Wednesday 14 June 2017

राष्ट्रपति चुनाव के बाद "शिव" राज का फैसला !


क लाइन की खबर  ये है कि राष्ट्रपति के चुनाव के बाद मध्यप्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना काफी बढ़ गई है। इस मसले पर बाकी बातें बाद में लेकिन बता दूं कि मूर्खाना हरकतों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर चर्चा में हैं । दूसरे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को मंदसौर जाने पर रोक लगाने वाले सीएम खुद वहां पहुंच गए और फुल ड्रामा किया । पहले तो जाते ही कुर्सी के बजाए वो जमीन पर बैठ गए , बाद में तथाकथित मृतक किसान के चार  साल के बेटे को गोद मे बैठाया उसके पिता से आत्मीयता दिखाते हुए उनके दुख में खुद को शामिल बताया । सच्चाई ये है कि अब सूबे की जनता ही नहीं बल्कि पार्टी नेतृत्व का शिवराज से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है,  उनकी सरकार पर बेईमानी के कई गंभीर आरोप है, इन गंभीर आरोपों में कई के तार उनके परिवार - रिश्तेदारों से भी जुड़े हुए हैं। लिहाजा अब शिवराज की पूरी कोशिश यही  हैं कि वो क्या करें, जिससे अगले साल होने वाला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाए, जबकि पार्टी आलाकमान पूरी तरह बदलाव का मन बना चुका है।

सूबे के हालात को नियंत्रित करने में पूरी तरह फेल रहे शिवराज कर क्या रहे हैं ये वो खुद ही नहीं जानते । सवाल ये है कि पुलिस की गोली में छह किसानों की मौत का जिम्मेदार कौन है, इस पूरे मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं और ये जांच शुरू भी हो गई है। सब ने देखा कि सड़कों पर उपद्रवियों ने सैकडों वाहनों में आग लगाई। पुलिस पर पथराव किया,कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर पुलिस ने सख्त कार्रवाई यानि गोली न चलाई होती तो कई पुलिस वाले भी मारे जाते। खुद मुख्यमंत्री ने कहाकि किसानों के आंदोलन के नाम पर विपक्ष और उपद्रवी तत्वों ने हालात बिगाड़े। अगर ऐसा है तो फिर सरकारी खजाने को क्यों लुटाया जा रहा है। जो लोग मारे गए हैं वो सड़क पर खेती करने नहीं उतरे थे, वो हिंसा भडका रहे थे, ऐसे लोगों की मौत पर सूबे की सरकार आँसू क्यों बहा रही है ये भी जांच का विषय हो सकता है।

अब देखिए जब राज्य में आग लगी है, जब मुख्यमंत्री को लगातार कानून व्यवस्था पर नजर रखनी चाहिए, सख्त फैसले लेने चाहिए , अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ मीटिंग कर शांति बहाली की रणनीति पर काम करना चाहिए, कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लगातार हालात की समीक्षा की जानी चाहिए, उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पत्नी के साथ फाइव स्टार  उपवास पर बैठ गए।  24 घंटे के उपवास के लिए सरकारी खजाने से करोडो रुपये पानी की तरह बहा दिए, समझ में अभी तक नहीं आया कि आखिर इससे हल क्या निकला। उपवास से किसे पिघलाना चाहते थे।  सच तो ये है चौहान साहब आपको किसान, किसानी और उनके गुस्से का अँदाजा ही नहीं था। आप पूरी तरह फेल रहे हैं , इसलिए नैतिक रूप से आपको सरकार में रहने का हक नहीं है। वैसे राष्ट्रपति चुनाव के बाद आप की कुर्सी पर खतरा है।





Tuesday 6 June 2017

स्वच्छता सर्वे या बिहार की मेरिट लिस्ट !

स्वच्छता रिपोर्ट के कवर पेज से इंदौर गायब ! 
च्चाई ये है कि अगर भारत सरकार की स्वच्छता सर्वेक्षण रिपोर्ट की बारीकी से निष्पक्ष जांच कराई जाए तो  ये बिहार की मेरिट लिस्ट से कम नहीं निकलने वाली है। मुझे ये कहने में भी कत्तई हिचक  नहीं है कि जिस तरह बिहार में जांच के बा
द मेरिट में आए छात्र और उस स्कूल के प्राचार्य को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है , ठीक उसी तरह अगर इस स्वच्छता रिपोर्ट की निष्पक्ष जांच हो जाए तो ना सिर्फ इंदौर की हकीकत सामने आएगी, बल्कि यहां भी कई अफसरों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। दो साल इंदौर में रहा हूं, इसलिए ना सिर्फ यहां की सफाई से वाकिफ हूं बल्कि अफसरों की फितरत को भी भली भांति समझता हूं।

