Monday 28 January 2013

पदम् सम्मान : जूते घिसने से नहीं बेचने से मिलता है !


ज बात पदम् सम्मानों की ! लोग इस सम्मान के लिए सालों साल जूते घिसते रहते हैं, फिर भी निराश होना पड़ता है। वैसे अंदर की बात कुछ और है, उन्हें पता नहीं है कि पदम् सम्मानों के लिए जूते घिसना जरूरी नहीं है, बल्कि जूता बेचना जरूरी है। मैं पहले  ही समझ रहा था कि ये बात आपकी समझ में आसानी से नहीं आएगी। चलिए बता देता हूं कि सम्मान का क्राइट एरिया दिल्ली में कैसे तय किया जाता है। अब देखिए ना तमाम बड़े बड़े खिलाड़ी हैं, जिन्हें आज तक पदम् सम्मान मिलना तो दूर, उनका जिक्र तक नहीं हुआ। जबकि क्रिकेटर्स  को कीनिया के खिलाफ शतक बनाते ही सबसे पहले जूते बेचने का विज्ञापन मिल जाता है। अब चैनलों पर दिन भर जूता बेचता जब कोई खिलाड़ी दिखाई देता है तो दिल्ली के अफसरों और नेताओं को भी लगता है कि यार ये खिलाड़ी तो बड़ा पापुलर है । ये खेल में उसके योगगान को नहीं देखते, बस उसके हाथ में जूता देखने पदम सम्मानों में नाम शामिल कर देते हैं।
अब इस बार के सम्मान को ही ले लीजिए, लोग उंगली उठा रहे हैं। कह रहे हैं इन्हें देना चाहिए था, उन्हें नहीं देना चाहिए था। मजेदार बात तो ये है कि जिन्हें नहीं मिला वो तो नाराज हैं ही, जिन्हें मिला वो भी नाराज हैं। बहरहाल मुझे लगता है कि शटलर साइना नेहवाल और शूटर गगन नारंग को इस बार जरूर पदम सम्मान से नवाजा जाना चाहिए था, दोनों ने ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन किया है। लेकिन सरकारी सूची में इन दोनों का नाम ना देखकर मैं ही क्या पूरा देश हैरान रह गया। मेरा दावा है कि अगर देश में मतदान करा लिया जाए कि इन दोनों को सम्मान मिलना चाहिए या नहीं, तो मुझे लगता है कि सौ फीसदी लोगों का एक  ही जवाब होगा कि इन्हें सम्मान जरूर देना चाहिए। ऐसे में अगर इन दोनों खिलाड़ियों ने नाराजगी जताई है तो इसमे गलत कुछ नहीं है।

हम सब ना पहलवान सुशील कुमार को भूले हैं और ना ही उनके योगदान को भुलाया जा सकता है। सुशील ने लगातार दो ओलंपिक में पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है। उन्हें 2011 में पद्मश्री दिया गया था। हम सबको उम्मीद थी कि इस बार उन्हें पद्म भूषण से नवाजा जाएगा, लेकिन उनका नाम शामिल नहीं किया गया। पता चला है कि खुद खेल मंत्रालय ने उनके नाम की सिफारिश की थी, फिर भी उनके  नाम को शामिल  नहीं किया गया। अब सुशील तो देश के लिए पदक जीतने के लिए जूता घिसते रहते हैं, अब वो  जूता बेचते तो हैं नहीं, तो भला उनके नाम को कैसे शामिल किया जाता। मैं सचिन का सम्मान करता हूं लेकिन देखिए ना उन्हें "भारत रत्न" देने के लिए इस सरकार ने आनन-फानन में नियमों में बदलाव कर दिया। हालाकि ये अलग बात है कि अब सचिन को भारत रत्न देने की मांग ठंडी पड़ चुकी है, लेकिन सुशील जैसे खिलाड़ियों के लिए सरकार गूंगी बन जाती है।

देश  की विभिन्न भाषाओं में 20 हजार से ज्यादा गाना गाने वाली पार्श्वगायिका एस जानकी का नाम इतनी देर में पदम् सम्मान की सूची  में शामिल किया गया तो वो नाराज हो गईं। उन्होंने इस सम्मान को लेने से ही इनकार कर दिया। मुझे लगता है कि उनका गुस्सा जायज है और उन्होंने सरकार की आंख खोलने के लिए सम्मान को ठुकरा कर ठीक ही किया। लेकिन जानकी मेम तो गुस्सा जताकर हल्की हो गईं। पर सरकार के कारिंदों ने जो कुछ सदाबहार हीरो स्व. राजेश खन्ना के साथ किया है उसके लिए तो इन्हें जितना भी दंड दिया जाए वो कम है। राजेश खन्ना ने कई साल तक  देश और दुनिया में अपने करोंडो प्रशंसकों के दिलों पर राज किया, लेकिन उन्हें तब सम्मान देने का फैसला लिया गया जब  वो इस सम्मान को हासिल करने के लिए खुद इस  दुनिया में नहीं हैं। मेरा सवाल है कि राजेश खन्ना को सम्मानित करने में इतनी देरी क्यों की गई ? क्या आपको  नहीं लगता कि इसके लिए जिम्मेदारी तय कर दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

सच बताऊं ये राष्ट्रीय सम्मान धीरे धीरे अपनी गरिमा को खोते जा रहे हैं। इसकी वजह और कुछ नहीं बल्कि सम्मान में सियासत का घुसना है। अब देखिए ना ये अपने ही देश में  संभव  है कि दो कौड़ी के नेता जिनका कोई सम्मान नहीं, वो ही सम्मान पाने वालों की सूची तैयार कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। मैं शहर और शिक्षिका का नाम नहीं लूंगा, लेकिन एक सच्ची घटना बताता हूं। कुछ साल पहले की बात है एक शिक्षिका ने पता नहीं कैसे जोड़ तोड़ करके अपना नाम राष्ट्रपति पुरस्कार की सूची में शामिल करा लिया। शिक्षक दिवस पर उक्त  शिक्षिका को सम्मान दिया जाना था। इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय प्रशासन को शुरू में विश्वास में ही नहीं लिया गया, बाद में जब पुरस्कार देने की तारीख नजदीक आई तो उस शिक्षिका के बारे में स्थानीय प्रशासन से एक रिपोर्ट मांगी गईं। अब  जिलाधिकारी हमारे परिचित थे, उन्होंने मुझे बताया कि फलां शिक्षिका को राष्ट्पति सम्मान मिलना है, मुझसे रिपोर्ट मांगी गई है।

ओह! कसम से नाम सुनकर मैं हैरान रह गया। जिलाधिकारी को मैने कहा कि आपको सही सही रिपोर्ट भेजनी चाहिए। बेचारे नौजवान थे, कहने लगे श्रीवास्तव जी क्यों  मुझे  मुश्किल में डालने की बात कर रहे हैं। बताइये इस शिक्षिका ने अगर अपना नाम शामिल करा लिया है तो ऐसे ही तो कराया नहीं होगा, जाहिर है उसके संपर्क बहुत ऊपर तक होंगे, मेरा  इसके बारे में खिलाफ रिपोर्ट देना ठीक नहीं रहेगा। वो काफी देर  तक मेरे साथ माथापच्ची करते रहे, बाद में तय हुआ कि इस टीचर की रिपोर्ट के साथ कई और नाम भेज देते हैं, जो वाकई इस सम्मान के काबिल हैं। मुझे भी लगा कि ये ठीक है, उन्होंने ऐसा किया और सम्मान को लेकर विवाद की स्थिति बन गई और किसी भी नाम  को शामिल नहीं किया गया। ये सब  देखने के बाद लगता है कि राष्ट्रीय सम्मान भी मकसद खोते जा रहे हैं।  बहरहाल इस मामले में सरकार को गंभीर होना पड़ेगा।


Sunday 20 January 2013

साला मैं तो साहब बन गया ....


