Thursday 28 April 2011

प्यास





प्यास ही प्यास है जमाने में,
एक बदली कहां कहां बरसे।
ना जाने कौन कौन उसे छलकाएगा,
कौन दो घूंट के लिए तरसे।

कोई राहत की भीख मांगे,
तो आप संगीन तान लेते हैं।
और फौलाद के शिकंजे में,
फूल का इम्तहान लेते हैं।

यार तू रो रो कर मांग मत
खैरियत बसेरे की,
भीख की रोशनी से बेहतर है,
तेरे घर में घुटन अंधेरे की।

Tuesday 26 April 2011

"भगवान" की शरण में "भगवान"

हां! पहली नजर में आपको ये बात अटपटी लग सकती है कि भगवान की शरण में भगवान.. इसके मायने क्या है। मैं बताता हूं। एक हैं सत्य साईं जिन्होंने खुद को भगवान बताया और दूसरे सचिन तेंदुलकर जिन्हें लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। दोनों में फर्क है, एक को लोग भगवान नहीं मानते और दूसरा खुद को भगवान नहीं मानता। एक ने कहा कि वो 96 साल तक जिंदा रहेंगे, पर इसके पहले ही उन्हें शरीर छोड़ना पड़ा, दूसरे को लोग सोचते थे उन्हें 21 साल के पहले क्रिक्रेट छोड़ना पड़ सकता है, पर वो आज भी बल्ला घुमा रहे हैं। हां दोनों भगवान में एक समानता है, दोनों ने अपने "खेल" से देश और दुनिया में करोडों प्रशंसक जरूर बनाए हैं।

सत्य साईं अब हमारे बीच में नहीं रहे, लेकिन वो एक ऐसी शख्सियत बन चुके हैं कि उनके न रहने पर भी उनके बारे में चर्चा होती रहेगी। देश विदेश में लाखों लोग उन्हें सच में "भगवान" मानते हैं। वैसे सच ये है कि उन्हें खुद को भगवान साबित करने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी। शुरू में तो वो खाली हाथ से भभूत निकाल कर लोगों को प्रसाद के तौर पर देते रहे। कुछ सम्भ्रांत और बड़े भक्त आए तो भगवान ने उन्हें सोने की चेन तक हवा से निकाल कर थमा दी। वैसे ये तो भगवान का फैसला है कि किसे क्या देना है, इससे मेरा कोई लेना देना नहीं, पर मैने देखा जिसे भभूत की जरूरत थी भगवान ने उसे सोने की चेन थमा दी और जिसे सोने की चेन की चाहत थी, उसे भभूत से संतोष करना पड़ा। यानि गरीब आदमी के हिस्से में भभूत और अमीरों के हिस्से में सोने की चेन।

सत्य साईं ने जब खुद को भगवान बताया तो सभी हैरान रह गए, उन पर तरह तरह के सवाल खड़े किए जाने लगे। चारो ओर से हमला होता देख बाबा साईं ने अपनी बात में थोड़ा सुधार किया और कहा कि " ऐसा नहीं है कि सिर्फ मैं ही भगवान हूं, भगवान तो आप भी हैं। फर्क बस इतना है कि मैं जानता हूं और आप इससे अनजान हैं। " बाबा ने यह कह कर आग पर पानी डालने का काम जरूर किया, पर उन पर हमला होना बंद नहीं हुआ।

कुछ साल पहले एक मैग्जीन ने तो सत्य सांई के बारे में पूरा परिशिष्ट ही निकाल दिया। इसमें जो बातें लिखी गईं थीं, अगर वो सच है तो बाबा की जगह आश्रम नहीं जेल थी। विदेशी भक्तों के साथ अश्लील हरकत करने तक की बातें सत्य साईं के बारे में की गईं। एक टीवी चैनल ने तो सत्य साईं के खेल को बेनकाब करने की कोशिश की और चैनल ने अपने स्टूडियो में ही एक जादूगर को बुलाया और जिस तरह से सत्य साईं खाली बर्तन से भभूत निकालते हैं, उसी तरह जादूगर ने भी भभूत निकाल दिया। कुल मिलाकर कर ये साबित करने की कोशिश की गई बाबा भगवान नहीं हैं वो हल्के फुल्के जादूगर हैं जो कुछ वो करते हैं वो चमत्कार भी नहीं है, उसे कोई भी कर सकता है।

