tag:blogger.com,1999:blog-22399318369781622662024-03-14T00:04:23.405+05:30आधा सच...महेन्द्र श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.comBlogger231125tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-86274606126050310372018-04-27T15:54:00.001+05:302018-04-27T15:54:45.458+05:30FDDI का काला सच ।<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/35Bx8_hDnfs" width="459"></iframe>महेन्द्र श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.com34tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-18332196004932855842017-07-02T00:42:00.000+05:302017-07-02T00:42:17.333+05:30हिंदी ब्लागिंग के कलंक ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBJur7Wjz-AHfUs9Bkz4Dj8_G3k9BjFftUHp1Sqa1i9kBDWJb4sFyfn-u2VpRYWCSWfqes0-fyqV5-LR-Pvprl59JNR0DxD5G1PJG6m4iAmzmhduLoWf8501CKSnZHnY5MkMZQZ_nPS4U/s1600/IMG_20170702_003302.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="701" height="136" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBJur7Wjz-AHfUs9Bkz4Dj8_G3k9BjFftUHp1Sqa1i9kBDWJb4sFyfn-u2VpRYWCSWfqes0-fyqV5-LR-Pvprl59JNR0DxD5G1PJG6m4iAmzmhduLoWf8501CKSnZHnY5MkMZQZ_nPS4U/s200/IMG_20170702_003302.jpg" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">क</span>ल से ही सोच रहा हूं कि कम से कम अंतर्रराष्ट्रीय हिंदी ब्लागिंग दिवस पर कुछ तो लिखा जाए, मित्र भी लगातार याद दिला रहे हैं, पूछ रहे हैं कहां गायब है, इन दिनों दिखाई नहीं दे रहे , न ही ब्लाग पर पहले की तरह सक्रिय है । मैने भी महसूस किया कि तीन चार सालों में ही ब्लागिंग में एक अच्छा खासा परिवार बन गया था, उन दिनों हफ्ते दो हफ्ते में ब्लागर मित्रों से बात न हो तो कुछ खालीपन सा महससू होता था, पर बीच में अपनी व्यस्तता, इसके अलावा ब्लागिंग के प्रति कुछ ब्लागरों के नकारात्मक रवैये से मन खिन्न हुआ और यहां से थोड़ी दूरी बन गई । वैसे एक बात बताऊं ये सच है कि काफी समय से ब्लाग पर सक्रिय नही रहा, लेकिन ऐसा भी नहीं रहा कि मैने आप लोगों को पढ़ा नहीं । आप सब जानते हैं कि इन दिनों ज्यादातर ब्लागर अपने नए लेख का लिंक ट्विटर या फेसबुक पर जरूर शेयर करते है, इससे आसानी से उनके ब्लाग तक पहुंचा जा सकता है, हां ये अलग बात है कि मोबाइल पर पढने से कमेंट करनें में जरूर असुविधा होती<br />
है।<br />
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अब बात शुरू ही हो गई है तो पुरानी बात याद करना भी जरूरी है । आपको पता है कि हिंदी ब्लागिंग के दुश्मन कोई और नहीं कुछ हिंदी के ही अल्प जानकार ब्लागर रहे हैं । वो खुद ही ब्लागिंग के शिरोमणि बन बैठे और यहां अपनी नकली सरकार चलाने लगे। इतना ही नहीं वो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सम्मान समारोह भी आयोजित करने लग गए । हैरानी तब हुई जब मैने देखा कि इस सम्मान समारोह के आयोजन के नाम पर धनउगाही शुरू हो गई । बेचारे नए ब्लागर जो इस आभासी दुनिया की हकीकत को नहीं जानते थे, वो इनके जालसाजी में फंस गए। पहले तो इन तथाकथित ब्लागिंग शिरोमणियों ने उन ब्लागरों को छांटना शुरू किया जिन्हें आसानी से जाल में फंसाया जा सकता है, इन नामों की सूची तैयार करने के बाद साजिश के तहत एक माहौल बनाया जाता था कि सम्मान के लिए विजेताओं के नाम जल्दी घोषित किए जाएंगे। यही बातें ब्लागिंग शिरोमणि के चेले चापड भी अपने ब्लाग पर लिख कर पूरा जाल बिछाया करते थे। बाद में सम्मान के लिए कुछ लोगों के नाम का बहुत ही धूमधाम ऐलान किया जाता था । मजेदार बात तो ये है कि इस सम्मान सूची में कई ऐसे ब्लागर की जिक्र होता था, जिसके ब्लाग पर एक भी लेख नहीं होते थे । मुझे याद है कि एक बार मैने सवाल उठाया कि सम्मान के लिए जिन लोगों के नाम तय किए गए है, आखिर उसकी क्राइट एरिया क्या है ? इस सवाल पर ब्लागिग जगत में तूफान मच गया, लेकिन किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था। ऐसे में हमें हिंदी ब्लागिंग के कलंक को पहचानना होगा ।<br />
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सम्मान की सूची में महिलाओं खासतौर पर ऐसी महिलाओं को शामिल किया जाता था जो घरेलू हुआ करती थीं, और इस आभासी दुनिया के मुहाने पर खड़ी होती थी । इन्हें तरह तरह के लालच दिए जाते थे, बेचारी महिलाएं इन ढोगी ब्लागरों का दुपट्टा ओढने के चक्कर मे अपना दुपट्टा घर छोड़ आती थी। तीन चार साल तो ये बाजार खूब चला, लेकिन महिलाएँ उतना मूर्ख नहीं जितना इन्हें समझा जा रहा था। कुछ समय बीता तो इस सम्मान समारोह के खिलाफ कई महिला ब्लागर ही मुखर हो गईं। अच्छा एक बात और मजेदार होती थी, ब्लागरों में भी कुछ गुंडे ब्लागर है, जिन्हें खेल बिगाडने में महारत हासिल है। ऐसे ब्लागरों को साधने के लिए ब्लाग शिरोमणि पहले ही जाल बिछा लेते थे। उन्हें कुछ ऐसा साहित्यिक सम्मान देने का ऐलान किया जाता था जो सम्मान पद्मश्री टाइप लगता था। इन्हें बताया जाता था कि उन्हें कोई धनराशि नहीं देनी है, सिर्फ समारोह में शामिल होने की सहमति भर दे दें। उनके लिए आने जाने का किराया ही नहीं होटल खाना पानी सब फ्री रहेगा। इसके अलावा उनका आसन भी मंच पर रहेगा। ये बेचारे इसी में खुश हो जाते थे। अच्छा ऐसा भी नहीं है कि ये बातें मैं आज याद कर रहा हूं, जी नहीं ! पहले भी लोगों को इस दुकान के बारे में आगाह करता रहा हूं, लेकिन होता ये था कि ब्लागर शिरोमणि के चंपू मुझे गाली गलौज करते थे, कुछ लोग मेरा भी समर्थन करते थे । कुछ लोग फोन करके के सलाह देते थे कि इन नंगों के मुंह लगने से क्या फायदा ? यहां सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा। <br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2ln6ZkYUn5HVW5jjg8nP2fjzocuRsgE6U0KkjzJv_BltyFIoSHGeis9Ck_AqdJvF8TrPxkocgZsKZqo9N9jp9wmRATpE_XDK5JRgsa2RtmkJf7NNet6jqz0MOZK0diuM9hj8fuBFmRoI/s1600/WP_20130522_004.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1521" data-original-width="921" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2ln6ZkYUn5HVW5jjg8nP2fjzocuRsgE6U0KkjzJv_BltyFIoSHGeis9Ck_AqdJvF8TrPxkocgZsKZqo9N9jp9wmRATpE_XDK5JRgsa2RtmkJf7NNet6jqz0MOZK0diuM9hj8fuBFmRoI/s200/WP_20130522_004.jpg" width="120" /></a>बहरहाल आज अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागिंग दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं देना महज औपचारिकता होगी। मुझे लगता है कि कुछ नहीं तो आत्ममंथन करना जरूरी है । हम सभी ब्लागरों को सोचना होगा कि हमने इस ब्लागिंग के सफर की शुरुआत कहां से की थी और आज कहां पहुंचे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं जाना कहां हैं, ये तय किए बगैर ही सफर की शुरुआत कर दी और चले जा रहे हैं, मंजिल का कोई अता पता ही नहीं। फिलहाल मित्रों की सलाह को मानते हुए एक बार फिर ब्लाग पर वापसी कर रहा हूं, कोशिश होगी कि यहां नियमित रहूं। आधा सच के साथ ही मेरे दो अन्य ब्लाग रोजनामचा और TV स्टेशन को भी अपने जेहन में याद रखें। प्लीज ।<br />
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महेन्द्र श्रीवास्तव<br />
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महेन्द्र श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.com37tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-12018528591032343652017-06-14T18:19:00.002+05:302017-06-14T18:19:55.185+05:30राष्ट्रपति चुनाव के बाद "शिव" राज का फैसला ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHySIbUcjXY9e-XJjEqYUchklrebKKTkK6NItX80sCVwmj4MT6euwv-AD3UuH45cLMjYpDuheEyoe_zpl62P5ZkhCy9GT7JwubV3D9O3Aee6XC8A5HKAfdegYWD8O5VslZKQQt-8afCAo/s1600/0101.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="415" data-original-width="700" height="189" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHySIbUcjXY9e-XJjEqYUchklrebKKTkK6NItX80sCVwmj4MT6euwv-AD3UuH45cLMjYpDuheEyoe_zpl62P5ZkhCy9GT7JwubV3D9O3Aee6XC8A5HKAfdegYWD8O5VslZKQQt-8afCAo/s320/0101.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><b>ए</b></span>क लाइन की खबर ये है कि राष्ट्रपति के चुनाव के बाद मध्यप्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना काफी बढ़ गई है। इस मसले पर बाकी बातें बाद में लेकिन बता दूं कि मूर्खाना हरकतों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर चर्चा में हैं । दूसरे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को मंदसौर जाने पर रोक लगाने वाले सीएम खुद वहां पहुंच गए और फुल ड्रामा किया । पहले तो जाते ही कुर्सी के बजाए वो जमीन पर बैठ गए , बाद में तथाकथित मृतक किसान के चार साल के बेटे को गोद मे बैठाया उसके पिता से आत्मीयता दिखाते हुए उनके दुख में खुद को शामिल बताया । सच्चाई ये है कि अब सूबे की जनता ही नहीं बल्कि पार्टी नेतृत्व का शिवराज से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है, उनकी सरकार पर बेईमानी के कई गंभीर आरोप है, इन गंभीर आरोपों में कई के तार उनके परिवार - रिश्तेदारों से भी जुड़े हुए हैं। लिहाजा अब शिवराज की पूरी कोशिश यही हैं कि वो क्या करें, जिससे अगले साल होने वाला चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाए, जबकि पार्टी आलाकमान पूरी तरह बदलाव का मन बना चुका है।<br />
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सूबे के हालात को नियंत्रित करने में पूरी तरह फेल रहे शिवराज कर क्या रहे हैं ये वो खुद ही नहीं जानते । सवाल ये है कि पुलिस की गोली में छह किसानों की मौत का जिम्मेदार कौन है, इस पूरे मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं और ये जांच शुरू भी हो गई है। सब ने देखा कि सड़कों पर उपद्रवियों ने सैकडों वाहनों में आग लगाई। पुलिस पर पथराव किया,कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर पुलिस ने सख्त कार्रवाई यानि गोली न चलाई होती तो कई पुलिस वाले भी मारे जाते। खुद मुख्यमंत्री ने कहाकि किसानों के आंदोलन के नाम पर विपक्ष और उपद्रवी तत्वों ने हालात बिगाड़े। अगर ऐसा है तो फिर सरकारी खजाने को क्यों लुटाया जा रहा है। जो लोग मारे गए हैं वो सड़क पर खेती करने नहीं उतरे थे, वो हिंसा भडका रहे थे, ऐसे लोगों की मौत पर सूबे की सरकार आँसू क्यों बहा रही है ये भी जांच का विषय हो सकता है।<br />
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अब देखिए जब राज्य में आग लगी है, जब मुख्यमंत्री को लगातार कानून व्यवस्था पर नजर रखनी चाहिए, सख्त फैसले लेने चाहिए , अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ मीटिंग कर शांति बहाली की रणनीति पर काम करना चाहिए, कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लगातार हालात की समीक्षा की जानी चाहिए, उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पत्नी के साथ फाइव स्टार उपवास पर बैठ गए। 24 घंटे के उपवास के लिए सरकारी खजाने से करोडो रुपये पानी की तरह बहा दिए, समझ में अभी तक नहीं आया कि आखिर इससे हल क्या निकला। उपवास से किसे पिघलाना चाहते थे। सच तो ये है चौहान साहब आपको किसान, किसानी और उनके गुस्से का अँदाजा ही नहीं था। आप पूरी तरह फेल रहे हैं , इसलिए नैतिक रूप से आपको सरकार में रहने का हक नहीं है। वैसे राष्ट्रपति चुनाव के बाद आप की कुर्सी पर खतरा है।<br />
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महेन्द्र श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-14764410843085657392017-06-06T15:58:00.000+05:302017-06-06T15:58:18.270+05:30स्वच्छता सर्वे या बिहार की मेरिट लिस्ट ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrZGKe-nau-11MmOctVYrh74R35zTYBPzMPsxXtUM_flwU0igxKbXyoi5hqT3LyxmJYWAllIpfy7E8q_3C9XqT1IzNoOQhCBzR8txeXLL1JYR9TXynEahBmnf4KyeFlQjw1QLJMMBPcrw/s1600/IMG_20170518_104925+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1200" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrZGKe-nau-11MmOctVYrh74R35zTYBPzMPsxXtUM_flwU0igxKbXyoi5hqT3LyxmJYWAllIpfy7E8q_3C9XqT1IzNoOQhCBzR8txeXLL1JYR9TXynEahBmnf4KyeFlQjw1QLJMMBPcrw/s320/IMG_20170518_104925+%25281%2529.jpg" width="240" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">स्वच्छता रिपोर्ट के कवर पेज से इंदौर गायब ! </td></tr>
</tbody></table>
<span style="font-size: large;"><b>स</b></span>च्चाई ये है कि अगर भारत सरकार की स्वच्छता सर्वेक्षण रिपोर्ट की बारीकी से निष्पक्ष जांच कराई जाए तो ये बिहार की मेरिट लिस्ट से कम नहीं निकलने वाली है। मुझे ये कहने में भी कत्तई हिचक नहीं है कि जिस तरह बिहार में जांच के बा<br />
द मेरिट में आए छात्र और उस स्कूल के प्राचार्य को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है , ठीक उसी तरह अगर इस स्वच्छता रिपोर्ट की निष्पक्ष जांच हो जाए तो ना सिर्फ इंदौर की हकीकत सामने आएगी, बल्कि यहां भी कई अफसरों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। दो साल इंदौर में रहा हूं, इसलिए ना सिर्फ यहां की सफाई से वाकिफ हूं बल्कि अफसरों की फितरत को भी भली भांति समझता हूं।<br />
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जान लीजिए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन यहां से सांसद है, इसलिए इंदौर के सामले में सभी राजनीतिक दल खामोश रहते हैं। ताई का ना सिर्फ इंदौर बल्कि देश भर में एक अलग सम्मान है। केंद्र सरकार की जो भी योजना होती है, सभी में इंदौर का नाम शामिल हो जाता है ,जबकि यहां तैनात ज्यादातर अफसर नाकाबिल है, लेकिन अपनी मार्केटिंग और जी हजूरी अच्छी कर लेते हैं। यहा हर उस अफसर को मुख्यमंत्री की ताकत मिलती है जो यहां के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय का विरोधी है । खैर अभी बात सिर्फ सफाई की ।<br />
इंदौर शहर को खान नदी दो हिस्सों मे बांटती है। गंदगी से अटी पड़ी ये नदी अब नाला बन चुकी है । इसके दोनों ओर भारी गंदगी है और इसके आप पास रहना मुश्किल है। जो इलाका साफ सुथरा दिखाई भी दे रहा था, मसलन विजयनगर, स्कील 54 वगैरह । यहां निगम अफसरों ने सड़क पर फूहड तरीके से टाँयलेट बनवा दिए है और उस पर गांव गिरांव की तरह लिखा है मूत्रालय । जैसा टाँयलेट इंदौर निगम ने बनवाया है वो टाँयलेट यूपी के गांव में बने टायलेट से भी घटिया है। चूंकि ताई की वजह से इंदौर को ना सिर्फ स्मार्ट सिटी स्कीम में शामिल किया गया बल्कि पहले 20 स्मार्ट सिटी में शामिल किए जाने से केंद्र सरकार से करोडों रुपये साफ सफाई के लिए मिल गए । अब अनाप शनाप पैसे मिल रहे हैं और अधिकारी मौज ले रहे हैं।<br />
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रिपोर्ट में कहा गया कि यूपी का गोंडा शहर सबसे गंदा है, मैं हैरान हूं कि भारत सरकार को ये रिपोर्ट जारी करने में शर्म भी महसूस नहीं हुई । अरे पता तो करते गोंडा को साफ सफाई के लिए कितना पैसा दिया गया है । इंदौर में तो माहौल बनाने के लिए एक दिन में अफसरों ने 10 लाख रुपये के गुब्बारे हवा में उ़डा दिए, गोडा मे सफाई के लिए साल में 10 लाख नहीं मिले होंगे । इस रिपोर्ट में स्वच्छता का जो क्राइट है, वो भी दोषपूर्ण है।<br />
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कुल 2000 अंको में शहरों को नंबर दिए गए हैं । इसमें 900 अंक स्थानीय निकायों के डाक्यूमेंटेशन का है, जबकि सिटीजन फीडबैक पर 600 और निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए महज 500 अंक है। अब अगर डाक्यूमेंटेशन में इँदौर को 875 अंक मिलते हैं और गोंडा को सिर्फ 52 तो इसमें शहर या शहरियों की क्या गलती है ? जिन अफसरों ने डाक्यूमेंटेशन ठीक नहीं किया, उन्हें अब तक निलंबित हो जाना चाहिए था। इसी तरह सिटीजन फीडबैक को ले लें , इसके 600 अंकों में से इंदौर को मिले हैं 467 और गोंडा के खाते में आए 192 अंक । यहां ये जानना जरूरी है कि इंदौर की आबादी गोंडा के मुकाबले चार गुना है, इंदौर संपन्न शहर है, ज्यादातर लोग मोबाइल और इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, जबकि गोंडा एक पिछडा शहर है। बता चुका हू कि इँदौर मे माहौल बनाने के लिए सिर्फ एक दिन में 10 लाख गुब्बारे हवा मे उडाए गए। अच्छा इसके बाद भी अंबिकापुर ने 501 अंक हासिल कर इंदौर को दूसरे नंबर पर धकेल दिया है। सबसे महत्वपूर्ण निष्पक्ष आब्जर्वेशन का है, जो सिर्फ 500 अंकों का है। इसमें इंदौर को 435 अंक मिले हैं, जबकि कई दूसरे शहरों को इंदौर से अधिक अंक मिले हैं।<br />
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साफ है कि भारत सरकार ने पूरी तरह गलत तथ्यों पर आधारित रिजल्ट घोषित किया था, यही वजह है कि कल यानि 5 जून को जनता का धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए प्रणाम इंदौर कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में लाखों रूपये पानी की तरह बहाए गए। भगवान को ये मंजूर नहीं था और उन्होंने अपना रौद्र रूप दिखाया, आंधी तूफान में सारे पांडाल उडा दिए , वीआईपी भी मुश्किल से यहां से निकल पाए । मैं चुनौती देता हूं कि अगर कोई निष्पक्ष टीम इंदौर का निरीक्षण करेगी तो ना सिर्फ यहां की हकीकत सामने आएगी, बल्कि बेईमान अफसरों को भी जेल जाना होगा ।<br />
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<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnDRrcxCXMPmilMeXdyAIrwue2UWpfRvGSFcWAcKNpW51hJcRinobGBNKqMVpslteaWD5AjMZeVTKvNwjB1JWg6ThvH8KOxbjLAPdY_mEDEzBwnBBYjPJERW09gtgOkkNzYAnsNpz4pqo/s1600/000.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="358" data-original-width="1024" height="111" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnDRrcxCXMPmilMeXdyAIrwue2UWpfRvGSFcWAcKNpW51hJcRinobGBNKqMVpslteaWD5AjMZeVTKvNwjB1JWg6ThvH8KOxbjLAPdY_mEDEzBwnBBYjPJERW09gtgOkkNzYAnsNpz4pqo/s320/000.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">भगवान को मंजूर नहीं झूठ !<br /><br /><br /></td></tr>
</tbody></table>
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<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_ypXV4aX-FUxJmw8HSRgbMplJ0ZpdF6Hb7lyIu2EBMFSS07haYUe4aFjLoyP01BxI6XmIS7MyO3Pz8Tzm_C1mwMg4JNARK-2vBRHGR42qmwvlgsXLunEIFLfOjhNOmRICCqYTKFbtrZU/s1600/IMG-20170518-WA0019.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1040" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_ypXV4aX-FUxJmw8HSRgbMplJ0ZpdF6Hb7lyIu2EBMFSS07haYUe4aFjLoyP01BxI6XmIS7MyO3Pz8Tzm_C1mwMg4JNARK-2vBRHGR42qmwvlgsXLunEIFLfOjhNOmRICCqYTKFbtrZU/s320/IMG-20170518-WA0019.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">इंदौर की असल तस्वीर !</td></tr>
</tbody></table>
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<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcM825vgR82OaR7aSLdo5daOo4pigmIoDdZswnqzndWypIHGukpOu08fwy-pMGTgdpAOizMFmvnh-1t6y19NnllbSpzssf80QdE0xnLc2NjTmFVzLNMdw5pdN79tO0t317qjmurIwZbDI/s1600/IMG-20170518-WA0008.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1040" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcM825vgR82OaR7aSLdo5daOo4pigmIoDdZswnqzndWypIHGukpOu08fwy-pMGTgdpAOizMFmvnh-1t6y19NnllbSpzssf80QdE0xnLc2NjTmFVzLNMdw5pdN79tO0t317qjmurIwZbDI/s320/IMG-20170518-WA0008.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">इंदौर की असल तस्वीर !</td></tr>
</tbody></table>
<br />
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAmbP46CZf-Z4HtmDJscb7qLTZIcXnUu84L6ImhTZuxOXN-T29kH97LtIQpiqGwX3JLsa2wO0AJKLJRGjdge0c5eiRsAef9fGauNV22KZeb1PjTiTl8UAZY4gsLyoz_iYpeqHYl-QxmZE/s1600/IMG-20170518-WA0018.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1040" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAmbP46CZf-Z4HtmDJscb7qLTZIcXnUu84L6ImhTZuxOXN-T29kH97LtIQpiqGwX3JLsa2wO0AJKLJRGjdge0c5eiRsAef9fGauNV22KZeb1PjTiTl8UAZY4gsLyoz_iYpeqHYl-QxmZE/s320/IMG-20170518-WA0018.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">इंदौर की असल तस्वीर !<br /><br /><br /></td></tr>
</tbody></table>
<br /></div>
महेन्द्र श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/18051207879771385090noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-59790934690554793502016-02-08T20:29:00.004+05:302017-06-05T13:19:55.843+05:30निदा फाजली : हम तुम्हें मरने ना देंगे !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJahEIDJfd0rt7GlKiG-QTIyD2vIITG2vRHFaXDYGjWlySg5nSA5IVC3OuQDjJqyw7_JzUuUAeWbs1zLzeJF2aZaMBJoppo3_5hBQaUsXxjHofgQR0FCBqKC35DyvWntNIVV-CtQkIiJ2B/s1600/2222.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJahEIDJfd0rt7GlKiG-QTIyD2vIITG2vRHFaXDYGjWlySg5nSA5IVC3OuQDjJqyw7_JzUuUAeWbs1zLzeJF2aZaMBJoppo3_5hBQaUsXxjHofgQR0FCBqKC35DyvWntNIVV-CtQkIiJ2B/s320/2222.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 21.4667px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 21.4667px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px;">
<span style="line-height: 21.4667px;"><span style="color: red; font-size: large;">स</span><span style="color: #141823; font-size: 14px;">च कहूं तो निदा फाजली की शायरी बड़ी सरलता के साथ अपनी बात कह जाती है। वह जमाने के शायर या यूं कहूं कि वो आम आदमी की रहनुमाई करने वाले इकलौते शायर थे। कबीर ने जिस रहस्यवाद और फक्कड़पन का तानाबाना बुना, निदा उसी परंपरा में खड़े नजर आते हैं। हा ये जरूर है कि दुनियावी रिश्तों में भी वे समरस हो जाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं, लेकिन उनके अंतर्मन में कोई ऐसी लहर उठती रही है कि वह फिर अपनी राह पर आगे बढ जाते हैं। फिर लगने लगता है कि भले वह कहें कि</span></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
"अपनी मर्जी से कहां, अपने सफर के हम हैं,<br />
हवाओं का रुख जिधर है उधर के हम हैं "</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
वैसे करीब से महसूस करने पर वे मतवाले ही लगते हैं। जिंदगी को अपनी तरह से जीने वाले। जिंदगी को जिस तरह जी लिया, उसी से वह अनगिनत मोती समेट लाए हैं। निदा यानी आवाज। उनका पुकारना कई तरह से सुना जाता है। कभी स्कूल जाते हुए बच्चों को देखकर, कभी मां की अनुभूतियों को याद कर,कभी अपनों की तलाश करते हुए उनकी भावुकता पन्नों पर उतर आती है। वह कबीर की परंपरा से भी इसलिए जुड़ जाते हैं कि वह कह सकते हैं,</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
"सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर,<br />
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर।"</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
न जाने उनसे कितनी बार सुना गया...</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
"जादू टोना रोज का, बच्चों का व्यवहार,<br />
छोटी सी एक गेंद में भर दें सब संसार। "<br />
बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान,<br />
अल्ला तेरे एक को इतना ब़ड़ा मकान।"</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
निदा आवाज देते हैं तो उसे गौर से सुना जाता है। उन्हें जब भी पाया, गहरी आत्मीयता से भरा हुआ पाया। जो उनसे छूटा, उसे उन्होंने अपनी जतन से जोड़ी हुई दुनिया से पाने की कोशिश की। जब भी मन भीगा, कोई पंक्ति निकल आई। वह न तो पूरी तरह सूफी हैं, न पूरी तरह सांसारिक। मगर गूढ़ा खूब है। जीवन की संवेदनाओं को उन्होंने ऐसे शब्द दिए हैं कि उन्हें बार-बार पढ़ा और सुना जाता है। जीवन को देखने का उनका तजुर्बा वाकई अलग है, तभी वह कह पाए हैं,</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
"सीधा साधा डाकिया जादू करे महान,<br />
एक ही थैले में रखे आंसू और मुस्कान।"</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
साहित्य की धूनी रमाने वाले तमाम साथी उनकी खूब चर्चा किया करते है, हालाकि निदा साहब काफी दिलचस्प व्यक्ति थे, जिनसे मिलना शुकून देने वाला होता है । उनके करीबी बताते हैं कि उनकी महफिलों का मतलब है किस्से, चर्चे, साहित्य की बातें, कुछ गॉसिप, चुहुलबाजी, सामयिक विषयों पर चर्चाएं, राजनीति की भी बातें और घर में ही मशीन पर बनते सोडा के साथ कांच के सुंदर गिलासों में भरती शराब, उनकी खुद की तैयार की हुई कोई नानवेज डिश और रोटी बनाने की मशक्कत से बचने के लिए पास की ब्रेकरी से मंगाए हुए पाव। उनके घर में निंदा रस की भी गुंजाइश रहती थी। इसकी चपेट में कवि, समीक्षक, साहित्यकार फिल्म जगत और अखबारी लोग ही आते थे। या फिर कथित सांप्रदायिक आचरण वाले लोगों पर उनका गुस्सा बरसता था। गीत संगीत साथ-साथ चलता और जब उनकी इच्छा हो तो राजनीति पर भी बातें हो जाती थीं।</div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-top: 6px;">
