Sunday 30 October 2011

अब तो देर हो गई अन्ना...

बिल्कुल देर हो चुकी है, वो भी थोड़ा बहुत नहीं बल्कि काफी देर हो चुकी है  आपको जागने में। मुझे ही नहीं देश के लोग भी जानते हैं कि आपने इसीलिए  मौन धारण किया है, जिससे आत्ममंथन कर सही फैसला कर सकें। आप मौन से ज्यादा नाराज हैं, चूंकि इसके लिए आप खुद जिम्मेदार हैं, लिहाज बोलने से बेहतर था कि आप चुप हो जाते और  यही किया भी आपने।
 सच ये है कि अन्ना से चिपके लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं। अन्ना त्याग का संदेश देते हैं, लेकिन उनके  करीबियों पर उनकी बातों का कोई खास असर नहीं है ।  जंतर मंतर के अनशन को मिली कामयाबी के बाद अन्ना  दिल्ली के सहयोगियों के हाथ की कठपुतली  बन गए । सरल अन्ना समझ नहीं पा रहे थे और अन्ना को आगे रखकर कुछ लोग अपना कद बढाने में जुट गए । वैसे  जंतर मंतर के अनशन के बाद सरकार हिली  हुई थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस पूरे मूवमेंट से कैसे निपटे । इसी दौरान सरकार के कुछ घाघ मंत्रियों ने एक पासा फेंका, और कहा कि वो चाहते हैं कि मजबूत जनलोकपाल बिल बने ।  आइये हम सब मिल कर बिल का ड्राप्ट तैयार करें । सरकार ने एक साजिश के तहत अन्ना की और ये पासा फैंका कि आप पांच  लोगों के नाम दे, जो सरकार के साथ बैठकर बिल का प्रारूप तैयार करेंगें । मुझे लगता है कि जिस दिन टीम अन्ना बिल ड्राप्ट करने के लिए सरकारी कमेटी में शामिल हई, उसी दिन ये आंदोलन मजबूत होने के बजाए कमजोर सा पड़ गया । क्योंकि सरकार ने जो सोच कर ये चाल चली थी वो उसमें कामयाब हो गई। सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि के तौर पर जो पांच लोग सरकार से बात कर रहे थे, उन पर ही सवाल खड़े होने लगे कि आप सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि कैसे बन गए।
बाबा रामदेव ने  सबसे पहले इस टीम पर हमला हमला बोला और कहा कि यहां भी परिवारवाद की बू आ रही है। पांच लोगों की टीम में पिता पुत्र को शामिल कर दिया गया । मसखरे नेता लालू यादव ने तो इस टीम का सार्वजनिक रूप से  माखौल उड़ाया । उन्होंने अन्ना से जानना चाहा कि इस सिविल सोसाइटी का चुनाव कब हो गया ?  अन्ना को सफाई देनी पड़ी कि ये टीम केवल बिल का प्रारूप तैयार करने तक की है। प्रारुप बनने के बाद टीम का काम खत्म  हो जाएगा ।  सवाल ये है अन्ना जी कि क्या आपको लगता है कि सरकार के पास बिल ड्राप्ट करने वालों की कमी है। आपने तो जनलोकपाल बिल का प्रारूप पहले ही तैयार कर लिया था और उसमें आप किसी तरह का बदलाव आपको  मंजूर ही नहीं था । ऐसे में  आप चाहते तो अपना बिल सरकार को सौंप कर साफ कर देते कि इसमें हम कोई बदलाव नहीं चाहते। लेकिन नहीं, आपके साथ के लोग महत्वाकांक्षी थे, उन्हें लगा कि इसी बहाने सरकार के बडे बड़े मंत्रियों के साथ बैठने का मौका मिलेगा । इसी एक गल्ती का खामियाजा आज तक अन्ना भुगत रहे हैं । भाई आप तो सरकार का सहयोग करने के लिए ड्राप्ट कमेंटी में शामिल  हुए थे, जब आपकी सुनी ही नहीं जा रही थी, तो वहां एसी कमरे में मंत्रियों के साथ चाय पीने लगातार क्यों जा रहे थे।  अंदर चाय पीकर बाहर गाली देने का क्या मतलब है । पहले ही इस कमेटी को छोड़ कर पल्ला क्यों नहीं झाड़ लिया ?
बहरहाल सरकार अपने मकसद  में कामयाब  हो गई थी, क्योंकि जो लोग दिन रात मेहनत कर रहे थे, वो कहीं पीछे रह गए  । अन्ना टीम में नामचीन लोगों का कब्जा हो चुका था । रामलीला मैदान में अनशन के दौरान जब इनसे सरकार ने बात करना बंद कर दिया तो इनकी धड़कने तेज हो गईं, क्योंकि ये चाहते थे अन्ना अनशन पर बने रहें और हमसे हर मंत्री बात करें । लेकिन सरकार ने इन्हें बात चीत शुरू  करने के लिए ही खूब छकाया । हालत ये हो गई कि ये लोग टीवी पर बोलने लगे कि हम बात चीत किससे करें, हम तो चाहते हैं कि बात हो ।
बहरहाल अब आज की बात करें तो मुझे लगता है कि ये टीम राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखती है और सबका अपना अपना  एजेंडा है । वैसे  इस टीम को  एक गलतफहमीं भी है ।  जहां तक मैं इस टीम को समझ पाया हू मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार को मिले देशव्यापी समर्थन को ये टीम समझती है कि ये  समर्थन उसे  मिला है । यही वजह है कि इन सभी के चाल ढाल बदल गए।  अन्ना ने संसद सदस्यों को जब नौकर और जनता को मालिक बताया तो  ये खुद को खुदा मान बैठे । देश की बड़ी बड़ी समस्याओं को सुलझाने लगे। लेकिन जो कश्मीर की समस्या इतने दिनों से उलझी हुई है, जब टीम अन्ना के एक सदस्य प्रशात भूषण ने उसे सुलझाने की कोशिश की तो  बेचारे को पब्लिक का थप्पड़ झेलना पडा ।
मैने पहले ही कहा था ईमानदारी की लड़ाई वो ही लड़ सकता है,  जिसका खुद का दामन पूरी तरह साफ हो । बाबा रामदेव के समर्थकों पर केंद्र   सरकार ने लाठी भांजने का फैसला इसीलिए किया क्योंकि उनका दामन पाक साफ नहीं है। विदेशों में जमा कालेधन को बाहर लाने की मांग कर रहे हैं, पर उनके हाथ भी इसी कीचड़ में सने हुए है। यही वजह है कि रामलीला मैदान से तड़ीपार किए जाने के बाद से बाबा बेचारे खुद अपनी सफाई देने में लगे हैं । अब ऐसे बाबा जब सरकार को घेरने की कोशिश करेंगे जो पांच रुपये का चूरन चटनी 50 रुपये में बेच रहे हों, तो ऐसा आंदोलन भला कैसे कामयाब हो सकता है।
कुछ यही हाल अन्ना के सहयोगियों की  है । मुझे लगता है कि इस आंदोलन के मुख्य सूत्रधार अरविंद केजरीवाल हैं ।  उनकी पत्नी के सरकारी आवास पर ही पूरे आंदोलन की रुपरेखा बनाई जा रही है । दूसरों  को नैतिकता का  पाठ पढाने वाले लोगों को ये समझ में क्यों नहीं आता कि उन्हें भी इस पवित्र आंदोलन से तब तक दूर रहना चाहिए, जब तक की उन पर लगे आरोप गलत साबित नहीं  हो जाते हैं । लेकिन ये कैसे संभव है, ये कैसे भी हों, कुछ भी कर रहे हों, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । ये टीम तो दूसरों को ईमानदारी का सर्टिफिकेट  देने के लिए है । ये जिसे कहे  ईमानदार वो ही ईमानदार वरना सब बेईमान । अरविंद केजरीवाल पर सरकारी बकाया,  दूसरी सदस्य किरन बेदी हवाई जहाज के किराये की गलत तरीके से वसूली । कुमार विश्वास   बच्चों के पढाई में व्यवधान डाल रहे हैं । हालाकि छुट्टी वो ले सकते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन बच्चों की पढाई की कीमत पर तो नहीं ही ली जानी चाहिए ।

