Saturday 26 May 2012

शाम होते ही टल्ली हो जाता है अन्ना का गांव ... ( पार्ट 1)


मुझे लगता था कि अब अन्ना के बारे में मैं बहुत लिख चुका हूंबंद किया जाए ये सब, क्योंकि अन्ना और उनकी टीम की असलियत लगभग सामने आ चुकी है, भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी बातें करने वाली इस टीम पर भी वैसे ही गंभीर आरोप हैं जैसे नेताओं और नौकरशाहों पर। अच्छा चोरी चोरी होती है, इसमें ये कहना कि वो तो 1.76 लाख करोड़ डकार गया, इस बेचारी ने तो हवाई जहाज के किराए में ही चोरी की है, या ये कहें कि फलां सदस्य ने तो सरकार के महज कुछ लाख रुपये दबाए थे, वो भी जमा कर दिए। सवाल ये नहीं है, बड़ा और अहम सवाल ये है कि हमारी नियत कैसी है ? ऐसे में मैं ये कहूं कि चोर चोर मौसेरे भाई तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।

खैर छोड़िए ये बातें बहुत हो गईं, आज मैं आपके लिए कुछ नई जानकारी लेकर आया हूं। दरअसल अन्ना के गांव के बारे में इतनी बड़ी बड़ी बातें सुनकर मैं हैरान था, कि क्या वाकई  जिस गांव में अन्ना रहते हैं, वहां कोई शराब नही पीता, तंबाकू पान की दुकाने तक नहीं हैं। गांव में सबके बीच भाईचारा है। मुझे लगा जिस जगह भगवान राम पैदा हुए या फिर भगवान श्रीकृष्ण पैदा हुए वहां तो इतना भाईचारा देखने को नहीं मिलता, अगर अन्ना के गांव रालेगनसिद्दि में ये सब है तो वाकई उनका गांव किसी भगवान का गांव होगा। अच्छा आपको मालूम हो कि घर में कोई मेहमान  बता कर आएगा तो आप घर को साफ सुथरा तो करके रखते ही हैं, घर के बिगडैल बच्चे को भी समझा देते हैं कि देखो कुछ मेहमान आ रहे हैं, बिल्कुल शरारत मत करना, चुपचाप शांत होकर बैठना, जो पूछा जाए बस उसी का जवाब देना, लेकिन मेहमान अचानक  आ जाए तो.. हाहाहहाहा...।

उसी तरह जब कहीं हम अपनी टीम के साथ होते हैं तो कैमरा देखते सब खुद अनुशासित हो जाते हैं और कैमरे के सामने बनावटी बातें शुरू कर देते हैं। लिहाजा मेरे मन में आया कि मैं एक बार जब गांव में कोई ऐसी हलचल ना हो कि मीडिया का वहां डेरा हो तब उनके गांव खाली हाथ जाता हूं और यूं ही घूमकर लोगों से बातचीत कर सच जानने की कोशिश करुंगा। यही सोचकर मैं पुणे पहुंच गया। एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी वाले से बात कर रहा था कि अन्ना के गांव चलना है और रात वहां या आसपास कोई होटल होगा तो वहां रुकूंगा और अगले दिन यहीं एयरपोर्ट पर छोड़ देना। ड्राईवर ने कहा कि चार हजार रुपये लूंगा, लेकिन आपने बिल अधिक पैसे का लिया, जो 30 प्रतिशत मुझे और देना होगा। बिल अधिक का मतलब पूछा तो उसने बताया कि अन्ना आंदोलन जब से शुरु हुआ है बहुत सारी टीमें आती हैं, जो पैसे देते हैं उससे कई गुना ज्यादा का बिल बनवाते हैं। सच पूछो तो पहला झटका एयरपोर्ट पर ही लगा और मैने इसी ड्राईवर को साथ ले लिया कि इस कुछ ज्यादा मालूम होगा।

अब एयरपोर्ट से हम अन्ना के गांव के लिए रवाना हो गए, शहर से बाहर निकले तो ड्राईवर ने पूछा आप मीडिया से हैं। मैने मना किया नहीं, मैं तो दिल्ली से आया हूं, बस यूं ही अन्ना का गांव देखने का मन हो गया। ड्राईवर के बाडी लंग्वेज से मुझे साफ लगा कि वो मेरी बात  से सहमत नहीं है, फिर भी खामोश रहा। थोड़ी देर बाद बोला सर आप चलते समय ही पहले होटल बुक करा लें, वरना कई बार रात में दिक्कत हो जाती है। गांव से पहले शिरूर में होटल सारंग पैलेस है, (होटल का नाम जानबूझ कर बदला हूं) रात बिताने के लिए ठीक है। मैंने भी कहा ठीक है। होटल पहुंचे और कमरे के बारे में जानकारी कर ही रहा था, तो उसने सबसे पहले मैनेजर ने ये बताया कि भाईसाहब मैं आपको होटल का बिल सादे कागज पर दे पाऊंगा, क्योंकि दो महीने में मीडिया के इतने लोग आए और लोगों ने बिल बुक से रसीदें फाड़ लीं। एक कमरे मे कई लोग रुकते थे और कई कई बिल फाड़ ले जाते थे, अब बिल छपने को गए हैं, लिहाजा हम बिल नहीं दे पाएंगे।

मैं हैरान था कि ईमानदारी के आंदोलन को कवर करने आए थे और बेईमानी करते रहे मीडिया वाले। यहां अब मीडिया की चर्चा की जाए तो सच में पूरी किताब लिखी जा सकती है। बेचारे बहुत मुश्किल में थे, यहां की सही तस्वीर दें तो दिल्ली में बैठे बास नाराज होते थे, यहां कुछ ज्यादा बोले तो गांव वाले विफर जाते  थे। गांव के दुकानदार ने बताया कि दिल्ली में अन्ना का अनशन शुरू हुआ तो रालेगनसिद्धि मे बैठे रिपोर्टर क्या करें ? झट से सौ पचास आदमी गांव के पकड़े और बैठा दिया पद्मावती मंदिर परिसर में, और  शोर मचाने लगे कि यहां भी अनशन शुरू हो गया। पहले दिन तो टीवी पर दिखने के लिए तमाम लोग जमा हो गए, पर अगले दिन क्या करे, कोई आदमी बैठने को तैयार ही नहीं। रिपोर्टरों ने फैसला किया कि चलो आज गांव के स्कूली बच्चों को पकड़ लाते हैं, बेचारे बच्चे फंस गए। पर ये ज्यादा दिन तो चल नहीं सकता था, क्योंकि अगले दिन जब गांव वालों से बैठने की बात हुई तो उन्होंने पद्मावती मंदिर परिसर में बैठने के लिए रिपोर्टरों से पैसे की मांग कर दी। लोगों  का कहना था कि आप तो यहां  मलाई काट रहे  हैं, हम क्यों आपके मोहरे बनें। रिपोर्टर बेचारे क्या करते, उन्होंने चैनलों में फोन करके बता दिया कि आज कोई अनशन पर नहीं बैठा है।

गांव की हकीकत एक एक कर मेरे सामने आ रही थी। यहां मेरी मुलाकात एक नौजवान से हुई। वैसे मैं उसका नाम भी लिख सकता हूं, पर उनके गांव वाले जान गए तो उस बंदे की खैर नहीं। लिहाजा इशारा कर देता हूं कि इसके एक पैर में थोड़ी दिक्कत है, जिससे चलने मे इसे परेशानी होती है। अगर इसके अंदर लालच को निकाल दें तो वाकई ये एक अच्छा नौजवान है। थोड़ी देर तक गांव के बारे में बताने के बाद इसने मुझसे  दस रुपये मांगे, मैने कहा क्या हो गया? बोला गुटका खाना है, मैने कहा कि गुटका तो गांव में मिलता ही नहीं, इसके पहले की वो सनक जाता, मैने 50 रुपये का नोट उसे थमा दिया। थोड़ी देर में वो वापस आया और ईमानदारी से 40 रुपये मुझे वापस कर दिए और बताया भाईसाहब दारु तो गुजरात में भी बंद है, फिर तो वहां नहीं मिलनी चाहिए, पर मिलती है ना। रालेगांवसिद्धि में भी नशे का कोई सामान ऐसा नहीं है जो नहीं मिलता है, बस कीमत कुछ अधिक चुकानी पड़ती है। वैसे मैने देखा कि पूरे गांव में जगह जगह गुटके  के पाउच मिल जाएगे। इतना ही नहीं शाम होते ही आधा से ज्यादा गांव टल्ली होकर घूमता फिरता है। हैरानी की बात तो ये है कि नाम सिर्फ लोग टल्ली होकर गांव में घूमते हैं, बल्कि अन्ना जहां रहते हैं पद्मावती मंदिर के आस पास भी ठरकी बंदे आपको मिल जाएंगे। मुझे ताज्जुब होता है कि जब गांव में नशाखोरी का सभी सामान आसानी से मिलता है तो किस आधार पर अन्ना कहते कि उनके गांव में कुछ नहीं होता ?