<br />
निदाजी का जीवन, दुनिया को देखने, समझने की तहजीब देता है। लोगों तक पहुंचने के लिए वे आवरण नहीं बनाते, लेकिन थोड़ी-सी परख हो तो निदा समझ में आने लगते हैं। सुना है शायरी-गजल लिखने के लिए शायद ही कभी वह अपना खास मिजा़ज बनाते हों। कब लिखते हैं, पता नहीं चलता । जब भी कुछ नया लेकर आते, उस दिन कुछ देर की संगत के बाद उसे धीरे-धीरे तर्ज में यार दोस्तों को सुनाने लगते। लोग वाह ! वाह ! ही करते। दूसरों को भी खूब सुनते हैं। युवाओं की कविता-कहानी, गीत,गजल को वह बहुत दिलचस्पी से सुनते थे। निदा जी के चले जाने की खबर वाकई पीडादायक है, लेकिन एक कलमकार यही कह सकता है कि निदाजी .. हम तुम्हें मरने ना देंगे, जब तलक जिंदा कलम है।</div>
<div>
<span style="color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 21.4667px;"><br /></span></span></div>
<div>
<span style="color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 21.4667px;"><br /></span></span>
<div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
<div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 21.4667px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
</div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-66283228157987135092015-10-18T23:27:00.000+05:302015-10-19T17:49:27.404+05:30औकात है तो हमारा " प्यार " वापस दो ! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmqDOprjCnB4hpE3swUvBqz8pKFb_Pqtz5Z12mJmwuw3A8H2edAwT1XsQg8b7o3rFjYwPyHsdO48jjcrOSdslm5dPBico-lf7kl5_J3bAgN-p0Vig4AOmuQnbcDXnIqnGV__OtBmFMZ3Ss/s1600/121212.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="137" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmqDOprjCnB4hpE3swUvBqz8pKFb_Pqtz5Z12mJmwuw3A8H2edAwT1XsQg8b7o3rFjYwPyHsdO48jjcrOSdslm5dPBico-lf7kl5_J3bAgN-p0Vig4AOmuQnbcDXnIqnGV__OtBmFMZ3Ss/s200/121212.jpg" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">दे</span>श के जाने माने शायर मुनव्वर राना का असली चेहरा आज सामने आया। इस उम्र में इतनी घटिया एक्टिंग एक राष्ट्रीय चैनल पर करते हुए उन्हें देखा तो एक बार खुद पर भरोसा नहीं हुआ। लेकिन चैनल ने भी अपनी टीआरपी को और मजबूत करने का ठोस प्लान बना रखा था, लिहाजा मुनव्वर राना का वो घटिया कृत्य बार बार दिखाता रहा। राना का फूहड़ ड्रामा देखकर एक बार तो ये भी भ्रम हुआ कि मैं टीवी का टाँक शो देख रहा हूं या फिर कलर्स चैनल का रियलिटी शो बिग बाँस देख रहा हूं। वैसे नफरत की राजनीति करने वाले राना अगर बिग बाँस के घर के लिए परफेक्ट हैं !<br />
<br />
<br />
आइये अब पूरा मसला बता दे, रविवार के दिन आमतौर पर न्यूज चैनलों के पास करने को ज्यादा कुछ होता नहीं है। उन्हें कुछ सनसनी टाइप चीजों की जरूरत होती है। इसके लिए आज ABP न्यूज चैनल पर राजनीतिज्ञों के साथ साहित्यकारों को बैठाया गया और साहित्य अकादमी पुरस्कारों के वापस करने पर बहस शुरू हुई। सच ये हैं कि देश की जनता आज तक ये नहीं समझ पाई कि साहित्यकार अचानक सम्मान वापस क्यों कर रहे हैं। सोशल साइट पर तो भले ही बात मजाक में कही जा रही हो लेकिन कुछ हद तक सही भी लगती है। " शायद साहित्यकारों ने अपना ही लिखा दोबारा पढ़ लिया और उन्हें शर्म आ रही है कि ऐसी लेखनी पर तो वाकई अवार्ड नहीं बनता, चलो वापस कर दें " । मुझे तो हंसी इस बात पर आ रही है कि साहित्य अकादमी का पुरस्कार वापसी के बाद पता चल रहा है कि इन्हें भी मिल चुका है ये अवार्ड ।<br />
<br />
<br />
चलिए अब सीधे मुनव्वर राना से बात करते हैं । जनाब आप तो कमाल के आदमी हैं, अवार्ड में मिले रुपये का चेक और मोमेंटो हमेशा साथ झोले में रख कर चलते हैं। आप तो टीवी शो पर एक बहस मे हिस्सा लेने आए थे, यहीं आपने चेक और मोमेंटो एंकर को थमा दिया। मै जानता हूं आपको खबरों और उसकी सुर्खियों में बने रहने का सलीका पता है। राना साहब ये सब संयोग तो बिल्कुल नहीं हो सकता । मैं तो दावे के साथ कह सकता हूं कि या तो आपने चैनल के साथ समझौता किया कि हम यहां अवार्ड वापस करेंगे और आपको उसके बाद पूरा शो इसी पर दिखाना है या फिर रायबरेली की उस पार्टी इशारे पर नाच रहे हैं जिसकी आप चरण वंदना करते नहीं थकते हैं। वैसे राना साहब आपके ही किसी शायर की दो लाइन याद आ रही है ....<br />
<br />
<br />
<span style="color: red;">कौन सी बात कब कहां और कैसे कही जाती है</span><br />
<span style="color: red;">ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है । </span><br />
<br />
शायर की ये बेसिक बात भी आप भूल गए राना जी। न्यूज रूम कैमरा देख इतना भावुक हो गए कि आपने देश की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया । चलिए मैं देखता हूं कि आप कितने अमीर हैं और हमारे कितने अवार्ड वापस करते हैं। अगर है आप में दम और औकात तो आपको सुनने के लिए देर रात तक मुशायरे में बैठे रहने वाला समय हमें वापस कीजिए। है औकात तो देशवासियों से मिली तालियां वापस कीजिए, है इतनी हैसियत तो हमारी वाहवाही भी वापस कीजिए। इतना ही नहीं अगर आपके पूरे खानदान की औकात हो तो देशवासियों ने जो प्यार आपको दिया है वो वापस कीजिए। राना जी राजनीति घटिया खेल है, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन आप उसी घटिया राजनीति के शुरू से हिस्सा रहे हैं।<br />
<br />
<br />
टीवी पर एंकर कमजोर थी, शो का प्रोड्यूसर भी शायद आपके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखता था। वरना तो उसी ABP न्यूज चैनल पर आपका असली रूप दिखा और सुना भी सकता था। लोगों को भी आपकी असलियत का पता तो चलता । आप को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी कितनी प्रिय हैं ये तो सबको पता होना ही चाहिए ।<br />
<br />
सोनियां गांधी के चरणों में मुनव्वर राना की भेंट । पढ़ तो लीजिए ही उनकी भावनाओं को, लेकिन संभव हो तो यूट्यूब पर जाकर इसे राना साहब की आवाज में सुनें भी, देखिए कितना दर्द है उनके भीतर ...<br />
<br />
<br />
एक बेनाम सी चाहत के लिए आयी थी,<br />
आप लोंगों से मोहब्बत के लिए आयी थी,<br />
मैं बड़े बूढों की खिदमत के लिए आयी थी,<br />
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी ?<br />
शिज्रा-ए-रंग-व-गुल-व-बू नहीं देखा जाता,<br />
शक की नज़रों से बहु को नहीं देखा जाता !<br />
रुखसती होते ही माँ बाप का घर भूल गयी,<br />
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी,<br />
घर को जाती हुयी हर राहगुज़र भूल गयी,<br />
में वह चिड़िया हूँ जो अपना ही शजर भूल गयी,<br />
में तो जिस देश में आयी थी वही याद रहा,<br />
होके बेवा भी मुझे सिर्फ पति याद रहा !<br />
नफरतों ने मेरे चेहरे से उजाला छीना,<br />
जो मेरे पास था वह चाहने वाला छीना,<br />
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,<br />
मुझ से गिरजा भी लिया मेरा शिवाला छीना,<br />
अब यह तकदीर तो बदली भी नहीं जा सकती,<br />
में वो बेवा हूँ जो इटली भी नहीं जा सकती !<br />
अपने घर में यह बहुत देर कहाँ रहती है,<br />
लेके तकदीर जहाँ जाये वहां रहती है,<br />
घर वही होता है औरत का जहाँ रहती है,<br />
मेरे दरवाज़े पे लिख दो यहाँ माँ रहती है,<br />
सब मेरे बाग़ के बुलबुल की तरह लगते है,<br />
सारे बच्चे मुझे 'राहुल' की तरह लगते हैं !<br />
हर दुखे दिल से मोहब्बत है बहु का ज़िम्मा,<br />
घर की इज्ज़त की हिफाज़त है बहु का ज़िम्मा,<br />
घर के सब लोंगों की खिदमत है बहु का ज़िम्मा,<br />
नौजवानी की इबादत है बहु का ज़िम्मा आयी,<br />
बाहर से मगर सब की चहीती बनकर,<br />
वह बहु है जो रहे साथ में बेटी बनकर !<br />
<br />
<br />
<br />
राना साहब आपकी हैसियत नहीं है देश से मिले सम्मान को वापस करने की। आपको देश से माफी मांगनी चाहिए । वरना देश आपको कभी माफ नहीं करेगा।<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-54904024667421419972015-10-12T03:30:00.000+05:302015-10-14T13:59:41.907+05:30इंदौर : जल्लाद से कम नहीं अफसर और डाक्टर !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj831LWxygZWBprC10oaXFgqXzdxH2rA0nZM1i-yLQ3zzn0qvW-9QIwsv8oumtRWrzoBRq6nTeePstetg3bAgMJCwV_4lGa25ihojv-CNsy1lAnmSZfVEJpstJdglrUFNyd9fuGwYJTtnVH/s1600/121212.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj831LWxygZWBprC10oaXFgqXzdxH2rA0nZM1i-yLQ3zzn0qvW-9QIwsv8oumtRWrzoBRq6nTeePstetg3bAgMJCwV_4lGa25ihojv-CNsy1lAnmSZfVEJpstJdglrUFNyd9fuGwYJTtnVH/s1600/121212.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">रा</span>त के दो बज रहे हैं, कुछ देर पहले ही आफिस से आया हूं, नींद नहीं आ रही है, लेकिन मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं, वजह ! इंदौर में एक ऐसा हादसा जिसने कम से कम मुझे तो बुरी तरह झकझोर कर रख ही दिया है। पूरी घटना की चर्चा करूं, इसके पहले आपका इतना जानना जरूरी है कि एक गरीब सड़क दुर्घटना में घायल हो गया, जब वो अस्पताल पहुंचा तो यहां डाक्टर इस घायल मजदूर के इलाज में कम उसके अंगदान करने पर ज्यादा रूचि लेते रहे। इतना ही नहीं पर्दे के पीछे शहर में तैनात एक बड़ा हुक्मरान लगातार प्रगति पूछता रहा कि परिवार के लोग अंगदान खासतौर पर लिवर दान के लिए तैयार हुए या नहीं ? काफी मान मनौव्वल करके आखिर में परिवार को अंगदान के लिए डाक्टरों ने तैयार कर ही लिया और इस मरीज को " ब्रेनडेड " बताकर इसका लिवर, दोनों किडनी, दोनों आंखे और स्किन निकाल ली। इसके बाद इस परिवार के साथ जो हुआ उससे अफसर, अस्पताल और डाक्टरों की हैवानियत सामने आती है। परिवार को शव सौंपने के लिए पहले इलाज का बिल चुकाने का दबाव बनाया गया, 17 हजार जमा कराने के बाद ही शव दिया गया। अस्पताल से एंबुलेंस के जरिए ये शव जब मरीज के गांव पहुंचा तो ड्राईवर शव उतारने के पहले किराए के 2800 रुपये वसूल लिए, तब लगता है कि मध्यप्रदेश में वो सब भी होता है जो यूपी और बिहार के अफसर भी करने के पहले सौ बार सोचते हैं। सच तो ये कि इन डाक्टरों और अफसरों को जल्लाद कहूं तो भी गलत नहीं है।<br />
<br />
<br />
चलिए अब सीधे मुद्दे पर बात करते हैं। इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर खरगोन में सोमवार 5 अक्टूबर को सड़क दुर्घटना में एक मजदूर घायल हो गया, लोगों ने उसे वहां के जिला सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया। डाक्टर ने प्राथमिक चिकित्सा के बाद परिवार से कहाकि अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब है, आप बाहर से सीटी स्कैन करा लें । ये सुनकर परिवार के लोग एक दूसरे की ओर देखने लगे, क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो बाहर से सीटी स्कैन करा सकें। इस पर डाक्टर ने घायल मजदूर को ये कहकर इंदौर रैफर कर दिया कि यहां सुविधाएं नहीं है। परेशान परिजन रात करीब नौ बजे घायल मजदूर को वहां से लेकर इंदौर के लिए निकल जाते हैं।<br />
<br />
<br />
असल कहानी यहां से शुरू होती है। तीन घंटे के रास्ते में परिवार के लोग इंदौर में रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार से बात करते हैं, जो एक साधारण सी नौकरी करता है। अंदरखाने इनकी क्या बातचीत होती है ये यही लोग बता सकते हैं, लेकिन हैरानी इस बात की हुई रात १२ बजे जब ये मरीज को लेकर इंदौर पहुंचते हैं तो वो यहां के सरकारी अस्पताल नहीं जाते, बल्कि सीधे एक प्राईवेट पांच सितारा अस्पताल में मरीज को ले जाते हैं। जबकि इस अस्पताल में मरीज को बाद में अंदर किया जाता है, पहले हजारों रुपये अंदर किए जाते हैं। अस्तपाल इस मामले में काफी बदनाम भी है, ज्यादातर लोग यहां से असंतुष्ट होकर ही जाते हैं। खैर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जिस परिवार के पास तीन घंटे पहले सीटी स्कैन कराने के पैसे नहीं थे, अचानक ऐसी कौन सी लाटरी लगी कि वो इस लुटेरे साँरी पांच सितारा अस्पताल में आ गए। खैर यहां उनका रिश्तेदार इंतजार कर रहा था, उसने तुरंत 10 हजार रुपये जमा किए और घायल मजदूर को अस्पताल वालो ने अंदर कर लिया।<br />
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परिवार के लोगों को रात भर नहीं पता चला कि उसके मरीज का क्या हाल है, क्या इलाज चल रहा है, मरीज कोई रिस्पांड दे भी रहा है या नहीं। कुछ भी परिवार के लोगों से चर्चा नहीं हुई, हां एक दो बार ये जरूर कहा गया कि इलाज चल रहा है। अरे भाई अस्पताल है तो इलाज तो होगा ही ना, ये क्या बात हुई ? अब सुबह हो चुकी थी यानि मंगलवार का दिन और सुबह के लगभग साढे सात ही बजे होंगे कि दिल्ली से दो डाक्टर इंदौर आ गए । इन डाक्टरों ने मजदूर के परिवार को बुलाया और बात शुरू की। जानते हैं क्या बात चीत की गई ? बात ये कि कम उम्मीद है कि आपका मरीज ठीक हो, अगर ऐसा है तो आप लिवर दान कर दीजिए, किसी की जान बच जाएगी। वेवजह इंतजार करना ठीक नहीं है। सुबह साढे सात बजे ये बात शुरू हुई और हर घंटे दो घंटे पर यही बात दुहराई जाने लगी। मंगलवार को शाम होते होते अस्पताल के भी डाक्टर अंगदान पर जोर देने लगे। शर्मनाक ये कि लिवर लेने के लिए इंदौर का एक बडा हुक्मरान भी अस्पताल पहुंच गया, पर उन्होंने मरीजों से सीधे बात नहीं की, डाक्टरों के जरिए ही दबाव बनाते रहे। बहरहाल जो कुछ भी हुआ हो अगले दिन सुबह ही शहर में हलचल तेज हो गई । इस पांच सितारा अस्पताल से एयरपोर्ट तक " ग्रीन कांरीडोर " घोषित कर दिया गया । ग्रीन काँरीडोर मतलब एंबुलेंस निकले तो हर वाहन को रोक दिया जाए।<br />
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ग्रीन कारीडोर की खबर शहर में फैलते ही मीडिया सक्रिय हुई तो पता चला कि एक घायल मजदूर को डाक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया है और अब उस मजदूर के परिवार की इच्छानुसार उसका अंगदान किया जाना है। मजदूर का लिवर दिल्ली जा रहा है, जबकि किडनी और आँख, स्किन इंदौर में इस्तेमाल किया जाएगा। यहां एक बात बताना जरूरी है, चमत्कार को मेडिकल साइंस भी पूरी तरह नकारता नहीं है, उसे भी लगता है कि कई बार चमत्कार होते हैं और ऐसे मरीज ठीक हो जाते हैं जिनकी उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं होती है। अब देखिए यहां तो रात में मरीज भर्ती हुआ और सुबह ही डाक्टर उसका लिवर और किडनी आंख सब मांगने लगे। इसके आगे का सच सुनेंगे तो डाक्टरों और अफसर पर थूकने लगेंगे। बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ दिन पहले एक एक्सीडेंट हुआ था, उसके घायल का भी लिवर लेने का विचार हो रहा था, लेकिन मरीज दगा दे गया और उसने समय से पहले ही दम तोड़ दिया, इसलिए इस बार डाक्टर कोई रिश्क नहीं लेना चाहते थे।<br />
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जब तक डाक्टरों के हाथ लिवर नहीं लगा था, तब तक तो परिवार वालों को तरह तरह के लालच दिए जा रहे थे। मरीज के भाई से कहा गया कि उसके अंधे बेटे को निशुल्क आँख लगा दी जाएगी, वो देखने लगेगा। ऐसे ही ना जाने क्या क्या दिलासा दिलाया गया, लेकिन जैसे ही लिवर लेकर डाक्टरों ने दिल्ली के लिए उडान भरी, यहां घंटो से डेरा डाले रहा अफसर सबसे पहले खिसक गया। अब अस्पताल ने परिवार वालों को शव दिए जाने के पहले इलाज का पैसा देने को कहा। बहरहाल उनका जो रिश्तेदार इँदौर में मौजूद था उसने कुछ इंतजाम कर 17 हजार रुपये जमा किए। तब जाकर बाँडी दी गई, लेकिन गांव पहुंचने पर शव को उतारने से पहले ड्राईवर अड गया और उसने 2800 रुपये ऐंठ लिए।<br />
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दो दिन बाद मीडिया में जब ये खबर आई कि अस्पताल ने अंगदान करने वाले के परिवार से ऐसा बर्ताव किया तो पहले अस्पताल प्रबंधन की ओर से कहा गया कि बिल तो सवा लाख के करीब था लेकिन सिर्फ 27 हजार ही लिया गया है, लेकिन मामला तूल पकड रहा था, इसे देखकर फिर अखबार के दफ्तरों को फोन कर कहा गया कि जो पैसा लिया गया है वो वापस कर दिया जाएगा। एक दिन खबर छपी तो इंदौर से भोपाल तक डाक्टर, अफसर और नेताओं सभी के पसीने छूट गए। तुरंत एक अफसर मजदूर के गांव पहुंचा और रेडक्रास सोसाइटी की तरफ से अंगदान करने वाले परिवार को एक लाख रुपये का चेक दे आया। अगले दिन मुख्यमंत्री ने भी पांच लाख रुपये की घोषणा कर दी । मेरी समझ में नहीं आया कि ये सहायता है या फिर सौदा ?<br />
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बहरहाल अब मजदूर की मौत हो चुकी है, उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है, पर ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर दिल्ली में किस बड़े आदमी को लिवर देने के लिए मजदूर की जान बचाने की कोशिश तक नहीं हुई और लिवर निकालने की डाक्टरों ने जल्दबाजी की। इंदौर के हुक्मरान ने तो नियम कायदे को भी ताख पर रख दिया और प्राईवेट अस्पताल के ओटी में पोस्टमार्टम करने के लिए सरकारी डाक्टरों को बुला लिया, जबकि नियमानुसार पोस्टमार्टम प्राईवेट अस्पताल में हो ही नहीं सकता। इससे भी लगता है कि कोई बडे नेता का रिश्तेदार होगा जिसे लिवर की जरूरत थी या फिर पैसे वाला। बहरहाल अब तड़के साढे तीन बजने वाले हैं, मन यही कह रहा है कि इँदौर का ये अफसर कहीं वाकई कातिल तो नहीं है ?<br />
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<b><span style="color: red;">नोट :</span></b> मित्रों दिल को दहला देने वाली इस घटना ने मेरी तो नींद उड़ा दी है, कहना सिर्फ इतना है कि ये वाकया हर आदमी तक पहुंचना चाहिए, जिससे मध्यप्रदेश और यहां के हुक्मरानों का असली चेहरा लोगों तक पहुंच सके । प्लीज ...<br />
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Unknownnoreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-4607883473216871982015-09-29T00:32:00.000+05:302015-09-29T00:32:16.739+05:30इंदौर: कभी पी नहीं, फिर भी कर रहे शराब की बुराई !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj81I5GCZFbQhM77oAHva-A7nF6s8VBQtX4-e0d6zcO6fngfQZh18JhGey3JlJMLNVBxqMZ3JZABrv90jhx3FIBemstvNbVcbWZo-mOGW6Hmze1NKTaMIk2mOAOXM8ePS17DzUJWYzIeh-Y/s1600/1111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj81I5GCZFbQhM77oAHva-A7nF6s8VBQtX4-e0d6zcO6fngfQZh18JhGey3JlJMLNVBxqMZ3JZABrv90jhx3FIBemstvNbVcbWZo-mOGW6Hmze1NKTaMIk2mOAOXM8ePS17DzUJWYzIeh-Y/s1600/1111.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">आ</span>जकल इंदौर में हूं, बड़ा सात्विक शहर है, मैं भी आज सुबह ही शहर के राजा यानि " खजराना गणेश " जी के दर्शन करके आया हूं। अभी यहां गणेश उत्सव चल रहा था, आज ही खत्म हुआ है, कहते हैं कि गणेश उत्सव के दौरान घर-घर गणेश जी विराजते हैं, इसलिए इस दौरान शराब वगैरह नहीं पीना चाहिए। रविवार को दोपहर १२.०६ बजे गणेश जी का विसर्जन होते ही श्राद्ध शुरू हो गया, अब शराब तो श्राद्ध में भी नहीं पी जाती और श्राद्ध खत्म होते ही नवरात्र की शुरुआत। अब मित्रों ऐसे तो नहीं चल सकता ना। एक बात बताऊँ, इंदौर में हर आदमी शराब का विरोधी है, कुछ दिन पहले सूबे की सरकार ने शराब की दुकानों के बंद होने का समय रात ११ से बढ़ाकर ११.३० कर दिया, इस बात पर शहर में बवाल हो गया, इसके खिलाफ अखबार के पन्ने रंग गए, कोर्ट में जनहित याचिका लग गई। मैने भी सोचा ये क्या हो गया है सूबे के मुख्यमंत्री को ... बेवजह बैठे बिठाए विवादों को जन्म दे दिया। खैर इंदौर के बारे में ये बताना भी जरूरी है कि शहर में जहां मैं रहता हूं, उसके करीब में ही कई नेशनल बैंक की शाखाएं हैं और इससे बिल्कुल लगी हुई व्हिस्की की एक बड़ी दुकान है, लेकिन यहां सुबह बैंक से पहले व्हिस्की की दुकान खुल जाती है और बैंक मे कस्टमर हों या ना हों शराब की दुकान पर रौनक जरूर रहती है। इंदौर में हर समाज के लोग शराब पीते तो हैं, लेकिन दुकान से खुद शराब खरीदने से डरते हैं, वजह ये कि कोई देख ना ले। इसलिए यहां ज्यादातर शराब की दुकानों के आस पास कुछ लड़के खड़े मिल जाएंगे जो शराब की दुकान से दूर खड़ी कारों में शराब पहुंचा देते हैं।<br />
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ये तो रही शराब की दुकानों की बात ! थोड़ी चर्चा नानवेज की भी जरूरी है। बात पुरानी है, मैं यहां अपने पारिवारिक मित्र के साथ एक दिन कारोबार पर था । ( नया शहर है, शायद कारोबार ना समझे, इसलिए बताना जरूरी है, कारोबार बोले तो कार में बार ) हम लोगों ने अपनी कार शहर के जाने माने नानवेज ठेले ( गुरुद्वारे के पास ) पर रोकी, मैं थोड़ा खुश भी हुआ कि बिल्कुल भीड़ नहीं है, तुरंत नानवेज मिल जाएगा। यहां पर खासतौर पर चिकन फ्राई और फिश फ्राई ज्यादा टेस्टी है। ठेलेवाले को आर्डर देने के काफी देर बाद तक जब उसने हमें फिश और चिकन नहीं दिया तो मैं कार से उतरा और पूछा कि तुम्हारे पास एक भी ग्राहक नहीं है और इतनी देर हो गई, अभी तक हमें नहीं दिया। दुकानदार ने बड़े ही मासूमियत से कहा " बाबू जी आस पास २०० मीटर तक की दूरी पर जितनी भी गाड़िया खड़ी हैं, सभी के आर्डर हैं, इन सभी गाडियों में लोग ड्रिंक्स ले रहे हैं, ठेले के पास गाड़ी इसलिए खड़ी नहीं करते कि कोई देख ना ले, ज्यादातर लोग यहां चोरी से नानवेज खाते हैं। आपके आर्डर में थोड़ा समय और लगेगा। " मेरा माथा ठनका, खुद से सवाल किया, क्या है ये शहर, होता सब है लेकिन चोरी से ।<br />
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अच्छा खास बात ये कि नानवेज और शराब की बुराई करने में वो लोग शामिल हैं जिनको इसका दो पैसे का अनुभव नहीं है । इन लोगों ने न कभी शराब पर पैसे खर्च किए और ना ही लाइन में लगकर मटन की शाप से मांस खरीदा। ऐसे लोग जब शराब और नानवेज की बुराई करते हैं तो मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत पीड़ा होती है। मुझे नानवेज का बचपन से और ड्रिंक्स का पिछले २५ साल का पर्याप्त अनुभव है और मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि कुछ बातों का ख्याल भर रख लिया जाए तो ये दारू आपके लिए दवा बन जाती है और कई गंभीर बीमारियों के बीच में पत्थर की तरह खड़ी हो जाती है। जो नहीं जानते वो कुछ भी कहें, लेकिन रिसर्च में आई कुछ जानकारी आप से शेयर करना चाहता हूं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में व्हिस्की की बिक्री में काफी बढ़ोत्तरी हुई हैं । सच ये है कि अल्कोहल में भी लोगों का फेवरेट ब्रांड व्हिस्की बनता जा रहा है। आप हंसेंगे या फिर इसे जोक समझेगें, लेकिन सही ये है कि व्हिस्की के कई फायदे भी हैं।<br />
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<b><span style="color: red;">व्हिस्की से वजन नहीं बढता :</span></b> आमतौर पर नासमझ लोग बीयर पीते हैं, जबकि कई साऱी मिक्स ड्रिंक्स पीने से बेहतर है कि लो कैलोरी वाली व्हिस्की पी जाए। जानकारों की माने तो व्हिस्की में कार्बोहाइड्रेट का पर्याप्त श्रोत पाया जाता है, इसके एक पैग में सिर्फ ५ केलोरी होती है, जिससे मोटापा नहीं नहीं बढ़ता है और ये आपके पाचन को भी दुरुस्त रखती है।<br />
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<b><span style="color: red;">ह्दय के स्वास्थ के लिए फायदेमंद</span></b> : डार्क बीयर और वाइन के अलावा व्हिस्की भी ऐसा पदार्थ है जो कि ह्रदय के लिए काफी फायदेमंद है, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर व्हिस्की हार्ट अटैक के खतरे को कम करती है, इतना ही नहीं ये गुड कॉलेस्ट्रॉल को भी बढ़ाता है।<br />
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<b><span style="color: red;">कैंसर से लड़ने में मदद :</span></b> व्हिस्की में एलाजिक एसिड, एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण ये शरीर में कैंसर से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, इतना ही नहीं, व्हिस्की केंसरे के मरीजों को होने वाली कीमोथेरेपी के प्रभाव को भी कम करता है।<br />
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<b><span style="color: red;">दिमाग की सेहत को रखती है तंदरूस्त </span></b>: कई रिसर्च अब ये बात साबित कर चुकी हैं कि व्हिस्की की एक सीमित मात्रा लेने से अल्जाइमर बीमारी और डिमेन्शिया के खतरे को कम किया जा सकता है, इथेनोल की अच्छी मात्रा होने के कारण ये दिमाग के न्यूरॉन्स को सक्रिय रखने में मदद करता है, इससे याददाश्त ठीक रहती है।<br />
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<b><span style="color: red;">स्ट्रोक के खतरे को करती है कम :</span></b> क्योंकि ये बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है इस वजह से स्ट्रोक का खतरा भी कम हो जाता है, व्हिस्की धमनियों में खून क्लॉट होने से रोकने में मदद करती है, जिससे दिल के दौरे का खतरा काफी कम हो जाता है।<br />
