आदमी सिक्के को
सिक्के आदमी को
खोटा बनाते हैं।
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।
और आजकल सिक्के
टकसाल में नहीं
आदमी की हथेली
पर ढल रहे हैं।
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।
जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।
और बच्चे
ReplyDeleteमां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं। ek katu satya hai ye....bhoutikata ne sach bachpan chhen liya hai...
सचमुच सब कुछ अर्थ तंत्र के निकट सिमट आया है मां का प्यार भी !
ReplyDeleteऔर बच्चे
ReplyDeleteमां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं
haqikat bayan kar diya aaj ki daur par ,umda .
बहुत खूब !...शुभकामनायें !!
ReplyDeleteहर शब्द सच्चा और सार्थक ....सब कुछ सिक्कों की धुरी पर ही घूम रहा है.....
ReplyDeleteआदमी की हथेली
ReplyDeleteपर ढल रहे हैं।
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।
bahut sundar abhivyakti.
sach hai...sikke ki paridhi mai pal rahe hai
ReplyDeleteक्या बात है?
ReplyDeletesunder rachna, aur sach hai aajkal balak bahut chhoti umr se hi paise ka mahtv jaan lete hain.
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत सुन्दर बात कही है आपने. बधाई हो!
ReplyDeleteइसे मै आधा सच नही पुरा का पुरा सच कहना पसंद करुंगा!
ReplyDeleteFir khote sikke me dhal rahe hain..Sahi hai...
ReplyDeleteaaj jeevan ki vastvikata kya hai......ye aapne chand shabdon me bata diya.bahut-bahut badhai.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना!
ReplyDeleteकल 20/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आदमी सिक्के को
ReplyDeleteसिक्के आदमी को
खोटा बनाते हैं।
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं।
बहुत बढियां
शुभकामनाएं !
और बच्चे
ReplyDeleteमां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि में
पल रहे हैं।
bahut khub