आप कह सकते है कि सियासी लोग जितने बडी चोरी कर रहे हैं, उसके आगे इनका अपराध तो कुछ भी नहीं  है । इस बात से तो मैं भी सहमत हूं, लेकिन मेरा मानना है कि इनके भ्रष्टाचार से ये साफ  हो गया है कि इन्हें बडा हाथ मारने का मौका नहीं  मिला । जो मौका मिला, उससे भुनाने में ये पीछे  नहीं रहे । उसका दोहन तो किया ही है।  अब ये टीम विवादों  के घेरे में है, मेरा मानना है कि कम से कम इस टीम ने ईमानदारी की वकालत करने का नैतिक अधिकार खो दिया है । अन्ना के निश्कलंक जीवन को ये टीम दागदार बनाने में जुटी है । इन सभी को सियासत करना है, अभी से  चर्चा हो रही है कि किरन बेदी दिल्ली की चांदनीचौक और अरविंद केजरीवाल  हिसार  लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं । ऐसी  चर्चाओं के बीच  इन्हें खुद को सियासत से दूर  रखना  चाहिए, लेकिन ये अभी  भी इस बात पर आमादा है कि चुनावों के दौरान वो अपना अभियान जारी रखेंगे, इससे साफ है कि इनका सियासत से कुछ अंदरखाने रिश्ता है।
हालाकि अब अन्ना को भी बात समझ में आने लगी है, यही वजह है कि वो मौन व्रत कर आत्ममंथन कर रहे हैं कि कैसे सब कुछ ठीक ठाक किया जाए । लेकिन सच ये है कि अन्ना की दागी टीम ने पूरे आंदोलन की साख पर बट्टा लगा दिया है ।  अब  और लोग भी चर्चा करने लगे हैं कि जरूर इस आंदोलन के पीछे कुछ सियासी लोगों का हाथ है।  वैसे ये आरोप लगना गलत भी नहीं है क्योंकि इस वक्त पूरी तरह टीम  अन्ना एक राजनीतिक दल की तरह बर्ताव कर रही है, वो चुनाव में एक राजनीतिक दल को हराने और बाकी को जिताने की बात कर रही है । हालांकि  ये राजनीति के भी जोकर हैं,  जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में इनका रवैया पारदर्शी नहीं है, उसी तरह सियासत के मैदान में भी ये अधकचरे हैं।  टीम अन्ना  निगेटिव राजनीति   कर रही है,  वो चुनाव वाले इलाके में जाते हैं और एक पार्टी को वोट ना देने की अपील करते हैं, पर ये नहीं कहते की मतदाता वोट किसे दें । इसके पीछे डर सिर्फ एक कि अगर जिसे वोट देने की अपील टीम अन्ना ने की उसके अलावा कोई दूसरा जीत गया तो उनकी औकात भी लोगों के सामने खुल जाएगी, बस अपनी खोई  प्रतिष्ठा को बचाने के लिए  जनता में आधी अधूरी बात कर रहे हैं ।
वैसे  अब अन्ना की समझ में आ गया है कि उनके नाम का कुछ लोग गलत इस्तेमाल कर रहे हैं । अन्ना के टीम में भी खुलेआम बगावत की बू आने लगी  है।  इसी टीम के कुछ खास सदस्य भीतर की बात सीधे अखबारों और चैनल के संपादकों के साथ शेयर कर कोशिश करते हैं कि वो अधिक से अधिक समय तक टीवी के पर्दे पर दिखाई देते रहें।  इसके लिए बेचारे सुबह से शाम तक  मीडिया से संपर्क बनाए रखते हैं।  अब एक सदस्य को ही ले लीजिए, दो पन्ने की चिट्ठी  अन्ना को लिखकर  टीवी के जरिए उन्हें बताते रहे कि पत्र में उन्होंने क्या लिखा है । आखिर जब सारी बात टीवी पर ही करनी थी तो पत्र लिखने का क्या मतलब है । मै  नहीं समझ पा रहा हूं कि  टीम अन्ना के सहयोगी किसे बेवकूफ बना रहे हैं । बहरहाल अन्ना अगर  दिल्ली वालों के चंगुल से मुक्त हो पाए तो वो अब इस टीम में इस तरह का फेरबदल करना चाहते हैं कि उनके बाद सबकी औकात एक रुपये के साधारण सदस्य जैसी हो । टीवी पर कोई बोलने नहीं जाएगा, टीम अन्ना का अस्तित्व नहीं रहेगा, पूरे दिन घूम घूम कर चैनलो पर ज्ञान बांटने पर पूरी तरह रोक लग जाएगी । ऐसा कठिन फैसला अगर अन्ना कर रहे हैं तो जाहिर है कि उन्हें भी कुछ बातें तो इनके बारे में मालूम हो ही गईं होंगी, वरना इतना सख्त कदम भला अन्ना क्यों उठाते । अन्ना को मनाने की एक कोशिश कल  दिल्ली से रालेगांव जा रही टीम करेगी, लेकिन वो कामयाब होगे, ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि अन्ना  जितना सरल हैं, उससे कई गुना जिद्दी भी । बहरहाल मेरी प्रार्थना कि ये आंदोलन  किसी भी तरह कामयाब जरूर हो ।

 

Wednesday 26 October 2011

तिहाड़ में दीपावली...

फेस्टिव सीजन शुरू हो चुका है, मैं भी सियासी माहौल से थोड़ा हटकर इसी माहौल में रहना चाहता हूं, कई साल बाद इस बार मैं भी दीपावली का त्यौहार घर पर परिवार के बीच मनाना चाहता हूं। इसके लिए मैं अपने गृहनगर मिर्जापुर जाने के लिए शनिवार को निकल चुका हूं। मित्रों इस बार ट्रेन का सफर बहुत उबाऊ रहा, क्योंकि ट्रेन दो चार घंटे नहीं बल्कि 14 घंटे लेट थी। खैर अब घर पहुंच चुका हूं, सभी थकान भी भूल गया हूं। सच तो ये है कि मैं अपने साथ और लोगों को भी चाहता हूं कि वो भी खूब मस्ती से त्यौहार इंज्वाय करें, मैं आज किसी की छीछालेदर नहीं करना चाहता।
हालांकि एक बात मुझे परेशान कर रही है, वो ये की तिहाड़ में दीपावली इस बार कैसी होगी। यहां ज्यादातर कैदी ऐसे हैं, जिनकी कई दिपावली यहां बीत चुकी है, लेकिन कुछ खास मेहमान जो शायद पहली  बार ही यहां आए हैं और उन्हें दीपावली इसी चारदीवारी के भीतर मनाना है। उनके बारे में सोचकर मैं थोड़ा असहज हूं। मेरा मानना है कि पूर्व मंत्री ए राजा और कनिमोडी तो इसके हकदार हैं, क्योंकि वो बेईमानी अपने फायदे के लिए कर रहे थे, लेकिन कई नामी गिरामीं कंपनियों के सीईओ भी यहां हैं, जो अपने से ज्यादा अपनी कंपनी के लिए काम  कर रहे थे। यानि वो बेचारे तो कंपनी की बैलेंस शीट मजबूत करना चाहते थे। इस बात का ही वो वेतन लेते हैं।
अब राजा और कनिमोडी जेल में रहें तो चलो कोई खास बात नहीं, पर एक दर्जन से ज्यादा अफसरों के जेल जाने से तो यही कहा जाएगा ना कि गेंहूं के  साथ बेचारे घुन भी पिस गए। खैर ऐसा होता है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यहां से निकलने के बाद ये अफसर जान जाएंगे कि सच्चाई और ईमानदारी से काम करना कितना जरूरी है। कम से कम वो यहां से निकलने के बाद और कुछ भले ना बन पाएं, पर सच्चा इंसान बनेंगे।
 मुझे याद है अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, जेल में कैंपस प्लेसमेंट के दौरान 90 से ज्यादा तिहाड़ के कैदियों ने अपने हुनर दिखाए और 52 कैदी बेहतर हुनर के चलते सलेक्ट हो गए, पर मेरिट के आधार पर 43 कैदियों को नौकरी मिल  गई। वो भी ऐरू गैरू कंपनी में नहीं, बल्कि देश के नामचीन कंपनियों ने कैदियों के हुनर को सराहा और अपनी कंपनी में इन्हें नौकरी दी। कुछ खास कंपनियों का जिक्र किया जाए तो इसमें हल्दीराम, वेदांता फाउंडेशन,रोगन गोरमेंट्स, जीआई पाइप के साथ कई और नामी गिरामीं कंपनी शामिल हैं।
दरअसल तिहाड़ जेल में कैदियों को उनकी क्षमता के अनुसार प्रशिक्षण दिए जाने की व्यवस्था है, जिससे वो यहां से सिर्फ  सजा काट कर ना निकलें, बल्कि बेहतर नागरिक बने । इसी वजह से यहां कैदियों के लिए व्यावसायिक  प्रशिक्षण की  पर्याप्त  सुविधा उपलब्ध है।
इस बात का जिक्र मैं इसलिए कर रहा था कि जेल में बेहतर नेता कैसे बनें, जेल में आए नेताओं को बेहतर नागरिक कैसे बनाया जाए, उनके चारित्रिक दोष को कैसे खत्म किया जाए, इस तरह के किसी भी प्रशिक्षण का प्रावधान नहीं  हैं। मुझे लग रहा है कि जिस तरह से यहां नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों का लगातार आना जाना बना हुआ है, सरकार इस बारे में भी विचार करेगी और  जेल में बेहतर नेता कैसे बनें, भ्रष्टाचार से कैसे अछूते रहें, कुछ इस तरह की ट्रेनिंग का भी प्रावधान होगा। पर लगता है कि मैं गलत सोच रहा हूं, सरकार की प्राथमिकता सिर्फ ये है कि किस तरह जल्द से जल्द आरोपी नेताओं और मंत्रियों को जमानत मिल जाए। पूरी कवायद सिर्फ यहीं तक सीमित है।
मुझे नहीं पता कि जो बात मैं कहने जा रहा हूं वो कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है या नहीं, पर मैं इतना जरूर कहूंगा कि आज न्यायालय से लोगों को न्याय बिल्कुल नहीं मिल रहा, बल्कि न्याय बिक रहा है, बस  खरीददार की जरूरत है। न्यायालयों की छवि को सुधारने के लिए कुछ जज बडे और चर्चित मामले  में जनभावनाओं के मुताबिक फैसला सुनाते हैं,  जिससे न्यायालय की छवि बनी रहे। अमर सिंह को कुछ दिन जेल में रखने के बाद उन्हें जमानत दे दी गई, आधार बनाया गया उनकी बीमारी का। पूरा देश जानता है कि आपरेशन के बाद स्वदेश लौटने पर अमर सिंह उत्तर प्रदेश में सक्रिय रहे हैं, उन्होंने दर्जनों सभाएं की और लगातार अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लगे हुए हैं। तब अमर सिंह बीमार नहीं होते हैं, लेकिन जेल जाने पर उन्हें दो दिन में ऐसी बीमारी जकड़ती है कि वो जेल में नहीं रह सकते, सीधे बड़े अस्पताल आ जाते हैं। बहरहाल वो जल्दी  स्वस्थ हों, जिससे नोट के बदले वोट कांड का खुलासा हो सके।
दोस्तों भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री और अफसर अपने रसूख का फायदा उठाकर तिहाड़ में पांच सितारा सुविधाएं जरूर ले रहे होंगे, ऐसा मेरा मानना है। वो यहां किसी तरह की ट्रेनिंग तो कम से कम नहीं ही ले रहे होंगे, जिससे कल बाहर आएं तो लोग उन्हें घृणा और नफरत से देखने के बजाए, उनमें एक अच्छे शहरी की तस्वीर देंखें। फिर मैं आशावादी हूं, मैं दीपावली की बधाई ए राजा, कनिमोडी के साथ ही सभी टेलीकाम कंपनियों के सीईओ को भी देता हूं, इस उम्मीद के साथ कि वो कानून की खामियों का सहारा लेकर खुद को बेदाग साबित करने के बजाए अपनी गल्ती कोर्ट में स्वीकार करें। इतना ही नहीं वो लूट खसोट कर जिस तरह से देश के करोडों लोगों की दीपावली फीकी करते रहे हैं, उसके लिए माफी मांगते हुए देश को हुए नुकसान की भरपाई करें। ऐसा करके वो भी मेरी तरह खुशी खुशी दीपावली का त्यौहार अपने पैतृक गांव में पूरे परिवार के साथ मना सकते हैं।
तिहाड़ में ही सुरेश कलमाड़ी भी हैं, उन्हें भी मेरी शुभकामनाएं। नोट के बदले वोट कांड में बंद नेताओं को भी दीपावली की शुभकामनाएं। मजेदार बात तो ये है कि सरकार बचाने के लिए सांसदों की खरीद फरोख्त करने वाला जेल हो आया, जिसने योजना बनाई वो अभी भी जेल में है, जिन सांसदों ने इस मामले का खुलासा किया और पैसे संसद में पेश कर दिए, उन्हें भी जेल हो गई। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से जिसे फायदा हुआ, उसका कोई नाम भी नहीं ले रहा है। बहरहाल ये नहीं तो अगली दीपावली उनकी भी यहीं तिहाड़ में बीतेगी।
चलिए दोस्तों आप  सभी  को भी दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं। कोशिश ये होनी चाहिए कि आज अपना घर तो रोशन करें ही, पास पडोस में भी अँधेरा ना रहने दें। 