फिलहाल तो आज की ताजा खबर यही है कि राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर कहा गया है कि अगर 2014 में प्रधानमंत्री बनना है तो अभी से मेहनत करो। अंदर की बात तो ये है कि राहुल गांधी कांग्रेसियों की इस चाल को बखूबी समझते हैं, लिहाजा पहले तो वो इसके लिए कत्तई राजी नहीं थे, लेकिन बहन प्रियंका की बात वो टाल नहीं पाए और मां की मदद के लिए बड़ी जिम्मेदारी उन्होंने स्वीकार कर ली। जैसे ही ये खबर बाहर आई, मीडिया ने इसे हांथो हाथ लिया और दुनिया भर में बात पहुंच गई राहुल नंबर दो बने, राहुल नंबर दो बन गए। बहरहाल मुझे तो इस फैसले पर कोई ज्यादा हैरानी नहीं हुई, क्योंकि मेरा पहले से मानना रहा है कि राहुल गांधी सामान्य कार्यकर्ता नहीं है, उनकी हैसियत पार्टी में पहले नंबर की है, हां अब जरूर अधिकारिक रूप से वो नंबर दो हो गए हैं। अब ये तो पार्टी समझे, लेकिन मुझे लग रहा है कि कांग्रेस में एक अकेला नौजवान था जो थोड़ा बहुत काम कर लेता था, मसलन मजदूरों के साथ मिट्टी उठाकर खुद को सामान्य व्यक्ति बताना। दलित के साथ भोजन कर अखबारों की सुर्खियां बटोरने का काम कभी कभार कर लेते थे। वैसे राहुल चालाक बहुत है, दलितों के यहां तो बहुत बार भोजन कर लिया, लेकिन अपने यहां उन्हें भोजन पर कभी नहीं बुलाया। खैर अब तो राहुल भी साहब बन गए हैं, देखिए पार्टी का क्या होता है।

साहब बनने के बाद जयपुर में पहला भाषण ! साउथ वालों के लिए अंग्रेजी में नार्थ वालों के लिए हिंदी में और कुछ इमोशनल बातें भीं। पहले राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी की हत्या का जिक्र किया और फिर पिता राजीव गांधी का जिक्र करना भी नहीं भूले। लेकिन अंत में उन्होंने बताया कि कल उनकी मां सोनिया गांधी उनके कमरे में आईं और रोने लगीं। उन्होंने कहा कि सत्ता जहर के समान है। सच है एक मां के तौर पर सोनिया का भावुक होना स्वाभिवाक है, उन्होंने घर में दो लोगों की हत्या देखी है। ऐसे में आंखे भर आना स्वाभाविक है। पर सोनिया जी को उन आंसुओं का भी अहसास होना चाहिए जो 84 के दंगे में बेवजह मारे गए। कितनी मां की गोद सूनी हो गई, कितनी बहनों की मांगे सूनी हो गईं। लोगों को टायरों में बांध कर सरेआम जला दिया गया। सबसे ज्यादा शर्मनाक तो ये कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इस मामले में सवाल किया गया तो उनका जवाब था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। खैर ये समय नहीं है इन बातों का, लेकिन आंसू सिर्फ सोनिया की आंखों में नहीं है, दिल्ली और देश के तमाम हिस्सों मे रहने वाली मां और बहनों के आंखो में भी हैं।

काम करने वाला 1 नेता कम हुआ
बेवजह इमोशनल बातें मैने भी शुरू कर दी, अच्छा खासा राजनीतिक बातें हो रहीं थी, पर आंसू, मांग, सिंदूर खैर छोड़िए। आइये राजनीति पर ही बात करते हैं। आज राहुल ने पार्टीध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम भले ना लिया हो, लेकिन पार्टी कैसे चल रही है, इसे लेकर इशारों इशारों में नेताओं को खूब खरी खोटी सुनाई। कहा कांग्रेस बहुत मजेदार संगठन है, यहां कोई नियम कानून नहीं है। कब नियम बनते हैं और टूटते हैं, पता नहीं चलता। उन्होंने कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी पीड़ा चुनावों में टिकट वितरण को लेकर होने वाली धांधली पर भी बेबाक राय रखी और कहाकि उन्हें पता है कि चुनाव में आलाकमान से उम्मीदवार आप सब पर थोपा जाता है, जिलाध्यक्षों की कोई राय नहीं ली जाती है। अक्सर देखा गया है कि पार्टी नेताओं की उपेक्षा कर हाईकमान दलबदलुओं को टिकट थमा देता और वो नेता चुनाव लड़ता है, हार जाता है, फिर पार्टी से भाग भी जाता है। राहुल ये बात किसे समझा रहे थे, किसे ये बात नहीं मालूम है। राहुल क्या ये बताना चाह रहे थे कि राष्ट्रीय महासचिव था तो उनकी नहीं सुनी जा रही थी, अब वो उपाध्यक्ष बन गए हैं तो सारे घर के बदल डालेंगे। सच्चाई तो ये है चुनाव में उम्मीदवारों की सूची पर अंतिम मुहर ही राहुल गांधी लगाते रहे हैं। यूपी चुनाव में तो उन्होंने एक एक आदमी का इंटरव्यू लिया फिर तमाम बाहरी लोगों को टिकट मिला।

अब आज राहुल गांधी अपनी ही पार्टी कांग्रेस के संगठन पर हस रहे हैं तो जाहिर है वो अपने पर और मां सोनिया गांधी के काम पर ही हस रहे होंगे। या फिर वो सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेते कि आगे से अपने मन से काम करेंगे। वरना देश में तो यही संदेश है कि फिलहाल दिग्विजय सिंह उनके राजनीतिक गुरू हैं, जो बातें दिग्गी गुरु उन्हें समझाते हैं, वहीं से वो आगे बढ़ते हैं, तो क्या अब राहुल उनसे अलग हो रहे हैं। वैसे भी दिग्विजय अपने बयानों को लेकर विवादित हो गए हैं कि राहुल गांधी से उनका नाम जुड़ना ठीक भी नहीं है। अच्छा राहुल ने आज ये तो बता दिया सबको कि अब वो बर्दाश्त नहीं करेंगे, बल्कि बदलाव करेंगे। ऐसा भी नहीं है कि वो सिर्फ नवजवानों की बात सुनेगें, कह रहे हैं कि पार्टी में सभी की बात सुनेंगे। खैर अच्छी बात है, लेकिन सच बताऊं राहुल को लेकर देशवासियों का अनुभव बहुत खराब रहा है।

राहुल जी अब आपको  अपना पुराना ढर्रा भी बदलना होगा। पार्टी  के नेता और देशवासियों को भी पता है कि जब सोनिया गांधी इलाज के लिए बाहर गई थीं तो चार नेताओं की एक टीम बनाई गई थी, जिसमें आप भी शामिल थे। कहा गया था कि ये टीम पार्टी का कामकाज चलाएगी। हुआ क्या ? याद दिलाऊं आपको ?  अन्ना का आंदोलन शुरू हो गया, हजारों लोग कई दिनों तक सड़कों पर रहे, लेकिन आपने एक बार भी मुंह नहीं खोला। चुनाव  में टिकट वितरण में धांधली की बात कह कर आप कार्यकर्ताओं की ताली ले रहे हैं, मुझे बताइये कि पिछले दिनों तो चुनाव समन्वय समिति का अगुवा आपको ही बनाया गया था, आप ने इसे रोकने के लिए किया क्या ? दिल्ली गैंगरेप  के मामले में पूरे देश में गुस्सा देखा गया। आपका कहीं पता नहीं चला कि आप हैं कहां। हालाकि मुझे सच में नहीं पता है लेकिन कहा जा रहा कि आप छुट्टी पर गोवा में थे। अब ये सब नहीं चलेगा। खैर भइया राहुल ये आप भी जानते हैं और ये पब्लिक है ये भी सब जानती है। राहुल एक बात आपको कान में बता दूं। क्या जरूरत थी डीएनए वगैरह की चर्चा करने की। बोले जा रहे हो कांग्रेसियों में हिंदुस्तान का डीएनए है। कराऊं जांच, इन सब मामलों  में खामोश रहना चाहिए। 127 साल पुरानी कांग्रेस के आप तीसरे उपाध्यक्ष हैं, इन्ज्वाय कीजिए। लेकिन हां आपको पता है ना कि आपको करना क्या है ? नहीं पता ! कोई बात नहीं हम बता देते हैं। दरअसल नौ साल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जितना गोबर किया है, आपको उसी गोबर से गैस बनानी है और उससे गुब्बारा फुलाकर बच्चों को बांटना है। दरअसल बच्चे खुश दिखते हैं देश खुशहाल दिखता है।