बात नशाखोरी  की चल रही है तो एक सच्ची घटना भी आपको  बताते चलें। अन्ना की एक आदत है वो गांव के हर अच्छे काम का श्रेय खुद ले लेते हैं, जबकि सच्चाई कुछ और होती है। इस गांव के 30 साल से भी ज्यादा समय तक सरपंच रहे हैं सदाशिव महापारी। आज भी सरपंच इनके ही बेटे जय सिंह हैं। 1982 में नशामुक्ति की बात चली तो सदाशिव महापारी ने गांव वालों के साथ ये फैसला किया कि यहां अब नशे का सामान नहीं बिकेगा। उन्होने सभी दुकानदारों से कहा कि वो पान, बीड़ी, सिगरेट और तंकाबू सभी चीजें लेकर पंचायत में आएं। सभी दुकानदारों ने सरपंच के सामने पान, बीड़ी सब चीजें जमा कर दीं। दुकानदारों से पूछा गया कि उन्हें कितने पैसे का नुकसान हुआ तो सभी के मिलाकर 2300 रुपये का नुकसान बताया। उस  समय मरापारी ने अपने पैसे से इन सबका भुगतान किया और दुकानदारों को हिदायत दी गई कि अब ये सामान यहां नहीं बिकना चाहिए।

अब मजेदार वाकया सुनिये। पंचायत में कहा गया कि जमा  हुए सिगरेट,  बीड़ी, तंबाकू का आखिर किया  क्या जाए ? तो आज देश भर में ईमानदारी की अलख जगाने निकले हैं,  इस अन्ना ने कहा कि ये सब बगल वाले गांव में बेच दिया जाए। लोग अन्ना की बात सुनकर हंस पड़े,  बेचारे अन्ना  झेंप गए। बाद  मे सरपंच ने फैसला सुनाया कि इसे यहीं सबके सामने जला दिया जाए, ये बात सबकी समझ में आई और पंचायत की  बैठक के दौरान ही इसे जला दिया गया।
इस गांव में एक भ्रष्ट्राचार विरोधी जन आंदोलन न्यास नामक संस्था है। इसकी अगुवाई अन्ना ही करते हैं। कहा जा रहा है कि अगर ईमानदारी से इस संगठन की जांच हो जाए, तो  यहां काम करने वाले तमाम लोगों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। आरोप तो यहां तक लगाया जा रहा है कि भ्रष्टाचार का एक खास अड्डा है ये दफ्तर। यहां एक साहब हैं, उनके पास बहुत थोड़ी से जमीन है, उनकी मासिक पगार भी महज पांच हजार है, लेकिन उनका रहन सहन देखिए तो आप हैरान हो जाएगा। हाथ में 70 हजार रुपये के मोबाइल पर लगातार वो उंगली फेरते रहते हैं। हालत ये है कि इस आफिस के बारे में खुद रालेगनसिद्दि के लोग तरह तरह की टिप्पणी करते रहते हैं।
 
आज आप इस गांव की हालत सुनेगें तो चौंक जाएंगे। हां मैं इस बात की तारीफ  करता हूं  कि गांव  की ऊसर भूमि (बंजर जमीन) को उपजाऊ बना दिया गया है, आधुनिक संसाधनों  का इस्तेमाल सिचाई की मुकम्मल व्यवस्था की गई है। पैदावार के मामले में गांव के किसान रिकार्ड पैदावार कर रहे हैं। यहां से बड़ी मात्रा मे सब्जी और अन्य सामानों को बड़े शहरों मे भेजा जाता है। इन सबके बाद भी हम ये नहीं कह सकते कि गांव बहुत खुशहाल है। गांव के लोग बहुत नाराज हैं, उन्हें लगता है कि अपने गांव का भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो रहा, भ्रष्टाचारियों के साथ अन्ना देश का भ्रमण कर रहे हैं, बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं। इस गांव में करीब 22 घटे हमने बिताए, मैने देखा कि गांव का आदमी इतना निकम्मा हो चुका है कि अगर उससे आपने किसी के घर का पता भी पूछ लिया तो उसके एवज में वो पैसे मांगता है। इस गांव में जो भी आदमी आपसे थोड़ी देर भी बात करेगा, उसका मीटर शुरू हो जाता है और वो आपसे पैसे की मांग करेगा। सच बताऊं तो आप गांव में अगर तीन घंटा बिताने का मन बनाकर गए हैं तो आधे घंटे में आप के सामने गांव  की जो असल तस्वीर सामने आएगी, उसके बाद आप पांच मिनट यहां रुकना पसंद नहीं करेंगे।    क्रमश......

( अगली किस्त में मैं आपको बताऊंगा कौन है असली अन्ना, अन्ना की असल सच्चाई,  अन्ना के रहन सहन का राज, क्यों डरते हैं  लोग अन्ना से, अन्ना के पीए सुरेश पढारे की हकीकत, बताऊंगा नहीं है अन्ना संत,  मंदिर की कुटिया  मे रहने का दावे मे कितनी सच्चाई.. ये सब जानने के लिए इंतजार कीजिए अगली किस्त.... )

Thursday 24 May 2012

ऊंचे लोग ऊंची पसंद ....

जी हां, आज यही कहानी सुन लीजिए, ऊंचे लोग ऊंची पसंद । मेरी तरह आपने  भी महसूस किया होगा  कि एयरपोर्ट पर लोग अपने घर या मित्रों से अच्छा खासा अपनी बोलचाल की भाषा में बात करते रहते हैं, लेकिन जैसे ही हवाई जहाज जमीन छोड़ता है, इसमें सवार यात्री भी जमीन से कट जाते हैं और ऊंची ऊंची छोड़ने लगते हैं। मुझे आज भी याद है साल भर पहले मैं  इंडियन एयर लाइंस की फ्लाइट में दिल्ली से  गुवाहाटी जा रहा था । साथ वाली सीट पर  बैठे सज्जन  कोट टाई में थे, मैं तो ज्यादातर जींस टीशर्ट में रही रहता हूं। मैंने उन्हें कुछ देर पहले एयरपोर्ट पर अपने घर वालों से बात करते सुना था, बढिया राजस्थानी भाषा में बात कर रहे थे। लेकिन हवाई जहाज के भीतर कुछ अलग अंदाज में दिखाई देने लगे। सीट पर बैठते ही एयर होस्टेज को कई बार बुलाकर तरह तरह की डिमांड कर दी उन्होंने । खैर मैं समझ गया,  ये टिपिकल केस है । बहरहाल थोड़ी देर बाद ही वो  मेरी तरफ मुखातिब हो गए ।

सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजी में मेरा नाम पूछा तो  मैने उन्हें  बताया कि गुवाहाटी  जा रहा हूं । उन्होंने  फिर दोहराया मैं तो आपका नाम जानना चाहता था, मैने फिर गुवाहाटी ही बताया। उनका चेहरा सख्त पड़ने लगा,  तो  मैने उन्हें बताया कि मैं  थोडा कम सुनता  हूं और  हां अंग्रेजी तो बिल्कुल नहीं जानता हूं । इस समय उनका  चेहरा देखने लायक था । बहरहाल दो बार गुवाहाटी बताने पर उन्हें मेरा नाम जानने में कोई इंट्रेस्ट नहीं रह गया । कुछ देर बाद उन्होंने कहा कि आप काम  क्या करते हैं। मैने कहा दूध बेचता हूं । दूध बेचते हैं ? वो  घबरा से गए, मैने कहा क्यों ? दूध बेचना गलत है क्या ?  नहीं नहीं  गलत नहीं है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप क्या कह रहे हैं,  मतलब आपकी डेयरी है ? मैने कहा बिल्कुल नहीं  दो भैंस  हैं, दोनो से 12 किलो दूध होता है, 2 किलो घर के इस्तेमाल  के लिए रखते हैं और बाकी  बेच देता हूं।

पूछने  लगे  गुवाहाटी  क्यों  जा रहे हैं.. मैने कहा कि एक भैंस  और खरीदने का इरादा है, जा रहा हूं माता कामाख्या देवी का आशीर्वाद लेने । मित्रों इसके बाद  तो उन सज्जन के यात्रा की ऐसी बाट  लगी कि मैं  क्या बताऊं । दो घंटे की  उडान के दौरान बेचारे अपनी सीट में ऐसा सिमटे रहे कि कहीं वो  हमसे छू ना जाएं । उनकी मानसिकता मैं  समझ रहा  था । उन्हें लग रहा था कि बताओ  वो एक  दूध बेचने वाले  के साथ सफर कर रहे हैं । हालत ये हो गई मित्रों की पूरी यात्रा में वो अपने दोनों हाथ समेट कर अपने पेट पर ही रखे रहे । मैं बेफिक्र था और  आराम  से सफर का लुत्फ उठा रहा था।

मजेदार बात तो यह रही कि शादी के जिस समारोह में मुझे जाना था, वेचारे वे भी वहीं आमंत्रित थे । यूपी कैडर के एक बहुत पुराने आईपीएस वहां तैनात हैं । उनके बेटी की शादी में हमदोनों ही आमंत्रित थे । अब शादी समारोह में मैने भी शूट के अंदर अपने को  दबा रखा था, यहां मुलाकात हुई, तो बेचारे खुद में ना जाने क्यों  शर्मिंदा महसूस कर रहे थे ।  वैसे उनसे रहा नहीं  गया और चलते चलते उनसे हमारा परिचय भी हुआ और फिर काफी देर बात भी । वो  राजस्थान कैडर के आईएएस थे, उन्होंने मुझे अपने प्रदेश में आने का न्यौता भी दिया, हालाकि  मेरी उसके  बाद से फिर बात नहीं हुई।


नोट... वैसे आप ये लेख एक बार पढ़ चुके हैं, लेकिन मुझे सच्ची घटना पर आधारित ये लेख बहुत पसंद है और मैं जब भी मित्रों के बीच होता हूं और हमारे रोचक सफर की बात होती है, तो  मैं इसकी चर्चा जरूर करता हूं। मुझे लगा कि पिछले कुछ समय से विवादों वाले पोस्ट पढकर हम सबका मन खराब है, तो लीजिए जायकेदार पोस्ट ....