Tuesday 18 October 2011

जूते से हमला : ये तो होना ही था...

टीम अन्ना को देश के युवाओं ने पहले सिर पर बैठाया, अब यही नौजवान अन्ना की टीम के अहम सहयोगियों के साथ मारपीट कर रहे हैं। आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि इन पर हमले किए जा रहे हैं और हमला करने वाले कोई और नहीं देश के नौजवान ही हैं। रामलीला मैदान में 12 दिन के अनशन के बाद केंद्र की सरकार को घुटनों पर लाने वाले अन्ना हजारे अपने गांव पहुंचते ही आक्रामक हो गए और उन्होंने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे पर हमला बोल दिया। ठाकरे ने चेतावनी दी कि वो गांधीवादी नहीं है, ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते हैं, बस अन्ना खामोश हो गए। इसके बाद प्रशांत भूषण ने कश्मीर को लेकर ऐसा जहर उगला कि पूरे देश में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
मैने देखा कि कुछ नौजवानों ने प्रशांत भूषण पर हमला कर दिया। हालाकि मैं मारपीट का कत्तई समर्थन नहीं करता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि ये नौजवान अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाए और ऐसी हरकत कर बैठे। पर इस बात से शुकून जरूर है कि देश के खिलाफ बात करने वालों को जवाब देने के लिए देश का युवा तैयार है। प्रशांत पर हमले का मामला अभी ठंडा भी नहीं पडा था कि लखनऊ में अरविंद केजरीवाल पर एक युवक ने जूते से हमला कर दिया। अरविंद केजरीवाल बाल बाल बच गए। ईश्वर का मैं धन्यवाद करना चाहता हूं, क्योंकि वैचारिक मतभेद में कभी भी ऐसी घटनाओं का समर्थन नहीं किया जा सकता।
लेकिन लगातार हो रही इन घटनाओं के बाद जरूरी है कि टीम अन्ना भी आत्ममंथन करे, कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो नौजवान कल उन्हें सिर माथे पर बैठाए हुए था वही आज हमलावर हो गया है। टीम अन्ना के ही सहयोगी क्यों उनके खिलाफ मैदान में आ गए हैं। हिसार में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने के मामले में जस्टिस संतोष हेगडे ने टीम अन्ना को आडे हाथ लिया। कश्मीर के मामले में विवादित बयान देने पर टीम अन्ना के अहम सहयोगी एक चिकित्सक ने प्रशांत को टीम से बाहर करने की खुलेआम मांग की।
हद तो ये हो गई है कि अब टीम अन्ना पर चंदे के पैसों पर में गडबडी के आरोप भी लगने लगे हैं। कल तक जो युवा "मैं भी अन्ना"  कि टोपी पहन कर रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन में सहयोग कर रहे थे, आज उन्हीं युवाओं ने विरोध का बिगुल फूंक दिया है। इन युवाओं का आरोप है कि यहां मनमानी हो रही है और पैसों का हिसाब किताब सही ढंग से नहीं किया जा रहा है। इसके लिए तमाम युवा जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं। आखिर ये सब क्यों हो रहा है। टीम अन्ना पर हमला करने वालों को एक बार कहा जा सकता है कि विरोधी ऐसा करा रहे हैं, लेकिन टीम अन्ना के भीतर से ही जब नेतृत्व के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है तो टीम अन्ना को भी आत्ममंथन तो करना ही चाहिए।  

भ्रष्टाचार को लेकर देश की जनता आग बबूला थी, इसी लिए टीम अन्ना की मामूली पहल को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया और 74 साल के नौजवान अन्ना के पीछे देश का युवा पूरी ताकत के साथ जुट गया। युवाओं को कुछ उम्मीद थी कि अब कुछ हद तक भ्रष्टाचार से निजात मिलेगी। लेकिन ये क्या, जनलोकपाल बिल की आड में टीम अन्ना के कुछ लोगों ने सियासत शुरू कर दी। देश में कई स्थानों पर उप चुनाव हो रहे थे, लेकिन कांग्रेस का विरोध सिर्फ हिसार में किया गया। आपको बता दूं कि अरविंद केजरीवाल इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कहीं अरविंद यहां अपनी राजनीतिक जमीन तो नहीं तैयार कर रहे हैं।
वैसे भी आप हिसार चले जाएं और निष्पक्ष रूप से जानकारी करें, तो वहां जीतने वाले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही उम्मीदवारों के खिलाफ तमाम आरोप हैं। जिस उम्मीदवार का टीम अन्ना विरोध कर रही थी, वो ही एक मात्र ऐसा उम्मीदवार था, जिसके ऊपर फिलहाल भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। ऐसे में टीम अन्ना किस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडने की बात कर रही है, ये वही बता सकते हैं। बहरहाल अन्ना जी साफ सुथरे सामाजिक कार्यकर्ता हैं उन्हें इस मामले को खुद देखना चाहिए।
चलते चलते एक बात और। आज अन्ना के गांव के सरपंच कुछ लोगों के साथ राहुल गांधी से मिलना चाहते थे। इन लोगों ने कांग्रेस सांसद के जरिए खुद राहुल गांधी से मिलने की इच्छा जताई थी। यहां वडा सवाल ये भी है कि क्या अन्ना अपनी टीम से नाखुश हैं, क्यों उन्होंने अपने गांव के लोगों को सीधे राहुल के पास भेज दिया, टीम के अहम सहयोगी अरविंद केजरीवाल और अन्य लोगों को इस मुलाकात से दूर रखा। बहरहाल इसका जवाब तो अन्ना ही दे सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी इस बात से नाराज हो गए कि अन्ना के गांव के सरपंच ने मीडिया के सामने गलत बयानी की और कहा कि राहुल ने मिलने की इच्छा जताई है, जबकि राहुल से इन लोगों ने खुल मिलने के लिए पत्र लिखा था। राहुल को लगा कि जब मुलाकात के पहले ही ये गलत बयानी कर रहे हैं तो बाद में और कुछ भी उल्टा पुल्टा बोल सकते हैं, लिहाजा उन्होंने इनसे दूरी बना ली। हो सकता है कि सियासी तौर पर इसका नुकसान राहुल को हो, लेकिन मैं राहुल गांधी के इस कदम की सराहना करता हूं। अब लोग कह रहे हैं कि राहुल ने अन्ना का अपमान किया, तो कहते रहें, राहुल ने ठीक किया। मैं उन्हें पूरे 10 में 10 नंबर देता हूं।