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<span style="color: red;"><b>तनाव को करता है कम :</b></span> ये तो सभी जानते हैं तनाव ना सिर्फ शरीर को बीमार करता है बल्कि इससे मेंटल हेल्थ भी प्रभावित होती है, ऐसे में व्हिस्की की एक सीमित मात्रा लेने से तनाव दूर होता है और नर्व्स को आराम मिलता है.<br />
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<b><span style="color: red;">मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद</span></b> : व्हिस्की में शुगर की मात्रा कम होती है ऐसे में ये उन लोगों के लिए परफेक्ट ड्रिंक हो सकती है जो डायबिटीज के शिकार है, यहां याद रखना होगा कि रम जरूर शूगर को बढाता है। रम और व्हिस्की में अंतर करना जरूरी है।<br />
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<b><span style="color: red;">चलते- चलते</span></b><br />
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दो दिन पहले इंदौर में बकरीद पर हुई नमाज के बाद अपनी तकरीर में शहर काजी ने कहाकि कुछ स्थानों पर मुश्लिम महिलाएं नशे का सेवन कर रही हैं, उन्हें इससे दूर रहना चाहिए। हालाकि नशा करना ठीक नहीं है, ये बात सौ प्रतिशत सही है, पर मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि अब मुश्लिम महिलाएं भी देश की मुख्यधारा से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं। <br />
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Unknownnoreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-37672297412835169602015-08-09T00:27:00.001+05:302015-08-09T00:27:39.655+05:30UP : कम से कम भ्रष्टाचार में तो ईमानदारी हो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd54fBC9A2QBnZrTODhEgNaYZoKfxRlLBxNWdGgdqj7uMbAXhtRC00RZ5g0caIgkvf9UOTtEwMrtXceKkQNA6QyXziCUV_pYtB3iixAsGEGlsLJJ1iCmd5NtxIhjwPrTbaev1VmA8jU4fM/s1600/11111.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd54fBC9A2QBnZrTODhEgNaYZoKfxRlLBxNWdGgdqj7uMbAXhtRC00RZ5g0caIgkvf9UOTtEwMrtXceKkQNA6QyXziCUV_pYtB3iixAsGEGlsLJJ1iCmd5NtxIhjwPrTbaev1VmA8jU4fM/s1600/11111.jpg" /></a></div>
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माननीय अखिलेश यादव जी<br />
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार<br />
लखनऊ<br />
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विषय : भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू करने के संबंध में<br />
<br />
महोदय,<br />
<br />
मैं आपसे ऐसी कोई मांग नहीं करना चाहता जो संभव न हो, मै ये भी नहीं चाहता कि आप दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह भ्रष्टाचार पर बड़ी बड़ी बातें करें और फिर भ्रष्टाचारियों को खुद ही संरक्षण दें। अखिलेश जी मेरी मांग बहुत ही व्यवहारिक है और इसे लागू करने से सरकार की आमदनी तो बढेगी ही, प्रदेश के लोगों का सरकार पर भरोसा भी बढेगा। खास बात ये है कि इस योजना को लागू करने से सरकार पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ भी नहीं बढ़ने वाला है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इससे जनता की शिकायतें भी कम हो जाएंगी। बस सर भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दीजिए।<br />
<br />
कैसे करना है ? चलिए ये भी मैं बताता हूं। केंद्र सरकार की तर्ज पर कीजिए। केंद्र सरकार रेलवे में " तत्काल टिकट " के नाम पर अतिरिक्त पैसे वसूल रही है ना ! एक ही क्लास, एक ही ट्रेन, एक ही डिब्बे में आमने सामने बैठे यात्री अलग - अलग किराया देकर आराम से सफर करते हैं ना ! आज तक किसी ने इसकी शिकायत की ? ये वो सरकारी भ्रष्टाचार है जो लीगल है। अब तो रेलवे ने प्रीमियम ट्रेन के नाम पर और अधिक पैसे वसूलने की तैयारी कर ली ।<br />
<br />
केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय का उदाहरण ले लीजिए, पासपोर्ट बनवाने की फीस है १५०० रुपये, लेकिन आपको तत्काल ये सुविधा चाहिए तो दो हजार रुपये अतिरिक्त देने पर ये काम भी आसानी से हो जाता है। आपको तय समय के भीतर पासपोर्ट मिल जाता है। ये भी तो भ्रष्टाचार का काउंटर ही है मुख्यमंत्री जी।<br />
<br />
एक और उदाहरण देता हूं ! भारतीय डाक तार विभाग ने क्या किया ? एक ही वजन और दूरी के पत्र को निर्धारित स्थान पर पहुंचाने का अलग अलग कीमत वसूल रहा है। इसे नाम दिया गया है स्पीड पोस्ट ! धडल्ले से सरकार काउंटर खोलकर जनता को बेशर्मी से चूना लगा रही है।<br />
<br />
अखिलेश जी, आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप भी सूबे में भ्रष्टाचार का काउंटर खोल दीजिए, अतिरिक्त पैसे वसूलना शुरू कीजिए, लेकिन इसके लिए बकायदा काउंटर खुलवा दीजिए। आज उत्तर प्रदेश में कोई भी काम बिना पैसे के नहीं हो रहा है। हर छोटे छोटे काम के लिए पैसे दिए जा रहे हैं, फिर भी मुख्यमंत्री जी काम नहीं हो रहा है।<br />
<br />
उदाहरण के लिए आपको बताऊं...<br />
<br />
मै खुद अपनी बेटी के लर्निंग लाइसेंस के लिए जुलाई १५ में लखनऊ के आरटीओ आफिस गया और नियम के तहत लर्निंग लाइसेंस बनवाने के लिए पूरा दिन लगाया। कई कतार में लगा, सारे अभिलेख चेक कराए, आफिस में फोटो खिंच गए, लेकिन जब टेस्ट हुआ तो जो बेटी हाईस्कूल और इंटर में प्रथम श्रेणी में पास है, वो इस परीक्षा में फेल हो गई। आरटीओ आफिस से एक पत्र थमाया गया कि १५ दिन में दोबारा टेस्ट दीजिए।<br />
<br />
मुख्यमंत्री जी आपको पता है सुबह ११ बजे से शाम को पांच बजे तक आरटीओ आफिस में जुटे रहने के बाद सिर्फ फेल का रिजल्ट ही मेरे हाथ लगा। वापस लौट रहा था तो एक दलाल ने टोका, भाई साहब अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। पांच सौ रुपये मैने दिए और पांच छह दिन बाद जुलाई में ही मेरे पास लर्निंग लाइसेंस आ गया। मुख्यमंत्री जी मै आपको फेल का लेटर और लाइसेंस दोनों दिखा सकता हूं।<br />
<br />
बात यहीं खत्म नहीं हुई। एक बार जब लर्निंग लाइसेंस बन गया तो लगा कि अब छह महीने के भीतर स्थाई लाइसेंस बनवाने में कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन बेटी दौड़ भाग करती रही और स्थाई लाइसेंस नहीं बन पाया। नजीता ये हुआ कि जनवरी के बाद लर्निंग लाइसेंस के छह महीने पूरे हो गए और स्थाई नहीं बन पाया। अब बताया गया कि फिर से लर्निंग लाइसेंस बनवाना होगा।<br />
<br />
मुख्यमंत्री जी अगले लाइसेंस के लिए ७०० रुपये दलाल को दे आया हूं, १० दिन बीत गए, लेकिन अभी तक लाइसेंस नहीं आया है। आप से प्रार्थना है कि इस भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दें, तत्काल लाइसेंस जैसी व्यवस्था कर दें, क्योंकि आपके राज में ९५ फीसदी लाइसेंस दलालों के जरिए ही बनते हैं। लाइन में लगने वालों को साजिश के तहत टेस्ट में फेल कर दिया जाता है।<br />
<br />
हम रेलवे में तत्काल टिकट लेते हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, जिन्हें जल्दी पासपोर्ट लेना होता है वो अधिक पैसे देकर पासपोर्ट बनवाते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, अधिक पैसे देकर स्पीड पोस्ट से डाक भेजते हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है। प्लीज आप " सुविधा शुल्क " काउंटर की व्यवस्था कर दें, इससे कम से कम हमें अधिक पैसे देने पर सरकार की ओर से एक रसीद और भरोसा तो मिलेगा ना कि हमारा काम हो जाएगा। दलाल को पैसे भी देते हैं और भरोसा के साथ गारंटी भी नहीं कि काम हो ही जाएगा।<br />
<br />
मुझे उम्मीद है कि मेरी बात पर ध्यान देंगे और जल्दी ही ऐसी व्यवस्था जरूर करेंगे, जिससे प्रदेश में ईमानदारी से भ्रष्टाचार को लागू किया जा सके।<br />
<br />
<br />
आपका<br />
<br />
महेन्द्र श्रीवास्तव<br />
९८७१०९६६२६<br />
लखनऊ<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-51385750110745962752015-02-26T23:44:00.001+05:302015-02-27T09:00:45.584+05:30रेल बजट : डरपोक नजर आए प्रभु !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnBEpaNZzZzWWwTzBuDBfepXx7l5Mz2CxQuiJfTacMd7DYmoXiQdMOHtP122dVk6awEWDGeoktPT7OpTYKkmnO-_NmsO8AtJk6nAxfCKvaM05_a0T9DmUa1cV1JeuaUUlam5ZTZnhW4l_j/s1600/131313.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnBEpaNZzZzWWwTzBuDBfepXx7l5Mz2CxQuiJfTacMd7DYmoXiQdMOHtP122dVk6awEWDGeoktPT7OpTYKkmnO-_NmsO8AtJk6nAxfCKvaM05_a0T9DmUa1cV1JeuaUUlam5ZTZnhW4l_j/s1600/131313.jpg" height="153" width="200" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: large;">रे</span>ल बजट से सिर्फ निराशा ही नहीं हुई बल्कि इस बजट ने रेलवे बोर्ड के प्रबंधन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं ! बजट पर बात करूंगा, लेकिन पहले रेलवे बोर्ड की प्रासंगिकता पर बात करना जरूरी हो गया है। इस बजट को सुनने के बाद मन में जो पहला सवाल है वो ये कि रेलवे बोर्ड की आखिर जरूरत क्या है ? जर्नलिज्म से जुड़े होने की वजह से मेरा 15 - 20 साल से रेलवे और बोर्ड के तमाम अफसरों से संपर्क रहा है, इसलिए रेलवे के सिस्टम को बखूबी समझता हूं। बोर्ड में मैकेनिकल और सिविल इंजीनियरों की जबर्दस्त खेमेबंदी है। दोनों गुट की कोशिश रहती है कि बोर्ड में उनकी तूती बोलती रहे, इसके लिए ये बहुत नीचे तक गिर जाते हैं। खैर इस मसले पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी, आज मैं ये जानना चाहता हूं कि रेलवे बोर्ड के पास ना कोई प्लानिंग है ना कोई विजन है और ना ही कोई सिस्टम है, ऐसे में रेलवे को इस हाथी ( रेलवे बोर्ड ) की जरूरत क्यों है ? ये इंजीनियर ट्रेन को पटरी से उतार देगें, वरना मेरा तो यही मानना है कि बोर्ड का प्रबंधन इंजीनियरों से लेकर IAS को सौंप दिया जाना चाहिए, क्योंकि मुझे लगता है कि योजना, बजट, अनुशासन ये सब एक इंजीनियर के मुकाबले IAS बेहतर कर सकता है। </div>
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आइये बजट पर चर्चा करते हैं। रेलमंत्री सुरेश प्रभु पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है, इसलिए वो गुणा भाग में माहिर हैं। उनकी ये महानता बजट में दिखाई दी और उन्होंने सबसे बड़ा झूठ ये कहाकि आज रेलवे का आँपरेशन रेसियो 88.5 है। मतलब रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए 88.50 रुपये खर्च करता है। सच्चाई ये है कि रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए करीब 113 रुपये खर्च करती है। वैसे प्रभु आपकी लीला अपंरपार है, आपने कहा कि अभी तक लोग 60 दिन पहले का ही रिजर्वेशन करा सकते थे, जिसे बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है। मतलब लगभग पांच हजार करोड रूपये बिना सफर कराए ही एडवांस में रेलवे के खाते में जमा हो जाएंगे । यात्रियों की इस रकम पर बैंक तो रेलवे को ब्याज देगा, लेकिन टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो रेलवे यात्री को पूरा पैसा तक वापस नहीं करेगी, वो कैंसिलेशन चार्ज वसूलेगी। फिर चार महीने बाद क्या होगा ये साधारण यात्री तो नहीं जानता, ये तो प्रभु आपको ही पता हो सकता है। </div>
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प्रभु आपका ये ऐलान कि ट्रेनों और प्लेटफार्म पर विज्ञापन के जरिए रेलवे आय का स्रोत बढाएगी, ये बात तो समझ में आती है। लेकिन आप का ये ऐलान गले नहीं उतरा कि कंपनियों के नाम पर स्टेशन और ट्रेन का नाम रखकर बड़ी रकम वसूल की जाएगी। मुझे याद है कि पूर्व रेलमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी ने एक बार रेल के अफसरों को इसीलिए लताड लगाई थी कि वो ट्रेनों का नाम ठीक तरह से नहीं रखते थे। पहले ट्रेन का नाम होता था, बाम्बे मेल, तूफान मेल, कालका मेल आदि आदि। स्व. त्रिपाठी ने कहाकि ट्रेन के नाम सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक पहचान के आधार पर रखे जाएं। उनके समय में जो भी ट्रेनें चलीं उनका नाम बहुत सोच समझ कर रखा जाता था, जैसे काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस, त्रिवेणी एक्सप्रेस, गंगा गोमती एक्सप्रेस, हिमगिरी एक्सप्रेस इत्यादि। लेकिन प्रभु आपके ऐलान के बाद तो लगता है कि ट्रेनों का नाम होगा एमडीएच चिकन मसाला एक्सप्रेस, कुरकुरे एक्सप्रेस, पेप्सी मेल, सहारा एक्सप्रेस, जाँकी अंडरवियर सुपरफास्ट ट्रेन, तुफान बीडी मेल, बेगपाईपर सुपर फास्ट ! ये सब क्या है प्रभू ? </div>
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वैसे प्रभु एक बात बताऊं, पूर्व रेलमंत्री लालू यादव को आज मैं वाकई याद कर रहा हूं। लालू का मैं बड़ा आलोचक रहा हूं, लेकिन आपके बजट के बाद इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि लालू बजट पर मेहनत करते थे और उनके बजट में रेलवे के मुनाफे के साथ दूरदर्शिता दिखाई देती थी। लालू ने रेलवे बोर्ड के इंजीनियरों पर आंख मूंद कर कभी भरोसा नहीं किया, वो अपने साथ बिहार कैडर के कुछ आईएएस अफसरों को अपना OSD बनाकर बोर्ड में बैठा दिया था। नतीजा ये हुआ कि बिगडैल इंजीनियरों पर लगाम कसा जा सका। सच कहूं प्रभु आपका बजट तो मैं अभी तक यही नहीं समझ पा रहा हूं कि ये है किसके लिए ? इसे ना यात्रियों का बजट कह सकते है, ना रेल कर्मचारियों का बजट कह सकते हैं और ना ही व्यापारियों का बजट कह सकते हैं। संसद में आपने साफ-साफ बता दिया कि दिल्ली मुंबई राजधानी की औसत गति सिर्फ 79 किलोमीटर प्रति घंटा है, जबकि दूसरी राजधानी की औसत गति तो 55 से 60 किलोमीटर प्रतिघंटा ही है। इसलिए प्रभु जी आपने ऐलान किया कि आप कुल 9 रेलमार्ग पर गति सीमा बढ़ाएंगे। पता नहीं आपको याद है या नहीं, लेकिन ये काम लालू यादव ने शुरू किया था, उन्होंने सबसे पहले दिल्ली से आगरा तक भोपाल शताब्दी को 150 किलोमीटर की रफ्तार से चलाने की कोशिश की। कई साल काम चला, रेलवे ने 180 करोड रुपये ज्यादा पटरियों को अपग्रेड करने पर खर्च भी किया। लेकिन आज भी भोपाल शताब्दी की औसत गति 110 - 120 किलोमीटर ही है। मुझे लगता है कि बोर्ड के इंजीनियरों ने मोटा माल बनाने के लिए पुरानी पटरी को अपग्रेड करने का तरीका तलाशा है। </div>
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साफ-सफाई तो खैर जितना भी हो कम है, इस पर आपने ध्यान दिया है अच्छी बात है। लेकिन फिर मुझे कहना पड़ रहा है कि बोगी में बायो टायलेट की शुरुआत पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ना सिर्फ अपने बजट में कर चुके है, बल्कि उनके समय में ही आईआरडीएसओ ने एक बोगी तैयार कर दिल्ली में इसका प्रदर्शन भी किया था। इस दौरान लालू के साथ कैबिनेट मंत्री रहीं अंबिका सोनी भी मौजूद थीं। आपने कहाकि मेक इन इंडिया के तहत इंजन, बोगी, पहिए देश में बनाए जाएंगे। प्रभु देश में तो आज भी ये तीनों चीजें बन रही हैं, हां जरूरत के मुताबिक उत्पादन नही कर पा रहे हैं। सफर के दौरान यूज एंड थ्रो बेडरोल की बात नई जरूर है, बहरहाल इसका इंतजार रहेगा। ये अच्छा प्रयास है। </div>
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प्रभु आपके एक ऐलान से तो मेरा पूरा परिवार हंसते हंसते थक गया। आपने कहाकि चार महीने पहले आप ट्रेन का टिकट ले सकते हैं और टिकट लेने के दौरान ही मनचाहे खाने का आर्डर भी IRCTC के जरिए आँनलाइन ही कर सकते है। पहला तो ये कि जहां लोग सुबह नाश्ते के बाद सोचते हों कि लंच में क्या खाया जाए, वहां आप चार महीने पहले खाने के आर्डर को मनचाहा खाना बता रहे हैं। चलिए ये तो कोई खास नहीं.. लेकिन एक वाकया बताता हूं। दिल्ली से गोवा जा रहा था, ट्रेन को दोपहर एक बजे भोपाल पहुंचना था, एक मित्र ने कहाकि भोपाल में वो खाना लेकर आएंगे ! ट्रेन 6 घंटे लेट हो गई और हम सभी बिस्किट खाकर भूख से जूझते रहे। ट्रेनों की लेट लतीफी के बीच अगर यात्री भोजन का इंतजार करता रहा तो उसका भगवान ही मालिक है। </div>
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जनरल कोच में मोबाइल चार्ज करने की सुविधा दे रहे हैं, लेकिन प्रभु कुछ ऐसा कीजिए कि सामान्य श्रेणी के कोच में यात्री आराम से सफर भर कर सके, तो भी चल जाएगा। स्टेशन पर फ्री वाईफाई भी गैरजरूरी बात लगती है, क्योंकि आज कल सभी के फोन पर नेट की सुविधा आमतौर पर होती ही है। सरकारी पैसे को बेवजह खर्च करने की जरूरत नहीं है। और हां प्रभु ये बताएं आपने एक भी नई ट्रेन का ऐलान नहीं किया ! मुझे तो ये बात समझ में ही नहीं आ रही है। आपको पता है कि लोगों को आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है, रेलवे आज भी डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है ऐसे में नई ट्रेन का ऐलान होना ही चाहिए। मुझे पता है कि रेल रूट बिजी है, लेकिन जब आप कह रहे हैं कि ट्रेनों की स्पीड बढ़ाकर कुछ समय निकाला जाएगा, तो नई ट्रेन चलाई जा सकती है। इससे तो आपकी और बोर्ड अफसरों में इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। डिमांड पूरी करने के लिए ट्रेनों में बोगी बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ज्यादातर ट्रेनो में 24 कोच लगाए जा रहे हैं, इससे ज्यादा कोच लगाने की क्षमता ही नहीं है। कई रेलवे स्टेशन पर तो 24 कोच की ही ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी नहीं हो पाती है, फिर और बोगी बढ़ाने की बात तो बेमानी लगती है। </div>
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आखिर में रेलवे के आय पर बात करना है। एक बार फिर बजट में पीपीपी की बात की गई है। प्रभु आपको पता है कि वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के लिए पीपीपी के तहत देश विदेश से टेंडर आमंत्रित किए गए थे, लेकिन कोई भी आवेदन नहीं आया। दरअसल सच्चाई ये है कि भारतीय रेल पर किसी को भरोसा ही नहीं है। आपने सिर्फ पीठ थपथपाने के लिए रेल किराए में कोई बढोत्तरी नहीं की। मै तो आपके इस फैसले से पूरी तरह असहमत हूं। देश में रोजाना 2.30 करोड यात्री ट्रेन से सफर करते हैं। इसमें अकेले मुंबई में 85 लाख यात्री रोजाना लोकल ट्रेन से सफर करता है। अभी वहां तीन महीने का मासिक सीजन टिकट सिर्फ 15 दिन के किराए पर दिया जाता है। मासिक सीजन टिकट में बढोत्तरी की गुंजाइश थी, लेकिन आपने नहीं किया। इसी तरह अपर क्लास का किराया लगातार बढाया गया है लेकिन जनरल और स्लीपर क्लास में किराया नहीं बढ़ा है, इसलिए जरूरी है कि किराए को तर्कसंगत बनाया जाए। माल भाडा बढ़ाया तो.. लेकिन आपकी हिम्मत नहीं हुई कि बजट भाषण में इसे आप पढ सकें। मुझे बजट तो दिशाहीन लगा ही प्रभु आप डरपोक भी नजर आए। </div>
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<span style="color: red;">चलते-चलते</span></div>
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रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अरुणेन्द्र कुमार टीवी बहस में इस रेल बजट को 10 में 11 नंबर दे रहे थे, मुझे लगता है कि उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी सरकार रेलवे बोर्ड की किसी कमेटी का उन्हें चेयरमैन बना देगी !</div>
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Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-84402460921525687722014-12-05T16:46:00.000+05:302014-12-05T16:46:34.661+05:30आखिर कैमरे पर पकड़े गए केजरीवाल !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOTC14FM1Bq4N1VUWv6qdSxwviviXomb0NiOCydVtxk4sAF0WV4Nt_SaJk2tKDQyIV79vzGRZoZKGrEW3w3-H-2ZURNmwtdHFyp7_JUcuo8ZvBzyPhPeUa5HcgB0L5Idi2oibIgtf28iqd/s1600/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOTC14FM1Bq4N1VUWv6qdSxwviviXomb0NiOCydVtxk4sAF0WV4Nt_SaJk2tKDQyIV79vzGRZoZKGrEW3w3-H-2ZURNmwtdHFyp7_JUcuo8ZvBzyPhPeUa5HcgB0L5Idi2oibIgtf28iqd/s1600/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2.jpg" height="200" width="149" /></a></div>
<div style="background-color: white; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="color: red; font-size: large;">आ</span><span style="color: #141823; font-size: 13.63636302948px;">म आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल वैसे तो चप्पल पहनते हैं, दिखावे के लिए एक झरी हुई सी शर्ट पहनते हैं, कैमरे के सामने ट्रेन की सामान्य बोगी में सफर करते हैं, ड्रामेबाजी के लिए बदबूदार मफलर कान पर डाल लेते हैं और ठंड पडे तो कत्थई रंग का गंदा सा स्वेटर पहनते हैं, पर वही केजरीवाल जब हवाई जहाज के बिजनेस क्लास में सफर करते पकड़े जाते हैं तो उनके चंगू-मंगू सफाई देते हैं कि आयोजकों ने टिकट उपलब्ध कराया था, इसलिए वो क्या कर सकते थे ? हाहाहा, क्या केजरीवाल साहब आप इतने ना समझ है । चलिए <span style="font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px;">मैं बताता हूं क्या</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px;"> कर सकते थे ! बात पुरानी है, लेकिन जिक्र करना जरूरी है। आप पार्टी नेता आशुतोष भी इस बात के गवाह हैं। टीवी न्यूज चैनल IBN 7 में कार्य के दौरान चैनल का अवार्ड फंक्शन होना था । उस दौरान UPA की सरकार में ममता बनर्जी रेलमंत्री थीं। उन्हें आमंत्रित करने मैं उनके पास गया और कार्ड देते हुए आग्रह किया कि आपको इस आयोजन में जरूर आना है। ममता दीदी ने आग्रह को स्वीकार कर लिया और मुझे आश्वस्त किया कि वो जरूर पहुंचेंगी। उन्होंने मेरे सामने ही कार्ड अपने पीए को दिया और कहाकि प्रोग्राम में मुझे जाना है। मैने उस दौरान मैनेजिंग एडिटर रहे आशुतोष जी को बताया कि ममता बनर्जी से बात हो चुकी है और वो पहुंच रही हैं।</span></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13.63636302948px; line-height: 17.5636348724365px;">
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लेकिन शाम को जब मैं आफिस में था, अचानक उनका फोन आया और उन्होंने जो मुझसे कहा, कम से कम वो बात केजरीवाल को जानना बहुत जरूरी है। ममता जी ने कहाकि मैं आपके चैनल के आयोजन में आना चाहती हूं, उस दिन में मैं दिल्ली में हूं भी, लेकिन मजबूरी ये है कि " मैं कभी भी किसी पांच सितारा होटल में होने वाले आयोजन में नहीं जाती हूं और आपका आयोजन पांच सितारा होटल में है, इसलिए मुझे माफ कीजिए, मैं इस आयोजन में शामिल नहीं हो पाऊंगी " पहले तो मुझे बुरा लगा कि वादा करने के बाद अब वो मना कर रही हैं, लेकिन सच कहूं उनका स्पष्ट बात कहना और सिद्धांतवादी होना मुझे अच्छा लगा।</div>
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इसलिए केजरीवाल जी ये कहना कि आयोजक ने टिकट उपलब्ध कराया तो ले लिया और बिजनेस क्लास में सफर कर लिया, ये ठीक नहीं है। इसका मतलब कोई बड़ा आदमी आपको कुछ आफर करेगा तो आप मना नहीं करेंगे ! फिर तो देश में आँफर देने वालों की कमी नहीं है। और हां वो बेचारे गरीब चाय वाले को गाली देते रहते हो, उन्हें भी तो अडानी ने चार्टर प्लेन का आफर कर दिया था, वो मना नहीं कर पाए, अब इसमें " चायवाले " की क्या गलती है ? आप उन्हें क्यों गरियाते रहते हो ? केजरीवाल साहब किसी पर उंगली उठाओ या किसी को बेईमान बताओ तो अपने तरफ भी देख लिया करो !</div>
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हां एक सवाल भी है : क्या आप पार्टी के चंदे का पैसा पार्टी के किसी नेता के पिता के खाते में ट्रांसफर हुआ है ? अगर हां तो उसका नाम क्या है ? पार्टी का पैसा पिता के खाते में ट्रांसफर करने की वजह क्या है ? क्या इस बात की जानकारी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को दी गई हैं ? बाकी बातें बाद में ...</div>
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Unknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-34973585638285685712014-09-14T15:12:00.000+05:302014-09-14T15:12:34.899+05:30हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijeVwcDy6sT5L02vUWkDyMMk60Zw5HUygOKxv9UYd07A-py1FUC1OJOyInpQTPr-M1Qt1E6myufM8kdjQeDJYUSzytoOKFgkYg_firnkSzqhs43YQHrr1dURNtq_YFdrBfoGq5_VwxWaKP/s1600/23232323.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijeVwcDy6sT5L02vUWkDyMMk60Zw5HUygOKxv9UYd07A-py1FUC1OJOyInpQTPr-M1Qt1E6myufM8kdjQeDJYUSzytoOKFgkYg_firnkSzqhs43YQHrr1dURNtq_YFdrBfoGq5_VwxWaKP/s1600/23232323.jpg" /></a></div>
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<span style="text-align: justify;"><span style="color: red; font-size: large;">जी </span>हां, आज ये कहानी आपको एक बार फिर सुनाने का मन हो रहा है। जहां भी और जब हिंदी की बात होती है तो मैं ये किस्सा लोगों को जरूर सुनाता हूं। मतलब ऊंचे लोग ऊंची पसंद। मेरी तरह आपने भी महसूस किया होगा कि एयरपोर्ट पर लोग अपने घर या मित्रों से अच्छा खासा हिंदी में या फिर अपनी बोलचाल की भाषा में बात करते दिखाई देते हैं, लेकिन जैसे ही हवाई जहाज में सवार होते हैं और जहाज जमीन छोड़ता है, इसके यात्री भी जमीन से कट जाते हैं और ऊंची-ऊंची छोड़ने लगते हैं। मुझे आज भी याद है साल भर पहले मैं एयर इंडिया की फ्लाइट में दिल्ली से गुवाहाटी जा रहा था। साथ वाली सीट पर बैठे सज्जन कोट टाई में थे, मैं तो ज्यादातर जींस टी-शर्ट में रही रहता हूं। मैंने उन्हें कुछ देर पहले एयरपोर्ट पर अपने घर वालों से बात करते सुना था, बढिया हिंदी और राजस्थानी भाषा में बात कर रहे थे। लेकिन हवाई जहाज के भीतर कुछ अलग अंदाज में दिखाई दिए। सीट पर बैठते ही एयर होस्टेज को कई बार बुला कर तरह-तरह की डिमांड कर दी उन्होंने। खैर मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये टिपिकल केस है। बहरहाल थोड़ी देर बाद ही वो मेरी तरफ मुखातिब हो गए ।</span></div>