Sunday 20 May 2012

सम्मान से बहुत बड़ा है आत्म सम्मान ...


च कहूं तो इस समय देश की ही ग्रह दशा ही खराब है। हर जगह गंदगी और बेईमानी का का बोलबाला है। लगता है कि सच्चाई और ईमानदारी आज कल किसी हिल स्टेशन  पर बैठकर देश में हो रहे तमाशे को देख रही हैं। बात करें राजनीति की  तो जेल में बंद राजा छूटते ही संसद भवन पहुंच गए और सबसे पहले उन्होंने कलमाड़ी से हाथ मिलाया, आंखो आंखो में कुशल मंगल पूछ लिया। खेल के मैदान में जो हो रहा है वो भी किसी से छिपा नहीं है। अमेरिका में शाहरुख खान के कपड़े उतरवा कर सुरक्षाकर्मियों ने जांच की तो वहां ये जनाब गीद़ड बने रहे, मुंबई में सुरक्षाकर्मी ने कुछ कहा तो जिंदा गाड़ने की बात करने लगे। अब रही सही कसर माल्या टीम के आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ल्यूक पामर्शबैक ने अमेरिकी लड़की के साथ दुर्व्यवहार कर पूरी कर दी। राष्ट्रपति चुनाव में भी कुत्ता फजीहत शुरू हो गई है, शर्मिंदगी की बात ये है कि एक पढ़ा लिखा आदमी कह रहा है कि इस बार किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए। अब राष्ट्रपति जैसे अहम पदों पर भी जात पात की बात खुल कर करके शर्मनाक हालात पैदा किए जा रहे हैं। कल को कोई कहेगा कि विकलांग कभी राष्ट्रपति नहीं बना तो क्या विकलांग को बना देंगे। सेना में सबसे ज्यादा ईमानदारी की बात होती थी, बेचारे ईमानदार सेनाध्यक्ष के पीछे आर्म्स दलाल पड़ गए और उन्हें साल भर पहले ही रिटायर होने के लिए मजबूर कर दिया गया। बाजार की रौनक भी गायब है, डालर के मुकाबले रुपया अब तक के न्यूनतम स्तर यानि एक डालर की कीमत आज 54.54 रुपये हो गई है। चलिए भूमिका बहुत हो गई, विषय पर आते हैं।

राजनीति में सौ सौ जूते खाने पड़ते हैं,
कदम कदम पर सौ सौ बाप बनाने पड़ते हैं।

हाहाहाह... जब सब जगह गिरावट और अवमूल्यन हो रहा हो तो बेचारा ब्लाग जगत अपनी अस्मिता कैसे बचाए रख सकता है। ऐसा तो है नहीं कि ये किसी मजबूत आधार पर टिका है, यहां कोई ऐसा है, जिसकी सब रिस्पेक्ट करते हों। दूसरों की तो बात ही अलग है, खुद अभी क्या कह रहे हैं, थोड़ी देर बाद क्या कहेंगे, ये कहना भी मुश्किल है। अब ग्रह और नक्षत्रों के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है, हां बहन संगीता पुरी अगर कुछ मदद कर सकें तो वाकई कुछ सकारात्मक हल निकल सकता है। रास्ते से भटके लोगों को ज्योतिष ज्ञान के जरिए कम से कम सही रास्ता तो पुरी दीदी बता ही सकती हैं, मानना और ना मानना उनके हाथ में तो है नहीं। अगर लोगों ने उनके रास्ते को अपनाया तो हो सकता है कि कुछ परिवर्तन देखने को मिले,  वरना क्या है, जैसे चल रहा है, चलता रहेगा।

आप सब जानते हैं कि शरीर में अगर सबसे महत्वपूर्ण कोई हड्डी है तो उसे रीढ़ की हड़डी कहते हैं। इस हड्डी के बिना शरीऱ की कल्पना करने भर से मन घबरा जाता है। लेकिन मुझे हैरानी होती है कि इस हड्डी के रहते हुए भी तमाम ब्लागर्स का व्यवहार ऐसा दिखाई दे रहा है जैसे उनके शरीर में इस हडडी ने काम करना ही बंद कर दिया है या फिर ये हड्डी उनके शरीर में है ही नहीं। सच्चाई ये है कि जब आप गलत होते हैं, तो आप कितना भी खुद को मजबूत दिखने की कोशिश करें, आपकी कमजोरी बार बार आपके सामने आकर खड़ी हो जाती है और चेताती है कि ये गलत कर रहे है। आमतौर पर लोग यहीं अपनी गल्तियों को सुधार लेते हैं, लेकिन अपने मन की न सुनकर भी जब लोग गल्तियां करने पर अमादा रहते हैं तो ऐसे लोग ईमानदार भी नहीं रह जाते। वजह साफ है कि जो आदमी अपने मन की सुनकर भी खुद को दुरुस्त नहीं करता, वो दूसरों की सुनकर भला खुद को क्यों दुरुस्त करेगा। क्योंकि फिर तो उसमें अहम आ जाता है कि ये हैं कौन जो मुझे सलाह दे रहे हैं।

ये वो स्थिति होती है, जहां आदमी के खुद का विवेक शून्य हो जाता है, अब वो कोशिश करता है जनसमर्थन जुटाने का। आप जानते ही हैं कि जनसमर्थन के लिए नीति नियम तो कोई मायने रखते नहीं। क्योंकि इसकी भी सुननी पड़ेगी और उसकी भी। इन  दोनों  के बीच में हालत ये होती है कि बस बेचारी सच्चाई और ईमानदारी पिसती रहती है। आप जानते हैं ईश्वर को पता है कि आदमी ज्यादा ज्ञानी हुआ तो वो ईश्वरीय सत्ता को भी चुनौती दे सकता है, लिहाजा उन्होंने दो अधिकार अपने पास रखे। आदमी का जन्म और मृत्यु। मतलब हम चाहें या ना चाहें जन्म लेगें ही और न चाहते हुए भी मृत्यु भी तय है। अब हमारे पास जन्म से मृत्यु के बीच जो समय है, उसी के दायरे में रहकर अपने जीवन कर्तव्य का निर्वहन करना होगा। देखिए ऐसा नहीं है मैं ज्ञान की कोई ऐसी बातें कर रहा हूं जो आपको नहीं पता है, बल्कि आप सब हमसे ज्यादा जानने वाले लोग हैं। बस फर्क इतना है कि मेरी रीढ़ की हड्डी बहुत मजबूत है, लिहाजा मैं स्वाभिमान से कत्तई समझौता नहीं करता। फिर मैं जिस प्रोफेशन में हू, यहां मेरी रोजाना तरह तरह के लोगों से मुलाकात होती है। इस दौरान मैं देखता हूं कि नेता या नौकरशाह कितना भी बड़ा क्यों ना हो, अगर वो ईमानदार नहीं है तो उसमें नैतिक साहस भी नहीं होता है और दो तीन सवालों के बाद ही वो डगमगा जाता है।

कुछ ऐसी ही हालत आज परिकल्पना परिवार की देख रहा हूं। दशक के ब्लागर के बारे में मेरी एक सहज टिप्पणी थी कि ये मतदान की प्रक्रिया वाकई ठीक नहीं है। इसमें ब्लाग के वरिष्ठ लोगों को चाहिए कि वो कुछ लोगों का नाम शामिल कर दें। हम सब  यहां सीनियर्स की रिस्पेक्ट करते हैं, वही नाम अंतिम हो जाएंगे। लेकिन जब किसी व्यक्ति का अहम पूरे सिस्टम पर भारी होता है तो वो खुद को ज्ञानवान और सामने वाले को मूर्ख समझता है। फिर ये अहम उसका उस समय साथ छोड़ देता जब उसकी  उसे बहुत ज्यादा जरूरत होती है। आज हमारे आदरणीय का अहम कहां चला गया ? लोकतंत्र की बड़ी बड़ी बातें हांकने वाले आज समझौतावादी कैसे हो गए ? हैरान करने वाली बात ये है कि एक दूसरे ब्लागर साथी ने जब कहा कि ये मतदान तो वाकई ठीक नहीं है तो 48 घंटे बाद के रुझान में भाई का नाम शामिल हो गया।  अब देखिए एक साहब का सुझाव आया कि  आपने एक भी दलित ब्लागर का नाम शामिल नहीं किया। इस सुझाव देने वाले का तो भगवान ही मालिक है, पर इस सुझाव को स्वागत योग्य बताकर हमारे आदरणीय भाई ने सम्मान की मर्यादा ही खत्म कर दी। अरे हम दशक का ब्लागर चुनने जा रहे हैं या यहां दलित, पिछडा, अल्पसंख्यक, विकलांग, सीनियर सिटिजन, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कैसर और एड्स रोगी का कोटा थोडे ही भरने जा रहे हैं ?