सोनिया गांधी : 

पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जयपुर के चिंतन शिविर में तमाम जोक्स सुनाकर लोगों की खूब ताली बटोरी। उन्होंने कहाकि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बहुत अच्छी सरकार चल रही है। हाहाहाहाह । सोनिया जी इतनी अच्छी सरकार चल  रही है तो चिंतन शिविर क्यों ? फिर तो मौज मस्ती शिविर होना चाहिए था ना। बेचारे प्रधानमंत्री की मुश्किल से तो लोग हंसते  हंसते लोटपोट हो गए।  उन्होंने कहाकि पैसा हम देते हैं, योजनाएं हम बनाते हैं और राज्य सरकारें काम अपने नाम से करा लेती हैं। प्रधानमंत्री जी आप तो समझदार आदमी हैं, कोई दिग्विजय सिंह तो हैं नहीं कि कुछ भी बोलें। अरे आप पैसा अपने घर से नहीं देते हैं, देश की जनता के टैक्स के पैसे ही आप विकास कार्यों के लिए देते हैं। आप पैसे की बात ऐसे कहते हैं, जैसे आप घर की खेती की पैदावार को बेचकर जो पैसे मिलते हैं वो राज्यों को दे रहे हैं। प्रधानमंत्री जी अपनी और पद की गरिमा के अनुरूप बोला कीजिए।

Friday 18 January 2013

ब्लाँग : क्या भूलूं क्या याद करुं !


  नहीं, सच में कई दिन से सोच रहा हूं कि आखिर पिछले साल मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जिसे याद रखूं और ऐसा क्या जिसे भूल जाऊं। वैसे लिखने के लिए मैं ये कह रहा हूं कि अच्छी बातें याद रखूंगा और बुरी बातें भूल जाऊंगा, लेकिन मैं कोई ईश्वर तो हूं नहीं कि सिर्फ अच्छी बातें सहेज कर रख लूं और बुरी बातें एकदम से भूल जाऊं। मैं भी आप सबके बीच का ही हूं ना, इसलिए मुझे कोई कनफ्यूजन नहीं है, मैं जानता हूं कि अच्छी बातें तो मुझे अभी याद नहीं हैं तो भला आगे क्या याद रहेंगी। लेकिन हां जिन बातों को भूल जाना चाहिए, वो बातें मुझे वाकई लंबे समय तक याद रहेंगी। ये मानव स्वभाव है, इसमें हमारा आपका कोई दोष नहीं है। अंदर की बात तो ये है कि इस लेख को मैं नए साल के पहले हफ्ते में ही लिखना चाहता था, लेकिन फिर सोचा क्यों ब्लागर्स और ब्लाग परिवार का जायका खराब करूं। कुछ दिन रुक जाता हूं, इस बीच अगर मैं कुछ बातें गुस्से में लिखना चाहता हूं तो उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा, क्योंकि गुस्सा तो कुछ दिन बाद ठंडा पड़ ही  जाता है ना।

एक सवाल मेरे जेहन में हमेशा रहता है और मुझे कुरेदता रहता है। वो ये कि भाई श्रीवास्तव जी आप ब्लाग क्यों लिखते हो ?  गिने चुने मित्रों की तारीफ करती हुई टिप्पणी के लिए ? या विचारों से सहमत ना होने वाले ब्लागर्स की गाली सुनने के लिए ? ईमानदारी से बताऊं, जब अपना ही मन मुझसे ये सवाल करता है तो मेरे पास वाकई इसका ऐसा जवाब नहीं होता जिससे मैं संतुष्ट हो सकूं। वैसे भी  मीडिया से जुड़े होने के कारण इतना वक्त नहीं मिलता है कि मैं यहां पर बहुत सक्रिय भूमिका निभा सकूं, लेकिन कई बार लगता है कि वाकई यहां जो कुछ होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है। इसकी वजह और कुछ नहीं बस आपस में तालमेल का अभाव और बिखराव ही मुख्य कारण है। अच्छा किसी से अगर ब्लाग पर चर्चा करें तो उसे लगता है कि वाह जी वाह ! बताइये दो दिन से ब्लाग लिखने लगे और आए हैं हमें ज्ञान देने। स्वाभाविक है ऐसे में हाथ पीछे खींच लेना ही बुद्धिमानी है।

दिल्ली में सियासी गलियारे में फिलहाल मेरी ठीक ठाक पकड़ और पहुंच है। देखता हूं कि नेताओं में सोशल मीडिया की हनक को देखकर उनमें एक भय बना हुआ है। इस भय की एक वजह ये भी है कि कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के विवादित वीडियो की जानकारी इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया सभी को थी, लेकिन इसकी एक लाइन खबर कहीं नहीं दिखी। पर you tube और फेसबुक पर इतनी जगह ये डाल दी गई कि पार्टी को जवाब देना मुश्किल हो गया। हालत ये हुई कांग्रेस को खुद अपने इस प्रवक्ता को घर बैठाना पड़ गया। बहरहाल काफी दिनों के बाद अब उनकी एक बार फिर बहाली हो गई है। इस वीडियो के बाद से इस माध्यम को नेता और सरकार दोनों ही बहुत गंभीरता से लेते हैं। लेकिन इसके बाद हमें यानि ब्लागर्स को जितना गंभीर होना चाहिए था, उसमें मुझे कमी दिखाई देती है।

वैसे ब्लागर्स के कमियों पर हाथ डालना खतरनाक है। पिछले साल की इस वारदात को हम तो भूलना चाहते हैं, लेकिन वो कैसे भूल सकते हैं। लखनऊ में ब्लागर्स के एक समारोह के मामले में मैने अपनी बात की, तहजीब के शहर वालों ने मुझे निर्लज्ज और बेशर्म की उपाधि दे दी। हैरानी तब हुई जब एक ब्लागर्स ने लेख की सराहना करते हुए कहा कि अच्छा जूता चलाया है। मतलब कलम ताख पर रख कर हाथ में जूता ले लिया भाइयों ने। यहां सबको चौड़ी कुर्सी की चाहत तो है, पर कुर्सी पर बैठने का सलीका सीखने को लोग ना जाने क्यों तैयार नहीं हैं। जो लोग इस पूरे वाक्यात  में शामिल रहे, बाद में मैने उनके बारे में जानने की कोशिश की तो पता चला सभी लोग पुराने ब्लागर्स हैं और उन्होंने कुछ पढ़ाई लिखाई भी की हैं, लेकिन पढ़ाई लिखाई गया तेल लेने वो अपनी ओर उठने वाली उंगली का जवाब देने के बजाए उंगली तोड़ने में यकीन रखते हैं। खैर ब्लाग परिवार में कुछ लोग हैं जिनका मैं बहुत आदर करता हूं, उनके समझाने पर मैने विवाद को वहीं विराम दे दिया। बहरहाल बात पुरानी हो गई है, अब इस पर क्या चर्चा करूं।

कौन कहता है आसमां में छेद हो नहीं सकता 
एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारों !

मेरा मानना है कि बस पहला पत्थर सही दिशा में उछालने की जरूरत है। मैने काफी पहले आद. रुपचंद्र शास्त्री जी से बात की और कुछ सुझाव दिए। वरिष्ठ ब्लागर हैं उनका ब्लाग परिवार में एक सम्मान है।  मैने कहा कि शास्त्री जी अब ब्लाग परिवार में नेतृत्व की कमी खटक रही है। यहां बहुत सारे लोग है, बहुत अच्छा लिख रहे हैं, बस जरूरत है लेखन को एक सकारात्मक दिशा देने की है। यहां मैं पहले स्पष्ट कर दूं कि हर आदमी की सोच अलग है, लेखों पर मतभेद होना भी स्वाभाविक है। हर विषय को देखने का हर आदमी का नजरिया अलग अलग हो सकता है। इसका मतलब ये कत्तई नहीं है कि आप उससे संवाद खत्म कर दें। मैने खुद देखा कि जब मैने अन्ना, अरविंद और बाबा रामदेव की असलियत के बारे में कुछ तथ्यों के साथ लेख लिखा। अपने कुछ साथियों ने मुझे कांग्रेसी बता दिया। लेकिन जब मैने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी और दिग्विजय के असलियत सामने रखीं तो कुछ भाइयों ने मुझे भाजपाई करार दिया। लेकिन मेरे ही ब्लाग पर उन्हें बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी के खिलाफ लिखा लेख नहीं दिखाई दिया। खैर ये बात मैं सिर्फ इसलिए कह रहा हूं कि लोग लेख पर कमेंट ना करके व्यक्ति पर आरोप लगाने लगते हैं।

लगता है मैं विषय से भटक रहा हूं, मैं बात कर रहा था शास्त्री जी की। उन्होंने स्वीकार किया कि मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं। उनका कहना था कि इस मामले में वाकई काम होना चाहिए। तय हुआ कि पहले हम अपनी बात कुछ और ब्लागर्स से शेयर करते हैं। इसके लिए पहले दिल्ली, लखनऊ, देहरादून और मुंबई में ब्लागर्स के साथ बैठकर पूरी रणनीति तैयार करेगे और उसके बाद इस पर आगे काम किया जाएगा। मैने इस बात की शुरुआत तो की, उसके बाद मैं खुद ही पहले दिल्ली में अन्ना और रामदेव के आंदोलन में काफी व्यस्त रहा। आंदोलन खत्म हुआ तो मुझे हिमाचल के चुनाव में जाना पड़ा और उसके बाद पूरे महीने भर के लिए गुजरात चला गया। इससे ये बात जहां की तहां ही रह गई।

लेकिन आज मैं जो सवाल खुद से पूछता हूं वही सवाल आपसे भी जानना चाहता हूं कि क्या वाकई आप जो कर रहे हैं, बस वही करने के लिए ब्लाग लिखने आए हैं। क्या आपको नहीं लगता कि इस सशक्त माध्यम का जब देश ही नहीं दुनिया लोहा मान रही है तो हम भी कुछ गंभीर हो और ब्लाग को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश करें। सवाल उठता है कि हम कर क्या सकते हैं ? जवाब है हम बहुत कुछ कर सकते हैं। या ये कहें कि हम बहुत कुछ करते हैं, लेकिन उसमें थोड़ी सी खामी रह जाती है, जिससे ब्लाग की आवाज एक न होकर अलग अलग हो जाती है। आइये मैं बताता हूं कि हम क्या कर सकते हैं।

दिल्ली में गैंगरेप की घटना हुई । इससे पूरा देश में आक्रोश देखा गया। ये गुस्सा ब्लाग पर भी दिखा। सभी ने अपनी अपनी तरह से इस मामले में नाराजगी जताई और सरकार को जमकर कोसा भी। आपको  पता है कि कमीं कहां रह गई, कुछ नहीं बस ये कि आवाज एक नहीं हो पाई। इसमें होना ये चाहिए था कि जो ब्लागर तकनीकि रूप से काफी जानकार हैं वो इस घटना को लेकर एक सांकेतिक "लोगो" या स्केच तैयार करते। इस स्केच को हम ब्लागर परिवार का आफीसियल "लोगो" मान लिया जाता, इसमे ये अनिवार्य कर दिया जाता कि जो लोग भी लेख या कविता के माध्यम से इस घटना की निंदा कर रहे हैं, उन्हें अपने ब्लाग पर ये "लोगो" लगाना अनिवार्य है। जब एक ही "लोगो" चारो ओर दिखाई देने लगता तो आप इसके असर को आसानी से समझ सकते हैं। मैं आपको विश्वास के साथ कह सकता हूं कि सोशल नेटवर्किंग साइट के इसी "लोगो" को अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया भी इस्तेमाल करने को मजबूर हो जाती। फिर हमारी ताकत को नजरअंदाज करने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता था। मेरा कहने का मतलब सिर्फ यही है कि हम कर तो बहुत कुछ रहे हैं, लेकिन उसमें एकता और एकरूपता की कमी दिखाई दे रही है। 

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

मुझे पक्का भरोसा कि दुश्यंत कुमार की ये पंक्तियां हम सबको ना सिर्फ ताकत देगी, बल्कि एक रास्ता भी दिखाएगी कि हम कैसे न सिर्फ इस माध्यम को मजबूत बल्कि जिम्मेदार भी बनाएं ? मेरा सुझाव एग्रीगेटर मसलन चर्चामंच, ब्लाग4 वार्ता, ब्लाग बुलेटिन और भी कुछ हैं, उनके लिए भी है। मैं जानता हूं कि रोज इतने सारे लिंक्स को समेटना और उसे प्रस्तुत करना आसान काम नहीं है। लेकिन उसका वर्गीकरण कर दें, यानि विषय के हिसाब से लेख और कविताओं को जगह दें। सामाजिक, राजनीतिक, धर्म, यात्रा, विज्ञान, व्रत त्यौहार कुछ इस तरह करें। आप सबको पता है कि देश में तमाम जयंती, व्रत त्यौहार हैं। अब होता क्या है कि लोहणी आ गई, अब उसी पर पच्चीसों कहानी, कविता, लेख से मंच को सजा दिया जाता है। इससे दूसरे विषयों पर लोगों का ध्यान नहीं जा पाता है। मैं जानता हूं कि ये आसान नहीं है, लेकिन मुश्किल भी नहीं है।

बहरहाल बड़ी बड़ी बातें तो बहुत हो गई, लेकिन फिर  वही सवाल कि आखिर ब्लाग परिवार की अगुवाई करेगा कौन ? वैसे तो मुझे नहीं लगता है कि इसमें कोई विवाद होना चाहिए, जो लोग काफी समय से लिख रहे हैं और जिनका सभी आदर करते हैं वो आएं आगे। सबके साथ बैंठे और रास्ता निकालें। वैसे मैं ब्लाग में बहुत कम लोगों को जानता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि ये काम डा. रुपचंद्र शास्त्री, रश्मि प्रभा, शिवम मिश्रा, दिगंबर नासवा, डा. दराल, राज भाटिया, ललित शर्मा, रवीन्द्र प्रभात, वंदना गुप्ता, दिनेश गुप्ता रविकर, चंद्र भूषण मिश्र गाफिल, दीपक बाबा, सतीश सक्सेना, रश्मि रवीजा, इस्मत जैदी, कविता वर्मा, अल्पना वर्मा, राजेश कुमारी, अंजू चौधरी, जयकृष्ण तुषार, मनोज कुमार, संगीता स्वरूप गीत, अजित गुप्ता, संगीता पुरी, हरीश सिंह, डा. अनवर जमाल, डा. मोनिका शर्मा, डा. दिव्या श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, संध्या शर्मा, चला बिहारी ब्लागर बनने, राकेश कुमार, मिथिलेश,  संतोष सिंह, सलीम खान, अरुण देव, केवल राम और सदा जी काफी बेहतर तरीके से कर सकती हैं। ये तो मैने वो नाम लिखे हैं जो मुझे याद हैं, वैसे तो मैं बहुत सारे लोगों को पढता रहता हूं, मुझे पक्का भरोसा है कि ये सभी ब्लाग को नेतृत्व देने में सक्षम हैं। बस जरूरत इस बात की है कि ये एक कदम आगे तो बढ़ाएं। वरना तो एक लाइन याद आ रही है कि ..

तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना मैं खाली ।  

 

Monday 14 January 2013

महाकुंभ : चलो हम भी पाप धो आएं !