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<br /></div>
<span style="text-align: justify;">सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजी में मेरा नाम पूछा... लेकिन मैने उन्हें नाम नहीं बताया, कहा कि गुवाहाटी जा रहा हूं । उन्होंने फिर दोहराया मैं तो आपका नाम जानना चाहता था, मैने फिर गुवाहाटी ही बताया। उनका चेहरा सख्त पड़ने लगा, तो मैने उन्हें बताया कि मैं थोडा कम सुनता हूं और हां अंग्रेजी तो बिल्कुल नहीं जानता। अब उनका चेहरा देखने लायक था । बहरहाल दो बार गुवाहाटी बताने पर उन्हें मेरा नाम जानने में कोई इंट्रेस्ट नहीं रह गया । लेकिन कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा कि आप काम क्या करते हैं। मैने कहा दूध बेचता हूं। दूध बेचते हैं ? वो घबरा से गए, मैने कहा क्यों ? दूध बेचना गलत है क्या ? नहीं नहीं गलत नहीं है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आप क्या कह रहे हैं। उन्होंने फिर कहा मतलब आपकी डेयरी है ? मैने कहा बिल्कुल नहीं दो भैंस हैं, दोनो से 12 किलो दूध होता है, 2 किलो घर के इस्तेमाल के लिए रखते हैं और बाकी बेच देता हूं।</span><br /><div style="text-align: justify;">
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<span style="text-align: justify;">पूछने लगे गुवाहाटी क्यों जा रहे हैं.. मैने कहा कि एक भैंस और खरीदने का इरादा है, जा रहा हूं माता कामाख्या देवी का आशीर्वाद लेने। मित्रों इसके बाद तो उन सज्जन के यात्रा की ऐसी बाट लगी कि मैं क्या बताऊं। दो घंटे की उडान के दौरान बेचारे अपनी सीट में ऐसा सिमटे रहे कि कहीं वो हमसे छू ना जाएं । उनकी मानसिकता मैं समझ रहा था । उन्हें लग रहा था कि बताओ वो एक दूध बेचने वाले के साथ सफर कर रहे हैं। इसे अंग्रेजी भी नहीं आती है, ठेठ हिंदी वाला गवांर है। हालत ये हो गई मित्रों की पूरी यात्रा में वो अपने दोनों हाथ समेट कर अपने पेट पर ही रखे रहे । मैं बेफिक्र था और आराम से सफर का लुत्फ उठा रहा था।</span><br /><div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="text-align: justify;">लेकिन मजेदार बात तो यह रही कि शादी के जिस समारोह में मुझे जाना था, वेचारे वे भी वहीं आमंत्रित थे। यूपी कैडर के एक बहुत पुराने आईपीएस वहां तैनात हैं। उनके बेटी की शादी में हम दोनों ही आमंत्रित थे। अब शादी समारोह में मैने भी शूट के अंदर अपने को दबा रखा था, यहां मुलाकात हुई, तो बेचारे खुद में ना जाने क्यों शर्मिंदा महसूस कर रहे थे । वैसे उनसे रहा नहीं गया और चलते-चलते उनसे हमारा परिचय भी हुआ और फिर काफी देर बात भी । वो राजस्थान कैडर के आईएएस थे, उन्होंने मुझे अपने प्रदेश में आने का न्यौता भी दिया, हालाकि मेरी उसके बाद से फिर बात नहीं हुई।</span><br />
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Unknownnoreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-13106568504909462092014-08-11T23:14:00.000+05:302014-08-11T23:16:19.944+05:30कुपात्रों से वापस हो " भारत रत्न "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgT-t8HYI94gKnjtBd7n80tPGFdEGaIvGEwmSYqBlzMOO1Kl16PTi9itvz2VpImZx8ASCU39ub-HIaiHroDNcClOiMtvwAQErJiVzKacwVmFY0_5BDS1Hlgz_dkijFiCRT7sB8hBh1SX5GZ/s1600/Bharat-Ratna.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgT-t8HYI94gKnjtBd7n80tPGFdEGaIvGEwmSYqBlzMOO1Kl16PTi9itvz2VpImZx8ASCU39ub-HIaiHroDNcClOiMtvwAQErJiVzKacwVmFY0_5BDS1Hlgz_dkijFiCRT7sB8hBh1SX5GZ/s1600/Bharat-Ratna.jpg" height="237" width="320" /></a></div>
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<span style="color: blue;"><b>श्री नरेन्द्र मोदी जी</b></span><br />
<b style="color: blue;">प्रधानमंत्री, भारत सरकार</b><br />
<span style="color: blue;"><b>नई दिल्ली </b></span><br />
<br />
विषय : देश के सबसे बड़े सम्मान " भारत रत्न " की गरिमा को बचाने के संबंध में !<br />
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महोदय,<br />
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देश में एक बार फिर " भारत रत्न " को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। टीवी चैनलों पर तमाम लोगों के नाम इस सम्मान के लिए जा रहे हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर अब ये सम्मान मिलता कैसे है ? वो कौन लोग हैं जो सम्मान के लिए नाम तय करते हैं ? मैने पढ़ा है कि देश के पहले शिक्षा मंत्री श्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जब भारत रत्न देने की बात हुई तो उन्होंने सम्मान लेने से साफ इनकार कर दिया और कहाकि जो लोग इसकी चयन समिति में रहे हों, उन्हें ये सम्मान हरगिज नहीं लेना चाहिए। बाद में कलाम साहब को ये सम्मान मरणोंपरांत 1992 में दिया गया। अब हालत ये है कि टीवी चैनलों पर भारत रत्न के लिए रोजाना एक नया नाम लिया जा रहा है, जाहिर कि उन सभी को ये सम्मान नहीं मिल सकता, ऐसे में जो लोग रह जाएंगे, उन्हें निश्चित रूप से ना सिर्फ पीड़ा होगी, बल्कि समाज में उनकी बेवजह किरकिरी भी होगी। इसलिए प्रधानमंत्री जी भारत रत्न जैसे गरिमापूर्ण सम्मान की रक्षा के लिए मीडिया में चल रहे अनर्गल प्रलाप को तुरंत बंद करने की जरूरत है।<br />
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प्रधानमंत्री जी आपको पता है कि मीडिया ने कैसे क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान बना दिया। सोचिए ये क्रिकेट का भगवान भला क्या होता है ? भगवान की मौजूदगी में देश की टीम तमाम मैच हारती रही ! सचिन शतकों के शतक के करीब पहुंचे तो मीडिया का एक तपका उन्हें भारत रत्न सचिन तेंदुलकर लिखने लगा। धीरे-धीरे मीडिया ने ऐसा दबाव बनाया कि केंद्र सरकार सचिन को भारत रत्न देने पर मजबूर हो गई। मजबूर इसलिए कह रहा हूं कि सरकार खेल के क्षेत्र में पहला भारत रत्न हाँकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद्र को देना चाहती थी, लेकिन वो हिम्मत नहीं जुटा पाई। देश में लोकसभा का चुनाव होना था, इसलिए सरकार सचिन की अनदेखी कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। इसलिए आनन-फानन में सचिन को भारत रत्न देने का एलान कर दिया गया। सचिन को भारत रत्न दिए जाने का मैं तो उस वक्त भी विरोधी था, आज भी हूं।<br />
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प्रधानमंत्री जी, सचिन को भारत रत्न देने का मैं विरोधी यूं ही नहीं हूं, उसकी वजह है। पहले तो खेल मंत्रालय क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को मान्यता ही नहीं देता है। इसके अलावा इस खेल में ईमानदारी नहीं है। देश विदेश के तमाम क्रिकेटर मैच फिक्सिंग, स्पाँट फिक्सिंग में पकड़े जा चुके हैं और उन्हें जेल भी हुई है। जब इस पूरे खेल में ही ईमानदारी नहीं है तो भला क्रिकेटर कैसे ईमानदार हो सकते हैं ? अब देखिए सचिन को भारत रत्न का सम्मान क्रिकेट में योगदान के लिए दिया गया, लेकिन यही सचिन आयकर से कुछ छूट मिल जाए, इसके लिए दावा किया कि उनका मुख्य पेशा क्रिकेट खेलना नहीं बल्कि एक्टिंग करना है। प्रधानमंत्री जी अब आप ही तय कीजिए क्या हमें ऐसे ही लोगों को भारत रत्न जैसा सम्मान देना चाहिए ? मेरा तो कहना है कि सचिन ने भारत रत्न सम्मान की गरिमा को गिराया है।<br />
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प्रधानमंत्री जी कांग्रेस इस सचिन के सहारे राजनीति करती रही, यही वजह है कि भारत रत्न देने के कुछ दिन बाद ही सचिन को राज्यसभा में मनोनीति कर दिया। अब उनकी लगातार गैरहाजिरी पर राज्यसभा में सवाल भी उठ रहे है। भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति को किसी उत्पाद का विज्ञापन करना चाहिए, या नहीं ! ये भी एक अहम सवाल है। मैं तो इसके भी खिलाफ हूं। <span style="color: red;">प्रधानमंत्री जी, सच कहूं ! मुझे लगता है कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर भले किसी को भारत रत्न से ना नवाजा जाए, बल्कि जिन लोगों को अब तक भारत रत्न दिए गए हैं, वक्त आ गया है कि उनकी ईमानदारी से समीक्षा की जाए। हम जान सकें कि जिन्हें दिया गया है, क्या वो उसके वाकई हकदार हैं ?</span> इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए, जो तीन महीने के भीतर सरकार को अपनी रिपोर्ट जरूर दे, और अपात्र लोगों से ये सम्मान वापस लिया जाए !<br />
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प्रधानमंत्री जी देश ये भी जानना चाहता है कि वो कौन सी वजह रही जिसके चलते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को तो "भारत रत्न" नहीं मिल सका , लेकिन एक परिवार से पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सभी को ये सम्मान मिल गए। मेरे जैसे तमाम लोगों का विचार है कि आजादी की लड़ाई में गांधी के मुकाबले नेहरू का योगदान बहुत कम था, फिर भी गांधी जी ने उन्हे भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बना दिया। स्वतंत्रता के बाद भी कई दशकों तक भारतीय लोकतंत्र में सत्ता के सूत्रधारों ने देश में राजतंत्र चलाया, विचारधारा के स्थान पर व्यक्ति पूजा को प्रतिष्ठित किया और लोकहितों की उपेक्षा की। कहा जाता है कि आसपास चाटुकारों को जोड़ कर स्वयं को देवदूत घोषित कराते रहे और स्वयं अपनी छवि पर मुग्ध होते रहे।<br />
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प्रधानमंत्री जी, देश में तमाम लोग देश की बहुत सी समस्याओं के लिये सीधे नेहरू को जिम्मेदार मानते है। जैसे लेडी माउंटबेटन के साथ नजदीकी सम्बन्ध, भारत का विभाजन, कश्मीर की समस्या, चीन द्वारा भारत पर हमला, मुस्लिम तुष्टीकरण, भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये चीन का समर्थन, भारतीय राजनीति में वंशवाद को बढावा देना और हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने में देरी करना। देश की राजनीति में कुलीनतंत्र को बनाए रखने में भी नेहरू का बड़ा हाथ रहा है। सच ये भी है कि गांधीवादी अर्थव्यवस्था की उन्होंने हत्या की और ग्रामीण भारत की अनदेखी भी उनके समय में हुई। नेता जी सुभाषचंद्र बोस का पता लगाने में भी उन पर लापरवाही और गंभीरता ना बरतने के आरोप हैं। इन सबके बाद भी पंडित जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया, और सब खामोश रहे !<br />
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प्रधानमंत्री जी, मैं देख रहा हूं कि मीडिया में एक बार फिर नेता जी सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न दिए जाने की बात हो रही है। अच्छी बात है, नेता जी इसके हकदार है, इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि जब 1992 में नेताजी को भारत रत्न से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था, उस दौरान उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण पुरस्कार के मरणोपरान्त स्वरूप को लेकर प्रश्न उठा था। इसीलिए भारत सरकार ने यह सम्मान वापस ले लिया। देश में ये सम्मान वापस लिए जाने का एक मात्र उदाहरण है। मेरा सवाल है कि हालात तो आज भी वही बने हुए है, ऐसे में नेता जी का नाम फिर क्यों लिया जा रहा है ? प्रधानमंत्री जी मैं जानना चाहता हूं कि ये नाम सरकार की ओर से उठाया जा रहा है, या फिर मीडिया ने शुरू किया है ? ये साफ होना चाहिए और इस पर सरकार का पक्ष सामने आना चाहिए !<br />
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प्रधानमंत्री जी, नेता जी के अलावा मीडिया में इन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को भारत रत्न दिए जाने की चर्चा हो रही है। मेरा मानना है कि श्री वाजपेयी जी का कद इतना बड़ा है कि उनके नाम पर पर उंगली उठाने की हैसियत वाला आदमी आज किसी पार्टी में नहीं है, रही बात कांशीराम की तो ये राजनीति इतनी बिगड़ चुकी है कि वोट के लालची नेताओं की इतनी औकात ही नहीं है कि कोई खिलाफ में मुंह खोल सके। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कांशीराम ने दलितों को एकजुट कर उनके हक को लेकर इनमें जो जागरूकता पैदा की वो आसान काम नहीं था।<br />
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प्रधानमंत्री जी आज मीडिया बहुत चालाक है, वो मूर्खता भी करती है तो इस हद तक करती है कि उसकी मूर्खता भी सच के करीब लगने लगती है। अब देखिए भारत रत्न के लिए नियम या परंपरा कहें कि एक साल में तीन लोगों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है। लेकिन मीडिया को लगता है कि कहीं उसकी बात गलत साबित ना हो जाए, लिहाजा वो हर संभावना पर काम करती है। अब देखिए दो नाम मीडिया ने ऐसे जोड़ दिए, जिससे लगता है कि हां इन्हें भी मिल सकता है। पहला नाम वो, जिसे आपने गुजरात का ब्रांड अंबेसडर बनाया, मतलब बिग बी अमिताभ बच्चन और दूसरा नाम वो जहां से आपने चुनाव लड़ा और पर्चा दाखिल करने से पहले जिस मूर्ति का आपने माल्यार्पण किया, मतलब स्व. महामना मदन मोहन मालवीय जी। ये दोनों नाम ऐसे हैं, जिस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है।<br />
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<span style="color: red;">खैर प्रधानमंत्री जी , आप इतने व्यस्त हैं कि आपको इतना समय कहां है कि आप लोगों के पत्र पढ़ सकें। लेकिन एक गुजारिश है, कुछ ऐसा कीजिए, जिससे हम सब को लगे कि वाकई हम देश में आजादी का जश्न मना रहे हैं, ऐसा ना लगे कि परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। इसलिए पात्रों को भले ही इस बार भारत रत्न ना दें लेकिन कुछ ऐसा करें कि एक भी कुपात्र के पास भारत रत्न ना रहे, उससे वापस लेने का ऐलान जरूर करें। </span><br />
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<b><span style="color: blue;">आपका </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">भारतीय नागरिक</span></b><br />
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Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-31516658146532828502014-07-16T18:40:00.000+05:302014-07-16T18:40:10.305+05:30मोदी बताएं : टनल में क्यों फंसी ट्रेन ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB5vCy2U1QL_J4o7Ak3l4Ien9h8KEDCnSBnom3ajJg0-j5U5tUjukoK7k7vqrhZZ1zTNis_v9heo6MZnxXSHBZqwvz34Treq05svyYtQ9dKfjxuj_GBqvjAd0U8vIn9Nf9RBMDgp_ZGA5h/s1600/555555.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB5vCy2U1QL_J4o7Ak3l4Ien9h8KEDCnSBnom3ajJg0-j5U5tUjukoK7k7vqrhZZ1zTNis_v9heo6MZnxXSHBZqwvz34Treq05svyYtQ9dKfjxuj_GBqvjAd0U8vIn9Nf9RBMDgp_ZGA5h/s1600/555555.jpg" height="133" width="320" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">श्री </span>शक्ति एक्सप्रेस के पहले ही सफर में उधरपुर - कटरा रेल लाइन ने संकेत दे दिया है कि वो अभी रेल यात्रा के लिए पूरी तरह फिट नहीं है। श्री शक्ति एक्सप्रेस बीती रात जैसे ही टनल के भीतर घुसी, पटरी पर फिसलन की वजह से ट्रेन आगे नहीं बढ़ सकी और टनल के भीतर ही फंस गई। ट्रेन को टनल से निकालने के लिए इंजन के ड्राईवर ने काफी मशक्कत की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। आधी रात को इसकी जानकारी जैसे ही उत्तर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को हुई, सब के होश उड़ गए। बहरहाल कोशिश शुरू हो गई कि कैसे ट्रेन को टनल से बाहर निकाला जाए। आनन फानन में फैसला किया गया कि एक और इंजन वहां भेजकर ट्रेन में पीछे से धक्का लगाया जाए, हो सकता है कि दो इंजन के जरिए इस ट्रेन को आगे बढ़ाया जा सके। बहरहाल रेलवे की कोशिश कामयाब रही और ट्रेन को किसी तरह टनल से बाहर कर लिया गया। लेकिन इससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इस ट्रैक पर आगे ट्रेन का संचालन जारी रखा जाए, या फिर इसे रोका जाए ! बहरहाल रेलवे की किरकिरी न हो, इसलिए मीडिया को जानकारी दी गई कि इंजन में खराबी की वजह से ट्रेन टनल मे लगभग दो घंटे फंसी रही, जबकि सच ये नहीं है, रेल अफसर अपनी नाकामी छिपा रहे हैं।<br />
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सहयोगी मंत्रियों को कहते रहते हैं कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और महत्वपूर्ण फैसलों में सोशल मीडिया के सकारात्मक राय को उसमें शामिल करें। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे लेकर लापरवाह हैं। वो अभी से अफसरों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं, खासतौर पर अगर रेलमंत्रालय की बात करूं, तो ये बात सौ फीसदी सच साबित होती है। आपको पता होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब ऊधमपुर से कटरा रेल लाइन की शुरुआत करने वाले थे, उसके पहले ही मैने आगाह कर दिया था कि ये रेल लाइन खतरनाक है, इस पर जल्दबाजी में ट्रेन का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस रेल पटरी के शुरू हो जाने से रोजाना ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू हो जाएगी, इसमें हजारों यात्री सफर करेंगे, इसलिए उनकी जान को जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि मोदी ने इन बातों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और वाहवाही लूटने के लिए रेल अफसरों के इशारे पर कटरा रेलवे स्टेशन पहुंच गए और ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के लिए हरी झंड़ी दिखा दी।<br />
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मैं प्रधानमंत्री को एक बार फिर बताना चाहता हूं कि इस रेल पटरी पर जल्दबाजी में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करना खतरे से खाली नहीं है, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट इसे खतरनाक बता रही है। इसी साल जनवरी में रेल अफसर ने रेल पटरी का सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कम से कम दो तीन मानसून तक इस पटरी पर ट्रेनों का संचालन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मानसून में इस ट्रैक का पूरी तरह परीक्षण होना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि टनल में अचानक बड़ी मात्रा में पानी भर जाए, जिससे बीच में ट्रेनों की आवाजाही रोकनी पड़े। इतना ही नहीं टनल नंबर 20 में तकनीकि खामियों की वजह से सेफ्टी कमिश्नर ने 27 से 29 जनवरी तक निरीक्षण किया, लेकिन एनओसी नहीं दिया।अंदर की खबर है कि काफी दबाव के बाद रफ्तार नियंत्रण कर ट्रेन चलाने की अनुमति दी है। टनल नंबर 18 में काफी दिक्कतहै। बताया गया है कि इस टनल में 100 लीटर पानी प्रति सेकेंड भर जाता है। ये वही टनल है, जिसकी वजह से अभी तक यहां ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा था। पानी का रास्ता बदलने के लिए फिलहाल कुछ समय पहले 22 करोड का टेंडर दे दिया गया, काम हुआ या नहीं, कोई बताने को तैयार नहीं। एक विदेशी कंपनी को कंसल्टैंसी के लिए 50 करोड रूपये दिए गए। उसने जो सुझाव दिया वो नहीं माना गया। इस कंसल्टैंसी कंपनी से कहा गया कि वो सेफ्टी सर्टिफिकेट दे, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया।<br />
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मैं फिर जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रेलवे के अधिकारी रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रेलमंत्री रेलवे को जानने समझने वालों की एक एक्सपर्ट टीम बनाएं और हर बड़े फैसले को लागू करने के पहले एक्सपर्ट की राय जरूर ले। रेल अफसरों के बड़बोलेपन की वजह से ही रेलमंत्री सदानंद गौड़ा की रेल हादसे के मामले में सार्वजनिक रूप से किरकिरी हो चुकी है, जब गौड़ा ने रेल अधिकारियों के कहने पर मीडिया में बयान दिया कि ट्रेन हादसे की वजह नक्सली हैं, उन्होंने बंद का आह्वान किया था और रेल पटरी के साथ छेड़छाड़ की, इसी वजह से हादसा हुआ। इसके थोड़ी ही देर बाद गृह मंत्रालय ने रेलमंत्री की बात को खारिज कर दिया। बाद में रेलमंत्री ने अपनी बात बदली और कहाकि पूरे मामले की जांच हो रही है, उसके बाद ही दुर्घटना की असल वजह पता चलेगी। लेकिन ये बात पूरी तरह सच है कि अगर रेलमंत्री थोड़ा भी ढीले पड़े तो ये अफसर मनमानी करने से पीछे हटने वाले नहीं है।<br />
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यही वजह है कि जिस अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में रेल पटरी को खतरनाक बताया, उसे तत्काल उत्तर रेलवे से स्थानांतरित कर दिया गया। वजह साफ है कि रेल अधिकारियों का मानना है कि वैष्णों देवी मां के धाम कटरा से अगर मोदी को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का अवसर मिला तो वो मंत्रालय पर नरम रहेंगे और अफसरों पर उनका भरोसा बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से सच्चाई को छिपाकर इन अफसरों ने एक ऐसे रेलमार्ग पर आनन फानन में ट्रेनों का संचालन शुरू करा दिया, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक है। ये अफसर नई सरकार को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को धोखा दे रहे हैं।<br />
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प्रधानमंत्री जी, ट्रेनों के संचालन की शुरुआत आप कर चुके हैं, अभी भी समय है इस रेल मार्ग की नए सिरे से पूरी जांच पड़ताल आप स्वयं कराएं। ब्राजील से वापस आएं तो 7 आरसीआर जाने के पहले सीधे रेल मंत्रालय पहुंचे और उन सभी अफसरों को सामने बैठाएं, जिन्हें इस रेल मार्ग को जल्दबाजी में शुरू करने की हडबड़ी थी। ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि रेल अधिकारियों ने अपने ही महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को खारिज कर ट्रेनों का संचालन शुरू कराया और पहले ही दिन श्री शक्ति एक्सप्रेस टनल मे फंस गई। जांच जरूरी है। <br />
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Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-40951939125372480632014-07-09T03:47:00.000+05:302014-07-09T09:53:06.689+05:30रेल बजट में नहीं दिखा 56 इंच का सीना !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWzUcirQhJ8yi93-DxF6DFxmFfTIMqVRYynzKDwEfev6V0tH7fLkYaxwoZwJccUdKUNxc-9uQ9KMdjPwZRMLodS4n9_PQW5DZnsGRIHwhbVssEJwGX8NXZzWbPfHfCCIyDskeXEnVXyHaK/s1600/23232323.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWzUcirQhJ8yi93-DxF6DFxmFfTIMqVRYynzKDwEfev6V0tH7fLkYaxwoZwJccUdKUNxc-9uQ9KMdjPwZRMLodS4n9_PQW5DZnsGRIHwhbVssEJwGX8NXZzWbPfHfCCIyDskeXEnVXyHaK/s1600/23232323.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">भा</span>रतीय रेल आत्मनिर्भर होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमारी मदद करें ! भारतीय रेल अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमें सहारा दें ! आप हमारी मदद करेंगे... तो हम आत्मनिर्भर बनेंगे, आप मदद नहीं करेंगे तो भला हम आत्मनिर्भर कैसे होंगे ? आप हमें सहारा देंगे तो हम अपने पैरों पर खड़े होंगे... आप सहारा नहीं देंगे तो हम अपने पैरों पर कैसे खड़े होंगे ? सच बताऊ... 56 इंच के सीने का दम भरने वाले नरेन्द्र मोदी से ऐसे रेल बजट की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। ईमानदारी से एक बात बताना चाहता हूं, मुझे इस सरकार के रेल बजट का बेसब्री से इंतजार था, मैं बजट के जरिए मोदी के विजन को जानना और समझना चाहता था, मैं देखना चाहता था कि 56 इंच का सीना रखने वाला नेता कहीं बजट में विदेशियों के आगे गिडगिड़ाता हुआ तो नजर नहीं आ रहा है, पर ऐसा ही हुआ। रेल बजट में देश के स्वाभिमान के साथ समझौता हुआ है, बजट में बातें तो बड़ी - बड़ी की गई हैं, पर इसके लिए पैसा कहां से आएगा, इस पर कोई बात नहीं की गई है। हर मसले का हल पीपीपी मतलब पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप को बताया जा रहा है, आसान भाषा में बताऊं तो इस बजट में भारतीय रेल पूरी तरह विदेशियों के हाथ की कठपुतली नजर आ रही है।<br />
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सिडनी ( आस्ट्रेलिया ) रेडियो ने अपने हिंदी बुलेटिन में रेल बजट पर कार्यक्रम रखा था, जिसमें उन्होंने इस बजट के बारे में मुझसे बातें की। पहला सवाल पूछा गया कि पहले के रेल बजट से ये बजट किस मायने में अलग है ? मैं समझ गया कि विदेशों में भी लोग यही देखना चाहता हैं कि 56 इंच का सीना रखने वाले प्रधानमंत्री का पहला बजट किस दिशा में जा रहा है। सच बता रहा हूं, मैं जब भी विदेशी चैनल या रेडियो या अन्य किसी भी प्रचार माध्यम से जुड़ता हूं तो मेरी पूरी कोशिश होती है कि ऐसी बात ना कहूं जिससे विदेशों में देश की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। लेकिन इस सवाल के बाद मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला कि नया कुछ बता दूं..। कसम से, इस बजट में तो एक बात भी नई नहीं है, अलबत्ता मैं ये कहूं कि पुराने रेल मंत्रियों के बजट में मामूली फेरबदल करके इसे पेश किया गया है तो कहना गलत नहीं होगा। चूंकि जनता पुरानी बातों को बहुत जल्दी भूल जाती है, और उसे मामूली बात भी नई नजर आती है। मैं बताना चाहता हूं कि बजट में जिस " बुलेट ट्रेन " की बात को बहुत अहमियत दी गई है। इसकी असल सच्चाई भी जानना आप के लिए बहुत जरूरी है।<br />