हर शख्स अपनी तस्वीर को बचाकर निकले,
ना जाने किस मोड़ पर किस हाथ से पत्थर निकले।



दरअसल मैने कहा ना कि जब आदमी ईमानदार ना हो तो वह क्या कह रहा है, क्या कर रहा है, खुद नहीं समझ पाता। अगर ऐसा होता तो जो बातें डा. दिव्या की हमारे भाई को आसानी से समझ में आ गईं वही बातें मैने कहीं थी तो उन्हें समझ में क्यों नहीं आई ? मैने कहा तो मुझसे कुतर्क करते रहे। तब मुझे लगा कि भगवान राम ने ठीक ही कहा था कि "भय बिन होय ना प्रीत"। क्योंकि सभी को पता है कि मैं अपनी बातें बहुत ही संयम तरीके से कहता हूं, आप माने ना माने मेरी बला से। लेकिन डा. दिव्या बहन आयरऩ लेडी है, वो पहले आराम से बात समझाने की कोशिश करतीं है, अच्छा हो कि लोग बात यहीं आसानी से समझ जाएं, वरना फिर तो उसकी खैर नहीं। क्योंकि सब जानते  हैं कि परिकल्पना से कहीं ज्यादा उनकी पाठक संख्या है। वो कुछ कहतीं है तो समझ लेना चाहिए कि ब्लाग का एक बडा तपका ये बात कह रहा है। परिकल्पना से कई गुना उनकी पाठक संख्या भी है। ऐसे में जब उन्होंने ये मु्ददा उठाया तो परिकल्पना परिवार में हडकंप मच गया। उन्हें लगा कि विरोधियों की ताकत बढ़ रही है, बस उन्हें अपने खेमें में करने की साजिश शुरू हो गई। लेकिन उनके आड़ मे जो कुछ किया जा रहा है, उससे बदबू आ रही है।

वैसे मैं बहुत ही अदब के साथ आप सबसे कहना चाहता हू कि डैमेज कंट्रोल का सबसे बेहतर तरीका यही था कि परिकल्पना परिवार आपस में बैठता और लोगों की राय जो  ब्लाग पर आ चुकी है, उसके आधार पर कुछ अहम फैसला करता। लेकिन उन्हें  लगता  है कि ब्लाग पर उनके खिलाफ कोई आंदोलन चल रहा है, लिहाजा अपनी संख्या में इजाफा करने की रणनीति बनाई जा रही है, उनका पूरा समय इसी रणनीति पर काम करने में जाया हो रहा है। वैसे इसके लिए जो कुछ किया जा रहा है, वो साहित्य समाज पर ऐसा काला धब्बा है, जिसका दाग कभी मिटने वाला नहीं। नाराज लोगों के मुंह बंद कराने के लिए उनका नाम सम्मान सूची में डाला जा रहा है। ज्यादा नाराजगी हुई तो हो सकता है कि उन्हें दिल्ली आने जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट और यहां पांच सितारा होटल का प्रबंध कर दिया जाए। वैसे ये सबके लिए तो संभव नहीं है, गुड लिस्ट वाले ही इसका लाभ उठा पाएंगे। बहरहाल अब कौन समझाए आयोजकों को ? वे कुछ लोगों को तो पांच सितारा होटल और हवाई जहाज का टिकट दे सकते हैं, पर 41 को देना तो मुझे नहीं लगता कि इनके लिए संभव होगा। फिर जिन लोगों का नाम मजबूरी मे रखा गया है, उन्हें तो तारीख बता दी जाएगी और कहा जाएगा कि वो खुद ट्रेन से पहुंचे। खैर डैमेज कंट्रोल का जो तरीका अपनाया जा रहा है उससे तो मुझे लगता है कि ये आयोजक या तो बेचारे बहुत सीधे हैं या फिर 24 कैरेट के मूर्ख। क्योंकि कोई भी ब्लागर दशक के पांच ब्लागर में नहीं चुना जाता है, तो उसे ज्यादा तकलीफ नहीं होगी, उसे लगेगा कि पांच लोगों को ही तो चुनना था, नहीं आया होगा मेरा नाम। पर अब 41 में नाम नही आया तब तो खैर नहीं। उसे लगेगा कि जरूर कुछ गडबड़झाला है। यहां मैं आपको लालू यादव का उदाहरण देना जरूरी समझ रहा हूं। बेचारे लालू ने सोचा कि अपने निर्वाचन क्षेत्र के हर गांव से एक युवा बेरोजगार को रेलवे में नौकरी दे दें। सोचा तो उन्होंने खराब नहीं था, और नौकरी दे भी दी, पर इससे पूरा निर्वाचन क्षेत्र नाराज हो गया कि इतने बड़े गांव से एक को ही नौकरी दी, पूरे गांव को लगा कि मेरे बेटे को नही दी। हालत ये हो गई कि वो अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र यानि जहां उन्होंने नौकरी दी थी वहां से चुनाव हार गए। लालू अगर इस बार दो जगह से चुनाव न लड़े होते तो बेचारे संसद भी न पहुंच पाते।

चलिए दूसरों की बातें बहुत हो गईं। अपनी बात की जाए और मेरा मानना है कि आत्मसम्मान से बढ़कर कोई सम्मान नहीं हो सकता। फिर जब मैं देख रहा हूं कि सम्मान देने वाला ही अपने आत्मसम्मान को गिरवी रख चुका है तो ये सम्मान महज छलावा, जालसाजी, डैमेज कंट्रोल से ज्यादा कुछ हो ही नहीं सकता। मैं एक बार फिर डा. दिव्या का आभारी हूं कि उन्होंने मेरे नाम का जिक्र सम्मान के लिए किया, पर मैं दिल से जानता हूं कि मैं इसके काबिल नहीं हूं, क्योंकि मेरा आत्मसम्मान अभी जिंदा है। लिहाजा मेरे नाम पर कत्तई विचार ना किया जाए। हां आयोजकों को एक सलाह और कि वो इसी तरह के शिगूफे छोड़ते रहें, जिससे लोग कम से कम खामोश रहेंगे, उनमें उम्मीद होगी कि हो सकता है उनकी भी लाटरी लग जाए। अगर आपने आयोजन के पहले ही सम्मान सूची घोषित कर दी, फिर तो भइया खैर नहीं। वैसे सच में इतना गंदा खेल पहले नहीं देखा था।

नोट.. मित्रों आप सब मेरी ताकत है, इसके बाद भी मेरी सलाह है कि अगर आप सम्मान पाना चाहते हैं तो प्लीज यहां बिल्कुल कमेंट मत कीजिए। यहां सिर्फ वो कमेंट कर सकते हैं जिनके लिए सम्मान से बढ़कर आत्मसम्मान है। मैं आपको सम्मान भले ना दिला सकूं, पर आत्मसम्मान की वो ऊंचाई जरूर दे सकता हूं, जहां से आपको ये सब जो हो रहा है बहुत छोटा और बौना लगेगा।

कबिरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ,
जो घर फूकै आपनो, चले हमारे साथ।


 

Wednesday 16 May 2012

ये है साजिश का सम्मान ...


 दो दिन में ब्लागर्स के 40 से ज्यादा फोन अंटैंड कर चुका हूं, फोन रिसीव करते ही दूसरी ओर से आवाज आती हैश्रीवास्तव जी बोल रहे हैं, हां बोल रहा हूं, बहुत बहुत मुबारकबाद। फिर वो अपना परिचय देते हैं, बात आगे बढ़ती है। मैने पहले दो चार फोन अटैड किए और दूसरी ओर से मुझे मुबारकबाद दी गई तो मैं हैरान हो गया कि आखिर ऐसी कौन से खुशी है, जो मुझे नहीं मालूम और हमारे ब्लागर बंधुओं को इसकी जानकारी हो गई। बहरहाल बात-चीत में पता चला कि परिकल्पना के चुनाव के तरीकों पर मेरा जो संवाद रविंद्र प्रभात से टिप्पणी के जरिए हुआ ये इनके भी दिल की आवाज थी, लेकिन इनमें से कुछ लोग डरते हैं और कुछ लोग इस टीम से बात करना ही पसंद नहीं करते। अच्छा मैं यहां कोई मोर्चा लेने तो आया नहीं हूं, मैने तो रवींद्र जी की सूचना पर मन में उठी एक स्वाभाविक टिप्पणी की थी । लेकिन अगले दिन खुद रवींद्र जी आक्रामक हो गए और उन्होंने अपने दूसरे लेख में ये बताने की कोशिश की कि मैं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास ही नहीं करता। दुनिया भर में चुनाव को लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, और मैं इस चुनाव का विरोध कर रहा हूं, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था और ना है। बस प्रभात जी अपनी गलत और बात को सही साबित करने के लिए कुतर्क करते रहे और सच की हत्या न हो जाए, इसलिए मुझे उनकी बातों का मजबूरी में जवाब देना पड़ता रहा।
दरअसल कुछ लोगों की आदत होती है या कहें एक तपका ऐसा है जो एक झूठ को तब तक दोहराता रहता है, जब तक वो लोगों को सही ना लगने लगे। अगर आप पहले से आमादा हैं कि आपको कुछ खास लोगों को सम्मानित करना है तो उसके लिए बेवजह का ड्रामा क्यों किया जा रहा है। आप साफ सुथरे तरीके से कहिए कि हमारे निर्णायक मंडल ने इन पांच लोगों को 2012 के सम्मान के लिए चुनाव है। अरे आप कौन सा पदमश्री देने जा रहे हैं कि कोई ऊंगली उठाएगा। तकलीफ तब होती है जब आप बड़ी बड़ी बातें करते हैं और असल तस्वीर कुछ और ही होती है। हम सब जानते हैं कि परिकल्पना सम्मान के लिए कुछ लोगों ने पहले तो 41 लोगों के नाम तय किए। इसकी क्राइट एरिया क्या थी, ये साफ नहीं है। अच्छा आपने अगर 41 लोगों का नाम चुन ही लिया था तो ये वोटिंग में "अन्य" का कालम क्यों दिया ? क्या आपको अपनी इस टीम पर भरोसा नहीं था। अच्छा अगर आप पारदर्शिता दिखाते हुए ये अधिकार ब्लागर को देना चाहते थे कि उनके वोटों के आधार पर पांच नाम तय होंगे, तो क्या आपने जो 41 नाम घोषित किए हैं, उससे ऐसा नहीं लगता है कि ये उन लोगों के साथ बेईमानी है जिनके नाम आपने नहीं दिए।
ईमानदारी तो तब होती जब एक पांच या उससे अधिक लोगों की टीम बनाकर पूरी जिम्मेदारी उनके हवाले कर देते। ये टीम लोगों से आवेदन मांगती, वो जांच पड़ताल करती कि क्या ब्लाग पर जो सामग्री है, वो उनकी अपनी है, क्योंकि बहुत सारे ब्लाग में दूसरों की रचनाएं होती हैं। बहुत सारे ब्लाग में चोरी की रचनाएं होती हैं। बहुत सारे ब्लाग कई मामलों को लेकर विवादित हैं, क्योंकि परिकल्पना एक साहित्यिक मंच है और यहां साफ सुथरे नामांकन जरूरी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया, फिर ये भी तय होता कि वोट कौन दे सकता है, कम से कम इतना तो किया ही जा सकता था कि जिनके ब्लाग कम से कम साल या छह महीने पुराने हों, वही वोट दे सकते हैं। इससे फर्जी वोटिंग पर रोक लगती। यानि अभी लोग आज ब्लाग बनाकर वोट नहीं डाल सकते थे। अब इन बातों की ओर मैने ध्यान आकृष्ट किया मुझे कहा गया कि मेरा चुनाव और लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है।
               
