Thursday, 14 April 2011

अमौसा क मेला... स्व. कैलाश गौतम

 ई भक्ति के रंग में रंगल गांव देखा
धरम में  करम में सनल गांव देखा
अगल में बगल में सगल गांव देखा
अमौसा नहाए चलल गांव देखा।
एहू हाथे झोरा, उहू हाथे झोरा
अ कांन्हीं पर बोरी,  कपारे पर बोरा
अ कमरी  में केहू रजाई में केहू
अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू । (पतली चद्दर)

अ आजी रमावत हईं गुड़ देखा
हंसत हउवैं बब्बा तनि जोड़ देखा
घुंघटवै से पूंछे पतोहिया की अइया
गठरिया में अब का रखाई बतइया।

एहर हव्वै लुक्गा (साडी) उहर हव्वें पूडी
रमायन के लग्गे हौ मड़ुआ के धूडी
अ चाउर अचूरा किनारे के ओरी
औ नयका चप्पलवा अचारे की ओरी
अमौसा का मेला--- अमौसा का मेला।
मचल हव्वै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री गुर्रा उहर लोली लोला
अ बिच्चे में हव्वै शराफत से बोला।
चपायल हवै केहू दबायल है केहू
अ घंटन से ऊपर टंगायल है केहू
केहू हक्का बक्का केहू लाल पीयर
केहू फनफनात हव्वै कीरा के नीयर
अ बब्प्पा रे बप्पा अ दैइया रे दैइया
तनी हम्मे आगे बढ़ै देते भैय्या।
छिड़ल हौ हिताई नताई का चर्चा
पढ़ाई सिखाई कमाई के चर्चा
दरोगा के बदली करावत हव केहू
अ लग्गी से पानी पियावत है केऊ
 अमौसा क मेला.. अमौसा क मेला.।
जेहर देखा ओहरै बढत हव्वै मेला
अ सर्गे के सीढ़ी चढत हव्वै मेला
बड़ी हव्वै सांसत न कहले कहाला
मुडै मूड़ सगरौ न गिनले गिनाला।

एही भीड़ में संत गिरहस्थ  देखा
सबै अपने अपने में हौ व्यस्त देखा
अ टाई में केहू त टोपी में केहू
अ झूंसी में केहू अलोपी में केहू
अखाड़न क संगत, अ रंगत ई देखा
बिछल हव हजारन क पंगत ई देखा।
कहीं रासलीला कहीं प्रवचन हव
कहीं गोष्ठी हव कहीं पर भजन हव
केहू बुढिया माई के कोरा, ( गोद)  उठावे
अ त्रिवेड़ी मैया में गोता लगावे
कलप वास में घर के चिंता लगल हव
कटल गांव खरिहाने वैसै पड़ल हव
अमौसा क मेला...अमौसा क मेला।
गुलब्बन की दुल्ही चलें धीरे धीरे
सजल देह जैसे हो गौने की डोली
हंसी हव बताशा शहद हव्वै बोली
अ देखैलीं ठोकर बचावैंली घक्का
मनैं मने मकई, मनै मन फुटेहरा।