बहरहाल इन आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए सत्य साईं अपने रास्ते पर आगे बढ़ते रहे। वो इस बात से बेफिक्र रहे कि कोई उनके बारे में क्या कहता है या फिर सोचता है। यही वजह है कि आज जब बाबा ने शरीर छोड़ दिया तो दो दिन से सभी चैनल और अखबार बाबा की प्रशंसा से रंगे हुए हैं। सभी चैनलों में एक प्रतियोगिता शुरू हो गई है कि कौन कितना ज्यादा समय तक बाबा की खबरों पर बना रहता है। हैरान करने वाली बात तो ये है कि इस प्रतियोगिता में वो चैनल भी शामिल हैं जो कुछ समय पहले तक बाबा को जादूगर बता रहे थे।

सत्य साईं की पार्थिव शरीर को देख क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर भी हिल गए और एक बार तो उनकी आंखों से आंसू भी छलक गया, पर अगले ही पल सचिन ने खुद को संभाल लिया और वो पूरी मजबूती के साथ वहां बैठे रहे। लेकिन चैनल खुद को नहीं संभाल पाए, और पूरे दिन वो इस क्रिकेट के भगवान को रुलाते रहे।

सत्य साईं को नमन करते हुए मैं भी उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहा हूं, पर एक बात मुझे बार बार कचोट रही है। आज बाबा के उन कार्यों की प्रशंसा तो हो रही है कि जिसमें उन्होंने अस्पताल और स्कूल खुलवाए, जहां हजारों बच्चों को पढाई की सुविधा मिल सकी है, पर जिस चीज के लिए बाबा जाने जाते थे, वो जगह कौन लेगा, ये साफ नहीं है। ऐसा क्यों है कि बाबा ने अपनी आध्यात्मिक ताकत को किसी के हवाले नहीं किया, जिससे इस गद्दी पर कोई और बैठ सके। आज बार बार चर्चा उनके 40 हजार करोड के साम्राज्य पर हो रही है कि इसका वारिस कौन है। वैसे तो आंध्र सरकार ने साफ कर दिया है कि ट्र्स्ट पहले की तरह काम करता रहेगा, लेकिन लगता नहीं कि ये इतना आसान है। आने वाले दिनों में ट्रस्टियों के बीच कोई विवाद हो और इस साम्राज्य पर सरकारी नियंत्रण हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। बाबा साईं को एक बार फिर नमन...


Wednesday 20 April 2011

ये खोटे सिक्के



आदमी सिक्के को
सिक्के आदमी को
खोटा बनाते हैं।
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।
और आजकल सिक्के
टकसाल में नहीं
आदमी की हथेली
पर ढल रहे हैं।
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।

Thursday 14 April 2011

अमौसा क मेला... स्व. कैलाश गौतम

 ई भक्ति के रंग में रंगल गांव देखा
धरम में  करम में सनल गांव देखा
अगल में बगल में सगल गांव देखा
अमौसा नहाए चलल गांव देखा।
एहू हाथे झोरा, उहू हाथे झोरा
अ कांन्हीं पर बोरी,  कपारे पर बोरा
अ कमरी  में केहू रजाई में केहू
अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू । (पतली चद्दर)

अ आजी रमावत हईं गुड़ देखा
हंसत हउवैं बब्बा तनि जोड़ देखा
घुंघटवै से पूंछे पतोहिया की अइया
गठरिया में अब का रखाई बतइया।

एहर हव्वै लुक्गा (साडी) उहर हव्वें पूडी
रमायन के लग्गे हौ मड़ुआ के धूडी
अ चाउर अचूरा किनारे के ओरी
औ नयका चप्पलवा अचारे की ओरी
अमौसा का मेला--- अमौसा का मेला।
मचल हव्वै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री गुर्रा उहर लोली लोला
अ बिच्चे में हव्वै शराफत से बोला।
चपायल हवै केहू दबायल है केहू
अ घंटन से ऊपर टंगायल है केहू
केहू हक्का बक्का केहू लाल पीयर
केहू फनफनात हव्वै कीरा के नीयर
अ बब्प्पा रे बप्पा अ दैइया रे दैइया
तनी हम्मे आगे बढ़ै देते भैय्या।
छिड़ल हौ हिताई नताई का चर्चा
पढ़ाई सिखाई कमाई के चर्चा
दरोगा के बदली करावत हव केहू
अ लग्गी से पानी पियावत है केऊ
 अमौसा क मेला.. अमौसा क मेला.।
जेहर देखा ओहरै बढत हव्वै मेला
अ सर्गे के सीढ़ी चढत हव्वै मेला
बड़ी हव्वै सांसत न कहले कहाला
मुडै मूड़ सगरौ न गिनले गिनाला।