महसूस होता है ये दौर-ए तबाही है
शीशे की अदालत है, पत्थर की गवाही है.
दुनिया में कहीं ऐसी तहरीर नहीं मिलती.
कातिल ही मुंसिफ है कातिल ही सिपाही है

जब सम्मान के लिए ब्लाग का नामांकन आपने किया, वोट देने की अपील भी आप कर रहे हैं, वोटों की गिनती भी आप करेंगे  और रिजल्ट आप ही घोषित करेंगे। ये लोकतंत्र है। इसे ही आप कहते हैं कि लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। और अगर मुझे आप पर शक हो, तो इसकी शिकायत का कोई फोरम है ? बहरहाल आपकी परिकल्पना है, आप सम्मान दे रहे हैं, आप अपने लोगों को चुनें, उन्हें बडे़ से बडा पदक दें, इन सबसे किसी को कोई शिकायत नहीं है। शिकायत ये है कि आप उस पर हम सबका ठप्पा लगवाने की कोशिश ना करें। फिर मैने ही नहीं अगर किसी का कोई सुझाव है तो उसे आइना मत दिखाइये। आप अपने को बुद्धिमान समझे, मुझे लगता है कि किसी को इससे शिकायत नहीं होगी। लेकिन आप सामने वाले को मूर्ख समझें तो मेरे जैसे स्वाभिमानी आदमी को तो जरूर होगी।

हां एक सवाल और बहुत लोगों ने उठाया है कि ब्लागिंग के दस वर्ष हुए हैं या नहीं। नेट पर देखने से इस मामले में साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। लेकिन ब्लागिंग खासतौर पर इगलिश ब्लागिंग 1993 के आसपास शुरू हो चुकी थी। ये अलग बात है। मैं कहता हूं कि अगर मुझे कोई संदेह है और मैं इस मामले में एक टिप्पणी करता हूं, और आपको लगता है कि मैं गलत कह रहा हूं, तो आप तथ्यों के साथ मेरी जानकारी दुरुस्त कर सकते हैं। अदा जी से मेरी कोई मुलाकात नहीं है, लेकिन मैं उन्हें पढता रहा हूं और उनका प्रशंसक हूं। अगर उन्होंने एक कमेंट में कहा कि ब्लागिंग को अभी दस वर्ष नहीं हुए तो आप जिनका सम्मान कर चुके हैं, उसे ही नसीहत दे रहे हैं कि आप अपने ब्लाग का वर्ष ना बताएं। मैं तो इस जवाब से भी हैरान हूं।
बहरहाल मै पहले भी बता चुका हूं कि मैने अपने मन में उठी एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मैं यहां किसी गुट का सक्रिय सदस्य नहीं हूं। लेकिन मेरी टिप्पणी पर जिस तरह की प्रतिक्रिया आई वो तथ्यात्मक रुप से तो बिल्कुल गलत थी ही, असभ्य भी थी। मैने जितनी बातें की सभ्यता की लक्ष्मण रेखा के दायरे में रह कर ही की। मेरा ये स्पष्ट मत है कि अगर आप किसी काम की अगुवाई नहीं कर सकते और कोई दूसरा व्यक्ति कर रहा है तो उसमें नुक्ताचीनी करने का हक नहीं है। इसलिए मेरा कोई नुक्ताचीनी का मकसद ही नहीं था, बस अगर मेरे मन में सवाल है, तो उसे उठाने में हर्ज क्या है ? इतना ही मेरा मकसद था। 
लेकिन मैं परिकल्पना और वटवृक्ष से जुडे साथियों को बता देना चाहता हूं कि यहां लोग बहुत धैर्यवान हैं। दो दिनों में जितने फोन मैने अटेंड किए और जिस तरह की बातें सामने आईं, मै समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या साहित्य जगत में ऐसा भी होता है। मीडिया से जुडे होने की वजह से मीडिया और राजनीति की गंदगी से तो बखूबी वाकिफ हूं, पर मुझे लगता था कि साहित्य में अभी सुचिता बनी होगी। लेकिन यहां तो तस्वीर और भयावह है। और देखिए लोग पीड़ित भी हैं, फिर भी बेचारे बोल भी नहीं पा रहे हैं। कहते हैं फिर लोग मुझे बिल्कुल अलग थलग कर देगें। कहावत है कि मारे  और रोने भी ना दे। मैने अपनी पहली टिप्पणी में आगाह किया था चुनाव के जरिए कहीं लालू, राजा, कलमाडी जैसे लोग वोटों का जुगाड़ ना कर लें। मसलन गलत लोगों को यहं आने से रोकना चाहिए। पर मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे ये लाइन नहीं लिखनी चाहिए थी, हां मैं गलत था. क्योंकि यहां राजा, कलमाडी, कनिमोझी सब तो पहले से ही मौजूद हैं, फिर मैं क्यों उन्हें कोस रहा हूं। आखिर में

ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तां वालों ।
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।।


Thursday 10 May 2012

बेटे की शादी एमपी में करेंगे मामा ...


कुछ दिन पहले ही मेरे मामा का फोन आया, बेटे की शादी के बारे में बात कर रहे थे। हमने कहा अच्छा तो है, बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर है, अच्छी  कंपनी में है और उसका पैकेज भी ठीक ठाक है। फिर जिस तरह वो पढ़ने में होशियार है, मुझे तो पक्का भरोसा है कि वो एक दिन आईएएस हो ही जाएगा। ऐसे में उसकी शादी की चिंता आपको अभी से क्यों सता रही है। कहने लगे नहीं ऐसा नहीं है, यूपी और बिहार से तो तमाम बड़े बड़े अफसर अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आ रहे हैं, पर हमारे एक ही बेटा है, हम इसकी शादी में अपनी सभी हसरतें पूरी करना चाहते हैं। मैने कहा अरे मामा क्या बात है, कीजिए ना हसरत पूरी आपको किसने रोका है। धूमधाम से कीजिए शादी, कोशिश करूंगा कि मैं भी परिवार के साथ वहां पहुंचूं।

कहने लगे कि गुड्डू तुम एमपी यानि मध्यप्रदेश में किसी को जानते हो। मैने कहा हां क्यों नहीं। वहां मैं बहुत सारे लोगों को जानता हूं। अखबारी मित्र के अलावा भी हमारे बहुत से दोस्त हैं, जिनसे मेरे पारिवारिक रिश्ते है। बताइये क्या करना है, मैं उनसे कह दूंगा। बोले मैं निलेश यानि अपने बेटे की शादी एमपी में करना चाहता हूं। मैं नीलेश की तस्वीर और बायोडेटा तुम्हें भेज रहा हूं, तुम इसे अपने दोस्तों को भेज दो, और बताओ कि घर का बच्चा है, गोरा चिट्टा, पांच फुट आठ इंच लंबाई, इसकी शादी में मुझे एमपी में ही करनी है। मैं हैरान हो गया, मुझे लगा कि मेरा मामा पागल हो गया है क्या ? भाई कम से कम अभी देश में ऐसी स्थिति नहीं है कि काबिल लड़कों को भी शादी के लिए अपनी तस्वीर और बायोडेटा भेजनी पड़े। मुझे मामा की बात जमीं नहीं, लिहाजा मैने कहा मामा आपको हो क्या गया है। नीलेश काबिल है, अभी उसकी उम्र भी 24 - 25 ही तो है। ऐसे में क्या हडबड़ी है कि आप उसकी शादी और वो भी एमपी में करने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं।