इस बार पता नहीं क्या बात है महाकुंभ को लेकर जितनी चर्चा उत्तर प्रदेश में हो रही है, उससे कई गुना ज्यादा बात इसकी दिल्ली में भी हो रही है। नेताओं के पास जाओ तो महाकुंभ में स्नान की बात, आला अफसरों के पास बैठो तो संगम में गोता लगाने की बात, चोर, उचक्कों, बदमाशों से बातें करो तो उन्हें भी इलाहाबाद पहुंचने की फिक्र, सबको छोड़ दीजिए मीडिया वालों को ना जाने क्या हो गया है, वो भी किसी तरह इलाहाबाद पहुंचने की जुगत में हैं। मतलब जिसे देखो वही महाकुंभ पर संगम में गोता लगाने की बात कर रहा है। हर तबके में इतना उत्साह देख कर मुझे भी लगा कि अगर ऐसा है तो क्यों ना मैं भी स्नान कर अपना पाप धो ही आऊं।वैसे तो देश में कोई खुद को पापी मानता ही नहीं है, सबको लगता है कि वो कोई गलत काम करता ही नहीं है तो धरम करम से भला उसका क्या लेना देना। इसीलिए अगर आप ध्यान दें तो पहले कुंभ, अर्द्धकुंभ या फिर महाकुंभ में इतनी भीड़ कहां हुआ करती थी। आज  तो मंदिरों में भी भीड़ पगलाई रहती है, पहले तो ऐसा नहीं था।

 दरअसल आज मामला कुछ और है, आज पंडित जी लोगों ने हम सबको इतना डरा दिया है कि लोग महाकुंभ और देवालयों की ओर भाग रहे हैं। लोगों को बताया गया है कि ईश्वर के यहां उन्हीं गलतियों की सजा नहीं मिलती जो जानबूझ कर की जाती है, बल्कि उन गलतियों का भी हिसाब किया जाता है जो अनजाने में हो जाती है। अब हम अनजाने में कितनी गलतियां करते हैं भला उसका हिसाब कोई कैसे रख सकता है। बस फिर तो मुझे भी यही ठीक लग रहा है कि चलो जब सब गोता लगाने जा रहे हैं तो हम भी अपने पाप धो ही आते हैं।
पता चला कि दिल्ली से एक वीआईपी बस इलाबाबाद के लिए रवाना हो रही है, इस बस में बहुत बड़े-बड़े लोग पाप धोने के लिए तीर्थराज प्रयाग जा रहे हैं। मन में आया कि मुझे भी जाना चाहिए, अब अनजाने में तो हो सकता है कि मुझसे भी गलती हुई हो। पता किया कि क्या इस बस में मुझे जगह मिल सकती है ? तो बताया गया कि जगह मिलना मुश्किल है, क्योंकि इसमें तमाम वीआईपी रवाना हो रहे हैं। मैने सोचा कि वीआईपी रवाना हो रहे हैं तब तो मुझे जरूर जगह मिल जाएगी, क्योंकि मैं जर्नलिस्ट हूं और वीआईपी मूवमेंट के दौरान जर्नलिस्ट के लिए जगह सुरक्षित रहती है। आपको पता ही है कि वीआईपी जब भी कहीं जाते हैं वो अपने साथ पत्रकारों को जरूर ले जाते हैं। अरे भाई उन्हें कवरेज भी तो चाहिए ना।

काफी प्रयास के बाद पता चल गया कि इस बस का इंतजाम किसके हाथ में है। मैने उस महकमें के अफसर को फोन किया और बताया कि भाई बस में मैं भी यात्रा करना चाहता हूं। अफसर ने बड़े विनम्र भाव से कहा कि श्रीवास्तव जी माफ कीजिएगा, इस बस में आपको  शायद जगह ना मिल पाए। मैने कहा भला ऐसा क्या है कि मुझे जगह नहीं मिलेगी ? कहने लगे कि आपको तो पता है कि दिल्ली से बस रवाना हो रही है, बहुत सारे लोग हैं जो तीर्थराज प्रयाग में गोता लगाकर अपना पाप धोना चाहते हैं। मैने कहा मैं जर्नलिस्ट हूं,  मुझे कवरेज के लिए जाना होता है, बस में पीछे की ही सही एक सीट मुझे दे दीजिए, अफसर ने जवाब दिया कि ये संभव नहीं है, क्योंकि पीछे की सीट टीवी चैनल और समाचार पत्रों के तमाम संपादकों के लिए पहले ही आरक्षित हो चुकी है। संपादकों का खास आग्रह है कि वो भी अपने पाप धोना चाहते हैं।

मैं तो ठहरा सामान्य जर्नलिस्ट और पीछे संपादक लोग बैठेंगे, ऐसे में उनके साथ सफर करना भी ठीक नहीं रहेगा। मैने कहाकि वीआईपी लोग तो बिल्कुल आगे वाली सीट भी पसंद नहीं करते हैं, हो सके तो मुझे आगे की किसी सीट पर अर्जेस्ट कर लीजिए। जवाब आया कि बस में प्रधानमंत्री भी सफर करेंगे, लिहाजा उनके आगे की और पीछे की सीट पर सुरक्षा गार्ड रहेंगे। सच बताऊं तो प्रधानमंत्री का नाम सुनकर एक बार तो मैं हैरान रह गया। फिर देश के हालात मेरी आंखों के सामने एक फिल्म की तरह गुजरने लगे। मन मे सोचा कि चलो अगर प्रधानमंत्री इस हालात के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हैं और संगम में गोता लगाने जा रहे हैं तो ठीक ही है। शायद अब आगे ऐसा दिन ना देखना पड़े।

वैसे मन में कई तरह के सवाल आ रहे थे, मुझे लगा कि बेचारे प्रधानमंत्री अपने मन से कितना काम करते ही हैं, जो उन्हें संगम में डुबकी लगाने की जरूरत है। डुबकी तो उन्हें भी लगानी चाहिए जिनके इशारे पर वो सरकार चला रहे हैं। मन में सोचा अगर सूरजकुंड में पार्टी के विचार मंथन कार्यक्रम में सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल के साथ बस में सफर कर सकती हैं तो महाकुंभ के अवसर पर संगम में गोता लगाने के लिए जा रही बस में वो क्यों नहीं जा सकतीं। ये अफसर मुझे जानते थे, इसलिए हंसते हुए बता गए कि श्रीवास्तव जी इसीलिए तो कह रहा हूं कि बस में जगह बिल्कुल नहीं है, क्योंकि इसमे सोनिया, राहुल ही नहीं राबर्ट वाड्रा भी सफर कर रहे हैं।

अच्छा दो तीन बड़े नाम सुनकर मै समझ गया था कि अब तो इस बस में मुझे बिल्कुल जगह नहीं मिलने वाली, लेकिन मुझे लगा कि चलो चैनल के लिए एक स्टोरी ही तैयार हो जाएगी, लिहाजा ये तो पता कर ही लूं कि बस में और कौन कौन से वीआईपी जा रहे हैं। पता चला कि दिल्ली में रेपकांड की जिम्मेदारी भले ही गृहमंत्री और दिल्ली की मुख्यमंत्री ने ना ली हो, पर उन्हें इस बात का आभास है कि अगर कानून व्यवस्था चुस्त होती तो शायद ऐसी वारदात ना होती। लिहाजा ये दोनों भी बस में सवार होने वाले हैं। वैसे कन्फर्म नहीं है, लेकिन जानकारी मिल रही है कि बस में शायद बलात्कारियों को भी ले जाया जा रहा है, जिससे वो भी अपने पाप धो लें।

इसके अलावा भारतीय सीमा में घुस कर पाकिस्तान के फौजी दो भारतीय सैनिकों की हत्या करतें हैं और एक शहीद का सिर काट कर ले जाते हैं, इसके बाद भी भारत की ओर से सख्त संदेश ना देने के लिए रक्षामंत्री और विदेश मंत्री को लगता है कि अनजाने में गलती हुई है, लिहाजा इस बस में वो भी सवार हैं। टू जी की नीलामी में अपेक्षित आय ना होने के लिए साइंस टेक्नालाजी मंत्री भी बस में जगह मांग रहे हैं। कोयला ब्लाक आवंटन में धांधली के लिए जिम्मेदार मंत्री कोशिश कर रहे हैं कि बस में उन्हें भी किसी कोने में जगह मिल जाए। मंहगाई से जनता त्राही त्राही कर रही है, इसलिए वित्तमंत्री को भी लग रहा है कि शायद कुंभ स्नान से उनका पाप भी कुछ कम हो जाए। बजट से पहले ही रेल किराया बढाकर जनता पर बोझ डालने वाले रेलमंत्री भी बस में जगह पाने के लिए मारा-मारी कर रहे हैं। कामनवेल्थ घोटाले के आरोपी सुरेश कलमाडी भी संगठन के स्तर पर कोशिश कर रहे हैं कि उनका जाना जरूरी है, क्योंकि अगर उनका पाप धुल जाता है तो कांग्रेस पार्टी को भी राहत मिलेगी।