एही भीड़ में संत गिरहस्थ  देखा
सबै अपने अपने में हौ व्यस्त देखा
अ टाई में केहू त टोपी में केहू
अ झूंसी में केहू अलोपी में केहू
अखाड़न क संगत, अ रंगत ई देखा
बिछल हव हजारन क पंगत ई देखा।
कहीं रासलीला कहीं प्रवचन हव
कहीं गोष्ठी हव कहीं पर भजन हव
केहू बुढिया माई के कोरा, ( गोद)  उठावे
अ त्रिवेड़ी मैया में गोता लगावे
कलप वास में घर के चिंता लगल हव
कटल गांव खरिहाने वैसै पड़ल हव
अमौसा क मेला...अमौसा क मेला।
गुलब्बन की दुल्ही चलें धीरे धीरे
सजल देह जैसे हो गौने की डोली
हंसी हव बताशा शहद हव्वै बोली
अ देखैलीं ठोकर बचावैंली घक्का
मनैं मने मकई, मनै मन फुटेहरा।

निहारैं ली मेंला, सिहा के चिहा के
सबैं देवी देवता मनावत चलेंली
अ नररियल पर नरियल चढावत चलैंलीं  ..
किनारे से देखैं इशारे से बोलें  ..
कहीं गांठ जोड़ैं क हीं गांठ खोलैं,
बड़े मनसे मंदिर में दर्शन करेंलीं
औ दूधे से शिव जी के अर्घा भरेंलीं।
बहुच दिन पे भेटैंली चंपा चमेली--
अ बचनप के दीनों हईं पक्की सहेली
ई आपन सुनावें--उ आपन सुनावें
दुनो आपन गहना गदेला गिनावें
असो का बनवलू असों वनऊलू
तू जीजा का फोटो न अब तक पठैइलू।
न उन्हें कोई रोकैं न उ इन्हें कोई टोकें
दूनों अपने अपने दूल्हा के तारीफ झोकें
हम्में अपने सासु की पुतरी तू जान्या
अ हम्में ससुर जी के पगड़ी तू जान्या
शहरियौ में पक्की देहतियों में पक्की
चलत हव्वै टैंपों चटलवत हुव्वै चक्की
मनैं मनैं जरैं और गड़ैं लगली दूनो
भइल तूतू मैं मैं लड़ैं लगलीं दूनौ
अ साधू छुड़ावें सिपाही छुड़ावैं
अ हलवाही जैसे कराही छुड़ावैं
अमैसा क मेला अमौसा क मेला।..
कलौटा के माई के झोरा हेरायल
अ बुद्धू के बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया के माई टुकुलिया के जोहै
बिजुलिया के भाई बिजुलिया के जौहै
मचल हव्वै मेला में सगरौ ढुढाई
चमेला के बाबू चमेला के माई।
गुलबिया तभत्तर निहारत चलेली
मुरहुआ मुरहुआ पुकारत चलेली
अ छोटकी बिटियवा के मारत चलेले
बिटिव्वै पे गुस्सा उतारत चलेले
गोवर्धन के सरहज किनारे भिटइलीं
गोवर्धन के संघे पउंड के नहइलीं
घरै चलता पाहुन दही गुड़ खियाइत
भतीजा भइल हो भतीजा देखाइत
उहै फेंक गठरी परइलैं गोवर्धन (भाग गए)
न फिर फिर दिखइलैं, धरैंलैं गोवर्धन
अमोसा क मेला अमौसा का मेला।
केहू शाल देखै अऊ दोशाला मोलावे
केहू बस अटैची के ताला मोलावे
केहू चायदानी प्याला मोलावै
सोथोरा के केहू मसाला मोलावे।

नुमाइश में जाते बदल गईलीं भोजी
अ भइया से आगे निकल गईलीं.भौजी..
हिंडौला जब आईल मचल गईलीं भौजी
अ देखते ड्रामा उछल गइलीं भौजी

अ भईया बेचारू जोड़त हव्वैं खर्चा
भुलइलै न भूलै पकौड़ी के मर्चा
बिहानै कचेहरी कचेहरी के चिंता
बहिनिया के गौना मसेहरी के चिंता
फटल हव्वै कुर्ता टुटल हव्वै जूता
खलित्ता में खाली किराए का बूता
तबौ पीछै पीछै चलत जात हौव्वन
गदौरी में सुर्ती मलत जात हौव्वन
अमौसा क मेला अमौसा क मेला।

ये बच्चा किस का बच्चा है...