अब मामा ने जो बातें कही, मै फक्क पड़ गया। मेरा मामा चालू है, ये मैं पहले से जानता था, पर मक्कार भी ये उसकी बातों से पता चला। आप भी सुन लीजिए मेरे मामा की सोच। कहने लगे यार एमपी में लेखपाल के घर भी लोकपाल के छापे में 25 करोड़ से ज्यादा की प्रापर्टी जब्त हो रही है। जब लेखपाल और पटवारी के यहां अकूत दौलत है, तो अफसर, इंजीनियर और डाक्टर के क्या कहने। फिर गुड्डू तुम तो जर्नलिस्ट हो, तुम्हें तो बेईमान अफसरों के बारे में भी जानकारी होगी। ऐसे ही किसी चालू अफसर के यहां किसी तरह रिश्ते की बात शुरू कराओ। बोले तुम्हें तो पता है कि नीलेश के अलावा हमारे पास है ही क्या ? जो कुछ था सब इसकी पढ़ाई लिखाई में लगा दिया, अब तो हमारा एक ही सहारा है वो नीलेश है। मन तो हुआ कि सड़क छाप दो चार गाली देकर मामा का फोन काट दूं, पर सुनना चाहता था कि ऐसे छापे जब किसी एक प्रदेश में पड़ते हैं और लगातार बेईमान अफसर पकड़े जाते हैं, उनकी प्रापर्टी जब्त होती है, तो दूसरे प्रदेशों में उसका रियेक्शन क्या होता है।

बहरहाल लोकपाल के छापों को दूसरे प्रदेशों में ऐसे भी लिया जा सकता है। ये जानकारी तो मुझे मामा की बातों को सुनकर हुई, जो चौंकाने वाली थी। इस मामले में जब मैने और मित्रों से बात की और एमपी के कुछ पत्रकारों से बात की तो उन्होंने भी मेरी बातों का समर्थन किया। उनका कहना था दूसरे प्रदेश के लोगों को लगता है कि यहां लेखपाल से लेकर आईएएस तक सब भ्रष्ट हैं और उनके पास अकूत संपत्ति है। इसलिए अगर यहां कोई अपने लड़के की शादी करता है, तो उसे उम्मीद होती है कि करोडों की जायदाद दहेज मे मिलना तय है, इसी तरह लड़कियां भी बहुत दहेज लेकर आएंगी, ये सोच भी लोगों की  है। लोकपाल ने लोगों में कुछ इस तरह की उम्मीद जगा दी है। वैसे मै एक बात तो दावे के साथ कह सकता हूं, एमपी के बारे में अगर सबकी ये राय बन रही है कि यहां अफसर, इंजीनियर, डाक्टर सब बेईमान हैं तो ये बात पूरी तरह गलत है। मैं बहुत सारे लोगों को जानता हूं, जो बहुत ही ईमानदारी से काम करते हैं। एक मेरे इंजीनियर मित्र हैं, इतने शरीफ हैं कि अपनी तनख्वाह पूरी ले पाते होगे, मुझे इसमें भी शक है।

दरअसल मध्यप्रदेश की छवि पर बट्टा लगाने का काम किया आईएएस दंम्पत्ति अरविंद जोशी और टीनू जोशी ने। आयकर के छापे में लगभग 350 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई। जोशी दंम्पत्ति नोटो के गद्दे पर सोते थे। ये देश भर के अखबारों की सुर्खियों में छाए रहे। इसी बीच उज्जैन मे एक लेखपाल पकड़ा गया, जिसके पास से चार करोड की संम्पत्ति बरामद हुई। फिर लोगों को लगने लगा कि एमपी आखिर हो क्या रहा है। इसके बाद तो लोकायुक्त ने बेईमान अफसरों, नेताओं और कर्मचारियों के यहां छापेमारी कर करोडो रूपये बरामद करने की झड़ी लगा दी। छिंदवाडा का एई राम लखन के पास से दस करोड रुपये, डा लहरी दंपत्ति के यहां से 35 करोड़ रुपये, उपमंत्री एससी पटेल के यहां 5करोड रुपये, जबलपुर में एक क्लर्क के यहां से 5 करोड रुपये, निगम के स्वास्थ अधिकारी राजेश कोठारी के यहां से चार करोड, जेल अधीक्षक पुरुषोत्तम लाल के यहां से 25 करोड़ की संपत्ति के कागजात, नकद, जेवर आदि बरामद हुए। फिर आज ही एक और स्वास्थ्य निदेशक लोकायुक्त के हत्थे चढ़ गया, उसके यहां से अब तक 100 करोड से भी ज्यादा की नकदी, प्रापर्टी, जेवर आदि बरामद किए जा चुके हैं। बताया जा रहा है कि लोकायुक्त अब तक छापेमारी कर हजारों करोड रुपये बेईमान अफसरो और कर्मचारियों के यहां से बरामद कर चुके हैं। जिस अफसर के यहां लोकपाल का छापा पड़ता है, लगता ही नहीं कि ये किसी का घर है। इतनी बड़ी रकम बरामद होती है कि ये घर ना होकर किसी बैंक की शाखा लगती है। कई घरों में तो छापे के दौरान नोट गिनने वाली मशीन तक बरामद हुई। नोटों की ऐसी बरामदगी देख कर आखे टीवी पर धंसी की धंसी रह जाती हैं।

बहरहाल बेईमान अफसरों को ही नहीं कर्मचारियों को भी समझना होगा कि गलत ढंग से कमाई गई दौलत आती है तो आपको तात्कालिक खुशी भले मिलती हो, पर सच ये है कि इसकी सुरक्षा नींद उड़ा देती है। फिर दिन खराब हो तो ये पैसा तो जाता ही है, साथ आपको जेल तक पहुंचाता है और परिवार की इज्जत....सारी सारी घुसखोरों के पास इज्जत होती कहां है। चार लाइनें और सुन लीजिए...

जब से तुम घुसखोर हो गए,
कटी पतंग के डोर हो गए।
ऊंचा ओहदा पाकर के भी,
कितने तुम कमजोर हो गए।
जब से तुम घुसखोर हो गए....



  
  

Monday 7 May 2012

मसाला क्रिकेट : चलो चलें आईपीएल


हर भजन मैच हारा तो तुझे जूनियर अंबानी को उठाना पडेगा, हाहहा
स समय देश में कई चीजें एक साथ चल रही हैं। राजनीतिक गलियारे में एनसीटीसी और राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर गहमा गहमी है। अन्ना  हजारे और रामदेव सड़कों को गरम किए हुए हैं। नक्सली जंगलों को गरम किए हुए हैं. लगातार बढती मंहगाई से बाजार गर्म है, बाबाओं की कारगुजारी से धार्मिक समागमों मे गरमी है,सेना में भ्रष्टाचार की खबरें अखबारों की सुर्खियों में हैं, और खेल के मैदानों में आईपीएल की मची धूम से गरमी छाई हुई है।  मेरे साथ ही हो सकता है कि आप सब भी इस बात से सहमत हों कि हिंदी ब्लागर्स खेल के मैदान पर बहुत कम बल्लेबाजी करते दिखाई देते हैं। यहां तो सबसे बड़ी संख्या ऐसे लोगों  की है जो प्रेम पर बहुत अच्छी पकड़ रखते हैं और निश्चित रुप से उनकी लिखी रचनाएं मन के बहुत करीब होती है। अच्छा प्रेम एक ऐसा विषय है, जिसमें सभी लोगों की कुछ ना कुछ छोटी बड़ी कहानी जरूर होती है, लिहाजा प्रेम पर लिखी गई हर रचना को काफी महत्व मिलता है, क्योंकि सभी को लगता है कि ये रचना कहीं ना कहीं उन्हीं के इर्द गिर्द घूम रही है।

ब्लाग में हम जैसों को अपनी उपस्थिति बनाए रखने में बहुत मुश्किल होती है। मेरा जो विषय है, आमतौर पर ब्लाग के 70 फीसदी लोग उससे नफरत करते हैं। जो 30 फीसदी लोग राजनीति को समझते हैं, उनकी रुचि है वो बिखरे हुए हैं। वो राजनीति को बाहर से देखकर खुश हो जाते हैं। भीतर घुसने की कोशिश ही नहीं करते। अन्ना और रामदेव भी इसी का फायदा उठा रहे हैं।  खैर छोड़िए आज मैं विवादित विषय को छूऊंगा ही नहीं। अन्ना और रामदेव पर फिर लिखूंगा। चलिए सीधे चलते हैं खेल के मैदान और आनंद लेते हैं फटाफट क्रिकेट का।

आईपीएल में खेल तो है ही, यहां मसाला भी खूब है। दर्शक चाहते हैं कि मुझे वहां बैठने को मिलें, जहां से खेल भले दिखाई ना दे, पर चीयर गर्ल्स के करीब रहूं। इन खेल प्रेमियों को चीयर गर्ल्स के ठुमके ही भाते हैं। उन्हें मैदान मे लगने वाले चौके छक्कों से कोई लेना देना ही नहीं। खेल मे वालीवुड का तड़का लोगों में और उत्साह भर देता है। अच्छा सचिन, राहुल और सौरभ गांगुली को खेलते देखना वाकई एक सुखद अनुभव है। ये खिलाड़ी कभी भी मैदान से हट सकते हैं। इसलिए इनके खेल से तो मन ही नहीं भरता।

