Saturday 12 October 2013

आसाराम का मिशन बलात्कार !

हले सोच रहा था कि पांच राज्यों मं चुनाव घोषित हो गए हैं, उसकी बात करूं, 2014 यानि आम चुनाव में भले ही अभी देरी हो पर सियासी पारा बिल्कुल चढ़ा हुआ है। लेकिन इन सब पर भारी पड़ रहा है आसाराम और उसका परिवार। सूरत की दो बहनें जिस तरह सामने आई हैं और उनकी आप बीती सुनने से तो लगता है कि आसाराम और उसका दुलारा नारायण साई दोनों ही रेपिस्ट हैं। सवाल ये भी है कि अगर आसाराम रेपिस्ट नहीं होता तो भला वो क्यों भरी सभा में कहता कि वो मर्दानगी बढ़ाने के लिए दूध में सोना उबाल कर पीता है। इसके अलावा पलास का फूल और ना जाने क्या - क्या चबाता है। अच्छा इस बाप बेटे की करतूतें सुन कर ही आम आदमी हिल जाता है, उसे लगता है कि ये धर्म की आड़ कैसे - कैसे भेड़िए पनाह लिए हुए हैं। एक बार बात यहीं खत्म हो जाती तो गनीमत थी, लोगों को लगता कि अब इस बाप - बेटे की करतूत सामने आई है तो ये दोनों आगे सुधर जाएंगे, क्योंकि अब तो ये समाज में क्या परिवार में मुंह दिखाने के लायक नहीं रहे। पर सबसे बड़ी हैरानी इस बात पर हुई की बाप के लिए लड़की का इंतजाम उसकी बेटी कर रही थी। जब ऐसी करतूतें सामने आ रही हों तो भला कहां राजनीति पर कलम चलाने की जरूरत थी, पहले तो इन कुकर्मियों का असली चेहरा लोगों के बीच में लाना जरूरी हो गया।

चलिए पहले बात आसाराम की ही कर लेते हैं। यूपी की शाहजहांपुर की बेटी ने जिस तरह इसके कुकर्मों का खुलासा किया है, मुझे लगता है कि उस बेटी ने तमाम दूसरी बेटियों की जिंदगी तबाह होने से बचा ली। वरना एकांतवास और समर्पण की आड़ में आसाराम की  अय्याशी यूं ही चलती रहती। आसाराम के लिए लड़कियों का इंतजाम कौन करता था, ये नाम सुनकर आप भी हमारी तरह चौंक जाएंगे। इसके लायक बेटे और बेटी अपने अपने बाप के लिए लड़कियां पहुंचाने का काम करते थे। इतना ही नहीं इसकी बीबी भी अपने पति के चरणों में लड़की पेश करती थी। ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, इसका खुलासा जोधपुर में मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बयान में आसाराम के ही पूर्व सेवादार अजय कुमार ने किया है। उसका साफ कहना है कि नारायण साई अक्सर आसाराम के लिए लड़की का इंतजाम करता था। लड़के की करतूतों का खुलासा जहां पूर्व सेवादार ने कर दिया, वहीं सूरत की बहनों ने पुलिस में दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा है कि उन्हें आसाराम के पास उनकी बेटी ले जाती थी, इतना ही नहीं एक बार जाने से मना कर देने पर आसाराम की बीबी ने उसे तमाचा मारा। आसाराम के कुकर्मों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो अय्य़ाशी में इस कदर अंधा है कि लड़की का इंतजाम करने के लिए अपने बेटे, बेटी और पत्नी सब को लगा रखा है।

हालांकि ये सब सुनकर हैरानी होती है। मेरा मानना है कि बेटा अगर खुद भी निकम्मा और अय्याश हो तो एक बार बाप की करतूतों को बर्दास्त कर लेगा, लेकिन बेटी और पत्नी भला ये कैसे बर्दास्त कर सकती हैं कि उसका बाप या पति लड़कियों के साथ अय्याशी करे ? जब से सूरत की दोनों बहनों ने इस परिवार के बारे में खुलासा किया है, ये पूरा परिवार कम से कम मेरी निगाह में तो घृणा का पात्र बन गया है। बताते हैं कि पुलिस को प्राथमिक जांच में आसाराम के खिलाफ पुख्ता सुबूत मिले हैं। इसके बाद अहमदाबाद पुलिस ने कोर्ट से आसाराम का ट्रांजिट वारंट मांगा है। चूंकि लड़की का आरोप  है उसके साथ बलात्कार अहमदाबाद के मोटेरा आश्रम में हुआ, इसलिए इस मामले की जांच अहमदाबाद पुलिस कर रही है। इस बीच आसाराम की न्यायिक हिरासत 25 अक्टूबर तक बढ़ गई है। मतलब ये कि अभी कुछ दिन और इस आसाराम जेल की ही रोटी खानी होगी। वैसे लड़कीबाजी आसाराम की बीमारी है, तो ये साल दो साल अगर जेल में रह गया तो काफी  हद तक उसे इस बीमारी से आराम मिलेगा। बस जरूरत इस बात की है इसे महिला वैद्य से भी दूर रखा जाए।