ये बच्चा किस का बच्चा है
ये बच्चा किस का बच्चा है
ये बच्चा काला काला सा
ये काला सा मटियाला सा
ये बच्चा भूखा भूखा सा
ये बच्चा सूखा सूखा सा
ये बच्चा किस का बच्चा है
ये बच्चा कैसा बच्चा है
      ये बच्चा कैसा बच्चा है
      जो रेत पे तन्हा बैठा है
      ना इसके पेट में रोटी है
      ना इसके तन पर कपड़ा है
      ना इसके सर पर टोपी है
      ना इसके पैर में जूता है
      ना इसके पास खिलौनों में
      कोई भालू है कोई घोड़ा है
      ना इसका जी बहलाने को
      कोई लारी है कोई झूला है
      ना इसकी जेब में धेला है
      ना इसके हाथ में पैसा है
      ना इसके अम्मी, अब्बू हैं
      ना इसके आपा, ख़ाला हैं
      ये सारे जग में तन्हा है
      ये बच्चा कैसै बच्चा है
ये सहरा कैसा सहरा है
ना इस सहरा में बादल हैं
ना इस सहरा में बरखा है
ना इस सहरा मं बाली है
ना इस सहरा में ख़ोशा है
ना इस सहरा में सब्ज़ा है
ना इस सहरा में साया है
ये सहरा भूख का सहरा है
ये सहरा मौत का सहरा है
      ये बच्चा कैसा बच्चा है
      ये बच्चा कब से बैठा है
      ये बच्चा क्या कुछ पूछता है
      ये बच्चा क्या कुछ कहता है
      ये दुनिया कैसी दुनिया है
      ये दुनिया किसकी दुनिया है
इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है
कहीं बादल घिर घिर आते हैं
कहीं चशमा है कहीं दरिया है
कहीं ऊंचे महल - अटरिया है
कहीं महफिल है कहीं मेला है
कहीं कपड़ोंके बाज़ार सजे
ये रेशम है ये दीबा है
कहीं ग़ल्ले के अम्बार लगे
सब गेंहू धान मुहैय्या है
कहीं दौलत के संदूक़ भरे
हां तांवा सोना रूपा है
तुम जो मांगो सो हाज़िर है
तुम जो चाहों सो मिलता है
इस भूख के दुख की दुनिया में
ये कैसा सुख का सपना है
वो किस धरती के टुकड़े हैं
ये किस दुनिया का हिस्सा है
      हम जिस आदम के बेटे हैं
      ये उस आदम का बेटा है
      ये आदम एक ही आदम है
      वो गोरा है वो काला है
      ये धरती एक ही धरती है
      ये दुनिया एक ही दुनिया है
      सब इक दाता के बंदे हैं
      सब बंदों का इक दाता है
      कुछ पूरब पश्चिम फ़र्क नहीं
      इस धरती पर हक़ सबका है
ये तन्हा बच्चा बेचारा
ये बच्चा जो यहां बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
क्या मुश्किल है हो सकता है
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
हां दूध यहां बहुतेरा है
इस बच्चे का कोई तन ढांके
क्या कपड़ों का कोई तोड़ा है
इस बच्चे को कोई गोद में ले
इंसान जो अब तक ज़िंदा है
फिर देखिये कैसा बच्चा
ये कितना प्यारा बच्चा है
      इस जग में सब कुछ रब का है
      जो रब का है वो सब का है
      सब अपने हैं कोई ग़ैर नहीं
      हर चीज़ में सबका साझा है
      जो बढ़ता है जो उगता है
      वो दाना है या मेवा है
      जो कम्बल है जो कपड़ा है
      जो चांदी है जो सोना है
      वो सारा है इस बच्चे का
      जो तेरा है जो मेरा है
      ये बच्चा किसका बच्चा है
      ये बच्चा सबका बच्चा है
       ( इब्ने इंशा )

