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बात उस समय की है, जब रेलवे की हालत बहुत पुख्ता थी, उस समय रेलमंत्री स्व. माधवराव सिंधिया थे, वो बड़ा सोचते थे। सबसे पहले देश में बुलेट ट्रेन का सपना उन्होंने ही देखा था। लेकिन इस मामले में काम ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद देश में एनडीए की सरकार आई, वो पुराने ढर्रे पर चलती रही, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए एक की सरकार में रेलमंत्री रहे लालू यादव ने देश को एक बार फिर बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया। सपना ही नहीं बल्कि उन्होंने ही पहली बार रेल बजट में बुलेट ट्रेन का ऐलान किया और दिल्ली से पटना के अलावा मुंबई से अहमदाबाद के लिए बुलेट ट्रेन की फिजिविलिटी सर्वै शुरू कराया। बड़ा काम था, इसलिए विदेशी एजेंसियों को सर्वे के लिए हायर किया गया। सर्वे पर करोडों रुपये खर्च किए गए। खैर सच ये है कि रेल मंत्रालय ने बुलेट ट्रेन के लिए कुछ काम जरूर शुरू कर दिया था, पर यूपीए 2 में लालू के पास गिनती के सांसद रह गए, इसलिए रेल महकमा ममता बनर्जी के खाते में चला गया। ममता रेलमंत्री बनीं, पर उनकी निगाह बंगाल की कुर्सी पर थी, इसलिए रेलवे के लिए कुछ बड़ा काम नहीं कर पाईं। बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया, पर यात्री किराये में बढोत्तरी करने पर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया। सच बताऊं त्रिवेदी, मुकुल राय और पवन बंसल के बारे मे चर्चा करना, सही मायने में समय खराब करना है।<br />
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बहरहाल मैने आज तक पत्रकारिता में किसी स्तर पर कभी भी समझौता नहीं किया, लिहाजा सिडनी रेडियो पर मैने साफ - साफ पूरी बातें ईमानदारी से कहीं। दूसरा सवाल हाईस्पीड़ ट्रेन के बारे में पूछा गया। मैं हैरान रह गया कि क्या देश कि असल तस्वीर विदेशियों को भी पता है। सही मायने में हाई स्पीड ट्रेन के मामले में मोदी सरकार जनता को बेवकूफ बना रही है। हमारे यहां रेल पटरी की ये हालत अब नहीं रह गई है कि इस पर 100 किलो मीटर प्रतिघंटा से अधिक रफ्तार से कोई ट्रेन चलाई जा सके। मोदी के मंत्री वाहवाही लूटने के लिए ऐसे काम कर रहे हैं, जो महत्वाकांक्षी रेलमंत्री लालू यादव ने भी नहीं किया। उदाहरण के तौर पर दिल्ली से लखनऊ के बीच एक एसी स्पेशल ट्रेन चलती थी, जो सप्ताह मे तीन दिन एसी स्पेशल के नाम से जानी जाती थी और तीन दिन यही ट्रेन दुरांतो के नाम से चल रही थी। जनता को मूर्ख समझने वाले रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने इस ट्रेन का नाम बदल कर राजधानी एक्सप्रेस कर दिया और लगभग 400 रुपये प्रति टिकट किराया बढ़ा दिया। इस ट्रेन का कोई स्टापेज कम नहीं हुआ, रफ्तार नहीं बढ़ी, यहां तक की जो बोगी पुरानी ट्रेन में चल रही थी वही गंदगी से भरी बोगी भी इस राजधानी में इस्तेमाल हो रही है। अच्छा ज्यादा पैसा ले रहे हो तो कम से कम इसे साफ सुथरे प्लेटफार्म से गुजारो, जिससे इस ट्रेन पर सफर करने वालों को वीआईपी होने का आभास हो, पर ये भी नहीं। दिल्ली से ये ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 9 से छूटती है, जबकि लखनऊ में इसे प्लेटफार्म नंबर दो या पांच पर लिया जाता है। मुझे लगा था कि लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह इस पर आपत्ति करेंगे, लेकिन वो भी खामोश हैं। यात्रियों की जेब काटी जा रही है, किसी से कोई मतलब नहीं है।<br />
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रेलवे की बातें करूं तो मेरी बात कभी खत्म ही नहीं होगी। पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) पर नई सरकार को भी बहुत भरोसा है। उसे लगता है कि पीपीपी के तहत तमाम बड़े काम वो करा सकती है। मैं मोदी साहब को बताना चाहता हूं कि पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने देश के कुछ चुनिंदा रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए पीपीपी के तहत इंटरनेशनल टेंडर निकाला था। आपको हैरानी होगी कि किसी भी विदेशी निवेशक ने इस काम को करने में अपन रुचि नहीं दिखाई। जानते हैं क्यों ? क्योंकि रेलवे ने अपनी विश्वसनीयता ही खो दी है। कोई भी विदेशी निवेशक रेलवे में पैसा लगाने से घबराता है। उसे लगता है कि जिस देश में मामूली किराया बढ़ाने पर रेलमंत्री की छुट्टी हो जाती है, वहां कोई विदेशी निवेशक पैसा लगाने का रिस्क कैसे ले सकता है ? आपको पता है ना कि देश में रेलवे का किसी से कंपटीशन नहीं है, अकेली इतनी बड़ी संस्था है। आप सोचें कि कोई व्यक्ति अकेले किसी रेस में हिस्सा ले, फिर भी वो फर्स्ट ना आकर सेकेंड रहे तो आसानी से उसकी क्षमता को समझा जा सकता है। भारतीय रेल की हालत भी कुछ ऐसी ही है, अकेले दौड़ रही है, फिर भी दूसरे नंबर पर है।<br />
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मेरा मानना है कि रेलवे की तरक्की तब तक नहीं हो सकती, जब तक रेलमंत्री इसके जरिए अपनी और पार्टी की राजनीति का हित देखते रहेंगे! वैसे तो जब दो सप्ताह के बाद संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला हो तो नैतिकता का तकाजा यही था कि रेलयात्री किराए में पिछले रास्ते से बढोत्तरी ना की जाए, रेल बजट में ही इसका प्रावधान किया जाए। पर यहां भी 56 इँच का सीना का दावा करने वाले मोदी जी का सीना 26 इंच का हो गया, क्योंकि उन्हें लगा कि बजट में किराया बढाया तो देश में बहुत किरकिरी होगी, इसलिए बजट के पहले ही किराया बढ़ा दो.. बजट में फीलगुड लाने के लिए बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात कर जनता को बेवकूफ बनाने में आसानी होगी। सच कहूं तो मोदी भी ऐसा करेंगे, मुझे भरोसा नहीं था। अब देखिए ना पुराने रेलमंत्रियों की तरह सदानंद गौडा ने भी पचासों नई ट्रेन का ऐलान कर दिया, ये जाने बगैर कि पुराने रेलमंत्रियों ने जिन ट्रेनों का ऐलान किया है, उसमें से सैकड़ों ट्रेन अभी पटरी पर नहीं आई है। रेलवे की क्षमता अब ऐसी नहीं है कि किसी भी रुट पर नई ट्रेन का संचालन हो सके, लेकिन लोगों को खुश करने के लिए तमाम ट्रेनों का ऐलान किया गया, इसमें ज्यादातर ऐसी ट्रेन हैं, जो सप्ताह में एक दिन चलेगी।<br />
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पहली बार लगा कि ये रेलमंत्री सेफ्टी और सिक्योरिटी में अंतर नहीं समझते। संसद में ताली बजे, इसलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए चार हजार महिला आरपीएफ कांस्टेबिल की भर्ती की बात तो रेलमंत्री ने की, लेकिन सेफ्टी ( संरक्षा ) से जुडे 1.60 लाख खाली पड़े पदों पर भर्ती कब होगी, इस पर वो खामोश रहे। ढेर सारी नईं ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात भी उन्होंने इस बजट में की, लेकिन ट्रेन में किसी व्यक्ति को कैसे आसानी से टिकट मिल जाएगा, कैसे उसे रिजर्वेशन मिलेगा, इस पर वो खामोश रहे। मोदी और रेलमंत्री लगातार दावा करते हैं रेलवे को राजनीति से अलग रखा जाएगा और कोई भी फैसला राजनीति से प्रभावित नहीं होगा। प्रधानमंत्री जी मैं पूछना चाहता हूं कि जब सभी श्रेणी का यात्री किराया 14 प्रतिशत बढ़ाया गया तो इसका विरोध देश भर में हुआ। लेकिन रेलमंत्री ने मुंबई का बढ़ा किराया वापस ले लिया। वजह साफ है कि वहां सात आठ महीने में ही विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में जब रेलमंत्री कहते हैं कि रेलवे से राजनीति नहीं होगी तो लगता है कि देशवासियों को मूर्ख और अज्ञानी समझते हैं। <br />
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एक सवाल पूछता हूं, बजट में जिस तरह की बातें की जा रही हैं, उससे क्या ये सवाल पैदा नहीं होता कि संसद में रेल का अलग से बजट रखने का मतलब क्या है ? पहले एक रुपये किराया बढ़ता था तो देश में हाय तौबा मच जाती थी, यहां दूसरे रास्ते से सैकडों रुपये किराया बढ़ा दिया जाता है और कोई चूं चां तक नहीं करता है। ट्रेन का नाम बदल कर जनता की जेब काट ली जा रही है। अगर यही सब किया जाना है तो मुझे लगता है कि रेल बजट रेलवे के लिए एक सालाना जलसा से ज्यादा कुछ नहीं है। बहरहाल रेल बजट ने तो लोगों को निराश किया है, अगर आम बजट में भी लोगों को कोई राहत ना मिली और रेल बजट की तरह इसमें भी लफ्फाजी की गई तो मोदी की किरकिरी ही होगी। किरकिरी इस मायने में कि वो संख्या बल के आधार पर संसद में भले ही जीत हासिल कर लें, लेकिन जनता के दिलों से वो पूरी तरह उतर जाएंगे। एक बात कहूं मोदी जी प्लीज मुझे मुंगेरी लाल के हसीन सपने मत दिखाइये, मेरे सपनों पर राजनीति मत कीजिए। तकलीफ होती है। विदेशी चैनल पर मुझे देश की असल तस्वीर रखने में आज बहुत कष्ट हुआ।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-9091027955725625252014-07-03T14:04:00.002+05:302014-07-03T14:04:35.206+05:30हाई स्पीड ट्रेन के नाम पर धोखा !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmmvpEDCQ1NhBCZ1ovUaz4P9-Icle6h8oY2uf7C-apDXinh41VG5TQih37gbpvz8aANBHH5_2VAgS_iGpCAj03mx0WOfarqXF5wj2W-POKbdgGz0TUTGcltNy9_0YTLeonw7BXEpJBJklV/s1600/121212.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmmvpEDCQ1NhBCZ1ovUaz4P9-Icle6h8oY2uf7C-apDXinh41VG5TQih37gbpvz8aANBHH5_2VAgS_iGpCAj03mx0WOfarqXF5wj2W-POKbdgGz0TUTGcltNy9_0YTLeonw7BXEpJBJklV/s1600/121212.jpg" height="129" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">न</span>ई सरकार को रेल अधिकारी लगातार मूर्ख बना रहे हैं, इसकी मुख्य वजह कमजोर रेलमंत्री है। संभवत: वो रेल अफसरों की चापलूसी को समझ नहीं पा रहे हैं, इसी वजह से उन्हें अधिकारी गुमराह कर रहे हैं ।<br />
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एक ओर रेल अधिकारी प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए यात्रियों की सुरक्षा की अनदेखी कर कटरा तक ट्रेन चलाने जा रहे हैं, जबकि रेलवे के ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपने निरीक्षण रिपोर्ट में साफ कहा है कि जल्दबाजी में ट्रेन चलाना खतरनाक होगा, दूसरी ओर " सेमी हाईस्पीड ट्रेन " के नाम पर रेलवे को एक बार फिर करोडों का चूना लगाने की तैयारी है।<br />
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याद कीजिए 15 फरवरी 2006 तत्कालीन रेलमंत्री लालू यादव ने दिल्ली से आगरा के बीच 150 किलोमीटर की रफ्तार से शताब्दी ट्रेन चलाने का दावा करते हुए नई दिल्ली स्टेशन से शताब्दी ट्रेन को हरी झंडी भी दिखाई थी।<br />
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दरअसल रेल अफसरों ने लालू को समझाया कि दिल्ली भोपाल शताब्दी ट्रेन को आगरा तक 150 किलोमीटर की स्पीड से चलाते हैं। इस काम के लिए उस समय भी रेल की पटरी पर लगभग 20 करोड रुपये से ज्यादा खर्च भी किए गए।<br />
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आप जानकर हैरान होंगे रेल मंत्रालय ने उस दौरान भी यही दावा किया था कि दिल्ली से आगरा 195 किलोमीटर की दूरी को सिर्फ 90 मिनट में पूरा किया जा सकेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।<br />
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रेलवे टाइम टेबिल के हिसाब से ये शताब्दी ट्रेन सुबह 6 बजे नई दिल्ली से रवाना होती है और सुबह 8.06 बजे आगरा पहुंचती है। मतलब साफ है कि कई करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी शताब्दी ट्रेन आज तक 150 किलोमीटर की रफ्तार से नहीं चल सकी।<br />
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अब आठ साल बाद फिर रेल अधिकारियों ने " मोटा माल " बनाने का रास्ता खोज निकाला है। इसी रेल पटरी पर " सेमी हाईस्पीड " ट्रेन चलाने के लिए ट्रायल रन किया जा रहा है, ये ट्रेन 160 किलोमीटर की रफ्तार से चलेगी और 90 मिनट में आगरा पहुंचेगी ।<br />
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अब रेल अफसरों से ये पूछने वाला कोई नहीं है कि क्या शताब्दी एक्सप्रेस 150 किलो मीटर की रफ्तार से चल रही है ? अगर चल रही है तो इसे आगरा पहुंचने में 2.06 घंटे क्यों लगते हैं ? नहीं चल रही है तो 2006 में करोड़ों रुपये खर्च हुए, उसका जिम्मेदार कौन है ?<br />
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अच्छा एक बात रेल अफसरों से ये भी पूछना चाहता हूं कि जिस ट्रैक पर 150 किलो मीटर की रफ्तार से एक ट्रेन चल रही थी, उस पर 160 किलोमीटर की रफ्तार से एक और ट्रेन चलाने में आठ साल लग गए ?<br />
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मैं जानना चाहता हूं कि 150 की रफ्तार को अपग्रेड कर 160 किलोमीटर करने के लिए क्या क्या काम किया गया ? इस पर कितना पैसा खर्च हुआ ? अब रेल मंत्रालय का कौन सा अफसर गारंटी देगा कि दिल्ली से आगरा के बीच इस खास ट्रेन की स्पीड 160 किलोमीटर रहेगी ही ?<br />
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बहरहाल मेरा पुख्ता दावा है कि इस पूरे रेल खंड पर 160 किलोमीटर की रफ्तार से ट्रेन को चलाना अभी संभव नहीं है। इस रेल खंड में 45 से 50 किलोमीटर ही ऐसी दूरी है जहां 160 की स्पीड से ट्रेन चल सकती है।<br />
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चूंकि रेल के इतिहास में पहली बार इतना अधिक किराया बढ़ाया गया है, इसलिए रेल मंत्रालय " फेस सेविंग " के लिए लुभावनी घोषणाएं करने में लगा है। रेलमंत्री अनुभवहीन है, वो मंत्री की नहीं बोर्ड के चेयरमैन की भाषा बोल रहे हैं।<br />
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<span style="color: red;">प्रधानमंत्री जी,</span><br />
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प्लीज<br />
रेल मंत्रालय से ये जरूर पूछा जाना चाहिए कि लालू यादव ने जिस शताब्दी को 150 किलो मीटर रफ्तार से चलाने के लिए 8 साल पहले हरी झंडी दिखाई थी, उसकी असल रफ्तार क्या है ? रेल मंत्रालय पर अगर सख्ती नहीं की गई तो ये यूं ही सरकार को मूर्ख बनाते रहेंगे।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-73467058739868863302014-05-15T19:11:00.000+05:302014-05-15T19:11:42.549+05:30UPA : दस साल दस गल्तियां !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgqhxUYxrmeqABHhyphenhyphenERFNTYDDm0LS3VUZG5csbKo5HK7hkemxWvpxsagTFGw8xebJxeoj4CUJczff9jGkSWetCyli4hRr-0OwIUTqi8K9fwXzj-8tNPi61pl2exQKsbdpu0NUFx4iZWnZ9/s1600/pm.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgqhxUYxrmeqABHhyphenhyphenERFNTYDDm0LS3VUZG5csbKo5HK7hkemxWvpxsagTFGw8xebJxeoj4CUJczff9jGkSWetCyli4hRr-0OwIUTqi8K9fwXzj-8tNPi61pl2exQKsbdpu0NUFx4iZWnZ9/s1600/pm.jpg" height="133" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">ए</span>क्जिट पोल के नतीजों से कांग्रेस बुरी तरह घबराई तो है, इसके बाद भी पार्टी आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है। पार्टी आत्ममंथन करने के बजाए नेतृत्व को बचाने में लगी है। मसलन पार्टी चाहती है कि किसी तरह हार का ठीकरा सरकार पर यानि मनमोहन सिंह पर फोडा जाए। चुनाव की जिम्मेदारी संभाल रहे राहुल गांधी पर किसी तरह की आँच ना आने दी जाए। बहरहाल पार्टी का अपना नजरिया है, लेकिन यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में दस बड़ी गल्तियों पर नजर डालें तो हम कह सकते हैं सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है। कमजोर नेतृत्व, निर्णय लेने में देरी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। आइये एक नजर डालते हैं कि दस साल में दस वो गलती जिसकी वजह से पार्टी को ये दिन देखने पड़ रहे हैं।<br />
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<b><span style="color: red;">मनमोनह सिंह को प्रधानमंत्री बनाना </span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती यही रही कि उसने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना। दरअसल 2004 में जब सोनिया गांधी को लगा कि उनके प्रधानमंत्री बनने से देश भर में बवाल हो सकता है तो उन्होंने ब्यूरोक्रेट रहे मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला किया, जबकि पार्टी में तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे, जो इस पद के काबिल भी थे, पर सोनिया को शायद वफादार की तलाश रही। मनमोहन सिंह एक विचारक और विद्वान माने जाते हैं, सिंह को उनके परिश्रम, कार्य के प्रति बौद्धिक सोच और विनम्र व्यवहार के कारण अधिक सम्मान दिया जाता है, लेकिन बतौर एक कुशल राजनीतिज्ञ उन्हें कोई सहजता से स्वीकार नहीं करता। यही वजह है कि उन पर कमजोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगा।<br />
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<span style="color: red;"><b>भ्रष्टाचार और मंहगाई रोकने में फेल</b></span><br />
<span style="color: red;"><b><br /></b></span>
यूपीए सरकार में एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार का खुलासा होता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री किसी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में नाकाम रहे। यहां तक की कोल ब्लाक आवंटन के मामले में खुद प्रधानमंत्री कार्यालय तक की भूमिका पर उंगली उठी। इसी तरह मंहगाई को लेकर जनता परेशान थी, राहत के नाम पर बस ऐसे बयान सरकार और पार्टी की ओर से आते रहे, जिसने जले पर नमक छि़ड़कने का काम किया। आम जनता महंगाई का कोई तोड़ तलाशने के लिए कहती तो दिग्गज मंत्री यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते कि आखिर हम क्या करें, हमारे पास कोई अलादीन का चिराग तो है नहीं। कांग्रेसी सांसद राज बब्बर ने एक बयान दिया कि आपको 12 रुपये में भरपेट भोजन मिल सकता है, इससे पार्टी की काफी किरकिरी हुई।<br />
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<b><span style="color: red;">अन्ना आंदोलन से निपटने में नाकाम</span></b><br />
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एक ओर सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे थे, दूसरी ओर जनलोकपाल को लेकर अन्ना का दिल्ली में अनशन चल रहा था। सरकार इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाई और ये आंदोलन देश भर में फैलता रहा। सरकार आंदोलन की गंभीरता को समझने में चूक गई, ऐसा सरकार के मंत्री भी मानते हैं। अभी अन्ना आंदोलन की आग बुझी भी नहीं थी कि निर्भया मामले से सरकार बुरी तरह घिर गई। देश भर में दिल्ली और यूपीए सरकार की थू थू होने लगी। जनता सरकार से अपना हिसाब चुकता करना चाहती थी, इसी क्रम में पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की बुरी तरह हार हुई, अब लोकसभा में भी पार्टी हाशिए पर जाती दिखाई दे रही है। अगर इन दोनों आंदोलन के प्रति सरकार संवेदनशील होती तो शायद इतने बुरे दिन देखने को ना मिलता । <br />
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<b><span style="color: red;">देश की भावनाओं को समझने में चूक </span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
यूपीए सरकार के तमाम मंत्री पर आरोप लगता रहा है कि वो देश की भावनाओं का आदर नहीं करते हैं। कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पर सरकार का रवैया दुत्कारने वाला रहा है। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो हद ही कर दी, इस मामले में उन्होंने संसद में ऐसा बयान दिया कि जिससे जनता और देश दोनों शर्मसार हो गए। एंटनी ने पाकिस्तान का बचाव करते हुए कहाकि पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहने हुए लोगों ने की, जबकि रक्षा मंत्रालय ने साफ कहा था कि हमलावरों के साथ पाक सैनिक भी थे। उस समय पाक को दोषमुक्त बताने वाले इस बयान पर जमकर हंगामा हुआ था। इसके अलावा निर्भया कांड में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की चुप्पी से भी सरकार और पार्टी के प्रति गलत संदेश गया।<br />
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<b><span style="color: red;">काँमनवेल्थ गेम ने डुबोई लुटिया</span></b><br />
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मैं समझता हूं कि एशियन गेम के बाद काँमनवेल्थ खेलों का आयोजन देश में खेलों का सबसे बड़ा आयोजन था, लेकिन ये आयोजन लूट का आयोजन बनकर रह गया। इसमें खेलों की उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी खेल के आयोजन मे हुए घोटाले की हुई। यहां तक की कांग्रेस के दिग्गज नेता को जेल तक की हवा खानी पड़ी। आखिरी समय में जिस तरह से पीएमओ ने इस आयोजन की खुद माँनिटरिंग शुरू की, अगर पहले ही ऐसा कुछ किया गया होता तो विश्वसनीयता बनी रहती। इसके अलावा 2 जी घोटाले ने तो सरकार के मुंह पर कालिख ही पोत दी, जिसमें महज 45 मिनट में देश को 1.76 लाख करोड का चूना लगा।<br />
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<span style="color: red;"><b>मंत्रियों और नेताओं ने जनता से बनाई दूरी</b> </span><br />
<span style="color: red;"><br /></span>
ये तो कांग्रेस का हमेशा से चरित्र रहा है। उनके सांसद विधायक चुनाव जीतने के बाद जनता से संवाद खत्म कर लेते हैं। दोबारा क्षेत्र में वह तभी जाते हैं जब चुनाव आ जाता है। छोटे मोटे नेताओं की बात तो दूर इस बार जब सोनिया गांधी अमेठी पहुंची तो वहां के लोगों ने राहुल की शिकायत की और कहाकि राहुल चुनाव जीतने के बाद यहां उतना समय नहीं दिए, जितना देना चाहिए था। यही वजह कि अमेठी में जहां दूसरी पार्टियों के झंडे नहीं लगते थे, इस बार ना सिर्फ बीजेपी बल्कि आप पार्टी का भी झंडा देखने को मिला। राहुल की हालत इतनी पतली हो गई कि उन्हें मतदान वाले दिन अमेठी में घूमना पड़ा ।<br />
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<b><span style="color: red;">सीबीआई को बनाया तोता </span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
राजनीति को थोड़ा बहुत भी समझने वाले जानते हैं कि यूपीए की सरकार देश में 10 साल इसलिए चली कि उसके पास सीबीआई थी और सरकार ने उसे तोता बनाकर रखा था। मुलायम, मायावती, स्टालिन के स्वर जरा भी टेढ़े होते तो सीबीआई सक्रिय हो जाती थी, ये सब सीबीआई से बचने के लिए सरकार को समर्थन देते रहे। हालाँकि सरकार के काम काज का ये कई बार विरोध भी करते रहे, लेकिन समर्थन वापस लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। राजनाथ सिंह भी समय समय पर इशरत जहां मुठभेड़ मामले की सीबीआई की जांच को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हैं, वहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजा सरकार की चूलें हिलाने वाले अन्ना हजारे भी कांग्रेस पर सीबीआई दुरुपयोग के आरोप लगाते रहे हैं।<br />
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<b><span style="color: red;">युवाओं को जोड़ने में राहुल नाकाम </span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
युवाओं की बात सिर्फ राहुल के भाषण में हुआ करती थी, राहुल या फिर सरकार ने इन दस सालों में ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे युवाओं को सरकार पर भरोसा हो। सरकार और कांग्रेस नेताओं को पहले ही पता था कि इस पर 18 से 22 साल के लगभग 15 करोड़ ऐसे मतदाता हैं जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे हैं, इसके बाद भी सरकार ने कोई मजबूत ठोस प्लान युवाओं के लिए तैयार नहीं किया। केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालयों में लाखों पद रिक्त हैं, एक अभियान चलाकर इन्हें भरा जा सकता था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। इस चुनाव में बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण मुद्दा था, ये बात यूपीए सरकार के घोषणा पत्र में तो था, लेकिन दस साल सरकार इस मसले पर सोती रही। यूपीए की हार की एक प्रमुख वजह बेरोजगारी भी है।<br />
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<b><span style="color: red;">सोशल मीडिया और तकनीक से परहेज</span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
यूपीए के फेल होने की एक ये भी खास वजह हो सकती है। नरेन्द्र मोदी जहां तकनीक के इस्तेमाल के मामले में अव्वल रहे, उन्होंने आक्रामक और हाईटेक प्रचार का सहारा लिया, वही राहुल गांधी पुराने ढर्रे पर चलते रहे। सोशल नेटवर्किंग का भी पार्टी उतना इस्तेमाल नहीं कर पाई जितना बीजेपी या फिर आम आदमी पार्टी ने किया। कहा गया कि राहुल ने पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन मेरे हिसाब से तो प्रचार में वो केजरीवाल से भी पीछे रहे। राहुल ने एक दो चैनलों को इंटरव्यू दिया, लेकिन वो कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए, मात्र सरकारी योजनाओं पर उबाऊ तरीके से बात करते रहे। ऐसे में लोगों ने उनकी बात को खारिज कर दिया। प्रियंका गांधी नीच राजनीति का बयान देकर सोशल मीडिया के निशाने पर रहीं, इससे भी पार्टी को मुश्किल का सामना करना पड़ा।<br />