Saturday 15 October 2011

टीम अन्ना का खतरनाक खेल...


तीन दिन दिल्ली में नहीं था, आफिस के काम से बाहर जाना पड़ गया, इस दौरान मैं ब्लागिंग से भी महरूम रहा। पूरे दिन काम धाम निपटाने के बाद रात में टीवी पर न्यूज देख रहा था, अचानक सभी चैनलों ने एक ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश की, जिसमें श्रीराम सेना के कुछ कार्यकर्ता टीम अन्ना के प्रमुख सहयोगी प्रशांत भूषण पर हमला कर रहे थे। ये देखकर एक बार तो मैं भी हैरान रह गया, क्योंकि मेरा मानना है कि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी सकती है, और इसे हम गुंडागर्दी कहें तो गलत नहीं होगा।
लेकिन कुछ देर बाद ही मार पिटाई करने वाले नौजवानों की बात सुनीं, उनका गुस्सा प्रशांत भूषण के उस बयान पर था, जिसमें भूषण ने कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा कि वहां जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए और अगर वो लोग चाहते हैं कि वे भारत के साथ नहीं रहना चाहते तो वहां से सेना हटाकर उन्हें आजाद कर दिया जाना चाहिए। मेरा भी निजी तौर पर मानना है कि प्रशांत भूषण का ये बयान गैरजिम्मेदाराना और देश को विभाजित करने वाला है। या यों कहें कि उनका ये बयान कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ ही पडो़सी मुल्क पाकिस्तान के रुख का समर्थन करने वाला है तो गलत नहीं होगा। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और इसके साथ किसी तरह का समझौता संभव नहीं है। कश्मीर को बचाए रखने के लिए देश ने कितनी कुर्बानी दी है, प्रशांत ने उन सभी कुर्बानी को नजरअंदाज कर बेहूदा बयान दिया है। हालाकि मैं फिर दुहराना चाहता हूं कि मैं मारपीट के खिलाफ हूं, पर मुझे लगता है कि नौजवानों का जब खून खौलता है तो वो ऐसा कुछ कर देते हैं, खैर मैं इन युवकों के देश प्रेम की भावना को सलाम करता हूं और इस मामले में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के विचार का भी समर्थन करता हूं।
सवाल ये उठता है कि टीम अन्ना को ऐसा क्यों लगता है कि वो अब खुदा हैं और हर मामले पर अपना नजरिया रखेगें, भले ही वो देश भावना के खिलाफ हो। प्रशांत की बात को अन्ना ने खारिज कर दिया। टीम अन्ना के दूसरे सहयोगी जस्टिस संतोष हेगडे भी समय समय पर टीम अन्ना से अलग राय देते रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस टीम में चलती किसकी है। यहां कोई अनुशासन है भी या नहीं। गैरजिम्मेदार लोगों के मुंह पर ताला लगाने की जिम्मेदारी किसके हाथ में है। शर्म की बात तो ये है कि गैरजिम्मेदाराना बयान देने के बाद भी अभी तक प्रशांत भूषण ने खेद भी नहीं जताया, मतलब साफ है कि वो अभी भी अपने देश विरोधी बयान पर कायम हैं।
वैसे मुझे अब टीम अन्ना की नीयत पर शक होने लगा है। उसकी वजह भी है। हालाकि आप मेरे पिछले लेख देखें तो मैं समय समय पर लोगों को आगाह करता रहा हूं, लेकिन अब जो कुछ सामने आ रहा है, उससे लगता है कि ये लोग भी कुछ सियासी लोगों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं। ये वही करते हैं जो पर्दे के पीछे से इन्हें कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के हिसार में हो रहे लोकसभा के उपचुनाव में अरविंद केजरीवाल, किरन वेदी और प्रशांत भूषण पहुंच गए। इन सभी ने हाथ में तिरंगा लेकर कांग्रेस को वोट ना देने की अपील की। आपको पता होना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं। दोस्तों आपको ये बताना जरूरी है कि हिसार में कांग्रेस उम्मीदवार पहले ही दिन से तीसरे नंबर पर था, उसके जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी, यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने भी यहां कोई सभा नहीं की। टीम अन्ना ने यहां कांग्रेस का विरोध एक साजिश के तहत किया, जिससे देश में ये संदेश जाए कि टीम अन्ना जिसे चाहेगी उसे चुनाव हरा सकती है।

अगर टीम अन्ना को अपनी ताकत पर इतना ही गुमान था तो अन्ना के प्रदेश महाराष्ट्र में खड़कवालसा में हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध क्यों नहीं किया गया। यहां तो कांग्रेस उम्मीदवार पहले नंबर पर है और उसका जीतना पक्का बताया जा रहा है। अगर वहां ये कांग्रेस उम्मीदवार को हराने में कामयाब होते तो कहा जाता कि अन्ना भाग्य विधाता हैं। लेकिन नहीं, अन्ना को समझाया गया कि आप महाराष्ट्र में कांग्रेस उम्मीदवार को नहीं हरा पाएंगे, ऐसे में आपकी छीछालेदर होगी। लिहाजा अन्ना अपने प्रदेश में कांग्रेस का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
मित्रों एक सवाल सीधे आपसे करना चाहता हूं। रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के बाद उनमें और सरकार के बीच समझौता हुआ कि वो शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल बिल संसद में पेश करेंगे। इसके बाद टीम अन्ना ने पूरे देश में विजय दिवस तक मनाया। देश भर में पटाखे छोड़े गए, खुशियां मनाई गईं। फिर अभी संसद का शीतकालीन सत्र शुरू भी नहीं हुआ, फिर  कांग्रेस के खिलाफ टीम अन्ना ने झंडा क्यों बुलंद किया ? बडा सवाल है कि क्या ये विजय दिवस देश की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मनाया गया था ? चलिए मान लेते हैं कि टीम अन्ना दबाव बनाना चाहती है। अगर दबाव बनाना मकसद था तो विरोध सिर्फ कांग्रेस का क्यों ? बीजेपी और दूसरे राजनीतिक दलों का क्यों नहीं। क्योंकि कांग्रेस चाहे भी तो जब तक उसे दूसरे दलों का समर्थन नहीं मिलेगा, वो इस बिल को लोकसभा में पास नहीं करा सकती। ऐसे में लगता है कि टीम अन्ना की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है, और उनके सभी फैसलों के पीछे गंदी राजनीति है।
यही वजह है कि अब टीम अन्ना को लगातार मारपीट की धमकी मिल रही है। पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अन्ना पर सीधा हमला बोला और साफ कर दिया कि वो उनसे टकराने की कोशिश बिल्कुल ना करें, क्योंकि वो गांधीवादी नहीं हैं, ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते हैं। अन्ना खामोश हो गए। उनके दूसरे सहयोगी प्रशांत भूषण पर हमला हो गया। अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि उन्हें भी धमकी भरे एसएमएस मिल रहे हैं। ये सब अचानक नहीं है, जब तक लोगों को लगा कि ये टीम देश हित की बात कर रही है, तबतक लोग 48 डिग्री तापमान यानि कडी धूप में रामलीला मैदान में अन्ना के समर्थन में खड़े रहे, लेकिन जब युवाओं को लगा कि ये टीम लोगों को धोखा दे रही है, तो गुस्साए युवाओं ने अपना अलग रास्ता चुन लिया।
अच्छा मैं हैरान हूं अरविंद केजरीवाल के बयानों से। प्रशांत भूषण के मामले में उन्होंने ये तो नहीं कहा कि प्रशांत ने जो बयान दिया है वो गलत है। हां ये जरूर कहा कि प्रशांत टीम अन्ना में बने रहेंगे। क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि केजरीवाल भी प्रशांत भूषण के बयान से सहमत हैं। फिर आज एक और ड्रामेबाजी शुरू की गई। कहा गया  कि लोग अगर हमें पीटने आते हैं तो हमारे कार्यकर्ता पिटने को तैयार हैं। भाई केजरीवाल खुद तो रालेगांवसिद्धि में हैं और घर के बाहर अपने कार्यकर्ताओं को बैठाया कि कोई पीटने आए तो पिट जाना। मजेदार वाकया है, अनशन अन्ना करेंगे, पिटने की बारी आएगी तो कार्यकर्ता करेंगे आप सिर्फ एयर कंडीशन में टाप नेताओं के साथ वार्ता करेंगे। बहुत खूब दोस्त।
बहरहाल टीम अन्ना को मेरी सलाह है कि अब उन्होंने राजनीति शुरू कर ही दी है तो किसी पार्टी के साथ जुड़ जाएं, या फिर अपनी ईमानदार पार्टी बना लें। हालाकि अब इनकी ईमानदारी पर भी उंगली उठने लगी है। इससे कम से कम एक फायदा जरूर होगा कि तिरंगे की आन बान और शान बनी रहेगी, वरना तो ये टीम अन्ना इस तिरंगे को भी गंदी सियासत में शामिल कर इसे दागदार कर देगी।

Tuesday 11 October 2011

भाई सब गोलमाल है....


