही रास्ता दिखाए..
काफी हद तक सही कह रहे हैं आप ?
Deleteकाफी हद तक सही कह रहे हैं आप ?
Deleteशुक्रिया केवल जी
Deleteहिन्दी का ब्लॉग संसार कितना जीवंत है यह देखने को मिला जब हम चले हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डाइरेक्टरी संकलित करने, 'सर्वश्रेष्ठ भारतीय ब्लॉगों की डाइरेक्टरी' की तर्ज पर।
ReplyDeleteअच्छा लगा यह देखकर कि हिन्दी में कई अच्छे ब्लॉग लिखे और पढ़े जा रहे हैं। जैसा कि सोशल मीडिया का तक़ाज़ा होना ही चाहिए, ब्लॉगों के पुरस्कार को लेकर काफी उद्वेलित हैं कई लोग। इंडियन टॉप ब्लॉग्स की कोशिश रहेगी कि केवल सर्वोत्तम ब्लॉग इस डाइरेक्टरी में आएँ। देखिएगा ज़रूर।