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<b><span style="color: red;">कमजोर चुनावी रणनीति </span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
सरकार हर मोर्चे पर फेल रही, उसके पास ऐसा कुछ नहीं था, जिसे गिना कर वो वोट हासिल कर सके। ऐसे में उन्हें चुनाव की रणनीति पर अधिक काम करने की जरूरत थी, लेकिन अनुभवहीन राहुल ऐसा कुछ करने में नाकाम रहे, वहीं पार्टी के नेता भी खुद भी अलग थलग रहे। ऐन चुनाव के वक्त तमाम नेताओं ने चुनाव लड़ने से इनकार किया, इससे भी पार्टी की किरकिरी हुई। दूसरी ओर बीजेपी की चुनावी रणनीति अव्वल दर्जे की रही, इसके अलावा मोदी ने जिस आक्रामक शैली में प्रचार किया, उससे कांग्रेस पूरी तरह बैकफुट पर रही।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-79705568688653685362014-02-25T17:54:00.000+05:302014-02-25T17:57:02.783+05:30मनमोहन सिंह यानि स्पाँट ब्वाय आँफ 7 RCR <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9QEUPpIalVvlC0hFdc2UrF7N0NnQXGt60pkNrrWF61wid82oQkCXhxrgizAtQwhyfuPdCNDxwC8nqcjD0FequF4pFi9YOCa9W6ZZlWzxxUacWwLp8NCKfs0VREBDrkr5RhayEi9YsIu74/s1600/1111111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9QEUPpIalVvlC0hFdc2UrF7N0NnQXGt60pkNrrWF61wid82oQkCXhxrgizAtQwhyfuPdCNDxwC8nqcjD0FequF4pFi9YOCa9W6ZZlWzxxUacWwLp8NCKfs0VREBDrkr5RhayEi9YsIu74/s1600/1111111111.jpg" /></a></div>
<b><span style="color: red; font-size: large;">15 वीं </span></b>लोकसभा में ना सिर्फ कामकाज कम हुआ, बल्कि मैने जितना देखा और पढा है, उसके आधार पर मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि मौजूदा केंद्र की सरकार अब तक की सबसे घटिया, भ्रष्ट और निकम्मी सरकार रही है। कांग्रेस में आज एक बड़ा तबका ना सिर्फ भ्रष्टाचार में शामिल रहा है, बल्कि उसका आचरण भी नारायण दत्त तिवारी जैसा रहा है। हालत ये हो गई कि एक तरफ भ्रष्टाचार की खबरों से अखबार और न्यूज चैनल रंगे रहे, वही दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों की अय्याशी की भी खबरें रहतीं थीं। इन दोनों गंदगी का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था, वो सिर्फ प्रधानमंत्री की ईमानदारी छवि को आगे करने की कोशिश करते रहे। हालत ये हुई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीर से लोगों को बदबू आने लगी। मेरा अनुभव यही कहता है कि मनमोहन सिंह की हैसियत 7 आरसीआर के स्पाँट ब्वाय से बढ़कर नहीं रही, मुझे तो नहीं लगता कि 10 साल में एक दिन भी वो देश के प्रधानमंत्री रहे, असल में तो वो 10 जनपथ के पिट्ठू बन कर रहे। इस 10 साल का शासन मेरी नजर में इतना गंदा है कि बस चले तो मैं इस पूरे कार्यकाल को भारत के इतिहास से निकाल बाहर कर दूं।<br />
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खैर कहते हैं ना कि "बोया पेड़ बबूल का तो फल काहे को होय " अब कांग्रेस ने जो गंदगी बोई है, उसे काटना भी उसी को होगा, और इसके लिए कांग्रेस को पूरी तरह तैयार भी रहना चाहिए। वैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पता चल गया है कि जनता का कांग्रेस के प्रति कितना गुस्सा है । इतना ही नहीं कांग्रेस की जगह लेने के लिेए कौन आगे आ रहा है, ये भी उसे अब पता चल गया है। अगर मैं कहूं कि कांग्रेस की इसी गंदगी की पैदावार है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तो ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा। अब जिस पार्टी की पैदावार के पीछे कांग्रेस हो, वो पार्टी आगे कैसा प्रदर्शन करेगी, इसे भी समझा जा सकता है। जब बुनियाद बेईमानी की होगी, जब बीज बेईमानी का बोया जाएगा, तो भला वो पार्टी कैसे साफ सुथरी रह सकती है ? अब देखिए पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा का चुनाव जीतते ही बच्चे की कसम खाई और कहाकि कांग्रेस और बीजेपी से ना समर्थन लेगें और ना ही समर्थन देंगे। बच्चे की कसम से पलट गए और कांग्रेस के सहयोग से कुर्सी पर जम गए। एक दिन पहले फिर दोहराया कि भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा खतरनाक साम्प्रदायिकता है। मतलब केजरीवाल कांग्रेस को इशारों में ये संकेत दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, अगर चुनाव के बाद चुनना हुआ तो वो भ्रष्टाचारियों के गोद में बैठ जाएंगे।<br />
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वैसे भी कुर्सी मिलते ही केजरीवाल में कुर्सी की लालच की भी शुरुआत हो गई। वो तो भगवान का शुक्र है दो चार न्यूज चैनलो में ईमानदारी अभी बची है, वरना तो केजरीवाल ऐसी सोने की लंका में पहुंच चुके होते जहां से वापस आना उनके लिए संभव नहीं होता। आप सबने सुना होगा कि चुनाव के दौरान वो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्ट बताते रहे, उन पर तमाम गंभीर आरोप लगाते रहे। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए विपक्ष ने दबाव बनाया तो कहने लगे कि नेता विपक्ष यानि हर्षवर्धन उन्हें सुबूत दे दें तो वो रिपोर्ट दर्ज करा देंगे। मैं केजरीवाल से पूछता हूं कि अगर आपके पास सुबूत नहीं था तो ये अनर्गल आरोप क्यों लगा रहे थे ? खैर अंदर की बात ये है कि शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों अभिन्न मित्र और एनजीओबाज हैं, दोनो को एक दूसरे की करतूतें पता है, लिहाजा संदीप की मम्मी के खिलाफ भला कैसे एफआईआर कराते। <br />
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हालाकि मेरे साथ आप भी अरविंद केजरीवाल में तेजी से बदलाव महसूस कर रहे होंगे। केजरीवाल जब राजनीतिक पार्टी बना रहे थे तो बड़ी बड़ी बातें करते रहे। दावा कर रहे थे कि उनके यहां कोई हाईकमान नहीं होगा, सारे फैसले जनता से पूछ कर किए जाएंगे। यहां तक की पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा, ये फैसला भी इलाके की जनता करेगी। केजरीवाल साहब क्या मैं जान सकता हूं कि लोकसभा के लिए कौन सा टिकट आपने जनता से पूछ कर दिया है ? जिस आम आदमी की आप बार-बार बात करते हैं वो आम आदमी को अपनी बात कहने के लिए आपके घर के सामने नारेबाजी क्यों करनी पड़ती है ? फिर भी आप उनकी बात नहीं सुनते। दिल्ली की जनता जानना चाहती है कि अगर आपने सभी की राय से टिकट दिया है तो रोज आपके घर के बाहर प्रदर्शन करने वाले लोग कौन हैं ? चलिए आप तो ईमानदार हैं ना, बस ईमानदारी से एक बात बता दीजिए.. क्या वाकई आपके यहां कोई हाईकमान नहीं है ? सभी फैसले आम आदमी की राय मशविरे से होते हैं। मैं जानता हूं कि इन सवालों का आपके पास कोई जवाब नहीं है। सच यही है कि केजरीवाल की हां में हां ना मिलाने वाला पार्टी बाहर हो जाता है, और उससे आम आदमी होने का हक भी छीन लिया जाता है। <br />
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अब देखिए..राजनीतिक पार्टी का ऐलान करने के दौरान और भी कई बड़ी-बड़ी बातें की। कहाकि हमारे मंत्री विधायक सरकारी बंगले नहीं लेगें। देश को लगा कि ये ईमानदारी आदमी है, देखो सरकारी बंगला लेने से भी मना कर रहा है। वरना तो लोगों ने राजनीति छोड़ दी, मकान नहीं छोड़ा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद हुआ क्या.. केजरीवाल का असली चेहरा सामने आ गया, सरकारी आवास के लिए सिर्फ केजरीवाल ही नहीं उनके माता पिता सब किस तरह बेचैन थे, वो पूरे देश ने देखा। मुख्यमंत्री को आवंटित होने वाले आवास को देखने के लिए सबसे पहले माता - पिता ही घर से निकल लेते थे। बहरहाल खुद केजरीवाल ने पहले 10 कमरों के दो बंगला लेने के लिए हां कर दिया, टीवी चैनलों पर शोर शराबा मचा तो दो फ्लैट यानि आठ कमरे में आ गए। अगर ईमानदार होते और नैतिकता बची होती तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही सरकारी मकान से निकल लिए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. उनके जूनियर मंत्री मनीष सिसोदिया भी सरकारी मकान दबाकर बैठ गए, इन्होंने भी मकान नहीं छोड़ा। सवाल उठा तो कहने लगे कि उनके पास कोई मकान नहीं है। मजेदार बात तो ये कि जब पत्रकारों ने केजरीवाल से पूछा कि क्या साहब आप सरकारी मकान क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? इस पर जो जवाब केजरीवाल ने दिया, इससे तो दिल्ली की जनता की निगाह से ही गिर गए। मकान के मुद्दे पर केजरीवाल ने कहाकि पहले जाकर शीला दीक्षित का बंगला देखो, फिर बात करो कि उनसे छोटा है मेरा घर या बड़ा है। लेकिन केजरीवाल को कौन समझाए, यहां बात छोटे बड़े मकान की नहीं ये तो आपकी ईमानदारी की बात है। रही बात शीला दीक्षित की तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या मैडम शीला दीक्षित ही अरविंद केजरीवाल की रोल माँडल हैं ? अंदर की खबर ये है कि आपके ही पार्टी के बाकी मंत्री अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।<br />
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आपने बहुत राग अलापा कि कोई सरकारी कार इस्तेमाल नहीं करेगा। मीडिया में खबर बनने के लिए आपने 8 किलोमीटर की यात्रा भी रिजर्व मेट्रो ट्रेन से की। कार्यकर्ताओं ने मेट्रो स्टेशनों पर हंगामा बरपा दिया। पांच दिन तक केजरीवाल ने अपनी बैगनआर गाड़ी पर खूब तस्वीरें खिंचवाई। लेकिन थोड़े ही दिन बाद पूरा मंत्रिमंडल चमचमाती आलीशान सरकारी वाहनों पर आ गया। केजरीवाल साहब अगर आप सबको सरकारी वाहन इस्तेमाल ही करना था तो क्या आपकी मारुति कंपनी वालों से कोई साँठ गांठ थी कि टीवी चैनल पर उनकी कार वैगनआर का विज्ञापन कर रहे थे। अरविंद जी सच ये है कि आपको अवसर नहीं मिला, जब अवसर मिला तो आपने भी दूसरे नेताओं की तरह ओछी हरकत करने में आपको भी कोई परहेज नहीं रहा।<br />
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अब देखिए, केजरीवाल ने देश में आम आदमी की परिभाषा ही बदल दी। सबको पता है कि दिल्ली में इस बार " आप " पार्टी बेहतर कर सकती है। ऐसे में आप अगर सच में आम आदमी की हितों की बात करते तो किसी आँटो वाले को लोकसभा का चुनाव लड़ा देते। जो झुग्गी झोपड़ी वाले केजरीवाल के लिए लड़ते पिटते रहे हैं, वो किसी झुग्गी वाले को उम्मीदवार बनाते। लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया, वो हर क्षेत्र के शिखर पहुंचे लोगों को हायर कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि जिसे वो ले रहे हैं, या जिसे उम्मीदवार बना रहे हैं, वो अपने क्षेत्र में कितना विवादित रहा है। केजरीवाल को लगता है कि आज देश में ये हालत है कि अगर केजरीवाल किसी जानवर को भी टिकट दे दें तो वो ना सिर्फ आदमी हो जाएगा, बल्कि टोपी पहनते ही आम आदमी हो जाएगा। यही वजह है कि उन्हें सामान्य आदमी दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। आप पार्टी ने एक अभियान चला रखा है कि बड़े आदमी को टोपी पहना कर आम बनाओ, लेकिन केजरीवाल साहब इस बड़े आदमी की काली और मोटी खाल को कैसे बदलोगे। <br />
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<b><span style="color: red;">आखिरी बात !</span></b><br />
<b><span style="color: red;"><br /></span></b>
केजरीवाल दुनिया भर से सवाल पूछ रहे हैं, मेरा मानना है कि कुछ जिम्मेदारी भी केजरीवाल साहब की है, इतना ही नहीं वो भी जनता के प्रति आप जवाबदेह हैं। लेकिन हो क्या रहा है, कोर्ट और गृहमंत्रालय केजरीवाल से लगातार पूछ रहा है कि उन्हें किस-किस विदेशी संस्था से धन मिल रहा है और वो उसका क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन और खुफिया एजेंसी सीआईए से केजरीवाल का क्या संबंध है ? अब केजरीवाल की हालत ये है कि वो दुनिया भर से सवाल पूछेंगे, जवाब ना आए तो गाली देगें, लेकिन वो खुद देश की संवैधानिक संस्थाओं को जवाब देना ठीक नहीं समझते। लेकिन उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रीय पार्टिया उनके इशारे पर नाचें और उनके हर सवाल का जवाब दें। एक बात सिर्फ केजरीवाल से... आपने राजनीति से हटकर कभी ईमानदारी से सोचा कि 49 दिन की सरकार में सच में आपने जनता के लिए कितना काम किया। आप बिजली पानी में भी ईमानदार नहीं रहे। नियमों को ताख पर रखकर सिर्फ घोषणाएं करते रहे, यानि गरीब का बिजली पानी आपके लिए लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार करने भर से ज्यादा कुछ नहीं रहा। आए थे झुग्गी को पक्का करने, लेकिन खुद और अपने खास चेले मनीष के साथ मिलकर दोनों ने करोडो का मकान अपने नाम आवंटित करा लिया, जबकि दिल्ली की जनता को मिला बाबा जी का ठुल्लू.. मैने गलत तो नहीं कहा ना। वैसे मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर टीम केजरीवाल को भी आठ दस साल मिल गया होता तो ये टीम भ्रष्टाचार के सारे कीर्तिमान तोड़ देती।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-5628975026421017622014-01-24T23:45:00.000+05:302014-01-26T12:55:48.255+05:30केजरीवाल की काली करतूत ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: purple;">आवश्यक सूचना :</span></b> <span style="color: blue;">मित्रों इस लेख को लिखने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी है। दरअसल मैं चाहता था कि कहानी सच के करीब हो, इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आंदोलन के दौरान जिस भाषा का इस्तेमाल किया, मैं भी उसी भाषा में बात करना चाहता हूं... क्या हुआ आप नहीं समझे.. मतलब बेहूदी भाषा में बात करना है। दोस्तों पूरी कोशिश तो की है कि जिस सड़क छाप, लंपटी भाषा में दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल देश के गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गर्वनर से संवाद कर रहा था, मेरी भाषा भी वैसी ही हो.. इसके लिए मैने भाषा की मर्यादा को पूरी तरह ताख पर रख दिया है.. फिर भी गलती से अगर कहीं मैं मर्यादित हो गया हूं.. तो प्लीज इसे पारिवारिक संस्कार समझ कर माफ कर दीजिएगा। मेरी मंशा सम्मान देने की बिल्कुल नहीं है। </span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgF8iF2t5worUfhCk4yZoFAQE_WPh-HFZAiTnUPf7inKYdFLOC0S3Li2F0fgVKsN3GEpyj2vFkU1ZptROcQpMdUW4yBnDn4Bgc4nXB7B8589PxQyTyKr0Nut4cJQh2uLDxbCrADe3hJZ_Nn/s1600/2222222.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgF8iF2t5worUfhCk4yZoFAQE_WPh-HFZAiTnUPf7inKYdFLOC0S3Li2F0fgVKsN3GEpyj2vFkU1ZptROcQpMdUW4yBnDn4Bgc4nXB7B8589PxQyTyKr0Nut4cJQh2uLDxbCrADe3hJZ_Nn/s1600/2222222.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">स</span>च बताऊं, अब बिल्कुल मन नहीं होता कि आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल के बारे में कुछ लिखा जाए ! वजह इसकी बद्जुबानी, बेहूदा आचरण और घटिया राजनीति है। वैसे मैं भाषा के स्तर पर बेईमान नहीं होना चाहता था, मेरी कोशिश भी रहती है कि आलोचना मर्यादा में रहकर ही की जानी चाहिए, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने मजबूर कर दिया है, इसलिए उससे उसकी ही भाषा में बात करना जरूरी है। बात आगे करूं, इससे पहले मुख्यमंत्री की बेहूदगी का एक प्रसंग सुन लीजिए। रेलभवन के सामने उसके धरने को 28 घंटे से ज्यादा समय हो गया था, दिल्ली में अफरा-तफरी मची हुई थी, राजपथ के साथ ही एक दर्जन से ज्यादा सड़कों को बंद कर दिया गया था, चार महत्वपूर्ण मेट्रो स्टेशन भी बंद थे। इन हालातों को देखते हुए एक संवेदनशील पत्रकार ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछ लिया कि " अरविंद केंद्र सरकार के साथ गतिरोध को खत्म करने के लिए क्या कोई बीच का रास्ता हो सकता है ? इस पर मुख्यमंत्री ने बहुत ही गंदा या यूं कहूं कि बेहूदा और बचकाना जवाब दिया, तो गलत नहीं होगा। उसने कुतर्क करते हुए कहाकि बीच का रास्ता क्या होता है ? मतलब महिला से पूरा नहीं आधा बलात्कार किया जाए ? 50 महिलाएं हैं तो 25 से रेप करो, ये बीच का रास्ता है ? अब आप ही बताएं, जब ऐसा बदजुबान मुख्यमंत्री महिलाओं के सम्मान की बात करता है, तो कोई भला क्या भरोसा करेगा ऐसे मुख्यमंत्री पर... ऐसे मुख्यमंत्री से तो बदबू आती है। वैसे अरविंद मैं बताता हूं कि बीच का रास्ता क्या होता है ? बीच का रास्ता यही होता है जो तुमने किया ... तुम तो दरोगा को ट्रांसफर करने की मांग कर रहे थे और गृहमंत्रालय ने पुलिस वालों से कहाकि वो कुछ दिन की छुट्टी पर चले जाएं। बस इतने से तुम्हारा इगो शांत हो गया और जीत का जश्न मनाते हुए तुम अपने गैंग के साथ चले भी गए। इसे ही कहते हैं बीच का रास्ता ! समझ गए ना ! और पत्रकार ने यही बात तुमसे जानने की कोशिश की थी।<br />
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हां वैसे इस मुख्यमंत्री की एक बात से तो मैं पूरी तरह सहमत हूं, वो ये कि दिल्ली पुलिस लोगों में भेदभाव करती है। बड़े लोगों के लिए उसका कानून कुछ है और छोटे लोगों के लिए कानून कुछ और ही है। दिल्ली का मुख्यमंत्री कहता है दिल्ली पुलिस बेईमान है, मैं भी मानता हूं कि वो आम आदमी और खास आदमी के बीच फर्क करती है, इसलिए दिल्ली की पुलिस बेईमान है। अगर दिल्ली पुलिस ईमानदार होती तो दिल्ली में धारा 144 को तोड़ने वालों की सुरक्षा नहीं करती, इन सबको तबियत से कूट कर अस्पताल पहुंचा चुकी होती ! मुख्यमंत्री जी वाकई दिल्ली पुलिस बेईमान है, तभी तो 38 घंटे से ज्यादा समय तक तुम्हारी गुंडई रेल भवन के सामने चलती रही, और कानून बौना बना रहा। ईमानदारी से सोचो, अगर मुख्यमंत्री की जगह कोई आम व्यक्ति इस तरह सरेआम दिल्ली की सड़क पर गुंडागर्दी कर रहा होता तो क्या ये पुलिस इसी तरह बर्दास्त कर रही होती ? फिर क्या पुलिस वालों के सिर पर पत्थर पड़ रहे होते और ये पुलिस यूं ही मूकदर्शक बनी रहती ? सब को पता है कि सड़क पर ये गुंडई मुख्यमंत्री की अगुवाई में चल रही थी, बेईमान पुलिस ने रिपोर्ट में मुख्यमंत्री का नाम ना लिखकर भीड़ के नाम से रिपोर्ट दर्ज किया। सच है केजरीवाल.. दिल्ली की पुलिस वाकई बेईमान है। मेरा मानना है कि दिल्ली की पुलिस और गृह मंत्रालय में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो सभी मंत्रियों के साथ तुम जेल में होते और गुंडागर्दी पर उतारू टोपी वाले अस्पताल में पड़े कराह रहे होते।<br />
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मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली को तुम लोग क्या बनाना चाहते हो, जिस तरह से सड़कों पर खुले आम नंगा नाच चल रहा है उससे क्या साबित करना चाहते हो ? पहले तो तुम लोग बात करते थे पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार की, बात करते थे सोनया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के बेईमानी की, बात करते थे बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नीतिन गडकरी के बेईमानी की, उद्योगपति मुकेश अंबानी के गड़बडियों की.. अब कुर्सी पर आते ही सब एजेंडा भूल गए। बात करने लगे गली मुहल्ले की.. शपथ लेने के बाद तीन मंत्रियों ने न्यूज चैनल के रिपोर्टरों के साथ बस तीन रात दौरा किया। एक ने आदेश दे दिया कि 48 घंटे के भीतर 45 रैन बसेरा बनाया जाए। वो अफसरों को कैमरे वालों के सामने फर्जी फोन कर अपना नंबर भी बढ़ाता रहा। हालत ये है कि इस बार ठंड से अब तक 187 लोगों की मौत हो चुकी है और सरकार सड़क पर गुंडागर्दी कर रही है। एक महिला मंत्री शाम को निकली, क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद से उसकी कार का शीशा टूट गया, इसने तमाम लोगों की भीड़ जमा कर ली और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी कि उस पर हमला किया गया है। बेचारा पूरा परिवार छिपा-छिपा फिर रहा था, कई दिन बाद सुलह सपाटा हो पाया। तीसरा मंत्री रात में दिल्ली के एक मुहल्ले में पहुंचा और पुलिस से कहने लगा कि मकान में छापेमारी करो, वहां विदेशी महिलाएं धंधा कराती हैं। पुलिस ने कहाकि छापेमारी के लिए उनके साथ महिला पुलिस का होना जरूरी है, तो ये मंत्री हत्थे से उखड़ गया और अपने नेता की तरह ही बदजुबान हो गया। जब पुलिस ने भी अपना असली रूप दिखाया तो फिर तो मंत्री की शिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बाद में कुछ असामाजिक तत्वों के साथ खुद ही मकान में छापेमारी कर युंगाडा की पांच महिलाओं को कार में बैठा कर उन्हें एम्स ले गया और उनका मेडिकल टेस्ट कराया, हालांकि टेस्ट में कुछ नहीं निकला। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि रात में उनके साथ मंत्री और उनके साथ वालों ने छेड़छाड़ की। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है, फैसला आ जाएगा।<br />
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अब इस ईमानदार मुख्यमंत्री का चरित्र देखिए। पुलिस वालों पर आरोप है कि उसने मंत्री की बात नहीं सुनीं, जबकि ये आरोप उसके मंत्री ने ही लगाया है। मुख्यमंत्री ने तुरंत इन पुलिसकर्मियों की सजा तय कर दी और कहाकि इन्हें निलंबित किया जाए। गृहमंत्री और लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल ने उसे समझाने की कोशिश की.. और कहाकि जांच के आदेश किए गए हैं, रिपोर्ट आ जाने की दो, जरूर कार्रवाई होगी। लेकिन अपने बिगड़ैल मंत्री की बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि वो गृहमंत्रालय के सामने धरना देगा। चूंकि गणतंत्र दिवस परेड की तीन महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है, धरने से तैयारियों में मुश्किल होगी, ये सोचकर स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगाया, लेकिन इस बेलगाम मुख्यमंत्री ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए संसद भवन के करीब रेल भवन के सामने अपने गुर्गों के साथ धरने पर बैठ गया। बात पुलिस वालों के निलंबन से शुरू किया और आखिर में तबादले तक आ गया, लेकिन दिल्ली वालों का बढ़ता गुस्सा देख पीछे खिसक गया और उन पुलिस वालों के कुछ दिन के लिए छुट्टी पर चले जाने से धरना खत्म करने को तैयार हो गया। खैर अब दिल्ली की जनता कह रही है कि मुख्यमंत्री साहेब तुम्हें तो जांच पड़ताल से कोई मतलब नहीं है, अगर आरोप लगने के बाद तुमने पुलिस वालों का निलंबन मांग लिया तो अब तो तुम्हें अपने कानून मंत्री को भी तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए। इस पर जो आरोप है वो पुलिस वालों से कहीं ज्यादा गंभीर है। मंत्री पर विदेशी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करने का आरोप है। उन विदेशी महिलाओं को आधी रात में जबर्दस्ती उठाकर एम्स ले जाया गया। कोर्ट के आदेश पर मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज हो गई। अब केजरीवाल को इस आरोपी मंत्री की छुट्टी करने में क्यों तकलीफ हो रही है ? अगर पुलिस वालों को बिना जांच के ही कार्रवाई करने की बात दिल्ली का मुख्यमंत्री कर रहा था तो अपने मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने में जांच की आड क्यों ले रहा है ?<br />
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खैर नए नए मंत्री बने थे, पूरा मंत्रिमंडल बेलगाम हो गया था। खासतौर पर केजरीवाल की तो भाषा बदल चुकी है। राजनीति में जिस भाषा की शुरुआत केजरीवाल ने की, कांग्रेसी उससे एक कदम और आगे निकल गए। गृहमंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री को " येडा मुख्यमंत्री " कह रहे हैं। खैर राजनीति में ये नई विधा की शुरुआत हो रही है, जिसका संस्थापक केजरीवाल ही रहेगा। आखिर में मैं चेतन भगत की बात का जिक्र जरूर करूंगा। मैं उनकी बातों से सहमत हूं। उन्होने दिल्ली की राजनीति को आसान शब्दों में समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। कहा कि बाँलीवुड में लड़कियां आती हैं और सिनेमा में हीरोइन का अभिनय कर खूब नाम कराती हैं। लेकिन जब उनकी फिल्म नहीं चलती है तो वो फिल्म तड़का डालने की कोशिश में आइटम गर्ल बन जाती हैं। ठीक उसी तरह दिल्ली की राजनीति हो गई है और अब केजरीवाल अपनी फिल्म को चलाने के लिे आइटम को तड़का देने में लगा है। बहुत बुरा समय आ गया है केजरीवाल ! जय हो ... <br />