प्रधानमंत्री के लिए रथयात्रा...


लालकृष्ण आडवाणी की चिंता से जायज है, बताइये उन्हें लोग एक साजिश के तहत "ओवरएज" बताकर हाशिए पर डालने की कोशिश कर रहे थे। हालाकि कम लोग जानते हैं कि उनकी सेहत का राज ही पीएम इन वेटिंग कहा जाना है। अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता के निशाने पर कांग्रेस है, उम्मीद की जा रही है कि अगले चुनाव में बीजेपी को कुछ फायदा मिल सकता है। वैसे तो ये कहना जल्दबाजी है, लेकिन सबकुछ ठीक रहा तो केंद्र में एक बार फिर बीजेपी की अगुवाई में सरकार बन सकती है। सरकार बनने की  गुंजाइश दिखाई दे रही है तो ना जाने कहां से युवा नेतृत्व की बात छेड़ दी गई। यही बात आडवाणी जी के गले नहीं उतर रही है।
संघ के दबाव में पहले उन्हें नेता विपक्ष का पद छोड़ने को कहा गया, हालांकि बहुत ही भारी मन से उन्होंने ये पद छोड़ा। मुझे लगता है कि उनके राजनीतिक जीवन में सबसे बड़ा झटका ये होगा कि उनकी मौजूदगी में लोग प्रधानमंत्री पद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम ले रहे हैं और मजबूरी में उन्हें भी सभी के हां में हां मिलाना पड़ रहा है। बस फिर क्या था आडवाणी को साबित करना था कि अभी उनमें राजनीति बची हुई है। इसके लिए वो एक बार फिर रथ पर सवार हो गए। यात्रा पर निकलने से ठीक पहले उन्होंने ये कह कर चौंका दिया कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये फैसला पार्टी करेगी। अब किसी में ये भ्रम नहीं होना चाहिए कि आडवाणी प्रधानमंत्री की दौड से बाहर हैं, क्योंकि जब पार्टी के सभी महत्वपूर्ण फैसले आज भी आडवाणी जी ही कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री के बारे में भला उनकी राय को कैसे अनदेखा किया जा सकता है। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जो नरेन्द्र मोदी को बिहार में देखना नहीं चाहते, वो आडवाणी की रथयात्रा को हरी झडी दिखाने को तैयार हो गए। भइया ये राजनीति है, इसे समझने के लिए चाणक्य दिमाग की दरकार होगी।

राहुल बाबा मान जाओ...

ये आधा नहीं पूरा सच है कि राहुल गांधी अभी प्रधानमंत्री के लिए फिट नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद की बात को भले ही कांग्रेस नेताओं ने खारिज कर दिया हो, पर मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि राहुल गांधी अभी राजनीति के अमूल बेबी से ज्यादा कुछ नहीं  हैं। मुझे लगता है कि कांग्रेस इस समय जिस बुरे दौर से गुजर रही है, शायद ही इसके पहले कभी उसने ऐसा दिन देखा हो। इसमें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। यूपीए चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया गांधी जब इलाज के लिए विदेश गईं तो उन्होंने सरकार और पार्टी के महत्वपूर्ण फैसले के लिए चार सदस्यीय टीम का गठन कर दिया।
इसी दौरान जनलोकपाल बिल को लेकर  अन्ना हजारे का हाई प्रोफाइल ड्रामा शुरू हो गया। कांग्रेस नेता एक के बाद एक गल्ती करते रहे, लेकिन ना ही राहुल की अगुवाई वाली पूरी टीम पर्दे से गायब रही। माना जा रहा था कि अगर राहुल इस मामले में आगे आते और कुछ ठोस पहल करते तो ये मामला पहले ही सुलझ सकता था, पर कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी का नतीजा ये हुआ कि अन्ना ने पूरी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
सवाल ये है कि जब इस मामूली समस्या को सुलझाने में राहुल गांधी की ना ही कोई रुचि रही और ना ही उन्होंने इसके लिए कोई पहल किया। प्रधानमंत्री के तौर पर तो रोजाना इससे भी बडी मुश्किलों का सामना करना होगा। राहुल बाबा आप के लिए ये ठीक है स्कूली बच्चों और दलित गांव की महिलाओं के बीच रोटी सोटी तोड़ते रहिए। देश को संभालना ना आपके बस की बात है और ना ही आप की इसमें कोई रुचि दिखाई दे रही है। हां कांग्रेस नेता कैमरे पर होते हैं तो भले ही उन्हें आपमें प्रधानमंत्री के सभी गुण दिखाई देते हों, पर कैमरे के बाहर उन्हें भी पता है कि आप अभी इस पद के लिए बिल्कुल फिट नहीं हैं। वैसे ही मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर कांग्रेस एक करीब दस साल पीछे चली गई है और अगर उसने आपको प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश की तो पार्टी की केंद्र में वही दशा होगी जो देश के सबसे बडे राज्य यूपी में है।

अन्ना नहीं रहे वो अन्ना...

जी हां, जिस अन्ना को मैं जानता था, ये अन्ना अब वो अन्ना नहीं रहे। अन्ना ही नहीं उनकी पूरी टीम को लगता है कि अब वो देश से ऊपर हैं। यही वजह है कि लोग उन पर और उनकी टीम पर उंगली उठाने लगे हैं। जनलोकपाल में जैसे ही एनजीओ को शामिल करने की बात चली तो टीम अन्ना के तेवर कडे हो गए, अरे भाई ईमानदारी सिर्फ नेताओं में ही क्यों होनी चाहिए, सामाजिक कार्यकर्ताओं में ईमानदारी क्यों नही होनी चाहिए।
मेरे मन में एक सवाल है जो मैं टीम अन्ना से पूछना चाहता हूं। रामलीला मैदान में जो फैसला हुआ था कि जनलोकपाल बिल को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा, तो ऐसा क्या हो गया टीम अन्ना ने सत्र के पहले ही खुलकर कांग्रेस का विरोध शुरू कर दिया। मैं कहता हूं कि चलिए मान भी लिया जाए कि हिसार में अन्ना की टीम के विरोध से कांग्रेस चुनाव हार सकती है, तो इससे कौन पहाड टूट पडेगा। लेकिन टीम अन्ना ने ये भरोसा जरूर तोड़ दिया कि वो जो कहते हैं, उस पर अडिग नहीं रहते।
और अगर दबाव बनाने के लिए हिसार उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध हो रहा है तो जब रामलीला मैदान में अनशन के दौरान सरकार घुटनों पर थी, तो अनशन खत्म करके ढील क्यों दी गई। सरकार संसद में चर्चा कर ही रही थी, फिर क्यों नहीं कहा गया कि संसद का सत्र चल रहा है, हमें इसी सत्र में जनलोकपाल बिल चाहिए। इससे तो साफ लगता है कि अन्ना और उनकी टीम अब अपने को खुदा समझने लगी है, उन्हें लगता है कि देश में वो जो कर रहे हैं, वही ठीक है, बाकी सब गलत।
मित्रों मुझे लगता था कि जो अन्ना प्रधानमंत्री पर उंगली उठाते हैं और कहते हैं कि मनमोहन सिंह इमानदार हैं, लेकिन उनका रिमोट कहीं और है। सच कहूं तो मुझे भी यही लगता है कि अन्ना इमानदार हैं, लेकिन उनका रिमोट भी कहीं और है। जिस तरह से उनकी टीम ने तिरंगा लेकर खुलेआम एक पार्टी के उम्मीदवार का विरोध किया, उससे तो यही लगता है। क्योंकि अन्ना भी जानते हैं कि अकेले कांग्रेस ही जनलोकपाल बिल संसद मे पास नहीं करा सकती, इसके लिए उसे बीजेपी की भी मदद लेनी होगी, फिर विरोध सिर्फ कांग्रेस का ही क्यों। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिससे लगता है कि ये अन्ना वो अन्ना नहीं रहा। अन्ना का लोग सम्मान करते थे, लेकिन जिस तरह से बेलगाम हो चुके हैं, उससे अब उनपर ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि और नेताओं ने भी उंगली उठानी शुरू कर दी है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने तो खुले आम चेतावनी दी कि अन्ना उनसे ना उलझें, क्योंकि वो गांधीवादी नहीं है। मतलब साफ है कि वो ईंट का जवाब पत्थर से देते हैं। इसके बाद अन्ना बेचारे खामोश हो गए। टीम अन्ना को बिखर जाए, इसके पहले उन्हें आत्ममंथन करना चाहिए।






Friday 7 October 2011

मैं छह महीने पुराना हो गया...

