इस बार पता नहीं क्या बात है महाकुंभ को लेकर जितनी चर्चा उत्तर प्रदेश में हो रही है, उससे कई गुना ज्यादा बात इसकी दिल्ली में भी हो रही है। नेताओं के पास जाओ तो महाकुंभ में स्नान की बात, आला अफसरों के पास बैठो तो संगम में गोता लगाने की बात, चोर, उचक्कों, बदमाशों से बातें करो तो उन्हें भी इलाहाबाद पहुंचने की फिक्र, सबको छोड़ दीजिए मीडिया वालों को ना जाने क्या हो गया है, वो भी किसी तरह इलाहाबाद पहुंचने की जुगत में हैं। मतलब जिसे देखो वही महाकुंभ पर संगम में गोता लगाने की बात कर रहा है। हर तबके में इतना उत्साह देख कर मुझे भी लगा कि अगर ऐसा है तो क्यों ना मैं भी स्नान कर अपना पाप धो ही आऊं।वैसे तो देश में कोई खुद को पापी मानता ही नहीं है, सबको लगता है कि वो कोई गलत काम करता ही नहीं है तो धरम करम से भला उसका क्या लेना देना। इसीलिए अगर आप ध्यान दें तो पहले कुंभ, अर्द्धकुंभ या फिर महाकुंभ में इतनी भीड़ कहां हुआ करती थी। आज तो मंदिरों में भी भीड़ पगलाई रहती है, पहले तो ऐसा नहीं था।
दरअसल आज मामला कुछ और है, आज पंडित जी लोगों ने हम सबको इतना डरा दिया है कि लोग महाकुंभ और देवालयों की ओर भाग रहे हैं। लोगों को बताया गया है कि ईश्वर के यहां उन्हीं गलतियों की सजा नहीं मिलती जो जानबूझ कर की जाती है, बल्कि उन गलतियों का भी हिसाब किया जाता है जो अनजाने में हो जाती है। अब हम अनजाने में कितनी गलतियां करते हैं भला उसका हिसाब कोई कैसे रख सकता है। बस फिर तो मुझे भी यही ठीक लग रहा है कि चलो जब सब गोता लगाने जा रहे हैं तो हम भी अपने पाप धो ही आते हैं।
पता चला कि दिल्ली से एक वीआईपी बस इलाबाबाद के लिए रवाना हो रही है, इस बस में बहुत बड़े-बड़े लोग पाप धोने के लिए तीर्थराज प्रयाग जा रहे हैं। मन में आया कि मुझे भी जाना चाहिए, अब अनजाने में तो हो सकता है कि मुझसे भी गलती हुई हो। पता किया कि क्या इस बस में मुझे जगह मिल सकती है ? तो बताया गया कि जगह मिलना मुश्किल है, क्योंकि इसमें तमाम वीआईपी रवाना हो रहे हैं। मैने सोचा कि वीआईपी रवाना हो रहे हैं तब तो मुझे जरूर जगह मिल जाएगी, क्योंकि मैं जर्नलिस्ट हूं और वीआईपी मूवमेंट के दौरान जर्नलिस्ट के लिए जगह सुरक्षित रहती है। आपको पता ही है कि वीआईपी जब भी कहीं जाते हैं वो अपने साथ पत्रकारों को जरूर ले जाते हैं। अरे भाई उन्हें कवरेज भी तो चाहिए ना।
काफी प्रयास के बाद पता चल गया कि इस बस का इंतजाम किसके हाथ में है। मैने उस महकमें के अफसर को फोन किया और बताया कि भाई बस में मैं भी यात्रा करना चाहता हूं। अफसर ने बड़े विनम्र भाव से कहा कि श्रीवास्तव जी माफ कीजिएगा, इस बस में आपको शायद जगह ना मिल पाए। मैने कहा भला ऐसा क्या है कि मुझे जगह नहीं मिलेगी ? कहने लगे कि आपको तो पता है कि दिल्ली से बस रवाना हो रही है, बहुत सारे लोग हैं जो तीर्थराज प्रयाग में गोता लगाकर अपना पाप धोना चाहते हैं। मैने कहा मैं जर्नलिस्ट हूं, मुझे कवरेज के लिए जाना होता है, बस में पीछे की ही सही एक सीट मुझे दे दीजिए, अफसर ने जवाब दिया कि ये संभव नहीं है, क्योंकि पीछे की सीट टीवी चैनल और समाचार पत्रों के तमाम संपादकों के लिए पहले ही आरक्षित हो चुकी है। संपादकों का खास आग्रह है कि वो भी अपने पाप धोना चाहते हैं।