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Unknownnoreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-22822863563218396332014-01-06T16:46:00.001+05:302014-01-06T16:46:40.268+05:30"आप" मुझे दिल्ली ही रहने दें .. प्लीज !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNpoW9TzKkisM5DxqezyEaw4Ku6C_tejgwhgb1_twziL2vIAnZQe_ExVqBAt6Y7b2UTOdpnrtiY3Gkxak59WcUzKE7LjkrlR8OkcT0Oav7BoGO_LrV28y7rqN6oyPu9DCrl0FyMqfPO024/s1600/1111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNpoW9TzKkisM5DxqezyEaw4Ku6C_tejgwhgb1_twziL2vIAnZQe_ExVqBAt6Y7b2UTOdpnrtiY3Gkxak59WcUzKE7LjkrlR8OkcT0Oav7BoGO_LrV28y7rqN6oyPu9DCrl0FyMqfPO024/s1600/1111111.jpg" height="166" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">रो</span>जाना कुछ ऐसी बातें होती हैं कि खुद को रोक नहीं पाता और चला आता हूं आप सबकी अदालत में एक नई जानकारी के साथ। कुछ मित्रों की सलाह थी कि कुछ दिन केजरीवाल साहब को काम करने दीजिए, फिर उनकी समीक्षा की जाएगी। मैने सोचा बात भी सही है, मौका तो मिलना ही चाहिए। लेकिन रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है, जिससे मजबूर होकर इनके बारे में लिखना जरूरी हो जाता है। अब देखिए ...."आप "के मंत्री रात को रैन बसेरा की हालत देखने जाने के पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया के दफ्तर में फोन करते हैं। पूछते हैं कि नाइट शिफ्ट का रिपोर्टर आफिस आ गया है क्या ? जब आफिस से बताया जाता है कि हां आ गया है, तो कहा जाता है कि उसे भेज दीजिए, मैं रैन बसेरा देखने जा रहा हूं। आफिस से जवाब मिलता है कि नहीं आज तो रिपोर्टर कहीं और बिजी है, तो बताया जाता है कि आज तो जरूर भेज दीजिए, क्योंकि एक्सक्लूसिव खबर मिलेगी ! जब मंत्री एक्सक्लूसिव खबर की बात करें तो तमाम चैनलों के रिपोर्टर मौके पर पहुंच ही जाते हैं। रिपोर्टरों के मौके पर आ जाने के बाद मंत्री का चेला मंत्री को बताता है कि आ जाइये, रिपोर्टर पहुंच गए हैं। थोड़ी देर में ही मंत्री पहुंच जाते हैं और रिपोर्टर से पूछते हैं कि आप सबका कैमरा चालू हो गया है, शुरू करूं मौके मुआयना। रिपोर्टर कहते हैं हां सर ! हम सब रेडी हैं।<br />
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अब " आप "के मंत्री जी रैन बसेरा के अंदर जाते हैं, यहां लोगों की हालत देखते हैं और लोगों से उनकी तकलीफ सुनते हैं। 15 मिनट बाद जब मंत्री जी वापस लौटने के लिए निकलने लगते हैं तो एक रिपोर्टर कहता है, सर मजा नहीं आया। ये तो आप कल भी कर चुके थे, मुझे तो लगता नहीं कि चैनल पर आज दोबारा ये कहानी चल पाएगी, क्योंकि इसमें कुछ नया तो है नहीं। रिपोर्टर सलाह देते हैं कि खबर चलवानी है तो ... चलिए किसी अफसर के घर और उन्हें रात में ही जगाकर कैमरे के सामने डांटिए..। मंत्री मुस्कुराने लगते हैं, रिपोर्टरों से कहते हैं ..नहीं ...नहीं.. , ज्यादा हो जाएगा। फिर रिपोर्टर सलाह देते हैं कि अच्छा अफसर को फोन मिला लीजिए और उसे जोर-जोर डांटिए । हम लोग यही शूट कर लेते हैं।<br />
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बेचारे मंत्री जी अब फंस गए, उन्होंने कहा कि इतनी रात में अफसर को फोन मिलाना ठीक नहीं है। तब एक बड़े चैनल के रिपोर्टर ने सलाह दी, अरे सर ..चलिए फोन मिलाइये मत, बस मोबाइल को कान के पास लगाकर डांट - डपट कर दीजिए। कैमरे पर ये थोड़ी दिखाई पड़ेगा कि बात किससे हो रही है। मंत्री जी ये करने के लिए तत्काल तैयार हो गए। मंत्री ने कहा चलिए जी, कैमरा चालू कीजिए, हम अभी फोन पर अफसरों को गरम करते है। एक मिनट में मंत्री ने मूड बनाया और फिर एक सांस मे लगे अफसर को डांटने। पूरा ड्रामा मंत्री ने इतनी सफाई से की कि बेचारे रिपोर्टर भी बीच में कुछ बोल नहीं पाए। जब मंत्री की बात खत्म हो गई, तब एक कैमरामैन अपने रिपोर्टर से बोला, भाई कुछ भी रिकार्ड नहीं हुआ है, मंत्री जी अंधेरे में ही चालू हो गए।<br />
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तब सभी रिपोर्टरों ने एक साथ मंत्री से कहा " सर.. बहुत बढिया था, बस इसी मूड में एक बार और करना होगा, क्योंकि जहां आप खड़े थे.. वहां लाइट कम थी, आप का चेहरा बड़ा काला काला आया है, चेहरे पर गुस्सा दिखाई भी नहीं दे रहा है। मंत्री ने पूछा फिर क्या करें ? कुछ नहीं बस अब आपको वहां खड़ा करते हैं, जहां थोड़ी लाइट होगी, इससे आपका चेहरा चमकता हुआ आएगा और लाइट में चेहरे पर गुस्सा भी साफ दिखाई देगा। बस फिर क्या, मंत्री जी ने दोबारा फोन पर अफसर को डांट लगा दी । चलते-चलते सब से पूछ लिया अब ठीक है ना, कोई दिक्कत तो नहीं। रिपोर्टरों की तरफ से आवाज आई, नहीं सर, अब बिल्कुल ठीक है। चलिए आप लोग भी जाइए आराम कीजिए, हम भी जा रहे हैं आराम करने।<br />
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रैन बसेरों के औचक निरीक्षण का यही असली चेहरा है, वरना सप्ताह भर पहले मंत्री ने कहाकि 48 घंटे के भीतर दिल्ली मे 45 रैन बसेरा बनकर तैयार हो जाना चाहिए। अगर तैयार नहीं हुआ तो अफसरों की खैर नहीं। अब क्या बताए यहां 48 घंटा नहीं 148 घंटा बीत गया है, लेकिन दिल्ली में कोई नया रैन बसेरा नहीं बनाया गया। मैं जानना चाहता हूं कि जो मंत्री रात मे मोबाइल पर अफसरों को गरम करते हुए खुद को शूट करा रहे थे, क्या कोई जवाब है उनके पास ? मंत्री जी बताएंगे कि किस अफसर के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ? दरअसल सच्चाई ये है कि इस समय दिल्ली में बहुत ही टुच्ची राजनीति चल रही है। कहा जा रहा है मंत्री लाल बत्ती नहीं लेगें। अरे भाई लाल बत्ती लोगे तो आम आदमी का क्या नुकसान हो जाएगा और नहीं लेने से उसे क्या फायदा हो जाएगा। पगलाई इलेक्ट्रानिक मीडिया भी पूरे दिन इसी पर चर्चा कर रही है। बात मंत्रियों की सुरक्षा की होने लगती है, कुल मिलाकर छह तो मंत्री है, वो सुरक्षा नहीं लेगें, इससे आम आदमी पर क्या फर्क पडने वाला है। हम कुछ नहीं कहेंगे, आप सुरक्षा भी लीजिए, गाड़ी भी लीजिए, बत्ती भी लीजिए, बंगला भी लीजिए.. मसलन मंत्री के तौर पर जो सुविधा मिलती है, सब ले लीजिए, लेकिन दिल्ली के लिए कुछ काम कीजिए। हल्के बयानों से कुछ नहीं होने वाला है, ये दिल्ली है, प्लीज इसे दिल्ली ही रहने दीजिए।<br />
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यहां बात वो होनी चाहिए जिससे आम आदमी की मुश्किलें आसान हो, लेकिन आज बात वो की जा रही है, जिससे आम जनता खुश हो और ताली बजाए। ठीक उसी तरह जैसे रामलीला के दौरान जोकर के आने पर लोग ताली बजाते हैं। दिल्ली की आज सच्चाई ये है कि अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ही चर्चा कर लें, तो इस समय आँटो वाले बेलगाम हो गए हैं। मनमानी किराया तो आम बात रही है, अब वो सवारी के साथ बेहूदगी भी करने लगे हैं। मसला क्या है, बस आम आदमी की सरकार है, लिहाजा अब वो कुछ भी करने को आजाद हैं, उनका कोई कुछ नहीं कर सकता। ये मैसेज है आज दिल्ली में। खैर धीऱे धीरे ही सही, लेकिन सब कुछ अब सामने आने लगा है।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com42tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-50928255298973155772014-01-04T18:46:00.002+05:302014-01-04T18:46:40.600+05:30क्या खतरनाक खेल में शामिल हैं केजरीवाल ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCuFAaLoQYVRbYryyJpDXIgZnkanMhU4umROaGuHW8UPX0i0YL7Uwk50A3aUgZplOA67JSFwYQVxYX5qsSx7aNr7NW9e3FsHgz3-4hXsRKzRc6pfNQD1GDdnE-wpP3qyH-OVLqK4aAGEFL/s1600/11111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="211" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCuFAaLoQYVRbYryyJpDXIgZnkanMhU4umROaGuHW8UPX0i0YL7Uwk50A3aUgZplOA67JSFwYQVxYX5qsSx7aNr7NW9e3FsHgz3-4hXsRKzRc6pfNQD1GDdnE-wpP3qyH-OVLqK4aAGEFL/s320/11111111.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-size: large;">आ</span>ज सुबह से मित्रों के फोन आ रहे हैं और सब एक ही बात कह रहे हैं, भाईसाहब आप बिल्कुल सही कह रहे थे, अब हमें भी कुछ-कुछ समझ में आ रहा है, अरविंद केजरीवाल जो कह रहे हैं या कर रहे हैं वो सब महज दिखावा है, असल मकसद तो कुछ और ही लग रहा है। दरअसल मैं तीन दिन लखनऊ में रहा, कुछ व्यस्तता के चलते खबरों से बिल्कुल कटा हुआ था। मित्रों ने ही मुझे फोन पर बताया कि केजरीवाल ने भी दिल्ली में फ्लैट पसंद कर लिया है, वो भी एक नहीं दो.. मैं चौंक गया कि दो फ्लैट क्यों ? पता चला कि अगल बगल के दो फ्लैट के पांच पांच कमरों को मिलाकर 10 कमरे का मुख्यमंत्री आवास तैयार किया जा रहा है। इन दोनों फ्लैट को लाखों रूपये खर्च कर चमकाने का भी काम शुरू हो गया है। बहरहाल न्यूज चैनलों पर खबर आई तो अब भाग खड़े हुए, कह रहे है, इससे छोटा आवास तलाशा जाए। अच्छा अभी इस मित्र ने फोन काटा ही था, दूसरे का फोन आ गया, कहने लगे अरे महेन्द्र जी आपका जवाब नहीं, जो आपने कहा था सब सामने आ रहा है। मैंने पूछा अब क्या हुआ, कहने लगे कि कल तक जो लोग मेट्रो और आटो में सफर करके न्यूज चैनलों की हेडलाइन बने हुए थे, आज सभी ने दिल्ली सरकार से इनोवा गाड़ी उठा ली, अब हर मंत्री शानदार लक्जरी गाड़ी पर चल रहा है। चलिए एक-एक कर सभी मुद्दों पर चर्चा करते हैं।<br />
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सबसे पहले केजरीवाल साहब के नए ठिकाने की बात करते हैं। दिल्ली के प्राइम लोकेशन भगवानदास रोड पर 7/6 डीडीए ऑफिसर्स कॉलोनी अब आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नया पता बनने को तैयार हो रहा है। वैसे तो मुख्यमंत्री की हैसियत से वो लुटिंयन दिल्ली में एक शानदार बंगले के हकदार हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन खुद अरविंद ने ऐलान किया था कि उनका कोई भी मंत्री किसी तरह की सरकारी सुविधा यानि बंगला, मोटर, वेतन कुछ नहीं लेगा, हम सब सिर्फ जनता की सेवा करेंगे। लेकिन जब केजरीवाल ने पांच-पांच कमरों वाले दो फ्लैट लेने का फैसला किया तो दिल्ली वालों के कान खड़े हो गए। अरविंद केजरीवाल से पहले इस फ्लैट को देखने उनके माता-पिता पहुंच गए। सब ने ओके कर दिया, यहां तक कि इस फ्लैट को मुख्यमंत्री के रहने के काबिल बनाने के लिए लाखों रुपये पानी की तरह बहाने का फैसला भी हो गया और आनन-फानन में अफसरों ने काम भी शुरू कर दिया। खैर मीडिया में आज भी एक तपका ऐसा है जिसकी आंखे खुली हुई हैं। उसे लगा कि दिल्ली को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि अरविंद जो एक समय बड़ी - बडी बात कर रहे थे, दरअसल वो सच्चाई नहीं है, सच्चाई ये है कि अरविंद भी दूसरे राजनीतिक दलों और नेताओं से अलग नहीं है। खैर थोड़ी देर बाद टीवी पर अरविंद के शानदार फ्लैट की तस्वीर दिखाई जाने लगीं।<br />
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अब बारी थी अरविंद केजरीवाल की, दिल्ली वाले जानना चाहते थे कि आम आदमी के मुख्यमंत्री इस आरोपों का क्या जवाब देते हैं ? बहरहाल जवाब आया कि पहले जाकर शीला दीक्षित का आवास देखो फिर मेरे फ्लैट की तुलना करो। उनसे तो बहुत छोटा है मेरा फ्लैट। मुझे लगता है किसी आम आदमी के बीच के मुख्यमंत्री का इससे फूहड़ और गंदा जवाब हो ही नहीं सकता। इसका मतलब तो ये कि मैं कहूं कि शीला ने मुख्यमंत्री रहते अगर भ्रष्ट तरीके से एक हजार करोड़ रुपये की हेराफेरी की है तो ढाई सौ करोड़ की हेराफेरी करने का आपका भी हक बन जाता है। क्यों केजरीवाल साहब आप ने ईमानदारी की ये नई परिभाषा गढ़ ली है। बहरहाल अभी केजरीवाल का कद उतना नहीं बढ़ा है कि मीडिया की पूरी तरह अनदेखी कर सकें। रात भर कुछ चैनल को छोड़कर ज्यादातर ने केजरीवाल को खूब खरी-खरी सुनाई और दिल्ली वालों को उनका असली चेहरा दिखाया, तब कहीं जाकर सुबह केजरीवाल मीडिया के सामने आए और कहा कि अब वो इस बड़े फ्लैट में नहीं रहेंगे। छोटा फ्लैट तलाशने के लिए अफसरों को कहा गया है। यहां एक सवाल है कि क्या केजरीवाल का भी मन डोल गया है सरकारी आवास को लेकर? क्या ये सच नहीं है कि मीडिया के दबाव में केजरीवाल ने ये फ्लैट छोड़ दिया, वरना तो उनके पापा मम्मी ने भी इस फ्लैट को ओके कर दिया था ?<br />
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अब दूसरी बात करते है, सरकारी गाड़ी को लेकर उनके विचार। केजरीवाल तीन दिन तक ड्रामा करते रहे कि वो सरकारी गाड़ी नहीं लेगें, अपने निजी कार से दफ्तर जाएंगे। मीडिया ने उनके इस फैसले को बढ़ा चढ़ाकर खूब चलाया। तीन दिन तक हर चैनल पर उनकी नीले रंग की कार दौड़ती भागती दिखाई दे रही थी। न्यूज चैनल पर केजरीवाल भाषण देते रहे कि यहां से वीआईपी कल्चर खत्म करेंगे और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देंगे। ड्रामेबाजी का आलम ये कि केजरीवाल ने शपथ लेने के लिए आधा रास्ता मेट्रो से तय किया, बाद में अपनी कार से गए। हालाकि ये अलग बात है कि उनके लिए अलग ही मेट्रो ट्रेन की व्यवस्था की गई थी। अब उनके मंत्री दो कदम आगे निकले, वो सुबह उठते ही न्यूज चैनलों को फोन करते और बताते कि सुबह साढ़े नौ बजे घर से सचिवालय के लिए निकलेंगे और पहले आटो से मालवीयनगर मेट्रो स्टेशन जाएंगे, फिर मेट्रो से सचिवालय जाएंगे। अगर न्यूज चैनल के रिपोर्टर जाम में फंस गए तो मंत्री भी घर से नहीं निकल रहे थे। वो भी रिपोर्टरों के आने के बाद ही आटो पर बैठे। खैर ये ड्रामा भी ज्यादा दिन नहीं चल पाया। अब मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों के पास शानदार सरकारी लक्जरी गाड़ी है। सभी गाड़ियों पर वीवीआईपी नंबर है। मैं पूछना चाहता हूं कि केजरीवाल साहब ये तीन दिन अपनी बैगनआर कार पर चल कर आप क्या बताना चाहते थे ? क्या ये कि आपके पास भी कार है ! अब आपके मंत्रियों ने भी कार लपक ली, कहां गया आपका पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रेम ? <br />
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अच्छा आप पानी बिजली पर बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं। जनता को हकीकत क्यों नहीं बताते। आपने जिस तपके यानि मीडिल क्लास को ध्यान में रखकर पानी की बात की, पूरी दिल्ली जानती है कि आपके फरमान से उसे कोई फायदा नहीं होने वाला है। दिल्ली में झुग्गी झोपड़ी या फिर अवैध कालोनी में पानी पहुंच ही नहीं रहा है, मीटर की तो बात ही दूर है। हां मीडिल क्लास तपका हाउसिंग सोसाइटी में रहते हैं, जहां सबके अलग-अलग कनेक्शन नहीं है, पूरी सोसाइटी का एक कनेक्शन है। ऐसे में मुझे तो नहीं लगता कि किसी को फायदा होगा। दूसरा आपने बिजली के बिल को आधा करने की बात की थी, लेकिन अब उसमें चालाकी कर दी आपने। चुनाव के पहले आपने बिजली कंपनियों को चोर बताया था और कहा था कि इन पर शिकंजा कसा जाएगा। हो क्या रहा है कि आप ने तो इन्हीं बिजली कंपनियों को करोडो रुपये सौंपने की तैयारी कर ली। बिजली का बिल कम करने के लिए सब्सिडी का क्या मतलब है ? केजरीवाल साहब सब्सिडी आप अपने घर से नहीं हमारी जेब से दे रहे हैं। हमारे टैक्स के पैसे जिसे कहीं विकास के काम में लगाया जा सकता था, वो पैसा आप बिजपी कंपनियों को दे रहे हैं, फिर मेरा सवाल है कि अब आप में और कांग्रेस में अंतर क्या है ? दोनों के लिए ही आम आदमी से कहीं ज्यादा बिजली कंपनियो की फिक्र है। फिर बड़ी बात तो ये है कि अभी तो बजट पास नहीं हुआ, आपके पास पैसे ही नहीं है, ऐसे में आप सब्सिडी दे कैसे सकते हैं ? केजरीवाल साहब कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको दिल्ली सरकार के घाघ अफसर मूर्ख बना रहे हैं ?<br />
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वैसे आप अपनी बातों पर ज्यादा समय तक कायम नहीं रह पाएंगे, इस बात का आभास तो आपके शपथ ग्रहण समारोह में ही हो गया था। आप ने कहाकि सादगी से समारोह होगा, कोई वीआईपी नहीं होगा, सब आम आदमी होंगे। केजरीवाल साहब आपकी आंखों पर पट्टी पड़ी हुई थी क्या ? आपने देखा नहीं कि आम आदमी रामलीला मैदान में किस तरह से धक्के खा रहा था और खास आदमी सोफे और शानदार सफेद कवर चढ़ी कुर्सियों पर विराजमान था। क्या आप अभी भी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि आपके समारोह में खास लोगों के लिए वीआईपी इंतजाम नहीं था ? हां भूल गया था, आप सुरक्षा को लेकर भी काफी कुछ कहते रहे हैं। पुलिस विभाग के रिकार्ड बता रहे हैं कि आपकी सुरक्षा में काफी पुलिस बल शामिल है। अगर आप सुरक्षा लेते तो 10-20 पुलिस कर्मी आपके साथ हो जाते, लेकिन सुरक्षा ना लेने की वजह से जहां से आप का आना जाना होता है, उस पूरे एरिया में सुरक्षा बलों को तैनात किया जाता है। बताते हैं की तीन सौ से चार सौ पुलिस वाले आपके आस पास रहते हैं। इससे तो बेहतर यही होता कि आप सुरक्षा ले लें। खैर ये वो बातें हैं जो आप दावा करते रहे और खोखली साबित हुई..<br />
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केजरीवाल साहब अब मैं कुछ गंभीर मुद्दा उठाना चाहता हूं। विधानसभा के भीतर आप पर एक गंभीर आरोप लगा, कि आप ने अपने एनजीओ में विदेशों से चंदा लिया। आप जिससे चंदा लेते हैं उसके क्रिया कलाप जानने की कोशिश करते हैं? मेरी जानकारी है कि ये संस्थाएं लोकतंत्र को अस्थिर करने का काम करती हैं। मेरा सवाल है कि विधानसभा में आपने इस आरोप का जवाब क्यों नहीं दिया ? विधानसभा के रिकार्ड में आप पर आर्थिक धांधलेबाजी के आरोप दर्ज हो गया है। लेकिन उस दौरान आप मौजूद थे, फिर भी इस पूरे मामले में खामोश हैं, दिल्ली की नहीं देश की जनता सच्चाई जानना चाहती है। कुछ बातें हैं जो आपको जानना जरूरी है।<br />
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<span style="color: red; font-size: large;">केजरीवाल का काला सच !</span><br />
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दरअसल अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ और कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति और चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारत अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति तक बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल को वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिल चुका है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। <br />
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‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिला है। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है। अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।<br />
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डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-25696636545221244212013-12-29T18:23:00.002+05:302013-12-29T18:23:57.954+05:30"आप" का समर्थन कर मुश्किल में कांग्रेस !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcKsFkIs15TaaGAMfRJzNxa06XFmOA5OdO0mxXH5Uk2Ho4RYaIENU_Hat6ZG7wB2PVm7SdZVdP4HfV_pc3OOF9ZX6VH9VfA4OhLh7TBoLMENWobRLudMgLoX0WIkXm_qfG9GLyxnHIXbm0/s1600/1111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcKsFkIs15TaaGAMfRJzNxa06XFmOA5OdO0mxXH5Uk2Ho4RYaIENU_Hat6ZG7wB2PVm7SdZVdP4HfV_pc3OOF9ZX6VH9VfA4OhLh7TBoLMENWobRLudMgLoX0WIkXm_qfG9GLyxnHIXbm0/s1600/1111111.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">आ</span>ज बिना लाग लपेट के एक सवाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछना चाहता हूं। मैंडम सोनिया जी, आप बताइये कि क्या कोई कांग्रेसी आपके दामाद राबर्ट वाड्रा को बेईमान और भ्रष्ट कह कर पार्टी में बना रह सकता है ? मैं जानता हूं कि इसका जवाब आप भले ना दें, लेकिन सच्चाई ये है कि अगर किसी नेता ने राबर्ट का नाम भी अपनी जुबान पर लाया तो उसे पार्टी से बिना देरी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अब मैं फिर पूछता हूं कि आखिर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ये कांग्रेस उनके पीछे कैसे खड़ी हो गई, जिसने आपके दामाद वाड्रा को सरेआम भ्रष्ट और बेईमान बताया। क्या ये माना जाए कि केजरीवाल ने जितने भी आरोप आपके परिवार और पार्टी पर लगाएं है, वो सही हैं, इसलिए आपकी पार्टी उनके साथ खड़ी हैं, या फिर पार्टी में कहीं कई विचार पनप रहे हैं, लेकिन सही फैसला लेने में मुश्किल आ रही है और आपका बीमार नेतृत्व पार्टी को अपाहिज बना रहा है। <br />
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खैर सच तो ये है कि आम आदमी पार्टी को समर्थन देना अब कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। मेरी नजर में तो आप को समर्थन देकर कांग्रेस ने एक ऐसी राजनीतिक भूल की है, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। सबको पता ही है किसी भी राजनीतिक दल को दिल्ली की जनता ने बहुमत नहीं दिया, लिहाजा लोग सरकार बनाने की पहल ना करते और ना ही किसी को समर्थन का ऐलान करते ! लेकिन कांग्रेस के मूर्ख सलाहकारों को लगा कि अगर वो आप को समर्थन का ऐलान करती है, तो ऐसा करके वो दिल्ली की जनता के दिल मे जगह बना लेगी और केजरीवाल जनता से किए वादे पूरे नहीं कर पाएंगे, लिहाजा वो जनता का विश्वास खो देंगे। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। इधर पहले तो केजरीवाल समर्थन लेने से इनकार करते रहे और कहाकि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। इस पर कांग्रेसी दो कदम आगे आ गए और कहने लगे की उनका समर्थन बिना शर्त है, सरकार बनाकर दिखाएं।<br />
<br />
अब कांग्रेसियों की करतूतों से केजरीवाल क्या देश की जनता वाकिफ है, सब जानते हैं कि इन पर आसानी से भरोसा करना मूर्खता है। लिहाजा केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो जनता से पूछ कर इसका फैसला करेंगे। इस ऐलान के साथ केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच निकल गए, और जनता की सभा में उन्होंने आक्रामक तेवर अपनाया। हर सभा में ऐलान करते रहे कि सरकार बनाते ही सबसे पहला काम भ्रष्टाचार की जांच कराएंगे और दोषी हुई तो शीला दीक्षित तक को जेल भेजेंगे। आप पार्टी ने कांग्रेस पर हमला जारी रखा, लेकिन कांग्रेस को लग रहा था कि वो केजरीवाल को बेनकाब कर देंगे, इसलिए समर्थन देने के फैसले पर अडिग रहे। मैने तो पहली दफा देखा कि जिसके समर्थन से कोई दल सरकार बनाने जा रहा है वो उसके नेताओं को गाली सरेआम गाली दे रहा है और पार्टी कह रही है कि नहीं सब ठीक है। वैसे अंदर की बात तो ये भी है कांग्रेस में एक तपका ऐसा है जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोधी है, उसे लग रहा है कि केजरीवाल जब जांच पड़ताल शुरू करेंगे तो शीला की असलियत सामने आ जाएगी।<br />
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केजरीवाल ने शपथ लेने से पहले कांग्रेस को इतना घेर दिया है कि अब उनके पास कोई चारा नहीं बचा। शपथ लेने के दौरान भी केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वो किसी से समर्थन की गुजारिश नहीं करेंगे। बहुमत मिला तो सरकार चला कर जनता की सेवा वरना जनता के बीच रहकर उसकी सेवा। अब कांग्रेस के गले मे ये हड्डी ऐसी फंसी है कि ना उगलते बन रहा है ना ही निगलते बन रहा है। अगर कांग्रेस समर्थन वापसी का ऐलान करती है तो उसकी दिल्ली में भारी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। बता रहे हैं कि इस सामान्य मसले को पेंचीदा बनाने के बाद अब कांग्रेसी 10 जनपथ की ओर देख रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि 10 जनपथ में तमाम जानकार बैठे हैं, जो मुद्दे का हल निकाल देंगे। बहरहाल शपथग्रहण के बाद से जो माहौल बना है, उससे दो बातें सामने हैं। एक तो दिल्ली में कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा, दूसरा दिल्ली में आराजक राजनीति की शुरुआत हो गई है।<br />
<br />
<span style="color: blue;">वैसे आप कहेंगे कि सोनिया गांधी से सवाल पूछना आसान है, लेकिन किसी मुद्दे का समाधान देना मुश्किल है। मैं समाधान दे रहा हूं। एक टीवी न्यूज चैनल के स्टिंग आँपरेशन में पार्टी के पांच विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग हट कर बयान दिया और केजरीवाल को पागल तक बताया। कांग्रेस आलाकमान को इस मामले को तत्काल गंभीरता से लेते हुए अपने पांचो विधायकों को पार्टी से निलंबित कर उनकी प्राथमिक सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इससे दिल्ली की जनता में ये संदेश जाएगा कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर अरविंद की आलोचना करने पर इन विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। उधर विधायक दल बदल कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। </span><br />
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<br /></div>
Unknownnoreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-83338747522621289002013-12-27T20:43:00.001+05:302013-12-27T20:45:17.516+05:30ईमानदार ही नहीं गंभीर भी हो सरकार !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc7XO6FED64AXqHFiMRXFTI9sIZmmP9sg4hbxsL5RobbYOteMrVeW1M36mk8mvbPA-2-sX2WGfF3V59OAFVgoqBFODKo1tH8FM2iKHWr6dEV-Q-NVbp9TQN-0Y7lHkv1kqoE4ra2ycb4Uo/s1600/1111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="149" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhc7XO6FED64AXqHFiMRXFTI9sIZmmP9sg4hbxsL5RobbYOteMrVeW1M36mk8mvbPA-2-sX2WGfF3V59OAFVgoqBFODKo1tH8FM2iKHWr6dEV-Q-NVbp9TQN-0Y7lHkv1kqoE4ra2ycb4Uo/s200/1111111.jpg" width="200" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">बहुत बुलंद फजाँ में तेरी पतंग सही,</span><br />
<span style="color: red; font-size: large;">मगर ये सोच जरा डोर किसके हाथ में है ।</span><br />