निहारैं ली मेंला, सिहा के चिहा के
सबैं देवी देवता मनावत चलेंली
अ नररियल पर नरियल चढावत चलैंलीं  ..
किनारे से देखैं इशारे से बोलें  ..
कहीं गांठ जोड़ैं क हीं गांठ खोलैं,
बड़े मनसे मंदिर में दर्शन करेंलीं
औ दूधे से शिव जी के अर्घा भरेंलीं।
बहुच दिन पे भेटैंली चंपा चमेली--
अ बचनप के दीनों हईं पक्की सहेली
ई आपन सुनावें--उ आपन सुनावें
दुनो आपन गहना गदेला गिनावें
असो का बनवलू असों वनऊलू
तू जीजा का फोटो न अब तक पठैइलू।
न उन्हें कोई रोकैं न उ इन्हें कोई टोकें
दूनों अपने अपने दूल्हा के तारीफ झोकें
हम्में अपने सासु की पुतरी तू जान्या
अ हम्में ससुर जी के पगड़ी तू जान्या
शहरियौ में पक्की देहतियों में पक्की
चलत हव्वै टैंपों चटलवत हुव्वै चक्की
मनैं मनैं जरैं और गड़ैं लगली दूनो
भइल तूतू मैं मैं लड़ैं लगलीं दूनौ
अ साधू छुड़ावें सिपाही छुड़ावैं
अ हलवाही जैसे कराही छुड़ावैं
अमैसा क मेला अमौसा क मेला।..
कलौटा के माई के झोरा हेरायल
अ बुद्धू के बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया के माई टुकुलिया के जोहै
बिजुलिया के भाई बिजुलिया के जौहै
मचल हव्वै मेला में सगरौ ढुढाई
चमेला के बाबू चमेला के माई।
गुलबिया तभत्तर निहारत चलेली
मुरहुआ मुरहुआ पुकारत चलेली
अ छोटकी बिटियवा के मारत चलेले
बिटिव्वै पे गुस्सा उतारत चलेले
गोवर्धन के सरहज किनारे भिटइलीं
गोवर्धन के संघे पउंड के नहइलीं
घरै चलता पाहुन दही गुड़ खियाइत
भतीजा भइल हो भतीजा देखाइत
उहै फेंक गठरी परइलैं गोवर्धन (भाग गए)
न फिर फिर दिखइलैं, धरैंलैं गोवर्धन
अमोसा क मेला अमौसा का मेला।
केहू शाल देखै अऊ दोशाला मोलावे
केहू बस अटैची के ताला मोलावे
केहू चायदानी प्याला मोलावै
सोथोरा के केहू मसाला मोलावे।

नुमाइश में जाते बदल गईलीं भोजी
अ भइया से आगे निकल गईलीं.भौजी..
हिंडौला जब आईल मचल गईलीं भौजी
अ देखते ड्रामा उछल गइलीं भौजी

अ भईया बेचारू जोड़त हव्वैं खर्चा
भुलइलै न भूलै पकौड़ी के मर्चा
बिहानै कचेहरी कचेहरी के चिंता
बहिनिया के गौना मसेहरी के चिंता
फटल हव्वै कुर्ता टुटल हव्वै जूता
खलित्ता में खाली किराए का बूता
तबौ पीछै पीछै चलत जात हौव्वन
गदौरी में सुर्ती मलत जात हौव्वन
अमौसा क मेला अमौसा क मेला।

6 comments:

  1. नुमाइश में जाते बदल गईलीं भोजी
    अ भइया से आगे निकल गईलीं.भौजी..
    हिंडौला जब आईल मचल गईलीं भौजी
    अ देखते ड्रामा उछल गइलीं भौजी...

    महेंद्र जी ,
    बहतरीन अभिव्यक्ति। शायद अवधि में लिखी है ये रचना । सुन्दर भाव के साथ मोहक प्रस्तुति।

    .

    ReplyDelete
  2. mahendra ji
    pahli baar aapke blog par aai hun,par waqai man gad -gad ho gaya.jis tarah se vitar me aapne amousa ka mela kavaran kiya hai vah sach me bahut hi kabile tarrif hai, usme allahabad ke mandiro ki jhalak bhi milti chunki vah mear home town hai is liye mujhe iski jaankaari hai.filhaal to lucknow me rahti hun.
    aapki bhashhha hi puri tarah mai samajh gai kyon ki mai bhi baliya jile se sambandhit hun.
    bahut hi behatreen v-shandaar prastuti ke liye aapko hardik badhai
    naman
    poonam

    ReplyDelete
  3. सुंदर भाव ...प्यारी रचना .... आंचलिक शब्दों ने रचना को और भी प्रभावी बना दिया है.....

    ReplyDelete
  4. दृश्यात्मकता से परिपूर्ण सुंदर भावाभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भाव के साथ बेहतरीन प्रस्तुति......

    ReplyDelete
  6. Aapko padhate huye apne ganv ka mera v ghum liya. apni bhasha me masti v kar liya...achchha laga...badhai...

    ReplyDelete

जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।