सत्ता के गलियारे में पिछला 15 दिन काफी उतार चढाव वाला रहा। आइये हर मामले में आपको छोटी छोटी जानकारी देता हूं। बात करेंगे पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलानाडु और कर्नाटक तक की। पेट्रोल की कीमतों के बारे में भी। सबसे पहले बात पश्चिम बंगाल के लाल किले को ढहाने वाली ममता बनर्जी की।
चलिए छोटी सी बात कर ली जाए ममता बनर्जी को लेकर, क्योंकि अब उन्हें देनी है अग्निपरीक्षा। ममता तेज तर्रार नेता हैं, अगर उन्हें आयरन लेडी कहें तो गलत नहीं होगा। लेकिन मेरा मानना है कि वो सत्ता के खिलाफ संघर्ष को तो कुशल नेतृत्व दे सकती हैं, सरकार का नेतृत्व करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं। सियासत मे तरह तरह के समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन ममता किसी तरह का समझौता कर पाएंगी, उनके व्यक्तित्व से तो नहीं लगता है। इतना ही नहीं वो अपनी पार्टी के नेताओं पर आंख मूंद कर भरोसा भी तो नहीं करतीं हैं।
केंद्र की सरकार में जब ममता बनर्जी ने शामिल होने का फैसला किया तो उनके सांसदों की संख्या के हिसाब से कम से कम छह लोगों को कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता था, लेकिन पार्टी नेताओं पर भरोसा ना करने वाली ममता ने अपनी पार्टी के किसी भी नेता को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। केंद्र में वो अकेले कैबिनेट मंत्री रहीं। पार्टी के बाकी नेताओं को मन मसोस कर राज्यमंत्री पर ही संतोष करना पड़ा। टीएमसी के नेता ममता के खिलाफ मुखर होकर बोले तो नहीं, लेकिन ये पीड़ा उनकी पार्टी के कई नेताओं में देखी गई।
अब ममता को पश्चिम बंगाल में पूरा मंत्रिमंडल बनाना है। ये काम उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। ममता की ईमानदारी की बात होती है तो लोग उन्हें पूरे नंबर देते हैं। सूती साड़ी और हवाई चप्पल को वो सादगी से कहीं ज्यादा हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। बड़ी बात ये है कि क्या ममता अपने मंत्रिमंडल में शामिल लोगों को भी यही सलाह देगी कि वो सादगी से रहें। तड़क भड़क में ना पड़ें। मुझे लगता है कि ऐसा वो नहीं कर पाएंगी, क्योंकि उनकी पार्टी में शामिल 80 फीसदी से ज्यादा लोग डिजाइनर ड्रेस में भरोसा करते हैं। ममता बनर्जी को अब दिखावे से ज्यादा प्रैक्टिकल होना पडेगा। चलिए अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी, जल्दी ही सब सामने आ जाएगा। पहले तो मंत्रिमंडल का गठन होने दें, देखते हैं वो अपने छवि वाले नेता कहां से लाती हैं। वैसे ममता जी...
राजनीति में अक्सर जूते खाने पड़ते हैं,
कदम कदम पर सौ सौ बाप बनाने पड़ते हैं।
और आपसे ऐसा कम से कम हमें उम्मीद नहीं है। इसलिए ना जाने क्यों मुझे शक है कि आप सरकार का नेतृत्व कैसे कर पाएंगी।
तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके कहने को तो राजनीतिक दल हैं, लेकिन इनका एक दूसरे से व्यवहार सांप और नेवले जैसा है। दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं देखना चाहते। ये राजनीतिक लड़ाई को व्यक्तिगत लड़ाई की तरह लड़ते हैं, जिसे जब मौका मिलता है वो एक दूसरे को नीचा दिखाने, यहां तक की उसे जेल भेजने से भी पीछे नहीं रहते।
टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए राजा को जेल हो जाने के बाद डीएमके की तमिलनाडु में काफी थू थू हुई। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में पार्टी हाशिए पर पहुंच गई। मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद जयललिता पूरी तरह फार्म में आ चुकी हैं, अभी वो उन वादों को पूरा कर रही हैं, जो उन्होंने जनता से किए थे। उसके बाद उनका अपना एजेंडा शुरू होगा, एजेंडा साफ है ना सिर्फ करुणानिधि बल्कि पूरे परिवार को सबक सिखाना। वैसे टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही सीबीआई करुणानिधि के घर तक दस्तक देने को तैयार बैठी है। ऐसे में हो सकता है कि जयललिता कुछ इंतजार कर लें कि जब सीबीआई ही इनकी दुर्गत करने में लगी है तो वो क्यों अपने हाथ गंदे करें। वैसे इतना धैर्य देखा तो नहीं गया है जयललिता में।
छूटल घाट धोबनिया पइलस,
अब त पटक-पटक के धोई,