पता चला है कि बस में जगह पाने के लिए प्रधानमंत्री के यहां सरकार और पार्टी के इतने नेताओं के आवेदन आ चुके हैं कि वो खुद मुश्किल में पड़ गए हैं। इतना ही नहीं सहयोगी दलों के भी कई नेता और मंत्री प्रधानमंत्री पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें साथ ले चलें, इससे सरकार की छवि साफ सुथरी दिखाई देगी। बहरहाल बात सरकार के सहयोगी दलों तक  सीमित रहती तो कुछ ना कुछ इंतजाम कर लिया जाता, लेकिन इस बस में बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गड़करी भी जाने की इच्छा जता चुके हैं। पूर्ति घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें लग रहा है कि शायद महाकुंभ में स्नान से ये दाग मिट जाए। जानकार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री की मुश्किल बढ गई है, उनकी बातचीत यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से चल रही है, अगर बात बन गई तो भारी भीड़ को देखते हुए बस के बजाए दिल्ली एक विशेष ट्रेन का इंतजाम किया जाएगा, जिससे सरकार के मंत्री, सहयोगी दलों और विपक्ष के नेता सभी के पाप एक साथ धोने का इंतजाम हो सके।

दरअसल नेताओं को पता चल गया है कि समुद्र मंथन में जो अमृत कलश मिला था, जिसे पाने के लिये देवताओं और राक्षसों में बारह साल तक भीषण संग्राम हुआ। इस झगड़े में ही अमृत कलश की कुछ बूंदे प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। इसी के चलते इन स्थानों पर हर पांच या छह साल बाद कुंभ की शुरुआत हुई। चूंकि इलाहाबाद में कलश से ज्यादा बूंदें गिरी थीं इसलिये हर बारह साल बाद यहां महाकुंभ लगने लगा। इसी अमृत बूंद का रसपान करने के लिए नेताओं में मारामारी मची हुई है। अंदर की बात ये है कि नौकरशाह  ये संख्या कुछ बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं, उन्हें लग रहा है कि अगर ट्रेन जाती है तो उसमें उन्हें भी जगह मिलने की संभावना रहेगी, वरना बस जितनी ठसाठस है, उसमें बेचारे नौकरशाहों की तो कोई पूछ ही नहीं होगी। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि  पाप  धोने के लिए मंत्री, नेता, अफसर और पत्रकार जितनी कोशिश कर रहे हैं, उतनी कोशिश ईमानदारी  से अपना काम करने में करते तो शायद उन्हें इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती।

चलते - चलते

एक बड़ा सवाल ये है कि देश और दुनिया भर से लोग यहां डुबकी लगाकर अपने पाप को धोकर चले जाएंगे, लेकिन क्या किसी को मां गंगा की भी फिक्र है। चलिए जीवन दायिनी मां गंगा आपके पाप धोने को तैयार है, लेकिन आप भी तो तय करें कि मां को प्रदूषण से बचाने के लिए हर व्यक्ति अपने स्तर पर कोशिश करेगा।




Saturday 12 January 2013

बंधुआ मजदूर नहीं है देश की सेना !

दिल्ली में देश की बेटी के साथ गैंगरेप की घटना ने लोगों को हिला कर रख दिया है। सच कहूं तो दिल्ली अभी भी इस घटना से उबर नहीं पाई है। भारी ठंड और 2 डिग्री के आसपास तापमान में भी पूरी दिल्ली कई दिनों तक सड़कों पर रही। सबकी एक ही मांग कि  बलात्कारियों को फांसी दी जाए और रेप के मामले में तुरंत सख्त कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू हो। हालांकि मैं इस मसले को राजनीतिक नहीं बनाना चाहता, लेकिन एक बात जरूर कहूंगा कि बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने इस गंभीर मसले पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। मेरा अपना मानना है कि सरकार को इस मांग पर वाकई गंभीरता से विचार करना चाहिए था और संसद के विशेष सत्र में कानून बनाने पर चर्चा करनी चाहिए थी। इससे देश में एक संदेश जाता कि बलात्कार के मामले में सरकार गंभीर है, लेकिन इस सरकार के साथ सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि वो अच्छी राय को भी महज इसलिए स्वीकार नहीं करती, जनता में कहीं ये संदेश ना चला जाए कि सरकार झुक गई। मैं जानता हूं कि ऐसी घटिया सोच कम से कम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नहीं हो सकती, निश्चित ही ये यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की सोच होगी।

सरकार के कामकाज के तरीकों को देखकर मैं बहुत हैरान हूं। दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद मेरे जहन मे एक सवाल उठा कि क्या देश की कानून व्यवस्था सही हाथो में हैं। यानि जिन हाथों में कानून व्यवस्ता है, वो इसके काबिल हैं ? अब जम्मू-कश्मीर के मेंढर सेक्टर में कोहरे और अंधेरे का फायदा उठा कर कुछ पाकिस्तानी सैनिक कई सौ मीटर तक भारतीय सीमा में घुस आए। यहां दो भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी और उनमें से एक का सिर काट ले गए। यह निहायत बर्बरतापूर्ण कार्रवाई है। दूसरे देश के सैनिकों के साथ किस तरह बर्ताव किया जाए, इस बारे में जेनेवा समझौता नाम से एक वैश्विक कायदा बना हुआ है। पाकिस्तानी सैनिकों ने जो किया वह दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम के साथ-साथ जेनेवा समझौते के भी खिलाफ है। इसके बाद भी सरकार के ठंढे रियेक्शन से ये सवाल उठ रहा है कि क्या देश वाकई मजबूत और सुरक्षित हाथो में हैं। मुझे नहीं लगता कि इसका जवाब देने की जरूरत है। सब जानते हैं कि देश में लुंज पुंज सरकार है, जो हर मोर्चे पर फेल रही है। चाहे मसला घरेलू हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय, सरकार का रुख क्या है, वही साफ नहीं है। हम भीतर से कमजोर है, लोग ये समझ चुके है। यही वजह है कि पिद्दी सा पड़ोसी देश इस तरह की हिमाकत कर रहा है। पाकिस्तान आंखे तरेर रहा है और हम मटरू की बिजली का मन्डोला गाकर खुश हैं।

पाकिस्तान की इस कार्रवाई की पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई। होना तो ये चाहिए था कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री ऐसी प्रतिक्रिया देते कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त को खुद अपने आकाओं के पास भागकर जाना पड़ता और वो वहां जाकर बताता कि अब सबकुछ ठीक नहीं है, अगर पाकिस्तान ने अपने कुकृत्यों को काबू में नहीं रखा तो कुछ भी हो सकता है। लेकिन हुआ क्या? ये देखकर सिर शर्म से झुक जाता है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त को मंत्रालय में तलब किया, पचासौं के कैमरे के बीच वो मुस्कुराता हुआ कार से आया और चला गया। बाद में बताया गया कि भारत ने इस घटना पर कड़ी नाराजगी जाहिर कर दी है। सवाल ये है कि क्या इतने से हो गई बात खत्म? वो संघर्ष विराम को तोड़कर  भारतीय सैनिकों पर कहर बरपाते रहे हैं और हम गुस्सा जाहिर कर मामले को रफा दफा कर दें।