मैं तो ठहरा सामान्य जर्नलिस्ट और पीछे संपादक लोग बैठेंगे, ऐसे में उनके साथ सफर करना भी ठीक नहीं रहेगा। मैने कहाकि वीआईपी लोग तो बिल्कुल आगे वाली सीट भी पसंद नहीं करते हैं, हो सके तो मुझे आगे की किसी सीट पर अर्जेस्ट कर लीजिए। जवाब आया कि बस में प्रधानमंत्री भी सफर करेंगे, लिहाजा उनके आगे की और पीछे की सीट पर सुरक्षा गार्ड रहेंगे। सच बताऊं तो प्रधानमंत्री का नाम सुनकर एक बार तो मैं हैरान रह गया। फिर देश के हालात मेरी आंखों के सामने एक फिल्म की तरह गुजरने लगे। मन मे सोचा कि चलो अगर प्रधानमंत्री इस हालात के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हैं और संगम में गोता लगाने जा रहे हैं तो ठीक ही है। शायद अब आगे ऐसा दिन ना देखना पड़े।
वैसे मन में कई तरह के सवाल आ रहे थे, मुझे लगा कि बेचारे प्रधानमंत्री अपने मन से कितना काम करते ही हैं, जो उन्हें संगम में डुबकी लगाने की जरूरत है। डुबकी तो उन्हें भी लगानी चाहिए जिनके इशारे पर वो सरकार चला रहे हैं। मन में सोचा अगर सूरजकुंड में पार्टी के विचार मंथन कार्यक्रम में सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल के साथ बस में सफर कर सकती हैं तो महाकुंभ के अवसर पर संगम में गोता लगाने के लिए जा रही बस में वो क्यों नहीं जा सकतीं। ये अफसर मुझे जानते थे, इसलिए हंसते हुए बता गए कि श्रीवास्तव जी इसीलिए तो कह रहा हूं कि बस में जगह बिल्कुल नहीं है, क्योंकि इसमे सोनिया, राहुल ही नहीं राबर्ट वाड्रा भी सफर कर रहे हैं।
अच्छा दो तीन बड़े नाम सुनकर मै समझ गया था कि अब तो इस बस में मुझे बिल्कुल जगह नहीं मिलने वाली, लेकिन मुझे लगा कि चलो चैनल के लिए एक स्टोरी ही तैयार हो जाएगी, लिहाजा ये तो पता कर ही लूं कि बस में और कौन कौन से वीआईपी जा रहे हैं। पता चला कि दिल्ली में रेपकांड की जिम्मेदारी भले ही गृहमंत्री और दिल्ली की मुख्यमंत्री ने ना ली हो, पर उन्हें इस बात का आभास है कि अगर कानून व्यवस्था चुस्त होती तो शायद ऐसी वारदात ना होती। लिहाजा ये दोनों भी बस में सवार होने वाले हैं। वैसे कन्फर्म नहीं है, लेकिन जानकारी मिल रही है कि बस में शायद बलात्कारियों को भी ले जाया जा रहा है, जिससे वो भी अपने पाप धो लें।
इसके अलावा भारतीय सीमा में घुस कर पाकिस्तान के फौजी दो भारतीय सैनिकों की हत्या करतें हैं और एक शहीद का सिर काट कर ले जाते हैं, इसके बाद भी भारत की ओर से सख्त संदेश ना देने के लिए रक्षामंत्री और विदेश मंत्री को लगता है कि अनजाने में गलती हुई है, लिहाजा इस बस में वो भी सवार हैं। टू जी की नीलामी में अपेक्षित आय ना होने के लिए साइंस टेक्नालाजी मंत्री भी बस में जगह मांग रहे हैं। कोयला ब्लाक आवंटन में धांधली के लिए जिम्मेदार मंत्री कोशिश कर रहे हैं कि बस में उन्हें भी किसी कोने में जगह मिल जाए। मंहगाई से जनता त्राही त्राही कर रही है, इसलिए वित्तमंत्री को भी लग रहा है कि शायद कुंभ स्नान से उनका पाप भी कुछ कम हो जाए। बजट से पहले ही रेल किराया बढाकर जनता पर बोझ डालने वाले रेलमंत्री भी बस में जगह पाने के लिए मारा-मारी कर रहे हैं। कामनवेल्थ घोटाले के आरोपी सुरेश कलमाडी भी संगठन के स्तर पर कोशिश कर रहे हैं कि उनका जाना जरूरी है, क्योंकि अगर उनका पाप धुल जाता है तो कांग्रेस पार्टी को भी राहत मिलेगी।