ये इसी खेल में संभव हो सकता है कि मै इस समय दिल्ली में हूं तो मेरा समर्थन दिल्ली की टीम के साथ होना चाहिए, पर नहीं। मेरी फेवरिट टीम मुंबई इंडियन है। लेकिन मेरा इस समय फेवरिट खिलाड़ी आंजिक्य रहाणे है जो राजस्थान टीम का सदस्य है। मैं उसे भारतीय टीम में देखना चाहता हूं। मेरी पसंद यहीं खत्म नहीं हो जाती, गेल के छक्के का हमेशा इंतजार रहता है, भले ही वो हमारे मुंबई इंडियन के खिलाफ ही क्यों ना खेल रहा हो। वैसे इस बार मुझे सबसे ज्यादा निराश किया है कोलकता नाइट राईडर के खिलाडी युसुफ पठान ने। तरह गयां उसके लंबे शाट्स देखने के लिए।

अच्छा मुझे तो खेल के मैदान में जो चल रहा होता है उससे तो आनंद आता ही है, पर एक एक गेंद पर टीम के मालिकों का रियेक्शन देखना और भी अच्छा लगता है। गेंदबाजों के पिटने पर वालीवुड बादशाह शाहरुख खान के चेहरे पर कैसा तनाव देखा जाता है। अपनी टीम के खिलाडी के लंबे शाट्स पर प्रीटी जिंटा का खुशी से उछल जाना। पूरे उत्साह के साथ शिल्पा सेट्ठी का मैदान में जमें रहना। टीम की जीत पर ना सिर्फ बच्चों की तरह खिलखिलाकर हंसती है मुंबई इंडियन की मालकिन नीता अंबानी, बल्कि वो खिलाड़ियों से भी ज्यादा उत्साह में उछलकर खिलाडियों को गले लगा लेती हैं। आईपीएल से अगर आप जुड़े हैं और रोजाना मैच देख रहे हैं, तो मुझे बहुत ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं... आप खुद इस आनंद को नहीं भुला पाएंगे।

हालांकि अभी तय तो नहीं हुआ है कि कौन कौन सी टीम सेमीफाइनल में रहेगी। लेकिन मैं दिल्ली, कोलकता, मुंबई और राजस्थान को सेमीफाइनल में देखना चाहता हूं। हालाकि मेरे चाहने से कुछ भी होने वाला नहीं, क्योंकि शुरआती मैचों में खराब प्रदर्शन करने वाली चेन्नई की टीम अब बेहतर प्रदर्शन कर रही है। ऐसे में पहले चार में चेन्नई की टीम भी जगह बना ले तो हैरानी की बात नही होगी। पुणे की टीम से मुझे उम्मीद थी, पर मुझे लगता है कि अगले सीजन में दादा को आईपीएल में कमेंट्री ही करनी होगी, वो और उनकी टीम कुछ खास नहीं कर पा रही है, जबकि यही टीम शुरु के कुछ मैंचो में बेहतर प्रदर्शन किया था।

और हां चलते चलते आप इस चित्र का आनंद लीजिए, एक रोमांचक मैच जीतने के बाद नीता अंबानी टीम के कप्तान हरभजन के गले लगने के लिए उछल पड़ी। खैर मौका ही ऐसा होता है खुशी का, जीत की उत्साह का। यहीं नीता के बेटे यानि जूनियर अंबानी भी खड़े दिखाई दे रहे हैं। शायद वो टीम के कप्तान से ये कह रहे हैं कि ठीक है बेटा हरभजन, अगर कोई मैच हारे तो मुझे उठाकर मैदान का चक्कर काटना होगा। हाहाहहाहाह।

   

Friday 4 May 2012

लोकतंत्र के गुनाहगार बाबा रामदेव ...


माफ कीजिएगा मैने बाबा रामदेव लिख दिया, चलिए सुधार लेता हूं यानि लोकतंत्र के गुनाहगार रामदेव। मेरे साथ ही आज देश में करोडों लोग ऐसे हैं जिन्हें रामदेव के आगे बाबा लिखने पर आपत्ति है। मुझे तो उनके भगवा वस्त्र पहनने पर भी कड़ी आपत्ति है, लेकिन मैं अपने विचार किसी पर भला कैसे थोप सकता हूं। दरअसल एक समय था जब लोग भगवावस्त्र का बहुत सम्मान करते थे, लेकिन अब तो ये वस्त्र सुविधा का वस्त्र बनकर रह गया है, संकट आए तो ये वस्त्र त्याग कर महिला का सलवार शूट पहना जा सकता है। वैसे ये सब बातें सबको पता है, इस पर बेवजह समय खराब करना ठीक नहीं।

मुद्दे पर आता हूं। रामदेव ने एक सार्वजनिक सभा में कहा कि देश को 543 रोगी चला रहे हैं। ये हैवान हैं, शैतान हैं, व्यभिचारी हैं, भ्रष्टाचारी हैं। रामदेव से पूछा गया कि आखिर इतनी बड़ी बात आप किस आधार पर कह रहे हैं, तो उनका जवाब है कि सांसदों ने चुनाव लड़ने के दौरान अपने ऊपर लगे आरोपों का खुद ही जिक्र किया है। अब रामदेव को कौन समझाए कि जब चुनाव लड़ने के दौरान ही उम्मीदवारों ने अपने ऊपर लगे आरोपों का खुलासा कर दिया, फिर भी वो चुनाव जीत गए, इसका मतलब जनता उन्हें ठीक मानती है। अगर जनता ने उन्हें ठीक का प्रमाण पत्र दे दिया तो रामदेव को परेशानी क्यों है ? अच्छा अभी फैसला नहीं हुआ है, सिर्फ आरोपों के आधार पर सांसदों को बेईमान कैसे कहा जा सकता है।

फिर भी चलिए मैं रामदेव की बात मानता हूं। आरोपों के आधार में मैं भी इन सांसदों को गुनाहगार एक शर्त पर कहने को तैयार हूं जब रामदेव खुद को भी भ्रष्ट, निकम्मा, धोखेबाज मान लें। क्योंकि बाबा पर आरोप है कि उन्होंने टैक्स की चोरी की है, सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया है, वो भी पांच रुपये का चूरन 50 रुपये में बेचकर जनता को धोखा दे रहे हैं, जनता को योग के नाम पर दिल्ली बुलाते हैं और यहां अनशन करते हैं और बेचारी जनता पर लाठी बरसती है तो लड़कियों के कपड़े पहन कर खिसक लेते हैं। भाई ऐसा रामदेव तो निकम्मा ही कहा जाएगा। वैसे मैं बेवजह यहां किसी महिला के नाम का जिक्र नहीं करना चाहता, क्योंकि अब वो पतंजलि से अलग होकर गंगा किनारे तप कर रही हैं, वरना रामदेव पर आरोप तो वो भी है, जो कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी पर है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि देश में सभी को अधिकार है कि वो अपने ऊपर लगे आरोपों को कानूनी प्रक्रिया के तहत निस्तारित होने दे। हम सब कानून को मानने वाले हैं, अगर कोर्ट ने कहा कि हम गुनाहगार है तो हमारी कुर्सी खुद ही चली जाएगी। आप सब को पता है कि संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप कुछ सांसदों पर लगा तो महज 13 दिन में उन सांसदों को घर का रास्ता दिखा दिया गया। बीजेपी के मुख्यमंत्री येदुरप्पा को कुर्सी छोड़नी पड़ी। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ए राजा जेल में है ना। तो सबको अपना काम करने दीजिए। रही बात कालेधन की ये तो वापस आना ही चाहिए। रामदेव की मांग से मैं या देश  का कोई भी व्यक्ति असहमत नहीं हो सकता, लेकिन उनका तरीका ना सिर्फ गलत बल्कि शर्मनाक भी है। एक भगवाधारी से ऐसी बातों की उम्मीद नहीं की जा सकती।

अच्छा सार्वजनिक मंच से जब रामदेव ने कहा कि मैं जान दे दूंगा, पर अपनी बात वापस नहीं लूंगा और ना ही आंदोलन खत्म करुंगा। इस बात पर तो ताली बजनी चाहिए थी, लेकिन वहां लोगों ने ताली के साथ बहुत तेज का ठहाका लगाया। किसी ने कहा कि अरे भाई इसमें ठहाका लगाने की क्या बात है। तो ठहाका लगाने वालों ने कहा कि जान देने की बात करते हैं रामदेव और जब अवसर आता है तो महिलाओं के कपड़े में खिसक लेते हैं। बेचारी एक महिला को बेवजह अपनी जान गंवानी पड़ी।

दरअसल बुराई की आधा जड तो इलैक्ट्रानिक मीडिया भी है। कई बार होता है कि गुस्से में किसी भी आदमी के मुंह से कुछ भी निकल जाता है। अब ये बातें पूरा देश सुन लेता है। बाद में जिस किसी ने भी गलत शब्द इस्तेमाल किया है, वो संयम में आता है तो महसूस करता है कि ऐसा नहीं कहना चाहिए था। लेकिन अगर वो अपने शब्द वापस लेता है तो इलेक्ट्रानिक मीडिया शोर मचाता है कि रामदेव अपनी बात से पलटे। इससे और किरकिरी होती है, लिहाजा एक बार जो बात मुंह से निकल गई उस पर कायम रहना मजबूरी होती है।