मैं जानना चाहता हूं भारत की सरकार से क्या उन्होंने पाकिस्तान सरकार से ये जानने की कोशिश की कि जिन सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुस कर ये वारदात की, वो कौन हैं, और उन्हें भारत को कब तक सौंपा जाएगा ?  या फिर क्या भारत ने ये दबाव बनाया कि पाकिस्तान अपने दोषी सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई करे ? सच तो ये है कि इस बारे में पहले के अनुभव भी काफी निराशाजनक रहे हैं। करगिल लड़ाई के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया के साथ भी पाकिस्तानी फौज ने बर्बर सलूक किया था। उनके परिवार को उनका क्षत-विक्षत शव ही सौंपा गया था। जांच से साफ हुआ था कि कैप्टन कालिया को काफी यातना  दी गई थी। इस मामले में कालिया के पिता दोषियों को सजा दिलाने के लिए पाकिस्तान सरकार से लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तक सबसे गुहार लगा चुके हैं पर अब तक उनकी कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला है।

मेरा मानना है कि जब भी भारत की ओर से शांति बहाली और दोनों देशों के बीच अमन की पहल की जाती है, तब पड़ोसी मुल्क से उसका नकारात्मक जवाब मिलता है। हमारी बातचीत की पहल का जवाब हमें गोलाबारी से दी जाती है। आप सबको पता है कि देश में एक बड़ा तपका इस बात के खिलाफ था कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत आए। लेकिन दोनों देशों में सौहार्द को बढाने के लिेए सरकार ने टीम को यहां आने के लिए हरी झंडी दे दी। यहां तक कि क्रिकेटर दाउद इब्राहिम के करीबी रिश्तेदार जावेद मियांदाद को भी भारत आने के लिए वीजा दे दिया गया। सौहार्द की हमारी कोशिशों के बदले हमें क्या मिला? हमें नफरत मिली, हमारे सैनिकों की हत्या की गई, उनके शव के साथ बर्बर व्यवहार किया गया। गुस्सा तब और बढ़ जाता है जब पाकिस्तान की ऐसी कार्रवाई के बाद भी देश के प्रधानमंत्री गूंगे,  बहरे, मुर्ख बने तमाशा देखते रहते हैं। वैसे सामरिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे आतंकियों की घुसपैठ कराने की पाकिस्तानी सेना की सोची-समझी रणनीति होती है। ये बात सरकार को भी पता है, फिर भी सरकार की चाल देखिए.. शर्म आती है।

हैरानी तब और बढ़ जाती है जब चेतावनी के  बाद भी ऐसी घटनाएं हो जाती हैं। पता चला है कि कुछ दिन पहले मल्टी एजेंसी सेंटर ने चेतावनी दी थी कि जम्मू क्षेत्र में सेना की किसी चौकी पर आतंकी हमला हो सकता है। चेतावनी के बाद सेना को एलर्ट भी किया गया था, फिर भी ये घटना हुई। जानकार बताते हैं कि यह संघर्ष विराम के उल्लंघन का ये कोई सामान्य मामला नहीं है। इसलिए जवाबदेही तय करने और वहशियाना कृत्य करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सर्वोच्च स्तर पर पहल होनी चाहिए। दोनों देशों ने आवाजाही के नियमों को उदार बनाने से लेकर व्यापार बढ़ाने तक के लिए कई दोस्ताना फैसले किए हैं। शायद पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को यह रास नहीं आया है। यह भी किसी से छिपा नहीं रहा है कि कट्टरपंथी दोनों देशों के रिश्तों को बेहतर बनाने के प्रयासों को पलीता लगाना चाहते हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या पाकिस्तानी सेना का भी ऐसा ही इरादा है? या सेना में भी कट्टरपंथियों की घुसपैठ है और यह उन्हीं की कारगुजारी थी? इन सवालों का जवाब भी देश को मांगना होगा।

बहरहाल तीन दिन बाद ही सही लेकिन शनिवार को जब एयरचीफ मार्शल ने आंखे तरेरते हुए चेतावनी दी कि पाकिस्तान की ओर अगर ऐसी कार्रवाई फिर दोहराई गई तो दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा सकता है। फौज की ये चेतावनी सुनकर सीना चौड़ा हो गया। सरकार की चुप्पी से देश खुद को शर्मशार महसूस कर रहा था, लेकिन फौज की  चेतावनी ने आज भारतीयों को सीना चौड़ाकर घर से बाहर निकलने का मौका दिया है। सरकार का बस चले तो वो फौज को भी बंधुआ मजदूर बनाकर रख देगी, लेकिन एयरचीफ मार्शल ने जिस अंदाज में भारत की  ओर से चेतावनी दी,इससे साफ हो गया है कि सेना कठपुतली सरकार की बंधुआ मजदूर नहीं  है। वैसे अब समय आ गया है जब सेना को अपनी शान बनाए रखने के लिए भारत पाकिस्तान सीमा पर अहम फैसले खुद लेने होंगे।


Tuesday 8 January 2013

हे राम ! क्या बोल गए आसाराम ...


मैने अपने 24 साल के पत्रकारीय जीवन में दिल्ली गैंगरेप जैसा घृणित, दर्दनाक, वीभत्स अपराध ना देखा और ना ही सुना है। मुंबई में आतंकी घटना से देश हिल गया, इस घटना की भी दुनिया भर में निंदा हुई, फिर भी देश के लोग अगले दिन उठ खड़े हुए और आगे बढ़कर खुद को और देश को संभाला। 48 घंटे में ही मुंबई अपनी पुरानी रफ्तार में आ गई। देश में कहीं भी लोगों को सड़कों पर नहीं उतरना पड़ा। आज इस गैंगरेप की घटना को लेकर देश भर में गुस्सा है, तो आखिर सरकार लोगों के इस दर्द को क्यों नहीं महसूस कर रही है। आप सब जानते हैं कि देश का हर व्यक्ति चाहता था कि मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब को फांसी हो, लेकिन हम सरकार पर दबाव बनाने के लिए सड़क पर नहीं उतरे, संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को फांसी होनी चाहिए, इस पर भी देश में एकराय है, फिर भी हम संयम में हैं, सड़कों पर नहीं उतरे। लेकिन आज छह रेपिस्ट के खिलाफ देश में इतना गुस्सा है कि बीस, पच्चीस दिन से लोग बलात्कारियों को फांसी देने की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। मैं जानता हूं कि अपराधियों को तुरंत फांसी नहीं दी जा सकती, पर देशवासियों की भावनाओं को सरकार और नेता समझ तो सकते हैं। देश की भावनाओं को समझते  हुए अपने दो कौड़ी की सोच और बयानों पर अंकुश तो लगा सकते हैं ना। फिर आज तो मर्यादा की सारी सीमाओं को तार-तार कर दिया कथावाचक बापू आसाराम ने। कह रहे हैं कि ताली दोनों हाथो से बजती है। ( गाली देने का मन हो रहा है, बस लिख नहीं पा रहा हूं )

बापू आसाराम.. नहीं-नहीं, छोड़ो इन्हें बापू कहने का मन नहीं हो रहा है। आसाराम ने आज दिल्ली गैंगरेप मामले मे अपनी काली जुबान खोली। कहाकि इस मामले में लड़की भी दोषी है, क्योंकि ताली दोनों हाथो से बजती है। आसाराम ने कहाकि अगर लड़की चाहती तो उन दोषियों में से किसी को भी भाई कहकर उसके हाथ पैर जोड़ती तो वह बच सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। आसाराम की जुबान यहीं बंद नहीं हुई, उन्होने आगे कहा कि अगर किसी ने भी गुरुदीक्षा ली होती तो भी ये घटना ना होती। एक तरफ जहां दिल्ली में गैंगरेप की भेंट चढ़ी देश की बेटी को इंसाफ दिलाने की मुहिम जोरों पर हैं, कोर्ट में पीड़िता के छह आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। देश में बलात्कारियों को फांसी की मांग हो रही है, वहीं आसाराम का कहना है कि ऐसे कानूनों का भी सिर्फ दुरुपयोग होगा, असली गुनाहगार बच जाएंगे। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा बयान देकर आखिर ये आसाराम क्या कहना चाहते हैं? क्या वो देश को ये बताना चाहते हैं कि सख्त कानून के लिए जो लोग सड़कों पर हैं, वो बेवजह शोर मचा रहे हैं, उन्हें घर बैठ जाना चाहिए। क्या उनका ये मानना है कि इसमें लड़की भी बराबर की जिम्मेदार है, इसलिए पकड़े गए लोगों के प्रति सहानिभूति होनी चाहिए। घटना के इतने दिनों बाद आसाराम को अचानक क्या हो गया है, वो चाहते क्या है।