कहो फलाने अब का होई.. हाहाहाहा चचा करुणानिधि
कर्नाटक की अगर बात करें तो समझ में नहीं आता कि वहां सरकार बीजेपी नेता युदुरप्पा की है या फिर कांग्रेसी राज्यपाल हंसराज भारद्वाज की। हंसराज की छवि एक ऐसे नेता की रही है जो हमेशा विवादों में रहना पसंद करते हैं। केंद्र में कानून मंत्री रहने के दौरान भी वो हमेशा सुर्खियों में रहे। भारद्वाज जब से कर्नाटक पहुंचे है, वहां की सरकार को अस्थिर करने मे लगे हुए हैं। ये सही बात है कि कर्नाटक में बीजेपी नेताओं के बीच आपस में ही कुछ अनबन है, जिसके चलते उठा पटक होती रहती है। लेकिन इसका ये मतलब कत्तई नहीं कि कांग्रेसी राज्यपाल राजभवन में ही सियासी खेल शुरू कर दें।
सरकार बहुमत में है या नहीं इसका फैसला विधानसभा में ही होना चाहिए। अगर ये राजभवन में तय होने लगा तो हमारा संघीय ढांचा चरमरा जाएगा। आपको याद होगा तीन चार महीने पहले भी हंसराज भारद्वाज सरकार को बर्खास्त करने और यहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर चुके हैं और तमाम विचार विमर्श के बाद गृहमंत्रालय ने हंसराज की सिफारिश को खारिज कर दिया। अब एक बार फिर उन्होंने सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश की है। इस बार तो वो सिफारिश करने के पहले दिल्ली में भी जोड़ तोड़ करके कर्नाटक पहुचे। पहले यहां उन्होंने गृहमंत्री पी चिदंबरम से बात की फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले। वो दोनों नेताओं का समर्थन चाहते थे। हालाकि बीजेपी जिस आक्रामक मुद्रा मे है, उससे कर्नाटक की सरकार को बर्खास्त करने की हिम्मत केंद्र सरकार जुटा पाएगी, लगता नहीं है। वैसे भी सरकार के इस फैसले को संसद में भी पास कराना होगा और सरकार को पता है उच्च सदन यानि राज्यसभा में उनकी संख्या कम है, ऐसे मे उनका ये कदम आत्मघाती साबित हो सकता है। लेकिन इस पूरे एपीसोड में राज्यपाल हंसराज भारद्वाज का काला और गंदा चेहता जरूर सामने आ गया है।
चलिए छोटी सी बात कर ली जाए ममता बनर्जी को लेकर, क्योंकि अब उन्हें देनी है अग्निपरीक्षा। ममता तेज तर्रार नेता हैं, अगर उन्हें आयरन लेडी कहें तो गलत नहीं होगा। लेकिन मेरा मानना है कि वो सत्ता के खिलाफ संघर्ष को तो कुशल नेतृत्व दे सकती हैं, सरकार का नेतृत्व करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं। सियासत मे तरह तरह के समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन ममता किसी तरह का समझौता कर पाएंगी, उनके व्यक्तित्व से तो नहीं लगता है। इतना ही नहीं वो अपनी पार्टी के नेताओं पर आंख मूंद कर भरोसा भी तो नहीं करतीं हैं।
केंद्र की सरकार में जब ममता बनर्जी ने शामिल होने का फैसला किया तो उनके सांसदों की संख्या के हिसाब से कम से कम छह लोगों को कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता था, लेकिन पार्टी नेताओं पर भरोसा ना करने वाली ममता ने अपनी पार्टी के किसी भी नेता को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। केंद्र में वो अकेले कैबिनेट मंत्री रहीं। पार्टी के बाकी नेताओं को मन मसोस कर राज्यमंत्री पर ही संतोष करना पड़ा। टीएमसी के नेता ममता के खिलाफ मुखर होकर बोले तो नहीं, लेकिन ये पीड़ा उनकी पार्टी के कई नेताओं में देखी गई।
अब ममता को पश्चिम बंगाल में पूरा मंत्रिमंडल बनाना है। ये काम उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। ममता की ईमानदारी की बात होती है तो लोग उन्हें पूरे नंबर देते हैं। सूती साड़ी और हवाई चप्पल को वो सादगी से कहीं ज्यादा हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। बड़ी बात ये है कि क्या ममता अपने मंत्रिमंडल में शामिल लोगों को भी यही सलाह देगी कि वो सादगी से रहें। तड़क भड़क में ना पड़ें। मुझे लगता है कि ऐसा वो नहीं कर पाएंगी, क्योंकि उनकी पार्टी में शामिल 80 फीसदी से ज्यादा लोग डिजाइनर ड्रेस में भरोसा करते हैं। ममता बनर्जी को अब दिखावे से ज्यादा प्रैक्टिकल होना पडेगा। चलिए अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी, जल्दी ही सब सामने आ जाएगा। पहले तो मंत्रिमंडल का गठन होने दें, देखते हैं वो अपने छवि वाले नेता कहां से लाती हैं। वैसे ममता जी...