पता चला है कि बस में जगह पाने के लिए प्रधानमंत्री के यहां सरकार और पार्टी के इतने नेताओं के आवेदन आ चुके हैं कि वो खुद मुश्किल में पड़ गए हैं। इतना ही नहीं सहयोगी दलों के भी कई नेता और मंत्री प्रधानमंत्री पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें साथ ले चलें, इससे सरकार की छवि साफ सुथरी दिखाई देगी। बहरहाल बात सरकार के सहयोगी दलों तक सीमित रहती तो कुछ ना कुछ इंतजाम कर लिया जाता, लेकिन इस बस में बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गड़करी भी जाने की इच्छा जता चुके हैं। पूर्ति घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें लग रहा है कि शायद महाकुंभ में स्नान से ये दाग मिट जाए। जानकार बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री की मुश्किल बढ गई है, उनकी बातचीत यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से चल रही है, अगर बात बन गई तो भारी भीड़ को देखते हुए बस के बजाए दिल्ली एक विशेष ट्रेन का इंतजाम किया जाएगा, जिससे सरकार के मंत्री, सहयोगी दलों और विपक्ष के नेता सभी के पाप एक साथ धोने का इंतजाम हो सके।
दरअसल नेताओं को पता चल गया है कि समुद्र मंथन में जो अमृत कलश मिला था, जिसे पाने के लिये देवताओं और राक्षसों में बारह साल तक भीषण संग्राम हुआ। इस झगड़े में ही अमृत कलश की कुछ बूंदे प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। इसी के चलते इन स्थानों पर हर पांच या छह साल बाद कुंभ की शुरुआत हुई। चूंकि इलाहाबाद में कलश से ज्यादा बूंदें गिरी थीं इसलिये हर बारह साल बाद यहां महाकुंभ लगने लगा। इसी अमृत बूंद का रसपान करने के लिए नेताओं में मारामारी मची हुई है। अंदर की बात ये है कि नौकरशाह ये संख्या कुछ बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं, उन्हें लग रहा है कि अगर ट्रेन जाती है तो उसमें उन्हें भी जगह मिलने की संभावना रहेगी, वरना बस जितनी ठसाठस है, उसमें बेचारे नौकरशाहों की तो कोई पूछ ही नहीं होगी। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि पाप धोने के लिए मंत्री, नेता, अफसर और पत्रकार जितनी कोशिश कर रहे हैं, उतनी कोशिश ईमानदारी से अपना काम करने में करते तो शायद उन्हें इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती।
चलते - चलते
एक बड़ा सवाल ये है कि देश और दुनिया भर से लोग यहां डुबकी लगाकर अपने पाप को धोकर चले जाएंगे, लेकिन क्या किसी को मां गंगा की भी फिक्र है। चलिए जीवन दायिनी मां गंगा आपके पाप धोने को तैयार है, लेकिन आप भी तो तय करें कि मां को प्रदूषण से बचाने के लिए हर व्यक्ति अपने स्तर पर कोशिश करेगा।
इनके पाप धोते-धोते स्वयं गंगा का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है !
ReplyDeleteवैसे कहते है कि, पापी जब गंगा में डुबकी लगा रहा होता है सारे पाप गंगा के किनारे बैठते है जैसे ही स्नान करके पापी बाहर आता है फिर से सारे पाप उसपर सवार हो जाते है ऐसा मैंने सुना है !
तो पाप धुल जाने का सवाल ही नहीं उठता !
यह कवरेज (आलेख ) भी हम तक पहुंचाई क्या कम है क्या ? आभार :)
अच्छा ऐसा, फिर तो गंगा में डुबकी लगाने का कोई मतलब ही नहीं.. मुझे लगता था कि पाप हमेशा के लिए धुल जाता है..