वैसे सबको पता है कि रामदेव कई लड़ाई एक साथ लड़ रहे हैं, एक सरकार के खिलाफ उनकी जंग छिड़ी हुई है, दूसरे टीम अन्ना उनका बाजा बजाती रहती है, फिर खुद की विश्वसनीयत का संकट भी है। ऐसे में कोई भी आदमी आपा खो सकता है। मुझे बार बार लगता है कि रामदेव और टीम अन्ना देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर कर रहे हैं। अब मुद्दा तो सुन सुन कर जनता बोर हो गई है। लिहाजा अब ये अभद्र भाषा पर उतर आए हैं। जो हालात है मुझे लगता है कि टीम अन्ना अब जल्दी ही अपने नेता यानि अन्ना को ही बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर रही है। अब टीम के सदस्य अन्ना की एक बात नहीं मानते। अन्ना का कम पढा लिखा होना भी उनके रास्ते का रोड़ा है। यही वजह है कि टीम अपने नेता पर भारी पड़ती है। कहा जाता है कि जब मीटिंग में कोई बात अन्ना से छिपानी होती है तो उनके सदस्य अंग्रेजी में बात करने लगते हैं। सच ये है कि रामदेव और अन्ना दोनों का ही कम पढ़े लिखे होने से कुछ लोग पर्दे के पीछे से इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। इस मामले में अब जनता को  ही जागरूक होना पड़ेगा।



Tuesday 1 May 2012

राष्ट्रपति चुनाव: तलाश है 24 कैरेट के मुसलमान की


मतौर पर देश में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर ज्यादा हो हल्ला होते नहीं देखा जाता था, लेकिन पिछले चुनाव यानि यूपीए वन के दौरान दस दिन तक जो ड्रामा चला, उसी से साफ हो गया कि आने वाले समय में राष्ट्रपति के चुनाव में भी वो सब चलने लगेगा जो आमतौर पर और चुनावों में चलता है। पूर्व राष्ट्रपति डा. ए पी जे अब्दुल कलाम साहब का कार्यकाल पूरा होने के पहले नए राष्ट्रपति के चुनाव की बात शुरू हुई तो उस समय भी एक बड़ा तपका इस पक्ष में था कि कलाम साहब को ही दोबारा राष्ट्रपति बना दिया जाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस को ये बात मंजूर नहीं थी। यूपीए वन के सहयोगी रहे लालू यादव और राम विलास पासवान की भी इस समय तूती बोलती थी। लिहाजा राष्ट्रपति की जाति पर चर्चा होने लगी। कहा गया कि इस बार किसी दलित को क्यों ना राष्ट्रपति बनाया जाए ?

कुछ दलित नेताओं के नाम पर विचार विमर्श शुरू भी हो गया था, परंतु कांग्रेस नेताओं ने छीछालेदर से बचने के लिए बीच का रास्ता निकाला और कहा कि इस बार किसी महिला को राष्ट्रपति बनाते हैं। चूंकि बीजेपी और उनके सहयोगियों ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत का नाम सामने किया था, उनकी छवि पर भी कोई दाग धब्बा नहीं था। अगर पार्टी लाइन से हट कर कांग्रेस भी सोचती तो शेखावत राष्ट्रपति के बेहतर उम्मीदवार थे, लेकिन कांग्रेस ने घटिया राजनीति करते हुए यहां शेखावत परिवार की दूर कि रिश्तेदार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को उम्मीदवार बना दिया। कहा गया कि अभी तक महिला राष्ट्रपति नहीं हुई हैं, तो पहली दफा महिला राष्ट्रपति होनी चाहिए। खैर प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति चुनाव जीत गईं। उसके बाद उन्होंने जो कुछ किया, किसी से छिपा नहीं है। जमीन कब्जाने से लेकर, मनमानी विदेश यात्रा, करोडों का उधार जैसे तमाम आरोपों से वो आज भी घिरी हुई हैं। खैर राष्ट्रपति पद की गरिमा है, इसलिए मैं भी श्रीमति पाटिल को छूट दे दे रहा हूं। पर आप सबको अभी से बता रहा हूं कि ये परिवार आगे भी सुर्खियों में बना ही रहेगा।

आइये अब बात करें होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव की। यूपी समेत पांच राज्यों में अभी हाल में खत्म हुए चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहा है, ये आप सब जानते हैं। कांग्रेस को लगता है कि इसकी वजह और कुछ नहीं बल्कि मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत पाना है। ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए जरूरी है कि उन्हें अपने पाले में लाया जाए। इसके लिए अभी से कोशिशें तेज हो गई हैं। कांग्रेस की कोशिश कि किसी मुस्लिम को ही राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जाए। अंदरखाने जो खबर मिल रही है कांग्रेस उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को प्रमोट करना चाहती है। राजद सुप्रीमों लालू किसी तरह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहते हैं, इसलिए कांग्रेस जो कुछ सोचती है, तब तक लालू उसके  क्रियान्वयन मे लग जाते हैं। उन्होंने तड़ से हामिद का  नाम मीडिया में उछाल दिया। ये जाने बगैर कि इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी की भूमिका महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर डा. ए पी जे अब्दुल कलाम का नाम सामने किया है। मुझे लगता है कि आज भी कलाम साहब के नाम पर कांग्रेस को छोड़कर और किसी को ज्यादा एतराज नहीं होगा।


बहरहाल आज सबसे बडा सवाल ये है कि राष्ट्रपति के चुनाव को कब तक हम जातिवाद के इस घटिया तराजू पर तौलते रहेगे। मुझे पक्का विश्वास है कि अगर कलाम साहब जितने आज कामयाब है, उससे ज्यादा कामयाबी हासिल कर लेते, पर वो मुसलमान ना होते तो मुझे नही लगता है कि ये नेता उन्हें राष्ट्रपति चुनते। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का शिक्षाविद् होना उतना मायने नहीं रखता, जितना उनका मुसलमान होना। आपको पता है आज भी राजनीतिक दलों को राष्ट्रपति पद के लिए किसी महान उम्मीदवार की तलाश नहीं है, बल्कि 24 कैरेट के मुसलमान की तलाश है।

ऐसा मुसलमान जिसे राष्ट्रपति बनाया जाए तो देश का मुसलमान पार्टी को हाथो हाथ ले। बहरहाल मेरा व्यक्तिगत रुप से आज भी ये मानना है देश में जितने भी राष्ट्रपति हुए है, उनमें स्व. डा राजेन्द्र प्रसाद के बाद अगर कोई राष्ट्रपति दुनिया भर में लोकप्रिय रहा है तो वो हैं अब्दुल कलाम ही। मुझे कहा जाए कि आप किस राष्ट्रपति के कार्यकाल को एक बुरा सपना मानकर भूल जाना चाहेंगे तो मेरा जवाब होगा प्रतिभा देवी पाटिल और ज्ञानी जैल सिंह। इनके कार्यकाल को याद करके देशवासी खुद को शर्मिंदा ही महसूस करेंगे। 


दरअसल ऐसी स्थिति तब पैदा होती है, जब किसी सरकार में अलग अलग हांथों मे पावर हो। कहने को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है, मुझे लगता है कि वो अपने मन से बस घर का खाना खा सकते हैं। उन्हें हर छोटे मोटे काम के लिए भी 10 जनपथ की ओर ताकना होता है। प्रणव दा समेत तमाम ऐसे वरिष्ठ मंत्री हैं जिनके सामने प्रधानमंत्री आंख मिलाकर बात नहीं कर सकते। कांग्रेसी सोनिया गांधी की ओर देखते रहते हैं, सोनिया सलाहकारों पर भरोसा करती हैं, कुल मिलाकर हालत ये है कि ये अच्छा काम करने की सोचते हैं, पर वो काम भी लोगों की कटौसी पर खरा नहीं उतरता। अब देखिए सचिन जैसे सीधे साधे खिलाडी को इन कांग्रेसियों ने विवादों में फंसा दिया। देश में मांग हो रही थी सचिन को भारत रत्न देने की बेचारे को थमा दिया राज्यसभा की सदस्यता। सचिन भले कह रहे हों कि उनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, पर ये कांग्रेस है हुजूर, इन्हें पता है कि किस आदमी के नाम का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। अब सचिन पर संविधान के जानकारों ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि राज्यसभा में साहित्य,कला, समाजसेवा और विज्ञान के क्षेत्र में ही अतुलनीय काम करने वाले को मनोनीत किया जा सकता है।  कांग्रेसियों के पास इसका क्या जवाब है कि क्रिकेट को वो साहित्य,कला, समाजसेवा और विज्ञान में क्या समझते हैं।

वैसे अच्छा हो कि देश में राष्ट्रपति का चुनाव गरिमापूर्ण तरीके से हो,लेकिन कांग्रेस की हरकतों को देखने से तो नहीं लगता कि चुनाव में गरिमा का ख्याल रखा जाएगा। जिनकी दो पैसे की पूछ नहीं है वो चुनाव में ज्यादा उछलकूद करके माहौल खराब करने में लगे हैं। लेफ्ट और लालू चुनाव पर बोल रहे हैं। आपको पता है कि लेफ्ट कोई अच्छा नाम भी सुझाए तो ममता बनर्जी को उसका विरोध करना पडेगा। लेफ्ट के मुकाबले ममता ज्यादा मजबूत हैं, तो फिर क्यों उम्मीदवार को लेकर ज्यादा बोल रहे हैं। बीजेपी से सुषमा स्वराज ने आज सारी मर्यादा ही खत्म कर दी, उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पद का जो स्तर है, उसके काबिल हामिद अंसारी नहीं है। सुषमा की बात पर एनडीए संयोजक शरद यादव ही भड़क गए। कहाकि कि जो बात कही जा रही है वो सुषमा की निजी राय है, एनडीए में ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई। मतलब साफ है कि अभी और छीछालेदर बाकी है।