राजनीति में अक्सर जूते खाने पड़ते हैं,
कदम कदम पर सौ सौ बाप बनाने पड़ते हैं।
और आपसे ऐसा कम से कम हमें उम्मीद नहीं है। इसलिए ना जाने क्यों मुझे शक है कि आप सरकार का नेतृत्व कैसे कर पाएंगी।
तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके कहने को तो राजनीतिक दल हैं, लेकिन इनका एक दूसरे से व्यवहार सांप और नेवले जैसा है। दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं देखना चाहते। ये राजनीतिक लड़ाई को व्यक्तिगत लड़ाई की तरह लड़ते हैं, जिसे जब मौका मिलता है वो एक दूसरे को नीचा दिखाने, यहां तक की उसे जेल भेजने से भी पीछे नहीं रहते।
टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए राजा को जेल हो जाने के बाद डीएमके की तमिलनाडु में काफी थू थू हुई। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में पार्टी हाशिए पर पहुंच गई। मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के बाद जयललिता पूरी तरह फार्म में आ चुकी हैं, अभी वो उन वादों को पूरा कर रही हैं, जो उन्होंने जनता से किए थे। उसके बाद उनका अपना एजेंडा शुरू होगा, एजेंडा साफ है ना सिर्फ करुणानिधि बल्कि पूरे परिवार को सबक सिखाना। वैसे टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही सीबीआई करुणानिधि के घर तक दस्तक देने को तैयार बैठी है। ऐसे में हो सकता है कि जयललिता कुछ इंतजार कर लें कि जब सीबीआई ही इनकी दुर्गत करने में लगी है तो वो क्यों अपने हाथ गंदे करें। वैसे इतना धैर्य देखा तो नहीं गया है जयललिता में।
छूटल घाट धोबनिया पइलस,
अब त पटक-पटक के धोई,
कहो फलाने अब का होई.. हाहाहाहा चचा करुणानिधि
कर्नाटक की अगर बात करें तो समझ में नहीं आता कि वहां सरकार बीजेपी नेता युदुरप्पा की है या फिर कांग्रेसी राज्यपाल हंसराज भारद्वाज की। हंसराज की छवि एक ऐसे नेता की रही है जो हमेशा विवादों में रहना पसंद करते हैं। केंद्र में कानून मंत्री रहने के दौरान भी वो हमेशा सुर्खियों में रहे। भारद्वाज जब से कर्नाटक पहुंचे है, वहां की सरकार को अस्थिर करने मे लगे हुए हैं। ये सही बात है कि कर्नाटक में बीजेपी नेताओं के बीच आपस में ही कुछ अनबन है, जिसके चलते उठा पटक होती रहती है। लेकिन इसका ये मतलब कत्तई नहीं कि कांग्रेसी राज्यपाल राजभवन में ही सियासी खेल शुरू कर दें।
सरकार बहुमत में है या नहीं इसका फैसला विधानसभा में ही होना चाहिए। अगर ये राजभवन में तय होने लगा तो हमारा संघीय ढांचा चरमरा जाएगा। आपको याद होगा तीन चार महीने पहले भी हंसराज भारद्वाज सरकार को बर्खास्त करने और यहां राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर चुके हैं और तमाम विचार विमर्श के बाद गृहमंत्रालय ने हंसराज की सिफारिश को खारिज कर दिया। अब एक बार फिर उन्होंने सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश की है। इस बार तो वो सिफारिश करने के पहले दिल्ली में भी जोड़ तोड़ करके कर्नाटक पहुचे। पहले यहां उन्होंने गृहमंत्री पी चिदंबरम से बात की फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले। वो दोनों नेताओं का समर्थन चाहते थे। हालाकि बीजेपी जिस आक्रामक मुद्रा मे है, उससे कर्नाटक की सरकार को बर्खास्त करने की हिम्मत केंद्र सरकार जुटा पाएगी, लगता नहीं है। वैसे भी सरकार के इस फैसले को संसद में भी पास कराना होगा और सरकार को पता है उच्च सदन यानि राज्यसभा में उनकी संख्या कम है, ऐसे मे उनका ये कदम आत्मघाती साबित हो सकता है। लेकिन इस पूरे एपीसोड में राज्यपाल हंसराज भारद्वाज का काला और गंदा चेहता जरूर सामने आ गया है।