जान लीजिए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन यहां से  सांसद है, इसलिए इंदौर के सामले  में सभी राजनीतिक दल खामोश रहते हैं। ताई का ना सिर्फ इंदौर बल्कि देश भर में एक अलग  सम्मान है। केंद्र सरकार की जो भी योजना होती है, सभी में इंदौर का नाम शामिल हो जाता है ,जबकि यहां तैनात ज्यादातर अफसर नाकाबिल है, लेकिन अपनी मार्केटिंग और जी हजूरी अच्छी कर लेते हैं। यहा हर उस अफसर को मुख्यमंत्री की ताकत मिलती है जो यहां के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय का विरोधी है । खैर अभी बात सिर्फ सफाई की ।
इंदौर शहर को खान नदी दो हिस्सों मे बांटती है। गंदगी से अटी पड़ी ये नदी अब नाला बन चुकी है । इसके दोनों ओर भारी गंदगी है और इसके आप पास रहना मुश्किल है। जो इलाका साफ सुथरा दिखाई भी दे रहा था, मसलन विजयनगर, स्कील 54 वगैरह । यहां निगम अफसरों ने सड़क पर फूहड तरीके से टाँयलेट बनवा दिए है और उस पर गांव गिरांव की तरह लिखा है मूत्रालय । जैसा टाँयलेट इंदौर निगम ने बनवाया है वो टाँयलेट यूपी के गांव में बने टायलेट से भी घटिया है। चूंकि ताई की वजह से इंदौर को ना सिर्फ स्मार्ट सिटी स्कीम में शामिल किया गया बल्कि पहले 20 स्मार्ट सिटी में शामिल किए जाने से केंद्र सरकार से करोडों रुपये साफ सफाई के लिए मिल गए । अब अनाप शनाप पैसे मिल रहे हैं और अधिकारी मौज ले रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया कि यूपी  का गोंडा शहर सबसे गंदा है, मैं हैरान हूं कि भारत सरकार को ये रिपोर्ट जारी करने में शर्म भी महसूस नहीं हुई । अरे पता तो करते गोंडा को साफ सफाई के लिए कितना पैसा दिया गया है । इंदौर में तो माहौल बनाने के लिए एक दिन में अफसरों ने 10 लाख रुपये के गुब्बारे हवा में उ़डा दिए, गोडा मे सफाई के लिए साल में 10 लाख नहीं मिले  होंगे । इस रिपोर्ट में  स्वच्छता का जो क्राइट  है, वो भी दोषपूर्ण है।

कुल 2000 अंको में शहरों को नंबर दिए गए हैं । इसमें 900 अंक स्थानीय निकायों के डाक्यूमेंटेशन का है, जबकि सिटीजन फीडबैक पर 600 और निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए महज 500 अंक है। अब अगर डाक्यूमेंटेशन में इँदौर को   875 अंक मिलते हैं और गोंडा को सिर्फ 52 तो इसमें शहर या शहरियों की क्या गलती है ? जिन अफसरों ने डाक्यूमेंटेशन ठीक नहीं किया, उन्हें अब तक  निलंबित हो जाना चाहिए था। इसी तरह  सिटीजन फीडबैक को ले लें , इसके 600 अंकों में से इंदौर को मिले हैं 467 और गोंडा के खाते में आए 192 अंक । यहां ये जानना जरूरी है कि इंदौर की आबादी गोंडा के मुकाबले चार गुना है, इंदौर संपन्न शहर है, ज्यादातर लोग मोबाइल और इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, जबकि गोंडा एक पिछडा शहर है। बता चुका हू कि इँदौर मे माहौल बनाने के लिए सिर्फ एक दिन में 10 लाख गुब्बारे हवा मे उडाए गए। अच्छा इसके बाद भी अंबिकापुर ने 501 अंक हासिल कर इंदौर को दूसरे नंबर पर धकेल दिया है। सबसे महत्वपूर्ण निष्पक्ष आब्जर्वेशन का है, जो  सिर्फ 500  अंकों का है। इसमें इंदौर को 435 अंक मिले हैं, जबकि कई दूसरे शहरों को इंदौर से अधिक अंक मिले हैं।

साफ है कि भारत सरकार ने पूरी तरह गलत तथ्यों पर आधारित रिजल्ट घोषित किया था, यही वजह है कि कल यानि 5 जून को जनता का  धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए प्रणाम इंदौर कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में लाखों रूपये पानी की तरह बहाए गए। भगवान को ये मंजूर नहीं था और उन्होंने अपना रौद्र रूप दिखाया, आंधी तूफान में सारे पांडाल उडा दिए , वीआईपी भी मुश्किल से यहां से निकल पाए । मैं चुनौती देता हूं कि अगर कोई निष्पक्ष टीम  इंदौर का निरीक्षण करेगी तो ना सिर्फ यहां की हकीकत सामने आएगी, बल्कि बेईमान अफसरों को भी  जेल  जाना होगा ।

भगवान को मंजूर नहीं झूठ  !














इंदौर की असल तस्वीर !

इंदौर की असल तस्वीर !

इंदौर की असल तस्वीर !