बात नारायण साईं की करें तो हम कह सकते हैं कि बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुहानल्लाह ! खैर जब बाप ही आश्रमों में रंगरेलियां मना रहा है, उसे लड़की की सप्लाई भी बेटा कर रहा है, फिर नारायण साईं तो आसाराम के अनुयायी ही है ना। उसका तो बाप के पदचिन्ह पर चलना हक बनता है। आरोप लगा है कि सूरत की जिन दो बहनों के साथ बलात्कार हुआ, उसमें बड़ी के साथ आसाराम ने और छोटी के साथ नारायण साईं ने मुंह काला किया। इसके पहले  इंदौर की एक लड़की ने भी नारायण साईं पर छेड़छाड़ का गंभीर आरोप लगाया था। हालांकि ये सब आरोप है, सभी मामले न्यायालय में विचाराधीन है। ऐसे में इस मामले में किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। लेकिन ये बात भी सही है कि अगर नारायण साईं सही होता तो वह पुलिस से भागता नहीं। कुछ दिन पहले तक तो वो खुद तमाम न्यूज चैनलों में जाकर अपने बाप आसाराम का बचाव कर रहा था, जब से सूरत की लड़कियों ने रिपोर्ट दर्ज कराई है, ये अचानक लापता हो गया है। पुलिस की नोटिस का जवाब भी नहीं आ रहा है। लुकआउट नोटिस के बावजूद इसका कहीं कोई अता पता नहीं है। सूरत पुलिस ने इसे पूछताछ के लिए जहांगीरपुरा आश्रम में समन भेजा है। ऐसी आशंका है कि नारायण साईं नेपाल भाग गया है। लेकिन पुख्ता तौर पर पुलिस को उसके बारे में कुछ नहीं पता। उधर पुलिस ने सूरत आश्रम में छापेमारी के बाद दावा किया कि बलात्कार के मामले में नारायण साईं के खिलाफ उसे पुख्ता सबूत मिले हैं।

नारायण साईं खुद फरार है, लेकिन पुलिस से बचने और जनता में अपनी छवि बनाए रखने के लिए वो अपने वकील गौतम देसाई के जरिए समर्थकों को संदेश दे रहा है। उसके वकील ने सूरत के एक स्थानीय अखबार में इश्तेहार दिया है कि नारायण को बलात्कार के केस में फंसाया जा रहा है। मैं कहता हूं कि अरे भाई अगर तुम्हें फंसाया जा रहा है तो सामने आकर उसका सामना करो । लड़की के साथ आमने सामने की बात चीत से साफ हो जाएगा कि तुमने बलात्कार किया या नहीं ! भागने से क्या होगा, किसी को ये पता नहीं है कि नारायण इस समय है कहां, वो देश में है या नेपाल  भाग गया है। रही बात अग्रिम जमानत की अर्जी डालने की, तो वो सभी को हक है।  हास्यास्पद तो ये है कि प्रवक्ता नीलम दुबे कह रही हैं कि नारायण कहीं  भाग नहीं हैं, बल्कि वो किसी आश्रम में ध्यान-योग में लीन है। मैडम नीलम जिसके पीछे पुलिस लगी हो, वो भी बलात्कार जैसे गंभीर मामले में, वो ध्यान योग भला क्या करेगा ! माफ कीजिएगा, पर आपसे एक बात जरूर कहूंगा कि बलात्कार जैसे गंभीर मामलो के आरोपी आसाराम और नारायण साईं के चक्कर में पड़कर कम से कम ध्यान और योग को कलंकित मत कीजिए। अगर नारायण साईं सच्चा और अच्छा होगा तो वो खुद पुलिस के सामने आएगा और कहेगा कि मेरी जांच कीजिए, मैं निर्दोष हूं। लेकिन इतना कहने के लिए नैतिक बल की जरूरत है, जो आपके नारायण साईं में नहीं है।