मित्रों आठ अक्टूबर ! ये तारीख मेरे लिए खास है, क्योंकि आज मेरा ब्लाग " आधा सच " छह महीने पुराना हो गया। इस दौरान मैने विभिन्न विषयों पर कुल 51 लेख लिखे। इसे लेख कहना शायद सही नहीं होगा, हम इसे अपना विचार कहें तो ज्यादा ठीक है। वैसे मेरा ब्लागिंग में आना महज एक संयोग है, जिसके लिए मैं अपने साथी रजनीश कुमार का दिल से शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने ब्लाग बनाने से लेकर हर तकनीक की बारीकियों से मुझे रुबरू कराया।
ब्लाग पर मेरा पहला लेख आठ अप्रैल 2011 को " अब तो भ्रष्ट्राचार भी हो गया है भ्रष्ट्र " ये लिखा। इस लेख के जरिए मैं गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन से सहमत होते हुए ये बताने की कोशिश की कि ये लड़ाई आसान नहीं है। क्योंकि आप भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जंग छेड़ने जा रहे हैं, जबकि हम इस भ्रष्ट्राचार में भी ईमानदारी खो चुके हैं। इस पहले लेख को पोस्ट करने के कुछ समय के भीतर ही सबसे पहला कमेंट मुझे इंदौर से कविता पांडेय का मिला। उन्होंने मेरी सराहना की, मुझे अच्छा लगा। हालाकि ये लेख तीन चार दिन ब्लाग पर रहा, इस दौरान कुल पांच लोगों के ही कमेंट मिले। मुझे लगा कि यहां बहुत जबर्दस्त प्रतियोगिता है, इसमें जगह बना पाना आसान नहीं है।
बहरहाल कुछ सहयोगियों ने कहा कि अभी शुरुआत है, आप लिखना बंद ना करें, कुछ समय लगेगा, क्योंकि आपकी लेखनी कुछ हटकर है। बस फिर क्या था, मैने तय किया कि छह महीने मैं पूरी शिद्दत के साथ यहां समय दूंगा और देखता हूं ये ब्लाग परिवार मुझे स्वीकार करता है या नहीं। इसके कुछ समय बाद ही कालेधन के मामले में बाबा रामदेव का आंदोलन शुरू हुआ, चूंकि मैं मीडिया में होने के कारण बहुत कुछ जानता था कि यहां क्या होता है। बालकृष्ण को लेकर मैने पहले भी कई स्टोरी की थी, लिहाजा मैंने अपनी जानकारी के हिसाब से पांच लेख लिखे। मैने देखा कि मुझे कई लोग जो स्नेह करते थे, वो मेरे खिलाफ हो गए, कांग्रेसी बताकर मेरे खिलाफ टिप्पणी की। मै टिप्पणी से ज्यादा निराश नहीं था, लेकिन आशुतोष जैसे मित्र का साथ छूटने का मलाल आज भी है।
ब्लाग लिखते हुए एक महीना भी नहीं बीता था कि मुझे "भारतीय ब्लाग लेखक मंच" से ना सिर्फ हरीश सिंह ने जोड़ा बल्कि एक निबंध प्रतियोगिता का निर्णय देने को कहा। मैने अपने विवेक के अनुसार इस काम को अंजाम दिया। मुझे खुशी हुई कि मेरे निर्णय पर किसी को आपत्ति नहीं थी। मैं लंबे समय तक हरीश जी और उनके साथियों के संपर्क में रहा, पर इस साथ का जिस तरह से अंत हुआ, उसकी चर्चा करना मैं ठीक नहीं समझ रहा हूं। हालाकि हरीश जी को लेकर मेरे मन में आज भी वही स्नेह बरकरार है, क्योंकि वो पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे एक सार्वजनिक मंच से जोड़ा था।
ये सब बातें चल ही रहीं थी कि दिल्ली में अन्ना हजारे भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने के लिए जनलोकपाल बिल के लिए अनशन पर बैठ गए। मैं अन्ना की मांगों को पूरी तरह जायज मानता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि उनका तरीका लोकतंत्र को कमजोर करने वाला था। लिहाजा मैने तर्कों के आधार पर अपने विचार व्यक्त किए। इस पर मेरा समर्थन करने वालों का प्रतिशत ज्यादा था। मेरी हिम्मत बढी और मैं जो ठीक समझा उसे बेबाक तरीके से लिखता रहा। बहरहाल मेरे ब्लाग पर उतने कमेंट भले दर्ज ना हों, पर ब्लाग को हिट करने की संख्या संतोषजनक थी।
इसी दौरान मैं डा. अनवर जमाल के संपर्क में आया और उन्होंने मुझे "आल इंडिया ब्लागर्स फोरम" के साथ जोड़ा। मैं यहां भी अपनी क्षमता के मुताबिक योगदान देता रहा। इस फोरम से भी मुझे अपार स्नेह मिला। लगभग दो महीने पहले फोरम पर शुरू हुए वीकली मीट में मुझे बराबर स्थान मिलता रहा। इसके लिए भी मैं भाई डा.अनवर जमाल साहब और बहन प्रेरणा जी का दिल से आभारी हूं।
मैं अपने इस छह महीने के सफर में आद. डा रुपचंद्र शास्त्री जी की चर्चा ना करुं, तो सफर पूरा हो ही नहीं सकता। कम समय में ही मुझे यहां कई बार स्थान मिला। चर्चा मंच पर जगह मिलने का नतीजा है कि आज मेरे ब्लाग पर आने वालों की संख्या रोजाना 100 से ऊपर है। इसके अलावा श्री राज भाटिया जी के ब्लाग परिवार, ललित जी  के ब्लाग4 वार्ता, बंदना गुप्ता जी के तेताला और यशवंत माथुर जी के नई पुरानी हलचल का भी मैं दिल आभारी हूं, जिन्होंने मुझे समय समय पर अपनी चर्चाओं में शामिल कर मेरे मुश्किल सफर को आसान बनाने में योगदान दिया। चर्चा मंच के सहयोगी चंद्रभूषण मिश्र गाफिल, श्रीमति विद्या जी, अरुणेश सी दबे, दिलबाग बिर्क, रविकर जी, मासूम साहब और मनोज जी का आभार व्यक्त ना करुं तो ये नाइंसाफी होगी। इन सभी लोगों ने मुझे बराबर सम्मान दिया है। हां यहां एक बात का और जिक्र करना जरूरी है, मैं आज ही भाई सलीम खान के जरिए आल इंडिया ब्लागर्स एसोसिएशन से जुडा हूं, कोशिश होगी कि यहां मैं अपना योगदान पूरी क्षमता के अनुसार दे सकूं।
छह महीने का समय बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इस दौरान मुझे ब्लाग परिवार का अपार स्नेह मिला है। ब्लाग जगत में रश्मि जी एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। मैं जानता हूं कि उनके पास समय का अभाव जरूर होगा, पर मेरे ज्यादातर लेख को ना सिर्फ उन्होंने पढा, बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किए। इससे बढकर उन्होंने मुझे छोटे भाई का जो सम्मान दिया है, वो मेरे लिए अनमोल है। आज मैं बंदना गुप्ता जी को भी दिल याद करना चाहता हूं। हमलोग सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए एक दूसरे के संपर्क में आए। उन्होंने मुझे बहुत पहले सलाह दी थी कि आप एक ब्लाग बनाएं और इसमें कुछ ना कुछ लिखें। पर मित्रों उस दौरान मैं फील्ड में रहकर रेल मंत्रालय के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े मुद्दों की रिपोर्टिंग करता था, लिहाजा मेरे पास समय की बहुत कमीं थी। इसलिए मैं ब्लाग से दूर रहा। आज मुझे लगता है कि अगर मैने बंदना जी की बात को उसी समय स्वीकार कर लिया होता तो शायद मेरे ब्लाग की उम्र कुछ ज्यादा होती। वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
ब्लाग को कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए, इसके लिए कविता वर्मा जी ने मुझे बहुत सहयोग किया। कई बार ब्लाग पर तरह तरह की कठिनाई आई, जिसे कविता जी के जरिए मैने दूर किया। हालाकि मेरे बहुत सारे लेख से वो  कत्तई सहमत नहीं हैं, उनके सोचने का अपना अलग नजरिया है, और मेरी सोच कुछ अलग है। कई लेख पर विवाद की स्थिति भी पैदा हुई, हालत बातचीत बंद होने तक पहुंची, पर हम लोग मानते हैं कि विचारों में भिन्नता से आपस की दूरियां नहीं बढनी चाहिए। वो बहुत पुराने समय से लिख रही हैं, अगर मैं ये कहूं कि उनके अनुभवों से मुझे काफी फायदा हुआ है, तो गलत नहीं होगा।
ब्लाग परिवार में मैं अनु चौधरी जी से और डा. दिब्या श्रीवास्तव से काफी प्रभावित हूं। स्पष्ट सोच और बेबाक लेखन की दोनों महारथी हैं। ऐसे हालात में कई बार दिव्या जी को तो मुश्किलों का सामना तक करना पडा, लेकिन मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूं कि वो कैसे सभी मसलों को सुलझाते हुए अपना रास्ता बना लेती हैं। आप दोनों ने मेरे ब्लाग पर आकर मेरा सम्मान बढाया है और मुझे ब्लाग की मुख्यधारा से जुडने में मेरी मदद की है।
मैं आज इस मौके पर अगर अपने प्रिय लोगों की चर्चा न करुं, जिनके साथ मैने ये सफर तय किया है तो गलत होगा। मेरे हर लेख पर इन सभी लोगों ने मुझे स्नेह और शुभकामनाओं से नवाजा है। इसमें राजेश कुमारी जी, मीनाक्षी पंत जी, रचना दीक्षित जी, डा. वर्षा सिंह जी, अमृता तन्मय जी, डा. मोनिका शर्मा जी, पूनम श्रीवास्तव जी, कविता रावत जी, माहेश्वरी किरण जी, रजनी मल्होत्रा, अनीता अग्रवाल जी, सुमन जी, रचना जी, हरिकीरत हीर जी, अपनत्व जी, बबली जी, शालिनी कौशिक जी, शिखा जी, अल्पना वर्मा जी, निर्मला कपिला जी, निवेदिता जी और संध्या शर्मा जी शामिल हैं।
इसके अलावा श्री चंद्र मोलेश्वर प्रसाद जी, प्रवीण पांडेय जी, विजय माथुर जी, सुनिल कुमार जी, महेन्द्र वर्मा जी, जयकृष्ण तुषार जी, नीलकमल जी, राकेश कौशिक जी, केवल राम जी, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, अरुण चंद्र राय जी, डा. विजय कुमार शुक्ल जी, कुवर कुसुमेश जी, कैलाश सी शर्मा, वीरेंद्र चौहान जी, संजय भाष्कर जी, संतोष त्रिवेदी जी, योगेन्द्र पाल जी, अतुल श्रीवास्तव जी, अभिषेक जी, अमित श्रीवास्तव जी, वीरभूमि जी, आशुतोष जी, मिथिलेश जी और बृजमोहन श्रीवास्तव जी प्रमुख हैं। मित्रों याददाश्त ही है, हो सकता है कि यहां किसी का जिक्र करना रह गया हो, तो इसे मेरी गल्ती समझ कर माफ कर दीजिएगा।
इस छह महीने में एक वाकये ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया, जब एक ब्लागर ने मेरे किसी लेख से नाखुश होने पर मुझे मेल करके आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। अगर मैं इस वाकये को भूल जाऊं तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरा ये सफर बहुत ही संतोष जनक रहा है। मुझे नही पता कि इस छह महीने में मेरे ब्लाग को 9328 हिट मिले हैं, ये संख्या आप लोगों की नजर में ठीक है या नहीं, लेकिन मैं व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट हूं। मुझे लगता है कि मैं अपनी बात आप सभी तक पहुंचाने में कामयाब रहा हूं। ये मेरे दिल की बात है, अगर किसी को इससे पीडा पहुंची हो तो मैं उनसे बिना किसी लाग लपेट के खेद व्यक्त करता हूं।