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<span style="color: blue; font-size: large;">मु</span>झे लगता है कि इन दो लाइनों से अरविंद केजरीवाल को समझ लेना चाहिए कि उनके बारे में आम जनता की राय क्या है ? हम सब जानते हैं कि केजरीवाल ने अन्ना के मंच से जोर शोर से दावा किया था कि कभी राजनीति में नहीं जाऊंगा, पर राजनीति में आ गए। राजनीति में आने के लिए इस कदर उतावले रहे कि उन्होंने अन्ना को भी किनारे कर दिया। यहां तक आंदोलन में उनकी सहयोगी देश की पहली महिला आईपीएस अफसर किरण बेदी से भी नाता तोड़ लिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, बाद में<br />
बच्चे की कसम खाई कि ना बीजेपी और कांग्रेस से समर्थन लूंगा और ना ही दूंगा, ये भी बात झूठी निकली, कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने जा रहे हैं। कह रहे थे कि सरकार में आते ही दिल्ली में रामराज ला दूंगा, अब कह रहे हैं कि हमारे हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है। बहरहाल जैसा दूसरे दलों में मंत्री पद के लालची होते हैं, वो चेहरा केजरीवाल की पार्टी में भी दिखाई दिया। उनकी पार्टी का एक विधायक मंत्री ना बनाए जाने से नाराज हो गया, महज नाराज होता तो भी गनीमत थी, वो तो कहने लगा कि प्रेस कान्फ्रेंस करके केजरीवाल की पोल खोल दूंगा। खैर रात भर मेहनत करके उस विधायक को मना तो लिया गया, लेकिन ये सवाल जनता में जरूर रह गया कि आखिर ये विधायक अरविंद केजरीवाल की कौन सी पोल खोलने की धमकी दे रहा था।<br />
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केजरीवाल कहते रहे कि सरकार बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी को निभानी चाहिए थी, क्योंकि उनके पास 32 विधायक हैं। अरे भाई केजरीवाल साहब वो सरकार बना लेते, पहले आप कहते तो कि " मैं बीजेपी को समर्थन देने को तैयार हूं"। जब बीजेपी को कोई समर्थन नहीं दे रहा है, तो उनकी सरकार भला कैसे बन सकती थी ? आप रोजना उनकी आलोचना कर रहे हैं, मैं पूछता हूं कि आप तो इन राजनीतिज्ञों से हट कर हैं, आपको तो कुर्सी की कोई लालच भी नहीं है, आप हमेशा कहते रहे हैं कि अगर सरकार जन लोकपाल लाने का वादा करे, तो वो चुनाव के मैदान से भी हट जाएंगे। मेरा सवाल है कि आपने खुद शर्तों के साथ समर्थन देने की पहल क्यों नहीं की ? भाई केजरीवाल साहब समर्थन देने के मामले में तो आप ये कहते हैं कि उनका जनता से वादा है कि किसी को समर्थन नहीं दूंगा। मित्र केजरीवाल जनता से तो आपका ये भी वादा था कि किसी से समर्थन लूंगा भी नहीं, फिर ये वादा तो आपने तोड़ दिया। उस कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना रहे हैं, जिससे चुनाव में आपकी सीधी लड़ाई थी, जिसके खिलाफ जनता ने आपको वोट दिया।<br />
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कांग्रेस से जनता कितनी त्रस्त थी, ये बताने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आपको भी ये उम्मीद नहीं थी कि उनकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी चुनाव में हार जाएंगी। ईमानदारी की बात तो ये है कि आप को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि आप चुनाव जीत सकते हैं। लेकिन जनता का गुस्सा ऐसा था कि कांग्रेस के तमाम दिग्गजों को चुनाव हरा दिया। अब जिनको आप गाली देते रहे, उन्हीं की मदद से कुर्सी पर बैठ रहे हैं। वैसे तो आप पहले कुर्सी संभालिए, फिर जनता देखेगी कि कांग्रेस के बारे में आप की अब क्या राय है ? कांग्रेस के जिन मंत्रियों को आप गाली देते रहे, जिन पर गंभीर आरोप थे, जब आप विधानसभा में बहुमत साबित करेंगे तो वो आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे। चलिए एक आखिर बात कहकर इस विषय को यहीं खत्म करते हैं। चुनाव के दौरान 20 करोड़ रुपये चंदा आ गया तो आप ने कहाकि अब आपको पैसे की जरूरत नहीं है, लोग चंदा ना दें। यहां आप नैतिकता की बात कर रहे थे। अब विधानसभा में संख्या कम हो गई तो वही चोर, उचक्के, भ्रष्ट (ये सब आप कहते रहे हैं) उनका साथ लेने से आपको कोई परहेज नहीं है। भाई अब नैतिकता की बात कभी मत कीजिएगा.. आपके मुंह से ये शब्द सुनना बेईमानी है।<br />
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पगलाई इलेक्ट्रानिक मीडिया टीआरपी के चक्कर में आपके आस पास चिपकी हुई है। दिन भर में आप और आपकी टीम भी कई बार कैमरे के सामने आती है। एक बार कहते हैं कि लाल बत्ती नहीं लूंगा, दो घंटे बाद फिर बाहर आते हैं अब कहते हैं गाड़ी नहीं लूंगा। केजरीवाल साहब लालबत्ती नहीं लूंगा का मतलब ही ये है कि आप गाड़ी भी नहीं लेगें। अब बताइये गाड़ी नहीं लेगें तो क्या लाल बत्ती हाथ में लेकर चलेंगे ? बात यहीं खत्म नहीं हुई, मीडिया में आप छाये रहें इसके लिए कुछ चाहिए ना.. इसलिए कुछ देर बाद आप फिर कैमरे के सामने आए और कहा कि शपथ लेने मेट्रो से जाएंगे। चलिए जनता को मालूम हो आपकी हकीकत, इसलिए बताना जरूरी है कि रामलीला मैदान तक मेट्रो नही जाती है, ऐसे में केजरीवाल मैट्रो से बाराखंभा रोड तक मेट्रो से आएंगे, उसके बाद अपनी कार से रामलीला मैदान जाएंगे। आपकी कार बाराखंभा रोड पर तो रहती नहीं है, मतलब ये कि आप कार को घर से बाराखंभा तक खाली भेजेंगे, फिर यहां से उस पर सवार होंगे। ऐसे में मेरा सवाल है कि आप इस कार पर घर से ही क्यों नहीं सवार हो जाते ? ये हलकी फुलकी बातों से सरकार नहीं चलती केजरीवाल साहब ! ये सब करके आप दिल्ली और मेट्रो यात्रियों को केवल डिस्टर्ब ही करेंगे। शहर में आराजकता के हालात पैदा करेंगे।<br />
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केजरीवाल कितने दिनों से गिना रहे हैं कि वो आटो पर चलेगे, मेट्रो का सफर करेंगे, लाल बत्ती नहीं लेगें, बंगला और गाड़ी नहीं लेगें। आपने कभी गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर के मुंह से ये सब सुना है। वो काफी समय से गोवा के मुख्यमंत्री हैं। उनके पास भी सरकारी गाड़ी, बंगला, लालबत्ती कुछ नहीं है। स्कूटी से दफ्तर जाते हैं, कई बार तो रास्ते में खड़े होकर किसी से लिफ्ट लेते भी दिखाई दे जाते हैं। और हां केजरीवाल की पत्नी तो लालबत्ती की गाडी में ऑफिस जाती है जबकि गोवा के CM की पत्नी आज भी रिक्शे में बैठकर बाजार से खुद सामान लाती हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही ले लीजिए। रेलमंत्री रहने के दौरान कभी वो दिल्ली में लालबत्ती की कार पर नहीं चढ़ीं, मंत्रालय में अपनी टूटही जेन कार पर सवार होकर जाती हैं और सूती साड़ी के साथ हवाई चप्पल पहनती हैं। एक बार ममता ने देखा कि एक स्कूटर सवार सड़क पर अचानक गिर पड़ा , तो वो अपने कार से उतरी और घायल को उसी कार से अस्पताल भेज दिया और खुद आटो लेकर संसद गईं। लेकिन उन्होने अपने मुंह से ये सब कभी नहीं कहा।<br />
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त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार भी साफ छवि वाले राजनेता हैं। गरीबी में पले-बढ़े माणिक सरकार की कुल चल और अचल संपति ढाई लाख रुपए से भी कम आंकी गई है। चुनाव आयोग को सौंपे शपथ पत्र के अनुसार, 64 साल के माणिक सरकार के पास 1,080 रुपए कैश और बैंक में 9,720 रुपए हैं। केजरीवाल तो फिर भी लाखों रूपये के मालिक हैं। माणिक तो अपनी सैलरी और भत्ते भी पार्टी फंड में देते हैं। पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी सादगी पसंद इंसान हैं। वह किराये के सरकारी मकान में रहते हैं। चुनाव आयोग को सौंपे शपथ पत्र में उन्होंने जानकारी दी थी कि उनके पास न ही कोई मकान है और न ही गाड़ी। कैश के नाम पर उनके पास केवल पांच हजार रुपए हैं। ऐसा नहीं है कि गाड़ी, बंगला ना लेने वाले आप कोई पहले नेता हैं, बहुत सारे लोग ऐसे रहे हैं। लेकिन हां आप इस मामले में जरूर पहले नेता हैं जो अपने मुंह से पूरे दिन मीडिया के सामने गाते रहते हैं कि मैं ये नहीं लूंगा वो नहीं लूंगा। दूसरे नेताओं ने कभी अपने मुंह से कहा नहीं।<br />
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खैर आप मुख्यमंत्री बनिए, हमारी भी शुभकामनाएं हैं। हम भी चाहते हैं कि दिल्ली मे एक ईमानदार सरकार ही न हो, बल्कि वो ईमानदारी से काम भी करे। लेकिन जिस सरकार की बुनियाद में बेईमान हों, उससे बहुत ज्यादा ईमानदारी की उम्मीद रखना, मेरे ख्याल से बेईमानी होगी। मैं चाहता हूं कि दिल्ली में ना सिर्फ एक ईमानदार बल्कि गंभीर सरकार होनी चाहिए। दिल्ली की सड़कों पर जिस तरह से टोपी लगाए गुमराह नौजवान घूम रहे हैं, इन्हें आपको ही नियंत्रित करना होगा, वरना कल ये आपके लिए ही सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगे। <br />
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Unknownnoreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-77193321977572098182013-12-12T20:09:00.001+05:302013-12-12T20:11:31.185+05:30कुर्सी से भाग रहे हैं केजरीवाल !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH8xcSF88U50FztreserUft3A1LGCzz3KdCkAa2YZX_W_XTw3aXeECctlB6QSTFyoQZJNrGz7TAQE0PMBMC2WshkXLPCr4bYyRjNqNcgqqVmO_fKJlhX1otGPcB8bbmrDBkduSq8fd4OO4/s1600/111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH8xcSF88U50FztreserUft3A1LGCzz3KdCkAa2YZX_W_XTw3aXeECctlB6QSTFyoQZJNrGz7TAQE0PMBMC2WshkXLPCr4bYyRjNqNcgqqVmO_fKJlhX1otGPcB8bbmrDBkduSq8fd4OO4/s1600/111111.jpg" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">आ</span>पको ऐसा नहीं लग रहा कि केजरीवाल अब कुछ ज्यादा बोल रहे हैं ? इन दिनों उनमें कुछ ज्यादा ही अहम दिखाई दे रहा है। उनके बयानों से लगता है कि या तो वो दिल्ली की जनता को मुर्ख समझ रहे हैं या फिर एक साजिश के तहत मूर्खता कर रहे हैं। उन्होंने जीत के जश्न में कहाकि भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने से डर रही है। ये बात केजरीवाल किस आधार पर कर रहे हैं, ये तो वही बता सकते हैं, क्योंकि दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जो जरूरी संख्या है, वो किसी के पास नहीं है। आइए पहले मैं आपको विधानसभा का गणित समझा दूं। दिल्ली की 70 विधान सभा सीट में बहुमत के लिए 36 विधायकों का समर्थन चाहिए। बीजेपी के पास महज 32 ही विधायक हैं, आप के पास 28 और कांग्रेस के पास 8 जबकि दो अन्य सदस्य हैं। बीजेपी को कांग्रेस और आप दोनों ने ही समर्थन देने से इनकार कर दिया है, फिर कैसे बन सकती है सरकार ? अब इसका जवाब तो केजरीवाल के पास ही होगा। <br />
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बीजेपी को अगर सरकार बनानी है तो उसे कम से कम चार विधायकों का समर्थन जुटाना होगा। माना की बीजेपी बहुत कोशिश करेगी तो जो अन्य दो सदस्य जीते हैं, उनका समर्थन हासिल कर सकती है, लेकिन बाकी दो विधायक कहां से आएंगे, ये मैं केजरीवाल से ही पूछना चाहता हूं। समर्थन जुटाने के लिए अगर बीजेपी दूसरी पार्टियों यानि कांग्रेस या आप को तोड़ने की कोशिश करे तो उसे दो तिहाई सदस्यों को तोड़ना होगा। मसलन कांग्रेस के 8 विधायकों में जब तक छह लोग एक साथ पार्टी से विद्रोह नहीं करेंगे, वो कांग्रेस से अलग नहीं हो सकते। इसी तरह अगर केजरीवाल की पार्टी आप को तोड़ना हो तो उसके 28 सदस्यों में दो तिहाई का मतलब 19 विधायकों को पार्टी में विद्रोह करना होगा। अब केजरीवाल ही बताएं कि उनके 19 विधायकों को क्या बीजेपी तोड़ सकती है ? या फिर वो ये कहना चाहते हैं कि कांग्रेस के 6 विधायक आसानी से बीजेपी को समर्थन दे देंगे ? इन हालातों में बीजेपी सरकार बनाने के लिए भला कैसे आगे आ सकती है ?<br />
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दिल्ली का जो गणित है, उसके आधार पर बीजेपी कैसे सरकार बना सकती है जो वो नहीं बना रही है ? ये बात दिल्ली की जनता को अरविंद केजरीवाल ही समझा दें। क्या उन्हें ये लगता है कि उनकी पार्टी या फिर कांग्रेस के लोग टूटने के लिए बेकरार हैं, लेकिन बीजेपी नहीं तोड़ रही है ? ऐसे में बीजेपी की सरकार तो बनने से रही। बात कांग्रेस की करें, तो उसकी सरकार किसी सूरत में नहीं बन सकती। उनके पास महज आठ सदस्य हैं, बीजेपी उसे समर्थन दे नहीं सकती, और केजरीवाल ने समर्थन देने से इनकार कर दिया है। इन हालातों में बाकी कौन बचता है ? बाकी बचते हैं, केजरीवाल और उनकी पार्टी आप ।<br />
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अब आप कहेंगे कि आप क्यों सरकार बनाए ? दरअसल कांग्रेस विधायक दल की बैठक में तय हुआ है कि वो केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार हैं। अगर कांग्रेस बिना शर्त समर्थन दे रही है तो केजरीवाल साहब आप सरकार बनाने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं ? राजनीति में सहयोग और समर्थन जरूरी है। वरना तो कोई भी सरकार नहीं चल सकती। जनता ये भी जानना चाहती है कि बिना शर्त समर्थन लेने से आप क्यों भाग रहे हैं ? अब अगर मैं आपसे कहूं कि आप सरकार बनाने से खुद डर रहे हैं, क्योकि जब आपके हाथ में माइक होता तो आप क्या बोल रहे हैं, उस पर तो नियंत्रण है नहीं, कुछ भी बोलते हैं। लंबे चौडे जो वादे आपने जनता के सामने किए हैं, उसे भी पूरा करना होगा, वरना अगले चुनाव में जनता आपका हिसाब पूरा कर देगी।<br />
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केजरीवाल साहब मुख्यमंत्री बनिए, दिल्ली की जनता चाहती है कि आप मुख्यमंत्री बनें और बिजली दरों को आधी कर दें। आपका सबसे बड़ा मुद्दा ही ये रहा है कि सरकार बनते ही बिजली दरों को आधी करेंगे। अब वक्त आ गया है, दिल्ली में कम दर पर बिजली मिलने का। लेकिन अंदर की बात ये है कि आप बिजली दरों को जैसे ही आधी करने को कहेंगे, बिजली कंपनियां दिल्ली को अंधेरे में छोड़ कर दूसरे राज्य को चली जाएंगी। उसके बाद पड़ने वाली गाली से बचने के लिए यही अच्छा है कि आप कुर्सी से दूर रहें और साजिश के तहत आप कुर्सी पर नहीं बैठ रहे हैं। वैसे मौका है आपको दूसरे वादे भी याद दिला ही दूं, वरना नेताओं का क्या है, उनकी याददास्त बहुत कमजोर होती है।<br />
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भाई केजरीवाल जी सरकार बनाकर ही आप आधी दर पर बिजली देने के अलावा, 700 लीटर मुफ्त पानी, सभी गैरकानूनी कॉलोनियों को रेगुलराइज, मुस्लिम युवाओं पर लगे फर्जी मुकदमे वापस, सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी और ओबीसी का रिजर्वेशन सख्ती से लागू करने और बैकलॉग वैकेंसी भरने, करप्शन करने वाले लोकसेवक को नौकरी से निकालने, जेल भेजने और संपत्ति जब्त करने, दिल्ली के तमाम सफाई कर्मचारियों और ड्राइवरों को पर्मानेंट करने, उर्दू और पंजाबी भाषा की हैसियत बढ़ाने जैसे कदम उठा पाएंगे। चुनाव के दौरान जिस तरह आपने जनता को भरोसा दिया था, उससे लग रहा था कि सारे नेता, अफसर, कर्मचारी चोर हैं, उनमें ईमानदारी से काम करने की क्षमता नहीं है, इसीलिए सारी चीजें मंहगी है। लेकिन मैं जानता हूं कि आप सिर्फ कीचड़ उछालना जानते हैं, कोई विजन या क्षमता नहीं है आपमें जिससे मुश्किल आसान हो।<br />
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आखिर में एक बात और कहना चाहूंगा कि जिस तरह से आज एक गुमराह युवा वर्ग सफेद टोपी पहन कर सार्वजनिक स्थानों पर गुंडागर्दी कर रहा है, उससे इतना तो साफ है कि इनके खिलाफ अगर शुरू में ही सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले समय में देश में एक खतरनाक आराजक राजनीति की शुरूआत होगी। वैसे तो देश की राजनीति में पहले ही गुंडे बदमाश हावी रहे हैं। हर पार्टी इन बदमाशों, हिस्ट्रीशीटरों को गले लगाती रही है, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम रही है, जिससे समय-समय पर उन्हें जेल भी भेजा गया। लेकिन ये संगठित आराजक तत्व आसानी से कब्जे में नहीं आने वाले हैं। वैसे एक बात और , अगर केजरीवाल सरकार में आते हैं, तो जरा उनके विधायकों की शैक्षिक योग्यता तो देख लीजिए...<br />
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Unknownnoreply@blogger.com44tag:blogger.com,1999:blog-2239931836978162266.post-6117199687288386312013-12-04T18:53:00.001+05:302013-12-05T11:29:40.588+05:30आसाराम का भी बाप है नारायण साईं !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQ8iQdn37reEQ6gMOQ6lbKJj_njPLlGWVC67-cJ0X4FvyWSIjEdo34VWUnKHZDSaVsU10sSXnqQnjY7DgBnI6nYmxPByZBCYJENy_gTwtutNIYc5d2YibSssXK7rntmsFAkn_Nk0hkN0yH/s1600/11111111.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="216" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQ8iQdn37reEQ6gMOQ6lbKJj_njPLlGWVC67-cJ0X4FvyWSIjEdo34VWUnKHZDSaVsU10sSXnqQnjY7DgBnI6nYmxPByZBCYJENy_gTwtutNIYc5d2YibSssXK7rntmsFAkn_Nk0hkN0yH/s320/11111111.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="color: red; font-size: large;">आ</span>इये आज एक बार फिर बात बाबाओं के बलात्कार पर मचे बवाल की करते हैं। आसाराम की करतूतें सामने आ चुकी हैं, बाबा की जो करतूतें है उससे लग नहीं रहा है कि इसके बाल इसकी उम्र की वजह से सफेद हैं। लग रहा कि अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए इसने अपने दाढ़ी-बाल खुद सफेद किया है। खैर भगोड़ा घोषित हो चुका इसका बेटा नारायण साईं के भी पाप का घड़ा भर गया, देर रात ये भी आखिर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। पकडे़ जाने के दौरान नारायण सिख के वेष में था। इसने पिंक कलर की पगड़ी बांध रखी थी और जींस- टीशर्ट पहने हुए था। पकड़े जाने के बाद उसे इस बात की शर्म नहीं थी कि वो बलात्कार का आरोपी है, उसे इस बात पर शर्म थी कि अगर लोगों ने उसे जींस-टीशर्ट में देख लिया तो आगे बाबागिरी की दुकान का क्या होगा ? लिहाजा वो पुलिस वालों से गिड़गिड़ाने लगा कि पहले उसे धोती- कुर्ता पहन लेने दो, फिर गिरफ्तार करो। बहरहाल रात में तो पुलिस ने उसे कपड़े बदलने की छूट नहीं दी, लेकिन सुबह पुलिस ने उसे फिर बाबा बना दिया। कहावत है ना बाप एक नंबरी तो बेटा दस नंबरी। ये कहावत इस बाप-बेटे पर सटीक बैठती है, क्योंकि आसाराम का बाप है नारायण साईं...<br />
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अगर मैं नारायण साई को आसाराम का बाप बता रहा हूं तो इसके पीछे खास वजह है। इन दोनों के यौन उत्पीड़न को लेकर तो रोजाना नए - नए खुलासे होते ही रहते थे, लेकिन सबसे चौकाने वाली बात ये कि नारायण साईं दो-दो नाजायज औलाद का बाप है। मेरा मानना है कि कोई महिला आमतौर पर बच्चों के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकती। महिला का आरोप है कि साईं उसके साथ दुराचार करता रहा है और ये संतान भी उसी की है। महिला ने यह भी दावा किया कि साईं केवल उसके ही संतानों का पिता नहीं है, बल्कि वह एक अन्य सेविका की बेटी का भी पिता है। यह लड़की अभी अहमदाबाद में रह रही है। इतना ही नहीं नारायण साईं को मैं इसलिए भी आसाराम का बाप बता रहा हूं, क्योंकि ये अपने ही बाप की अश्लील सीडी बनाने की फिराक में था। साईं चाहता था कि आसाराम की कई महिलाओं के साथ सीडी बना ली जाए और फिर उसे ही संपत्ति से बेदखल कर पूरे राज पर कब्जा जमा ले। आपको पता है ये नारायण साईं अपने आश्रम की लड़कियों के साथ कृष्ण लीला करता था और वह लड़कियों के साथ नहाता था। इसे वह अपनी रासलीला कहता था। सूरत की जिस महिला ने साईं के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया था, उसी ने यह सनसनीखेज आरोप एक समाचार चैनल से बातचीत में लगाया है।<br />
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बहरहाल दोनों ही कुकर्मियों के पाप का घड़ा भर चुका था, लिहाजा दोनों की धोती खुल गई। बाप एकांतवास और बीमारी के इलाज नाम महिलाओं का शोषण करता रहा और बेटे का तो भगवान ही मालिक है। आमतौर पर स्मगलर कोडवर्ड में बातचीत करते हैं, जिससे वो कभी धरे ना जाएं। लेकिन यहां तो नारायण साईं भी लड़कियों के मामले में कोडवर्ड में बात करता था। कोडवर्ड जानना चाहते हैं ? हां क्यों नहीं जानना चाहेंगे, आपको भी तो अय्यास बाबाओं की स्टोरी चटखारे लेकर पढ़ने में मजा आ रहा है। तो सुनिए कोडवर्ड.....जो लड़की एक बार आश्रम की चारदीवारी के अंदर पहुंच गई उसके बाद उसका बाहर आ पाना मुश्किल हो जाता है। आश्रम में लड़कियों को लाने और ले जाने के लिए कुछ खास कोडवर्ड् का इस्तेमाल किया जाता था। मसलन जब नारायण साईं के लिए कोई नई लड़की पेश की जाती थी तो उसके लिए कहा जाता था `लाल तिलक लगा लिया है`। जब आश्रम में पहले से मौजूद किसी लड़की को नारायण साईं के पास दोबारा भेजा जाता था तो कहा जाता था ` चंदन का तिलक लगा लिया है `। जब नारायण साईं के पास पेश करने के लिए लड़कियों को तैयार कर लिया जाता था तो कहा जाता था` भगवान का भोग तैयार हो गया है`। जब किसी लड़की को आश्रम में रोकने का फरमान जारी करना होता था तो कहा जाता था ` तिलक मिटने न पाए, मुंह मत धोना`। जांच में ये भी पता चला है कि आश्रमों में लड़कियों को डराया धमकाया जाता था और नारायण साईं के पास जाने के लिए मजबूर किया। तफ्तीश में ये भी साफ हो चुका है कि आश्रम में काम करने वालों को नारायण साईं की काली करतूतों की पूरी जानकारी थी ।<br />
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वैसे आसाराम जैसे का बेटा नारायण ही होना चाहिए । कहा जाता है ना कि जैसा बाप वैसा बेटा । नारायण साईं से जुड़े अब तक जितने भी खुलासे हुए हैं, उनसे एक बात तो साफ हो चुकी है कि बेटा अपने बाप से किसी भी मामले में कम नहीं है। आश्रमों में होने वाली हर काली करतूत को बाप बेटे की ये जोड़ी मिलजुलकर अंजाम देती रही है, और आश्रम के सेवादार और सेविकाएं इनके गलत काम में उनका भरपूर साथ देते रहे हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि नारायण साईं भी अपने बाप आसाराम के पदचिह्नों पर चल रहा था । बाप-बेटे की इस जोड़ी ने देश भर में फैले अलग-अलग आश्रमों में सेविकाओं के नाम पर 50 से ज्यादा महिलाओं को रखा हुआ था, इन सेविकाओं में कई नारायाण साईं की बेहद खास थीं, आरोप तो ये भी है कि आश्रम की कई सेविकाएं ही नारायण साईं के लिए लड़कियां मुहैया कराती रही हैं। मासूम लड़कियों को आस्था, भक्ति और इलाज के नाम पर अपने जाल में फंसाया जाता था और फिर उन्हें आसाराम और नारायण साईं के पास भेज दिया जाता था। अब नारायण साईं के पकड़े जाने के बाद पुलिस को उम्मीद है कि इन दोनों की काली करतूतों के और मामले भी सामने आएंगे।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrSbxs5Ly_SdkVAO0LSVPeXOAQ3LYtBGyLdp05MNDVc1MT1q7FwAFddmELYiY4xIPzAh2ZtKOMtyjqaaOFtzaD4YMjbDQAEt6-XXEadf0MiDRfUpTF8B2GoxTmU2FcaxmbGF89l1vONmQ5/s1600/2222222.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrSbxs5Ly_SdkVAO0LSVPeXOAQ3LYtBGyLdp05MNDVc1MT1q7FwAFddmELYiY4xIPzAh2ZtKOMtyjqaaOFtzaD4YMjbDQAEt6-XXEadf0MiDRfUpTF8B2GoxTmU2FcaxmbGF89l1vONmQ5/s200/2222222.jpg" width="178" /></a></div>
आइये इस नारायण साईं की गिरफ्तारी पर भी थोड़ी चर्चा कर ली जाए। 58 दिन से ये पुलिस की आंख में धूल झोंककर गिरफ्तारी से बचता रहा है। लेकिन यौन उत्पीड़न का ये आरोपी आखिर में पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। दिल्ली और सूरत पुलिस की टीम ने मंगलवार देर रात नारायण साईं को कुरुक्षेत्र के पास पीपली से गिरफ्तार किया। नारायण साईं के साथ उसके सहयोगी हनुमान, भाविका, विष्णु और रमेश भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। साईं को दिल्ली लाया गया, जहां उससे पूरे दिन क्राइम ब्रांच ने खूब पूछताछ की। पुलिस को साईं ने बताया कि उसके सलाहकार ही छिपने को कह रहे थे, इसलिए वो इधर-उधर भागता रहा। साईं ने यह भी बताया कि वह छिपने के क्रम में यूपी के आगरा और बिहार के सीतामढ़ी भी गया था। बताते हैं कि गिरफ्तारी के पहले उसे अंदेशा हो गया था कि वो पुलिस से घिर चुका है। इसलिए उसने भागने की भी कोशिश की। साईं जिस मकान में छिपा था उसके आसपास के सभी रास्तों पर पुलिस ने पहले ही बैरीकेडिंग कर रखी थी। फिर भी उसकी हिम्मत देखिए , वो एक एसयूवी में बैठकर वहां से निकल भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन तब तक पुलिस ने अपना हाथ उसके गले पर जकड़ दिया। इस ऑपरेशन में करीब 60 पुलिसवाले थे जिनकी अगुवाई दिल्ली पुलिस के डीसीपी कर रहे थे।<br />
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आपको पता है कि पुलिस से बचने के लिए नारायण साईं ने क्या क्या नहीं किया। उसके पास से कई मोबाइल फोन के साथ ही लगभग 120 सिम बरामद किए गए। बहरहाल नारायण साईं ने जितनी अय्य़ाशी की, आज सब निकल गई है। अब पुलिस ने इसे दिल्ली कोर्ट में पेश किया है, इसके बाद इसे गुजरात पुलिस ट्रांजिट रिमांड लेकर गुजरात ले जाएगी। वैसे कुछ दिन तो नारायण भी सुर्खियों में रहेगा, क्योंकि इसकी अय्य़ाशी से जुड़ी खबरें जो सामने आती रहेंगी। हां आखिर में ये बात जरूर बताना चाहूंगा कि पुलिस जब इसके डाक्टरी जांच के लिए अस्पताल या फिर कोर्ट में पेश करने के लिए ले गई, तो इसके चेहरे पर दो पैसे की शर्म-लिहाज नहीं दिखा। हंसता हुआ ये कोर्ट में रुम दाखिल हुआ, बाहर निकलने के दौरान तो ये जिस तरह दोनों हाथ ऊपर उठाकर लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहा था, लगा ही नहीं कि ये यौन उत्पीड़न का आरोपी है।<br />
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Unknownnoreply@blogger.com19