वैसे मैडम नीलम दुबे जी माफ कीजिएगा, मैं महिलाओं के बारे में बिना ठोस जानकारी के कुछ नहीं कहना चाहता, लेकिन एक टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान आश्रम के पूर्व सेवादार नाम शायद भोला है, उसने तो आप पर भी गंभीर आरोप लगाएं हैं। उसने तो चैनल पर चर्चा के दौरान यहां तक कहाकि नारायण साईँ ने आपके प्राईवेट पार्टंस पर बाईं ओर दांत काट लिया है, जिसका काफी दिनों तक इलाज चला है। उसका दावा है कि आज भी कटे का निशान वहां मौजूद है। इस दावे की सच्चाई मे मैं नहीं जाना चाहता, पर इतना जरूर कहूंगा कि आप महिला हैं, इसलिए इस संवेदनशील मुद्दे पर बस सच बोलना चाहिए, वरना लोगों का महिलाओं पर से भी भरोसा टूट जाएगा। आप ये बात भले ना स्वीकार करें, पर जब आप आसाराम और नारायण साईं का बचाव करतीं है, तब आपकी बाँडी लँग्वेज से बदबू आती है, पता चलता है कि आप झूठ बोल रही हैं।

खैर जहां आसाराम की बेटी और पत्नी पर गंभीर आरोप लग रहे हों, वहां आपकी चर्चा करना बेमानी है, लेकिन हर मामले में आश्रम की ओर से आप ही मीडिया के सामने आती हैं, इसलिए आपके बारे में दो बातें करना जरूरी हो गया था। हालांकि मैने जो बातें कहीं है, वो आश्रम के ही पूर्व सेवादार यानि भोला के आरोप हैं। हो सकता है कि भोला का दावा गलत हो, लेकिन इसके लिए आपको भी ये साबित करना होगा कि आपके प्राईवेट पार्टस के बाईं ओर दांत से काटने का कोई निशान मौजूद नहीं है और ना ही इसका कोई इलाज कराया गया है। बीजेपी की वरिष्ठ नेता साध्वी उमा भारती ने जब आसाराम की बेटी को अपना प्रिय दोस्त बताया तो मुझे लगा कि आसाराम की बेटी एक सरल और सामान्य महिला होंगी। लेकिन जिस तरह का आरोप उन पर सूरत की दोनों बहनों ने लगाया है, वो बहुत ही गंभीर है। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि कि आसाराम की बेटी और पत्नी पर लगे आरोप सच ना हों, लेकिन ये आरोप अगर सच हैं तो मैं एक बात तो दावे के साथ कह सकता हूं कि देश और दुनिया में इससे ज्यादा निकृष्ट परिवार और कोई नहीं होगा।




Tuesday 1 October 2013

प्रधानमंत्री जी बस एक बार अंदर झांकिए !

मित्रों कुछ व्यक्तिगत कारणों से महीने भर से ज्यादा समय से मैं ब्लाँग पर समय नहीं दे पा रहा हूं। वैसे समय ना दे पाने की एक वजह मेरे निजी कारण तो हैं ही, लेकिन दूसरी बड़ी वजह रिलायंस जैसी कंपनी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना भी रहा है। पहले मैं MTS का डेटा कार्ड इस्तेमाल कर रहा था, पता चला कि इस कंपनी के तमाम जगहों पर लाइसेंस रद्द हो चुके हैं, लिहाजा ये कार्ड देश के एक बड़े हिस्से में काम करना ही बंद कर दिया। बाद में मैने कुछ मित्रों की सलाह पर रिलायंस का 3 जी डेटा कार्ड लिया, ये कार्ड दिल्ली में तो फिर भी ठीक काम करता है, लेकिन जैसे ही दूसरी जगह पहुंच जाइये, काम करना बंद कर देता है। इसके बाद तो बेवजह अंबानी बंधुओं के लिए मुंह से गाली निकलती है। पिछले महीने मैं 20 से 25 दिन लखनऊ में रहा हूं। अब बताइये देश के इतने बड़े राज्य की राजधानी लखनऊ में रिलायंस का डेटा कार्ड इसलिए काम नहीं कर रहा है, क्योंकि यहां 3 जी की सुविधा नहीं है। कुछ नहीं हो सकता इस शहर का। हैरानी इस बात की होती है कि अदब के इस शहर में हर चीज की मांग के लिए शोर मचते देखता हूं, पर तकनीकि खामियों को दूर करने या फिर नई तकनीक का लाभ शहर को मिले, इसके लिए ये शहर गूंगों-बहरों की बस्ती के अलावा कुछ भी नहीं है। खैर छोड़िए ! इस शहर पर उलझा रहूंगा तो जो बात कहने आया हूं, वो कहीं खो जाएगा। बहरहाल अब कोशिश होगी कि ब्लाँग पर नियमित बना रहूं, आप सबके ब्लाँग भी काफी समय से नहीं देख पाया हूं, वहां भी जाऊं !