Deleteमहा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
ReplyDeleteसज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
बहुत बढिया रविकर जी
Deleteमकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएं
स्वार्थपरक सोच हर जगह हावी है
ReplyDeleteबिल्कुल, इसमें कोई दो राय नहीं
Deleteचलिए जीवन दायिनी मां गंगा आपके पाप धोने को तैयार है, लेकिन आप भी तो तय करें कि मां को प्रदूषण से बचाने के लिए हर व्यक्ति अपने स्तर पर कोशिश करेगा।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक सवाल जिसका जबाब आज किसी भी श्रद्धालु के पास नहीं है की वह एस समस्या के हल के लिए क्या पहल करेगा ,हम तो आपना पाप धो लेगे लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी क्या गंगा में डुबकी लगायेगी या डर्टी कहके दूर भाग जायेगी ,जिसकी जिम्मेदारी हम सभी की होगी ,की हमने समय रहते अपनी गंगा माँ को बचने का प्रयास क्यों नहीं किया
शुक्रिया भाई प्रवाह जी
Deleteबिल्कुल सटीक आकलन किया है ……………अभी ऐसा हीकुछ मै अपनी एक कविता मे कह कर चुकी हूँ जल्द लगाऊँगी ब्लोग पर भी
ReplyDeleteआप यहीं पढ लीजिये :)
इक तरफ़ कटा सिर उसका
जो बना देश का प्रहरी
कहीं ना कोई मचा हल्ला
क्योंकि कर्तव्य है ये उसका
कह पल्ला झाडा जाता हो जहाँ
इक तरफ़ बहन बेटी की आबरू
सरेआम लुट जाती हो
और कातिल अस्मत का
नाबालिगता के करार में
बचने की फ़ेहरिस्त मे जुड जाता हो जहाँ
सफ़ेदपोश चेहरों पर शिकन
ना आती हो चाहे कितना ही
मुश्किल वक्त आ पडा हो
घोटालों के घोटालों मे जिनके चेहरे
साफ़ नज़र आते हों जहाँ
वहाँ कैसे कोई आस्था का पर्व मनाये
क्यों ना शर्म से डूब मर जाये
क्यों नहीं एक शमशीर उठाये
और झोंक दे हर उस आँख में
जहाँ देखे दरिन्दगी के निशाँ
जहाँ देखे वतन की पीठ पर
दुश्मन का खंजरी वार
जहाँ देखे घर के अन्दर बसे
शैतानों के व्यभिचार
कहो तो जब तक ना हो
सभी दानवों का सफ़ाया
जब तक ना हो विषपान
करने को शिव का अवतार
बिना मंथन के
कैसे अमृत कलश निकलेगा
और कैसे घट से अमृत छलकेगा
तब तक कैसे कोई करेगा
आस्था की वेदी पर कुंभ स्नान ?
कुम्भ स्नान के लिये
देनी होगी आहुति यज्ञ में
निर्भिकता की, सत्यता की, हौसलों की
ताकि फिर ना दानव राज हो
सत्य, दया और हौसलों की परवाज़ हो
और हो जाये शक्ति का आहवान
और जब तक ना ऐसा कर पाओगे
कैसे खुद से नज़र मिलाओगे
तब तक कैसे ढकोसले की चादर लपेटे
करोगे तुम कुम्भ स्नान…………?
क्योंकि
स्नान का महत्त्व तब तक कुछ नहीं
जब तक ना मन को पवित्र किया
तन की पवित्रता का तब तक ना कोई महत्त्व
जब तक ना मन पवित्र हुआ
जब तक ना हर शख्स के मन में
तुमने आदर ,सच्चाई और हौसलों का
दीप ना जला दिया
दुश्मन का ह्रदय भी ना साफ़ किया
तब तक हर स्नान बेमानी ही हुआ
इसलिये
जब तक ना ऐसा कर सको
कैसे कर सकोगे कुम्भ स्नान
जवाब दो मनुज ………जवाब दो?
क्या बात, बिल्कुल सही..
Deletebaba re itano ke pap dhone ke bad ganga me pani to bachega hi nahi sirf pap hi bahega..isliye mein to ghar me hi ganga ka nam le kar snan dan kar loongi..
ReplyDeleteहाहाहहाहाहहा
Deleteवैसे ये ठीक भी है, कहां ठंड और भीड में भागदौड की जाए..
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं
vaise shrivastav ji ab pata chala ki YE GANGA KYON MAILI HO GAYEE...
Deleteहां सोचने वाली बात है...