Tuesday 4 October 2011

मैं राष्ट्रपति पद की दौड़ में नहीं...


सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दो दिन पहले अचानक ना जाने क्यों नया शिगूफा छोड़ा कि मैं राष्ट्रपति नहीं बनना चाहता। उन्होंने ऐसा क्यों कहा, ये तो वही जानें, लेकिन पुख्ता जानकारी ये है कि उन्हें किसी भी राजनीतिक दल ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने के लिए संपर्क नहीं किया है। वैसे भी कांग्रेस से तो उनका छत्तीस का आंकडा है, लिहाजा कांग्रेस उन्हें भला क्यों उम्मीदवार बनाएगी ? बीजेपी समेत और राजनीतिक दल भी अन्ना को लेकर असहज स्थिति में हैं, तो वो भी अन्ना को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कभी नहीं बना सकते। फिर भी अन्ना कहते फिर रहे हैं कि वो राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते। उनका ये बयान अखबार में पढकर मैं हैरान रह गया, मुझे लगा कि अन्ना तो वैसे भी दिल्ली में नहीं रहते, मैं तो यहीं रहता हूं और अक्सर सियासी गलियारे से होकर गुजरता हूं, कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन जबर्दस्ती मुझे ही राष्ट्रपति पद की शपथ दिला दें।  
जी हां ! इसीलिए मैने सोचा कि मुझे भी अपनी स्थिति साफ कर देनी चाहिए, वरना मैं तो मीडिया से जुड़े होने की वजह से अक्सर सभी राजनीतिक दलों के बड़े ब़ड़े नेताओं से भी मिलता जुलता रहता हूं, लोग ये ना समझें कि मैं राष्ट्रपति  बनना चाहता हूं, इसलिए इन नेताओं के घर की गणेश परिक्रमा कर रहा हूं। इसीलिए आज मैं शपथ पूर्वक ये बात दोहराना चाहता हूं कि ना मैं राष्ट्रपति बनना  चाहता हूं और ना ही इसकी दौड़ में शामिल हूं।
वैसे जब से ये बात घर में बच्चों ने सुनी है कि अन्ना ने राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया है, वो मुझे घर से बाहर जाने ही नहीं देते। दरअसल उनके दिमाग में राष्ट्रपति का बहुत खौफ है। कई बार ऐसा हुआ कि हम बच्चों के साथ घर से बाहर निकले और दिल्ली में सभी गाड़ियों को रोक दिया गया, सड़कों पर कारों की लंबी लंबी कतारें लग गईं, बच्चों ने पूछा पापा क्यों पुलिस वाले जाने नहीं दे रहे हैं, जबकि आगे पूरा रास्ता साफ है। अभी वो हमसे ये बात पूछ ही रहे थे कि एक बाइक सवार को पुलिस वाले ने पीटना शुरू कर दिया। दरअसल उस बाइक सवार का अगला पहिला पुलिस वालों ने जो रस्सी बांध रखी थी, उसे छू भर गया था। मैने बच्चों को बताया जब राष्ट्रपति का काफिला निकलता है तो सड़क पर कोई दूसरा वाहन नहीं निकल सकता। बच्चों ने पूछा ऐसा क्यों ? मैने उन्हें बताया कि ये सब उनकी सुरक्षा के लिए किया जाता है।
इस पर छोटी बेटी ने पूछ लिया कि उन्हें इतना खतरा क्यों होता है, आखिर ऐसा कौन सा काम उनके जिम्मे है कि उन्हें इतना खतरा बना रहता है। इसके पहले की मैं उसे जवाब देता सामने से शूं शां करता हुआ राष्ट्रपति का काफिला निकल गया और पुलिस वालों ने रास्ता खोल दिया। यही बात बच्चों  के दिमाग में घर कर गई है कि राष्ट्रपति बन जाने के बाद लोग आम आदमी से बहुत दूर हो जाते हैं। बताइये रास्ते से गुजरते वक्त भी लोगों को दूर भगा दिया जाता है। उन्हें लगा कि शायद इसीलिए अन्ना ने राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया।
बैसे मैं मानता हूं देश में राष्ट्रपति उसे ही बनना चाहिए, जिसने अपनी सभी जिम्मेदारी पूरी कर ली हो। यानि जिस तरह हज यात्रा उसे ही करनी चाहिए, जिसने अपनी सभी तरह की पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया हो, उसके ऊपर किसी तरह की जिम्मेदारी ना हो। फिर मेरी गृहस्थी तो अभी बहुत अधूरी है, मुझे तमाम जिम्मेदारियों को पूरा करना है। बच्चों के स्कूल में पीटीएम में जाना होता है। पता चला स्कूल गया तो वहां से पूरे स्कूल को भी पुलिस ने सुरक्षा कारणों से खाली करा दिया। मैं ऐसा नहीं कर सकता। जबकि अन्ना के पास इस तरह की कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं हैं, वो राष्ट्रपति बन जाएं तो उनके घर का कोई काम प्रभावित नहीं होगा।
बहरहाल सरकार को भी मेरा यही सुझाव है कि वो अन्ना को राष्ट्रपति बनाएं तो उनकी समस्या कम हो सकती है। सरकार सही मायने में अन्ना से नहीं डरती है, वो डरती है उनके सामने जमा होने वाली भीड़ से। अगर अन्ना राष्ट्रपति बन गए तो सुरक्षा कारणों से भीड को जमा होने ही नहीं दिया जाएगा। सरकार चाहे तो उन्हें राष्ट्रपति भवन में ही कैद करके रख सकती है।
खैर सरकार को जो करना है वो जाने, लेकिन मैं तो किसी भी सूरत में ये पद लेने को तैयार नहीं हूं। अब देखिए जब से अन्ना ने मना किया है, बच्चे लगातार फोन करके मुझसे मेरा लोकेशन पूछते हैं कि आप कहां हैं। हमारा आफिस नोएडा में है, उनका कहना है कि आप घर से सीधे आफिस जाइये और वहां से घर। भूल कर भी आप राष्ट्रपति भवन की तरफ मत जाना। वैसे भी मुझे राष्ट्रपति भवन से ज्यादा शुकून अपने छोटे से घर में है, क्योंकि यहां खाना बनने के बाद सबसे पहले हम लोग ही खाते हैं। सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं होता कि खाने को पहले डाक्टर टेस्ट करें, उनकी रिपोर्ट आए कि सब ठीक है, तब राष्ट्रपति को भोजन मिले। हमारे यहां कोई भी रिश्तेदार कभी भी आएं जाएं, उन्हें पुलिस की सुरक्षा से नहीं गुजरना पड़ता, वहां तो सुना है बहुत पाबंदी है भाई। प्लीज मुझे बख्श दीजिए, मैं यहीं संतुष्ट हूं।