आज बात की शुरूआत चटपटे नेता लालू यादव से। चारा घोटाले में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद लालू यादव जेल चले गए। 17 साल से ये मामला न्यायालय में विचाराधीन था। अगर पिछले चार पांच साल को छोड़ दें तो इस मुकदमे के चलने के दौरान लालू बिहार और केंद्र की सरकार में अहम भूमिका निभा रहे थे। ये लोकतंत्र का माखौल ही है कि भ्रष्टाचार का आरोपी व्यक्ति यहां मंत्री बना बैठा रहता है। होना तो यही चाहिए कि जब तक नेता आरोपों से बरी ना हो जाए, उसे मंत्री, मुख्यमंत्री बिल्कुल नहीं बनाया जाना चाहिए। बहरहाल लालू यादव अब सही जगह पर हैं, उन्हें यहीं होना चाहिए। जो हालात हैं उसे देखकर हम कह सकते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट की चली तो आने वाले चुनावों के बाद संसद और विधानसभाओं की सूरत थोड़ी बदली हुई होगी। क्योंकि तब यहां भ्रष्ट, बेईमान, अपराधी, हत्यारे, बलात्कारी नहीं आ पाएंगे। अब देखिए शिक्षक भर्ती घोटाले मे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जेल चले गए, मेडीसिन खरीद घोटाले में रसीद मसूद जेल गए, चारा घोटाले में ही बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी जेल भेजे गए। खैर जो नेता अभी तक जेल जा रहे हैं, सच्चाई तो ये है कि अब वो राजनीति के हाशिए पर हैं, उनकी कोई खास पूछ रही नहीं अब सियासत मे। हालांकि लालू जरूर कोई भी करिश्मा करने की हैसियत रखते हैं। जेल जाने के दौरान लालू ने कहा "मैं साजिश का शिकार हो गया" । मुझे भी लगता है कि वो साजिश के शिकार हो गए। मेरा मानना है कि मायावती और मुलायम सिंह की तरह अगर लालू के पास भी 19 - 20 सांसद होते, तो यही सरकार और प्रधानमंत्री उनके तलवे चाटते फिरते। यूपीए (एक) की सरकार में लालू की हैसियत किसी से छिपी नहीं है।

बहरहाल इन दिनों घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा हैं। आपने देखा ना कि राहुल गांधी ने एक शिगूफा छोड़ा और खबरिया चैनलों से लेकर देश दुनिया के सारे अखबार राहुल की तस्वीरों से रंग गए। लेकिन मुझे चैनल और अखबारों की रिपोर्ट देखकर काफी हैरानी हुई । हैरानी इस बात पर हुई कि क्या इतना बड़ा फैसला सरकार ने कांग्रेस पार्टी की मर्जी के बगैर ले लिया गया ? अगर इस फैसले में पार्टी की राय थी तो सवाल उठता है कि क्या पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस मामले में कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया ? सवाल ये भी क्या राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर सिर्फ उनका कद बढ़ाया गया है, उनसे जरूरी मसलों पर कोई सलाह मशविरा नहीं की जाती है ! या फिर ये समझा जाए कि राहुल गांधी की विशेषता सिर्फ ये है कि वो गांधी परिवार में जन्में है, इसलिए उनका सम्मान भर है, उनकी राय पार्टी या सरकार के लिए कोई मायने नहीं रखती ? यही वजह तो नहीं कि उनसे किसी मसले पर रायशुमारी नहीं की जाती। अरे भाई मैं एक तरफा बात किए जा रहा हूं,  पहले मैं आपसे पूछ लूं कि मुद्दा तो आपको पता है ना ? बहुत सारे लोग सरकारी काम से बाहर या फिर निजी टूर पर रहते हैं, इसलिए हो सकता है कि उन्हें  ना पता हो कि राहुल ने ऐसा क्या तीर चला दिया, पूरी व्यवस्था ही हिल गई है।