Deleteकम से कम कुम्भ स्नान की सोचते वक़्त तो आप इन पापियों की तरफ से अपना मन हटा लेते क्योंकि जब तक इनमे मन लगा रहेगा मुक्ति तो नहीं मिलने वाली .वैसे आपकी कुम्भ के लिए शानदार प्रस्तुति ने हमें तो मुक्ति दिला ही देनी है आभार बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मकर सक्रांति की शुभकामनायें ”ऐसी पढ़ी लिखी से तो लड़कियां अनपढ़ ही अच्छी .”
ReplyDelete@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
हाहाहाहहा, जय हो
Deleteआपको भी मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएं..
हाहाहहाहाहाहा, सही कह रहे हैं, वैसे ये कितना भी गंगा नहा लें, इनके पाप नहीं धुलने वाले हैं।
ReplyDeleteजी इस बात से तो मैं भी सहमत हूं
Deleteमहामेला कुंभ वाकई इंसानियत और मानवाता के लिए एक वरदान है. इस मेले के विषय में आपके लेख बेहद बेहतरीन है.. इससे पहले मैंने एक लेख और पढा है आप भी पढ़े http://days.jagranjunction.com/2013/01/14/maha-kumbha-mela-2013-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%AD-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE/
ReplyDeleteशुक्रिया, बिल्कुल पढता हूं..
Deleteकुम्भ मेले की सुंदर जानकारी.
ReplyDeleteशुक्रिया रचना जी
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteआपको मकर संक्रांति की शुभकामनाएं
सार्थक और सटीक!
ReplyDeleteआभार सर
Deleteमहेंद्र जी ...क्या कहते हैं आप ...अगर सब के सब पाप धोने चले गए तो इस धरती पर और भी दुगनी ताकत से पाप करने को एक नयी पौध तैयार हो जाएगी
ReplyDeleteसभी पापी एक जगह इकट्ठे हो रहें है ...बेचारी गंगा माँ का क्या होगा,किस-किस पापी का पाप अपने ही अंदर छिपा पाएगी और पापी भी ऐसे ऐसे की आम इंसान की रूह कांप जाए ..
वाकई बात में दम है.. शुभकामनाएं
Deleteसार्थक और सटीक लेख...
ReplyDeleteजी, आभार
Deleteबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में.
ReplyDeleteशुक्रिया मदन जी
Deleteतभी तो हमने गंगा को माँ का नाम दिया हैं !!! जो न जाने कितना बोझ उठाते हुए उफ़ तक नहीं करती ...
ReplyDelete..सार्थक चिंतन से पूरित आलेख
ispasht va satik-***
ReplyDeleteहमारी अंध-आस्था हमारे ही विनाश का कारण बनती जा रही है | जब मैं ये कमेन्ट लिख रहा हूँ तब इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर दुर्घटना पहले ही हो चुकी है ये एक प्रत्यक्ष विनाश है और परोक्ष विनाश ये कि हम अपने साफ़ पानी के स्रोत को आस्था के नाम पर खत्म करते जा रहे हैं |
ReplyDeleteधर्मों में कृतज्ञता को बहुत जरूरी बताया गया है और उस समय हमारी ये नदियाँ साफ़ पानी की रही होंगी जो कि आम लोगों/प्राणियों की इससे सम्बंधित जरूरतों को पूरा करती होंगी | इसीलिए शायद उस समय लोगों ने इनके प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करने के लिए इन्हें माँ/जीवनदायिनी का दर्जा दिया होगा | लेकिन फिर धीरे-धीरे इंसान ने अपनी समझ-बूझ को इस्तेमाल करना बंद कर दिया और नदियों में नहा के पाप धोने का ढोंग शुरू किया | और आज ये हालत हो चुके हैं कि नित्य-कर्म से लेकर नहाना-धोना आदि सारे काम अब वो वहीँ करते हैं , ज्यादा पुन्य मिलता है |
अपनी गलती से सीखने वाले को समझदार कहते हैं और दूसरों की गलतियों से सीखने वालों को बुद्धिमान कहते हैं | यकीनन हम बुद्धिमान तो नहीं हैं लेकिन क्या हम समझदार भी है या नहीं ? पता नहीं कब हम टेम्स के उदाहरण से कुछ सीख सकेंगे ?
हालाँकि मैं इस पोस्ट पर बहुत बाद में कमेन्ट कर रहा हूँ लेकिन एक मजेदार ख्याल दिमाग में आ रहा है | आप उस बस में मत जाइए और काश कि वो बस वहीँ संगम में समा जाए तो मैं मान लूं कि गंगा सचमुच धरती से पाप कम करती है |
:D
सादर