 

Saturday 1 October 2011

सोनिया के भारत में गांधी की औकात...

पको अटपटा लग रहा होगा कि ये क्या बात है। भारत सोनिया का कब से हो गया ? एक बार भारत को महात्मा गांधी का भारत कहें तो बात मानी भी जा सकती है, उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि सही मायने में तो ये देश ना गांधी का है और ना सोनिया का। ये देश उन शहीदों का है जिन्होंने आजादी की लडाई में अपने प्राण त्याग दिए। ये देश जलियांवाला बाग में कुर्बानी देने वालों का है, ये देश सुभाष चंद्र बोष, राजगुरु, सुखदेव, अशफाक, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और वीर अब्दुल हमीद का है। उन मां और बहनों का है जिन्होने जंग-ए-आजादी में अपने सुहाग को खोया है।
लेकिन पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि विदेशी लेखक और मीडिया गांधी बनाम गांधी का अभियान चलाए हुए हैं। लगातार ऐसी साजिश हो रही है, जिससे महात्मा गांधी को नीचा दिखाया जा सके, वहीं कुछ विदेशी मैग्जीन सोनिया गांधी को देश की सबसे ताकतवर महिला बताते फिर रहे हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर अचानक विदेशी मीडिया देश पर इतना मेहरबान कैसे हो गया, उनमें यहां के मामलों में इतनी रुचि कैसे पैदा होती जा रही है।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों एक अमेरिकी लेखक जोसफ लेलीबेल्ड ने एक किताब लिखा, जिसका नाम है " ग्रेट सोल महात्मा गांधी " । उम्मीद की जा रही थी की महात्मा गांधी पर किताब लिखी गई है तो जाहिर है इसमें महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के जरिए कैसे देश को आजाद कराया, इसकी चर्चा की गई होगी और उन्हें महान बताया गया होगा। लेकिन नहीं ऐसा नहीं था, ये किताब गांधी को अपमानित करने वाली है। जाहिर है अब गांधी जी तो रहे नही, लेकिन देश उन्हें राष्ट्रपिता कहता है तो ये किताब देश को अपमानित करने के लिए लिखी गई है। ये कहा जाए तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।
किताब में कहा गया है कि गांधी जी समलैंगिग तो बताया ही गया है साथ ही उन्हें नस्लभेदी तक कहा गया। उनकी हरमन कालनबाख से संबंधों की चर्चा की गई है। हालांकि देश में इस किताब पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और गुजरात समेत कई राज्यों में इस किताब पर बैन भी लगाया गया। लेकिन इससे लेखक दोषमुक्त नहीं हो जाता है। बडा सवाल ये है कि देश के महापुरुषों पर इस तरह की टीका टिप्पणी के पीछे कौन सी ताकत काम कर रही है।
हमें लगता है कि कुछ हद तक इसके लिए हम भी जिम्मेदार हैं। बताइये देश का सबसे बड़ा सम्मान " भारत रत्न " तक महात्मा गांधी को नहीं दिया गया। देश के पहले राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने 1954 में जब इस पुरस्कार की शुरुआत की तो कहा गया कि ये उन्हीं लोगों को दिया जाएगा जो जीवित होंगे। लेकिन 1966 में पहली बार जब स्व.लाल बहादुर शास्त्री को ये सम्मान दिया गया तो साथ में महात्मा गांधी को भी ये सम्मान दिया जाना चाहिए था। वैसे भी दोनों महापुरुषों का जन्म दो अक्टूबर को ही हुआ है। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। सम्मान के बारे में जो नीति बनाई गई, उसमें कहा गया कि ये सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान और जनसेवा के क्षेत्र में अच्छा काम करने वालों को दिया जाएगा। हालांकि अब ये सम्मान विवादों में है। मैं जानना चाहता हूं कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद  स्व. राजीव गांधी को एक तरह से मृतक आश्रित होने के नाते प्रधानमंत्री की कुर्सी दी गई। क्योंकि इसके पहले तो वो एक साधारण पायलट भर थे। उन्होंने ऐसी कौन सी सेवा  कर दी, जिससे उन्हें भारत रत्न दिया गया। अगर दिया भी गया तो अकेले उन्हें क्यों, देश की सेवा तो उनके पूरे मंत्रिमंडल ने की थी।
अब सोनिया गांधी को ही ले लें। आए दिन विदेशी मैग्जीन में सोनिया गांधी का गुणगान होता है। वर्ष 2004 में सोनिया गांधी को फोर्ब्स पत्रिका ने विश्व की तीसरी सबसे ताकतवर महिला के पायदान पर रखा,  वहीं 2010 में सोनिया को इसी पत्रिका ने नौंवा स्थान दिया था। इसी साल एक ब्रिटिश पत्रिका द स्टेट्समैन ने भी सबसे ताकतवर लोगों की सूची में सोनिया गांधी को 29वां स्थान दिया था। टाइम पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में भी विश्व के सबसे प्रभावी लोगों में सोनिया गांधी का नाम शामिल है।

मैं इस बात से हैरान हूं कि देश की सबसे ताकतवर महिला के क्या मायने हैं। अगर ये है कि सत्ता की चाभी सोनिया के हाथ में है, वो अभी चाहें तो मनमोहन सिंह को कुर्सी से उतार दें और किसी ऐरे गैरे को ये कुर्सी सौंप दें। इससे क्या सोनिया गांधी का सम्मान भले ही बढता हो, मगर देश का तो अपमान ही है। हमारे संबिधान के मुताबिक देश में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है और वो तीनों सेनाओं का भी प्रमुख है। अगर ऐसे देखा जाए तो महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सबसे ताकतवर कही जाएंगी। शारीरिक ताकत को अगर मानक बनाया जाए तो मेरीकॉम मुक्केबाजी में विश्व चैंपियन हैं, कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन में एशियन चैंपियन थीं। इन्हें देश की सबसे ताकतवार महिलाओं में रखा जा सकता है। पर सोनिया गांधी कैसे सबसे ताकतवर हैं, ये तो सर्वै कराने वाले लोग ही बता सकते हैं। जहां तक मेरी समझ है, विदेशी मैग्जीन देश को अपमानित करने के लिए इस तरह की रिपोर्ट सामने रखते हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि देश की मीडिया इस पर आपत्ति करने के बजाए, इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करती है।    
बहरहाल अगर महापुरुषों का सम्मान वाकई बरकरार रखना है तो हमें जागना होगा। हमें खुद आगे बढकर ऐसे लोगों को जवाब देना होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं और हम उनके खिलाफ एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं।  वरना तो फिर सोनिया की जय जयकार करते रहिए। पता नहीं आपको पता है या नहीं सोनिया का असली नाम एड्विग ऐंटोनिया एल्बिना माइनो है। इनके पिता स्टेफिनो भवन निर्माण ठेकेदार और पूर्व फासिस्ट सिपाही थे। इटली के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सोनिया अंग्रेजी की शिक्षा के लिए कैंब्रिज पहुंची, यहां एल्बिना माइनो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक होटल में काम करतीं थीं। यहीं इनकी मुलाकात स्व. राजीव गांधी से हुई, जिनका अब नया पता 10 जनपथ, नई दिल्ली है।