Wednesday 4 May 2011

वाह रे दिल्ली वालों......



अक्सर महानगर वाले यूपी और बिहार को कोसते नजर आते हैं। दिल्ली में गंदगी क्यों है, जवाब मिलता है ये यूपी और बिहार वालों की वजह से। मंहगाई क्यों बढ़ती जा रही है जवाब मिलता है यूपी और बिहार वाले बहुत ज्यादा खाते हैं, इसलिए मंहगाई है। महानगर में मकानों का किराया बहुत ज्यादा बढ रहा है, इसके लिए भी जवाब मिलता है कि यूपी और बिहार वाले अपना घर छोड़ कर महानगरों का रुख कर रहे हैं, इसलिए किराये बढ़ रहे हैं। महानगरों में अपराध बढ रहे हैं, फिर रटा रटाया जवाब यूपी और बिहार की वजह से। जनसंख्या बढने के लिए भी यूपी और बिहार वाले जिम्मेदार। कहने का मतलब ये कि महानगरों में जितनी भी बुराइयां और खामियां है सबके लिए यही यूपी और बिहार वाले जिम्मेदार हैं। चूंकि दिल्ली की सियासत में यूपी और बिहार के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी करके किसी भी नेता के लिए चैन की नींद लेना संभव नहीं है, इसलिए यहां तो फिर भी सियासी कुछ बोलने के पहले सौ बार सोचते हैं, लेकिन मुंबई में तो लोग यूपी और बिहार के लोगों पर हमला करने से भी पीछे नहीं रहते।

पर महानगर में रहने वाले कभी ये भी सोचते हैं कि उनके बारे में लोगों की राय क्या है। पिछले दिनों मुझे उत्तराखंड में मसूरी से करीब सौ किलोमीटर और ऊपर चकराता जाना पड़ा। वापसी शनिवार को हो रही थी। वीकेंड होने की वजह से पूरी दिल्ली मसूरी में कैंम्पटीफाल में डेरा डाले हुए थी। इन दिल्ली वालों ने लगभग 1500 से ज्यादा कारों को बेतरतीब जहां तहां खड़ी करके पहाड़ के पूरे रास्ते को जाम कर दिया। यकीन मानिये 8 घंटे से भी ज्यादा समय इस जाम में और लोगों के साथ मैं भी फंसा रहा।

इन गाड़ियों में दिल्ली का नंबर देख हर आदमी दिल्ली वालों को सिर्फ कोस ही नहीं रहा था, बल्कि वो ऐसी गालियां दे रहे थे, जिसे मैं यहां लिख भी नहीं सकता। मैं पूछता हूं दिल्ली वालों, दिल्ली में लेन तोड़ने पर जुर्माना भरते हो, रेड लाइट तोड़ने पर जुर्माना भरते हो, चलती गाड़ी में मोबाइल से बात करने में जुर्माना भरते हो। इसलिए दिल्ली में तो ट्रैफिक नियमों का पालन बखूबी करते हो। लेकिन दिल्ली से बाहर निकलते ही आखिर हो क्या जाता है जो लोगों की गाली सुनते हो। शर्म करो....

13 comments:

  1. very nice observation.. second your thoughts !!

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  2. अपने गिरेवान में झाँकने की हिम्मत हो तो न....सार्थक पोस्ट...

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  3. matlab ghoomate hue bhi aapka patrakar dil dimag aapke sath hi tha...badiya observation.

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  4. समस्या तो यही है.... सबको बस अधिकार चाहिए....कर्तव्यों की बात कोई नहीं समझता.... जिम्मेदार नागरिक बने यह हम सबके लिए ज़रूरी है....

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  5. दिल्ली में उन्हें भय रहता है , जो अन्य शहरों में उन्हें नहीं होता। यदि नियम कायदों को सख्ती से लागू किया जाए और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ अनुशासात्मक कार्यवाई की जाए तो इस समस्या का निदान मिल सकता है । वैसे दिल्ली वालों में arrogance बहुत होता है।

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  6. बहुत सार्थक विषय। हम सब भारतवासी हैं यदि कोई भी अपना प्रांत या शहर छोड़कर दूसरी जगह आकर रहता है तो उसके लिए कभी भी बैर भाव नहीं रखना चाहिए। लेकिन यह दुनिया भी रेल के डिब्‍बे की तरह है जो पहले घुस गया वो दूसरों को गलत कहता है।

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  7. bilkul sahi kaha hai achhi post....

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  8. दिल्ली से निकले बरसों हो गए....कभी तेरा मेरा शहर सोचा ही नहीं... जितने भी शहर देखे...अपने ही लगे....समस्या कहाँ नहीं होती...

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  9. सही कहा है..अक्सर ऐसा होता है...जहाँ पुलिस-फाइन का डर होता है...वहाँ तो नियमों का बखूबी पालन होता है..परन्तु जहाँ...थोड़ी छूट मिली....सारे नियम ,ताक पर रख दिए जाते हैं.
    जबतक अपनी मर्जी से नियम का पालन नहीं किया जाएगा....कोई भी सुधार मुश्किल दिखता है.

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  10. आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा ... बधाई

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  11. बहुत सुन्दर लेख, बहुत-बहुत आभार ....
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  12. जीवन में नागरिकता बोध तो लाना ही पडेगा।

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  13. satik vishay per achhi post

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।