Wednesday 13 April 2011

.... अब बस करो सचिन


सचिन आप महान हैं, वर्ल्ड कप में आपका प्रदर्शन बेमिसाल रहा है। आपके इस योगदान को देशवासी कभी नहीं भूल सकते। आपको भारत रत्न मिलना ही चाहिए, आपको अब तक के 21 साल के क्रिकेट कैरियर में भरपूर मौका मिला और आपने किसी को निराश भी नहीं किया। लेकिन अब सवाल है कि आखिर कब तक, जवाब यही है सचिन अब बस... वैसे तो आपके पास इतना समय था कि इस वर्ल्डकप में ही आप अपने शतकों के शतक को पूरा कर लेते, लेकिन आप नहीं कर पाए। वर्ल्ड कप हाथ में थामना आपका सबसे बड़ा सपना था, वो पूरा हो गया। अब दूसरों को मौका दीजिए। 121 करोड़ की आबादी वाले इस देश में नए सचिन की तलाश करने और नया सचिन बनाने में अपना योगदान दीजिए। 4 करोड़ की आबादी वाले देश ऑस्ट्रेलिया और दो करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका से हमें नसीहत लेने की जरूरत है। जहां एक से बढ़कर एक खिलाड़ी देश का नेतृत्व कर रहे हैं।
पूर्व कप्तान सुनील गावास्कर का मानना है कि आपको ऐसे समय में संन्यास ले लेना चाहिए, जब लोग आप से पूछें कि अरे ये क्या..आपने सन्यास क्यों ले लिया? ऐसा मौका नहीं देना चाहिए कि लोग खिलाड़ी से सवाल पूछने लगें कि भइया संन्यास कब ले रहे हो। पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान खान ने 1992 में वर्ल्ड कप शुरू होने के पहले कह दिया कि ये मेरा आखिरी वर्ल्डकप है। उन्हें उस समय पता भी नहीं था कि पाकिस्तान की टीम फाइनल में पहुंचेगी, जब पाकिस्तान फाइनल में पहुंचा तो एक दिन पहले इमरान ने ऐलान किया कि ये उनका आखिरी वनडे है।
देश में ही नहीं दुनिया भर में ऐसे तमाम उदाहरण है, जब लोगों ने बेहतर फार्म में होने के दौरान खुद को मैदान से बाहर कर लिया। वजह सिर्फ ये कि नौजवानों को मौका मिले। ताजा उदाहरण श्रीलंका के फिरकी गेंदवाज मुथैया मुरलीधरन को ले लें। वो श्रीलंका की वर्ल्ड कप टीम में इसलिए शामिल थे कि उनका प्रदर्शन अभी भी वहां के और स्पिनरों के मुकाबले बेहतर है, लेकिन उन्होंने भी पहले ही ऐलान कर दिया कि ये वर्ल्डकप उनका आखिरी टूर्नामेंट है और उन्होंने टूर्नामेंट खत्म होने के साथ ही एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच को अलविदा कह दिया।
सचिन, कई मैच ऐसे रहे हैं, जिसमें टीम आपके बिना उतरी है और कामयाब भी रही है। अब आपको सोचना है कि उभरते हुए  खिलाड़ी को मौका देना है या फिर उनके अवसर को खत्म करना है। वैसे तो आपको जानते हैं कि बीसीसीआई और चयनकर्ताओं ने यह कह कर आपको सम्मान दिया है कि आप जब तक चाहें, खेल सकते हैं। साथी खिलाड़ी भी आपको भगवान से कम नहीं मानते। इसलिए आप भी भगवान का धर्म निभाएं और ऐसा फैसला करें जिससे युवाओं और उभरते हुए खिलाड़ियों का रास्ता साफ हो।
सचिन, अगर आप को लगता है कि अगला वर्ल्ड कप भी भारत के हाथ में रहे तो अभी से भारत के 'भविष्य की टीम' की रूपरेखा तैयार करनी होगी। आप को पता है कि गंभीर ओपनर बैट्समैन हैं, पर आपकी वजह से उन्हें नंबर तीन पर खेलना पड़ रहा है। इसी तरह अन्य खिलाड़ियों की भी बैटिंग लाइन पटरी पर नहीं रह पाती है। आपकी वजह से कई बल्लेबाज बाहर बैठने को मजबूर हैं। इसलिए ये अच्छा मौका है कि आप टीम इंडिया के खिलाड़ियों को आशीर्वाद दें और देश के साथ आप भी नए सचिन की तलाश में जुट जाएं।