दरअसल आपको पता होगा कि 10 जुलाई 13 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधियों को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इसमें कहा गया कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश भर में स्वागत हुआ। कहा गया कि इससे राजनीति में सुचिता आएगी, अपराधी, भ्रष्ट नेताओं पर लगाम लगाया जा सकेगा। देश की आम जनता और विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुले मन से स्वागत किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से केंद्र की सरकार खुद को असहज महसूस करने लगी। सरकार को मालूम है कि अगर कोर्ट के आदेश का पालन हुआ तो केंद्र की ये सरकार किसी भी समय मुंह के बल जा गिरेगी, क्योंकि दो एक पार्टी को छोड़ दें तो ज्यादातर पार्टी के नेताओं पर भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े कई मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं। वैसे भी पूरा देश जानता जानता है कि आज अगर केंद्र सरकार के हाथ में सीबीआई ना हो, तो ये सरकार कब का गिर चुकी होती। अगर मैं ये कहूं कि इस सरकार को सीबीआई  चला रही है तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। इस सरकार को लूटेरे, चोर, भ्रष्ट नेताओं का आगे भी समर्थन लेना होगा, यही सोचकर अंदरखाने विचार मंथन शुरू हो गया।

मेरी तरह आप भी  देख रहे होंगे कि जैसे-जैसे इस सरकार का कार्यकाल समाप्त होने को आ रहा है, अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का असली और बदसूरत चेहरा भी सामने आता जा रहा है। आमतौर पर मेरी आदत गाली गलौज करने की नहीं है, पर अब प्रधानमंत्री का नाम जब भी आता है, वाकई इनके लिए बहुत गाली निकलती है। पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि मनमोहन सिंह महज एक इंसानी शरीर का पुतला भर हैं, इनके भीतर अपना कुछ भी नहीं है। इस पुतले को अपने और अपने पद के मान, सम्मान, इमान किसी भी चीज की कोई चिंता नहीं है। बस कुर्सी पर बने रहने के लिए सब कुछ 10 जनपथ में गिरवी रख चुके हैं। कई बार मन में एक सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सचमुच अस्वस्थ हैं या फिर ऐड़ा बनकर पेड़ा खा रहे है, ये बात मैं समझ नहीं पा रहा हूं। अब देखिए ना दो दागी मंत्री अश्वनी कुमार और पवन बंसल से इस्तीफा लेने  की बारी आई, तो पार्टी की ओर से ऐसा संदेश दिया गया कि सोनिया गांधी तो दोनों मंत्रियों को भगाना चाहती हैं, पर मनमोहन सिंह उन्हें चंड़ीगढ़ का होने की वजह से बचा रहे हैं। दोनो मंत्रियों के इस्तीफे का मामला तूल पकड़ रहा था, प्रधानमंत्री की किरकिरी हो रही थी, लेकिन पूरी पार्टी खामोश रही। बाद अचानक सोनिया गांधी 10 जनपथ से निकलीं और प्रधानमंत्री निवास यानि 7 आरसीआर पहुंच गईं। सोनिया के सख्त तेवर के बाद प्रधानमंत्री ने दोनों से इस्तीफा ले लिया ! दागी  मंत्रियों को कौन बचा रहा था ? इस बात की जानकारी आज तक किसी को नहीं हुई।