हां अगर चलते चलते पेट्रोल की बात ना करुं तो सियासी गलियारे की गतिविधिया अधूरी रह जाएंगी। ये सही है कि अंतर्रराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमते आग उगल रही हैं, लेकिन सिर्फ ये कह कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। आपको ये जानकार हैरत होगी कि जब पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं तो जेट फ्यूल (हवाई जहाज में भरा जाने वाला ईधन) के दाम कम हो रहे हैं। जब हम कहते हैं कि सरकार बडे़ लोगों के मुनाफे की बात करती है तो गलत थोड़े कहते हैं। ये उसका उदाहरण है। वैसे तेल में लगी आग के लिए केंद्र और राज्य सरकारें दोनों जिम्मेदार हैं। आपको बता है कि 60 रुपये लीटर पेट्रोल बेचने पर आयल कंपनियों के खाते में सिर्फ 28 रुपये आते हैं और बाकी के 32 रुपये हम केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न प्रकार के टैक्स भरते हैं। गरीबों और मध्यम श्रेणी के लोगों को कैसे राहत दी जा सकती है, इस पर हम अलग से फिर चर्चा करेंगे।
aap patrkaar hone ke karan rajneeti aur rajnetaaon ke vishay me bahut adhik jaante hain.per aapka likhne ka tareeka bahut rochak hai.padhkar achcha laga kuch jaankari bhi mili.aapke blog ko follow kar rahi hoon.taki aapke updates padh sakun.meri kavita pasand aai aabhari hoon.
ReplyDeleteसम्मानित महेंद्र जी, आपके लेखनी की जितनी तारीफ की जाय कम है. हमारी कामना है की आप भारतीय ब्लॉग लेखक मंच परिवार के सदस्य बने. उम्मीद है आप हमारी भावनाओ का ख्याल करेंगे. आपनी मेल आइ डी आप हमें इस पाते पाते पर भेंजे. editor.bhadohinews@gmail.com
ReplyDeletebahut umda samyik prastuti...
ReplyDeleteअच्छी रही जानकारी आभार !
ReplyDeleteबेहतरीन सर... सटीक.. सामयिक और सुन्दर.. अपनी जानी पहचानी किस्सागोही की करारी दाल में आपने तजुर्बे का वो तड़का लगाया है कि... क्या कहें.. मज़ा आ गया...।।।
ReplyDeleterajniti ki jankari vo bhi itne achchhe tarike se .is bat ki pushti karti hai ki aap bahut achchhe patrkar hai badhi
ReplyDeleterachana
एकदम सटीक विश्लेषण किया आपने....
ReplyDeletehakeekat bayan kartee lekhan shailee prabhavit kartee hai....
ReplyDeleteaabhar
चलिए देखते हैं , अब क्या बदलाव लाती हैं दोनों जन प्रतिनिधि। कहीं अमीरी तो कहीं सादगी । देखें क्या होता है आगे। उम्मीद तो करते हैं कुछ बेहतर आएगा सामने।
ReplyDeleteभाई महेंद्र जी बहुत अच्छा लगा आपका मेरे ब्लॉग पर अना आभार |
ReplyDeleteसियासी गलियारे पर आपका आलेख बेबाक है बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteaap ki post se hakikat ke darshan huye likhte rahe
ReplyDeleteमहेंद्र जी चूँकि आप मीडिया से संबद्ध है तो ख़बरों की सटीक जानकारी होना तो लाज़मी है, परन्तु आपने जिस वेबाकी से चिर प्रतीक्षित ख़बरों को प्रस्तुत किया है और जो सटीक और सही विश्लेषण आपका है वह काबिले तारीफ है. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर.
ReplyDeleteसच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! सटीक विश्लेषण! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteसमसामयिक विषय - रोचक प्रस्तुतीकरण और सटीक जानकारी.
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