वैसे आज उनके बयान के बाद मेरी इच्छा हुई कि इनके बारे में जाना जाए, गुगल पर सर्च किया तो आसाराम को एक से बढ़कर एक गंभीर आरोपों से घिरा देख में खुद हैरान रह गया। पढ़ने को मिला कि आसाराम का कई महिलाओं के साथ अवैध रिश्ता रहा है। यह संत के भेष में हवस का पुजारी है। आसाराम पर आश्रम की कई साधिकाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप है। यह काला जादू करता है। महिलाओं पर यह तीन-तीन घंटे तक तांत्रिक क्रिया करता है। बाद में उनमें कई के साथ शारीरिक संबंध भी बनाता है। जी, हां अपने आप को स्वयंभू भगवान मानने वाले आसाराम का यह भी एक घिनौना सच है। इस सच का खुलासा किया है राजू चांडक ने। राजू चांडक आसाराम का एक समय में सबसे करीबी पूर्व अनुयायी रहा है। राजू चांडक के इस खुलासे से धर्म का चोला ओढ़ कर लोगों की भावनाओं से खेलने वाले पाखंडी संत की मानसिकता उजागर हुई है। वैसे तो धर्म के नाम पर देश में तमाम चोर उचक्के संत बन कर लोगों को बेवकूफ बनाते रहते है। परंतु आसाराम जैसे तथाकथित संतों की असलियत अगर यही है तो इस देश का भगवान ही मालिक है।

वैसे आसाराम का विवादों से पुराना रिश्ता है। उन पर तरह तरह के गंभीर आरोप हैं। आइये उन पर लगे कुछ आरोपों की चर्चा करते हैं। पिछले दिनों आसाराम बापू पर बिना लाईसेंस के दवा बेचने और बनाने को लेकर मुकदमा दर्ज हुआ था। शिकायतकर्ता पंकज चादव के अनुसार उन के आश्रम में उन के चेलों ने पंकज यादव की आंखों में दवा डाली। जिसके डालते ही आंखों में जलन होने लग गई। फूड एंड ड्रग्स डिपार्टमेंट के अनुसार आसाराम के आश्रम के पास ऐसी दवा बनाने और बेचने दोनों का लाईसेंस नहीं है।

एक टीवी न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में बापू को अमेरिका से फरार एक महिला अपराधी को शरण देने का आश्वासन देते हुए दिखाया गया है। इस महिला अपराधी को अमेरिका की गुप्तचर संस्था एफबीआई खोज रही है। यह पता होने के बावजूद आसाराम युवती को शरण देने को तैयार है। कहा जा रहा है टीवी न्यूज चैनल रिपोर्टर एक व्यवसायी के प्रतिनिधि की तरह 3 जून 2010 को उनके हरिद्वार स्थित आश्रम पर मिला, स्टिंग में आसाराम को कई संगीन अपराधियों को शरण देने की बात कहते हुए भी पाया गया । आसाराम बापू के आश्रम में भेष बदलकर पहुंचे चैनल के रिपोर्टर ने यहां तक कहा कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई उक्‍त महिला की तलाश में जुटी है। बावजूद इसके आसाराम ने कहा कि उनके आश्रम में चंबल के डकैत और पुलिसवालों के हत्‍यारे आकर रहते हैं। पुलिस आश्रम में नहीं घुस सकती क्‍योंकि यहां मुख्‍यमंत्री आकर मत्‍था टेकते हैं।

संत आसाराम एक बार फिर विवादों में घिरे, उन पर आरोप लगा अपने ऐशो-आराम के लिए भक्तों की जान को ख़तरे में डालने का । दरअसल राजस्थान के राजसमन्द जिले के नाथद्वारा कस्बे में आसाराम का प्रवचन सुनने के लिए हज़ारों की तादाद में भक्त जमा हुए थे। तय कार्यक्रम के मुताबिक आसाराम का हेलीकॉप्टर सभा स्थल से पांच किलोमीटर दूर गुंजोल हेलीपैड पर उतरना था लेकिन उनका हेलीकॉप्टर प्रवचन की जगह पर ही उतर गया । हेलीकॉप्टर उतरता देख भक्तों में हड़कंप मच गया। इस पर प्रशासन ने उन्हें नोटिस देने का फैसला किया। फिर खबरों में आया अहमदाबाद में आसाराम का आश्रम । नगर निगम के मुताबिक आश्रम का पिछले दो साल का प्रॉपर्टी टैक्स करीब साढ़े तीन लाख रुपये बकाया है, जिसे चुकाने के लिए हफ्ते भर की मोहलत दी गई थी, फिर भी बकाया नहीं जमा किया गया, जबकि आश्रम का कहना था कि उसे कोई नोटिस नहीं मिला।

आसाराम पर एक और मामला मध्यप्रदेश के सागर की किन्नर महापौर कमला बुआ पर अपमानजनक टिप्पणी का आया, जिसमे आसाराम ने अपने एक कार्यक्रम में कमला बुआ का मजाक उड़ाया, इससे किन्नरों ने काफी नाराजगी जाहिर की। हालाँकि बाद में आसाराम ने माफ़ी मांग ली थी । रिलायंस ग्राउंड पर पिछले दिनों हुए आसाराम के 72 वे जन्मदिन पर आयोजित सत्संग में बापू ने अपने मुंबई से इंदौर तक के सफ़र का किस्सा सुनाते हुए कहा कि अभी तो में जवान हूँ । उनका ये बयान भी काफी सुर्खियों में रहा। चार दिनों के लिए प्रवचन देने मथुरा गए संत आसाराम ने प्रवचन के दौरान राहुल गांधी का मजाक उड़ाया। प्रवचन के दौरान धर्म-कर्म और पाप-पुण्य की बात करते हुए वो बीच में राजनीति, कांग्रेस और प्रधानमंत्री की बातें करने लगे। उन्होंने राहुल गांधी का नाम नहीं लिया, लेकिन बबलू पुकारते हुए उन्हें बोदा, मूर्ख, निकम्मा साबित करते रहे।

आसाराम ने इंदौर में प्रवचन के दौरान ही आपा खो दिया और मंच से ही सेवादार को डांटते हुए उसके लिए कई अपशब्‍द कहे। इससे वो एक बार फिर विवादों में रहे। दरअसल मामला ये था कि सेवादार लोगों को पानी पिला रहा था। वह एक ही गिलास को बार-बार बाल्‍टी में डुबा कर पानी निकाल कर लोगों को पिला रहा था। इसी पर आसाराम भड़क गए और आसाराम ने सेवादार को डांटते हुए और क्रोधित स्वर में कह दिया कि इंसानों को पानी पिला रहे हो, ढोरों को नहीं। गंदे कहीं के। मग्‍गे से भर कर पानी दिया करो। पागल सेवादार। उसके कपड़े उतार के घर भेजो। बेशर्म कहीं के। इतना ही नहीं गाजियाबाद में तो आसाराम एक टीवी चैनल के कैमरा पर्सन पर ही भड़क गए, उन्होने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया। मामला थाने पहुंचा और आसाराम के खिलाफ मामला दर्ज हुआ।

बहरहाल विवादो में रहने वाले आसाराम अब मर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ते जा रहे हैं। दिल्ली गैंगरेप जैसे संवेदनशील मुद्दे पर उनकी भद्दी और आपत्तिजनक टिप्पणी से आंदोलन कर रहे लोगों में भारी गुस्सा है। राजनीतिक दलों ने भी आसाराम के बयान को गैरजरूरी और देश की बेटी को अपमानित करने वाला बताया है। वैसे आसाराम से ऐसी अपेक्षा करना बेवकूफी है, लेकिन आसाराम को देश से माफी मांग कर लोगों की भावनाओं का आदर करना चाहिए। वरना मेरी तरह दूसरे लोग भी उन्हें बापू तो कत्तई नहीं कह सकते।