अब एक बार फिर संदेश दिया जा रहा है कि चोरों, दागियों , अपराधियों, जेल में बंद नेताओं के मददगार हैं अपने प्रधानमंत्री। इन पर कुर्सी का ऐसा भूत सवार है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने के लिए अध्यादेश लाने से भी नहीं बाज आते। हुआ क्या, कल के लड़के ने प्रधानमंत्री की अगुवाई में लिए गए कैबिनेट के फैसले को "नानसेंस" कह कर संबोधित किया। राहुल ने ये कह कर कि " मेरी निजी राय में अध्यादेश बकवास है, इसे फाड़कर फैंक देना चाहिए"  तूफान खड़ा कर दिया।  बहरहाल राहुल की निजी राय के बाद जैसी हलचल देखी जा रही है, उससे  प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट की हैसियत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । वैसे एक बात है राहुल को जिसने भी ये सलाह दी वो है तो बहुत ही शातिर राजनीतिबाज ! जानते हैं क्यों ? सब को पता है कि इस समय राष्ट्रपति भवन में प्रतिभा  देवी सिंह पाटिल नहीं बल्कि महामहिम प्रणव दा हैं । मेरा दावा है कि इस अध्यादेश पर प्रणव दा एक बार में तो हस्ताक्षर बिल्कुल नहीं कर सकते थे ! सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों के जरिए संभवत: ये संदेश भी उन्होंने सरकार तक पहुंचा दिया था। राष्ट्रपति भवन से अध्यादेश बिना हस्ताक्षर के वापस आता तो सरकार और कांग्रेस पार्टी और उसके नेता कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।

बीजेपी पहले से ही इसका विरोध कर रही थी। यहां तक की आडवाणी की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलकर आग्रह भी कर चुका था कि इस अध्यादेश पर वो अपनी मुहर ना लगाएं। सच्चाई ये है कि राष्ट्रपति भवन और विपक्ष के तेवर से कांग्रेस खेमें में बेचैनी थी। सब तोड़ निकालने में जुट गए थे कि कैसे इस अध्यादेश को वापस लिया जाए। बताते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरह अचानक प्रेस क्लब पहुंच कर रियेक्ट किया, वो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि एक रणनीति  के तहत राहुल को सामने किया गया। कांग्रेस नेताओं ने जानबूझ कर राहुल को कड़े शब्द इस्तेमाल करने को कहा। इस बात पर भी चर्चा हुई कि अपनी ही सरकार के खिलाफ कड़े तेवर दिखाने से प्रधानमंत्री नाराज हो सकते  हैं, इतना ही नहीं यूपीए में शामिल घटक दल भी अन्यथा ले सकते हैं। इस पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने साफ किया कि ये एक ऐसा मुद्दा है कि इस पर कोई भी खुलकर सामने नहीं आ सकता। जो अध्यादेश का समर्थन करेगा, जनता उससे किनारा कर लेगी। राहुल अगर  अपनी ही सरकार को "नानसेंस" कहते हैं तो सांप  भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। जहां तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाराजगी का सवाल है, कहा गया कि कई बार इससे भी गंभीर टिप्पणी उनके बारे में हो चुकी है और वो नाराज नहीं हुए। इस बार तो उनकी अगुवाई में इतना गंदा काम हुआ है कि इस मुद्दे पर नाराज हुए तो फिर कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।

बताया जा रहा है कि सब कुछ तय हो जाने के बाद राहुल को तीन लाइन की स्क्रिप्ट सौंपी गई और कहा गया कि उन्हें ये याद करना है और आक्रामक तेवर में मीडिया के सामने रखना है। मीडिया के सवाल का जवाब नहीं देना है। अगर कोई सवाल हो भी जाए और जवाब देने की मजबूरी हो तो इसी बात को दुहरा देना है। बताया गया कि गंभीर मामला है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमेशा की तरह इस बार भी बाहर हैं, इसलिए नपे तुले शब्दों में ही हमला होना चाहिए, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री को गुस्सा कम आता है, लेकिन जब आता है तो कुछ भी कहने से नहीं चूकते। वैसे मेरा एक सवाल है, प्रधानमंत्री जी विपक्ष ने आपको भ्रष्ट कहा तो नाराज हो गए, आपने संसद में कहाकि दुनिया के किसी दूसरे देश में प्रधानमंत्री को वहां का विपक्ष भ्रष्ट नहीं कहता है। आपकी बात सही है, लेकिन मुझे ये जानना है कि दुनिया के किसी दूसरे देश में अपनी ही पार्टी का नेता अपने प्रधानमंत्री को " नानसेंस " कहता है क्या ? प्लीज आप जवाब मत दीजिए, क्योंकि इसका आपके पास कोई जवाब है भी नहीं ।

चलते - चलते

मैं प्रधानमंत्री होता तो अमेरिकी से ही इस्तीफा भेजता और वहीं ओबामा से टू बीएचके का एक फ्लैट ले कर बस जाता, देशवासियों को अपना काला चेहरा नहीं दिखाता ।