Wednesday, 20 April 2011

ये खोटे सिक्के



आदमी सिक्के को
सिक्के आदमी को
खोटा बनाते हैं।
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।
और आजकल सिक्के
टकसाल में नहीं
आदमी की हथेली
पर ढल रहे हैं।
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।

17 comments:

  1. और बच्चे
    मां की गोद में नहीं
    सिक्के की परिधि में
    पल रहे हैं। ek katu satya hai ye....bhoutikata ne sach bachpan chhen liya hai...

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  2. सचमुच सब कुछ अर्थ तंत्र के निकट सिमट आया है मां का प्यार भी !

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  3. और बच्चे
    मां की गोद में नहीं
    सिक्के की परिधि में
    पल रहे हैं
    haqikat bayan kar diya aaj ki daur par ,umda .

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  4. बहुत खूब !...शुभकामनायें !!

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  5. हर शब्द सच्चा और सार्थक ....सब कुछ सिक्कों की धुरी पर ही घूम रहा है.....

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  6. आदमी की हथेली
    पर ढल रहे हैं।
    और बच्चे
    मां की गोद में नहीं
    सिक्के की परिधि में
    पल रहे हैं।
    bahut sundar abhivyakti.

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  7. sach hai...sikke ki paridhi mai pal rahe hai

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  8. क्या बात है?

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  9. sunder rachna, aur sach hai aajkal balak bahut chhoti umr se hi paise ka mahtv jaan lete hain.

    shubhkamnayen

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  10. बहुत सुन्दर बात कही है आपने. बधाई हो!

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  11. इसे मै आधा सच नही पुरा का पुरा सच कहना पसंद करुंगा!

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  12. Fir khote sikke me dhal rahe hain..Sahi hai...

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  13. aaj jeevan ki vastvikata kya hai......ye aapne chand shabdon me bata diya.bahut-bahut badhai.

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  14. कल 20/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  15. आदमी सिक्के को
    सिक्के आदमी को
    खोटा बनाते हैं।
    वो एक दूसरे को
    छोटा बनाते हैं।


    बहुत बढियां
    शुभकामनाएं !

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  16. और बच्चे
    मां की गोद में नहीं
    सिक्के की परिधि में
    पल रहे हैं।
    bahut khub

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।